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घुमक्कड़ छायाकार , प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी अपने घर में पंखे से लटके मिले,भयंकर त्रासदी हम तमाम लोगों के लिए! पलाश विश्वास
घुमक्कड़ छायाकार , प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी अपने घर में पंखे से लटके मिले,भयंकर त्रासदी हम तमाम लोगों के लिए!
पलाश विश्वास
मन बेहद उदास था।कई दिनों से पढ़ना लिखना बंद सा है।इतना घना अंधेरा दसों दिशाओं में है कि रोशनी की कोई किरण दीख नहीं रही है।अभी अभी फेसबुक खोला तो जगमोहन रौतेला के पोस्ट से पता चला है कि घुमक्कड़ छायाकार , प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी जी का आकस्मिक निधन आज 3 जुलाई 2017 को कोटद्वार में हो गया है , वे अपने घर में पंखे से लटके मिले !
हम जिस कमल जोशी को जानते पहचानते हैं,उसके ऐसे दुःखद अंत की कोई आशंका कभी नहीं थी।
गिर्दा जब चले गये, वीरेनदा ने भी जब सांसें तोड़ी,तो इस आशंकित अंत के लिए हम लंबे अरसे से तैयार थे।लेकिन इस हादसे के मुखातिब हो सकने की कोई तैयारी नहीं थी।
पर्यावरण का मुद्दा जन प्रतिरोध का एक मात्र रास्ता है और इस सिलसिले में मैं सविता के साथ 2014 में देहरादून गया था। हमारे आदरणीय मित्र राजीव नयन बहुगुणा हमारे मेजबान थे और चूंकि हमें उनके पिता सुंदर लाल बहुगुणा से मिलना था तो राजीव दाज्यू से ही ठहरने के इंतजाम के लिए कहा था।
कोलकाता से रवानगी से पहले कोटद्वार में कमल दाज्यू को फोन कर दिया था कि आ जाओ,देहरादून। अरसे से नहीं मिले।
इससे करीब दस साल पहले सविता और मैं दिल्ली में बीमार ताउजी को देखने के बाद उधम सिंह नगर में अपने गांव बसंतीपुर के रास्ते बिजनौर में सविता के मायके में ठहरे थे और कमल दाज्यू का आदेश हुआ था, कोटद्वार आ जाओ।हम रवाना होने ही वाले थे कि दिल्ली से भाई ने ताउजी के निधन का समाचार दिया।उऩका पार्थिव शरीर दिल्ली से बसंतीपुर रवाना हो चुका था,तो हम तब कोद्वार जा नहीं सके थे।फिर कभी कोटद्वार जाना नहीं हो सका।सचमुच,हिमालय से कोलकाता की दूरी बहुत ज्यादा है और हम अब भी कोटद्वार पहुंच नहीं सकते।
सविता ने उन्हें देखा तक नहीं था।हम नैनीताल जब भी हम गये, कमल जोशी आगे पीछे निकलते रहे थे।
राजीव नयन दाज्यू और किशोरी उपाध्याय ने गोलकुंडा हाउस में हमारे ठहरने का इंतजाम किया।
रात को दस बजे के करीब भारी बारिश के बीच कमल जोशी हाजिर हो गये।कहा कि राजस्थान के लिए ट्रेन पकड़नी है।
हमने कहा कि कैसे यहां तक पहुंचे।बोले किसी की बाइक ले आया हूं।देर रात तक खूब गप्पे हुईं,,पुराने दिन और पुराने साथियों को याद किया।
सविता से कमल दाज्यू की यह पहली और आखिरी मुलाकात थी।
वे जाने लगे तो मैंने यूंही पूछ लिया, इतने बरस हो गये, इतने बड़े फोटोकार हो,तुमने हमारी कोई तस्वीर नहीं खींची और आज भी कैमरा लेकर नहीं आये।
गर्मजोशी के साथ कमल जोशी बोले,फिर मिलेंगे न,तभी खींचेंगे फोटो।
हमारी कोई तस्वीर खींचे बिना हमारे सबसे प्रिय फोटो कलाकार इस तरह चले गये,यह भी यकीन करना होगा।
विपिन चचा,निर्मल जोशी,निर्मल पांडे का निधन भी असमय हुआ और झटका भी तगड़ा लगा लेकिन उऩमें से किसी ने इसतरह खुदकशी नहीं की थी।
हमारे प्रिय कवि गोरख पांडेय ने भी खुदकशी की थी और हम सभी कमोबेश यह जानते थे कि किन कारणों से ,किन परिस्थितियों में उन्होंने खुदकशी की।
कमल दाज्यू के इस तरह पंखे से लटक जाने की कोई वजह समझ में नहीं आ रही है।
हम जब एमए कर रहे थे,तो कमल जोशी रसायन शास्त्र में शोध कर रहे थे।यूं तो वे शेखर दाज्यू और उमा भाभी के दोस्त थे, लेकिन हम लोगों से दोस्ती करने में उन्होंने कोई देर नहीं लगायी। डीएसबी के कैमिस्ट्री लैब में वे हमेशा दूध चीनी रखते थे।
सर्दी की वजह से हम नैनीताल में गुड़ के साथ चाय पीते थे।लेकिन कैमिस्ट्री लैब में कमल जोशी बीकर को बर्नर पर रखकर चाय बनाते थे और वह चाय हम परखनली में पीते थे।
ऐसी चाय फिर हमने जिंदगी भर नहीं पी।
गिरदा बेहद मस्त और मनमौजी थे।
कमल जोशी की तुलना उन्हीं से की जा सकती है।
दोनों खालिस कलाकार थे।
दोनों पहाड़ का चप्पा चप्पा जानते थे।
फिरभी गिरदा को नापसंद करने वाले लोग कम नहीं थे।लेकिन कमल जोशी को नापसंदकरने वाला कोई शख्स मुझे आज तक नहीं मिला।
अपनी सोच, अपनी सक्रियता और अपनी समझ में भी कमल दाज्यू की तुलना सिर्फ गिर्दा से की जा सकती है।
बरसों पहले उनके पिता घर से निकलकर लापता हो गये और कभी नहीं लौटे।पहाड़ को छानते रहने के बावजूद कमल जोशी की उनसे दोबारा मुलाकात हुई नहीं।
वे नैनीताल छोड़ने के बाद पूरी तरह यायावरी जीवन जी रहे थे और उनकी हर तस्वीर में मुकम्मल पहाड़ नजर आता था।
दुर्गम पहाड़ों के पहाड़ से भी मुश्किल जिंदगी गुजर बसर करने वालों के साथ वे एकात्म हो गये थे।
उनके ख्वाबों,उनकी आकांक्षाओं और उनके संघर्षों के वो जैसे अपने चित्रों में सहेज रहे थे,उन्हें देखकर हम अंदाजा लगाया करते थे कि बंगाल की भुखमरी में चित्र कला मार्फत इतिहास लिखने वाले सोमनाथ होड़ और चित्तप्रसाद जैसे लोग किस तरह चित्र बनाते होंगे।
दिशाएं खोने की वजह से ही शायद ऐसा विक्लप चुनने की सोची होगी कमल दाज्यू ने।
दिशाएं हम लोगों ने भी खो दी हैं।
अब नहीं मालूम कब कहां से इस तरह की खबरें हमारा इंतजार कर रही हैं और पता नहीं ,दिशाएं खो देने की स्थिति में हममें से कितने लोग इस तरह की त्रासदी से अपना जीवन का अंत कर देंगे।
जगमोहन रौतेला ने लिखा हैः
*** दुखद खबर ****
..............................
बड़े दुख और पीड़ा के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि घुमक्कड़ छायाकार , प्रसिद्ध यायावर कमल जोशी जी का आकस्मिक निधन आज 3 जुलाई 2017 को कोटद्वार में हो गया है . वे अपने घर में पंखे से लटके मिले ! एक घुमक्कड़ , यायावर , पहाड़ को बहुत ही नजदीक से जानने समझने , उसके लिए हमेशा चिंतित रहने वाले व्यक्ति का यूँ अचानक से चला जाना बहुत ही पीड़ादायक है . कल ही उन्होंने देर रात को इतिहासकार डॉ. शेखर पाठक से फोन पर बात की थी . पर कहीं से भी कोई तनाव उनकी बातों में नहीं था . फिर अचानक आज क्या हो गया ? किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा है .
ये क्या किया कमल दा आपने ? क्या कोई भी ऐसा नहीं था जिसे आप अपने मन की कह सकते थे ? क्या इतने सारे मित्रों व शुभचिंतकों के बाद भी आप इतने अकेले थे ? जो पूरे उत्तराखण्ड में हमेशा घुमक्कड़ी करता रहता हो , वह इतना अकेला , बेबस कैसे हो सकता है कमल दा ! क्या कहूँ ? क्या लिखूँ ? समझ नहीं आ रहा है . आप हमेशा याद आवोगे कमल दा !
अलविदा कमल दा ! अलविदा !! और क्या कहूँ ? आखिरी विदाई तो मन मारकर देनी ही पड़ेगी ना आपको !
Now communal riots in Bengal! Palash Biswas
An 'objectionable' Facebook post about a religious site has triggered communal clashes in West Bengal's North 24 Parganas district, prompting the Centre to rush 300 paramilitary personnel on Tuesday to bring the situation under control.
West Bengal Chief Minister Mamata Banerjee said the clashes broke out between two communities in Baduria of the Basirhat sub-division over the "objectionable" post.
The clashes led to a war of words between the chief minister and Governor Keshari Nath Tripathi. Briefing the media at the state secretariat, Banerjee accused Tripathi of threatening her over phone and alleged that he was acting like a "BJP block president".
"He (Governor) threatened me over phone. The way he spoke, taking the side of BJP, I felt insulted. I have told him that he cannot talk like this," Banerjee told reporters.
"He (the governor) is behaving like a block president of BJP. He should understand that he has been nominated to the post…," she said. "He talked big on law and order. I am not here at the mercy of anyone. The way he spoke to me, I once thought of leaving (the chair)."
Meanwhile, the BJP alleged that over 2000 Muslims attacked Hindu families in the North 24 Parganas district of West Bengal and its offices at several places were set on fire. Accusing the state police of failing to control the situation, party general secretary Kailash Vijayvargiya, who is also in charge of the state, urged Home Minister Rajnath Singh to intervene in the matter.
Several shops were torched and houses ransacked in Baduria, Tentulia and Golabari. On Monday night, a mob attacked Baduria police station and set ablaze several police vehicles.
আহত পুলিশ সুপার, বাদুড়িয়ায় গেল বিএসএফ, আসছে আধা সেনাও
Story image for bengal communal riots from The Indian Express
Communal violence in West Bengal over 'objectionable' Facebook ...
The Indian Express-3 hours ago
Communal violence broke out in North 24 Parganas district of West Bengal on Tuesday over a Facebook post prompting Centre to rush 300 ...
Communal riots in Baduria, West Bengal over objectionable ...
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West Bengal: Communal violence in Baduria over objectionable FB ...
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Communal riots turn Bengal's Baduria into battlefield, Central forces ...
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Mamata Banerjee says communal violence breaks out in West ...
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Mob goes on rampage in Bengal over blasphemous FB post ...
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আহত পুলিশ সুপার, বাদুড়িয়ায় গেল বিএসএফ, আসছে আধা সেনাও
ABP Anand Reports
কলকাতা: সাংবিধানিক প্রধানের সঙ্গে রাজ্যের প্রশাসনিক প্রধানের সরাসরি সংঘাত!
যা ঘিরে রাজ্য রাজনীতিতে শোরগোল। চরমে তৃণমূল-বিজেপি চাপানউতোর।
উত্তর ২৪ পরগনার বাদুড়িয়ার একটি ঘটনাকে কেন্দ্র করে ঘটনার সূত্রপাত। পুলিশ সূত্রে খবর, সম্প্রতি ফেসবুকে একটি পোস্ট করে একাদশ শ্রেণির এক ছাত্র। পোস্টে তাদের ভাবাবেগে আঘাত লেগেছে, এই অভিযোগ তুলে রবিবার ওই ছাত্রের বাড়ির সামনে জমায়েত হয় একটি গোষ্ঠী। পুলিশ পদক্ষেপের আশ্বাস দিলে তারা সরে যায়।
৩ জুলাই ভোরে ওই স্কুলছাত্রকে গ্রেফতার করে পুলিশ।
কিন্তু ওইদিনই বাদুড়িয়ার মোড়ে-মোড়ে অবরোধ শুরু করে অপর গোষ্ঠীর লোকজন। দুপুর পর্যন্ত পরিস্থিতি স্বাভাবিক ছিল। কিন্তু বিকেলের দিকে বেশ কিছু জায়গায় দুই গোষ্ঠীর মধ্যে সংঘর্ষ বাধে। অশান্তি ছড়ায় বসিরহাট ও দেগঙ্গার একাংশে।
মঙ্গলবার সকাল থেকে অনন্তপুর, মালতিপুর-সহ একাধিক স্টেশনে অবরোধ শুরু করে একটি গোষ্ঠী। এদিনই, সশস্ত্র মিছিলের অভিযোগকে কেন্দ্র করে উত্তপ্ত হয়ে ওঠে বসিরহাট শহর। সূত্রের খবর, পুলিশের একাধিক গাড়িতে ভাঙচুর করা হয়। অপর গোষ্ঠীর কয়েকজনকে মারধরেরও অভিযোগ উঠেছে।এরপর পরিস্থিতি আরও অশান্ত হয়ে ওঠে। কয়েকটি জায়গায় গুলি-বোমা নিয়ে দুই গোষ্ঠীর সংঘর্ষ হয়। অশান্তির জেরে দীর্ঘক্ষণ থানা থেকে বেরোতে পারেনি বাদুড়িয়ার পুলিশকর্মীরা। ঘটনা সামলাতে গিয়ে উত্তর ২৪ পরগনার পুলিশ সুপার আহত হন।
এই পরিস্থিতিতে, মধ্যমগ্রামের ক্যাম্প থেকে থেকে বাদুড়িয়ায় পৌঁছেছে বিএসএফ।
নবান্ন সূত্রে খবর, কলকাতা পুলিশের একটি টিমও বাদুড়িয়া যাচ্ছে।
হাওড়ার পুলিশের কমিশনারের নেতৃত্বেও একটি দল বাদুড়িয়ার উদ্দেশ্যে রওনা দিয়েছে।
সূত্রের খবর, কেন্দ্র ৩ কোম্পানি আধা সামরিক বাহিনী পাঠাচ্ছে।
गोडसे भक्तों को गांधी का वास्ता : ये मजाक सिर्फ मोदी ही कर सकते हैं
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RSS is all set to push for President`s rule in West Bengal with full bloom Cow Politics.CPIM opposes. Mamata deploys sixty thousand peacekeeping committee civilians to counter RSS Game plan of communal violence.Should be replicated elsewhere. Palash Bisw
बंगाल के बेकाबू हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात। इजराइल से दोस्ती की प्रतिक्रिया में इस्लामी कटट्रपंथी भी अब हर मायने में गोरक्षकों के बराबर खतरनाक। अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है। पलाश विश्वास
बंगाल के बेकाबू हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात।
इजराइल से दोस्ती की प्रतिक्रिया में इस्लामी कटट्रपंथी भी अब हर मायने में गोरक्षकों के बराबर खतरनाक।
अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है।
पलाश विश्वास
बंगाल में जो बेलगाम हिंसा भड़क गयी है,राजनीतिक दलों की सत्ता की लड़ाई में उसके खतरे पक्ष विपक्ष में राजनीतिक तौर पर बंट जाने से बाकी देश को शायद नजर नहीं आ रहे हैं।
कोलकाता से लगे समूचे उत्तर 24 परगना जिला हिंसा की चपेट में है और पहाड़ में दार्जिंलिग में बंद और हिंसा का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा है।गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने अंतिम लड़ाई का ऐलान कर दिया है और पहाड़ों में बरसात और भूस्खलन के मौसम में जनजीवन अस्तव्यस्त है।
दार्जिलिंग के बाद सिक्किम के नजदीक कलिंगपोंग में भी हिंसा और आगजनी की वारदातें तेज हो गयी है।
सिक्किम सही मायने में दार्जिलिंग जिला होकर वहां तक पहुंचने वाले रास्ते के अवरुद्ध हो जाने की वजह से बाकी देश से अलग थलग पखवाड़े भर से है जबकि सिक्किम सीमा पर युद्ध के बादल उमड़ घुमड़ रहे हैं।
इसी बीच चीन ने मोदी के साथ जी 20 बैठक में बहुप्रचारित शीर्ष बैठक से मना कर दिया है और इसके साथ कश्मीर की तरह सिक्किम में भी अलगाववादियों को समर्थन देने की धमकी दी है।
सिक्किम ही नहीं, गोरखालैंड आंदोलनकारियों को भी अलगाव के लिए चीन समर्थन कर सकता है।
मैदानों में जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर जिले के आदिवासी बहुल इलाके भी आंदोलन के चपेट में आ जाने से उत्तर पूर्व भारत को जोड़ने वाला कुल 18 किमी का कारीडोर के भी टूट जाने का खतरा है जबकि असम और पूर्वोत्तर में अलगाववादी उग्रवादी तत्व भारत से अलगाव के लिए निरंतर सक्रिय है।उत्रपूर्वमें आजादी के बाद केंद्र सरकार की सारी राजनीति इन्हीं तत्वों के समर्थन से चलती है।
असम में जो सरकार बनी है,वह भी अल्फा के समर्थन से है और यह सरकार अल्फाई एजंडा के तहत राजकाज चला रही है।
बंगाल के हालात इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा,एकता और अखंड़ता के लिए बेहद खतरनाक होते जा रहे हैं।जिसे नजरअंदाज करके संघ परिवार बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने के हालात बनाने में लगा है और गोरखालैंड आंदोलन को भी उसका खुल्ला समर्थन है।
कल हस्तक्षेप पर लगे हमारे पोस्ट पर हिंदी के जाने माने कथाकार कर्मेंदु शिशिर ने टिप्पणी की है कि मैंं ममता बनर्जी को क्लीन चिट दे रहा हूं जो खुद दंगा भड़काती हैं।
कृपया हस्तक्षेप के तमाम पुराने आलेख देख लें,हमने कभी ममता बनर्जी का समर्थन नहीं किया है।
हमारे लिए मसला ममता बनर्जी या वामपक्ष का नहीं है।यह सीधे तौर पर भारत की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा का मामला है।
लगातार तीन चार दिनों से उत्तर चब्बीस परगना में हिंसा भड़की हुई है।संघ परिवारे के लोग सोशल मीडिया में उग्र हिंदुत्व के एजंडा के मद्देनजर धार्मिक ध्रूवीकरण के लिए भड़काऊ अफवाहें फैला रहे हैं।बंगाल में हिंदुओ पर अत्याचार हो रहे हैं और बंगाल में हिंदू सुरक्षित नहीं है,यह थीम सांग है।
फोटोशाप का खुलकर इस्तेमाल दंगा भड़काने के लिए हो रहा है।ऐसे पोस्ट विदेशी जमीन से बी हो रहे हैं,जिनपर नियंत्रण लगभग असंभव है।
ताजा पोस्ट एक फिल्म के दृश्य को उत्तर 24 परगना में हिंदू औरतों पर अत्याचार के आरोप के साथ फिल्मकार अपर्णा सेन को संबोधित है।
तो दूसरी तरफ मुस्लिम कट्टरपंथी संगठित तरीके से हिंसा भड़काने में सक्रिय हैं,जिनपर वोटबैंक की राजनीति की वजह से पहले 35 साल तक वाम शासन ने कोई नियंत्रण नहीं किया और तृणमूल जमाने में उनके संरक्षण का हाल यह है कि उत्तर 24 परगना में हिंसा पर सफाई देते हुए इन कट्टरपंथियों को चेताननी देकर मुख्यमंत्री ने कहा है कि आपको हमने बहुत संरक्षण दिया हुआ है और अब हम इस दंगाई तेवर को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
ममता के बयान के मुताबिक सड़कों पर दंगाई भीड़ इतनी बड़ी तादाद में उमड़ रही है कि उन्हें तितर बितर करने के लिए पुलिस गोली चलाये तो सैकड़ों बेगुनाह मारे जायेंगे और इसलिए पुलिस प्रशासन लाठी गोली की बजाय बातचीत से भीड़ को शांत करने की कोशिश कर रही है।
दूसरी ओर दार्जिलिंग के पहाड़ों में गोरखा आंदोलनकारियों के साथ बातचीत की कोई पहल नहीं हो रही है।
पहाड़ और मैदान में विभाजन हो गया है।
चाय बागानों में मौत का उत्सव शुरु हो गया है।
गौरतलब है कि पहाड़ की गोरखा आबादी की रोजमर्रे की जिंदगी इन्हीं चायबागानों से जुड़ी हैं।सुबास घीसिंग से लेकर विमल गुरुंग तक तमाम नेता चाय बागानों से हैं।
गोरखालैंड के जवाब में सिलीगुड़ी में भी हिंसा हो रही है।इसके साथ ही बंगाल अब पूरी तरह हिंदू और मुस्लिम उग्रवाद के शिकंजे में हैं,जिनपर सरकार,प्रशासन और पुलिस का कोई नियंत्रण नहीं है।
हिंसा पर नियंत्रण के लिए अर्धसैनिक बलों की कंपनियां भेजने की मांग केंद्र सरकार खारिज कर रही है।
जाहिर है कि इसमें राजनीति हो रही है।
बाकी देश में आतंकी हमला होने के बावजूद बंगाल आतंकवादी हमलों से अब तक बचा रहा है।
क्योंकि बंगाल का आतंकवादी और कट्टरपंथी मुसलमान सुरक्षित कारीडोर की तरह इस्तेमाल कर रहे थे।
इन तत्वों पर पिछले चालीस सालों में कोई नियंत्रण खालिस वोटबैंक की राजनीति की वजह से नहीं हुआ है तो अब उन पर काबू पाना या उनका मुकाबला करना बेहद मुश्किल है।उत्तर 24 परगना के हालात इसीलिए बेकाबू है।जल्दी इस आत्मघाती हिंसा पर काबू पाने की केंद्र और राज्य सरकार और सभी राजनीतिक दल मिलकर पहल न करें तो पूरे बंगाल और पूरे पूर्वोत्तर भारत से लेकर बिहार में भी यह बेलगाम हिंसा संक्रमित हो सकती है।
इस बीच अमेरिका के बाद भारत इजराइल का भी रणनीतिक साझेदार बन गया है।पाकिस्तानी आईएसआई नेटवर्क को छोड़कर भारत को अंतरराष्ट्रीय इस्लामी आतंकवादी समूहों ने निशाना बनाने से परहेज किया है।लेकिन इजराइल से मुस्लिम और अरब देशों और इस्लाम के खिलाफ अमेरिकी युद्ध में इजराइल की सक्रिय और निर्णायक भूमिका के मद्देनजर यह समीकरण गड़बड़ाया हुआ नजर आ रहा है।
इस्लामी आंतकवादी समूह के स्लीपिंग सेल हमेशा दुनियाभर में सक्रिय हैं और भारत में भी वे बहुत बड़े पैमाने पर घुसपैठ कर गये हैं।इन तमाम तत्वों की भारतविरोधी गतिविधियां तेज होने की आशंका है।
पिछले कई बरस से दुर्गापूजा और मुहर्म पर बंगाल में चिटफुट सांप्रदायिक हिंसा होती रही है।लेकिन बंगाल में साहित्य और कला माध्यमों,लोकसंस्कृति,बाउल फकीर संत परंपरा के तहत भारत विभाजन के बावजूद गांव देहात में हिंदू और मुसलमान अमन चैन से रहते आये हैं और वे किसी तरह के उकसावे में नहीं आते और उन्हें अलग अलग पहचाना भी नहीं जाता।
मालदह और मुर्शिदाबाद जिलों में जनसंख्या लगभग बराबर होने के बावजूद इधर के व्रषों की छिटपुट वारदातों के अलावा सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास नहीं है।
कोलकाता में बड़ी संख्या में मुसलमान हैं और उत्तर और दक्षिण 24 परगना,हावड़ा,नदिया और हुदगली में बहुत सारे इलाकों में मुसलमानों की तादाद हिंदुओ के मुकाबले ज्यादा हैं।
फिरभी अमन चैन और साझा सांस्कृतिक विरासत और मातृभाषा बांग्ला की वजह से कोई बड़ी सांप्रदायिक वारदात नहीं हुई हैं।भारत विभाजन और शरणार्थी समस्या के शिकार देश के इस हिस्से में अमन चैन का माहौल काबिले तारीफ रहा है।
उत्तर भारत,बाकी देश और बांग्लादेश में भी मंदिर मस्जिद विवाद की वजह से बार बार व्यापक पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हाल के दशकों में होती रही है।
वाम शासन के 35 सालों में वैसी हिंसा की कोई वारदात बंगाल में नहीं हुई है।हाल के वर्षों में जो छिटपुट हिंसा होती रही है,उसपर पुलिस प्रशासन ने तुंरत काबू पा लिया।
लेकिन पिछले तीन चार दिनों से उत्तर 24 परगना में हिंसा का तांडव मचा हुआ है।इस बीच कोलकाता में भी गड़बजड़ी फैलाने की कोशिश हुई,कटट्रपंथियों को तुरंत गिरफ्तार करके कोलकाता में हालात नियंत्रित कर लिया गया।
अब तक उत्तर 24 परगना के सीमावर्ती मुस्लिम बहुल इलाकों में सुंदरवन से सटे हिंगलगंज,बशीरहाट,बाहुड़िये से लेकर सीमावर्ती वनगांव के देगंगा इलाकों तक हालात बेकाबू रहे हैं।
मुख्यमंत्री और राज्यपाल में टकराव होने के बाद भाजपा ने जोर शोर से बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है।केंद्र ने राज्यपाल से रपट मांगी है और राज्यपाल ने वह रपट भी भेज दी है।
ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस ने यह मांग उठते ही बाकायदा संवादाताओं को संबोधित करते हुए बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने का पुरजोर विरोध किया है। इसके साथ ही विमान बोस ने बंगाल में हाल की हिसां की वारदातों के संघ परिवार का गेमप्लान बताया है।
दार्जिलिंग में हिंसा भड़कने के तुरंत बाद हमने एक घंटे के वीडियो में बांग्ला में विस्तार से इस गेमप्लान के बारे में बताया है और सभी राजनीतिक दलों को सचेत रहने की चेतावनी दी है।
हमने ममता बनर्जी से विभाजन की राजनीति से बाज आने की अपील की थी और मौजूदा हालात को विपक्ष के सफाये और पहाड़ पर राजनीतिक कब्जे की उनकी महत्वाकांक्षा का परिणाम बताया था।इस वीडियो को अबतक करीब इक्कीस हजार से ज्यादा लोगों ने देखा है।
हस्तक्षेप पर लगे आलेखों में आप देख सकते हैं कि हम बंगाल में जाति,धर्म,भाषा,नस्ले के सभी क्षेत्रों में वर्चस्व के खिलाफ हमेशा मुखर रहे हैं।
महाश्वेता देवी से हमने दशकों पुराना अंतरंग रिश्ता सिर्फ इसलिए तोड़ दिया क्योंकि वे ममता बनर्जी की सरकार से नत्थी हो गयीं।उनकी वजह से नवारुण दा से भी हमारा संप्रक टूटा,जिसका हमें अफसोस है।
जाहिर सी बात है कि हमारे लिए यह सत्ता की राजनीति नहीं है और न यह ममता बनर्जी का मामला है।
हम इसे संघ परिवार का मामला भी नहीं मानते।हम शुरु से इसे राष्ट्रीय सुरक्षा,एकता और अखंडता का मामला मानते रहे हैं।
खासकर सिक्किम के हालात के मद्देनजर।चीन को भारत में हस्तक्षेप का अब तक कोई मौका नहीं मिला है।लेकिन सिक्किम में हस्तक्षेप करने की उसने खुल्ला ऐलान कर दिया है।
नेपाल और बांगलादेश के साथ भारत के संबंध अब वैसे नहीं रह गये हैं।खासकर नेपाल के रास्ते दार्जिलंग के पहाड़ों को सिक्किम के साथ अलग करने की गतिविधियों को चीन से हर तरह की मदद मिलने की आशंका है।ममता ने ऐसा आरोप लगाया भी है।
दूसरी ओर,अरुणाचल प्रदेश पर चीन ने अपना दावा नहीं छोड़ा।उस मोर्चे पर तनाव लगातार बना हुआ है।
उत्तराखंड में भी चीनी घुसपैठ होती रहती है।
हिमालय 1962 की लड़ाई में जख्मी हुआ है और अभ भी युद्ध हुआ तो हिमालय और हिमालयी जनता पर इसका सीधा असर है। उत्तराखंड में जमे,पले बढ़े होने की वजह से हमें सबसे ज्यादा फिक्र हिमालय की सेहत,जल संसाधन और पर्यावरण की है चाहे लोग हमें राष्ट्रद्रोही का तमगा देते रहे।
अगर बंगाल की हिंसक वारदातों को ज्लद से जल्द नियंत्रित नहीं किया गया तो उत्तर पूर्व के अलग थलग पड़ने के नतीजे भारत की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं।
ममता बनर्जी की सरकार गिराकर या बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने से हालात पर राजनीतिक नियंत्रण रखना भी मुश्किल हो जायेगा।केंद्र सरकार इस पर गौर करें तो बेहतर।
हमारे ख्याल से वाम मोर्चा ने इसीलिए राष्ट्रपति शासन का विरोध किया है,जो इन हालात में एकदम सही है।
बाकी राजनीतिक दलों को भी अपने राजनीतिक हित के बजाये दार्जिलिंग के साथ बाकी बंगाल और समूचे पुर्वोत्तर में खतरे में पड़ी सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर कदम उठाने चाहिए। यह ममता का समर्थन नहीं है,राष्ट्रहित में ऐसा जरुरी है।
ममता बनर्जी ने संघ परिवार के दंगाई एजंडा के मुकाबले शांतिवाहिनी हर बूथ के स्तर पर बनाने का ऐलान किया है।
उन्होंने पंद्रह दिनों के भीतर साठ हजार शांति कमिटियां गैरराजनीतिक लोगों को लेकर बनाने का ऐलान किया है।
गोरक्षकों के तांडव के साथ साथ देश में मुस्लिम कट्टर पंथ के आक्रामक तेवर के मद्देनजर ऐसी शांति कमिटियां पूरे देश में बनें तो बेहतर।भाजपा की सरकारे भी ऐसी शांति कमिटियां बनायें तो और बेहतर है क्योंकि भाजपा शासित राज्यों से सांप्रदायिक हिंसा पूरे देश में संक्रमित हो रही है।
इस बीच आज हिंदू बहुल उत्तर 24 परगना के जिला मुख्यालय बारासात में भी हिंसा भड़क गयी है।जिसका सीधा मतलब है कि जुबानी जमाखर्च के अलावा जमीन पर शांति प्रक्रिया शुरु ही नहीं हो सकी है,जबकि पुलिस और प्रशासन की तरह से उत्तर 24 परगना में हिंदुओं और मुसलमानों को लेकर शांति बैठकें शुरु करने का दावा किया गया है।
अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है।कितने खतरे में है ,उसे समझने के लिए इस रपट पर गौर करें।
कोलकाता के बांग्ला दैनिक 'एई समय' (टाइम्स ऑफ इण्डिया ग्रुप) के पत्रकार ने बसिरहाट के मागुरखाली गाँव से रपट दी है - इस गाँव में हिन्दू-मुसलमान सैकड़ों साल से एक साथ रहते आ रहे हैं।
भजन-कीर्तन गाने वाले दल, हिन्दू -मुसलमान दोनों के घर-आँगन में गाते हैं। मस्जिद के सामने देवी-देवताओं की जय के नारे लगाते हैं।
इसी गाँव का 18 साल का युवा है - सौभिक सरकार, जिसकी एक धार्मिक घृणात्मक फेसबुक टिप्पणी ने आसपास के इलाकों में उत्तेजना फैला दी।
कुछ युवकों ने सौभिक के घर में आग लगाने की कोशिश की। मस्जिद कमिटि के अध्यक्ष अमीरुल इस्लाम ने उन्हें रोका।
बाद में बाहर से आये ढेरों युवाओं ने सरकार के घर पर हमला किया, जिसे गाँव के हिन्दूओं-मुसलमानों ने मिल कर रोका। मकसूद ने दमकल को खबर दे कर बुलाया।
बाहरी लोग आएं और गाँव के एक व्यक्ति के घर को आग लगा जाएँ, ऐसा कभी नहीं हुआ, कहा गाँव की गौरी मंडल ने।
कौन थे ये बाहरी हमलावर ...। "
(प्रसेनजित बेरा की रपट पर आधारित)
#नाॅट_इन_माई_नेम_अगेन
This FB post raises solid and valid question to be answered by Secular and democratic forces if they seriously want to resist racist fascist institutional Hindutva agenda.Muslim community is misused by political parties irrelevant of their ideology just to reduce them in Vote Bank. Aggressive Islamic identity provokes majority Hindu population,it should be understood.Why they should react so violently?If they behave like this,it is just cake walk for cow politics!It is happening in Bengal and trending in rest of India.It would further strengthen Islamophobia as Islamic terror organized and aligned Anti Islam forces world wide.
Majority of Hindus tend to be secular and democratic and majority of Muslims are also secular and democratic.Majority people of India irrespective of caste,class,religion,language and race are also secular and democrate.
If we happen to be secular and democrat and want peace and fraternity,resistance of Islamic terror is as much as necessary as the resistance against cow politics.
I am sharing a FB post already shared by Gandhian Activist Himanshu Kumar ji.A muslim brother has raised very justified questions for Muslim community and these questions must be addressed by all secular,democrat and peace loving patriotic citizens irespective of identity if we seriously want to resist institutional fascist ethnic cleansing !
#नाॅट_इन_माई_नेम_अगेन
तनिक भी भ्रमित मत होइयेगा कि अब क्यों नाॅट इन माई नेम... अब तो बंगाल में मियाँ भाई भी गदर काट दिये। हाँ काट दिये तो... इसीलिये तो शायद अब ऐसे बैनर की जरूरत और प्रासंगिक हो उठी है, क्योंकि अब वह हिंदू, जो इस अभियान में हमारे साथ हमारी आवाज उठाने आया था, वह कशमकश में पड़ा हमें देख रहा है।
क्या था औचित्य इस अभियान का... यही न कि धर्म या आस्था के नाम पर हिंसक होती भीड़ का विरोध। सड़क पर होते इंसाफ के नंगे प्रदर्शन के खिलाफ एकजुट कोशिश... लेकिन बंगाल में तो इसी कोशिश को पलीता लगा दिया गया। साबित कर दिया कि धर्म या आस्था के नाम पे हिंसक होने वाली भीड़ भगवा ही नहीं हरी भी होती है।
चालीस पचास साल के मर्द अधेड़ मशाले लिये एक लड़के का घर फूंकने चल पड़े... खुद आपने मैच्योरिटी दिखाई न और उस सोलह-सत्रह साल के लड़के से मैच्योरिटी की उम्मीद कर रहे थे? इस बात का कोई मतलब नहीं कि यह संघ या भाजपा की साजिश है... हाँ है तो? नाक से खाना तो नहीं खाते होंगे न आप, तो कैसे सब जानते हुए संघ/भाजपा की साजिश में फंस जाते हैं।
नाॅट इन माई नेम के बैनर तले आपका प्रतिकार इसलिये भी तो था कि अगर कोई गौकशी या गौमांस भक्षण का दोषी भी है तो उसे पुलिस के हवाले कीजिये, और कानून जो भी उचित कार्रवाई समझे, करे... लेकिन जैसी ही चोट अपनी आस्था पर आयी तो कानून पर से विश्वास डिग गया और निकल पड़े सड़कों पर भीड़ बनके इंसाफ करने।
पहले कमलेश तिवारी ने और फिर सौविक सरकार ने जो किया वह फेसबुक पर हर रोज होता है और सैकड़ों बार होता है, लेकिन खैर बाकियों की तरफ से आंखें मूंद कर आप जिसे 'चिन्हित' कर पायें, उसके खिलाफ कानून सम्मत कार्रवाई करवाइये और उस पर संतुष्ट होना सीखिये।
यह क्या कि भीड़ बन के सड़कों पर आतंक फैला कर दोषी के लिये फांसी की मांग करना... इस्लामिक हुकूमत है भारत में? शरिया लागू है कि ईशनिंदा कानून के तहत पैगम्बर पर उंगली उठाने वाले को फांसी पर लटका दिया जाये? आप अपने लिये तो सेकुलर मुल्क चाहते हैं, जहां एक अल्पसंख्यक के बावजूद आपको सारे अधिकार और सुरक्षा मिले, लेकिन दूसरों को सेकुलर मुल्क देने में क्यों पीछे हट जाते हैं? क्यों आपका धर्म घर से निकल कर सड़कों पर उतर आता है?
जिन्होंने बंगाल में यह हिंसक भीड़ बनाई, जितने वे दोषी हैं, उतने ही दोषी वे भी हैं जो एसी हरकतों को अपने कुतर्कों से जस्टिफाई करते हैं... बजाय खुल कर, मुखर हो के विरोध करने के। बजाय आगे आ कर लोगों को यह बताने के... कि हम बंगाल में आस्था को लेकर दंगा करने वाली भीड़ के भी उतने ही खिलाफ हैं, जितने अखलाक या जुनैद को मारने वाली भीड़ के हैं।
नाॅट इन माई नेम के तहत आपके हक की आवाज उठाने वाले और आपकी तकलीफ पर आपके साथ खड़े होने वाले हिंदू देख रहे हैं आपकी तरफ... खुद से आगे बढ़िये और उन्हें यकीन दिलाइये कि गलत बात पर अपने धर्म के लोगों का भी समर्थन हम नहीं करते।
देश सबका है, समस्यायें भी सबकी हैं और उनसे लड़ने के लिये साथ भी सबका चाहिये... मेरा तेरा करके लड़ाइयां नहीं लड़ी जातीं। गलत को हर हाल में मुखर हो के, बआवाजे बुलंद गलत कहने की आदत बनानी होगी।
आपको खुल के कहना होगा कि मजहब या आस्था के नाम पे हिंसक होने वाली किसी भी भीड़ का समर्थन हम नहीं करेंगे, फिर चाहे वह भीड़ हमारे अपने ही लोगों की क्यों न हो।
नाॅट इन माई नेम सबके लिये है... और हर हिंसक भीड़ के खिलाफ एक कोशिश है।
~ Ashfaq Ahmad
GIRISH SEN: THE MAN WHO TRANSLATED " THE QURAN "INTO BENGALI
आखिरकार दार्जिलिंग को कश्मीर बनाने पर तुले क्यों है देश चलाने वाले लोग? पलाश विश्वास
आखिरकार दार्जिलिंग को कश्मीर बनाने पर तुले क्यों है देश चलाने वाले लोग?
पलाश विश्वास
दार्जिंलिंग में हिंसा दावानल की तरह भड़क उठी है।
कल चार लोग इस हिंसा के शिकार हो गये।लाशें लेकर दार्जिलिंग के चौक बाजार में फिर जुलूस निकला है।
बहुत देरी से ममता बनर्जी ने इस मसले को सुलझाने के लिए पहाड़ के राजनीतिक दलों से बातचीत करने की पेशकश की है। लेकिन गोरखा आंदोलनकारियों ने राज्य सरकार से कोई बातचीत करने से मना कर दिया है।
कल और आज दार्जिलंग पहाड़ का चप्पा चप्पा सुलग रहा है।दार्जिलिंग में फिर सेना लगा दी गयी है।लेकिन कार्शियांग से लेकर कलिंगपोंग तक जैसे हर कहीं हिंसा भड़क रही है,जैसे उग्र आंदोलनकारी और उनके समर्थक मरने मारने की शहादत मुद्रा में आ गये हैंं और रेलवे स्टेशन,पंचायत भवन,पुस्तकालय,सरकारी दफ्तर,पुलिस चौकी और वन दफ्तर थोक भाव से फूंके जा रहे हैं।उससे सेना शायद दार्जिलिंग जिले में सर्वत्र लगानी पड़ जाये।केंद्र की ओर से अभीतक बातचीत की पहल शुरु ही नहीं हुई है।
आखिरकार दार्जिलिंग को कश्मीर बनाने पर तुले क्यों है देश चलाने वाले लोग?
चीन से निबटने के लिए सेना और सरकार दोनों तैयार हैं।यह कैसी तैयारी है कि सिक्किम का मुख्यमंत्री पूछने लगे हैं कि क्या भारत में सिक्किम का विलय चीन और बंगाल के बीच सैंडविच बनने के लिए हुआ है?पवन चामलिंग के इस बयान का मौजूदा हालात के मुताबिक बहुत खतरनाक मतलब है क्योंकि चान ने सिक्किम को भी कश्मीर बना देने की धमकी दी है।
भारत चीन सीमा विवाद से गहराते युद्ध के बादल के मद्देनजर हालात का खुलासा हमने हस्तक्षेप पर किया तो लोगों ने हम पर राष्ट्रद्रोह का आरोप भी लगा दिया।अब देखिये,राष्ट्रभक्तों का राजकाज क्या है और राजनय क्या है।
हमने पहले ही लिखा है कि बंगाल के बेकाबू हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात।
हम पहले ही चेता चुके हैं कि बंगाल में जो बेलगाम हिंसा भड़क गयी है,राजनीतिक दलों की सत्ता की लड़ाई में उसके खतरे पक्ष विपक्ष में राजनीतिक तौर पर बंट जाने से बाकी देश को शायद नजर नहीं आ रहे हैं।
जिस दिन ममता बनर्जी अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ दार्जिलिंग में घिर गयी थी,उसीदिन हमने खासकर बंगालियों को वीडियो मार्फत बता दिया था कि सत्ता की राजनीति के आक्रामक रवैये और नस्ली अल्पसंख्यकों के दमन के उग्र बंगाली राष्ट्रवाद के नतीजतन बंगाल का फिर एक विभाजन होने वाला है और यही संघपरिवार का गेमप्लान है।बंगाल, पंजाब,बिहार,यूपी,महाराष्ट्र और उन सभी राज्यों से जहां से भी केंद्र की सत्ता को चुनौती मिलती है,उन्हें तोड़कर सत्ता के नस्ली वर्चस्व को निरंकुस बनाने के संस्थागत फासिज्म से देश का संघीय ढांचा चरमरा गया है।आधार से जहां नागरिकों की निजता,गोपनीयता और स्वतंत्रता का हनन हो रहा है,वहीं डिजिटल इंडिया में खेती और कारोबार में नरसंहार संस्कृति है।तो जीएसटी और नोटबंदी से अर्थव्यवस्था कारपोरेट पूंजी के हवाले हैं।
हम रोजाना दार्जिलिंग के अपडेट सोशल मीडिया में लगातार डाल रहे हैं और बार बार चेता रहे हैं कि हिंदुत्व के कारपोरेट एजंडा से धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ताकतें सचेत रहें।
बशीरहाट में दंगा भड़काने के लिए ममता बनर्जी के मुताबिक भारत बांग्लादेश सीमा खोल दी गयी हैं,जिनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र की है।
बशीरहाट में बाहरी और विदेशियों के व्यापक दंगा भड़काने की सािश अब बेनकाब हो गयी है।भोजपुरी फिल्म ही नहीं,बजरंगी सेना बांग्लादेश और गुजरात की हिंसा के दृस्य पोस्ट करके बंगाल में धार्मिक ध्रूवीकरण की कोशिश करते रहे हैं।
इस पूरे परिदृश्य में बंगाल में मीडिया ने बेहद सकारात्मक रवैया अपनाया है और रोजाना पेज के पेज साझा चूल्हे की विरासत के मुताबिक दोनों समुदायों के आपसी और निजी रिश्तों को लेकर लिखा गया है,टीवी पर दिखाया गया है।
अब यह संजोग ही कहा जायेगा कि दंगाई सियासत बेपर्दा होने के साथ उत्तर 24 परगना में जब अमन चैन का माहोल फिर बनने लगा है,तभी पहाडो़ं में नये सिरे से आग भड़क उठी है।
केंद्रीय गृहमंत्री ने सिक्किम के मुख्यमंत्री को आज फोन पर कहा है कि दार्जिंलिंग के हालात का सिक्किम पर कोई असर नहीं होगा।सिलिगुड़ी से दार्जिलंग जिला पार करके ही सिक्किम जाना है और पहाड़ों में हिसा के साथ प्रतिक्रिया में मैदानों में भी हिंसा भड़कने लगी है और जब दार्जिंलिंग में चायबागानों में मृत्यु जुलूस का अनंत सिलसिला है,पर्यटन खत्म है और राशन पानी खत्म है,तो शुरु के दिन से ही सिक्किम की अघोषित आर्थिक नाकेबंदी चल रही है।
गोरखा आंदोलनकारियों का कहना है कि वे अलग राज्य मांग रहे हैं और उनकी मांग राज्य सरकार पूरी नहीं कर सकती।केंद्र सरकार ही यह समस्या सुलझायें तो ऐसे हालात में सभी पक्षों को बातचीत के लिए तैयार करने की कोई पहल केंद्र सरकार क्यों नहीं कर रही है?
दार्जिलिंग से भाजपा सांसद और बंगाल प्रदेश बाभाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष बार बार कहते रहे हैं कि वे छोटे राज्य का समर्थन करते हैं लेकिन भाजपा यह नहीं मानती कि वह गोरखालैंड का समर्थन करती है और वह यह दावा भी नहीं करती कि भाजपा गोरखालैंड का विरोध करती है।इसका मतलब क्या है।
कोलकाता से लगे समूचे उत्तर 24 परगना जिला हिंसा की चपेट में है और पहाड़ में दार्जिंलिग में बंद और हिंसा का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा है।गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने अंतिम लड़ाई का ऐलान कर दिया है और पहाड़ों में बरसात और भूस्खलन के मौसम में जनजीवन अस्तव्यस्त है।
इस बीच खबरों के मुताबिक गोरखालैंड समर्थक आंदोलन के 25वें दिनरविवार को दार्जिलिंग में फिर से हिंसा भड़क गई। आंदोलनकारियों ने एक पुलिस शिविर को आग के हवाले कर दिया, जिसमें चार पुलिसकर्मी घायल हो गए। वहीं पोकरीबोंग में एक बीडीओ कार्यालय पर भी हमला किया गया।
जीजेएम कार्यकर्ताओंने सूरज सुंदास और समीर सुब्बा के शवों के साथ चौकबाज़ार में एक रैली भी निकाली. ये लोग पुलिस गोलीबारी में मारे गए थे।
जीएनएलएफ ने ताशी भूटिया के शव के साथ सोनादा में एक जुलूस भी निकाला. वह भ। पुलिस गोलीबारी में मारा गया था।
प्रदर्शनकारियों ने सोनादा पुलिस थाना पर भी हमला किया और इसका एक हिस्सा फूंक दिया. पिछले दो दिनों में इस तरह का यह दूसरा हमला था।
सोनादा पुलिस थाना पर शनिवार को भी प्रदर्शनकारियों ने हमला किया था। प्रदर्शनकारियों ने दार्जिलिंगमें एक पुलिस बूथ को आग के हवाले कर दिया।
पोकरीबोंग में रविवार दोपहर एक बड़ी भीड़ ने एक बीडीओ कार्यालय और एक पुलिस शिविर पर हमला किया। कई पुलिसकर्मियों की पिटाई भी की गई।
इस बीच 18 जुलाई को होने वाली पर्वतीय पार्टियों की एक सर्वदलीय बैठक की तारीख 11 जुलाई कर दी गई है।
जीजेएम ने दावा किया है कि गोरखालैंड समर्थकोंऔर पुलिस के बीच शनिवार को पर्वतीय क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में हुई झड़पों के बाद पुलिस गोलीबारी में चार लोग मारे गए हैं। उधर पुलिस ने गोलीबारी की खबरों से इनकार किया है और कहा कि इसने कोई गोली नहीं चलाई।
विकास बोर्ड के अध्यक्ष एमएस राय ने कथित हत्याओं के खिलाफ विरोध दर्ज़ कराते हुए बीती रात इस्तीफा दे दिया। जीजेएम ने भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वार्ता की पेशकश खारिज़ कर दी।
Bengal united for peace in Bashirhat but neither Bengal nor India seem to care for Darjeeling and Sikkim people! Sikkim CM Pawan Chamling today demanded urgent intervention of the Centre for early settlement of the Gorkhaland issue! পাহাড়ে বন্ধ চলবে, চাপ বাড়াতে এ বার আমরণ অনশন, ঘেরাও Palash Biswas
পাহাড়ে বন্ধ চলবে, চাপ বাড়াতে এ বার আমরণ অনশন, ঘেরাও
পাহাড়ে বন্ধ চলবে, চাপ বাড়াতে এ বার আমরণ অনশন, ঘেরাও
ভেতরে কট্টরপন্থীদের চাপ আর বাইরে কেন্দ্র ও রাজ্য সরকারের চাপের মোকাবিলায় এ বার পাল্টা চাপের রাস্তা নিল পাহাড়ের সর্বদলীয় কমিটি।
মঙ্গলবারের বৈঠকে কমিটি সিদ্ধান্ত নিল, পাহাড়ে বন্ধ চলবে। কোনও ভাবেই তা প্রত্যাহার করা হবে না। বিমল গুরুঙ্গ, বিনয় তামাঙ্গ, নীরজ জিম্বা সহ কমিটির প্রতিনিধিরা সিদ্ধান্ত নিয়েছেন, ১৫ জুলাই থেকে তাঁরা ম্যালে শুরু করবেন আমরণ অনশন। অনশনের পাশাপাশি থাকবে ঘেরাওয়ের কর্মসূচিও। ১৪ জুলাই শিলিগুড়ি সহ পাহাড়, তরাই ও ডুয়ার্সের এসডিও অফিসগুলিও ঘেরাও করা হবে।
কমিটির অভিযোগ, পাহাড়গামী গাড়িগুলি থেকে জিএসটি বিল আদায় করা হচ্ছে যথেচ্ছ। তা বন্ধ করতে এ দিনের বৈঠকে সিদ্ধান্ত নেওয়া হয়েছে, ২৫ জুলাই থেকে ঝোলা নিয়ে পাহাড় থেকে শিলিগুড়ি পর্যন্ত পদযাত্রা শুরু হবে।
পাহাড়ে কট্টরপন্থীরা বলতে শুরু করেছিলেন, কেন্দ্র ও রাজ্যের চাপের কাছে উত্তরোত্তর গলার সুর নরম করে ফেলছেন আন্দোলনকারীরা। সেই সুযোগে কেন্দ্র ও রাজ্য সরকারের চাপও বাড়তে শুরু করেছে।
অনেকেই মনে করছেন, 'ঘর'কে কিছুটা শান্ত রাখতে আর 'বাইরে'র চাপের বোঝাটা কাঁধ থেকে কিছুটা নামাতেই এই পাল্টা চাপের রাস্তায় হাঁটল কমিটি।
Just Hell losing in Darjeeling Hills. Ten vehicles destroyed in Teesta Bazar on Sikkim Road,minister`s convoy attacked,Power production stopped!
Just Hell losing in Darjeeling Hills.
Ten vehicles destroyed in Teesta Bazar on Sikkim Road,minister`s convoy attacked,Power production stopped!
Palash Biswas
Now it is peace time in 24 pgs as Communal agenda is exposed but the politics of racist communal violence is playing havoc in Bengal hills which also burns Sikkim herading serious strategic calamity keeping in mind Chinese threat to make a Kashmir in Sikkim and the Sikkkim stand off itself.Both governments of Bengal and India have miserably failed to initiate peace talks in burning Darjeeling while the people of India seem to have no idea about the crisis.
The most dangerous implications of Darjeeling unrest seem to be emerging now.Ten vehicles on Sikkim Road at Teesta Bazar which connects darjeeling,have been destroyed.Power plants have stopped production and the convoy of WB minister of tourism Gatam Dev has been attcked in Panihata amidst fresh incidents of arson and violence.Bengal and Sikkim have to suffer from power deficit now while tea industry and tourims lost almost everything and every home seem to be out of ration in this rainy season.
Gorkhaland mevement seems to be beyond the control of its leaders now.State administration and police seem to be absent and it is anarchy in full bloom while CM of west Bengal Mamata Banerjee is claiming to restore peace very soon.
From tomorrow it would be fast unto death with resignation of all political representatives from every level.It is perhaps no point of return in darjeeling Hills.Just hell losing!Mind you,July 15 will mark one month of the indefinite strike in Darjeeling as the protesters continue to demand a separate state of Gorkhaland. On this day, leaders from all parties, including the BJP and Congress, will go on an indefinite hunger strike at Chowrasta in Darjeeling. While party spokesperson Neeraj Zimba will represent GNLF in the hunger strike, GJM will be represented by assistant general secretary Binay Tamang and Akhil Bharatiya Gorkha League by Pratap Kerri. All other parties will nominate representatives over the next two days.
Meanwhile,in another incident of mob violence in Darjeeling, a group of people set fire to a Gorkhaland Territorial Administration Tourist Information office on Wednesday night. According to reports, supporters of Gorkha Janmukti Morcha (GJM), which spearheads the agitation, took out a rally at Chowkbazar in Darjeeling on Wednesday with the body of Ashok Tamang, the man who was killed in alleged police firing. The agitation then took a violent turn and the angry protesters torched the office building late at night.
Tamang, a janitor for the Darjeeling municipality, had suffered injuries in police firing during an agitation on Saturday. He succumbed to his injuries on Tuesday morning at Manipal hospital in the neighbouring Sikkim. He is survived by two children.
The National Hydroelectric Power Corporation (NHPC) has shut down its hydel power plant at Ramdi in Darjeeling hills after a mob of over 600 people began agitation outside the plant site, a NHPC official said on Thursday.
"We had shut down operations of Teesta Low Dam-III plan of 132 MW as a precaution after a mob of over 600 people gheraoed the site and began agitation," the NHPC official told PTI.
The official said the regional head of NHPC is slated to meet the West Bengal power secretary later in the day to discuss the issue.
"We had already written to state power secretary, chief secretary and district magistrate to beef up security at the NHPC installations in Darjeeling district," the official said.
NHPC will resume power generation at the Ramdi plant once it gets assurance of security of the unit, officials said. NHPC has another unit Teesta Low dam-IV of 160MW in Darjeeling hills.
Pro-Gorkhaland supporters had on Wednesday set ablaze a panchayat office and damaged a few government vehicles in Darjeeling on the 28th day of the indefinite shutdown.
ABP anad reports:
পানিহাটায় পর্যটনমন্ত্রী গৌতম দেবের গাড়িতে হামলা, পুলিশের গাড়িতেও ভাঙচুর মোর্চার
দার্জিলিং: পাহাড়ে ফের তাণ্ডব চালাল গোর্খা জনমুক্তি মোর্চা।
শিলিগুড়ির কাছে পানিঘাটায় আক্রান্ত হয়েছেন পর্যটনমন্ত্রী গৌতম দেব। নেপালি কবি ভানুভক্তের জন্মজয়ন্তী অনুষ্ঠানে যোগ দিতে পানিঘাটায় যান পর্যটনমন্ত্রী। গৌতমের অভিযোগ, পানিঘাটায় ঢুকতেই কুকরি নিয়ে হামলা চালায় মোর্চা সমর্থকরা। মন্ত্রীর গাড়ি আটকে বিক্ষোভ দেখায় তারা। চলে ইটবৃষ্টিও। কোনওক্রমে ব্যাঙডুবির সেনা ছাউনিতে আশ্রয় নেন পর্যটনমন্ত্রী। তিনি এলাকা ছাড়ার পর পুলিশের একটি গাড়িতেও ভাঙচুর চালানো হয়।
এছাড়া তিস্তা বাজারে সিকিমগামী ১০টি গাড়িতে হামলা চালিয়েছে মোর্চা। কালিম্পঙে তামাং বোর্ডের চেয়ারম্যানের বাড়িতে ভাঙচুর করে আগুন ধরিয়ে দেওয়া হয়েছে। সান্দাকফু যাওয়ার পথে দার্জিলিঙের ধত্রেয় বনবাংলো ও কালিম্পঙের তিস্তা বন বাংলোতেও আগুন লাগানো হয়।
এর আগে গতকাল মাঝ রাতে দার্জিলিং ম্যালে ট্যুরিস্ট ইনফরমেশন সেন্টার ও রাত ৮টা নাগাদ সুকনায় রেভিনিউ ইন্সপেক্টরের অফিসেও অগ্নিসংযোগ ঘটে। যদিও গোর্খা জনমুক্তি মোর্চা অস্বীকার করেছে যাবতীয় অভিযোগ। ম্যালে কাঠের তৈরি ট্যুরিস্ট ইনফরমেশন সেন্টারে আগুন লাগানোর ঘটনা নতুন নয়। পাহাড়ে যতবার আন্দোলন হয়েছে, ততবারই অশান্তির আগুনে পুড়েছে এই অফিস। গতকালের আগুনে ভস্মীভূত হয়ে যায় ট্যুরিস্ট ইনফরমেশন সেন্টার। সকালে দমকলের একটি ইঞ্জিন এসে আগুন নিয়ন্ত্রণে আনে। রাত ৮টা নাগাদ সুকনায় রেভিনিউ ইন্সপেক্টরের অফিসে আগুন লাগানো হয়। গোটা অফিস পুড়ে ছাই। পুড়ে গিয়েছে বহু গুরুত্বপূর্ণ নথি।
http://abpananda.abplive.in/state/goutam-debs-car-attacked-in-panihata-darjeeling-tense-360528
शैलेश, हिन्दी साहित्य के भंडार को भर कर चले गये. पर्वतीय अंचल के जनजीवन के अभावों, सुखदुख, संघर्षों, और जिजीविषा को जीवन्त रूप में उभार कर चले गये. पर हमने, हमारी व्यवस्था ने उनके नाम से एक दो पुरस्कार घोषित कर जैसे छुट्टी पाली. ताराचंद्र त्रिपाठी
शैलेश मटियानी पर गुरुजी ताराचंद्र त्रिपाठी ने अपने फेस बुक वाल पर यह बेहद प्रासंगिक,मार्मिक और वैचारिक आलेख पोस्ट किया है।पहाड़ में बटरोही के अलावा बाकी किसी साहित्यकार ने अबतक शैलेश जी के कृतित्व पर कोई खास टिप्पणी नहीं की है।
शैलेश मटियानी का जीवन भी इसका एक जीताजागता नमूना है. वे आजादी से सोलह साल पहले एक पिछड़ेे पर्वतीय गाँव के बेहद गरीब परिवार में जन्मे और बारह वर्ष की अवस्था में अनाथ हो गये. दो जून रोटी के लिए न केवल अपने चाचा की मांस की दूकान में काम करना पड़ा, अपितु कलम संभालते ही अपने गरीब और पिछड़ेे परिवेश से उठने के प्रयास में एक बोचड़ की दूकान में काम करने वाला छोकरा इलाचन्द जोशी और सुमित्रानन्दन पन्त से टक्कर लेना चाहता है. जैसे व्यंग बाण भी सहे.
उनको तपातपा कर सोना बनाने की प्रक्रिया में काल भी जैसे क्रूरता की हदें पार कर गया. अपने पापी पेट की भूख को शान्त करने के लिए होटल में जूठे बरतन माँजने से लेकर अनेक छोटेमोटे काम करने पडे. दिल्ली, मुजफ्फर नगर, फिर कुछ दिन अल्मोड़ा, और अन्ततः इलाहाबाद आ गये. इतनी भटकन और अभावों से उनके जीवन पथ को कंटकाकीर्ण बनाने के बाद भी जैसे काल संतुष्ट नहीं हुआ, और उनके मासूम छोटे पुत्र की हत्या के प्रहार ने उन्हें बुरी तरह तोड दिया. मौत भी ऐसी दी कि क्रूर से क्रूर व्यक्ति को रोना आ जाय.
इतने कठिन जीवन संघर्ष के बीच उन्होंने न केवल हिन्दी साहित्य को दर्जनों अमर कृतियों की सौगात दी अपितु अपने अंचल के जीवन को भी अपनी रचनाओं में जीवन्त रूप से उभारा. सच पूछें तो कुमाऊँ की पृष्ठभूमि, उसके सुख दुख, अभावों और संघर्ष के बीच भी जनजीवन के मुस्कुराने के पल दो पल खोजने के प्रयासों को भी उनके अलावा पर्वतीय अंचल का कोई अन्य कथाकार उतनी शिद्दत के साथ नहीं उभर पाया है.
उन्होंने अनेक उपन्यास लिखे, दर्जनों कहनियाँ लिखीं, 'पितुआ पोस्टमैन'के सामान्य धरातल से उठ कर वे 'प्रेतमुक्ति'के जाति, वर्ग, सामाजिक विडंबनाओं से मुक्त मानवत्व की महान ऊँचाइयों पर पहुँचे. जब कि उनका सहारा लेकर उठे, और लक्ष्मी के वरद्पुत्र बने तथाकथित रचनाकार समाज में सामन्ती युग के प्रेतों को जगाने में लगे हुए हैं.
शैलेश, हिन्दी साहित्य के भंडार को भर कर चले गये. पर्वतीय अंचल के जनजीवन के अभावों, सुखदुख, संघर्षों, और जिजीविषा को जीवन्त रूप में उभार कर चले गये. पर हमने, हमारी व्यवस्था ने उनके नाम से एक दो पुरस्कार घोषित कर जैसे छुट्टी पाली. हल्द्वानी में उनके आवास को जाने वाले मार्ग का नामकरण 'शैलेश मटियानी मार्ग, का शिला पट्ट लगाकर, जैसे उन पर एहसान कर दिया. उस शिला पट्ट की हालत यह है कि, उस पर परतदरपरत कितने व्यावसायिक विज्ञापन चिपकते जा रहे हैं इस पर ध्यान देने की किसी को फुर्सत नहीं है.
उनका आवास जीर्णशीर्ण हो चुका है, टपकते घर के बीच उनका परिवार जैसेतैसे दिन काट रहा है, अपने पिता की थात को फिर से लोगों के सामने लाने के लिए उनके ज्येष्ठ पुत्र राकेश, रातदिन अकेले लगे हुए हैं. सत्ता और पद के मद में आकंठ निमग्न, जुगाड़धर्मी अन्धी व्यवस्था में ही नहीं अपने आप को रचनाधर्मी कहने वाले हम लोगों में भी मौखिक सहानुभूति के अलावा उनकी स्मृति को सुरक्षित करने और नयी पीढी को अभावों से लोहा लेते हुए अपने अस्तित्व को प्रमाणित करने की प्रेरणा देने के लिए कोई विचार नहीं है.
कितने कृतघ्न हैं हम लोग! यह इस देश में नहीं पता चलता, विदेशों में जाने पर पता चलता है. मुझे 2011 तथा 2013 में छः मास लन्दन में बिताने का अवसर मिला. अपनी यायावरी की आदत से लाचार मैंने लन्दन का कोनाकोना छान मारा. वैभव और उपलब्धियों से भरे इस महानगर में सबसे ध्यानाकर्षक बात लगी 'अपने कृती पुरखों के याद को बनाये रखने की प्रवृत्ति. अकेले लन्दन में कीट्स, सेमुअल जोन्सन, चाल्र्स डिकिंस, चाल्र्स डार्विन, जैसे उनसठ रचनाधर्मियों के आवासों को उनके कृतित्व का संग्रहालय बना दिया गया है. इस श्रद्धापर्व में उनके अपने लोग ही शामिल नहीं है. नाजी जर्मनी के उत्पीड़न से बचने के लिए लन्दन में शरण लेने वाले फ्रायड जैसे अनेक विदेशी मूल के कृती भी विद्यमान हैं. यही नहीं आज के रसेल स्क्वायर के जिस आवास में चाल्र्स डिकिन्स आठ वर्ष रहे और अपने कृतित्व को उभारा, आज पाँच सितारा होटल में रूपान्तरित होने पर भी, उसके मालिक अपनी दीवार पर यह लिखना नहीं भूले कि इस आवास में चाल्र्स डिकिंस आठ वर्ष रहे थे. ब्रिटिश पुस्तकालय के प्रांगण में आइजेक न्यूटन आज भी अपना परकार (कंपास) लेकर अन्वेषण में लगे हुए हैं. बैंक आफ इंग्लैंड वाले मार्ग पर 1808 मे जेलों में सुधार करने के लिए संघर्ष करने वाली महिला ऐलिजाबेथ के आवास पर, जो आज एक विशाल भवन में रूपान्तरित हो चुका है, उनके नाम और कृतित्व को सूचित करने वाली पट्टिका लगी हुई है. किसी भी सड़क पर चले जाइये, आपको अपने पूर्वजों के कृतित्व के प्रति आभार व्यक्त करने वाली पट्टिकाएँ मिल जायेंगी. और हमने अपने लोक जीवन को साहित्य के शिखर पर उत्कीर्ण करने वाले कथाकार के नाम पर एक मार्ग पट्टिका लगाई भी तो उसे अंटशंट विज्ञापनों के तले पाताल में दफना दिया.
दो सौ साल जिनकी गुलामी में रहे, जिनकी भाषा, वेशभूषा, बाहरी तामझाम को, अपनी परंपराओं को दुत्कारते हुए हमने अंगीकार किया, उनके आन्तरिक गुणों और अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता बोध को हम ग्रहण नहीं कर सके. आज भी हम वहीं पर हैं. पंजाब से आये लोगों की कर्मठता को अंगीकार करने के स्थान पर हम उनके नव धनिक वर्ग के तमाशों और तड़कभड़क के सामने अपनी हजारों वर्ष के अन्तराल में विकसित सरल और प्राकृ्तिक रूप से अनुकूलित परंपराओं को ठुकराते जा रहे हैं.
तब और भी दुख होता है कि जहाँ प्रदेश की सत्ता के शीर्ष पर उनके ही जनपद का व्यक्ति आसीन है, उनके पुत्र को अपने कृती पिता की स्मृति को धूमिल होने और अपने बीमार घर को धराशायी होने से बचाने के लिए दरदर भटकना पड रहा है.
खेती की तरह आईटी सेक्टर में भी खुदकशी का मौसम गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा
खेती की तरह आईटी सेक्टर में भी खुदकशी का मौसम
गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा है।
पलाश विश्वास
नोटबंदी और जीएसटी के निराधार आधार चमत्कारों के मध्य अब किसानों मजदूरों के अलावा इंजीनियरों की खुदकशी की सुर्खियां बनने लगी है।प्रधान सेवक अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान महाबलि ट्रंप से हथियारों और परमाणु चूल्हों का सौदा तो कर आये लेकिन अमेरिकी नीतियों की वजह से खतरे में फंसे आईटी क्षेत्र में लगे लाखों युवाओं के लिए एक शब्द भी खर्च नही किया।अभी पिछले गुरुवार को पुणे की एक होटल की बिल्डिंग से कूदकर एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर ने अपनी जान दे दी। कमरे में मिले सुसाइड नोट में मृतक इंजीनियर ने आईटी क्षेत्र में जॉब सिक्योरिटी नहीं होने की वजह से खुदकशी कर ली।
यह आईटी सेक्टर में गहराते संकट के बादलों का सच है,जिससे भारत सरकार सिरे से इंकार कर रही है।
गोरक्षा समय में पहले करोड़ नौकरियां पैदा करने के सुनहले दिनों के ख्वाब दिखाये गये और अब जीएसटी के जरिये रोजगार सृजन की बात की जा रही है।सुनहले दिनों के ख्वाब में युवाओं का न रोजगार है और न कोई भविष्य।जीवन साथी चुनना भी मुश्किल है।फर्जी तकनीकी शिक्षा के दुश्चक्र में परंपरागत शिक्षा से वंचित इस युवा पीढ़ी के हिस्से में अंधेरा ही अंधेरा है।
यह सिर्फ एक आत्महत्या का मामला नहीं है कि आप राहत की सांस लें कि बारह हजार खेत मजदूरों और किसानों की खुदकशी के मुकाबले एक खुदकशी के मामले से बदलता कुछ नहीं है।
गौरतलब है कि पिछले कई दिनों से आईटी सेक्टर में छाई मंदी को लेकर इस प्रोफेशन से जुड़े लोग अपने करियर को लेकर बेहद चिंतित हैं। आईटी प्रोफेशनल्स को कोई और रास्ता नजर नहीं आ रहा है। बीते महीनों आई एक खबर के मुताबिक, इन्फोसिस कर्मचारियों को नौकरी से निकालने वाली थी। इससे पहले भी दूसरी कंपनियां जैसे विप्रो, टीसीएस और कॉगनिजेंट भी अपने यहां कर्मियों की छंटनी कर चुकी हैं। इसी बात से चिंतित होकर गुरुप्रसाद ने आत्महत्या कर ली।
आईटी सेक्टर में भारी छंटनी के सिलसिले में कंपनियों ने कार्यदक्षता के मुताबिक नवीकरण की बात की तो भारत सरकार की ओर से कह दिया गया कि आईटी सेक्टर में कोई खतरा है ही नहीं।क्योंकि कंपनियां किसी की छंटनी नहीं कर रही है,सिर्फ कुछ लोगों के ठेके का नवीकरण नहीं किया जा रहा है।
मानव संसाधन से जुड़ी फर्म हेड हंटर्स इंडिया ने हाल में कहा है कि कि नई प्रौद्योगिकियों के अनुरूप खुद को ढालने में आधी अधूरी तैयारी के कारण भारतीय आईटी क्षेत्र में अगले तीन साल तक हर साल 1.75-2 लाख इंजीनियरों की सलाना छंटनी होगी। हेड हंटर्स इंडिया के संस्थापक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के लक्ष्मीकांत ने मैककिंसे एंड कंपनी द्वारा 17 फरवरी को भारतीय सॉफ्टवेयर सेवा कंपनियों के मंच नासकाम इंडिया लीडरशिप फोरम को सौंपी गई रिपोर्ट का विश्लेषण करते हुए कहा, "मीडिया में खबर आई है कि इस साल 56,000 आईटी पेशेवरों की छंटनी होगी, लेकिन नई प्रौद्योगिकियों के अनुरूप खुद को ढालने में आधी अधूरी तैयारी के चलते तीन साल तक हर साल वास्तव में 1.75-2 लाख आईटी पेशेवरों की छंटनी हो सकती है।"
श्रमकानूनों में सुधार की वजह से श्रम विभाग और लेबर कोर्ट की कोई भूमिका नहीं रह गयी है।ठेके पर नोकरियां तो मालिकान और प्रबंधकों की मर्जी है।वे अपने पैमाने खुद तय करते हैं और उसी हिसाब से कर्मचारियों की छंटनी कर सकते हैं ।कर्मचारियों की ओर से इसके संगठित विरोध की संभावना भी कम है।क्योंकि निजीकरण,विनिवेश और आटोमेशन के खिलाफ अभी तक मजदूर यूनियनों ने कोई प्रतिरोध नहीं किया है।नये आर्तिक सुधारों की वजह से ऐसे प्रतिरोध लगभग असंभव है।
डिजिटल इंडिया में सरकारी क्षेत्र में नौकरियां हैं नहीं और सरकारी क्षेत्र का तेजी से विनिवेश हो रहा है।आधार परियोजना से वर्षों से बेहिसाब मुनाफा कमाने वाली कंपनी इंफोसिस भी अब रोबोटिक्स पर फोकस कर रही है।सभी क्षेत्रों में शत प्रतिशत आटोमेशन का लक्ष्य है क्योंकि कंपनियों को कर्मचारियों पर होने वाले खर्च में कटौती करके ही ज्यादा से ज्यादा मुनाफा हो सकता है।
दूसरी ओर मार्केटिंग और आईटी सेक्टर के अलावा पढ़े लिखे युवाओं के रोजगार किसी दूसरे क्षेत्र में होना मुश्किल है।बाजार में मंदी के संकट और कारपोरेट एकाधिकार वर्चस्व,खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी,ईटेलिंग इत्यादि वजह से मार्केंटिंग में भी नौकरियां मिलनी मुश्किल है।
नालेज इकोनामी में ज्ञान विज्ञान की पढ़ाई,उच्च शिक्षा और शोध का कोई महत्व न होने से सारा जोर तकनीकी ज्ञान पर है और मुक्तबाजार में आईटी इंजीनियरिंग ही युवाओं की पिछले कई दशकों से सर्वोच्च प्राथमिकता बन गयी है।विदेश यात्रा और बहुत भारी वेतनमान की वजह से आईटी सेक्टर में भारतीय युवाओं का भविष्य कैद हो गया है।
मुक्तबाजार से पहले कृषि इस हद तक चौपट नहीं हुई थी।नौकरी न मिले तो खेती या कारोबार का विकल्प था।लेकिन आईटी इंजीनियरों के सामने जीएसटी के जरिये हलवाई की दुकान या किराने की दुकान में आईटी सहायक के सिवाय कोई विकल्प बचा नहीं है।ऐसी नौकरी मिल भी जाये तो वह आईटी सेक्टर के भारी भरकम पगार के मुकाबले कुछ भी नहीं है।
हालत यह है कि मीडिया के मुताबिक आईटी कर्मचारियों के लिए यूनियन बनाने की कोशिश में जुटा द फोरम फॉर आईटी एम्पलॉयीज (एफआईटीई) ने कहा है कि आईटी व अन्य बड़ी कंपनियों की तरफ से छंटनी के खिलाफ विभिन्न राज्यों में श्रम विभाग के पास करीब 85 याचिका दाखिल की गई है। चेन्नई में संवाददाताओं से बातचीत में फोरम के महासचिव विनोद ए जे ने कहा, अगले छह हफ्तों में हमारे दिशानिर्देश के तहत अपनी-अपनी कंपनियों के खिलाफ करीब 100 कर्मचारी शिकायत दाखिल करेंगे।
फोरम का दावा है कि कॉग्निजेंट, विप्रो, वोडाफोन, सिनटेल और टेक महिंद्रा जैसे संगठनों के 47 कर्मचारियों ने श्रम विभाग पुणे में याचिका दाखिल की है, वहीं 13 याचिकाएं कॉग्निजेंट व टेक महिंद्रा के कर्मचारियों ने हैदराबाद में दाखिल की है। ये याचिकाएं औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 की धारा 2 ए के तहत दाखिल की गई है, जो वैयक्तिक याचिकाओं के लिए है। उन्होंने कहा, इस अधिनियम की धारा 2के सामूहिक याचिका के लिए है। कॉग्निजेंट व अन्य कंपनियों ने इन आरोपों का खंडन किया है और कहा है कि वे कर्मचारियों की छंटनी नहीं कर रहे हैं। फोरम का दावा है कि करीब 3,000 कर्मचारियों ने उनसे संपर्क किया है। इसकी योजना समर्थन के लिए विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से संपर्क की भी है।
खबरों के मुताबिक पुणे में एक इंजीनियर ने केवल इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके फील्ड में जॉब सिक्योरिटी नहीं थी। मृतक गोपीकृष्ण गुरुप्रसाद (25) आंध्र प्रदेश का निवासी था। कुछ दिनों पहले ही मृतक ने पुणे में नई कंपनी जॉइन की थी। पुणे के विमानगर इलाके स्थित एक होटल के ऊपर वाली मंजिल से गुरुप्रसाद ने छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या करने से पहले मृतक ने अपना हाथ काटने की कोशिश की। गुरुप्रसाद इससे पहले दिल्ली और हैदराबाद में भी नौकरी कर चुका था। मौके से पुलिस ने एक सुसाइड नोट भी बरामद किया।
नोट में मृतक ने लिखा, 'आईटी में कोई जॉब सिक्योरिटी नहीं है। मुझे अपने परिवार को लेकर चिंता होती है।' शव को पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया है। पुलिस मामले की जाँच कर रही है।
खुदकशी की इस घटना को नजर्ंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि मैककिंसे एंड कंपनी की रिपोर्ट में कहा गया था कि आईटी सेवा कंपनियों में अगले 3-4 सालों में आधे कर्मचारी अप्रासंगिक हो जाएंगे। मैककिंसे एंड कंपनी के निदेशक नोशिर काका ने भी कहा था कि इस उद्योग के सम्मुख बड़ी चुनौती 50-60 फीसदी कर्मचारी को पुन: प्रशिक्षित करना होगा क्योंकि प्रौद्योगिकियों में बड़ा बदलाव आएगा। इस उद्योग में 39 लाख लोग कार्यरत हैं और उनमें से ज्यादातर को फिर से प्रशिक्षण देने की जरूरत होगी।
बड़ी संख्या में आईटी इंजीनियरों के बेरोजगार होने या उनकी नौकरियां असुरक्षित हो जाने की स्थिति खेतों की तरह आईटी सेक्टर के बी कब्रिस्तान में तब्दील हो जाने का खतरा है।
अमेरिका, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में वर्क वीजा पर कड़ाई की वजह से भारतीय सॉफ्टवेयर निर्यातक पर विशेष रूप से मार पड़ी है। आर्टिफिशल इंटेलिजेंस में नई प्रौद्योगिकी, रोबोटिक प्रक्रिया ऑटोमेशन और क्लाउड कंप्यूटिंग की वजह से कंपनियों अब कोई कार्य कम श्रमबल से कर सकती हैं। इसकी वजह से सॉफ्टवेयर कंपनियों को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना पड़ रहा है।
भारतीय आईटी सेक्टर के प्रोफेशनल्स के छंटनी की टेंशन बाद एक और समस्या का पहाड़ उन लोगों पर टूटने लगा है। आईटी प्रोफेशनल्स को पहले अपनी जॉब तो अब अपने जीवनसाथी ढ़ढने में दिक्क्तें आ रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आईटी प्रोफेशनल्स से लोग शादी करने से अब कतरा रहे हैं।
मैट्रीमोनियल वेबसाइट के ट्रेंड और पारंपरिक तौर पर 'रिश्ते मिलाने वालों'को देखा जाए तो मालूम होता है कि समय बदल चुका है| 'साफ्टवेयर इंजीनियर'दूल्हों की डिमांड अब पहले के मुकाबले बहुत कम हो गई है। सूत्रों के मुताबिक सामने आया है कि इसकी मुख्य वजह है आईटी सेक्टर में अनिश्चतता और छंटनी, ऑटोमेशन से नौकरियों पर मंडराता खतरा। इसके पीछे एक बड़ी वजह मानी जा रही है अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के तहत संरक्षणवादी भावना का बढ़ना। इस वजह कई भारतीय को अमेरिका से भारत लौटना पड़ा हैं।
सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल्स पर जो आदर्श वर का ठप्पा लगा था वह अब कम होने लग गया है, खासतौर पर जब अरेंज मैरिज की बात हो।
एक अंग्रेजी पेपर में छपी खबर के मुताबिक एक मेट्रीमोनियल एड का जिक्र है जिसमें तमिल के रहने वाले माता-पिता ने अपनी बेटी के लिए दूल्हे का ऐड छपवाया जिसके अंत में लिखा था हमें आईएएम, आईपीएस, डॉक्टर और बिजनेस मेन की तलाश है, कृपया सॉफ्टवेयर इंजीनियर कॉल न करें। शादी डॉट कॉम के सीईओ गौरव ने बताया कि, इस साल की शुरूआत से ही आईटी प्रोफेशनल्स तलाशने वाली लड़कियों की संख्या में कमी दर्ज की है।
Anatomy of Basirhat (West Bengal) Violence Ram Puniyani
Anatomy of Basirhat (West Bengal) Violence
Ram Puniyani
In an insane act of violence two people lost their lives in Basirhat (West Bengal, 04 07 2017). From last quite some time the social media is abuzz that WB is turning Islamist, Hindus are under great threat, their condition is becoming like that of Pundits in Kashmir. The section of TV media projected the view that WB is not safe for Hindus but is a heaven for Muslims. Angry posts are also declaring that Mamata is appeasing Muslims, Islamist Radicals are growing in Bengal with support from the Mamata Government etc.
This act of violence was provoked by a facebook post. (July 04, 2017) Once it was known in the area as to who has done the posting, they surrounded the house where the 17 year old boylived. The posting was derogatory to Muslims. As the atmosphere was building up the state machinery kept silent, till the aggressive mob of Muslims surrounded the house. Police intervention was too late. While the boy was saved despite the angry mob which was demanding that boy handed over to them
BJP leaders got hyperactive and visited the area as a delegation. They tried to enter the hospital to see the dead body of Kartik Chandra Ghosh (Age 65). Muslim attackers had killed him. This attempt of the BJP leaders was to derive political mileage from the situation as BJP claimed that Ghosh was President of one of the units of BJP, while Ghosh's son denied it.
The Governor of West Bengal, K.N. Tripathi, reprimanded Mamata Bannerjee for the violence. Seeing his attitude Mamata got upset and called him as the one belonging to BJP block level leader. Same Governor has been called as a 'dedicated soldier of Modi Vahini' by one BJP leader Rahul Sinha. The communal violence has taken a political color, BJP accusing chief minister Mamata Banerjee of appeasement of Muslims while the ruling Trinamool Congress is alleging that BJP is out for inciting communal passions to benefit electorally. Surprisingly with this violence, where two people have lost their life, BJP is demanding the President's rule in the state, while the law and order has already been restored within a week's time.
The picture in Bengal is very complex. A section of Muslim leadership is repeatedly doing violence in response to 'hurt sentiments'. Earlier also violence was unleashed by Muslims in Kaliachak, when one Kamlesh Tiwari had posted something offensive against Prophet Mohammad. The feeling of impunity enjoyed by this section of Muslim leadership is giving a big handle in the hands of Hindutva forces, for which this yet again is opportunity to polarize the society along religious lines. Here in Bengal they don't have to create the issue of 'Holy Cow' or 'Ram Temple', it is being provided by this misguided section of Muslim leadership.
The picture is being created that Bengal is in the grip of Islamization as earlier Kaliachak violence and now this violence are being cited to show that Hindus are unsafe here. There was no loss of life in Kaliachak incident but yes there was loss of property, though. The core theme of BJP-RSS propaganda is built around Hindu victimization.
The role of government has been far from satisfactory in this violence, as it had time enough to control the situation but it did not. The law and order machinery must ensure prevention of the buildup of such incidents. By and large one can say that effective system can prevent most of the riots, irrespective of who is the offender. Here the Government should have acted in time.
Surely, Mamata's alleged appeasement of Muslims does not apply in economic matters. The fact is that the economic conditions of Muslims of Bengal are among the worst in the country. The budgetary allocation for minorities in Bengal is much less than in many other states.
At the same time the communal polarization by the BJP is coming up with the menacing speed. In a state where Ram Navami (Lord Ram's birth day celebration) was practically unheard of, this year around the Ram Navami procession was taken out with frightening swords in hands. Lord Ganesh festival is also being promoted in the state where Ma Durga had been the main deity so far.
Finally, who benefits from the violence? The studies of different scholars on communal violence in India like those by Paul Brass point out that there is an institutional riot mechanism, the core part of which is the impunity enjoyed by the offenders, the abysmal role of justice delivery system as a whole. Another significant study from Yale University tells us that in the places where communal violence takes place, in the long run at electoral level, it is BJP which stands to benefit. Those who appease the Muslim fundamentalists should note this and see to it that that, to discharge the constitutionally assigned duties are the essence of governance, irrespective of the community involved in the violence.
Let's summarize the anatomy of violence in Bashirghat. Stage one, the offensive post on face book, two fundamentalist radical sections of Muslims unleash violence, number three the approach of the state government fails in preventing the violence. Number four BJP carries on from there and worsens the atmosphere by playing out videos which showed that Muslims were attacking Hindus in Basirhat. It turned out that videos were not from Bashirhat at all. They were taken from Gujarat violence of 2002. Also clips of a Bhojpuri films showing the molestation of Hindu women were recklessly circulated, the impression being given that this is happening in Basirhat. The same was claimed by BJP's national general secretary Kailash Vijayvargiya, who said that he had news of Hindu women being raped in the affected area. And lastly drums are beaten about victimization of Hindus in Bengal. One just hopes it will not lead to polarization of communities leading in a state where so far communal violence had been reasonably under check.
उनके पास साहित्यकार नहीं हैं तो हमारे पास कितने साहित्यकार बचे हैं? शिक्षा व्यवस्था आखिर क्या है?
क्लासिक साहित्य जनपक्षधर होता तो हिंदी में अज्ञेय से बड़ा जनपक्षधर कोई नहीं होता। संघी विचारधारा और एजंडे के लिए काम करनेवाले शाखाओं में निक्कर पहनकर प्रशिक्षित हों,यह जरुरी नहीं।आयातित हाइब्रिड जल जगंल जमीन से कटी प्रजाति के साहित्यकार बुद्धि्जीवी शाखाओं में गये बिना ही मुक्तबाजारी हिंदुत्व एजंडे के तहत साहित्य संस्कृति पर सवर्ण एकाधिकार वर्चस्व बनाये हुए हैं।ये लोग ही स
क्लासिक साहित्य जनपक्षधर होता तो हिंदी में अज्ञेय से बड़ा जनपक्षधर कोई नहीं होता।
संघी विचारधारा और एजंडे के लिए काम करनेवाले शाखाओं में निक्कर पहनकर प्रशिक्षित हों,यह जरुरी नहीं।आयातित हाइब्रिड जल जगंल जमीन से कटी प्रजाति के साहित्यकार बुद्धि्जीवी शाखाओं में गये बिना ही मुक्तबाजारी हिंदुत्व एजंडे के तहत साहित्य संस्कृति पर सवर्ण एकाधिकार वर्चस्व बनाये हुए हैं।ये लोग ही संघ परिवार के केसरिया अश्वमेध के गुप्त, घातक सिपाहसालार हैं। जो राजनेताओं से ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि ये ब्रेनवाशिंग रंगरेज हैं।
पलाश विश्वास
संदर्भः
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तारा बाबू का कुछ पढ़ा हो किसी ने तब तो कुछ कहेंगे। पलाश विश्वास ने बिना पढ़े ही सबको संघी घोषित कर दिया, इसीलिए मैंने इनके इस लेख पर कोई जवाब देना ज़रूरी नहीं समझा। इन्होंने गुरुदत्त को भी नहीं पढ़ा है। बस, नाम लिख दिया है कर्मेंदु शिशिर बंकिम चंद्र के आनंदमठ का हिंदुत्व से कुछ लेना देना नहीं मानते और वे ताराशंकर को क्सालिक मानते हैं और उनके सामंती मूल्यों पर चर्चा से उन्हें आपत्ति हैं।कर्मेंदु एक जमाने में हिंदी के सशक्त प्रतिबद्ध कथाकार माने जाते रहे हैं।इधर के उनके मंतव्यों को देख लें तो समझ में आ जायेगा कि कैसे हमारे तमाम प्रिय लोगों का पक्ष प्रतिपक्ष बदल गया है।मानुषी का स्त्रीपक्ष भी बदल गया है।हम साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में इस कायाकल्प की बात कर रहे थे। मीडिया के केसरियाकरण पर आम सहमति के बावजूद साहित्य और संस्कृति के केशरिया आधार,गढ़ों,किलों और मठों पर कोई विमर्श क्यों नहीं है,मेरा मुद्दा दरअसल यही है।अपवादों की हम चर्चा नहीं कर रहे,राजनीतिक धर्मनिरपेक्षता की बात बी हम नहीं कर रहे।समता,न्याय और सामाजिक यथार्थ की कसौटी पर जनपक्षधर साहित्य की बात हम कर रहे हैं।हमारे लिए शाखा या संघ संस्थानों से जुड़ाव भी कोई कसौटी नहीं है।मनुस्मृति बहाली के सवाल पर साहित्य में संघ परिवार के एजंडा के मुताबिक साहित्य सांस्कृतिक अखिल भारतीय परिदृश्य के अलावा हम इस उपमाद्वीप के जिओ सोशियो इकानामिक पोलिटिक्स के नजरिये से हमेशा अपनी बात रखते आये हैं। असहमति हो सकती है।आप हमारे तर्कों को सिरे से खारिज कर सकते हैं।इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हम सम्मान करते हैं।हिंदुत्ववादियों के गाली गलौज का भी हम खास बुरा नहीं मानते।जगदीश्वर जी शायद मुझे कोलकाता में होने की वजह से थोड़ा बहुत जानते हैं,जिनके फेसबुक मतव्य पर हमने मंतव्य किया है औय यह मंतव्य कोई शोध पत्र नहीं है कि संदर्भ प्रसंग सहित प्रमाण फेसबुक पर पेश किया जाये। जनविजय जी ने कह दिया कि मैंने तारा बाबू या गुरुदत्त को पढ़ा ही नहीं है।यानी उनके मुताबिक मैं अपढ़ और लापरहवा दोनों हूं।हम पलटकर यह नहीं कहेंगे कि उ्नहोंने ताराशंकर को पढ़ा नहीं है।विद्वतजन हम जैसे लोगों को अपढ़,अछूत और अयोग्य मानते हैं।जीवन में इसका नतीजा हमें हमेशा भुगतना पढ़ा है।मेरे लिखे का हिंदी जगत या बंग्ला या इंग्लिश इलिट भद्रलोक समुदाय ने कोई नोटिस नहीं लिया है और मुझे अफसोस नहीं है। चूंकि यह बहस पब्लिक डोमैन पर हो रही है तो मुझे जनविजय जी के इस मंतव्य पर थोड़ा स्पष्टीकरण देना है।कर्मेंदु शिशिर ने यह नहीं लिखा है कि मैंने ताराबाबू को नहीं पढ़ा है,तो इस पर मुझे कुछ नहीं कहना है।जगदीश्वर जी असहमत हैं। जनविजयजी जिस तरह हिंदी वालों का जन्मदिन याद रखते हैं,इससे लगता है कि वे हिंदी वालों को बहुत खूब जानते हैं।मैं चूंक नोटिस लेने लायक नहीं हूं ,वे मुझे नहीं जानते होंगे और जाहिर है कि मुझे कभी पढ़ा भी नहीं होगा।क्योंकि प्रिंट में मुझे कोई छापता भी नहीं है और न मैं पुस्तकें छपवाने में यकीन रखता हूं,तो यह उनका दोष भी नहीं है। मैंने थोड़ बहुत पढ़ाई बचपन से लेकर अब तक की है।जनविजय जी को मालूम होना चाहिए कि बंगाली परिवारों में सत्तर के दशक तक रवींद्र नजरुल माइकेल विद्यासागर शरत ताराशंकर का पाठ अनिवार्य दिनचर्या रही है।सत्तर के दशक तक हमने भक्तिभाव से वह सारा साहित्यआत्मसात किया है बंगाली संस्कृति के मुताबिक।यह मेरा कृत्तित्व नहीं है।सामुदायिक,सामाजिक जीवन का अभ्यास है।बाकी सत्तर के दशक में जीवन दृष्टि सिरे से बदल जाने से वह भक्तिभाव नहीं है जो रामचरित मानस,गीता भागवत, पुराण,उपनिषद पाठ का होता है। यही मेरा अपराध है। जनविजय जी,क्लासिक साहित्य जनपक्षधर होता तो हिंदी में अज्ञेय से बड़ा जनपक्षधर कोई नहीं होता।मुक्तिबोध ने कहा है कि सरल होने का मतलब जनता का साहित्य नहीं होता।कबीर दास की रचनाओं को हम सरल नहीं कह सकते क्योंकि उसका दर्शन बेहद जटिल है।लेकिन उनका पक्ष जनता का पक्ष है,यह कहने में दिक्कत नहीं है।रामचरित रचने वाले गोस्वामी तुलसी दास का रामायण क्लासिक लोकसाहित्य है लेकिन उनका मर्यादा पुरुषोत्तम हिंदू राष्ट्र का अधिनायक और मनुस्मृति अनुसासन लागू करने वाला है।उनका राम स्त्री विरोधी है।इस सच का सामना करने का मतलब यह कतई नही है कि हम संतों के सामंत विरोधी आंदोलन को खारिज कर रहे हैं। बहुत कुछ महत्वपूर्ण और क्लासिक लिखा जा रहा है।हमारे समय के दौरान उदय प्रकाश और संजीव ने बहुत कुछ रचा है।संजीव के रचनास्रोतों और उनकी पृष्ठभूमि से मैं परिचित हूं और उदयप्रकाश की रचनाओं की खूब सराहना होने के बावजूद मैंने उसे जनपक्षधर नहीं बताया है।इसी के साथ संजीव को बी मैंने बदलाव का साहित्यकार नहीं माना है। बांग्ला में अस्सी के दशक के बाद जो कोलकाता केंद्रित साहित्य लिखा जा रहा है,उसके मुकबले हमने हमेशा बांग्लादेश के जनपद केंद्रित या असम,त्रिपुरा,बिहार में लिखे जा रहे बांग्ला साहित्य को बेहतर माना है।इसलिए सुनील गंगोपाध्याय समूह के लेखकों और कवियों के पक्ष में मैं कभी नहीं रहा हूं। बांग्ला में माणिक बंद्योपाध्याय,महाश्वेता या नवारुण दा को भद्रलोक समाज क्लासिक नहीं मानता और वह ताराशंकर के बाद सीधे सुनील संप्रदाय का महिमामंन करता है जैसे आज भी धर्मवीर भारती अज्ञेय के वंशज हिंदी में मठों के मालिकान हैं। सत्तर के दशक में हिंदी, बांग्ला,मराठी,पंजाबी साहित्य का जो जनप्रतिबद्ध कृषि क्रांति समर्थक धारा है,वह मुक्तबाजार में किसतरह कारपोरेटमीडिया की तर्ज पर कारपोरेट हिंदुत्व के मूल्यों के अबाध पूंजी प्रवाह में तब्दील है,मेरी मुख्य चिंता इस सांस्कृतिक सामाजिक कायाक्लप की है,जिसकी राजनीतिक अभिव्यक्ति निरंकुश रंगभेदी मनुस्मृति सत्ता है और जिसका धारक वाहक संघ परिवार है। जरुरी नहीं है कि साहित्य और संस्कृति की यह धारा सीधे तौर पर गुरु गोलवलर और सावरकर विचारधारा से प्रेरित है।सरकारी खरीद,सरकारी अनुदान और पाठ्यक्रम के मुताबिक प्रकाशन तंत्र की वजह से हिंदी में राजबाषा होने की वजह से भारतीय भाषाओं में सबसे ज्यादा पूंजी खपने की वजह से एक अदृश्य सर्वशक्तिमान सवर्ण जातिवादी माफिया तंत्र हैं,जिसमें प्रकाशक,आलोचक और संपादक वर्ग समाहित है।पाठ्यक्रम में किताबों की खरीद तय करने वाले प्राध्यापकों का एक शक्तिशाली तबका भी हिंदी पर कंडली मारे हुए है।लघु पत्रिका आंदोलन के अवसान के बाद इसलिए सरकारी पूंजी से हिंदी में केसरियाकरण या केसरिया कायाकल्प निःशब्द रक्तहीन क्रांति है और इस सच का सामना विद्वतजन करना नहीं चाहते। जगदीश्वरजी ने संघ की विचारधारा से जुड़ी रचनाधर्मिता पर सवाल उठाया है,क्लासिक साहित्य पर नहीं।लोकसाहित्य और लोकसंस्कृति के मुताबिक गोस्वामी तुलसीदास बेजोड़ हैं,लेकिन उनका राम स्त्रीविरोधी,अनार्यसभ्यताविरोधी,द्रविड़ विरोध,अस्पृश्यता का समर्थक और हिंदू राष्ट्र की नस्ली विचारधारा का मूल स्रोत है,यह लिखने से आप कहेंगे कि हमने रामायण भी है संघी विचारधारा और एजंडे के लिए काम करनेवाले शाखाओं में निक्कर पहनकर प्रशिक्षित हों,यह जरुरी नहीं।आयातित हाइब्रिड जल जगंल जमीन से कटी प्रजाति के साहित्यकार बुद्धि्जीवी शाखाओं में गये बिना ही मुक्तबाजारी हिंदुत्व एजंडे के तहत साहित्य संस्कृति पर सवर्ण एकाधिकार वर्चस्व बनाये हुए हैं।ये लोग ही संघ परिवार के केसरिया अश्वमेध के गुप्त, घातक सिपाहसालार हैं। जो राजनेताओं से ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि ये ब्रेनवाशिंग रंगरेज हैं। | ||||
जनविजय जी,आप हमें साहित्य का आदमी नहीं मानते।आपको मालूम होना चाहिए कि मैंने ताराशंकर बंद्योपाध्याय का लिखा हर उपन्यास पढ़ा है और उन पर बनी फिल्में भीि देखी हैं।मैने बहुत पहले अंग्रेजी में एक लेख तारासंकर के रचनासमग्र पर लिखा था,human documentation of hatred:
http://palashbiswaslive.blogspot.in/2008/07/human-documentation-of-hatred.html
ताराशंकर की रचनाएं बंगाल में जमींदार तबके के संकट और औद्योगीकरण की वजह से उत्पादन प्रणाली में जमींदारी और जातिव्यवस्था के टूटन के विरुद्ध है।उनके सबसे मशहूर उपन्यास गणदेवता का चंडीमंडप का चौपाल मनुस्मृति व्यवस्था को बनाये रखने की कथा है क्योंकि जाति अनुशासन तोड़कर गांव के लोग शहरो में जाकर अपना पेशा बदल रहे थे।सत्यजीत राय की फिल्म जलसाघर आपने देखी होगी,जिसमें जमींदारी के पतन का विषाद मुख्यथीम है।गौरतलब है कि बंगाल में स्वराज आंदोलन जमींदारों के पतन और स्थाई बंदोबस्त के टूटने के कारण शुरु हुआ क्योंकि तब तक बंगाल में आदिवासी किसान विद्रोहों और मतुआ आंदोलन की वजह से बहुजन आईंदोलन सवर्ण वर्चस्व को तोड़ने लगा था और तीनों अंतरिम सरकारें गैर सवर्ण दलित मुस्लिम नेतृत्व में थी।
भाषा,शिल्प के मुताबिक ताराशंकर मेरे भी प्रिय कथाकार हैं।उनकी रचनाओं में चरित्रों और परिस्थितियों का जो ब्यौरेवार विश्लेषण चित्रण है,उसका मुकाबला भारतीय साहित्य मे शायद किसी के साथ नहीं हो सकता।बंगाल में सामाजिक यथार्थ उपन्यास में उन्होने ही सबसे पहले पेश किया है।उनकी रचनाएं क्लासिक है,इसमें कोई दो राय नहीं है।
हम उनके पक्ष की बात कर रहे हैं।वे गांधीवादी थे और गांधी की तरह वर्ण व्यवस्था के कट्टर समर्थक थे।उनका मानवतावाद मनुस्मृति का मानवतावाद है जो रामकृष्ण मिशन का मानवता वाद है जो भारत सेवाश्रम से हिंदुत्व से अलग है।
कहने को दर्शन नर नारायण है और आचरण अस्पृश्यता है।
रामकृष्ण मिशन के मानवतावादी हिंदुत्व और कांग्रेस की नर्म हिंदुत्व की राजनीति एक सी है,जिसे किसी भी सूरत में गुरु गोलवलकर या सावरकर की विचारधारा से जोड़ा नहीं जा सकता।यहीं उदार दर्शनीय मानवतावाद और नर्म सनातन हिंदुत्व मनुस्मृति व्यवस्था के लिए संजीवनी है,जो बंगाल के नवजागरण और ब्रह्मसमाजे के बाद रामकृष्ण और विवेकानंद के स्रवेश्वरवाद की वजह से सहनीय हो गया है।इसलिए बंगाल में वैज्ञानिक ब्राह्मणतंत्र के एकाधिकार वर्चस्व के खिलाफ बहुजनों में किसा तरह का कोई विद्रोह आजादी के बाद नहीं हुआ है।यह उत्तरभारत और दक्षिण भाऱत के दलित उत्पीड़न की प्रतिक्रिया में हो रहे दलित आंदोलन के समूचे परिप्रेक्ष्य को बंगाल में अप्रासंगिक बना देता है क्योंकि इस उदार मानवता वाद की वजह से अस्पृश्यता और बेदभाव के अन्याय और असमता के तंत्र पर किसी की नजर जाती नहीं है।यह दलित उत्पीड़न से ज्यादा खतरनाक स्थिति है।
हम आज हिंदुत्व के पुनरूत्थान के लिए गुरु गोलवलकर और सावरकर की तुलना में कांग्रेस की वंशवादी,जमींदारी,रियासती,ब्राह्मणवादी हिंदुत्व को ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं।कांग्रेस की यह विचारधारा सबसे ज्यादा बारतीय साहित्य में ताराशंकर के रचनाकर्म में अभिव्यक्त हुई है।जिसका महिमामंडन करने में हिंदी के विद्वतजन भी पीछे नहीं है।यह हिंदुत्वकरण की वैज्ञानिक पद्धति है।जिसकी ज़ड़ें बंगाल में हैं।
यह सच है कि माणिक बंद्योपाध्याय के पुतुल नाचेर इतिकथा और पद्मा नदीर मांझी में अंत्यज जीवन के ब्यौरे की तुलना में ताराशंकर के देहात,जनपद और अंत्यज जीवन के ब्यौरे ज्यादा प्रामाणिक हैं।
इसीतरह महाश्वेता देवी के उपन्यासों की आदिवासी दुनिया के मुकाबले ताराशंकर के आदिवासी ज्यादा असल लगते हैं।लेकिन माणिक और महाश्वेता दोनों सामंती और साम्राज्यवादी मूिल्यों के विरुद्ध थे और किसान आदिवासियों के संघर्ष की कथा तो ताराशंकर के उपन्यासों में है ही नहीं।
ताराशंकर के रचनासमग्र में सबकुछ जमींदारी प्रथा की शोकगाथा है या मनुस्मृति अनुशासन टूटने का विलाप है।
इसी तरह शरत हर हाल में स्त्री अस्मिता का पक्षधर है लेकिन उनका हर नायक ब्राह्मण है और वे ब्रह्म समाज के कट्टर विरोधी भी थे।इसके विपरीत किसानों , आदिवासियों के सामाजिक जीवन संघर्ष के साथ उनका साहित्य नहीं है।
इसी वजह से हम उन्हें रवींद्र नाथ और प्रेमचंद के साथ नहीं रखते हैं।
कवि ताराशंकर का बेहद लोकप्रिय उपन्यास है,जिसपर फिल्म भी बनी है।कवि जाति से डोम है।कवि नायक हैं।लोकसंस्कृति कविगान की पृष्ठभूमि में लिखे इस उपन्यास की पंक्ति दर पंक्ति दर सारी कथा भद्रलोक सवर्ण दृष्टि से है और दलितों ,अछूतों की जीवनशैली के प्रति अटूट घृणा है।
इसीतरह हांसुली बांकेर उपकथा और नागिनी कन्यार काहिनी में वे आदिवासी जीवन का सघन ब्यौरे पेश करते हैं।लेकिन औद्योगीकरण,शहरीकरण और उत्पादन प्रणाली में बदलाव की वजह से आदिवासियों की मुख्यधारा से जुड़ने के वे खिलाफ हैं और उनके पक्षधर हैं।वहां टोटेम आधारित जीवनपद्धति और परंपरागत पेशा में बने रहने पर सारा जोर है।
मजा यह है कि ताराशंकर का समूचा रचना संसार राढ़ बांग्ला की लाल माटी में रचा बसा है और जनपद का इतना प्रामाणिक साहित्य भारतीय भाषाओं में दुर्लभ है,जिसे क्लासिक माना जाता है।हिंदी के लोग भी उन्हें क्लासिक मानते हैं।वे लोग अंग्रेजी के वेसेक्स क्षेत्र केंद्रित उपन्यासों को क्लासिक मानते हैं।लेकिल शैलेश मटियानी या फणीश्वरनाथ रेणु या शानी उनके लिए सिर्फ आंचलिक उपन्यासकार हैं।यह दोहरा मानदंड बी अजब गजब का है।
क्लासिक साहित्य जनपक्षधर हो,यह कोई जरुरी नहीं है।
पूंजीवाद और मुक्तबाजार के पक्ष में क्लासिक साहित्य लिखा गया है।
जार्ज बर्नार्ड शा का एप्पल कार्ट तो सीधे तौर पर लोकतंत्र के खिलाफ राजतंत्र के पक्ष में लिखा गया नाटक है और वे भी क्लासिक हैं।शोलोखोव भी क्लासिक हैं और बोरिस पास्तरनाक भी क्लासिक है।हम गोर्की,दास्तावस्की या तालस्ताय की श्रेणी में शोलोखोव और पास्तरनाक को कहां रखेंगे,काफ्का या यूगो के मुकाबले कामू को कहां रखेंगे,मुद्दा यही है।
अज्ञेय की भाषा अद्भुत है,लेकिन उन्हें हम प्रेमचंद की श्रेणी में नहीं रखते या मुक्तिबोध के समकक्ष नहीं समझते।मोहन राकेश राजेंद्र यादव कमलेश्वर को क्या हम प्रेमचंद के साथ खड़ा पाते हैं,सवाल यही है।
सामाजिक यथार्थ के उपन्यासकार माणिक बंद्योपाध्याय या महाश्वेता देवी की रचनाओं के मुकाबले ताराशंकर ज्यादा पठनीय हैं,ज्यादा शास्त्रीय है,लेकिन वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति के विरुद्ध उनके आरोग्य निकेतन का विमर्श प्रतिगामी है,यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है।
साठ के दशक में हमने गुरुदत्त के तमाम उपन्यास पढ़े हैं।भारत विभाजन की कथा से
लेकर आर्यसमाज की विचारधारा पर केंद्रित उपन्यास और कम्युनिस्ट,गांधी नेहरु विरोधी उपन्यास भी।
इसी तरह नरेंद्र कोहली और आचार्य चतुरसेन को भी हमने खूब पढ़ा है।
कोहली और चतुरसेन की रचनाएं साहित्यिक दृष्टि से ज्यादा समृद्ध थीं और आम जनता पर उसका कोई खास असर नहीं रहा है।गुरुदत्त लेकिन काफी असरदार थे।
क्योंकि आर्यसमाज की हिंदुत्व के पुनरूत्थान में वही भूमिका है जो बंगाल में रामकृष्ण मिशन की है या यूपी में पतंजलि योगाभ्यास की है।
उत्तर भारत के शहरों मे संघ परिवार की शाखा प्रशाखा का विस्तार सरस्वती सिशु मंदिर के साथ साथ आर्यसमाज आंदोलन के साथ हुआ है।गुरुदत्त के तमाम उपन्यासों में गांधी नेहरु की विचारधारा और कम्युनिस्टों के उग्र विरोध के साथ भारत विभा्जन से लिए मुसलमानों और गांधी को जिम्मेदार ठहराया गया है।जो साहित्य में भले ही उपेक्षित रहा हो,लेकिन हिंदी के हिंदुत्ववादी,आर्यसमाजी पाठकों में उसका असर अमिट है।शरणार्थी परिवार से होनेकी वजह से जूनियर कक्षाओं में ये उपन्यास पढ़ते हुए हम भी कापी विचलित रहे हैं।
आपको शायद हैरत होगी कि हम पिछले चार दशकों से हिंदी,बांग्ला और दूसरी भारतीयभाषाओं के साहित्य का अध्ययन करता रहा हूं।अंग्रेजी साहित्य का विद्यार्थी होने के बावजूद मैंने रूसी,फ्रांसीसी और यूरोपीय भाषाओं का साहित्य ज्यादा पढ़ा है।
मीडिया की तरह साहित्य और संस्कृति के केसरियाकरण जो हो रहा है,अध्यापक प्राध्यापक केंद्रित साहित्य और विमर्श का जो मनुस्मृति बोध है,वह आरएसएस की विचारधारा के मुताबिक है।
मैंने बंगाल के अलावा बांग्लादेश के साहित्य पर भी लगातार अध्ययन किया है ,जो जनपद केंद्रित हैं,बोलियों में लिखा गया है।
हर किसी को आलोचकों,संपादकों और प्रकाशकों के हितों के मुताबिक या खेमाबंदी के तहत महान कह देने वाला मैं नहीं हूं।हालांकि आप सही है कि मेरे लिखे पर आप जैसे विद्वतजन कोई महत्व देना जरुरी नहीं समझते।
प्रांजय को हटाने के पीछे अडानीवाला केस तो बहना है,असल वजह तेल की धार है पलाश विश्वास
समझा जाता है कि प्रबंधन के दबाव में न झुकते हुए परंजॉय गुहा ठाकुरता ने संपादक पद से त्यागपत्र दे दिया। इस घटनाक्रम को कारपोरेट घराने और केंद्र सरकार द्वारा मिलकर EPW प्रबंधन पर बनाए गए दबाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। सच कहने सच लिखने वाले पत्रकारों पर हाल के वर्षों में प्रबंधन का काफी दबाव पड़ता रहा है जिसके फलस्वरूप ऐसे पत्रकारों को इस्तीफा देने को बाध्य होना पड़ा है।
यशवंत ने हाल में घोषणा की है कि भड़ास बंद करने जा रहे हैं।इस खबर के खुलासे से जाहिर है कि वे अपनी आदत से बाज नहीं आयेंगे और मालिकान का सरदर्द बने रहेंगे।प्रांजय को हटाये जाने का अफसोस है।प्रभाष जोशी जब किनारे कर दिये गये और प्रतिबद्ध पत्रकारों का गला जिसतरह काटे जाने का सिलसिला चला है,इसमें नया कुछ नहीं है।बहरहाल यशवंत के जरुरी भड़ासीपन के जारी रहने की उम्मीज जगने से मुझे खुशी है।
No Parliamentary relief for Darjeeling Hills and Indian politics shows unprecedented apathy against the Himalayan region and its people under serious threat of greater calamity! Palash Biswas
साहित्य और कला माध्यमों का माफिया मीडिया तो क्या राजनीति के माफिया का बाप है। --पलाश विश्वास
महत्वपूर्ण खबरें और आलेख सबसे बड़ा सच : मीडिया तो झूठन है, दिलों और दिमाग को बिगाड़ने में साहित्य और कला माध्यम निर्णायक, वहां भी संघ परिवार का वर्चस्व
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