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मुसलमानों और बंगाली दलित शरणार्थियों को घुसपैठिया करार हिंदू राष्ट्र से खदेड़ने की मुहिम संघ परिवार की! आसू और उल्फा के नक्शेकदम पर फिर भारत की नागरिकता के लिए आधार वर्ष 1951 का भाजपाई अलाप और असम पर मंडराने लगा फिर नेल्ली नरसंहार का काला साया। पलाश विश्वास

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मुसलमानों और बंगाली दलित शरणार्थियों को घुसपैठिया करार हिंदू राष्ट्र से खदेड़ने की मुहिम संघ परिवार की!

आसू और उल्फा के नक्शेकदम पर फिर भारत की नागरिकता के लिए आधार वर्ष 1951 का भाजपाई अलाप और असम पर मंडराने लगा फिर नेल्ली नरसंहार का काला साया।

पलाश विश्वास


असम में तो अंतिम चरण का मतदान कल ही होने वाला है लेकिन बंगाल में जंगल महल में ही कल दूसरे चरण का मतदान है और बाकी बंगाल में जहां बड़े पैमाने पर संघ परिवार के समर्थक हिंदू शरणार्थी हैं,उन्हें मालूम भी नहीं है कि संघ परिवार के हिंदुत्व एजंडे में उनके लिए देश निकाले का पुख्ता इंतजाम है।


गौरतलब है कि संघ परिवार ने असम जीतने के लिए  ने हाल ही में असम चात्र आंदोलन और उल्फा की पृष्ठभूमि में बने असम गण परिषद के साथ गठबंधन बनाया है।मुसलमानों और दलित बंगाली शरणार्थियों के खलाप घृणा अभियान ही नहीं बाकायदा युद्ध जैसी परिस्थितियां बनाकर संघ परिवार  की कोशिश असम को फिर गुजरात बना देने की है।इसी रणनीति के तहत केंद्रीय मंत्री और असम में बीजेपी का प्रमुख चेहरा रहे सर्वानंद सोनवाल विधानसभा चुनाव से पहले अवैध घुसपैठ का मामला उठाते रहे हैं। चुनाव से पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि बीजेपी और अमस गण परिषद का गठबंधन बांग्लादेशी  घुसपैठियों को मदद पहुंचाने वाले राजनीतिक ताकतों का मुकाबला करेगा।


गौर करें कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान असम और बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा जोऱ शोर से उठाया था नरेंद्र मोदी और अमित साह ने।तब ममता बनर्जी ने इसका मुंहतोड़ जवाब जरुर दिया था लेकिन इस इकलौते मुद्दे के दम पर बंगाल और असम के बंगाली हिंदू शरणार्थियों का एक बड़ा हिस्सा संघ समर्थक हो गयाथा जिसके नतीजतन बंगाल में भाजपा को तब सत्रह फीसद वोट मिले।


तब संघ परिवार हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए कानून बदलने का वायदा कर रहा था और सीधे शब्दों में मुसलमानों को घुसपैठिया बता रहा था।


गौरतलब है कि नागरिकता कानून में भी इस बीच संशोधन हुए तो पूर्वी बंगाल से आये शरणार्थियों को नागरिकता देने का कोई प्रावधान नहीं हुआ।


हिंदू दलित बंगाली शरणार्थी भाजपाई गाजर चबाते हुए अब भी 2003 और 2005 में नागरिकता से वंचित होने के बाद नागरिकता दोबारा मिलने का इंतजार कर रहे हैं।


जैसा कि संशोधित नागरिकता कानून में आधार वर्ष 1948 माना गया है और उसके बाद बिना वैध कागजात के भारत आने वाले सारे लोग घुसपैठिया माने जायेंगे,उसी के मुताबिक संघ परिवार बंगाल में इस मुद्दे को उठाये बिना असम में नागरिकता के लिए आधार वर्ष 1951 बताने लगा है।


भाजपा के आरोप कि असम की कांग्रेस सरकार घुसपैठियों का संरक्षण कर रही है, पर पलटवार करते हुए मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने बुधवार (6 अप्रैल) को आश्चर्य जताया कि केन्द्र की राजग सरकार ने उन्हें कोई कारण बताओ नोटिस क्यों नहीं जारी किया।


गोगोई ने पलटकर सवाल किया कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने पिछले दो वर्षों में उनसे घुसपैठ के मुद्दे पर चर्चा क्यों नहीं की और सीमा पार से अवैध आव्रजन को अनुमति देने तथा घुसपैठियों को बचाने के मामले में कारण बताओ नोटिस क्यों नहीं भेजा।


उन्होंने कहा, ''जब मामला इतना गंभीर है, फिर सिर्फ चुनाव के वक्त इसे बाहर क्यों लाना है? यह आपके हिमंत बिस्वास शर्मा, जो मेरी सरकार में असम समझौता क्रियान्वयन मंत्री थे, कि जिम्मेदारी थी कि वह सभी अवैध अव्रजकों को वापस भेंगे। यदि असम में इतने विदेशी हैं तो, बतौर मंत्री हिमंत ने उन्हें संरक्षण क्यों दिया?''


उन्होंने कहा, ''मैंने किसी बांग्लादेशी को शरण नहीं दिया है। मुझे उनके वोटों की जरूरत नहीं है। भारतीय नागरिकों की रक्षा करना मेरा संवैधानिक कर्तव्य है। वह मैं था जिसने अवैध आव्रजकों की पहचान करने के लिए राष्ट्रीय नागरिक पंजीयन में सुधार किया।''


गोगोई ने दावा किया कि भारत-बांग्लादेश सीमा पर कंटीले तारों का बाड़ा लगाने और घुसपैठ रोकने के लिए नदी पुलिस शुरू करना उनके 15 वर्षों के कार्यकाल में हुआ, ना कि तत्कालीन गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने कराया।


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए गोगोई ने कहा कि प्रधानमंत्री ने ''अच्छे दिन''का राग अलापना बंद कर दिया है क्योंकि वह अच्छे दिन लाने के लिए कुछ भी करने में असफल रहे हैं।


गौरतलब है कि 1979 में जब असम में विदेशी घुसपैठियों के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ तब "आल असम स्टूडेन्ट्स यूनियन' (आसू) के नेता यही कहते थे कि वे इस आंदोलन को, चाहे जो हो, अहिंसक ही रखेंगे।लेकिन तब नेल्ली जैसा नरसंहार भी हुआ।


बाद में आसू में विभाजन हो गया, क्योंकि उसमें कई लोग ऐसे थे जो मानते थे कि अहिंसा पर चलकर यह उद्देश्य प्राप्त नहीं होगा, इसलिए हथियार उठाने होंगे। नतीजतन उल्फा का जन्म हुआ।


उल्फा को 1985 में असम गण परिषद् (अगप) सरकार के गठन के समय काफी जनसमर्थन मिला था। अगप सरकार दरअसल इन्हीं छात्र नेताओं से बनी थी।


बहरहाल अस्सी के दशक में घुसपैठियों के खिलाफ हुए आंदोलन के बाद आंदोलनकारियों के साथ हुए समझौते में नागरिकता के लिए आधार वर्ष 1971 माना गया और इसके बाद भी संघ परिवार की पहल पर 2003 में पास नागरिकता संशोधन कानून के लागू हो जाने के बावजूद 1971 तक आये बंगाली शरणार्थियों को नागरिकता दिये जाने का वायदा किया जा रहा था जबकि बंगाली शरणार्थी 1971 के बाद आये शरणार्थियों को भी नागरिकता देने की मांग लेकर देशभर में आंदोलन कर रहे है ंऔर उनके मंचों पर संघ परिवार के शीर्ष नेता जब तब शरणार्थी नेताओं के साथ नजर आते रहे हैं।


दरअसल श्रीमती इंदिरा गांधी तब प्रधानमंत्री थीं। उन्होंने प्रणव मुखर्जी के जरिए यह पेशकश की थी कि 1966 को भारत सरकार आधार वर्ष के रूप में मानकर उसके बाद के वर्षों से विदेशी नागरिकों का आकलन करेंगे।


तब "आसू' ने कहा कि "नहीं, 1951 को आधार वर्ष माना जाए'।


बहरहाल असम समझौते के तहत 1971 को आधार वर्ष माना गया है। इसमें एक अजीब बात यह हुई कि शेष भारत के लिए यह वर्ष जुलाई, 1948 और असम के लिए 1971 तय हुआ।


अब देखिए, एक ही देश में दो तरह के आप्रवास कानून बन गए-एक कानून है शेष देश के लिए और एक अलग ही आप्रवास कानून है सिर्फ असम के लिए, जिसे "आई.एम.डी.टी. एक्ट' कहते हैं।


इस मसले का हल निकालने के लिए कोई पहल आज तक नहीं हुई और अब संघ परिवार फिर वही 1951 को आधार वर्ष मानकर मुसलमानों और दलित हिंदू शरणार्थियों को देश भर से निकालने की तैयारी कर रहा है और असम के चुनाव अभियान में धर्मोन्मादी ध्रूवीकरण के तहत गैर हिंदू मुसलमानों और संघ परिवार के नजरिये से अंबेडकर और समरसता के अखंड जाप के बावजूद अब भी गैरहिंदू दलितों को देश निकाला देने के लिए सीमा सील करने से लेकर कानून तक बदलकर पूरा हिसाब बराबर करने की युद्ध घोषमा कर दी गयी है।


पश्चिम पाकिस्तान से लेकर अफगानिस्ताने से हाल फिलहाल बारत आये शरणार्थियों को नागरिकता देने का कानून में प्रावधान जुरुर किया गया लेकिन बंगाली हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए संघ परिवार ने कोई पहल नहीं की है।


अब असम में फिर 1951 को आधार वर्ष बताते हुए पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों के खिलाफ जो घृणा अभियान छेड़ा गया है,उससे साफ है कि मुसलमानों के साथ साथ देश भर में दलित बंगाली शरणार्थियों तक को खदेड़ना संघ परिवार का असली एजंडा है।


मसलनःमैं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चुनौती देता हूं कि वह कहें कि वह बांग्लादेशी घुसपैठको रोकेंगी…वह यह नहीं कहेंगी।' शाह ने यहां एक चुनाव रैली में कहा, 'कांग्रेस बांग्लादेशीघुसपैठियों को अपने वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रही है।' उन्होंने कहा कि यदि एक बार यहां भाजपा की सरकार आ जाए तो घुसपैठकी समस्या खत्म हो जाएगी। शाह ने कहा, 'हम बांग्लादेशसीमा को सील कर देंगे और कोई भी घुसपैठियायहां आने में सफल नहीं होगा ।''


गौरतलब है कि  असम में  चुनावी रैली को संबोधित करते हुए राजनाथ ने कहा, ' बांग्लादेशके बनने के बाद से ही घुसपैठिये लगातार भारत में प्रवेश कर रहे हैं। बांग्लादेशीघुसपैठिये भारत-बांग्लादेशसीमा के जरिये भारत में प्रवेश कर रहे हैं । इसका क्या कारण है ? आपने (कांग्रेस) उन्हें क्यों नहीं रोका ? आपने भारत.बांग्लादेशसीमा को पूरी तरह से सील क्यों नहीं किया? ' इस दिशा में अपनी सरकार की ओर से उठाये गए कदमों को रेखांकित करते हुए सिंह ने कहा कि कुछ महीने पहले वह भारत-बांग्लादेशसीमा पर गए थे और उन्होंने बांग्लादेशसरकार के साथ भी इस बारे में चर्चा की ।



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