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#संस्थागतकालाधन के खिलाफ कानून के लंबे हाथ लूला हैं और लफंगे भी कितनी कारपोरेट कंपनियों और कितनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के यहां छापे पड़े? जिंदा बचेंगे तो देख लेंगे सुनहले दिन भी।फिलहाल कुहासा है। पलाश विश्वास

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#संस्थागतकालाधन के खिलाफ कानून के लंबे हाथ लूला हैं और लफंगे भी

कितनी कारपोरेट कंपनियों और कितनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के यहां छापे पड़े?

जिंदा बचेंगे तो देख लेंगे सुनहले दिन भी।फिलहाल कुहासा है।

पलाश विश्वास

आठ नवंबर को नोटबंदी की प्रधानमंत्री की घोषणा को पूरे् 45 दिन हो गए हैं।पीएम के सुनहले दिन अमेरिका और इजराइल होकर ट्रंप के मुहर के साथ नितानयाहू की देखरेख में भारत में लैंड करने में सिर्फ पांच दिन बाकी रह गये हैं।दम तोड़ने से पहले थोड़ा और सब्र करें।कतार में मरने की कोशिश न करें।राष्ट्रद्रोह से बचें। शनिवार व रविवार को छुट्टी होने के कारण बैंकों ने अधिक से अधिक एटीएम में कैश फीड किया, ताकि लोगों को दिक्कतें न आए।बैंकों में अगले दो दिन अवकाश होने के कारण लोगों को कैश के लिए एटीएम का ही सहारा रहेगा।

मुआवजा की दीदी ने घोषणा कर दी है लेकिन  पीएमओ की मुहर अभी लगी नहीं है।घर में मरें तो बेहतर।गैस चैंबर में यूं ही दम घुटता है और यह आपका कर्मफल है।

हम तो जनमजात राष्ट्रभक्त हैं और जानते ही रहे हैं कि आदिवासियों के सफाया के बिना विकास हो नहीं सकता और दलित पिछड़े बहुजन अस्पृश्य काले अनार्य द्रविड़ देवमंडल की तरह यज्ञ के भागीदार नहीं बन सकते।शिवजी के पास फिरभी भूत प्रेत की सेना थी,नंदी भी खतरनाक था,उनके गले में नाग जहरीले थे,हमारे पास क्या हैं।हम निहत्था हैं,वध्य हैं।

ट्रंप बाबू ने राष्ट्रपति इलेक्ट बनने के बाद फिर फतवा जारी किया है कि मुसलमान देश में नहीं होने चाहिए।दरअसल वही हिंदुत्व का एजंडा है।फिर हम अमेरिका के उपनिवेश हो तो क्या, उनके और इजराइल के सबसे बड़े पार्टनर हैं।ग्लोबल हिंदुत्व के ट्रंपवा भाग्यविधाता हैं।पुतिन उनके जोडीदार हैं।हर कहीं तैनात होगें परमाणु बम। सिरफ झंडा हमारा तिरंगा है,जिसे संघ अपना मानता नहीं है।उनके मुताबिक तीन अशुभ है।तिरंगा लहराना पैदल फौजों का काम है।उनका निशान भगवा है।हमारा जनगणमन है और उनका वहीं वंदेमातरम् है।सारा देश आनंदमठ है।

बहरहाल भगवा झंडा पेशवा राज की विरासत है और शिवाजी महाराज का अरबसागर में भसान है।संविधान का क्रिया कर्म संसद में हो ही रहा है।इसलिए जो अपात्र हैं,वे अमृत चाखने की उम्मीद नकरें,समुद्र मंथन के बाद जो हुआ,नोटबंदी के बाद वहीं होगा।राहु और केतु सारे के सारे मारे जायेंगे।सूर्यदेव का तनेक्शन सीधे पीएमओ से हैं।सुद्रशन चक्र रेडी है।

जिंदा बचेंगे तो देख लेंगे सुनहले दिन भी।फिलहाल कुहासा है।

कोलकाता भी स्माग के हवाले है।बंगाल भी गायपट्टी में तब्दील है। कोलकाता केसरिया हुआ है तो स्माग तो होईबे करै हैं।मौसम,जलवायु और पर्यावरण को किसी के गुर्राने से डर नहीं लगता है।हिमालय से समुंदर तक मुक्तबाजार और देशी पूंजी के हवाले हैं और उनके पास कोई कालाधन नहीं है।

बुरा न मानें,कालाधन का जखीरा आपके बैंकखाते में है।आप  ईमानदार है तो पूरी तरह पड़ताल तफतीश के बाद आप साबित कर ही लेंगे कि आप पीएम की तरह भले ही गंगाजल न हों,दूध के धुले भी शायद न हों राजनेताओं और बाबा बाबियों, सपेरों, मदारियों और बाजीगरों की तरह,लेकिन आपका धन सफेद धन है।

अनुशासन बनाये रखें।गणवेश हो या नहीं,जयश्रीराम कहें,पहचान के लिए नंगा भी कर दें तो धीरज रखकर अपना हिंदुत्व साबित कर दें और कतारबद्ध होकर अपनी अपनी आंखों की पुतलियों और उंगलियों की छाप सत्ता के हवाले करके बिना गोरा बनाने वाली क्रीम के आप भी गोरा बन सकते हैं और प्रकृति केयर से कोमल विशुद आयुर्वेदिक त्वचा पा सकते हैं।शु्ध अनाज तेल साबुन की तरह।योगाभ्यास भी करें।हालांकि वक्तकी नजाकत के मुताबिक गैंडे की चमड़ी बनी रहे तो बेहतर हैं।

सींग उंग हो तो टोपी ओपी पहन कर ढक ढुक लीजिये वरना मुठभेड़ में मारे जा सकते हैं।

पूरा देश अब भी कतार में हैं।करोडो़ं असंगठित मजदूर कर्मचारी बेरोजगार हैं।करोडो़ं बनिया,छोटे मंझौले दुकानदार,व्यवसायी हाट बाजार मंडी से बेदखल हैं।संगठित क्षेत्र में छंटनी और विनिवेश का सिलसिला जारी है।जो भी कुछ सरकारी है,उसका निजीकरण जरुरी है।करोड़ों किसानों की खेती बाड़ी का सत्यानाश है।

पचास दिन की मोहलत है।स्नैपडील,पेटीएम और जिओ के अलावा न जाने कहां कहां कैश के लिए कमीशन देना है।न जाने किस किस कंपनी का डाटा मोबाइल पर बुक करना है और न जाने किस किस कंपनी के स्मार्ट फोन का सौदा करके घर में चूल्हा सुलगाना है।

जनता की तकलीफें पीएमओ को मिली खुफिया सूचनाओं के आधार पर देश भर में आयकर और सीबीआई के छापों की ब्रेकिंग न्यूज में किसी को नजर नहीं आ रही हैं।

पीएमओ को फोन और मेल के जरिये कौन लोग खुफिया जानकारी दे रहे हैं?

कालाधन का जो जखीरा धर्मस्थलों में हैं,उन धर्मस्थलों में जो संस्थागत हैं,कितने छापे आयकर और सीबीआई के रण बांकुरों ने अब तक मारे हैं?

इतने जो जनप्रतिनिधि हैं,जो फटेहाल हालात में चुनाव जीतने के बाद अब करोड़पति,अरबपति खरबपति वगैरह वगैरह हैं,उनेक यहां कितने छापे पड़े?

दो सौ राजनीतिक दल फर्जी हैं,जो कभी चुनाव नहीं लड़ते और जिन्हें कारपोरेट चंदा टैक्स माफ है,उनका जमा चंदा कहां खपता है,उन ठिकानों पर कहां कहां छापेमारी हुई?

मारीशस,दुबई हांगकांग से होकर जो कालाधन प्रत्यक्ष विनिवेश के तहत अरबों डालर की रकम में कारपोरेट बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरफ से भारतीय अर्थव्यवस्था में खप रहा है,उसके खिलाफ कहां कहां छापे पड़े?

कितनी कारपोरेट कंपनियों और कितनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के यहां छापे पड़े?

निजीकरण और विनिवेश के आलम में असंंगठित मजदूरों की सप्लाई करने वाली आउटसोर्सिंग कंपनियों के बेहिसाब कारोबार के खिलाफ कितने छापे पड़े?

खासकर तब जबकि बैंकों की कैशसप्लाई और एटीएम की देखरेख इन्ही आउटसोर्सिंग कंपनियों के मार्फत होती हैं,जिनके चोर दरवाजे बड़े पैमाने पर नये दो हजारके नोट भी काले धन हैं,ऐसी कंपनियों के यहां कहां कहां छापे पड़े?

रोजगार सारा का सारा बिल्डरों ,प्रोमोटरों,ठेकेदारों,माफिया अपराध गिरोहों,सिंडिकेट के हाथों में हैं,सारा असंगठित क्षेत्र इनके कब्जे में हैं,टैक्स की क्या कहे जो श्रम कानून कायदा कानून भी ताक पर रखकर चलते हैं,पीएओ दफ्तर की पहल पर उन लोगों पर कहां कहां कितने छापे पड़े?

निजी अस्पतालों की मुनाफावसूली और उनके गैरकानूनी गोरखधंधों की खबरे अखबारों की रोजाना सुर्खियां हैं,इऩ निजी अस्पतालों के खिलाफ कहां कहां कितने छापे पड़े?

निजी शिक्षा संस्थानों में हर भर्ती के पीछे लाखों और करोडो़ं का डोनेशन है,इस कालाधन की जब्ती कितन हुई है?

कोचिंग सेंटर और व्यवसायिक प्रशिक्षण केंद्रे के नाम पर बिना फैकल्टी फ्रेंचाइजी के मशरूम की तरह हरक गली मोहल्ले में छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले कितने संस्थानों के खिलाफ छापेमारी हुई है?

सामाजिक क्रांति के नाम पर महापुरुषों की फोटू टांगकर खुलक थैलियां बटोरने वाले मिशनरी संगठनों और उनके तमाम मसीहावृंद के खिलाफ कहां कहां छापेमारी हुई हैं जो डर के मारे इन दिनों भूमिगत हैं या विशुध पंतजलि या गंगाजल हैं?

सरकारी सेवा में रहते हुए निजी अस्पतालों,नर्सिंग होम,चैंबर में रोजाना हजारों,लाखों,करोड़ों कामानेवाले कितने डाक्टरों के खिलाफ छापेमारी हुई है?

हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट में हर हाजिरी,हर सुनवाई पर करोडो़ं की फीस लेने वाले कितने  वकीलों के यहां छापेमारी हुई है?

भक्तजनों को अगर इन सवालों का जबाव मालूम हो तो वे साझा कर सकते हैं।

आपकी नजर में भी और ढेरों सवाल हो सकते हैं।भक्तजन जवाब दे देंगे।

संस्थागत कालाधन का परिदृश्य साफ करने के लिए फिलहाल इतने सवाल ही काफी है।उम्मीद है कि पीएओ को खुफिया जानकारी देने वालों की तेज नजर से यह संस्थागत कालाधन छुपा नहीं है।

बस,इन ठिकानों पर भी छापे पड़े रहे होंगे।पीएमओ की हरी झंडी मिलने दीजिये और स्वच्छ भारत मिशन पूरा करने के लिए 30 दिसंबर तक इंतजार कीजिये।

बहुत जल्द आपके खातों में लाखों करोडो़ं जमा होने वाला है।नया साल सचमुच मुबारक होने वाला है।

जाहिर है कि देश कैशलैस डिजिटल अमेरिका इजराइल चाहे जो भी कुछ बने,कालाधन निकलने नहीं जा रहा है। क्योंकि आठ नवंबर को नोटबंदी की प्रधानमंत्री की घोषणा को 44 दिन हो गए हैं।कालाधन के संस्थागत कारपोरेट ठिकानों तक पीएमओ के जरिए कानून के हाथ नहीं पहुंच सकते।

कानून के हाथ लूला लफंगे हैं जो आम जनता की इज्जत के साथ छेड़खानी तो कर सकते हैं,लेकिन पीएमओ के सियासी मजहबी एजंडा का दायरा तोड़कर कालेधन के संस्थागत कारपोरेट ठिकानों तक नहीं पहुंच सकते।

एकदम ताजा खबर हैःरिजर्व बैंक ने इकबालिया बयान दे दिया है कि नोटबंदी के सिलसिले में उसकी कोई तैयारी नहीं है।सत्ता के सिपाहसालार और उनके भोंपू मीडिया नोटबंदी के बाद लगातार दावे करते रहे कि रिजर्व बैंक ने करीब आठ महीने की तैयारी की है।

नये गवर्नर साहिब रिलायंस की सेवा से मुक्त होने के बाद ठीक से अपनी कुर्सी पर बैठ भी नहीं सके थे।मुंह हाथ धो नहीं सके थे।पेशाब वगैरह से फारिग होकर फ्रेश भी नहीं हो पाये थे कि इससे पहले ही नोटबंदी की सारी तैयारियां हो गयी थी।

हम शुरु से कह लिख रहे हैं कि न रिजर्व बैंक को कुछ मालूम था और न देश के सबसे बड़े कारपोरेट वकील अपने प्यारे दिलफरेब वित्तमंत्री को कोई भनक लगी थी कि कैसे मीडिया के दावे के मुताबिक गुपचुप पीएपेटीएम ने भारतीय जनता के खिलाफ नरसंहारी युद्ध की मोर्चाबंदी झोलाछाप सिपाहियों के साथ मिलकर कर ली थी।

अपने गुज्जु भाई को बेसहारा करके आम जनता के खातों में अलीबाबा की तर्ज पर खजाना सिमसिम निकालकर डालने का चाकचौबंद इंतजाम के पीछे यह विशुध पेटीएम करिश्मा है।

अंग्रेजी दैनिक हिंदुस्तान की इस खबर पर गौर करेंः

The Reserve Bank of India (RBI) recommended demonetisation of 500- and 1,000-rupee banknotes hours before Prime Minister Narendra Modi announced the surprise move in a televised address to the nation in the evening of November 8.

मतबल कि आठ नवंबर को ही पीएम के राष्ट्र को संबोधन से कुछ ही घंटे पहले भारतीय रिजर्व बैंक ने पांच सौ और एक हजार के नोट रद्द करने की सिफारिश कर दी थी।गौर करें कि कुछ ही घंटों में सिफारिश लागू भी कर दी गयी तो बिना पीएमओ की हरी झंडी के बिना सिफारिश के कुछ ही घंटों में महीनों की तैयारी की असलियत समझ  लें।

अब इस टिप्पणी पर भी गौर करेंः

The government and the RBI have kept the consultation process that led to the decision to demonetise 86% of India's cash in circulation a closely-guarded secret. Both, however, have insisted that the demonetisation plan had been under discussion for long and consultations were being held.

मतबल कि नोटबंदी के सिलसिले में सरकार और आरबीआई के बीच विचार विमर्श चल ही रहा था और इसीके नतीजतन अत्यंत गोपनीयता के साथ भारवर्ष में 86 फीसद नकदी बाजार में प्रचलन से बाहर कर दी गयी।हालांकि दोनों पक्षों का दावा यह रहा है नोटबंदी की योजना पर लंबे समय तक विचार विमर्श जारी रहा है।

इससे पहले यह तथ्य जगजाहिर है कि राष्ट्र के नाम संबोधन पीएम ने रिकार्डेड दिया तो कुछ ही घंटों के भीतर सिफारिश और अमल के बीच यह राष्ट्र के नाम संबोधन कब रिकार्ड किया गया था?

जाहिर है कि आम जनता की जेबों पर छापे डालने के लिए यह नोटबंदी भी बिना रिजर्व बैंक की सिफारिश के पीएमओ से सीधे हो गयी।सिफारिश तो खानापूरी के लिए रस्म अदायगी है।जिसकी कोई तैयारी नहीं है।यह विशुध मजहबी सियासत है।

गौरतलब है कि The Reserve Bank of India Act, 1934, empowers the Union government to demonetise any series of banknotes. The government, however, cannot take this decision on its own, but only on the recommendation of the RBI's central board.

यानी रिजर्व बैंक आफ इंडिया एक्ट,1934 के मुताबिक केंद्र सरकार को नोट रद्द करने का अधिकार मिला है।लेकिन सरकार रिजर्व बैंक की सिफारिश के बिना नोट रद्द नहीं कर सकती।जाहिर है कि राष्ट्र के नाम संबोधन रिकार्ड होने के बाद रिजर्व बैंक से यह सिफारिश वसूल कर ली गयी।

वही सिफारिश आठ नवंबर को नोटबंदी के ऐलान से कुछ घंटों पहले की गई। खबर के मुताबिक, केंद्र सरकार को नोटबंदी की सिफारिश करने के लिए दस में से आठ बोर्ड मेंबर्स ने मीटिंग की थी। हालांकि, कानून के हिसाब से बोर्ड में 21 सदस्य होने चाहिए। जिसमें से 14 स्वतंत्र होते हैं। लेकिन फिर भी बोर्ड लगभग आधे लोगों ने से काम चला रहा है। नोटबंदी के ऐलान से पहले ही तैयारियां जोरों पर थीं। बैंक ने 2000 के नोट के रूप में 4.94 लाख करोड़ की करेंसी पहले ही छाप ली थी। रिजर्व बैंकके अधिकारियों के मुताबिक, वह अनुमति या सिफारिश सिर्फ औपचारिकता के लिए थी।

आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संदेश में नोटबंदी की घोषणा की और रिजर्व बैंककी तरफ से उन्हें यह प्रस्ताव कुछ देर पहले ही मिला था।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सूचना के अधिकार के तहत उसके सवालों के जवाब में आरबीआई ने बताया कि केंद्रीय बैंकके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने 8 नवंबर को हुई बैठक में नोटबंदी की सिफारिश पारित की थी। इस बैठक में 10 बोर्ड मेंबर्स में से केवल आठ ही शरीक हुए थे, जिनमें आरबीआई प्रमुख उर्जित पटेल, कंपनी मामलों के सचिव शक्तिकांत दास, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर आर गांधी और एसएस मुंद्रा शामिल थे। यहां आरबीआई बोर्ड की बैठक और प्रधानमंत्री के नोटबंदी के बीच सरकार के पास बैंकके आधिकारिक प्रस्ताव पर अमल के लिए कुछ ही घंटों का वक्त था।

आरटीआई के जवाब में मिली जानकारी के मुताबिक 8 नवंबर को रिजर्व बैंक के पास 2,000 रुपये के नए नोटों में 4.94 लाख करोड़ रुपये थे। यह राशि नोटबंदी में अमान्य हुए करीब 20 लाख करोड़ रुपये के एक चौथाई से भी कम थी।इसीसे तैयारी का अंदाजा लगा लीजिये।

अब रिपोर्ट्स के मुताबिक आरबीआई रोज लगभग सभी डिनॉमिनेशन्स के 1 करोड़ 90 लाख नोट छाप रहा है। इसके बाद भी कैश की कमी की असली वजह क्या है ?

गौरतलब है कि Economic affairs secretary Shaktikanta Das told reporters on November 8 that there was "no need to go into the process which led to this decision. I think what we should be focusing on is the outcome and the decision itself".राजस्व सचिव शक्तिकांत दास नें 8 नवंबर को ही पत्रकारों से कहा थी नोटबंदी के फैसले  की प्रक्रिया के बारे में कुछ भी मत पूछिये।इसके नतीजे देखते रहिये।

सारा देश नतीजा भुगत रहा है और दुनिया देख रही है।हमारा मीडिया अंधा है,जिसे कुछ भी नहीं दिखायी दे रहा है।



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