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कायदा कानून, लोकतंत्र, संविधान,संसद की कोई परवाह नहीं है फासिज्म के राजकाज को,इसीलिए मन मर्जी माफिक जब तब फतवे और फरमान! पलाश विश्वास

Previous: पीएफ सूद में कटौती,दस फीसद शेयर बाजार में रेलवे में व्यापक छंटनी की तैयारी पूंजीपतियों को खराब लोन के शिकंजे में फंसे बैंकों को पूंजी की जरुरत नौकरीपेशा शुतुरमुर्ग रीढ़विहीन प्रजाति की बचत में दिनदहाड़े डकैती के सुनहले अच्छे दिन। नोटबंद की तबाही का 42 वां दिन कतारों में देश,रोज बदल रहे नियम,रोज नय फरमान और नये ख्वाबों का ख्याली पुलाव! पकने लगा आयकर में छूटवाला गाजर का हलवा! बचत पर �
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कायदा कानून, लोकतंत्र, संविधान,संसद की कोई परवाह नहीं है फासिज्म के राजकाज को,इसीलिए मन मर्जी माफिक जब तब फतवे और फरमान!

पलाश विश्वास


आयकर विभाग ने साढ़े तीन लाख करोड़ के कालाधन निकलने का ब्यौरा पेश कर दिया है।अब कालाधन कहां है,यह फिजुल सवाल सवाल कृपया न करें।बल्कि अपने अपने खातों में लाखों करोड़ों का कैश जमा होने का इंतजार करें।आगे छप्पर फाड़ सुनहले दिन हैं।

गौरतलब है कि सबसे ज्यादा कालाधन बंगाल में ममता दीदी के राजकाज में बताया जा रहा है।

बंगाल में किसी राजनेता के यहां छापा नहीं पड़ा है।बहरहाल मध्यप्रदेश में किसी वासवानी पर छापा पड़ा है।गुजरात में चायवाले अरबपति के यहां या छापे पड़े हैं।कितने और कौन चायवाले गुजरात में अबहुं अरबपति खरबपति हैं,उ सब आगे छापा पड़ने पर जगजाहिर हुआ करै हैं।बंगाल के राजनेताओं क पहले की तरह सीबीआई का नोटिस ही मिला है।

छापा तमिलनाडु के मुख्यसचिव के यहां जरुर पड़ा है।

गौरतलब है कि नोटबंदी के बाद कालेधन के खिलाफ चलाए गये देशव्यापी अभियान में आयकर विभाग ने अबतक 3,185 करोड़ रुपये से अधिक की अघोषित आय का पता लगाया है जबकि सिर्फ  86 करोड़ रुपये के नये नोट जब्त किए गये। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार नोटबंदी के बाद से आयकर अधिकारियों ने देशभर में जांच, सर्वे और पूछताछ की 677 कार्रवाइयां की। इस दौरान टैक्स चोरी और हवाला से जुड़े लेनदेन के लिए विभिन्न इकाइयों को 3,100 से अधिक नोटिस जारी किए गए।

कालाधन जरुर पकड़ा जायेगा या फिर सारा कालाधन सफेद धन बन जायेगा और हिंदू राष्ट्र भारतवर्ष मुकम्मल रामराज्य बन जायेगा।सतजुग वापस हो रहा है।

हम तेजी से अमेरिका बनते हुए उससे भी तेजी से इजराइल बनने लगे हैं।

इसलिए रिजर्व बैंक के नियम बदलने के लिए रोज रोज फतवा और फरमान जारी करने से पहले हमने इसकी खबर नही ली कि अमेरिकी फेडरल बैंक के कामकाज में अमेरिकी सरकार के राजकाज का कितना दखल और किस हद तक का दखल होता है।कुल कितनी बार फेडरल बैंक के नियम अमेरिकी सरकार ने बदले हैं।

हम विद्वतजनों में शामिल नहीं हैं,कोई महामहिम विद्वत जन हमारी इस शंका का समाधान करें तो आभारी रहेंगे।

अमेरिका या इजाराइल न सही,दुनिया के किसी और बड़ी आत्मनरिभर देश की अर्थव्यवस्था में नोटबंदी के बाद रिजर्व बैंक के पचास बार नियम बदलने की कोई नजीर दिखायें तो नोटबंदी के बारे में हमारी गलतफहमी दूर हो।

मसलन नोटबंदी के बाद लगातार बदले जा रहे नियमों के बीच एक बार फिर आरबीआई ने नया नोटिफिकेशन जारी किया है। आरबीआई ने सफाई दी है कि 5000 रुपये से ज्यादा के नोट जमा कराते वक्त लोगों से अब बैंक अधिकारी कोई सवाल जवाब नहीं करेंगे। केवाईसी खातों पर एकमुश्त जमा वाला नियम लागू नहीं होगा।

दरअसल, आरबीआई ने 19 दिसंबर को एक आदेश जारी किया कि 30 दिसंबर तक 5000 रुपये से ज्यादा रकम जमा कराने पर आपको बैंक को बताना होगा कि यह रकम कहां से आई? आपने अब तक इसे जमा क्यों नहीं करवाया? इस फैसले के खिलाफ देशभर में गुस्सा देखा गया।

भक्तजन चाहें तो गिनीज बुक आफ रिकार्ड में यह कारनामा दर्ज करवाने की पहल करें,तो बेहतर।

उत्तराखंड से खबर आयी है कि आधार नहीं तो राशन नहीं।

नया फतवा है कि वेतन भुगतान भी कैशलैस अनिवार्य है।विधेयक तैयार है।

कारोबारी और उद्योगपति अब चाहें तो अपने छोटे कर्मचारियों को भी ऑनलाइन या चेक से सैलरी दे सकते हैं। केंद्र सरकार ने इसके लिए अध्यादेश के जरिए पेमेंट और वेजेज एक्ट, 1936 में सुधार का रास्ता साफ कर दिया है। फिलहाल 18000 तक तनख्वाह वाले कर्मचारियों को कैश में पेमेंट देने का प्रावधान है। अभी अगर किसी को अकाउंट में पेमेंट देनी हो तो कर्माचारी से लिखित अनुमति लेनी पड़ती है। सुधार के बाद राज्य ये तय कर पाएंगे कि किन उद्योगों या कारोबार में कैशलेस लागू किया जाए।राज्य को दी गई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, केरल और हरियाणा में कैशलेस पेमेंट के प्रावधान पहले से मौजूद हैं।

शगूफों की पूलझड़ी अनारो अनार है।

अच्छे सुनहले दिनों का फीलगुड महामारी है।

राजनेताओं और राजनीतिक दलों के कालाधन को सफेद करने के करिश्मे के बाद अब शगूफा है कि सियासी पार्टियों की ब्लैकमनी की हेराफेरी पर चुनाव आयोग शिकंजा कसने वाला है। नोटंबदी के बाद चुनाव आयोग करीब 200 दलों की मान्यता खत्म कर सकता है। ये वो दल हैं जो सिर्फ कागजों पर हैं। इन दलों ने साल 2005 से कोई चुनाव नहीं लड़ा है। चुनाव आयोग को अंदेशा है कि ये दल सिर्फ काले धन को सफेद करने का खेल करती हैं।

भरोसा करने की वजह भी है क्योंकि आयकर विभाग ने तमिलनाडु के मुख्य सचिव राम मोहन राव के घर और दफ्तर में छापा मारा है। जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक ईडी भी पूरे मामले की जांच करेगी और कभी भी राम मोहन राव से पूछताछ हो सकती है। पीएमएलए के तहत मामला दर्ज भी कर लिया गया है।सूत्रों के मुताबिक इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने ये छापा शेखर रेड्डी से मिली जानकारी के बाद मारा है। शेखर रेड्डी राव का करीबी माना जाता है। आईटी विभाग ने कुछ दिन पहले शेखर रेड्डी के यहां छापा मारकर 130 करोड़ रुपये की अघोषित संपत्ति जब्त की थी। जिसमें 34 करोड़ रुपये के नए नोट भी थे। इसके अलावा 127 किलो सोना भी बरामद किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी बुनियादी सेवा में आधार को अभीतक अनिवार्य नहीं माना।नोटबंदी के आलम में रोजाना हर बैंक में न जाने कितनी बार सुप्रीम कोर्ट की अवमानना हुई है कि नोट बदल में आधार दस्तावेज का ही इस्तेमाल हुआ है।

विद्वतजनों में अब रंग बिरंगे बगुला भगत अग्रिम पंक्ति में क्या,तानाशाह के दीवाने खास के न जाने कितने चित्र विचित्र रत्न हैं।वे तमाम झोला छाप लोग लखटकिया सूट के नौलखा हार हैं।संसद नहीं,निर्वाचित जनप्रतिनिधि नहीं,विशेषज्ञ नहीं,अर्थशास्त्री नहीं,लोकतांत्रिक स्वयत्त संस्थाओं के प्रतिनिधि नहीं,सार्वजनिक या सरकारी क्षेत्र के प्रतिनिधि नहीं,यहां तक कि राजघराना स्वयंसेवक परिवार के दिग्गज भी नहीं,कारपोरेट निजी क्षेत्र के ऐरा गैरा नत्थू खैरा,सर से पांव तक केसरिया रंगा सियारवृंद देश के बीते हुए अतीत को वर्तमान तो बना ही चुके हैं,अब घनघोर अमावस्या की काली रात हमारा भविष्य है।कटकटेला अंधियारा गगन घटी घहरानी,अब सभी जिंदा हों या मुर्दा,याद कर लो अपनी अपनी नानी,कयामत भारी है सयानी कि बेड़ा गर्क हुआ है।

सेल्युकस,अति विचित्र यह भारतवर्ष है।

बाबाओं,बाबियों का यह देश है मृत्यु उपत्यका,सेल्युकस।

राजनीति,राजकाज,राजनय करोड़पति,अरबपति,खरबपति घरानों और कुनबों की जागीर है सेल्युकस।

अगवाड़ा पिछवाड़ा खोलकर खुलेआम देश बेचने वाले लोग मसीहा है,सेल्युकस।

न शर्म है,न हया है,न गैरत है ,न जमीर है,सिर्फ कमीशनखोरी है,सेल्युकस।

राजनीतिक चंदा अब इकलौता सफेद धन है और जनता की सारी जमा पूंजी कालाधन है ,सेल्युकस।

सपेरों,मदारियों और बाजीगरों के हवाले अर्थव्यवस्था है,सेल्युकस।

सब कुछ ससुरो बेच दियो है,बाकी अमेरिका इजराइल हवाले हैं,बचा अंध राष्ट्रवाद का दंगा फसाद,जनता का कत्लेआम,मिथ्याधर्म कर्म का पाखंड और मुक्त बाजार है,सेल्युकस।

शिक्षा चिकित्सा शोध ज्ञन विज्ञान अनुसंधान सब हराय गयो,बाकी बचा पेटीएमपीएमएफएममंकीबातेंजिओजिओ है सेल्युकस।

यह अंधेर नगरी चौपट राजा है,भागो रे भागो सेल्युकस,जानबचा लाखों पावैं।

नोटबंदी के कैसलैस डिजिटल इंडिया में खेत खलिहान कल कारखाने हाट बाजार मरघट हैं और दिशा दिशा में मृत्युजुलूस का जलवा है।

हाट बाजार चौपट हैं।दुकानें खुली खुली बंद हैं।शापिंग माल की बहार है।ईटेलिंग है।खुदरा बाजार से बेदखल हैं।बाजार में फिर लौटने की गुंजाइश भी नहीं है।अब बनिया पार्टी की सरकार छोटे मंझौले बनियों का ढांढस बंधा रही है,जिंदा रहोगे,मरोगे नहीं कि डिजिटल हो जाओ,पेटीएम करो कि छिःचालीस फीसद टैक्स माफ है।

कारोबार छिन लियो है।छीना है बाजार।गाहक भी छीन लियो है।नकदी छीन लियो।पाई पाईको सफेद साबित करने में कतार में खड़े हैं।मक्खियां भी शर्मिंदा हैं।मच्छर भी पास नहीं भटक रहे हैं।छापे दनादन पड़ रहे हैं।चंदा, वसूली भर भरकर बाजार में टिकना मुश्किल है।

खुद शहंशाह के खास मुलुक से वहां के कपड़ा कारोबार के बारे में खबर है कि नोटबंदी के चलते अहमदाबाद में गारमेंट कारोबार की हालत खस्ता है। सबसे बुरा असर प्रवासी कारीगरों पर पड़ा है। बड़ी संख्या में कारीगर अपने गांव अने जपद और राज्य में वापस लौट चुके हैं। हालात में जल्दी सुधार नहीं दिखा तो बाकी लोग भी वापस पलायन पर मजबूर हो जाएंगे।पूरे गुजरात में कारोबार का हाल लालटेन है।वायव्रेंट गुजरात का अंधियारा इतना घना है,तो बाकी देश के गरीब पिछड़े राज्यों और जनपदों में क्या कहर नोटबंदी ने बरपा है,समझ सकें तो समझ लीजिये।

मीडिया की खबरों के मुताबिक अहमदाबाद में 5000 छोटे बड़े कारखाने हैं जहां लोकल से लेकर कई बड़े ब्रांड्स के कपडे बनते हैं। यहां कपडे की कटिंग और सिलाई से लेकर प्रोडक्ट फिनिशिंग तक लाखों लोगों को रोजगार मिलता है। नोटबंदी के बाद से होलसेलर्स के ऑर्डर लगातार घट रहे हैं। कारोबार आधा हो गया है। बेरोजगारी में प्रवासी कारीगर गांव वापस लौट रहे हैं। जो बचे हैं उन्हें वक्त पर पूरी तनख्वाह नहीं मिलती।

गुजरात में गारमेंट उद्योग से जुड़े करीब 3 लाख लोग है जिसमे से 1.5 लाख कारीगर गुजरात बाहर के राज्यों से आते है। इन में से एक लाख जितने कारीगर अब तक रोजगार की कमी के चलते अपने गाव वापस लौट चुके है। अब जो बचे है उनको इस बात की चिंता है की 8-10 दिन में हालत नहीं सुधरे तो उन्हें भी अपने गाव वापस लौटना पड़ेगा।

फिर जमा पूंजी गुड़ गोबर कर दियो और बनिया पार्टी बनियों को गधा समझ लियो हो गधों को सावन की हरियाली दिखा रहे हैं रेगिस्तान की रेतीली आंधी में।

पाकिस्तान को जीतने का ख्वाब दिखा कर चूना लगा दियो रे।

रामजी की सौगंध खाकर लूट लियो रे।

राममंदिर न बना डिजिटल बना दियो रे।

रथयात्रा में बनियों की शवयात्रा निकार दियो रे।

हिंदू राष्ट्र कहि कहि के अंबानी अडानी टाटा बिड़ला राष्ट्र बना दियो रे।

महतारी को याद न करे कोय,जोरु का ख्याल भी ना होय,छुट्टा सांढ़ ने नानी याद करा दियो रे।

गनीमत है सेल्युकस कि गधों के सींग नहीं होते।

कमसकम भैंस भी होते तो कुछ करके दिखाते,सेल्युकस।

ससुर कुतवा भी अगर रहे होते तो काटते न काटते भौंकते जरुर,सेल्युकस।

सब गोमाता की संतानें हैं।

गायपट्टी के भगवे पहरुये हैं।

तानाशाह माय बाप हैं।

मारे चाहे जिंदा रक्खे।

मर्जी उनकी।

अब जिनगी पेटीएम सहारे है।कारोबार पेटीएमओ है।धंधा पेटीएमपीएम ह।

तेल कुंओं की आग में झुलसाकर शिक कबाब बना दियो है,व्यापार कारोबार का सत्यानाश कर दिया है और अब छिःचालीस फीसद की टैक्स माफी का सब्जबाग दिखाकर चंडीगढ़ की तरह नरसंहार अभियान में देश के तमाम बनियों का कैश लूटकर इलेक्शनवा जीतने का वाह क्या जुगाड़ दिलफरेब है,सेल्युकस।

तनिक मीडिया की ओर से पेश इन तथ्यों पर गौर करेंः

डिजिटल इंडिया सरकार का संकल्प है और नोटबंदी के बाद ज्यादा से ज्यादा लोगों को डिजिटल पेमेंट या बिना कैश के पेमेंट करने को कहा जा रहा है। इसके लिए सरकार ने तरह तरह की रियायतों का एलान भी किया है। लेकिन अब तक ये इंसेंटिव सरकारी संस्थाओं तक सीमित रहे हैं और बहुत ही छोटी मात्रा में डिस्काउंट देते हैं। सच तो ये है कि आज भी आम कंज्यूमर के लिए डिजिटल पेमेंट का खर्च कैश से ज्यादा है।  कार्ड स्वाइप करने तरह-तरह के चार्ज है। ऑनलाइन शॉपिंग, मूवी टिकट खरीदारी, एयरलाइन टिकट हर चीज पर एक्स्ट्रा चार्ज है। कुछ रियायतें 30 दिसंबर तक दी गयी है। लेकिन उसके बाद क्या। क्या बैंक, कार्ड कंपनियां, मोबाइल वॉलेट, दुकानदार, ऑनलाइन शॉपिंग साइट्स पर चार्ज लगाने की कोई लिमिट लगेगी। फिलहाल इन पर कोई निगरानी नही है। और अब तक डिजिटल पेमेंट सिर्फ एक तबके के लिए विकल्प रहा है। लेकिन अगर भारत को लेस कैश सोसायटी बनाना है तो इन चार्जस को घटाना होगा।


नोटबंदी के बाद कैशलेस पेमेंट पर पेट्रोल-डीजल के लिए 0.75 फीसदी की छूट दी गई है। मंथली सीजन टिकट के लिए 0.5 फीसदी, रेलवे कैटरिंग 5 फीसदी छूट दी है। इतना ही नहीं रेलवे टिकट के लिए डिजिटल पेमेंट पर इंश्योरेंस की सुविधा दी गई है। जिसके तहत ऑनलाइन रेल टिकट पर 10 लाख का इंश्योरेंस मुहैया कराया जाएंगा। वहीं वित्त मंत्री ने हाल ही में घोषणा कि थी कि रेलवे की बाकी सुविधाओं की कार्ड पेमेंट पर छूट दी जाएगी। रेलवे की बाकी सुविधाओं पर 5 फीसदी की छूट की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।


वहीं ऑनलाइन पेमेंट पर जनरल इंश्योरेंस में 10 फीसदी की छूट देने की जानकारी देते हुए वित्त मंत्री ने कहा था कि ऑनलाइन पेमेंट पर लाइफ इंश्योरेंस में 8 फीसदी छूट दी जाएगी। केंद्र सरकार और पीएसयू से लेन-देन पर चार्ज नहीं लिया जाएगा और डिजिटल पेमेंट रेंटल को बैंक सुनिश्चित करेंगे। पीओएस, कार्ड का रेंटल 100 से अधिक नहीं होगा।


टोल प्लाजा पास के लिए ई-पेमेंट पर 10 फीसदी छूट दी जाएगी। हालांकि इन छूट की तारीख को अलग-अलग विभाग तय करेंगे। वित्त मंत्री के अनुसार आगे चलकर पॉलिटिकल फंडिंग भी ऑनलाइन हो सकती है। पैसे जमा करने से काला धन सफेद नहीं हो जाता बल्कि जमा पैसा काला धन है या नहीं,जांच से पता चलेगा।



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