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कहां हैं वे टीन की तलवारें? असम का यह यंत्रणा शिविर अब भारत का जलता हुआ सच है और हिंदुत्व के एजंडे का ट्रंप कार्ड भी। अमेरिका में ताजा हमले हिंदू और सिख भारतीयों पर हुए हैं।इसलिए ट्रंप के हिंदुत्व की परिभाषा कुल मिलाकर वहीं है,जो भारत में संघ परिवार के हिंदुत्व की है।गौरतलब है कि हिंदुत्व के तमाम सिपाहसालारों के मुसलमानों के कुलीन तबके से रोटी बेटी का रिश्ता है,जिसके ब्यौरे सार्व�

Next: उद्योग कारोबार के संकट के हल के लिए हिंदुत्व सुनामी काफी नहीं है!आगे बेहद खतरनाक मोड़ है! कालाधन से वोट खरीदे जा सकते हैं लेकिन इससे न अर्थ व्यवस्था पटरी पर आती है और न उद्योग कारोबार के हित सधते हैं। वैश्विक इशारे बेहद खतरनाक, बेरोजगारी, भुखमरी और मंदी के साथ व्यापक छंटनी का अंदेशा,टूटने लगा बाजार।सुनहला तिलिस्म। इसीलिए बनारस में तोते की जान दांव पर है और कालाधन गंगाजल की तरह पवित
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कहां हैं वे टीन की तलवारें?

असम का यह यंत्रणा शिविर अब भारत का जलता हुआ सच है और हिंदुत्व के एजंडे का ट्रंप कार्ड भी।

अमेरिका में ताजा हमले हिंदू और सिख भारतीयों पर हुए हैं।इसलिए  ट्रंप के हिंदुत्व की परिभाषा कुल मिलाकर वहीं है,जो भारत में संघ परिवार के हिंदुत्व की है।गौरतलब है कि हिंदुत्व के तमाम सिपाहसालारों के मुसलमानों के कुलीन तबके से रोटी बेटी का रिश्ता है,जिसके ब्यौरे सार्वजनिक हैं और उन्हें दोहराने की जरुरत नहीं है।

पलाश विश्वास

2003 में नागरिकता छीनने का काला कानून पास होने के बाद आधार योजना के शुरुआती दौर से इस गैर संवैधानिक निजी कारपोरेट उपक्रम के खिलाफ हम लिखते बोलते रहे हैं।काल आधी रात के बाद हमें फेसबुक लाइव के जरिये फिर आपकी नींद में खलल डालने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि अब मिड डे मिल के लिए भी बच्चों और रसोइयों के लिए केंद्र सरकार ने आधार कार्ड को अनिवार्य बना दिया है।सिर्फ बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया है,लेकिन वे भी आधार के विरोध में नहीं है।नागरिकों की स्वतंत्रता,संप्रभूता,निजता गोपनीयता की क्या कहें,भारत में मीडिया और राजनीति के नजरिये से नागरिकों की जान माल की कोई परवाह नहीं है।

अमेरिका से लेकर एशिया के कोरिया जापान तक में एक एक नागरिक के लिए सरकार, सेना,राजनीति,राजनय और समूची अर्थव्यवस्था एकजुट हो जाती है,उसकी कोई परिकल्पना हमारे लोकतंत्र में नहीं है।आम नागरिकों की सेहत पर नोटबंदी जैसे जनसंहारी  नस्ली अभियान का कोई असर नहीं हुआ है।असहिष्णुता के अंध राष्ट्रवाद की पैदल सेना अब जुबांबंदी के हक में मुहिम चला रही है।

भोपाल गैस त्रासदी,गुजरात नरसंहार,सिख संहार,बाबरी विध्वंस,दंगाई मजहबी सियासत, नस्ली हिंसा अब भारत की राजनीतिक संस्कृति है।

दमन उत्पीड़न और सैन्यशासन का भक्तमंडली अखंड कीर्तन की तर्ज पर समर्थन करती है तो राम की सौगंध खाकर तमाम संवैधानिक प्रावधानों,नागरिक अधिकारों, मानवाधिकारों और उनके ही अपने मौलिक अधिकारों की हत्या के कार्निवाल को वे विकास मानते हैं।

कारपोरेट एकाधिकार पूंजी ने राजनीति के साथ मीडिया,माध्यमों,विधायों,लोक और जनपदों की हत्या भी कर दी है।

ऐसे हालात में चाहे देश में हो या विदेश में कीड़े मकोड़े की तरह भारतीय नागरिकों के मारे जाने के बावजूद सत्ता वर्ग की बात तो छोड़ ही दें,आम जनता में भी इसे लेकर कोई हलचल उसीतरह नहीं होती जैसे भुखमरी, बेरोजगारी,स्त्री उत्पीड़न,रेल दुर्घटना, बाढ़, भूकंप, लू, शीतलहर, महामारी या सैन्य दमन में मारे जाने वाले नागरिकों के लिए किसी की आंखों में न दो बूंद पानी होता है और न कही कोई मोमबत्ती ऐसे कीड़े मकोड़े नागरिकों के लिए जलती है।

आपातकाल के खिलाफ उत्पल दत्त ने उन्नीसवीं सदी के आखिरी दौर के बंगाल के साम्राज्यवादविरोधी रंगकर्म की कथा पर टीनेर तलवार नाटक लिखा था, जिसका मंचन बांग्ला के साथ हिंदी में भी होता रहा है,राजकमल प्रकाशन ने हिंदी में वह नाटक भी प्रकाशित किया है।

समूचा कुलीन सत्ता तबका जब साम्राज्यवाद और सामंतवाद को जारी रखने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,नागरिक और मानवाधिकार के खिलाफ हो तो तुतूमीर के आदिवासी किसान विद्रोह की कथा कैसे मनुस्मृति शासन की चूलें हिला देती हैं,उत्पल दत्त ने उस दौर को मंच पर उपस्थित करके बता दिया है।

तुतूमीर के विद्रोह  के बारे में दिवंगत महाश्वेता दी ने विस्तार से लिखा है,जो हिंदी पाठकों को उपलब्ध भी है।

आज हम उसी अंधकार के दौर में है जहां नव जागरण के खिलाफ हिंदुत्व का एजंडा साम्राज्यवाद और सामंतवाद  के औपनिवेशिक शासन के हक में आम जनता को रौंद रहा था।उस वक्त रंगकर्म ने अपनी टीन की तलवारों से सत्ता और राष्ट्रशक्ति का प्रतिरोध किया था।बीसवीं सदी में यह काम इप्टा ने किया है।

मैने उस नाटक के उत्पल दत्त के मंचन के वीडियो कल व्यापक पैमाने पर शेयर किया है तो आज उस नाटक का पीडीएफ भी जारी किया है।बांग्ला और अंग्रेजी में उपलब्ध सामग्री भी शेयर की है।हिंदी में कोई समाग्री नहीं मिली,जिनके पास हों,वे कृपया शेयर करें।

डान डोनाल्ड के हिंदुओं के प्रति प्यार के दावे के साथ मुसलमानों के खिलाफ जारी नस्ली सफाया अभियान में हाल में तीऩ भारतीयों पर हमले हुए हैं,जिनमें कोई मुसलमान नहीं है।जाहिर है इसे साबित करने की जरुरत नहीं है कि अमेरिकी रंगभेद के नजरिये से लातिन अमेरिका,अफ्रीका और एशिया से अमेरिका जा पहुंचे तमाम काले लोग इस नरमेध अभियान के निशाने पर हैं,सिर्फ मुसलमान नहीं।

अमेरिका में ताजा हमले हिंदू और सिख भारतीयों पर हुए हैं।इसलिए  ट्रंप के हिंदुत्व की परिभाषा कुल मिलाकर वहीं है,जो भारत में संघ परिवार के हिंदुत्व की है।गौरतलब है कि हिंदुत्व के तमाम सिपाहसालारों के मुसलमानों के कुलीन तबके से रोटी बेटी का रिश्ता है,जिसके ब्यौरे सार्वजनिक हैं और उन्हें दोहराने की जरुरत नहीं है।

दरअसल जैसे ट्रंप मुसलमानों के खिलाफ जिहाद छेड़कर पूरी अश्वेत दुनिया के सफाये पर आमादा है वैसे ही भारत में मुसलमानों के खिलाफ संघ परिवार के धर्मयुद्ध में मारे जाने वाले तमाम दलित,आदिवासी,पिछड़े ,किसान ,मेहनतकश तबके के लोग हैं, जिन्हें मनुस्मृति राज बहाल रखने के लिए बतौर पैदल सेना बजरंगी बना देने के समरसता अभियान के बावजूद संघ परिवार ने कभी हिंदू माना नहीं है।

ताजा खबरों के मुताबिक अमेरिका में भारतीयों के खिलाफ हेट क्राइम का मामला बढ़ता ही जा रहा है। एक सिख को मास्क पहने एक गनमैन ने 'वापस अपने देश जाओ' चीखने के बाद गोली मारकर घायल कर दिया। पिछले कुछ दिनों यूएस में भारतीयों के खिलाफ हेट क्राइम का तीसरा मामला है।  39 वर्षीय सिख युवक दीप राय के साथ यह वारदात शुक्रवार को उस समय हुई जब वह वॉशिंगटन के केंट स्थित अपने घर के बाहर कार की मरम्मत कर रहे थे। पीड़ित ने पुलिस को बताया कि मास्क पहने एक आदमी आया और बहस करने लगा। उसने 'वापस अपने देश जाओ' चीखने के बाद हाथ में गोली मार दी।

भारत में गुजरात नरसंहार की तरह सिख संहार की कथा भी कम भयानक नहीं है,जिसमें कटघरे में श्रीमती इंदिरा गांधी और उनकी सरकार है,काग्रेस के तमाम नेता हैं।लेकिन इस सिख संहार के आगे पीछे संघ परिवार का खुल्ला समर्थन है।

1984 में सिख संहार को जायज बताकर संघ परिवार ने अपनी पार्टी भाजपा  के खिलाफ राजीव गांधी की कांग्रेस का हिंदु हितों के नाम समर्थन किया था।

यही नहीं,पंजाब में इस कत्लेआम के लिए जो अकाली राजनीति रही है,उसकी कमान शुरु से लेकर अब तक संघ परिवार के हाथों में हैं।

एकदम ताजा उदाहरण असम का है जहां भाजपा की सरकार है और राजकाज उल्फाई है।संघ परिवार को जिताने में हिंदू शरणार्थियों के वोट बैंक की निर्णायक भूमिका है। देश भर में छितरा दिये गये पूर्वी बंगाल के दलित हिंदू शरणार्थी संघ परिवार के समर्थक बन गये हैं तो बंगाल में भी धार्मिक ध्रूवीकरण में हिंदू बंगाली शरणार्थी और दलित मतुआ समुदाय संघ परिवार के पाले में हैं।

भारत भर में बंगाली शरणार्थियों के ज्यादातर नेता कार्यकर्ता संघ परिवार के कट्टर समर्थक बन गये हैं क्योंकि उनकी नागरिकता छीनने वाले संघ परिवार के नेता,केंद्र और भाजपाई राज्य सरकारों के नेता उनकी नागरिकता बहाल करने का दावा कर रहे हैं।संघ परिवार हिंदुओं को नागरिकता देने का ऐलान करके समूचे असम समेत पूर्वोत्तर और बंगाल में अभूतपूर्व धार्मिक ध्रूवीकरण करके राजनीतिक सत्ता दखल करने की चाक चौबंद तैयारी कर रहा है।

दूसरी ओर, असम में इन्हीं हिंदू शरणार्थी परिवारों को संदिग्ध घुसपैठिया बताकर दूधमुंहे बच्चों और स्त्रियों समेत हिटलर के नाजी यंत्रणा शिविर की तरह डिटेंनशन कैंपों में कैदी बनाकर उनपर तरह तरह का उत्पीड़न जारी है।

भाजपा के उल्फाई राजकाज में सारा असम हिंदू दलित शरणार्थियों के लिए यंत्रणा शिविर में तब्दील है,जहां नये सिरे से साठ के दशक की तर्ज पर उल्फाई तत्वों बंगालियों के खिलाफ दंगा भड़काने की कोशिश की जा रही है तो दूसरी ओर,हिंदू शरणार्थियों को असम के मुसलमानों के खिलाफ उकसा कर धार्मिक ध्रूवीकरण का खेल हिंदुत्व के नाम जारी है।

असम का यह यंत्रणा शिविर अब भारत का जलता हुआ सच है और हिंदुत्व के एजंडे का ट्रंप कार्ड भी।

इसी हिंदुत्व की राजनीति के तहत साठ के दशक से असम में भारत के दूसरे राज्यों से आजीविका,नौकरी और कामकाज के सिलसिले में बसे बंगालियों, हिंदी भाषियों, बिहारियों और मारवाड़ियों के खिलाफ बारी बारी से दंगा होते रहे हैं।

धार्मिक ध्रूवीकरण के संघ परिवार के कारनामों पर न सुप्रीम कोर्ट और न चुनाव आयोग कोई अंकुश रख पाया है और न सुप्रीम कोर्ट की निषेधाज्ञा के बावजूद आधार अनिवार्य बनाने का सिलसिला थमा है।

अंध राष्ट्रवाद ने नागरिकों का विवेक, चेतना, ज्ञान और दिलोदिमाग तक को इस तरह संक्रमित कर दिया है कि सत्ता और सरकार की नरसंहारी नीतियों की आलोचना भी कोई सुनने को तैयार नहीं है और आम जनता की तकलीफों और उनके रोजमर्रे की नर्क जैसी जिंदगी की कहीं सुनवाई है।

अब मणिपुर के राजपिरवार के उत्तराधिकारी को सामने रखकर मणिपुर जैसे अत्यंत संवेदनशील राज्य में वैष्णव मैतई समुदाय को नगा और दूसरे आदिवासी समुदाओं से भिड़ाने का खतरनाक खेल संघ परिवार राष्ट्र की एकता,अखंडता और संप्रभुता को दांव पर लगाकर खेल रहा है और हिंदुत्व के एजंडे के मुताबिक यही उनका ब्रांडेड राष्ट्रवाद और देशभक्ति है।

रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या और अभी अभी कोल्हापुर में अंबेडकरी विचारक लेखक शिक्षक किरविले की हत्या के बाद यह अलग से समझाने का मामला नहीं की कि किस तरह भीम ऐप और अंबेडकर के नाम समरसता अभियान के तहत दलितों और अंबेडकर मिशन के खात्मे का काम संघ परिवार कर रहा है,यही रामराज्य का मनुस्मृति एजंडा है।

निखिल भारत बंगाल उद्वास्तु समिति के अध्यक्ष सुबोध विश्वास ने कोकड़ाझाड़ के डिटेनशन कैंप के बारे में एक अपील पेसबुक पर जारी की हैः

মানবিক আপিল:-

আসমে কোকরাঝাড ডিটেনশন ক্যাম্পে ১৩ জন উদ্বাস্তু শিশু বন্দী আছে ।তৎমধ্যে ১ জন শিশুর বয়স এক বৎসর এবং ১৩৩ জন মহিলা । মোট ১৪৬ জন হিন্দু উদ্বাস্তু ডিটেনশন ক্যাম্পে নারকীয় যন্ত্রনা ভোগ করছে । তাদের মুক্তির রাস্তা এপ্রকারে বন্দ। নিখিল.ভারত বাঙালি.উদ্বাস্তু সমন্বয়.সমিতিএবং অল বি টি এ ডি যুবছাত্র ফেডারেশন যৌথভাবেপক্ষথেকে আমরা আগামী ৯ ই মার্চ তাদের সংগে দেখাকরতে ডিটেনশন ক্যাম্পে যাব। তাদের মুক্তির কোন আইনি রাস্তা খুঁজে বেরকরা যায় কিনা , সেদিক খতিয়ে দেখতে চার জন বিশিস্ট আইনজীবী সংগে থাকছেন। আসামের নাগরিকত্ব আইনের জালে এমন ভাবে ষড়যন্ত্র মূলক তাদের আটকিয় দেওয়া হয়েছে, একথায় নাগরিকত্ব আইনের অজুহাতে বাঙালি বিদ্বেষ নীতির বহিপ্রকাশ । লক্ষ লক্ষ উদ্বাস্তুদের ডি ভোটার করাহয়েছ। শত শত উদ্বাস্তু ডিটেনশন ক্যাম্পে বন্দী।একদিকে উল্ফার মত জাতিয়তা বাদী উগ্রবাদী সংগঠন, অন্যদিকে প্রশাসনিক সন্ত্রাস। বাঙালিদের স্বমূলে আসাম থেকে উৎক্ষাত করার ষড়যন্ত্র।তাদের আমরা শাড়ী , জামাকাপড় ও শিশুদের বই বিতরনের সিধান্ত নেওয়া হয়েছে। নিখিল ভারত একটা সামাজিক সংগঠন। ভিক্ষা অনুদান ও আপনাদের সহযোগীতার উপর সংগঠন চলে। আমাদের তেমন কোন ফান্ড নেই।

অসহায় হতভাগ্যদের পিছনে আপনার সামান্য আর্থিক অনুদান তাদের মুখে ক্ষনিকের জন্য হাশিফুটাতে পারে। তাদের পাশে দাড়ালে তারা বেচেথাকার আত্মশক্তি খুজেপাবে। তাদের মুক্তি করাতেই হবে।আপনাদের সার্বিক সহযোগীতা আমরা আশাকরি। উল্লেখ্য এছাড়া অন্য ক্যাম্পে বন্দী আছে অনেক উদ্বাস্তু। তাদের সংখ্যা পরে জানাতে পারব। নিখিল ভারত সমিতি এবং অল টি এ ডি যুবছাত্র ফেডারেশন যৌথভাবে এই মহতী কার্যে যোগদান দিচ্ছে।এই যোগদানের জন্য যুবছাত্র ফেডারেশন কে ধন্যবাদ ধন্যবাদ জানাই।

অসম সফরে থাকছেন . সর্ব ভারতীয় সভাপতি ডা সুবোধ বিশ্বাস, সম্পাদক অম্বিকা রায়, (দিল্লী)শ্রী বিরাজ মিস্ত্রী, IRS প্রাক্তন কমিশনার, ডা আশিস ঠাকুর, এ্যাড মুকুন্দ লাল সরকার, সাহিত্যিক নলিনী রজ্ঞন মন্ডল শ্রী গোবিন্দ দাস ( কলকাতা)শ্রী বিনয় বিশ্বাস এ্যাড আর আর বাঘ ( দিল্লী) শ্রী অশোক মন্ডল (রাজস্থান) দয়াময় বৈদ্য( উত্তর বঙ্গ) সংগে থাকছেন আসাম রাজ্যকমিটির সভাপতি এ্যাড সহদেব দাস. ব্যানীমাধব রায়. শ্যামল সরকার. উপদেষ্টা , যুব ছাত্র ফেডারেশন,মন্টু দে সভাপতি, অল বি টি এ ডি যুব ছাত্র ফেডারেশন। সবাইকে স্বার্থে শেয়ার করুন।

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