विजय माल्या भारतीय राजनीति के गलित कुष्ठ की खाज़ है । उसने हर पार्टी के नेताओं को अमुक विज्ञापन की तर्ज़ पर - " हम यहां भी खिलाते हैं , वहां भी खिलाते हैं " का फंडा अपनाया । उसे राजनीति का चस्का लगाने वाले कर्नाटक के ईमानदार माने जाने वाले राजनेता रामकृष्ण हेगड़े थे । वह राज्य सभा सांसद रहते दर्जनों सांसदों को सत्र के दौरान अपने चार्टेड प्लेन से रोज़ लन्च कराने दिल्ली से मुम्बई ले जाता था , और " खिलाता " था । इन दिनों स्वभावतः भाजपा के पाले में था । दैत्य की तरह समुद्र तटों पर अधनंगा होकर अछूतियों के संग फ़ोटो खिंचाता था , और नाचता था । अपनी थुल थुल तोंद का भी इसे कोई लिहाज़ न था । न किसी ने कभी इसे टोका - कि बे तोंदू , शर्ट तो मत उतार । सब उसका खा कर उसे कामदेव का और कोका पंडत का अवतार बताते थे । बैंक उसको कर्ज़ा देते रहे । अब कौन किसको दोष दे ।
जटा जूट को कलर , खिज़ाब , डाई से रँगने वाले , रावण की तरह निजी पुष्पक विमान रखने वाले , अपने बणिज ब्यौपार का झूठा विज्ञापन देने वाले , सत्ता की चौखट अपने अजिन , दर्भ , पालाश और कमण्डल को आये दिन पतित करने वाले ऐसे बाबाओं से तो कलयुग भी सिहर उठा । गंगा से ब्रह्मा जी ने कहा था -
" साधवो , न्यासिनो , शान्तः , ब्रह्मिष्ठ , लोक पावनः
हरन्त्यधम तेन्गा सङ्गात तेवाबदे अथमिदम हरिः " अर्थात-
शांत , ब्रह्म निष्ठ और पवित्र साधू सन्त जब तुममे मज्जन पान करेंगे , तो तुम्हारा कलुष भी हर लेंगे ।