तसलिमा के मुताबिक बांग्लादेश में इस्लामी राष्ट्रवादी किसी हिंदू को वहां रहने नहीं देंगे!
निशाने पर विभाजन पीड़ित दस करोड़ बंगाली हिंदू,जो सीमा के आरपार बेनागरिक अल्पसंख्यक हैं
लिहाजा अब इजराइल की तरह होमलैंड आखिरी विकल्प है
बांग्लादेश की पद्मा नदी के इस पार फरीदपुर,खुलना,बरिशाल,जैसोर जैसे तमाम जिलों को होमलेैंड बनाया जा सकता है और बाद में हालात और बिगड़े तो इसमें असम और बंगाल के जिले शामिल करने की मांग भी की जा सकती है
अग्निगर्भ बांग्लादेश में और भारत के विभिन्न राज्यों,जिनमें असम और बंगाल भी शामिल हैं,कट्टर धर्मोन्माद के निशाने पर हैं हिंदू बंगाली विभाजन पीड़ित शरणार्थी और तमाम आम नागरिक।
इस भयंकर धर्मोन्मादी सुनामी के खिलाफ दो अगस्त को त्रिपुरा की राजधानी आगरतला में रैली और जुलूस है तो पांच अगस्त कोलकाता में महाजुलूस।बांग्लादेश हाई कमीशन को डेपुटेशन।राज्यपाल और बंगाल की मुख्यमंत्री को ज्ञापन।
फिर सत्रह अगस्त को राजधानी नई दिल्ली के जंतर मंतर पर आंदोलन है।दिल्ली में 17 अप्रैल 2013 को भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की जान माल की सुरक्षा की मांग लेकर धरना दिया गया था।इसके बाद असम और दूसरे राज्यों की राजधानियों में भी आंदोलन की तैयारी है।
फिरभी समस्या का समाधान न हुआ तो फिर होमलैंड का विकल्प खुला है और इसके लिए जरुरी हुआ तो बांग्लादेश में भारत के सैन्य हस्तक्षेप का भी हम समर्थन करेंगे।
दस करोड़ विभाजन पीड़ित हिंदू बगाली शऱणार्थी विभिन्न राज्यों में भारी संख्या में हैं और इस पर सर्वे के मुताबिक हम अच्छी तरह जानते हैं कि किन विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में बंगाली वोट बैंक निर्णायक है।हम अब बंधुआ वोट बैंक बने नहीं रहेंगे।जो हमारे साथ होगा,हम उन्हीका साथ देंगे।हम अब अपनी मर्जी के उम्मीदवारों को जितायेंगे और हरायेंगे भी।
पलाश विश्वास
बांग्लादेश समेत पूरा भारतीय महाद्वीप अल्पसंख्यकों का खुला आखेटगाह बन गया है।धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के निशाने पर हैं दुनियाभर के अल्पसंख्यक और दुनिया के नक्शे में इस वक्त कही कोई कोना शरणार्थी सैलाब से खाली नहीं है।
अभूतपूर्व हिंसा और घऋणा का माहौल है और फिजां कयामत है।
हम लगातार इसके खिलाफ आगाह करते रहे हैं।हम बांग्लादेश में फटते हुए ज्वालामुखी के मुखातिब आपको खड़ा करने की कोशिश भी लगातार करते रहे हैं।
बांग्लादेश में परिस्थितियां बांग्लादेश सरकार,वहां की धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील ताकतों के नियंत्रण से बाहर हैं तो भारतीय राजनीति और राजनय दोनों फेल हैं।
वैश्विक तमाम संगठन और देश,संयुक्त राष्ट्र संघ,मानवाधिकार संगठन वगैरह वगैरह अल्पसंख्यकों का अबाध नरसंहार और बांग्लादेश पर खान सेना और रजाकर वाहिनी के मुक्तिपूर्व कब्जे के लहूलुगहान समय़ की तरह अल्पसंख्यकों की जिंदगीनामा है।
हालात कितने खतरनाक हैं,इसका अंदाजा हिंदू राष्ट्र भारत और हिंदुत्व के झंडेवरदारों को भी नहीं है और उनके नानाविध करतब हालात और संगीन बनाते जा रहे हैं।
प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतवादी आदर्शवादी तमाम तत्व धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के खिलाफ सुविधाजनक मौकापरस्त मौन धारण किये हुए हैं।
जबकि तसलिमा नसरीन ने साफ साफ कह दिया है कि इस्लामी राष्ट्रवादी बांग्लादेश में किसी हिंदू को नहीं चाहते।तसलिमा ने सिर्फ हिंदुओं का उल्लेख किया है।जबकि हकीकत यह है कि बांग्लादेश में बौद्ध ,ईसाई, आदिवासी के लिए भी कोई जगह नहीं है।उनपर भी लगातार हमले हो रहे हैं।उनका भी सफाया हो रहा है।
कुल मिलाकर बांग्लादेश में इस वक्त दो करोड़ 39 लाख हिंदू अब भी है।तसलिमा नसरीन के मुताबिक बांग्लादेश की आबादी 16 करोड़ है और इनमें दस फीसद हिंदू हैं।
वास्तव में डेढ़ करोड़ नहीं,बांग्लादेश से भारत आने को आतुर भावी शरणार्थी हिंदुओं की संख्या दो करोड़ उनतालीस लाख है।
पश्चिम बंगाल की आबादी नौ करोड़ है।इसमें तीस फीसद मुसलमान हैं तो तीस फीसद दलित भी हैं।जाति प्रमाण पत्र और नागरिकता वंचित बहुत बड़ी आबादी की वजह से दलितों का सरकारी आंकड़ा 22 फीसद है।
बंगाल में भी शरणार्थियों की तादाद तीन करोड़ से कम नहीं है और बाकी भारत की तरह इन शरणार्थियों में नब्वे फीसद लोग फिर बहुजन हैं।
भारत भर में छितराये हुए मौजूदा हिंदू बंगाली शरणार्थी पांच करोड़ से कम नहीं है,जो नागरिक, मानवाधिकार, आजीविका, मातृभाषा, आरक्षण और नागरिकता से वंचित हैं।
सीमा के आर पार यह कुल विभाजनपीड़ित हिंदू शरणार्थियों की आबादी कमसकम दस करोड़ है जिनकी जान माल अब कहीं भी सुरक्षित नहीं है।
विचारधारा,सिद्धांत,राजनीति वगैरह वगैरह इस दस करोड़ मनुष्यता के लिए अब बेमतलब हैं।
इनके हक हकूक के लिए 2003 के नागरिकता संशोधन कानून के बाद बने निखिल भारत उद्वास्तु समन्वय समिति तबसे संघर्ष कर रही है और अब भारत के लगभग हर राज्य.में इस संगठन का विस्तार हो चुका है।
निखिल भारत बंगाली उद्वास्तु समन्वय समिति के नेतृत्व से मुझे कोई मतलब नहीं है।हम दस करोड़ ज्यादा विभाजन पीड़ित मनुष्यों के हक हकूक की बात कर रहे हैं और इसलिए जब तक यह लड़ाई जारी रहेगी,नेतृत्व चाहे किसी का हो,हम निखिल भारत के साथ है।
अग्निगर्भ बांग्लादेश में और भारत के विभिन्न राज्यों,जिनमें असम और बंगाल भी शामिल हैं,कट्टर धर्मोन्माद के निशाने पर हैं हिंदू बंगाली विभाजन पीड़ित शरणार्थी और तमाम आम नागरिक।
इस भयंकर धर्मोन्मादी सुनामी के खिलाफ दो अगस्त को त्रिपुरा की राजधानी आगरतला में रैली और जुलूस है तो पांच अगस्त कोलकाता में महाजुलूस।बांग्लादेश हाई कमीशन को डेपुटेशन।राज्यपाल और बंगाल की मुख्यमंत्री को ज्ञापन।
फिर सत्रह अगस्त को राजधानी नई दिल्ली के जंतर मंतर पर आंदोलन है।दिल्ली में 17 अप्रैल 2013 को भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की जान माल की सुरक्षा की मांग लेकर धरना दिया गया था।इसके बाद असम और दूसरे राज्यों की राजधानियों में भीआंदोलन की तैयारी है।
फिरभी समस्या का समाधान न हुआ तो फिर होमलैंड का विकल्प है और इसके लिए जरुरी हुआ तो बांग्लादेश में भारत के सैन्य हस्तक्षेप का भी हम समर्थन करेंगे।
दस करोड़ विभाजन पीड़ित हिंदू बगाली शरणार्थी विभिन्न राज्यों में भारी संख्या में हैं और इस पर सर्वे के मुताबिक हम अच्छी तरह जानते हैं कि किन विधानसभा और लोकसभा क्षेत्र में बंगाली वोट बैंक निर्णायक है।हम अब बंधुआ वोट बैंक बने नहीं रहेंगे।जो हमारे साथ होगा,हम उन्हीका साथ देंगे।हम अब अपनी मर्जी के उम्मीदवारों को जितायेंगे और हरायेंगे भी।