पेटीएम का कल्कि जलवा अब वित्तीय प्रबंधन और अर्थव्यवस्था दोनों हैं
दो हजार के नोट के रदद करने के साथ लेनदेन टैक्स का समाजवाद हिंदुत्व एजंडा का लक्ष्य
भारतीय बैंकिंग प्रणाली के दिवालिया हो जाने से देश के खेत खलिहाल,कल कारखाने और खुदरा बाजार मरघट में तब्दील हैं।
जो अरबपति नहीं है,करोड़पति नहीं है,उनपर भी उनके बराबर टैक्स,आयकर जो लगा है ,सो लगा है,अब ट्रांजक्शन टैक्स भी भरिये
#Daulatabadsedelhi
#Currencyspeechhindutvaagenda
#Bloodlessgenocide
#Digitalnondigitaldivide
पलाश विश्वास
पेटीएम का कल्कि जलवा अब वित्तीय प्रबंधन और अर्थव्यवस्था दोनों हैं।
दो हजार के नोट के रदद करने के साथ लेनदेन टैक्स का समाजवाद हिंदुत्व एजंडा का लक्ष्य है।
भारतीय बैंकिंग प्रणाली के दिवालिया हो जाने से देश के खेत खलिहाल,कल कारखाने और खुदरा बाजार मरघट में तब्दील हैं।
जो अरबपति नहीं है,करोड़पति नहीं है,उनपर भी उनके बराबर टैक्स
#Daulatabadsedelhi
#Currencyspeechhindutvaagenda
#Bloodlessgenocide
#Digitalnondigitalddivide
पांच सौ और एक हजार के पुराने नोट बंद किए जाने के प्रधानमंत्री के फैसले से पूरे देश में हलचल है। देश में आर्थिक क्रांति के जनक कहे जाने वाले अनिल बोकिल कीटीम ने प्रधानमंत्री के इस कदम को सही ठहराते हुए दावा किया है कि जल्द ही देश में अधिकांश कारोबार कार्ड व चेक से किए जाने लगेंगे।हम शुरु से लिख रहे थे कि कालाधन निकालना नहीं,इस नोटबंदी का असल मकसद कैसलैस सोसाइटी बनाना है,जिससे उत्पादक जनसंख्या को अर्थव्यवस्था और बाजार से बाहर फेंककर बहुराष्ट्रीय कंपिनयों का एकाधिकार कायम कर सकें देशभक्तों की यह सरकार।यह अभूतपूर्व नरसंहारी अश्वमेध अभियान है।दवितीय विश्वयुद्ध के दौरान कोलकाता में दो चार बम गिरने के अलावा पूरे बंगाल में कहीं बम नहीं गिरा लेकिन लाखों लोग भुखरी के शिकार हो गये और लोगों के काम धंधे चौपट हो गये्भूतपूर्व कृषि संकट की वजह से।अब हरित क्रांति के बाद खेती के लिए लगातार नकदी चाहिए लेकिन वह नकदी किसानों को नहीं मिल रही है तो समझ लीजिये अब बंगाल की भुकमरी पूरे देश की नियति है।दूसरी ओर,इस कयामती फिजां में भी अंध राष्ट्रवाद का जो कीर्तन जारी है और नये नोट पर प्रधानमंत्री के भाषण का जो हिंदुत्व एजंडा है,उसके तिलिस्म में कैद आम लोगों को मालूम भी नहीं है कि कैसे पूरा देश अब गैस चैंबर में तब्दील है और कैसे वे भोपाल गेस त्रासदी के शिंकजे में हैं।
बंगाल में नोटबंदी के आलम में सबसे लोकप्रिय अखबार के पहले पेज पर दोहजार रुपये के नये नोट जल्द ही वापस किये जाने की प्रधानमंत्री की नई योजना को लेकर अफरा तफरी मच गयी है।कालाधन निकालने के लिए अभी अभी जारी दो हजार रुपये के नोट भी रद्द होने वाले हैं जबकि 24 नवंबर के बाद पुरना पांच सौ और एक हजार के नोट बैंकों में जमाम नहीं होंगे।सौ के नोट पहले दो तीन दिन में ही खत्म हो गये।बैंकों से दस,बीस और पचास के नोटभी नहीं मिल रहे हैं।
फिलहाल एटीएम और बैंकों से बूंद बूंद जो कैश निकल रहा है,वह इकलौता दोहजार रुपल्ली का नोट है।उसे खुदरा बाजार में चलाना मुश्किल है तो बैंको से निकाले गये ये रुपये फिर बदलने के लिए लाइन लगानी होगी,इस आशंका से एटीएम पर लाइनें सिकुड़ गयी है।नोटबंदी (#Demonetization) के 16वें दिन आज रात 12 बजे के बाद से रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डे, सरकारी अस्पताल और पेट्रोल पंपों पर भी 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट नहीं चलेंगे। 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुराने नोट बंद करने के ऐलान के बाद इन चार जगहों पर भी पुराने नोट चल रहे थे। हालांकि 31 दिसंबर तक आप बैंक और डाकघर में पुराने नोटों को बदल सकते हैं। वहीं आज से बैंक, एटीएम और पेट्रोल पंपों के अलावा बिग बाजार से भी 2000 रुपये निकाले जा सकेंगे।
बैंकों में इसल नोटबंदी संकट से निपटने के लिए पुराने कर्मचारियों को अस्थाई तौर पर वापस बुलाया जा रहा है लेकिन संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों में लाखों नौकरियां यकबयक खत्म हैं और करोडो़ं लागों का न सिर्फ रोजगार छिना है वे हमेशा से अपने धंधे और बाजार से बाहर चले गये हैं।
इसे हमने पहले ही रक्तहीन नरसंहार भोपाल गैस त्रासदी लिखा है।
खेती के लिए किसानों के पास नोट नहीं है तो इस नोटबंदी से आगे भुखमरी का भारी संकट है।किसानों को राहत देने का राजनीतिक दाव जितना है,खेती के लिए संकट के मुकाबले की कोी तैयारी है नहीं।हरित क्रांति के बाद खेती बैंकिंग के सहार चल रही है।भारतीय बैंकिंग प्रणाली के दिवालिया हो जाने से देश के खेत खलिहाल,कल कारखाने और खुदरा बाजार मरघट में तब्दील हैं।
देश सिर्फ कैशलैस नहीं हो रहा है।बल्कि आयकर खत्म करके पूंजीपतियों का सारा कालाधन सफेद बनाने की तैयारी है।आम जनता का जो भी पैसा जमा है या जो उन्हें वेतन,भत्ता,जमा,पेंशन,ग्रेच्युटी बीमा के रुप में मिला है और जो बैंकों में जमा है,उसपर आयकर लगा है,स्रोत से ही कट गया है।
अब अपने इस सफेद धन की लेनदेन पर उनपर ट्रांजक्शन टैक्स लगना है।कायदे से उन्हें,खासकर सेवानिवृत्त और बैरोदगार लोगों पर टैक्स लगना नही है।उन सारे लोगों पर टैक्स लगेगा।जबिक अरबपतियों को भी उसी दर से लेनदेन टैक्स देना होगा।राजा भोज और गंगू तेली लेन देन के लिए ससमान दर से टैक्स अदा करेंगे। अरबपति करोड़पतिकालाधन वालों का पैसा सफेद तो हो ही गया है और अब उनकी नकदी पर गरीबों के बराबर टैक्स लगेगा।
कल्कि महाराज के राजकाज में समता और सामाजिक न्याय के बिना यह समाजवादी राजकाज है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 500-1000 रुपये के नोटबंदी के ऐलान से पूरे देश में हलचल मची है. कहा गया कि सरकार ने अर्थक्रांति नाम के संगठन को चलाने वाले अनिल बोकिल की सलाह पर यह कदम उठाया है।उन्हीं बोकिल साहब का कहना हैःकाला धन पर अंकुश लगाने के लिए टैक्स सिस्टम को भी ठीक करना पड़ेगा और अर्थक्रांति का पूरा प्रस्ताव सिर्फ नोटबंदी नहीं है, नोटबंदी के साथ-साथ टैक्स को निकाल देना है, यह भी हमारा प्रस्ताव है। टैक्स नहीं होना चाहिए। टैक्स की जगह बैंक ट्रांजेक्शन टैक्स होना चाहिए। इस पर काफी चर्चा पहले भी हुई है और आज भी हो रही है।
उन्हीं बोकिल साहब का कहना हैःइसीलिए तो हम समझते हैं नोटबंदी जो है वह अर्थक्रांति का प्रस्ताव शायद नहीं है, क्योंकि अर्थक्रांति का प्रस्ताव पूरा एक कैप्सूल जो नोटबंदी के साथ-साथ बैंक ट्रांजक्शन टैक्स की बात करती है। अर्थक्रांति नोट रिप्लेसमेंट की बात नहीं कर रही है, अर्थक्रांति नोटबंदी की बात कर रही है। अर्थक्रांति का सुझाव आनुक्रमिक है (क्रमवार है), आकस्मिक नहीं है।
अब दावा है कि काली कमाई के धन कुबेरों से ब्लैक मनी को बाहर निकलवाने के लिए की गई नोटबंदी के बाद वित्त मंत्रालय व इनकम टैक्स विभाग हर खाते पर नजर रखे हुए हैं। अगले कुछ दिनों में सरकार द्वारा तय लिमिट से ज्यादा कैश जमा कराने वाले खाता धारकों को जांच के दायरे में लिया जाएगा। बड़े स्तर पर नोटिस और जांच कार्रवाई 1 जनवरी से शुरू होगी। क्योंकि, केंद्र सरकार ने बैन किए 1000/500 के नोट 30 दिसंबर तक बैंक खातों में जमा कराने की व्यवस्था की है। ब्लैक मनी के मालिक अभी इन्वेस्ट व नकदी को कमीशन में बदलकर काली कमाई खपाने के इंतजाम में जुटे हैं। इसके लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, बैंक अफसरों के साथ इनकम टैक्स विभाग के अफसरों से संबंधों का फायदा लेने की पूरी कोशिश भी हो रही है।
अब पहले की तरह एटीएम से जब चाहे तब रुपये निकलने की आजादी भी खत्म हो रही है।फिलहाल नोटबंदी के आलम में जो एटीेम से पैसा निकालने पर पाबंदी है ,यह पाबंदी आगे भी जारी रहनी है।यानी जबर्दस्ती कैशलैस बनाने का इतजाम है।इसका नजारा बी खूब है।कैश लेन-देन के लिए सरकार लगभग तीन हजार तक की सीमा तय कर सकती है। मोदी सरकार के कदम इसी इरादे से ई-बैंकिंग क्रांति की ओर बढ़ते दिख रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़े नोट बंद करने का सुझाव महाराष्ट्र के औरंगाबाद निवासी व मैकेनिकल इंजीनियर अनिल बोकिल ने ही दिया था।
अनिल बोकिल की टीम पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से भी मिली थी। इसके बाद 2011-12 के दौरान बाबा रामदेव, श्रीश्री रविशंकर व अन्ना हजारे से भी मिले थे। इन सभी ने बोकिल के प्रस्ताव का अनुमोदन किया था।
दो हजार के नोट भी बाद में हो सकते हैं बंद
नोएडा के सेक्टर 25 में रहने वाले अनिल बोकिल की 11 सदस्यीय टीम के अहम सदस्य आदर्श धवन के अनुसार, हाल ही में जारी दो हजार रुपए के नोट भी बाद में बंद किए जा सकते हैं। अब अमेरिका जैसे देशों की तर्ज पर ई-बैंकिंग से अधिकांश कारोबार होंगे। देश में कुल नकद राशि का करीब 86 फीसद नोट 500 व एक हजार रुपए के हैं।
बोकिल के पांच अहम प्रस्ताव
देश में इंपोर्ट ड्यूटी छोड़कर सभी तरह के टैक्स खत्म कर देने चाहिए। सरकार को सिर्फ मनी ट्रांजेक्शन टैक्स प्राप्तकर्ता पर दो फीसद तक लगाना चाहिए। इससे मौजूदा टैक्स नीति से होने वाली आय से 25 फीसद से अधिक आय कर के रूप में आएगी। कोई भी टैक्स चोरी नहीं कर पाएगा।
50 या 100 रुपए से बड़े सभी नोट बंद कर देने चाहिए। इससे भ्रष्टाचार व अपराध खत्म हो जाएगा। कैश ट्रांजेक्शन पर कोई टैक्स नहीं होना चाहिए। कैश इस्तेमाल की लिमिट 2000 रुपये तक सीमित की जानी चाहिए।
गौर करें कि पेटीएम के सुपरमाडल कौन है।अपने ब्रांड की कामयाबी के लिए उनने देश की अर्थव्यवस्था ही नहीं,आम जनता की रोजमर्रे की जिंदगी बंधक बना दी है।अभी बीसियों लोर इस नोटबंदी में मारे गये हैं।
छह महीने तक हालात सामान्य हो जाये तो भी नकदी मिलने वाली नहीं है और इस कैशलैस एजंडा के करेंसी स्पीच को भक्तगण क्रांति बता रहे हैं।
कल्कि महारज को कार्ल मार्क्स कहा जा रहा है।देश में गरीबी अमीरी के अलावा डिजिटल विभाजन के हालात है।जिनके पास तकनीक है और पैसा भी है,उनके लिए मजे ही मजे,जिनके पास न तकनीक है और न पैसा,उनके लिए मौत और खुदकशी के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
हालत यह है कि नोटबंदी के बाद कैश में लेन-देन और खरीददारी पर तो समझिए बैन लग गया है। जाहिर है कि जमाना 4 घंटे में डिजिटल हो गया और अब इसका सबसे बड़ा फायदा पेटीएम को होता नजर आ रहा है।
पेटीएम से रोजाना 70 लाख सौदे होने लगे हैं जिनका मूल्य करीब 120 करोड़ रपये तक पहुंच गया है।सौदों में आई भारी तेजी से कंपनी को अपने पांच अरब डॉलर मूल्य की सकल उत्पाद बिक्री (जीएमवी) लक्ष्य को तय समय से चार महीने पहले ही प्राप्त कर लिया है।आलम ये है कि भारत में फिलहाल पेटीएम का इस्तेमाल डेबिट और क्रेडिट कार्ड से भी ज्यादा हो रहा है।आठनवंबरके बाद पेटीएम का ग्रोथ पांच गुणा हो गया है और आने वाले एक महीने तक पेटीएम की ग्रोथ इसी रफ्तार में रहने की उम्मीद है। हैरानी की बात है कि कोई दूसरा मोबाइल वैलेट इतना कारोबार क्यों नहीं कर पर रहा है।सीधा जबाव है कि उनका माडल कोई और है।
इसी बीच एयरटेल ने देश का पहला पेमेंट्स बैंक लॉन्च किया है। कंपनी ने इसकी शुरुआत राजस्थान में अपना पहला पेमेंट बैंक खोलकर पायटल प्रोजेक्ट के तौर पर की है। एयरटेल का यह बैंक बचत खातों पर 7.25 फीसदी की दर से ब्याज देगा, जबकि ज्यादातर बैंक बचत खातों पर सिर्फ चार फीसदी ब्याज ही देते हैं।
बहरहाल नोटबंदी की परेशानी झेल रही जनता के लिए पेटीएम एक बड़ा सहारा बनकर उभरा है। पिछले 15 दिनों में कैशलेस ट्रांजैक्शन के लिए पेटीएम ने 5-6 गुना नए ग्राहक जोड़े हैं। साथ ही अपनी सर्विसेज को भी अपग्रेड किया है। नए ग्राहकों को जोड़ने की योजनाओं पर कंपनी के सीईओ विजय शेखर शर्मा ने सीएनबीसी-आवाज़ के साथ बात करते हुए कहा कि आने वाले समय में डिजिटल ट्रांजैक्शन की मांग बढ़ेगी जिसको देखते हुए पेटीएम ऐप अब कुल 10 भाषाओं में लॉन्च किया जा चुका है। जरूरी पेमेंट फीचर्स अब स्थानीय भाषाओं में भी आ गए हैं।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 8 नवंबर की रात को 8 बजे जब 500 और 1,000 रुपए के नोटों को बंद करने का ऐलान किया था, तब कुछ-कुछ जगहों को अपवाद की सूची में भी रखा गया था। इनमें ज्यादातर सरकारी सेवाएं शामिल थीं, जिनके लिए लोग लोग पुराने नोट दे सकते थे। लेकिन, आज 24 नवंबर की आधी रात से इन जगहों पर भी पुराने नोट नहीं लिए जाएंगे। यानि, गुरुवार से 500 और 1,000 रुपए के पुराने नोट कहीं नहीं चलेंगे। सिर्फ किसानों को ही 500 रुपए के पुराने नोटों से बीज खरीदने की छूट मिली रहेगी। हालांकि, पुराने नोटों को आप 30 दिसंबर तक अपने अकाउंट में जमा करा सकते हैं।
इस बीच नोटबंदी पर विपक्ष गोलबंदी के साथ आगे बढ़ रहा है। 13 पार्टियों के 200 सांसदों ने सरकार को दो टूक संदेश दे दिया है कि नोटबंदी के खिलाफ हम साथ साथ हैं। उधर जंतर-मंतर पर ममता बनर्जी ने भी मोर्चा संभाला। संसद में गतिरोध नोटबंदी पर बहस के तरीके पर बना हुआ है। विपक्ष चाहता है कि संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी पर चर्चा करें।यह कवायद पूरीतरह राजनीतिक है और इससे आम जनता की समस्या का कोई समाधान निकलने वाला नहीं है।
दरअसल 1991 से आर्थिक सुधारों का सिलसिला लगातार जारी रहा है।राजनीतिक मतभेद चाहे जितने हों,आर्थिक सुधारों का कोई राजनीतिकदल यहां तक कि वामपंथी भी विरोध नहीं कर सकते क्योंकि कारपोरेट चंदे से ही राजनीति चलती है और आर्थिक सुधारों का मतलब कारपोरेट एकाधिकार और उत्पादक समुदायों का नरसंहार है।कारपोरेट हितों के खिलाप राजनीति चल नहीं सकती चाहे सत्ता में एबीसी डी कोई भी रहे।1991 से सरकारें बहुमत में हों या अल्पमत में देश मुक्तबाजार में तेजी से तब्दील हो ता रहा है और अब अंध राष्य्रवाद उफान पर है लेकिन राष्ट्र कहीं नहीं है।
हो सकता है कि अगले लोकसभा चुनाव तक नई सरकार आ जाये,जिसके लिए यह मोदी ममता ध्रूवीकरण की कवायद है,मुक्तबाजार जस का तस रहना है और बुनियादी बदलाव कुछभी नहीं होना है।आम जनता की कहीं सुनवाई होनी नहीं है।
बहरहाल संसदीय प्रक्रिया यह है कि चर्चा नियम 56 के तहत हो जिसमें चर्चा के बाद वोटिंग होती है और निंदा का प्रावधान भी होता है जबकि सरकार नोटबंदी पर सिर्फ चर्चा चाहती है, वोटिंग नहीं। सरकार का आरोप है कि विपक्ष सिर्फ बहानेबाजी कर रहा है। तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को छोड़कर कोई भी नोटबंदी वापस लेने की मांग नहीं कर रहा है, तो क्या वाकई इसकी जेपीसी जांच की जरूरत है। दूसरी ओर सरकार के कदमों से धीरे-धीरे लोगों को राहत भी मिल रही है, ऐसे में गतिरोध ज्यादा खिंचा तो विपक्ष के अपने ही चक्रव्यूह में उलझ जाने का खतरा है।
संसद के प्रति इस सरकार की कोई जबावदेही नहीं है।नोटबंदी पर संसद में हंगामा चल रहा है लेकिन अब तक प्रधानमंत्री ने अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। वे किसी तानाशाह की तरह सीधे जनता को संबोधित कर रहे हैं और तमाम लोकतांत्रिक संस्तानों यहां तक की भारत की संसद को ठेंगे पर रख रहे हैं। हल्ला है कि आज राज्यसभा में प्रधानमंत्री आ सकते हैं और नोटबंदी पर वो बयान भी दे सकते हैं। लोकसभा में विपक्ष जहां इस मामले पर स्थगन प्रस्ताव की मांग पर अड़ा हुआ है, वहीं सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। कल हंगामे के बाद राज्यसभा भी दिनभर के लिए स्थगित कर दी गई।
लोकसभा में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए लेकिन संसद में हंगामा नहीं थमा। संसदीय कार्य मंत्री वेंकैया नायडू ने विपक्ष के हंगामे पर एतराज जताते हुए कहा कि सदन में प्रधानमंत्री मौजूद हैं तो अब बहस क्यों नहीं हो रही है तो जवाब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिया और कहा सरकार बहस चाहती ही नहीं।
नोटबंदी पर सरकार के खिलाफ संसद ही नहीं सड़क पर भी हंगामा जारी है लेकिन विपक्ष की एकता में दरार दिखी। ममता के विरोध प्रदर्शन से कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों ने किनारा किया। जंतर मंतर पर ममता बनर्जी ने मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला। ममता बनर्जी के विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने शरद यादव खुद जंतर मंतर पर पहुंचे। वहीं संसद परिसर में स्थित गांधी मूर्ति के पास राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस और लेफ्ट के 200 सासंदों ने नोटबंदी का विरोध किया।
नोटबंदी के खिलाफ पूरा विपक्ष प्रधानमंत्री के खिलाफ हमलावर हो गया है। राहुल ने जहां एक बार फिर से सूटबूट वाली सरकार की बात दोहराई, तो वहीं सीपीएम नेता सीताराम येचुरी और बीएसपी नेता मायावती ने सरकार के खिलाफ जोरदार हमला बोला।
इसी बीच देशमें इंजीनियरिंग क्षेत्र की दिग्गज कंपनी लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने बीते 6 महीने के दौरान अपने 14 हजार कर्मचारियों की छंटनी की है। आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही कंपनी का दावा है कि खुद को मार्केट में बनाए रखने के लिए यह जरूरी था। वह 10 की जगह 5 लोगों से काम चलाने की कोशिश कर रही है।
कंपनी ने यह कदम अप्रैल-सितंबर छमाही में रेवेन्यु और प्रॉफिट पॉजिटव रहने के बावजूद उठाया है। एलएंडटीने इसे रणनीतिक फैसला बताया एलएंडटीके चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर आर. शंकर रमन ने कहा कि यह एक रणनीतिक फैसला है।
केंद्र सरकार द्वारा जो कदम उठाए गए हैं उसके बाद अब अर्थक्रांति प्रतिष्ठान का मानना है कि अगले 6 महीने में भारत कैशलेस हो जाएगा। इसके बाद भारत में प्लास्टिक करेंसी और ऑनलाइन बैंकिंग चलेगी।
यह प्रतिष्ठान वही है जिसे पीएम मोदी के नोटबंदी वाले कदम के पीछे का थिंक टैंक माना जाता है। गुरुवार को प्रतिष्ठान ने कहा कि अगले 6 महीने से साल भर में भारत कैशलेस हो जाएगा और फिर सरकार 2000 और 500 रुपएके नोट भी हमेशा के लिए बंद कर दे।
एक अखबार से बात करते हुए इसके एक थिंक टैंक अमोद फाल्के ने कहा कि नोटबंदी ने प्लान में अगला स्टेप जोड़ दिया है जो बैंकिंग ट्रांजेक्शन टैक्स के रूप में होगा। अर्थक्रांति प्रतिष्ठान के अनुसार बड़े नोटों को बंद करने के बाद भारत में लगने वाले सभी टैक्स मसलन इन्कम टैक्स, वैट, एक्साइज ड्यूटी और प्रस्तावित जीएसटी भी हट जाएंगे और इन सभी को 1-2 प्रतिशत बैंकिंग ट्रांजेक्शन टैक्स से रिप्लेस कर दिया जाएगा।
बैंकिंग पर टैक्स रेवेन्यू 21 लाख करोड़ तक होगा
बैंकिंग ट्रांजेक्शन टैक्स के अंतर्गत लोगों को 1-2 प्रतिशत टैक्स देना होगा। यह टैक्स केंद्रीय, राज्य और स्थानीय बॉडीज के बीच बांटा जाएगा। जब सभी ट्रांजेक्शन कैशलेस होंगे तो प्रतिष्ठान का मानना है कि बीटीटी को मिलने वाले टैक्स 21 लाख करोड़ तक पहुंच जाएंगे जो उन सभी टैक्सों से मिलने वाली रकम के बराबर हैं जो केंद्र और राज्यों द्वारा लगाए गए हैं।
फाल्के ने दावा किया कि वो पीएम मोदी से 2013 से अपने प्रस्ताव लेकर मिल रहे हैं और उस समय वो गुजरात के सीएम थे। उनके अनुसार जैसे की भारत की अर्थव्यवस्था काफी बड़ी मात्रा में नकदी पर निर्भर है ऐसे में पीएम मोदी एक वक्त में सभी बड़े नोट बाजार से नहीं हटा सकते। लेकिन उन्होंने अपने भाषण में साफ कहा था कि 2000 रुपए का नोट रेगुलेट होगा। जैसे ही लोग कैशलेस तरीकों को अपनाने लगेंगे, इस नोट को बाजार से हटाना असान हो जाएगा।
बचे रहेंगे 50 और 100 के नोट
अर्थक्रांति के अनुसार बाजार में 50 और 100 के नोट बने रहेंगे क्योंकि गरीब आदमी को कैशलेस होने में वक्त लगेगा। उसके अनुसार अगर आप अमेरिका या दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था को देखें तो वहां लोग भारी मात्रा में कैश लेकर नहीं चलते लेकिन भारत में बड़े नोटों की वजह से लोग बैंकिंग सिस्टम से काफी दूर हैं।
फाल्के ने आगे कहा कि उनके प्लान में वो बिल्कुल नहीं चाहते की लोग अपने अकाउंट में 100 करोड़ जमा कर दें और पेनल्टी भुगतें। पहले टैक्सेशन सिस्टम डिफेक्टिव था जिसके चलते लोगों को बड़ी रकम जम करने में पेनल्टी नहीं लगती थी। सरकार अब इसका 10 प्रतिशत टैक्स ले सकती है और बचा हुआ अमाउंट 15 साल के बॉन्ड के माध्यम से दे सकती है।
उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह वक्त पर निर्भर है कि कब उनकी पॉलिसी लागू की जाती है। संभव है यह 2017-18 में हो या फिर 2019 में। लोगों को हमारे प्लान की ताकत का एहसास हो चुका है।
ऑनलाइन भुगतान सेवा प्रदान करने वाली देश की अग्रणी कंपनी पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा के अनुसार नोटबंदी की घोषणा के बाद हर दिन लाखों की संख्या में ग्राहक पेटीएम से जुड़ रहे हैं। विजय शेखर ने एक समाचार चैनल से कहा, "इतना ही नहीं, हम जिस चीज को लेकर बेहद उत्साहित हैं वह है हमारे सक्रिय उपयोगकर्ताओं द्वारा पेटीएम के माध्यम से किए जाने वाले लेनदेन की संख्या में भारी इजाफा।"
विजय शेखर के अनुसार, पेटीएम के मौजूदा उपभोक्ताओं की संख्या 15.5 करोड़ है, जबकि कुछ ही दिन पहले यह 11.5 करोड़ थी।
उन्होंने कहा कि देशभर में कार्ड के जरिए खरीद-बिक्री करने वाले केंद्रों की संख्या सिर्फ 14 लाख है, लेकिन 'हमने इस संख्या को भी पार कर लिया है, क्योंकि हमने अपनी सेवा मोबाइल पर भी शुरू कर दी है'।
विजय शेखर ने कहा, "इससे पहले हम कह चुके हैं कि 2020 तक हमारे उपभोक्ताओं की संख्या एक अरब हो जाएगी। लेकिन अब मुझे पूरा विश्वास हो गया है कि 2018 के आखिर तक आते-आते हमारे ग्राहकों की संख्या 50 करोड़ तो निश्चित तौर पर पहुंच जाएगी।"
पेटीएम के लिए काम करने वाले कर्मचारियों की बात की जाए तो अब तक पेटीएम में 4,500 कर्मचारी थे, लेकिन वर्षात तक यह संख्या 12,000 तक पहुंच चुकी है।
शर्मा ने धनराशि जुटाने के विषय पर कहा कि कंपनी के पास बैंकों में 2,000 करोड़ रुपये जमा हैं, जिन्हें कंपनी जल्द ही खर्च करेगी।
विजय शेखर ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास है कि एक दिन पेटीएम 100 अरब डॉलर की कंपनी बन जाएगी।
पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते ही 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने का ऐलान किया था। इस ऐलान के बाद शायद हर कोई नकदी की समस्या से जूझ रहा है और कुछ समय तक हर किसी के पास सीमित नकदी ही रहने वाली है। ऐसे में डिजिटल वॉलेट और दूसरी इलेक्ट्रॉनिक करेंसी कंपनियों के यूज़र में बड़ी संख्या बढ़ें हैं। पेटीएम, मोबिक्विक, फ्रीचार्ज के यूज़र तेजी से बढ़े। इसके अलावा वॉलेट ऑन डिलिवरी की सुविधा भी शुरू हुई।
इस चलन को बरकरार रखते हुए, पेटीएम ने पिछले हफ्ते 'नियरबाय' नाम से एक फ़ीचर की घोषणा की। इसके जरिए आप अपने आसपास पेटीएम वॉलेट के जरिए पेमेंट लेने वाले दुकानदार को आसानी से खोज पाएंगे। इस फ़ीचर से उन ग्राहकों को मदद मिलेगी जिनके पास नकदी की कमी है। पेटीएम के 'नियरबाय' फ़ीचर में देशभर में मौज़ूद कंपनी के करीब 8 लाख से ज्यादा ऑफलाइन दुकानदार की डायरेक्टरी है। कंपनी ने ईमेल के जरिए एक बयान जारी कर बचाया कि पहले चरण के तहत करीब 2 लाख दुकानदारों को इस फ़ीचर में जोड़ दिया गया है।
कंपनी का कहना है कि ग्राहक पेटीएम ऐप यूज़र ऐप व वेबसाइट पर अपने पास स्थित उन दुकानों और जगह की लिस्ट देख सकते हैं जो पेटीएम स्वीकारते हैं। इसके लिए उन्हें पेटीएम वॉलेट में कैश डालना होगा और केवाईसी कर अकाउंट अपग्रेड करना होगा। हालांकि, स्टोरी लिखे जाने तक यह फ़ीचर ना तो लेटेस्ट आईओएस और एंड्रॉयड ऐप व वेबसाइट पर उपलब्ध था।
पेटीएम की डीजीएम सोनिया धवन ने यह ऐलान करते समय कहा, ''पेटीएम के जरिए, हमारा उद्देश्य एक ऐसा ईकोसिस्टम बनाने का है जिससे ग्राहकों और व्यापारी दोनों का फायदा हो। मुझे विश्वास है कि हमारे ग्राहक अपने आसपास मौज़ूद पेटीएम सर्विस को अब पहले से ज्यादा आसानी से खोज़ सकेंगे।''
Financial transaction tax
From Wikipedia, the free encyclopedia
A financial transaction tax is a levy placed on a specific type of monetary transaction for a particular purpose. The concept has been most commonly associated with the financial sector; it is not usually considered to include consumption taxes paid by consumers.[1]
A transaction tax is not a levy on financial institutions per se; rather, it is charged only on the specific transactions that are designated as taxable. So if an institution never carries out the taxable transaction, then it will never be subject to the transaction tax.[2] Furthermore, if an institution carries out only one such transaction, then it will only be taxed for that one transaction. As such, this tax is neither a financial activities tax (FAT), nor a Financial stability contribution (FSC), or "Bank tax",[3] for example. This clarification is important in discussions about using a financial transaction tax as a tool to selectively discourage excessive speculation without discouraging any other activity (as John Maynard Keynes originally envisioned it in 1936).[4]
There are several types of financial transaction taxes. Each has its own purpose. Some have been implemented, while some are only proposals. Concepts are found in various organizations and regions around the world. Some are domestic and meant to be used within one nation; whereas some are multinational.[5] In 2011 there were 40 countries that made use of FTT, together raising $38 billion (€29bn).[6][7]