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ब्रिटेन आउट, कैमरुन आउट! संप्रभू ब्रिटिश नागरिकों ने यूरोपीय समुदाय के धुर्रे बिखेर दिये और कबंध अंध देश के हमारे हुक्मरान नरमेधी सुधार तेज कर रहे हैं। सत्ता निरंकुश नहीं होती अगर देश के नागरिक मुर्दा न हो और लोकतंत्र जिंदा हो। सत्ता के झंडे लहराते हुए भारत माता की जय बोल देने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता बल्कि राष्ट्रहित में सत्ता से टकराकर सरफरोशी की तमन्ना ही असल देशभक्ति है और

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ब्रिटेन आउट, कैमरुन आउट!

संप्रभू ब्रिटिश नागरिकों ने यूरोपीय समुदाय के धुर्रे बिखेर दिये और कबंध अंध  देश के हमारे हुक्मरान नरमेधी सुधार तेज कर रहे हैं।

सत्ता निरंकुश नहीं होती अगर देश के नागरिक मुर्दा न हो और लोकतंत्र जिंदा हो।

सत्ता के झंडे लहराते हुए भारत माता की जय बोल देने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता बल्कि राष्ट्रहित में सत्ता से टकराकर सरफरोशी की तमन्ना ही असल देशभक्ति है और इसके लिए निरंकुश सत्ता से टकराने का जिगर चाहिए जो हमारे पास फिलहाल हैं ही नहीं।पुरखों के जरुर रहे होगे वरना वे हजारों साल से गुलामी के बदले शहादतों का सिलसिला नहीं बनाते।

ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस्तीफे का एलान किया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अक्टूबर में अपने पद से इस्तीफा देंगे। अक्टूबर में ब्रिटेन के नए पीएम का फैसला होगा।

मुक्तबाजार को यूरोप में शरणार्थी सैलाब ने तहस नहस कर दिया है और हमारे हुक्मरान रोज रोज शरणार्थी सेैलाब पैदा कर रहे हैं।

ब्रेक्सिट का सबसे बड़ा कारण यह शरणार्थी समस्या है जिससे भारत विभाजन के बाद हम लगातार जूझने के बादले भुनाते रहे हैं और विकास के नाम विस्थापन का जश्न मनाते हुए बाहर से आने वाले शरणार्थियों के मुकाबले देश के भीतर कहीं ज्यादा शरणार्थी बना चुके हैं।ब्रिटेन में अल्पसंख्यक होते जा रहे ब्रिटिश मूलनिवासियों की यह प्रतिक्रिया है तो समझ लीजिये,भारत के मूलनिवासी जागे तो भारत में क्याहोने वाला है।

सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले अपने ही बच्चों को राष्ट्रविरोधी बताकर उनपर हमला करने वाले हम,जात पांत मजहब के बहाने असमता और अन्याय के झंडेवरदार और मनुस्मृति राज की पैदलसेनाएं हम क्या सपने में भी अपने इस कबंध अंध देश में ऐसा लोकतंत्र बहाल कर सकते हैं?


क्या हम कभी अनंत बेदखली और अनंत विस्थापन के खिलाफ मोर्चाबंद हो सकते हैं?



पलाश विश्वास

ब्रेक्सिट हो गया आखिरकार।दुनियाभर में रंग बिरंगी अर्थव्यवस्थाओं में सुनामी है आज।ब्रिटेन आउट।कैमरुन आउट।ब्रिटिश जनता ने यूरोपीय समुदाय के धुरेरे बिखेरने के साथ सात कैमरुन का तख्ता पलट दिया।


सेबों की गाड़ी उलट गयीं।सेबों की लूट मची है।किसके हिस्से कितने सेब आये,हिसाब होता रहेगा।


बहरहाल शरणार्थी समस्या और विकास के नाम विस्थापन और आव्रजन का चक्र महामारी की तरह दुनिया के नक्शे में जहां तहां जैसे संक्रमित हो रही है,उसे समझे बिना ब्रेक्सिट को समझना असंभव है क्योंकि ब्रेक्सिट का सबसे बड़ा कारण यह शरणार्थी समस्या है जिससे भारत विभाजन के बाद हम लगातार जूझने के बादले भुनाते रहे हैं और विकास के नाम विस्थापन का जश्न मनाते हुए बाहर से आने वाले शरणार्थियों के मुकाबले देश के भीतर कहीं ज्यादा शरणार्थी बना चुके हैं।ब्रिटेन में अल्पसंख्यक होते जा रहे ब्रिटिश मूलनिवासियों की यह प्रतिक्रिया है तो समझ लीजिये,भारत के मूलनिवासी जागे तो भारत में क्या होने वाला है।


जिन्हें दसों दिशाओं में समुदरों और पानियों में,फिजाओं में लाखोलाख आईलान की लाशें नजर नहीं आती,जिन्हें खून का रंग नजर नहीं आता,वे समझ नहीं आखिर क्यों यूरोप में मुक्तबाजार से इतना भयानक मोहभंग हो रहा है,क्यों फ्रांस में भयंकर जनविद्रोह है और क्यों ब्रिटेन यूरोपीयसमुदायसे अमेरिका का सबसे बड़ा पिछलग्गू होने के कारण अलग हो रहा है।


हम फेंकू पुराण के श्रद्धालु  पाठक हैं और सारी दुनिया से अलगाव की तेजी से बन रही परिस्थितियों पर हमारी नजर नहीं है वरना एलएसजी के लिए हम पगलाये न रहते।


आसमानी फरिशतों के दम पर राष्ट्र का भविष्य बनता नहीं है, बल्कि उसका भूत वर्तमान भी तहस नहस हो जाता है।ऐसा बहुत तेजी से घटित हो रहा है और हम देख नहीं पा  रहे हैं।


मुक्तबाजार को यूरोप में शरणार्थी सैलाब ने तहस नहस कर दिया है और हमारे हुक्मरान रोज रोज शरणार्थी सेैलाब पैदा कर रहे हैं।


लोकतंत्र का ढांचा वही है लेकिन संसद में अध्यक्ष की कुर्सी के नीचे वह ऊन नहीं है जो ब्रिटेन की विरासत के साथ संसद को जोड़ती है और हमारी संसदीय प्रणाली हवा हवाई है।जबकि यह संसदीय प्रणाली भी उन्हींकी है।जिसे हम अक्सर अपनी दुर्गति की खास वजह मानते हैं।हमारे ज्यादातर कानून उन्हींके बनाये हुए हैं।हमारे संविधान में उनके अलिखित संविधान की परंपराओं की विरासत है।फर्क सिर्फ इतना है कि वे स्वतंत्र संप्रभू नागरिक हैं और हम आज भी ब्रिटिश राज के जरखरीद गुलाम राजा रजवाड़ों जमींदारों के उत्तर आधुनिक वंशजों के कबंध अंध प्रजाजन हैं।


ब्रिटिश नागरिकों ने आधार योजना लागू करने के खिलफ पहले ही सरकार गिरा दी और नाटो की यह योजना नाटो के किसी सदस्य देश में लागू नहीं हुई।एकमात्र मनुस्मृति राजकाज के फासीवाद तंत्र मंत्र तिलिस्म में नागरिकों की निगरानी और उनके अबाध नियंत्र के लिए नरसंहारी मुक्तबाजार का यह सबसे उपयोगी ऐप लगा ली है।


अपनी आंखों की पुतलियां और उंगलियों की चाप कारपोरेट हवाले कर देने वालों को मुक्तबाजार के नरसंहारी सलाव जुड़ुम परिदृश्य में सब मजा सब मस्ती न घर न परिवार न समाज न देश मनोदशा के कार्निवाल बाजार में क्रयशक्ति की अंधि मारकाट और सत्तावर्ग की फेकी हड्डियां बटोरने से कभी फुरसत हो तो मनुष्यता,सभ्यता,प्रकृति और पर्यावरण के बारे में सीमेंट के इस घुप्प अंधियारा जंगल में सोचें और विवेक काम करें,अब यह निहायत असंभव है।इसीलिए कही जनता की कोई आवाज नहीं है।हम न सिर्फ अंध हैं,हम मूक वधिर मामूली कल पुर्जे हैं,जिनमें कोई संवेदना बची नही है तो चेतना बचेगी कैसे।


हम सार्वजनिक सेवाओं और संस्थानों का जैसे निजीकरण के पक्ष में हो गये हैं तो हमें लोकतंत्र और राजकाजा,राजकरण के कारपोरेट बन जाने से कोई तकलीफ उसी तरह नहीं होगी जैसे हमें भाषाओं,माध्यमों,विधायों,सौंदर्यबोध,संस्कृति और लोकसंस्कृति, जाति और धर्म,मीडिया और मनोरंजन,शिक्षा दीक्षा चिकित्सा और परिवहन के कारपोरेट हो जाने से चारों तरफ हरियाली नजर आती है और खेतों,खलिहानों,समूचे देहात,कल कारखानों,लघु उद्योगों ,खुदरा बाजार के कब्रिस्थान में बदलने से हमारी शापिंग पर असर कोई होना नही है बशर्ते कि क्रयशक्ति सही सलामत रहे।यह इस देश के पढ़े लिखे तबकों का खुदगर्ज बनने की सबसे बड़ी वजह है।उनके हिसाब से पैसा ही सबकुछ है और बाकी कुछ भी नहीं है।अपढ़ लोगों में भी यह ब्याधि अब लाइलाज है।भाड़ में जाये देश।


अब फिर संप्रभू स्वतंत्र ब्रिटिश नागरिकों ने सत्ता का तख्ता पलट दिया है क्योंकि उन्हें यूरोपीय समुदाय में बने रहना राष्ट्रहित के खिलाफ लगता है।


ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरनने इस्तीफे का एलान किया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अक्टूबर में अपने पद से इस्तीफा देंगे। अक्टूबर में ब्रिटेन के नए पीएम का फैसला होगा।


ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन का हिस्सा नहीं रहेगा, इस बात की पुष्टि हो गई है। ब्रिटेन की जनता ने ब्रेक्सिट के पक्ष में मतदान किया है। वहीं ब्रेक्सिट इफेक्ट से भारतीय शेयर बाजार डगमगा गया है। भारतीय सेंसेक्स सुबह 940 अंकों की गिरावट के साथ खुला। बाद में यह आंकड़ा 1000 तक पहुंच गया। ब्रिटेन की करंसी पाउंड 31 साल के अपने न्यूनमत स्तर पर है। यूरोप समेत पूरी दुनिया के बाजार में आपाधापी का माहौल है।


ब्रेक्सिट की मार से करेंसी भी नहीं बची। पाउंड 31 साल के निचले स्तर पर जा गिरा और रुपया भी 1 फीसदी कमजोर हुआ। कच्चा तेल भी 6 फीसदी लुढ़क गया। लेकिन ब्रेक्सिट का फायदा उठाया सोने ने और ये 6 फीसदी से ज्यादा चढ़ा। इस भारी उथल पुथल के बीच सरकार का कहना है कि भारत पर ब्रेक्सिट का ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।


घरेलू वायदा बाजार में सोना करीब 5.5 फीसदी यानि 1600 रुपये की मजबूती के साथ 31500 रुपये के पार पहुंच गया है। चांदी में भी तेजी देखने को मिली है। एमसीएक्स पर चांदी करीब 4 फीसदी उछलकर 42800 रुपये के करीब पहुंच गई है। चांदी में भी 1600 रुपये की मजबूती देखने को मिली है।


हालांकि क्रूड में भारी गिरावट देखने को मिली है। ब्रेंट क्रूड का भाव 5 फीसदी से ज्यादा फिसलकर 48.3 डॉलर पर आ गया है, जबकि नायमैक्स पर डब्ल्यूटीआई क्रूड 5 फीसदी गिरकर 47.6 डॉलर पर आ गया है। फिलहाल एमसीएक्स पर कच्चा तेल 3 फीसदी फिसलकर 3250 रुपये पर आ गया है। नैचुरल गैस 0.5 फीसदी की कमजोरी के साथ 181.2 रुपये पर नजर आ रहा है।



दूसरी ओर,ब्रिटेन द्वारा ऐतिहासिक जनमत संग्रह में यूरोपीय संघ (ईयू) से बाहर निकलने के पक्ष में मतदान करने के बाद भारत ने आज कहा कि उसके लिए ब्रिटेन और यूरोपीय संघ दोनों से संबंध महत्त्‍वपूर्ण हैं और वह आने वाले वर्षों में दोनों से रिश्तों को और मजबूत करने का प्रयास करेगा। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, 'ईयू सदस्यता पर हमने ब्रिटेन का जनमत संग्रह देखा है। ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के दोनों के साथ हमारे रिश्ते काफी अहम हैं। हम इन रिश्तों को और मजबूत करने का प्रयास करेंगे। स्वरूप शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) में भाग लेने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रतिनिधिमंडल में शामिल हैं।


ब्रिटिश जनता ने 28 देशों वाले यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के बाहर होने के पक्ष में वोट डाला है। 43 साल बाद हुए इस ऐतिहासिक जनमत संग्रह में ब्रिटेन की जनता ने मामूली अंतर से ब्रिटेन को यूरोपियन यूनियन से अलग करने के पक्ष में वोट किया। 3 करोड़ लोगों की इस वोटिंग में ईयू छोड़ने के पक्ष में 52 फीसदी लोग थे जबकी इसके खिलाफ 48 फीसदी  लोग।


सत्ता के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले अपने ही बच्चों को राष्ट्रविरोधी बताकर उनपर हमला करने वाले हम,जात पांत मजहब के बहाने असमता और अन्याय के झंडेवरदार और मनुस्मृति राज की पैदलसेनाएं हम क्या सपने में भी अपने इस कबंध अंध देश में ऐसा लोकतंत्र बहाल कर सकते हैं?


क्या हम कभी अनंत बेदखली और अनंत विस्थापन के खिलाफ मोर्चाबंद हो सकते हैं?



विश्व इतिहास में बर्लिन की दीवार गिरने के बाद इस घटना को सबसे अहम माना जा रहा है। वो ब्रिटेन जिसने दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय देशों को करीब लाने के लिए यूरोपियन यूनियन के आइडिया को जन्म दिया, कई सालों तक उसका पैरोकार रहा और आज उसी देश ने खुद ईयू से अलग होने का फैसला किया।



अमेरिकी नागरिक रंगभेद के खिलाफ अश्वेत रष्ट्रपति चुन सकते हैं लेकिन हम सभी समुदायों को समान अवसर और समान प्रतिनिधित्व देने के लिए किसी भी स्तर पर तैयार नहीं हैं।


न संविधान कहीं लागू है और न कही कानून का राज है।संसद में क्या बनता बिगड़ता है,किसी को मालूम नहीं है क्योंकि कोई भी ऐरा गैरा मंत्री संत्री प्रवक्ता इत्यादी संवैधानिक असंवैधानिक नीति निर्माण संसदीय अनुमति के बिना ,संसद की जानकारी के बिना कर देता है और मुनाफावसूली के कालेधन के मनुस्मृति शासन में वह आन आनन लागू भी हो जाता है।कहीं कोई प्रतिरोध असंभव।


अब बताइये,1991 से लेकर अब तक जितने सुधार लागू हुए हैं कायदे कानून ताक पर रखकर और संविधान के दायरे से बाहर उनके बारे में हमारे अति आदरणीय जनप्रतिनिधियों की क्या राय है और उन जनप्रतिनिधियों ने अपने मतदाताओं से कब इन सुधारों के बारे में चर्चा की है या उनका ब्यौरा सार्वजनिक किया है।


अब बताइये,ब्रेक्सिट के बहाने जिन अत्यावश्यक सुधारों को लागू करके अर्थव्यवस्था को पटरी पर रखने की उदात्त घोषणाएं की जा रही हैं,उनके लिए क्या संसदीय अनुमति ली गयी है और जनता के मतामत के लिए कोई सर्वे किसी भी स्तर पर किया गया है या नीतिगत फैसलों के लिए किसी भी स्तर पर कोई जनसुनवाई हुई है।जनमत संग्रह की बात रहने दें।हमारे यहा एफआईआर तक दर्ज कराने में पीड़ितो को लेने के देने पड़ जाते हैं।हत्या बलात्कार संस्कृति है इनदिनों।बाहुबलि तो जनप्रतिनिधि हैं।


संप्रभू ब्रिटिश नागरिकों ने यूरोपीय समुदाय के धुर्रे बिखेर दिये और कबंध अंध  देश के हमारे हुक्मरान नरमेधी सुधार तेज कर रहे हैं।


सत्ता निरंकुश नहीं होती अगर देश के नागरिक मुर्दा न हो और लोकतंत्र जिंदा हो।


ब्रिटेन के नागरिकों ने संवैधानिक राजतंत्र के बावजूद बायोमैट्रिक नागरिकता की योजना पूरी होने से पहले सरकार बदल दी और अहब मुक्तबाजार के सबसे शक्तिशाली तंत्र यूरोपीय यूनियन के धुर्रे बिखेर दिये।गौर करें कि ब्रिटेन में हुए जनमतसंग्रह के नतीजतन सिर्फ ब्रिटेन यूरोपीयसमुदाय से बाहर नहीं निकल रहा है,प्रबल आर्थिक संकट में फंसे जनांदोलनों की सुनामी में यूरो कप फुटबाल के जश्न में बंद आइफल टावर और रोमांस,कविता और नवजागरण व क्रांति का देश फ्रांस भी अमेरिकी मुक्तबाजार के चंगुल से निकलने के लिए छटफटा रहा है।


फ्रांस के अलावा स्वीडन, डेनमार्क, यूनान,हालैंड और हंगरी के साथ तमाम यूरोपीय देश इस मुक्त बाजार की गुलामी से रिहा होने की तैयारी में हैं।


हमारे हुक्मरान ने इसके बदले ब्रिटेन से उठने वाली इस सुनामी में अपने अमेरिका आकाओं के हितों को मजबूत करने के लिए शत प्रतिशत निजीकरण और शत प्रतिशत विनिवेश का विकल्प चुना है और सीना ठोकर दावा भी कर रहे हैं कि ब्रेक्सिट से भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है।


उत्पादन प्रणाली ध्वस्त है।रोजगार आजीविका खत्म है।बुनियादी सेवाएं और बुनियादी जरुरतें बेलगाम बाजार के हवाले हैं तो ये रथी महारथी न जाने किस अर्थव्यवस्था की बात कर रहे हैं जिनका वित्तीय प्रबंधन शेयर बाजार में सांढ़ों और भालुओं के खेल का नियंत्र करके बाजार को लूटतंत्र में तब्दील करने और कर्ज और करों का सारा बोझ आम जनता पर डालने के अलावा कुछ नहीं है।


हम अमेरिका की तरह सीधे राष्ट्रपति का चुनाव नहीं करते और न हमारे यहां राष्ट्रपति सरकार के प्रधान है और न राजकाज से उनका कोई मतलब है।बकिंघम राजमहल की तर रायसीना हिल्स के प्रासाद में वे संवैधानिक राष्ट्राध्यक्ष मात्र हैं और अपने तमाम विशेषाधिकारों के बावजूद भरत की सरकार या राज्य सरकारों पर उनका कोई नियंत्र नहीं है।वे सिर्फ अभिभाषण के अधिकारी हैं।या अध्यादेशों और विधेयकों पर अपना टीप सही दाग देते हैं।


न ही हम राष्ट्र के समक्ष चुनौतियों के तौर तरीके या नीतिगत फैसलों के लिए जनमत संग्रह करा सकते हैं।


सरकार संसद के प्रति जिम्मेदार है,राजनीति शास्त्र में यही पढ़ाया जाता है और संविधान भी यही बताता है और संसद में अपने प्रतिनिधि जनता चुनकर भेजती है।लेकिन भारतीय जनता के लिए उनका ही तैयार जनादेश मृत्युवाण रामवाण है क्योंकि इस जनादेश के बाद सरकारें न संसद की परवाह करती हैं और न विधानमंडलों की।घोषणाओं पर टैक्स लगता नही है।सुर्खियां अलग मिलती हैं।


सबकुछ खुल्ला खेल फर्रूखाबादी मुक्तबाजार है,जिसके पास घोड़ों को खरीदने लायक अकूत संसाधन हैं वे गिनती के लिए चाहे जैसे भी हों,कैसे भी हों रंगबिरंगे घोड़े खरीद लें और उन घोड़ों के खुरों से आवाम को रौदता रहे।यही राजकाज है और राजधर्म भी यही ता राजकरण भी यही है।


फिरभी सच यह भी है कि सत्ता निरंकुश नहीं होती अगर देश के नागरिक मुर्दा न हो और लोकतंत्र जिंदा हो।


सत्ता के झंडे लहराते हुए भारतमाता की जय बोल देने से कोई देशभक्त नहीं हो जाता बल्कि राष्ट्रहित में सत्ता से टकराकर सरफरोशी की तमन्ना ही असल देशभक्ति है और इसके लिए निरंकुश सत्ता से टकराने का जिगर चाहिए जो हमारे पास फिलहाल हैं ही नहीं।पुरखे जरुर रहे होंगे वरना वे हजारों साल से गुलामी के बदले शहादतों का सिलसिला नहीं बनाते।पुरखौती की भी ऐसी की तैसी।दर्जनों गांव जलाने वाले फिर पुरखौती की नौटंकी करते हैं।


मजबूत अर्थव्यवस्था का नजारा यह है कि ब्रिटेन के यूरोपीय यूनियन से बाहर होने के जनमतसंग्रह के नतीजे के कारण भारतीय शेयर बाजार में कुछ ही मिनटों के अंदर निवेशकों के करीब 4 लाख करोड़ रुपए डूब गए। ब्रिटेन में जनमत संग्रह के नतीजे आते ही टोटल इन्वेस्टर वेल्थ 98 लाख करोड़ के नीचे पहुंच गई। यह गुरुवार को 101.04 लाख करोड़ पर बंद हुए मार्केट से करीब 4 लाख करोड़ रुपए कम था। भारी गिरावट के साथ खुला सेंसेक्स दोपहर तक मामूली रिकवरी ही कर सका। आरबीआई और सरकार के आश्वासन के बावजूद मार्केट ज्यादा तेजी से नहीं बढ़ पाया।


गौरतलब है कि जनमत संग्रह के नतीजे के साथ साथ ब्रिटेन में सत्ता का तख्ता पलट हो गया है और नई सरकार अक्तूबर से पहले नहीं बनेगी।नई सरकार ही अलगाव की प्रक्रिया पूरी करेगी।लेकिन संकटउससे कही बड़ा है।सोवियत संघ के पतन के बाद यूरोपीय संघ उसके मुकाबले उसीकी तर्ज पर संगठित करके मुक्तबाजार का साम्राज्य विस्तार और समूचे यूरोप को उपनिवेश में तब्दील करने का जो खेल चल रहा था,उसका दरअसल पटाक्षेप होना है क्योंकि यूरोप में सबसे बड़े अमेरिकी उपनिवेश ब्रिटेन ने आजादी का बाबुलंद ऐलान किया है और बाकी देश वही देर सवेर करने वाले हैं।


राजन के जाने के बाद भारत का वित्तीय प्रबंधन नागपुर के संघ मुख्यालय में स्थानांतरित होना है और धर्म कर्म के मनुस्मृति राजधर्म का फर्जीवाड़ा जिन्हें समझ में नहीं आ रहा वे मुक्तबाजार के साथ फासीवादी अंध राष्ट्रवादा का,या जल जंगल जमीन से बेदखली के सलवा जुड़ुम का अर्थशास्त्र नहीं समझ सकते।


समझ लें कि ब्रेक्सिट से पहले अगर शत प्रतिशत अबाध पूंजी है तो नागपुर से संचालित वित्तीय प्रबंधन का जलवा कितना नरसंहारी होगा।शेयर बाजार में जिनके पैसे लगे होगें वे शेयर बाजार के अपने दांव पर सोचें,लेकिन संघी राजकाज अब जब पेंशन बीमा वेतन जमा पूंजी सबकुछ वित्तीय सुधारों के बहाने शेयर बाजार से नत्थी करने जा रहा है तो समझ लीजिये आगे सिर्फ अमावस्या का अंधकार है।भोर के मोहताज होंगे हम और वह खरीद भी नहीं सकते।


क्योंकि बाकी जनता कमायेगी जरुर लेकिन जेबें किन्हीं खास तबके की मोटी होती रहेगी और कर्ज,ब्याज और टैक्स का बोझ इतना प्रबल होने वाला है कि नौकरी और आजीविका,खेत खलिहान ,कल कारखानों की छोड़िये,जो अभूतपूर्व हिंसा और घृणा का सर्वव्यापी माहौल बनने वाला है,उसमें हर वैश्विक इशारे के साथ डांवाडोल होने वाली अर्थव्यवस्था में किसी की जान माल की कोई गारंटी अब होगी नहीं।


गौरतलब है कि ब्रेक्सिट के झटकों से भारत पर पडऩे वाले प्रभाव की चिंता को खारिज करते हुए सरकार ने आज कहा कि अर्थव्यवस्था के पास स्थिति से निपटने के लिए 'काफी तरीके'  हैं। हालांकि, इस घटनाक्रम के बीच शेयर बाजारों तथा रुपये में भारी गिरावट आई है। आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने भारत की घरेलू बुनियाद का हवाला देते हुए कहा कि यही वजह है कि हमारे ऊपर ब्रेक्सिट का दीर्घावधि का असर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि सरकार और रिजर्व बैंक पिछले कई सप्ताह से संभावित प्रभावों को लेकर काम कर रहे हैं।


उन्होंने कहा कि विदेशी मुद्रा भंडार की संतोषजनक स्थिति, मुद्रास्फीति के नीचे आने तथा बुनियादी सुधारों पर आगे बढऩे की वजह से भारत इन सब झटकों को झेल जाएगा। दास ने कहा कि सरकार सभी झटकों के लिए तैयार है। एक ऐतिहासिक घटनाक्रम में ब्रिटेन ने आज 43 साल बाद यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के पक्ष में मत दिया। इस घटनाक्रम के बीच बंबई शेयर बाजार का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 1,050 से अधिक अंक नीचे आ गया। वहीं सभी सूचीबद्ध कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में करीब 4,00,000 करोड़ रुपये की गिरावट आई। रुपया भी 96 पैसे टूटकर 68 प्रति डॉलर से नीचे चला गया।


दास ने कहा कि जहां तक शेयर बाजारों का सवाल है, तो यह किसी ऐसे घटनाक्रम जो उनकी उम्मीद के अनुरूप नहीं है, की वजह पर तात्कालिक प्रतिक्रिया है। यह प्रतिक्रिया अगले कुछ दिन में समाप्त हो जाएगी और मुझे उम्मीद है कि बाजार की स्थिति सुधरेगी। ब्रेक्सिट जनमत संग्रह की वजह से ही दास बीजिंग नहीं जा पाए हैं जिसके चलते भारत-चीन वित्तीय वार्ता को जुलाई तक स्थगित कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि रुपये में आई गिरावट अन्य एशियाई मुद्राओं की तर्ज पर है। उन्होंने कहा, 'आप जानते हैं कि पौंड स्टर्लिंग में गिरावट आ रही है इसलिए सभी मुद्राओं में गिरावट आ रही है।


इसके विपरीत तथ्य और आंकड़े ये हैं कि रुपये पर भी जबरदस्त असर पड़ा है। डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपये की कीमत में 89 पैसे की जोरदार गिरावट देखने को मिल रही है। फिलहाल एक डॉलर के बदले रूपये की कीमत 68.08 पैसे तक पहुंच गई है। वहीं जापान का स्टॉक एक्सचेंज भी 8 फीसदी लुढ़क गया।


माना जा रहा है कि ब्रेक्सिट हुआ तो ब्रिटिश पाउंड करीब 10 फीसदी तक टूटेगा जिससे भारतीय शेयर बाजार सीधे तौर पर प्रभावित होगा क्योंकि भारत की करीब 800 ब्लूचिप कंपनियां ब्रिटेन में कारोबार कर रही हैं।


पाउंड भी लड़खड़ाया

पाउंड 1.50 डॉलर पर चल रहा पाउंड शुरुआती नतीजों के बाद 1.41 डॉलर पर आ गया। जैसे-जैसे ब्रिजेक्ट के पक्ष में फैसला आता रहा। पाउंड भी गोता लगाता रहा और पाउंड 31 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया। डॉलर के मुकाबले शुक्रवार को पाउंड 1.3466 पर रहा।


दुनियाभर के बाजारों में ब्रेक्सिट का असर

दुनियाभर के बाजारों में ब्रेक्सिट को लेकर हलचल मची हुई है। अमेरिकी बाजारों में ब्रेक्सिट को लेकर मिला जुला असर देखने को मिला है। यूएस फ्यूचर्स में 2 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। हालांकि कल के कारोबार में अमेरिकी बाजार चढ़कर बंद होने में सफल रहे हैं। लेकिन यूरोपीय अमेरिकी बाजार के फ्यूचर्स में तेज गिरावट देखने को मिली है।


गुरुवार के कारोबारी सत्र में डाओ जोंस 230.24 अंक यानी 1.29 फीसदी बढ़कर 18011.07 पर, एसएंडपी-500 इंडेक्स 27.87 अंक यानी 1.34 फीसदी मजबूती के साथ 2113.32 पर और नैस्डेक 76.72 अंक यानी 1.59 फीसदी की बढ़त के साथ 4910.04 पर बंद हुआ।


दूसरी ओर,ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से बाहर निकलने से देश के 108 अरब डॉलर के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग को कुछ समय के लिए अनिश्चितता की स्थिति से जूझना पड़ सकता है। आईटी उद्योगों के संगठन नास्कॉम ने आज यह बात कही। नास्कॉम ने कहा कि दीर्घावधि में यह कुल मिलाकर चुनौतियों तथा अवसर दोनों की स्थिति होगी, क्योंकि ब्रिटेन उसके जरिये यूरोपीय संघ के बाजारों तक पहुंच के नुकसान की भरपाई करने का प्रयास करेगा। यूरोप भारतीय आईटी-बीपीएम उद्योग के लिए दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। आईटी उद्योग की करीब 100 अरब डॉलर की निर्यात आय में यूरोप की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत है। इस बाजार में ब्रिटेन महत्त्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। ब्रिटेन नास्कॉम सदस्यों की यूरोप में गतिविधियों के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है। कई सदस्य यूरोपीय संघ में आगे और निवेश के लिए ब्रिटेन को गेटवे के रूप में इस्तेमाल करते हैं।


नास्कॉम ने कहा कि ब्रिटिश पौंड में गिरावट से कई मौजूदा अनुबंध घाटे वाले हो जाएंगे और उन पर नए सिरे से बातचीत करने की जरूरत होगी। नास्कॉम ने कहा कि अनुबंध से बाहर निकलने या भविष्य में उसमें बने रहने के लिए होने वाली बातचीत को लेकर अनिश्चितता से बड़ी परियोजनाओं के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित होगी। टीसीएस ने इस मुद्दे पर टिप्पणी नहीं की जबकि इन्फोसिस ने कहा कि यह शांति का समय है। भारतीय आईटी कंपनियों को यूरोपीय संघ में परिचालन के लिए अलग मुख्यालय स्थापित करने की भी जरूरत होगी। इससे ब्रिटेन से कुछ निवेश बाहर निकलेगा। साथ ही इससे यूरोपीय संघ और ब्रिटेन में कुशल श्रम की आवाजाही प्रभावित हो सकती है।


इन दावों के विपरीत,बहरहाल ब्रिटेन की जनता ने अपना ऐतिहासिक फरमान दे दिया है। ईयू बनने के बाद से ब्रिटेन पहला ऐसा देश है जो एग्जिट कर रहा है। ब्रेक्जिट की वजह से ब्रिटेन की करेंसी पाउंड करीब 31 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। इसका असर दुनियाभर के शेयर मार्केट और करेंसी मार्केट पर भी दिख रहा है। भारतीय बाजार और रुपया दोनों में गिरावट है। हालांकि सोने की चमक बढ़ गई है।



करीब 52 फीसदी लोगों ने ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से बाहर निकलने के पक्ष में वोट दिया है। ब्रेक्सिट के फैसले से भारतीय बाजारों में कोहराम मचा और सेंसेक्स 1000 अंकों से ज्यादा लुढ़का, तो निफ्टी 7927 तक फिसल गया था।


ब्रेक्सिट के हक में रेफरेंडम आने के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने कहा कि फौरी तौर पर किसी भी नियम में कोई बदलाव नहीं होगा। ईयू से बातचीत की तैयारी करेंगे जिसके लिए स्कॉटिश, आइरिश सरकार से सहयोग की उम्मीद है। उन्होंने आगे कहा कि ब्रिटिश इकोनॉमी अभी मजबूत है, अभी ट्रैवल, गुड्स और सर्विसेज पर कोई असर नहीं पड़ेगा।


प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ब्रिटेन की जनता को भरोसा दिलाया है कि उनकी जिन्दगी में कोई बदलाव नहीं आएगा। न उनके आवागमन में, न सप्लाई पर और न किसी सेवा पर। वहीं ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन से अलग हो इस बात का पुरजोर समर्थन करने वाले यूके इंडिपेंडेंस पार्टीके नेता नाइजल फेराजका कहना है कि इस जीत से एक नाकाम प्रोजेक्ट (यूरोपियन यूनियन) का अंत होगा, यूरोपियन यूनियन के झंडे और ब्रसेल्स से छुटकारा मिलेगा।


उधर वित्त मंत्री अरुण जेटलीने कहा है कि ब्रेक्सिट के होने वाले असर से निपटने के लिए सरकार तैयार है। सरकार का रिफॉर्म का एजेंडा जारी रहेगा, ब्रेक्सिट के पूरे असर का अभी आकलन करना जल्दबाजी होगी।



हालांकि, दिन के निचले स्तरों से घरेलू बाजारों में अच्छी रिकवरी देखने को मिली है। सेंसेक्स में नीचे से करीब 500 अंकों की रिकवरी आई है, तो निफ्टी में 160 अंकों की रिकवरी दिखी है। बैंक निफ्टी नीचे से 480 अंकों तक रिकवर हुआ है। अंत में सेंसेक्स 26400 के आसपास, तो निफ्टी 8100 के करीब बंद हुए हैं। दरअसल यूरोप के बाजारों में शुरुआती कारोबार में 10 फीसदी तक गिरावट आई थी थे लेकिन बाद में सभी बाजारों में रिकवरी देखने को मिली। यूरोपीय बाजारों में रिकवरी के चलते ही घरेलू बाजारों में भी सुधार देखने को मिला है।


ब्रेक्सिट के जनमत संग्रह में सबसे दिलचस्प बात ये रही है कि बुजुर्ग लोगों ने इसका समर्थन किया है, वहीं युवाओं ने इसका विरोध किया है। ब्रिटेन के अखबार द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन क्षेत्रों में जनसंख्या का बड़ा हिस्सा 65 वर्ष की आयु के ऊपर है उन क्षेत्रों में ब्रेक्सिट के समर्थन में जबरदस्त वोटिंग हुई है। जबकि युवा जनसंख्या की बहुलता वाले क्षेत्रों में यूरोपीय यूनियन से जुड़े रहने के लिए ज्यादा वोट डाले हैं।


ये बंटवारा क्षेत्रों और उम्र तक ही सीमित नहीं है, शिक्षा भी इस वोटिंग पैटर्न में एक बड़ा घटक है। ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट वोटरों ने जहां ईयू में बने रहने के लिए वोट दिया तो वहीं कम शिक्षित वर्गों में ब्रेक्सिट का समर्थन ज्यादा देखने को मिला है।



ब्रेक्सिट के बवंडर का असर आने वाले वक्त में ब्रिटेन पर ही नहीं पूरी दुनिया पर दिखेगा। अब कयास लग रहे हैं कि ब्रेक्सिट के बाद दुनिया के दूसरे देशों में भी कहीं इस तरह की मांग ना उठने लगे। डर है कि कहीं दुनिया में सरहदों की नई दीवारें न बनने लगें। दुनियाभर के बाजारों में ब्रेक्सिट का असर देखने को मिला। भारतीय बाजारों में भी कोहराम मचा है।



वाणिज्य राज्यमंत्री निर्मला सीतारामनने कहा कि ब्रेक्सिट का भारत पर असर पड़ेगा, मगर सरकार ने इससे निपटने की तैयारी कर रखी है। निर्मला सीतारामन के मुताबिक करेंसी बाजार का सीधा असर एक्सपोर्ट पर पड़ेगा, लेकिन भारतीय इकोनॉमी की स्थिति मजबूत है। आगे करेंसी के उतार-चढ़ाव पर नजर बनाए रखना जरूरी है।


ब्रेक्सिट पर आरबीआई गवर्नर रघुराम राजनने कहा कि ब्रिटेन की जनता का यूरोपियन यूनियन से बाहर करने का फैसला चौंका देना वाला है। ब्रेक्सिट के फैसले के बाद इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि लोग अब ग्लोबलाइजेशन से थक चुके हैं। आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन का मानना है कि ब्रेक्सिट से सिस्टम में नकदी की तुरंत कोई दिक्कत नहीं होगी। आगे जाकर हालात धीरे-धीरे स्थिर हो जाएंगे। साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि आरबीआई ब्रेक्सिट के फैसले से निपटने के लिए तैयार है।


आइकैनके चेयरमैन अनिल सिंघवीका कहना है की ब्रेक्सिट का असर लम्बे समय तक दिखेगा। हालांकि यूरोप की ग्रोथ कमज़ोर होने का फायदा भारतीय और चीनी बाज़ार को मिलेगा। वहीं मार्केट एक्सपर्ट अजय बग्गा का मानना है कि ब्रेक्सिट से दुनिया भर के एक्सपोर्ट्स पर असर पड़ेगा। ट्रेड कम होगा, कमोडिटी की कीमतें गिरेंगी। आगे करेंसी वॉर होने की आशंका भी है। चीन की करेंसी युआन और कमजोर हो सकती है। अजय बग्गा की राय है कि निवेशक इस समय यूरोपीय इकोनॉमी में निर्भर करने वाले शेयरों पर नजर बनाए रखें।


वहीं मार्केट एक्सपर्ट उदयन मुखर्जीका मानना है कि ब्रेक्सिट का बाजार पर बड़ा असर देखने को मिलेगा और इससे उभरने में बाजार को काफी वक्त लग सकता है। साथ ही यूके और यूरोपीय यूनियन में भी मंदी देखने को मिलेगी। अगले 1 साल तक ग्लोबल बाजारों में ग्रोथ धीमी रहेगी।


जानकारों का का कहना है कि ब्रेक्सिट के पक्ष में ज्यादा वोट का मतलब ये नहीं कि ब्रिटेन तुरंत ईयू से बाहर होगा। फिलहाल के लिए ब्रिटेन यूरोपीय यूनियन का सदस्य बना रहेगा। यूरोपीय यूनियन से बाहर निकलने पर सरकार फैसला लेगी।


कानूनी भाषा में जनमत संग्रह जनता की राय जानने के लिए कराए जाते हैं। सरकार या संसद वोटिंग के नतीजे को मानने के लिए बाध्य नहीं होती। हालांकि सरकार जनता की राय नहीं मानने का जोखिम नहीं लेगी।


ईयू से निकलने की प्रक्रिया लिस्बन संधि के आर्टिकल 50 के तहत दी गई है। आर्टिकल 50 के तहत ईयू से निकलने के लिए 2 साल का वक्त चाहिए होता है। ब्रिटिश संसद में पीएम डेविड कैमरन सोमवार को इस मुद्दे पर बयान दे सकते हैं। फिर ब्रिटिश संसद के दोनों सदनों में आगे की रणनीति पर चर्चा होगी। बता दें कि डेविड कैमरन यूरोपीय यूनियन में बने रहने के पक्ष में हैं। जिससे उन पर इस्तीफा देने का दबाव रहेगा।



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