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एक के बाद एक आंदोलन क्या सरकार की नाकामी या सरकार की साजिश..

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एक के बाद एक आंदोलन क्या 


सरकार की नाकामी या 


सरकार की साजिश..

Kumar Gaurav 

कई छोटे-छोटे आंदोलन एक बड़े आंदोलन की जमीन को खोखला करते है...बड़े विस्फोट को रोकना हो तो ऊर्जा को विभाजित कर दो पिछले एक वर्ष में जिस तरह से एकके बाद एक विरोध हो रहे हैं क्या इस आशंका से इंकार किया जा सकता है कि यह सरकार की साजिश का ही हिस्सा है..क्या सरकार के थिंक टैंक को इस बात की आशंका नहीं होगी कि हम जो कर रहे हैं इसका विरोध कितना व्यापक और कितना दूरगामी होगा....मुझे लगता है हम वही कर रहे हैं जो यह सरकार चाहती है....इतिहास में व्यापक आन्दोलनों से सबक लेते हुए सरकार ने अपने बचाव पक्ष के लिए अपने किले की दीवार को शायद इसी छिटपुट आन्दोलनों से मजबूत करने का सोचा हो....

(विरोध होते रहने चाहिए पर उतना ही आवश्यक है ऊर्जा का केंद्रित होना आंदोलन की जमीं का मजबूत होना)

आप क्या सोचते हैं ?????

विचारणीय बिंदु 
1. लव जिहाद
2. अल्पसंख्यक समुदाय पर निशाना 
3. हिंदुत्व का पुराना राग 
4. FTII आंदोलन
5. सहिष्णुता मुद्दा 
5. यूजीसी आंदोलन
6. रोहित मुद्दा

सभी एक के बाद एक क्रम में हुए है

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