Quantcast
Channel: বাংলা শুধুই বাংলা
Viewing all articles
Browse latest Browse all 1191

क्या हम मनुष्य भी हैं? क्या मनुस्मृति की निंदा काफी है,उनका क्या करें जो सेकुलर हैं और बेटियों को बख्श नहीं रहे हैं? बंगाल में अब छात्राएं स्कूल कालेज छोड़कर घर जाकर मुंह छुपा रही हैं क्योंकि राजनीतिक गुंडे न सिर्फ उनसे मारपीट कर रहे हैं बल्कि उन्हें बलात्कार करने की धमकी दे रहे हैं,सरेआम। हिंदू क्या हिंदू राष्ट्र क्या,बुनियादी सवाल यह है कि हम हिंदू हों न हों,क्या हम मनुष्य भी हैं और जिस राष्ट्र के नाम यह कुरुक्षेत्र है,वह राष्ट्र क्या है,कहां है! सच है कि यादवपुर विश्वविद्यालय के साथ साथ जेएनयू के पक्ष में कुछ विषैले जीवजंतुओं के अलावा पूरा बंगाल एकजुट है,तो सात मार्च को संभावित चुनाव अधिसूचना से पहले केसरिया मुहिम के तहत यादवपुर विश्वविद्यालय में दीदी ने पुलिस नहीं भेजा,लेकिन वर्दमान विश्वविद्यालय में पहले कैंपस में पुलिस बुलाकर छात्र छात्राओं को धुन डाला गया।फिर इसके खिलाफ जब वे अनशन पर बैठे तो तृणमूल कर्मियों ने रात में बत्ती बुझाकर उनकी खबर ली फिर मोटर बाइक पर सवार होकर घूम घूमकर छात्रावासों और निजी आवासों में जाक छात्राओं को घुसकर बलात्कार कर देने की धमकी दे दी। हालात ये हैं क

$
0
0

क्या हम मनुष्य भी हैं?

क्या मनुस्मृति की निंदा काफी है,उनका क्या करें जो सेकुलर हैं और बेटियों को बख्श नहीं रहे हैं?

बंगाल में अब छात्राएं स्कूल कालेज छोड़कर घर जाकर मुंह छुपा रही हैं क्योंकि राजनीतिक गुंडे न सिर्फ उनसे मारपीट कर रहे हैं बल्कि उन्हें बलात्कार करने की धमकी दे रहे हैं,सरेआम।

हिंदू क्या हिंदू  राष्ट्र क्या,बुनियादी सवाल यह है कि हम हिंदू हों न हों,क्या हम मनुष्य भी हैं और जिस राष्ट्र के नाम यह कुरुक्षेत्र है,वह राष्ट्र क्या है,कहां है!


सच है कि यादवपुर विश्वविद्यालय के साथ साथ जेएनयू के पक्ष में कुछ विषैले जीवजंतुओं के अलावा पूरा बंगाल एकजुट है,तो सात मार्च को संभावित चुनाव अधिसूचना से पहले केसरिया मुहिम के तहत यादवपुर विश्वविद्यालय में दीदी ने पुलिस नहीं भेजा,लेकिन वर्दमान विश्वविद्यालय में पहले कैंपस में पुलिस बुलाकर छात्र छात्राओं को धुन डाला गया।फिर इसके खिलाफ जब वे अनशन पर बैठे तो तृणमूल कर्मियों ने रात में बत्ती बुझाकर उनकी खबर ली फिर मोटर बाइक पर सवार होकर घूम घूमकर  छात्रावासों और निजी आवासों में जाक छात्राओं को घुसकर बलात्कार कर देने की धमकी दे दी।


हालात ये हैं कि पूरे वर्दमान जिले में बलात्कार का शिकार होने के खतरे के मद्देनजर छात्राएं स्कूल कालेज छोड़कर घर में मुहं छुपाकर बैठने को मजबूर हैं।


कन्याश्री के राज में यह आलम है तो क्या सिर्फ मनुस्मति की निंदा करना काफी होगा?


पुरुष वर्चस्व  के आक्रामक लिंग से कैसे बचेंगी हमारी माताें,बहने और बेटियां जबकि सत्ता वर्ग के घरों में वे शायद हैं ही नहीं?

पलाश विश्वास

यह देश है वीर जवानों का। 2007 में असम में घटी थी यह घटना। दूरदर्शन पर इसे लेकर हंगामा हुआ था। इस औरत का नाम है लक्ष्मी ओरंग।



जेएनयू देखने में महिला विश्वविद्यालय लगता है,जहां करीब सत्तर फीसद छात्राएं तीश फीसद छात्रों के साथ पढ़ती हैं।


बनारस विश्वविद्यालय के साथ ही इसकी तुलना की जा सकती है।जेएनयू में दलित,ओबीसी और आदिवासी छात्र छात्राएं देश में जय भीम कामरेड का नारा बुलंद कर रही हैं।


इसी विश्वविद्यालय में अपने पूर्वोत्तर,हिमालय,कश्मीर,ओड़ीशा और असम जैसे पिछड़े इलाकों,द्रविड़ और अनार्य जनसमुदायों वाले दक्षिणात्य,लातिन अमेरिका और अफ्रीका के साथ साथ एशियाई मुल्कों के बच्चे पढ़ते हैं,लेकिन वहां कंडोम गिनने लगा है आरएसएस।


जो जन प्रतिनिधि ऐसा महान कर्म कर रहे हैं,उनने कभी अपने इलाके की कोई समस्या उठाया हो.मीडिया ने उसे इसीतरह फ्लैश क्यं नहीं किया ताज्जुब है।


दुनियाभर के लोग जानते हैं कि भारतीय राजनीति में सबसे विद्वान तीन लोग हैंःनेताजी,सुभाष और जवाहर।


हमारे शहीदे आजम भगत सिंह जैसे आजादी के लिए मर मिटे नौजवानों में भी विद्वता थी तो मां मनुस्मृति के हाथों बलि हुए दलित शोध छात्र की विद्वता की भी चर्चा दुनियाभर में है।


जेएनयू.यादवपुर विश्वविद्यालय समेत तमाम विश्विद्यालय, आईआईटी और आईआईएम समेत तमाम सरकारी उच्च शिक्षा संस्थान बंद करने के पीपीपी विकास माडल के तहत पतंजलि मार्का हावर्ड विश्वविद्यालय खोलने की मुहिम में बाकी देश को राष्ट्रद्रोही साबित करने पर आमादा मनुसमृति के सारस्वत वरद पुत्रों को अब नेहरु अपढ़ नजर आ रहे हैं.तो यह उनकी वैदिकी संस्कृति का ही प्रतिमान है,जिसके तहत कला साहित्य और ंस्कृति की तमाम विधाओं और माध्यमों में बहुजन अछूत और बहिस्कृत हैं।


बड़े अफसोस के साथ लिखना पड़ रहा है कि संसद में जिन सांसद सुगत बोस,नेताजी वंशज ने तृणमूल कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता की डंका पीट दी,उनके राजकाज में हाल और बुरा है।


सच है कि यादवपुर विश्वविद्यालय के साथ साथ जेएनयू के पक्ष में कुछ विषैले जीवजंतुओं के अलावा पूरा बंगाल एकजुट है,तो सात मार्च को संभावित चुनाव अधिसूचना से पहले केसरिया मुहिम के तहत यादवपुर विश्वविद्यालय में दीदी ने पुलिस नहीं भेजा,लेकिन वर्दमान विश्वविद्यालय में पहले कैंपस में पुलिस बुलाकर छात्र छात्राओं को धुन डाला गया।


फिर इसके खिलफ जब वे अनशन पर बैठे तो तृणमूल कर्मियों ने रात में बत्ती बुझाकर उनकी खबर ली फिर मोटर बाइक पर सावर होकर छात्रावासों और निजी आवासों में जाक छात्राओं को घुसकर बलात्कार कर देने की धमकी दे दी।


हालात ये हैं कि पूरे वर्दमान जिले में बलात्कार का शिकार होने के खतरे के मद्देनजर छात्राएं स्कूल कालेज छोड़कर घर में मुहं छुपाकर बैठने को मजबूर हैं।


कन्याश्री के राज में यह आलम है तो क्या सिर्फ मनुस्मति की निंदा करना काफी होगा?


पुरुष वर्चस्व  के आक्रामक लिंग से कैसे बचेंगी हमारी माताें,बहने और बेटियां जबकि सत्ता वर्ग के घरोंमें वे सायद हैं ही नहीं?

हमारे गुरुजी ने आज लिखा हैः

मैं शत प्रतिशत भारतीय हूँ, राजनेताओं से भी अधिक भारतीय. भारतीयता मेरी अस्मिता है, व्यवसाय नहीं. जीवन के पिछ्ले ७५ सालों में मुझे हिन्दू होने या माने जाने से भी कोई गुरेज नहीं था. पर जब से इस देश में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ है हिन्दुत्व योगी आदित्यनाथ, सा्क्षी महाराज, तोगड़िया, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, सनातन संस्था, और तमाम नामों से उभरती संस्थाओं के द्वारा व्याख्यायित होने लगा है, मुझे हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द में खालिस्तान, तालिबान जैसी अनुगूंज सुनाई देने लगती है. और मैं भारत और उसकी समन्वयमयी संस्कृति के भविष्य के बारे में चिन्तित हो उठता हूँ.

अभी मेरे गुरुजी को वे तमाम चीखें सुनायी नहीं पड़ी हैं,जिससे हिंदू क्या हिंदू  राष्ट्र क्या,बुनियादी सवाल यह है कि हम हिंदू हों न हों,क्या हम मनुष्य भी हैं और जिस राष्ट्र के नाम यह कुरुक्षेत्र है,वह राष्ट्र क्या है,कहां है!


हमारे गुरुजी ने आगे लिखा हैः

वैचारिक मतभेद, उन पर बहस, की संस्कृति के विकास में मुख्य भूमिका होती है. बहस करने और तर्क करने से ही किसी ्घटना या धारणा के मूल तक पहुँचने और नये तथ्यों के अन्वेषण में सहायता मिलती है. इसीलिए हमारे प्राचीन मनीषियों ने 'वादे-वादे जायते तत्वबोध: की सलाह दी थी. दुर्भाग्य से सामन्ती सोच वाला समाज और हर सत्ता इसे अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानती है और उसे हर तरह से दबाने की चेष्टा करती है. पर विचार तो चेतना है, वह कभी नष्ट नहीं होती, उसे दबाने वाले ही नष्ट हो जाते हैं. ऐसा समाज पिछड़ जाता है.


नये प्रवाह को रोकिये मत, केवल उसे सही दिशा में मो्ड़िये और खुद भी उसके साथ चलने का प्रयास कीजिये. क्यों कि समय पुरातनता की कैंचुल को अधिक दिन तक सहन नहीं करता. नित्य नूतनता ही जीवन है, जो पुराना हुआ उसे प्रकृति खुद ही मिटा देती है.


गुरुजी के कहे मुताबिक पुनरुत्थान समय के हिंदू राष्ट्र में  यह विवेक कहां है,जहां सहमति का विवेक हो और असहमति का साहस भी हो?



हमारे लोग जानते हैं कि हमने अपने पिता की कभी नहीं सुनी।उनसे मेरे मतभेद विचारधारा के मुद्दे पर भयंकर और सार्वजनिक थे।हालांकि मेहनतकशो की हर लड़ाई में हम उनके साथ थे और आज भी उनकी लड़ाई में मर मिटने का इरादा है।इसके अलावा हमारी कोई दूसरी तमन्ना नहीं हैं।


क्योंकि कैंसर को हराकर जीने वाले,लड़ने वाले और कैंसर के आगे आत्मसमपर्ण किये बिना सारा दर्द हंसते हुए आखिरी सांस तक दुनिया को बेहतर बनाने का ख्वाब देखने वाले पिता का पुत्र हूं।



पिता मेरे अपढ़ थे।अंबेडकरी थे और कम्युनिस्ट भी थे।मतभेद उनसे इसी अंबेडकरी मिशन को लेकर था।पिता अपढ़ थे और कोई भाषा उनके लिए दीवार न थी।


राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री वगैरह वगैरह से बेखौफ अपने लोगों के लिए लड़ने वाले उस पिता ने शरणार्थी होकर भी इस देश के मुसलमानों को कभी भारत विभाजन का जिम्मेदार नहीं माना।


उनने असम से लेकर देश के कोने कोने में दंगापीड़ित मुसलमान इलाकों में जाते रहने की अपनी कवायद को राजनीति या धर्मनिरपेक्षता के साथ कभी न जोड़ा।


वे  तमाम अस्मिताओं से ऊपर थे और जयभीम कामरेड का नारे न लगाकर भी वे तजिंदगी लाल थे और नील भी।


फिर भी मैंने उनका कहा कभी नहीं सुना।उलट इसके उन्होंने मेरे मतामत को हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता दी।


मेरी विश्वविद्यालयी शिक्षा दीक्षा मुझे अपने पिता से एक कदम भी आगे ले जा सके,तो यह उपलब्धि किसी पुरस्कार या सम्मान से बड़ी होगी।


तारा चंद्र त्रिपाठी जी ने मुझे कभी किसी कक्षा में पढ़ाया नहीं। जीआईसी नैनीताल में वे विज्ञान पढाने वाले शिक्षकों को हिंदी पढ़ाते थे और मैं हाीस्कूल पास करते ही साहित्यकार बनने की धुन में विज्ञान को अलविदा कह चुका था।


संजोग से हाफ ईअरली परीक्षा की मेरी हिंदी की कापी वे जांच रहे थे और वही देखकर उनने मुझे दबोच लिया और आज भी उन्हीं के कब्जे में हूं।


मेरे जीवन में वे ही एक मात्र व्यक्ति हैं,जिनका कहा मैंने हमेशा अक्षरशः पालन किया है जिनने पहली ही मुलाकात के बाद मुझे अपने घर परिवार में शामिल कर लिया।मैं जो कुछ भी हूं,अच्छा बुरा उन्हींकी बदौलत हूं।वे नहीं मिलते तो मैं कुछ भी हो सकता था,लेकिन आज जो मैं हूं,वह हर्गिज नहीं होता।


इस नाते से मैं ब्राह्मण भी हूं क्योंकि अगर धर्म है तो उस हिसाब से ताराचंद्र त्रिपाठी मेरे धर्मपिता हैं।


उन्ही ताराचंद्र त्रिपाठी का ताजा स्टेटस शेयर कर रहा हूं।हस्तक्षेप पर उनके इतिहास के पाठ जारी हैं।जो भी सही इतिहास पढ़ना चाहते हैं,हस्तक्षेप पर हमारे गुरुजी की कक्षा में उनका स्वागत है।

गुरुजी ने लिखा हैः


मैं शत प्रतिशत भारतीय हूँ, राजनेताओं से भी अधिक भारतीय. भारतीयता मेरी अस्मिता है, व्यवसाय नहीं. जीवन के पिछ्ले ७५ सालों में मुझे हिन्दू होने या माने जाने से भी कोई गुरेज नहीं था. पर जब से इस देश में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ है हिन्दुत्व योगी आदित्यनाथ, सा्क्षी महाराज, तोगड़िया, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, सनातन संस्था, और तमाम नामों से उभरती संस्थाओं के द्वारा व्याख्यायित होने लगा है, मुझे हिन्दू और हिन्दुस्तान शब्द में खालिस्तान, तालिबान जैसी अनुगूंज सुनाई देने लगती है. और मैं भारत और उसकी समन्वयमयी संस्कृति के भविष्य के बारे में चिन्तित हो उठता हूँ.

अक्सर यह होता है कि राजनीतिक रूप से जीत हासिल करने वाला सांस्कृतिक रूप से हार जाता है. यूनानी जीते, यूनानी सेनापति हेलियोदोर जैसे अनेक यूनानी वैष्णव या बौद्ध हो गये. शक, कुषाण, हूण, और भी न मालूम कितने आक्रान्ता और इस देश में अपना राज्य स्थापित करने वाले हमारे धर्म और समाज में विलीन हो गये. पूरा मध्यकाल राजनीतिक रूप से मुस्लिम सत्ता का युग है. पर साहित्य और कला की दृष्टि से वह मुस्लिम परम्पराओं पर भारतीय परंपराओं की अनवरत विजय का युग भी है. अंग्रेज जीते पर हमारी सांस्कृतिक परम्पराएँ उन्हें अनवरत अभिभूत कर रही हैं. हमारे जन नायकों ने अंग्रेजों को भारत छोड़ कर जाने के लिए विवश कर दिया. यह हमारी विजय थी. पर जीत कर भी हम अंग्रेजियत के सामने हार गये. वे हमें गुलाम समझते हुए भी हमारी प्राचीन संस्कृति का ओर- छोर प्रकाशित कर गये. पिशेल जैसे प्राकृत भाषाओं के महान जर्मन वैयाकरणिक ने सदा यह कामना की यदि मेरा जन्म भारत में न ह॒आ हो, मेरी मृत्यु भारत में हो. भगवान ने उनकी सुनी और वे भारत में आने के कुछ ही दिन बाद मद्रास में उनके पंचतत्व यहाँ की माटी में विलीन हुए. ्लेकिन हमारे अन्दर आजादी के बाद कितनी गुलामी भर गयी है, यह हमारे नव धनिकों और उनकी देखादेखी सामान्य जन को भी संक्रमित कर चुकी है.


--
Pl see my blogs;


Feel free -- and I request you -- to forward this newsletter to your lists and friends!

Viewing all articles
Browse latest Browse all 1191

Trending Articles


KASAMBAHAY BILL IN THE HOUSE


FORTUITOUS EVENT


Pocoyo para colorear


Sapos para colorear


OFW quotes : Pinoy Tagalog Quotes


Long Distance Relationship Tagalog Love Quotes


Re:Mutton Pies (lleechef)


Ka longiing longsem kaba skhem bad kaba khlain ka pynlong kein ia ka...


Vimeo Create - Video Maker & Editor 1.5.2 by Vimeo Inc


Vimeo 10.7.1 by Vimeo.com, Inc.


UPDATE SC IDOL: TWO BECOME ONE


Pokemon para colorear


Girasoles para colorear


Love Quotes Tagalog


Patama lines and Tagalog Quotes Pinoy Sayings


“BAHAY KUBO HUGOT”


RE: Mutton Pies (frankie241)


Hato lada ym dei namar ka jingpyrshah jong U JJM Nichols Roy (Bah Joy) ngin...


Vimeo 10.7.0 by Vimeo.com, Inc.


Vimeo 11.6.0 by Vimeo.com, Inc.