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यह अभूतपूर्व धर्म संकट क्यों है? क्योंकि मनुष्यता और प्रकृति के विध्वंस का मुक्तबाजार हमने चुना है! आस्था और धर्म कर्म की सांस्कृतिक जड़ें खत्म करके हम अपराधकर्म में तब्दील कर रहे हैं धर्म को? सौ सालों के आर पार मनुष्यता के लोकसंगीत की पूरब पश्चिम धाराओं को एकाकार कर देने के पीछे विशुध भारतीय बाउल आंदोलन और लालन फकीर का दर्शन है जो संत कबीर का दर्शन,संत रविदास की दृष्टि और तथागत गौ

Next: ताराचंद्र त्रिपाठी:इसी खंडदृष्टि के कारणऔर बहुलांश में जातीय या राष्ट्रीय अहंकार के कारण भी हम मानव इतिहास के उस मानव-महासागरीय स्वरूप का अनुभव नहीं कर पाते हैं, जो वास्तविक है. इस मानव-महासागर में किस सांस्कृतिक चेतना की लहर कहाँ उपजी और कहाँ तक पहुँच गयी, पूर्वग्रहों से मुक्त हुए बिना इस रहस्य को समझना सम्भव नहीं है.
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यह अभूतपूर्व धर्म संकट क्यों है?

क्योंकि मनुष्यता और प्रकृति के विध्वंस का मुक्तबाजार हमने चुना है!

आस्था और धर्म कर्म की सांस्कृतिक जड़ें खत्म करके हम अपराधकर्म में तब्दील कर रहे हैं धर्म को?

सौ सालों के आर पार मनुष्यता के लोकसंगीत की पूरब पश्चिम धाराओं को एकाकार कर देने के पीछे विशुध भारतीय बाउल आंदोलन और लालन फकीर का दर्शन है जो संत कबीर का दर्शन,संत रविदास की दृष्टि और तथागत गौतम बुद्ध का धम्म भी है और इसका सबूत फिर गीतांजलि के कवि का लिखा गीति नाट्य चंडालिका है,जहां बुद्धं शरणं गच्छामि के साथ बहुजन जीवन यंत्रणा जितनी है,उससे कहीं अधिक भारत की दार्शनिक विरासत का समन्वय की विविधता और बहुलता है।

पलाश विश्वास

हमारा धर्म कितना कमजोर है जो महज असहमति या आलोचना से लहूलुहान हो जाता है?

हमारी आस्था कितनी निराधार है कि हम दूसरों की आस्था से अपने को असुरक्षित मानते हैं?

हमारी आस्था कितनी असहाय है कि नास्तिकता की चुनौती के सामने वह आत्मरक्षा के लिए गिरोहबंद अपराधकर्म में बदल जाती है?

आस्था और धर्म कर्म की सांस्कृतिक जड़ें खत्म करके हम अपराधकर्म में त्बील कर रहे हैं धर्म को?

मनुष्यता और प्रकृति को तिलांजलि देकर मुक्तबाजार का नरसंहार ही अब धर्म कर्म है,इसीलिए यह अभूतपूर्व हिंसा,युद्ध, गृहयुद्ध और फासिज्म का राजकाज है।

भारतीय उपमहादेश में धर्म कर्म का बुनियादी आधार मनुष्यता और प्रकृति दोनों है।सिंधु सभ्यता,वैदिकी साहित्य,बौद्धमय भारत,जैन धर्म,सिख धर्म से लेकर अठारवीं सदी के नवजागरण समय के ब्रह्म समाज और मतुआ आंदोलन में कर्मकांड के कारोबार,पुरोहित तंत्र और पाखंड के बदले मनुष्यता और प्रकृति को सभी स्तरों पर सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है।

भारतीय संत परंपरा में संत कबीर, सूरदास,रसखान से लेकर संत रैदास, चंडीदास और लालन फकीर के जाति धर्म के बजाय उनकी मनुष्यता का दर्शन ही सिंधु सभ्यता,वैदिकी साहित्य,बौद्ध धम्म,जैन अहिंसा,गुरुग्रंथ साहेब की गौरवशाली परंपरा है।

भारत में उपासना पद्धति और धर्मस्थलों तक धर्म सीमाबद्ध कभी नहीं रहा है।हमारे महाकाव्यों में धर्म की व्याख्या भी मनुष्यता के शाश्वत मूल्यों पर आधारित है।जिस श्रीकृष्ण ने गीता के उपदेश दिये,वह जन्म से आर्य नहीं हैं।उनके मामा और दूसरे परिजन असुर हैं तो वे पले बढ़े ग्वालों के साथ,जो न ब्राह्मण हैं और न क्षत्रिय। आज की भाषा में कहें तो श्रीकृष्ण ओबीसी हैं।इसी तरह हिंदुओं के आदि देव महादेव अनार्य हैं तो चंडी ते तमाम रुपों में आर्य अनार्य मिलाप है।काली कामाख्या अनार्य हैं।

विज्ञान और जीव विज्ञान में जड़ और जीवित प्राणियों में भेद स्पष्ट हैं।जीवित सभी प्राणियों के जैविकी जीवन से मनुष्य का जीवन चक्र अलहदा नहीं है।बहुत पहले भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने अपने प्रयोगों से साबित किया है कि वनस्पति भी उतने ही संवेदनशील हैं,जितने कि मनुष्य।बौद्ध धर्म और जैन धर्म में सभी जीवों के प्रति अहिंसा का अनुशीलन है।सभी जीवों और वनस्पतियों की अपनी भाषा होती हैं और उनकी इंद्रियां भी उनके जीवन चक्र को नियंत्रित करती है।

भारतीय दर्शन परंपरा के मुताबिक इस जैविकी जीवन के इंद्रिय नियंत्रित जीवन चक्र से मुक्त विवेक और प्रज्ञा के लक्ष्य ही धर्म कर्म के बुनियादी सिद्धांत रहे हैं। बायोलाजिकल के बजाय भारत में जो स्पीरिच्युअल लाइफ की बात की जाती है,वही भारतीय आध्यात्म है लेकिन वह धर्म कर्म का पुरोहित तंत्र कतई नहीं है।बल्कि पुरोहित तंत्र के अनुशासन या मनुस्मृति के दायरे से बाहर बहुसंख्य आम जनता का आध्यात्म और विविध बहुल धर्म कर्म रीति रिवाज पर्व त्योहार हमारा साझा लोकसंंसार है, लोकभाषाएं, बोलियां और लोकसंस्कृति के विविध रुप हैं।

यह भारतीय लोकसंसार का आध्यात्म जैविकी भोग और विलास के इद्रिय नियंत्रित जैविकी जीवन से मुक्ति के लिए ही धर्म कर्म आस्था उपासना को माध्यम मानता है,जो गांधी के शब्दों में कहें तो साधन हैं,साध्य नहीं है।साध्य मनुष्यता है जो नैसर्गिक है और प्राकृतिक भी है।

वैदिकी साहित्य में वेदों में प्राकृतिक शक्तियों की ही उपासना है,जहां मूर्ति पूजा नहीं है।मिथक भी वेदों ने रचे नहीं है।वेदों,ब्राह्मण ग्रंथों और संहिता साहित्य के बाद शुरु उपनिषद और आरण्यक काल में इसी जैविकी जीवन से मुक्ति के मार्ग खोजे जाते रहे हैं,तो उनमें जनपदों के लोक जीवन की गूंज भी सर्वत्र है।वैदिकी काल से उपनिषद आरण्यक काल में जो भी साहित्य रचा गया है,वह प्रकृति के सान्निध्य में आरण्यक सभ्यता का उत्पादन है।वैदिकी काल से लेकर उपनिषद काल तक कहीं मिथक नहीं हैं।मिथक आधारित धर्म कर्म और मूर्ति पूजा नहीं है।यज्ञ और होम भी सत्ता का धर्म है,जो आम जनता में कहीं प्रचलित नहीं है और ऩ उनपर पुरहोित तंर्त कहीं हावी है।

वैदिकी काल से ही आस्था के समांतर अनास्था और नास्तिकता के चार्वाक द्रशन परंपरा की निरंतरता है।मिथक महाकाव्यों और पुराणों की उपज हैं,जिनका सिलसिला वैदिकी धर्म के अवसान और ब्राह्मण धर्म के उत्थान से शुरु हुआ।

गौतम बुद्ध की सामाजिकत क्रांति के तहत समता और न्याय पर आधारित जो धम्म प्रवर्तन हुआ उसके साथ ही ब्राह्मण ध्रम का अवसान हो गया।लेकिन बुद्धमय भारत के अवसान के बाद मनुस्मृति के अनुशासन के मुताबिक रचे गये मिथकों के धर्म कर्म,मूर्तिपूजा,मंत्र तंत्र और उन पर आधारित रंगभेदी जातिव्यवस्था की वजह से पुरोहित तंत्र लगातार मजबूत होता रहा लेकि धर्म के बुनियादी सिद्धांत कतई नहीं बदले। जैविकी जीवन चक्र से मुक्ति का लक्ष्य नहीं बदला।लोक आध्यात्म भी नहीं बदला।जिसकी निरंतरता भारत का संपूर्ण इतिहरास है तो अखंड संस्कृति भी है।

जैविकी जीवन से मुक्ति का जो साध्य भारतीय धर्म कर्म आध्यात्म का है,वह भारतीयता की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है और हमारे जनपद साहित्य, लोक साहित्य, कला माध्यमों, विधाओं, बोलियों, लोक परंपराओं,लोकगीतों, नृत्यों,लोकसंस्कृति और रंगकर्म में उसकी निरंतरता रही है,जो लोकतंत्र का वास्तविक विमर्श है और जिसका आधार सामाजिक यथार्थ और उत्पादन संबंध दोनों हैं।

इसके विपरीत गैर भारतीय सभ्यताओं में सारा जोर जैविकी जीवन का चरमोत्कर्ष है।यूरोप और अमेरिका में औद्योगिक क्रांति के बाद विज्ञान और तकनीक के चमत्कार से जैविकी जीवन और इंद्रियों की आकांक्षा की पूर्ति का मुक्त बाजार भोग और विलास,युद्ध,गृहयुद्ध और अभूतपूर्व हिसां का चरमोत्कर्ष है,जहां जैविकी जीवन को सुख संपत्ति का आधार बनाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों की लूटखसोट की अबाध पूंजी प्रवाह और क्रयशक्ति ही अंतिम साध्य हैं,जिसके लिए मनुष्यता और प्रकृति का विध्वंस अनिवार्य है।अनंत भोग है ,जिसका कोई अंत नहीं है ।अनंत लोभ है,जिसकी कोई सीमा नहीं।

इसके विपरीत,भारतीय आध्यात्म,लौकिक जीवन और भारतीय संस्कृति,आस्था और धर्म कर्म में लेकिन भग और लोभ दोनों का निषेध है। यहां कर्म का मतलब श्रम है और श्रम के बिना जीवन चक्र भी हमारे यहां निषिद्ध है।बिना श्रम भोजन भी निषिद्ध है और पूरी सामाजिक संरचना उत्पादन प्रणाली के ढांचे के मुताबिक है।

भोग और लोभ की अंधी पागल दौड़ की इसी जैविकी सभ्यता के विकास के खिलाफ गांधी ,रवींद्रनाथ,विवेकानंद से लेकर आइनस्टीन और तालस्ताय जैसे तमाम दार्शनिक और चिंतक दुनियाभर में सक्रिय हैं तो जैविकी जीवन से मुक्ति के साध्य के तहत भारतीय दर्शन पंरपरा और लोक जीवन में मनुष्यता अब भी सर्वोच्च है।वही धर्म कर्म दोनों हैं,जिसमें बुनियादी जरुरतों के सामाजिक यथार्थ हैं और उसके लिए देशज उत्पादन प्रणाली है,जिसके उत्पादक संबंधों के जरिये भारतीय संस्कृति का विकास हुआ है।लेकिन भोग विलास के लिए क्रयशक्ति की कोई प्रासंगिकता है नहीं।

भारत में धर्म कर्म और आध्यात्म में असहिष्णुता का कोई इतिहास नहीं रहा है और विभिन्न रक्तधाराओं के विलय से बने महान भारततीर्थ में विविधता और बहुलता का गौरवशाली इतिहास हमारा है,जहां आस्था या अनास्था,धर्म कर्म के अधिकार में सत्ता के पुरोहित तंत्र का भी कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ है।

तो करीब सात हजार साल के ज्ञात भारतीय इतिहास में आज यह अभूतपूर्व धर्म संकट क्यों है,इसपर हम विवेचना करें तो बेहतर है।

यह धर्म संकट इसलिए है कि धर्म के नाम पर हम पुरोहित तंत्र के राजकाज के ब्राह्मणधर्म को सत्ता सौंपी है और भारतविरोधी मनुष्यता विरोधी प्रकृतिविरोधी युद्धक मुक्तबाजार के लिए अपनी अर्थव्यवस्था,अपनी उत्पादन प्रणाली,अपने प्राकृतिक संसाधनों के साथ साथ अपने गौरवशाली इतिहास और भारतीय संस्कृति को तिलांजलि देकर हम अमेरिकी जैविकी चरमोत्कर्ष की क्रयशक्ति की अंधीदौड़ में एक दूसरे का गला काटने से भी हिचक नहीं रहे हैं।मुक्तबाजार का यह महाभारत है।युद्धोन्माद है।

इसीलिए हमारा धर्म अब हमारा आध्यात्म नहीं है,युद्धोन्माद है।

हम उस लालन फकीर को नहीं जानते,जिन्होंने अपने वजूद के भीतर मनुष्यता के चरमोत्कर्ष के लिए सारी अस्मिताओं को तिलांजलि देकर कर्म कांड के पाखंड के बजाय धर्मनिरपेक्षता के विविधता और बहुलता का धर्म साधा है।

लालन फकीर गीत गोविंदम के जयदेव और पदावली के चंडीदास और वैष्णव आंदोलन के चैतन्य महाप्रभु को बाउल दर्शन में एकाकार कर देते हैं और इसी बाउल दर्शन के आाधार पर रवींद्र की गीतांजलि है,जिसे नोबेल पुरस्कार मिलने के पूरी एक सदी के बाद एक और बाउल, अमेरिकी जिप्सी बाउल बाब डिलान को राक एंड रोल और जाज के मूल स्वर से पृथक लोकसंगीत की जमीन पर खड़े होने के लिए,संगीत में मनुष्यता की जड़ों को खोजते हुए गीत लिखने के लिए नोबेल मिला है।जो उपलब्धि रवींद्र ने सौ साल पहले हासिल कर ली थी।दोनों उपलब्धियां बाउलधर्मी हैं।

सौ सालों के आर पार मनुष्यता के लोकसंगीत की पूरब पश्चिम धाराओं को एकाकार कर देने के पीछे विशुध भारतीय बाउल आंदोलन और लालन फकीर का दर्शन है जो संत कबीर का दर्शन,संत रविदास की दृष्टि और तथागत गौतम बुद्ध का धम्म भी है और इसका सबूत फिर गीतांजलि के कवि का लिखा गीति नाट्य चंडालिका है,जहां बुद्धं शरणं गच्छामि के साथ बहुजन जीवन यंत्रणा जितनी है,उससे कहीं अधिक भारत की दार्शनिक विरासत का समन्वय की विविधता और बहुलता है।

गीत गोविंदम से लेकर चंडीदास के कीर्तन,चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आंदोलन में फिर असुर अनार्य श्रीकृष्ण हाड़ मांस रक्तधारा में बहुजन समाज का जैविकी जीवन और पुरोहित तंत्र के विरुद्ध वहीं बाउल आध्यात्म है जो धर्म निरप्क्ष,जाति निरपेक्ष भारतीय इतिहास है।विवधता और बहुलता का साझा चूल्हा है।

इस आलेख की शुरुआत से पहले आज सुबह मैंने व्यापक पैमाने पर लालन फकीर के गीत,चंडीदास के पदावली कीर्तन,गीतगोविंदम,लोककवि विजय सरकार के लोकगीत,संपूर्ण गीतांजलि और चंडालिका के वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किये हैं।मौका लगा और हम जिंदा रहे तो इन पर अलग अलग विस्तार से चर्चा भी करेंगे।

हमारी संत साधु पीर फकीर बाउल परंपरा में पूरब में लालन फकीर और उत्तर भारत में संत कबीऱ की न कोई जाति है और न उनका कोई मजहब है।

बाउल और सूफी आंदोलन जैसे धर्म निरपेक्ष जाति निरपेक्ष है,उसी तरह भारत में संतों का भक्ति संत आंदोलन में राम रहीम एकाकार है।

मजार और दरगाहब जितने मुसलमनों के हैं,उससे कम हिंदुओं के नहीं रहे हैं। संत कबीर,सूरदास,रसखान,मीराबाई,गोस्वामी तुलसीदास,संत तुकाराम,चैतन्य महाप्रभु, दादु, बशेश्वर,गुरु नानक,गाडगे महाराज जैसे संत आंदोलन के पुरोधाओं नें कर्मकांड और पुरोहित तंत्र को खारिज करके मनुष्यता को धर्म कर्म  का आधार साबित किया है,जिसका आधुनिकीकरण लिंगायत आंदोलन,मतुआ आंदोलन,आर्यसमाज आंदोलन,ब्रह्मसमाज आंदोलन में देखा जा सकता है।

इसी ब्राह्मणधर्म और पुरोहित तंत्र के खिलाफ बौद्ध,जैन सिख धर्मो की निरंतरता बहुजन आंदोलन है जो हमारी लोकसंस्कृति की विरासत पर आधारित है और जिसका बुनियादी लक्ष्य समता,न्याय और पितृसत्ता से मुक्त स्त्री अस्मिता के साथ साथ जल जंगल जमीन और आजीविका,नागरिकता के हकहकूक है।



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ताराचंद्र त्रिपाठी:इसी खंडदृष्टि के कारणऔर बहुलांश में जातीय या राष्ट्रीय अहंकार के कारण भी हम मानव इतिहास के उस मानव-महासागरीय स्वरूप का अनुभव नहीं कर पाते हैं, जो वास्तविक है. इस मानव-महासागर में किस सांस्कृतिक चेतना की लहर कहाँ उपजी और कहाँ तक पहुँच गयी, पूर्वग्रहों से मुक्त हुए बिना इस रहस्य को समझना सम्भव नहीं है.

Next: हम सिर्फ ट्रंप को देख रहे हैं और मैडम हिलेरी को कतई नहीं देख रहे हैं। हम यह भी नहीं देख रहे हैं कि अमेरिका परमाणु युद्ध की तैयारी में है और भारत उनके लिए सिर्फ बाजार है।इस बाजार पर कब्जे के लिए वह कुछ भी करेगा। मुश्किल है कि हमारी राजनीति जितनी अंध है ,उससे कुछ कम हमारी राजनय नहीं है।हम दुनिया को अमेरिकी नजर से देख रहे हैं और हमारी कोई दृष्टि है ही नहीं।हमें अमेरिकी कारपोरेट हितों की �
Previous: यह अभूतपूर्व धर्म संकट क्यों है? क्योंकि मनुष्यता और प्रकृति के विध्वंस का मुक्तबाजार हमने चुना है! आस्था और धर्म कर्म की सांस्कृतिक जड़ें खत्म करके हम अपराधकर्म में तब्दील कर रहे हैं धर्म को? सौ सालों के आर पार मनुष्यता के लोकसंगीत की पूरब पश्चिम धाराओं को एकाकार कर देने के पीछे विशुध भारतीय बाउल आंदोलन और लालन फकीर का दर्शन है जो संत कबीर का दर्शन,संत रविदास की दृष्टि और तथागत गौ
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ताराचंद्र त्रिपाठी

इतिहास के बारे में जब भी हम बात करते हैं तो प्राय: हमारी दृष्टि किसी कालखंड और किसी क्षेत्र-विशेष तक ही सीमित होती है. हम यह भूल जाते हैं कि कोई भी इयत्ता केवल अपने आप में ही पूर्ण नहीं होती, अपितु वह अनेक इयत्ताओं के संयोग और सहयोग से निर्मित होती है. उदाहरण के लिए सिन्धुघाटी सभ्यता को ही लें, हमारी दृष्टि केवल उस नगर तक सीमित रह जाती है. हम यह भूल जाते हैं कि नागर सभ्यता सभ्यता का विकास तभी सम्भव होता है, जब उस की आधारभूत कृषि और पशुपालन परक ग्रामीण सभ्यता भी फल-फूल रही होती है. और यह सभ्यता नागर सभ्यता के ध्वस्त होने के साथ ध्वस्त नहीं होती, केवल संक्रमित होती है. संक्रमणशील जन जिस नये क्षेत्र में में बसते हैं, उन क्षेत्रों में अपने पुराने क्षेत्र के स्थान नामों, अपनी धार्मिक आस्थाओं के प्रतीकों को पुनर्स्थापित करते हैं. और इस प्रकार सांस्कृतिक नैरन्तर्य बना रहता है. पर अपनी खंड दृष्टि के कारण हम इस सांस्कृतिक नैरन्तर्य का अवगाहन नहीं कर पाते. 
इसी खंडदृष्टि के कारणऔर बहुलांश में जातीय या राष्ट्रीय अहंकार के कारण भी हम मानव इतिहास के उस मानव-महासागरीय स्वरूप का अनुभव नहीं कर पाते हैं, जो वास्तविक है. इस मानव-महासागर में किस सांस्कृतिक चेतना की लहर कहाँ उपजी और कहाँ तक पहुँच गयी, पूर्वग्रहों से मुक्त हुए बिना इस रहस्य को समझना सम्भव नहीं है.
जिस महाप्रलय की बात हम करते हैं, जिसके अवशेष ब्रिटिश पुरातत्वविद जार्ज वुली ने मसोपोटासमिया में खोज निकाले हैं वह आज से लगभग ५ हजार साल पहले मेसोपोटामिया में आयी एक सुनामी थी. इस जलप्रलय पहला विशद वर्णन आ्ज से लगभग पाँच हजार साल पहले के गिलगिमेश नामक सुमेरियन महाकाव्य में हुआ है. (यह महाकाव्य भी असुर बनीपाल (८०० ई.पू) के ईंटों की पट्टियों पर नुकीली कीलों से अंकित अभिलेखों के संग्रहालय, जिसे असुर बनीपाल का पुस्तकालय भी कहा जाता है, से प्राप्त हुआ.) सुनामी तो आयी मेसोपोटामिया में, यादें अनेक एशिया महाद्वीप के अनेक क्षेत्रों की प्रजातियों के आख्यानों में अलग-अलग नामों से व्याप्त हो गयीं, कहीं वैवस्वत मनु नायक हो गये, तो कहीं हजरत नूह, और कहीं नोवा, कहीं जियसद्दू, कहीं कोई और. पर कथा वही रही
यही नहीं, यह धारणा भी बनी रही कि इस प्रलय से पहले जो देव सभ्यता थी, उसमें लोग हजारों साल तक जीवित रहते थे. गिलगिमेश में भी सुमेर के जिन पौराणिक राजाओं का उल्लेख है, उनमें कोई राजा २८ हजार साल राज्य करता है तो कोई ४३ हजार साल, हजार साल से कम की तो बात ही नहीं है. अपने पुराणों में भी देख लीजिये, हमारे राजा दशरथ को भी सन्तान न होने की चिन्ता तब सताती है, जब उनकी अवस्था साठ हजार साल हो जाती है. राम ग्यारह हजार साल राज्य करते हैं. १० हजार साल अपने हिस्से के और एक हजार साल राजा दशरथ की अकाल मृत्यु हो जाने से उनके बचे हुए. राजा सागर के साथ हजार पुत्र होते हैं, शिव चौरासी हजार साल तक तपस्या करते हैं. और तो और दान में दी गयी भूमि को छीनने वाला भी साथ हजार साल तक अपनी ही विष्टा में कीड़े रूप में रहने के लिए अभिशप्त होता है. 
एक और बात, जो मानव महासागरीय लहरों को प्रमाणित करती है वह स्त्री पात्रों के संवादों के लिए मुख्य भाषा से इतर किसी जन बोली का विधान. यह संस्कृत नाटकों में ही नहीं है अपितु उन से लगभग २ हजार साल पहले के सुमेरी महाकाव्य गिलगिमेश में भी स्त्री पात्र ही नहीं अपितु देवी इनाना के संवादों के लिए भी जनभाषा का ही प्रयोग हुआ है. यही नैरन्तर्य और सारूप्य पौराणिक आख्यानों, मिथकों में ही नहीं है प्रतीकों या मोटि्फ्स में भी परिलक्षित होता है.
एक भ्रान्ति, जो सम्भवत: वेदों की श्रुति परम्परा के कारण उत्पन्न हुई है, वह यह कि वैदिक आर्य लेखन कला से अनभिज्ञ थे. वेद तो गेय छ्न्द हैं. उनको मूल गेय रूप में बनाये रखना, एक बड़ी भारी चुनौती रही होगी. फलत: इन गेय छ्न्दों को न केवल श्रुति परंपरा से संरक्षित किया गया अपितु हस्त संचालन( उच्चै उदात्त, निच्चै अनुदात्त, समाहार: स्वरित:) के माध्यम से उनकी स्वरलिपि भी तैयार कर दी गयी है. यह भी ज्ञातव्य है कि विद्वानों के अनुसार वेदों का संकलन जितने प्रामाणिक और व्यवस्थित रूप से किया गया है, , उसकी दूसरी मिसाल विश्वसाहित्य में नहीं है.
गेय छ्न्द तो श्रुति परम्परा से चले, लेकिन टीकाओं के लिए तो लिपि आवश्यक रही होगी. और वह थी. लेकिन उसका माध्यम अधिक टिकाऊ नहीं था. ताड़्पत्र और भोजपत्र पर अंकित होने के कारण बार बार प्रतिलिप्यांकन अपरिहार्य था. यवन आक्रमण के बाद हमने माध्यम बदला और शिलाओं को माध्यम के रूप में प्रयोग करना आरंभ किया और तब से लिपि का क्रमिक विकास सामने आया. जब कि वैदिक आर्यों से बहुत पहले मिस्र में शिलाओं को और मेसोपोटामिया में ईंट की पट्टिकाओं पर अक्षर उत्की्र्ण करने के उपरान्त उन्हें पका कर स्थायित्व प्रदान किया गया था.
जहाँ तक ऐतिहासिक स्रोतों की दुर्लभता का सवाल है, उसमें भी हमारा दृष्टिदोष एक कारक है. लिखित साक्ष्य नहीं हैं, लोक गाथाएँ पूरा चित्र प्रस्तुत नहीं करतीं, किंवदन्तियाँ बहुत दूर के अतीत का उद्घाटन नहीं करतीं. कालजयी पुरातत्व भी सीमित है. पर जो सन्मुख है, जो अतीत की अनेक परतों पर जमी धूल को दूर कर सकता है, उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है, वह हैं हमारे स्थान-नाम.
पर उनका संकलन कौन करे. एक गाँव में और उसके आस-पास ही पचासों स्थान-नाम हैं. स्थान- नाम या स्थान को पहचानने के लिए निर्धारित कोई प्रमुख प्रतीक या लैंड्मार्क. ये लैंड्मार्क भी किसी स्थायी आधार या याद पर ही तो रखे गये होंगे. और इन आधारों के द्वारा स्थानों का नामकरण करने वाले पूर्वजों ने अपनी प्राकृतिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक स्थिति की यादों को चिरस्थायी बनाने का प्रयास किया है. जब अंग्रेज अपने साथ के साथ यूरोप के शताधिक नामों को आपके नैनीताल में बसा गये हैं, तो जो लोग सिन्धु सभ्यता के नाश के बाद छितराये होंगे, तो क्या उन्होंने अपने नये सन्निवेशों के नामों में अपनी पुरानी यादों को नहीं संजोया होगा?

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हम सिर्फ ट्रंप को देख रहे हैं और मैडम हिलेरी को कतई नहीं देख रहे हैं। हम यह भी नहीं देख रहे हैं कि अमेरिका परमाणु युद्ध की तैयारी में है और भारत उनके लिए सिर्फ बाजार है।इस बाजार पर कब्जे के लिए वह कुछ भी करेगा। मुश्किल है कि हमारी राजनीति जितनी अंध है ,उससे कुछ कम हमारी राजनय नहीं है।हम दुनिया को अमेरिकी नजर से देख रहे हैं और हमारी कोई दृष्टि है ही नहीं।हमें अमेरिकी कारपोरेट हितों की �

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हम सिर्फ ट्रंप को देख रहे हैं और मैडम हिलेरी को कतई नहीं देख रहे हैं।

हम यह भी नहीं देख रहे हैं कि अमेरिका परमाणु युद्ध की तैयारी में है और भारत उनके लिए सिर्फ बाजार है।इस बाजार पर कब्जे के लिए वह कुछ भी करेगा।

मुश्किल है कि हमारी राजनीति जितनी अंध है ,उससे कुछ कम हमारी राजनय नहीं है।हम दुनिया को अमेरिकी नजर से देख रहे हैं और हमारी कोई दृष्टि है ही नहीं।हमें अमेरिकी कारपोरेट हितों की ज्यादा चिंता है,भारत या भारतीय जनता के हितों की हमें कोई परवाह नहीं है।

हम यमन पर अमेरिकी हमले पर चुप्पी साधे बैठे हैं तो दूसरी तरफ अमेरिकी ने परमाणु विश्वयुद्ध की तैयारी कर ली है और हम इसके लिए अभी से रूस और चीन को जिम्मेदार ठहराने लगे हैं और फूलकर कुप्पा हैं कि हो न हो,ट्रंप राष्ट्रपित बन जायेंगे और इस्लाम का नमोनिशां मिट जायेगा कि ट्रंप भी हिंदू हो गये हैं।

पलाश विश्वास

किसी कारपोरेट कंपनी का सीईओ चाहे कोई हो,उस कंपनी के कारोबारी हित जैसे नहीं बदलते ,वैसे ही उसकी नीतियों में कोई परिवर्तन नही होता।मौजूदा विश्वव्यवस्था कारपोरेट कंपनी जैसी है और उसका सर्वेसर्वा मुखिया अमेरिकी साम्राज्यवाद शत प्रतिशत कारपोरेट है।कारपोरेट हितों के लिए दोस्ती दुश्मनी नहीं,मुनाफासूली सर्वोच्च प्राथमिकता होती है जिसके लिए कारपोरेट कंपनी वह कुछ भी कर सकती है।अमेरिकी राष्ट्र का कोरपोरेट चरित्र न भारत के हित में है और न मनुष्यता के हित में है।हम यमन पर अमेरिकी हमले पर चुप्पी साधे बैठे हैं तो दूसरी तरफ अमेरिकी ने परमाणु विश्वयुद्ध की तैयारी कर ली है और हम इसके लिए अभी से रूस और चीन को जिम्मेदार ठहराने लगे हैं और फूलकर कुप्पा हैं कि हो न हो,ट्रंप राष्ट्रपित बन जायेगें और इस्लाम का नमोनिशां मिट जायेगा कि ट्रंप भी हिंदू है।

हम सिर्फ ट्रंप को देख रहे हैं और मैडम हिलेरी को कतई नहीं देख रहे हैं।

हम यह भी नहीं देख रहे हैं कि अमेरिका परमाणु युद्ध की तैयारी में है और भारत उनके लिए सिर्फ बाजार है।इस बाजार पर कब्जे के लिए वह कुछ भी करेगा।

मुश्किल है कि हमारी राजनीति जितनी अंध है ,उससे कुछ कम हमारी राजनय नहीं है।हम दुनिया को अमेरिकी नजर से देख रहे हैं और हमारी कोई दृष्टि है ही नहीं।हमें अमेरिकी कारपोरेट हितों की ज्यादा चिंता है,भारत या भारतीय जनता के हितों की हमें कोई परवाह नहीं है।

ताजा खबर यह है कि पश्चिम के देश भी सीरियामुद्दे पर अमेरिका के साथ हैं। वे लगातार सीरियामें रुस की भूमिका की आलोचना कर रहे हैं। हाल ही में पुतिन फ्रांस जाने वाले थे लेकिन उन्होने दौरा रद्द कर दिया क्योंकि फ्रांस के राष्ट्रपति ने रुस पर यह आरोप लगाया था कि रुस सीरियामें युद्द अपराधों में शामिल है।

इन्ही जटिल युद्ध परिस्थितियों में मजा यह है कि जैसे भारत में हिंदुत्व खेमा ट्रंप को राष्ट्रपति देखने के लिए बेताब है वैसे ही रूसी दक्षिणपंथी भी ट्रंप के दीवाने हैं। अमेरिकी डोनाल्ड ट्रंप को वोट दें या फिर परमाणु युद्धके लिए तैयार रहें। यह कहना है रूस में व्लादिमीर पुतिन के दक्षिणपंथी सहयोगी व्लादिमीर झिरीनोवस्की का। उनके अनुसार ट्रंप अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो रूस और अमेरिका के बीच का तनाव कम कर सकते हैं। जबकि उनकी डेमोक्रेटिक प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध में झोंक देंगी।

गौरतलब है कि झिरीनोवस्की की लिबरेशन डेमोक्रेटिक पार्टी सितंबर में हुए रूस के संसदीय चुनाव में तीसरे स्थान पर आई थी। बहुत से रूसी झिरीनोवस्की को गंभीरता से नहीं लेते।इन्हीं झिरीनोवस्की के हवाले से पुतिन को परमाणु युद्ध के लिए मोर्चाबंद दिखाने की कोशिश रतभअमेरिका के साथ सात भारत में भी हो रही है लेकिन अमेरिका के यमन पर हमले और सीरिया में आतंकवादी संगठनों के अमेरिकी और इजराइली मदद और मध्यएशिया के तेल कुँओं पर उनके कब्जे पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।

खाड़ी युद्ध के बुश पिता पुत्र,वियतनाम युद्ध के रिचर्ड निक्सन,क्यूबा के खिलाफ बिल क्लिंटन और मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा में बुनियादी फर्क कुछ भी नहीं है चूंकि अमेरिका पूरी तरह एक कारपोरेट राष्ट्र है।अमेरिकी अर्थव्यवस्था कारपोरेट है तो यह मुक्तबाजार भी कारपोरेट है।

इसलिए चाहे डोनाल्ड ट्रंप जीते या फिर मैडम हिलेरी,युद्ध और गृहयुद्ध का अमेरिकी कारोबार बंद नहीं होने जा रहा है।

नस्ली और स्त्रीविरोधी बयानों और ग्लोबल हिंदुत्व के समर्थन के मुद्दों को किनारे पर रखें तो यह समझना शायद आसान हो सकता है कि तमाम सबूत चीख चीखकर बता रहे हैं कि दुनियाभर के आतंकवादी संगठनों को अमेरिकी मदद के पीछे मैडम हिलेरी का प्रत्यक्ष हाथ हैं और वे इजराइल और अमेरिकी जायनी कारपोरेट सत्ता वर्ग के ट्रंप से कहीं ज्यादा मजबूत प्रतिनिधि हैं।

हम भारत में फासिज्म के राजकाज को डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन,ग्लोबल हिंदुत्व के साथ उनके संबंध और मुसलमानों और आप्रवासियों,शरणार्थियों के खिलाफ उनकी नस्ली घृणा के मद्देनजर मैडम हिलेरी का असली चेहरा देखने से परहेज करें तो यह भारी गलती होगी।क्योंकि मैडम हिलेरी का नजरिया ट्रंप से कतई अलग नहीं है,जो दरअसल अमेरिकी कारपोरेट विश्वव्यवस्था का जायनी रंगभेदी नजरिया है।

जैसा कि इन दिनों यह धारणा सुनामी की तरह फैलायी जा रही है कि पाकिस्तान को रुस और चीन से भारत के खिलाफ युद्ध में मदद मिलने वाली है और युद्ध हो या आतंकवाद के खिलाफ युद्ध हो,अब अमेरिका भारत के साथ रहेगा।इसके विपरीत हकीकत की जमीन पर कूटनीतिक बयानों के अलावा भारत अमेरिकी परमाणु समझौते के बाद अश्वेत राष्ट्रपति बाराक ओबामा के लगातार  दो दो कार्यकाल में अमेरिका ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत के हक में अब तक कोई कार्रवाई लेकिन नहीं की है।

हिंदुत्व के झंडेवरदार अगर समझते हों कि डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बन जाने के बाद मुसलमानों के खिलाफ अमेरिका बाकायदा धर्मयुद्ध छेड़ देगा और पाकिस्तान को मटियामेट कर देगा,यह ख्याली पुलाव के अलावा कुछ और नहीं है।

भारत में वोट बैंक समीकरण साधने के लिए जैसे हिंदुत्व का एजंडा है वैसे ही अमेरिका का प्रेसीडेंट बनने के लिए रंगभेदी श्वेत वर्चस्व डोनाल्ड ट्रंप का कारपोरेट एजंडा है और वे अरबपति हैं तो कारपोरेट समर्थन के लिए मैडम हिलेरी के जायनी लिंक और उनको इजराइली समर्थन के मद्देनजर मुसलमानविरोधी तेवर अपनाना उनका अपना चुनावी समीकरण है ,जो शायद बुरीतरह फेल हो सकता है क्योंकि अमेरिकी मीडिया मैडम हिलेरी के पक्ष में हैं और वे ट्रंप की धज्जियां बिखेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।जैसे उग्र हिंदुत्व के बिना भारतीय राजनीति की अब कल्पना नहीं की जा सकती ,वैसे ही उग्र इस्लाम विरोध अब अमेरिकी चुनावी समीकरण है।

अपने देशी मीडिया के युद्धोन्माद और कारपोरेट हितों के जलवे को देखते हुए खाड़ी युद्ध में विश्व जनमत बदलने के अमेरिकी और यूरोपीय मीडिया की भूमिका के मद्देनजर गौर करने वाली बात यह है कि ट्रंप और मैडम हिलेरी की नूरा कुस्ती की आड़ में अमेरिका ने तीसरे विश्वयुद्ध और परमाणु युद्ध की पूरी तैयारी कर ली है और पश्चिमी मीडिया इसके लिए सीरिया संकट के बहाने रूस और चीन को जिम्मेदार ठहराने की मुहिम उसीत रह  शुरु कर दी है जैसे तेलयुद्ध के लिए सद्दाम हुसैन को महिषासुर बना कर उनका वध कर दिया गया।

जाहिर है कि हम ट्रंप पर जरुरत से ज्यादा चर्चा कर रहे हैं और काफी हद तक धर्मनिरपेक्षता के तहत मैडम हिलेरी का समर्थन करने लगे हैं।जबकि दोनों में से किसी के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने से भारत को कोई फर्क पड़नेवाला नहीं है।दोनों मनुष्यता के खिलाफ युद्ध अपराधी हैं।विडंबना यह है कि हमारे यहां लोग अभी अभी जो अमेरिकी नौसेना ने यमन पर हमला कर दिया है ,उसे पाकिस्तान में आतंकवादी अड्डों को तहस नहस करने की कथित सर्जिकल स्ट्राइक की तरह जायज मानकर अमेरिकी कार्रवाई के तहत इसे भी जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।

गौरतलब है कि अमरीकी सेना ने यमनमें तीन रडार ठिकानों पर हमलाकिया है। इस हमलेसे पहले अमरीकी नौसेना के युद्धपोत पर यमनकी तरफ से एक मिसाइल दाग़ी गई है। अमरीकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन के मुताबिक़ मिसाइल हमलेमें शामिल तीन रडार ठिकानों को तबाह कर दिया गया है। पेंटागन का कहना है कि ये ठिकाने ईरान समर्थक हूथी विद्रोहियों के नियंत्रण वाले इलाक़े में थे। पेंटागन का ये भी कहना है कि राष्ट्रपति ओबामा ने इन हमलोंके लिए मंज़ूरी दी थी.अमेरिका के एक अधिकारी ने बताया कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से स्वीकृति मिलने के बाद यूएसएस विध्वंसक द्वारा दागे गए टॉमहॉक क्रूज मिसाइल से यमनके लाल सागर तट परहुथी के नियंत्रण वाले क्षेत्र में हमलाकिया गया।वहीं यूएस नेवी के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त परजानकारी दी है कि यूएस नेवी के डेस्‍ट्रॉयर नीट्ज ने गुरुवार को सुबह करीब चार बजे टॉकहॉक क्रूज मिसाइल यमन परदागी है। इस अधिकारी के मुताबिक लाल सागर परजब अमेरिकी शिप पर हमलाहुआ तो यह रडार सक्रिय थे और तभीहमलेकी असफल कोशिश की गई। इस अधिकारी के मुताबिक जिन जगहों पर हमलेहो रहे हैं वहां परआबादी नहीं है। ऐसे में जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ है।

इधर भारतीय मीडिया में भी रूस के आक्रामक रवैये की वजह से परमाणु युद्ध और तीसरे विश्वयुद्ध के हालात पर अमेरिकी और पश्चिमी मीडिया की तर्ज पर प्रचार अभियान शुरु हो गया जैसे तेल युद्ध के दौरान,अफगानिस्तान को रौंदने के दौरान और मध्यपूर्व एशिया और अफ्रीका के देशों में अमेरिकी लोकतंत्र के अरब वसंत के पक्ष में भारतीय मीडिया अमेरिकी कारपोरेट हितों के तहत अमेरिकी मीडिया को भोंपू बना हुआ था।

अमेरिका ने इस बीच अपने नागरिको को सीरिया संकट संभावित परमाणु युद्ध के लिए आगाह कर दिया है लेकिन भारतीय मीडिया ने रूस की इसी तरह की चेतावनी के मद्देनजर ऐसे किसी परमाणु युद्ध या तीसरे विश्वयुद्ध से पहले ही उसके लिए रूस के राष्ट्रपति को सद्दाम हुसैन बनाना शुरु कर दिया है।

भारतीय मीडिया में अमेरिकी स्वर है।मसलन सीरिया संकटपर रूस और अमेरिका के बीच का तनाव विश्व युद्ध में बदल सकता है। रूस की मिलिटरी तैयारियां साफ तौर पर इसके भयावह संकेत दे रही हैं। पुतिन काफी आक्रामक फैसले लेते दिख रहे हैं। सूत्रों के हवाले से अभी खबर आई कि पुतिन ने रूस के उच्च अधिकारियों, राजनेताओं और उनके परिवार को घर (होमलैंड) लौटने को कहा है। इसी क्रम में रूस ने बुधवार को अंतरमहाद्वीपीय बलिस्टिक मिसाइलों का भी परीक्षण किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रूस की सेना ने जापान के उत्तर में तैनात अपनी सबमरीन से न्यूक्लियर वॉरहेड ढोने की क्षमता वाले एक रॉकेट का परीक्षण किया है।

भारत अमेरिका परमाणु संधि के परमाणु हथियारों के साथ साथ भारतीय रक्षा,प्रतिरक्षा और आंतरिक सुरक्षा अमेरिका के हवाले हो जाने की वजह से,आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में भारत के पार्टनर बन जाने से अमेरिका के भारत विरोधी रवैये में कोई बुनियादी फर्क आया हो या बांग्लादेश युद्ध के वक्त हिंद महासागर में सातवां नौसैनिक बे़ड़ा भेजने वाला अमेरिका सोवियत संघ की तरह भारत का मित्र हो गया हो,यह वैसा ही मिथक है जैसे हम यह मानते हैं कि हमारे कल्कि अवतार का दीवाने खास अमेरिका का व्हाइट हाउस है।उसी तरह ट्रंप का हिंदुत्व दावा भी वोट बैंक साधने का उपक्रम है।ट्रंप भी उसीतरह मोदी के दोस्त हैं,जैसे ओबामा रहे हैं।

गौरतलब है कि अमेरिका के कई हिंदू संगठनों ने राष्ट्रपति पद के लिए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंपका समर्थन किया है। ट्रंपने भी कहा है कि अगर वे राष्ट्रपति बने तो भारत और अमेरिका के संबंध बेहद मजबूत होंगे। ट्रंपको समर्थन देने के लिए रिपब्लिकन हिंदू कोएलिशन की ओर से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें करीब पांच हजार लोगों ने ट्रंपकी जम कर तारीफ की। इस कार्यक्रम में ट्रंपके अलावा बॉलीवुड की हस्तियों के साथ पांच हजार से ज्यादा भारतीय मूल के अमेरिकी शामिल हुए।

इस मौके पर  रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंपने कहा है कि वह भारतीयों और हिन्दुओं का बेहद सम्मान करते हैं। उन्होंने यह बात कही। एनडीटीवी को दिए गए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में ट्रंपने कहा, 'मैं हिन्दुओं का बेहद सम्मान करता हूं, वे शानदार उद्यमी होते हैं... भारत का मैं बेहद सम्मान करता हूं'। आतंकवाद से निपटने की अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा- हम चरम परीक्षण करके आतंकवाद से लड़ेंगे. (मुस्लिम जगत में) कुछ ऐसा चल रहा है जो सकारात्मक ताकत नहीं है।

डोनाल्ड ट्रंपने कहा है कि राष्ट्रपति चुने गए तो वे भारत को अमेरिका को बेस्ट फ्रेंड बनाएंगे। ट्रंपकी नजर यह दोस्ती दोनों देशों के लिए जरूरी है। वे हिंदूओं को बहुत मानते हैं! यदि वे राष्ट्रपति बन गए, व्हाइट हाउस पहुंच गए तो वह हिंदु समुदाय का अपना राष्ट्रपति होगा। भारत और अमेरिका के रिश्ते प्रगाढ़ होंगे। दोनों देश 'सबसे अच्छे दोस्त' होंगे। यह सब कहते हुए डोनाल्ड ट्रंपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि यदि वे राष्ट्रपति बने तो नरेंद्र मोदी से उनकी खूब पटेगी। उनके राष्ट्रपति चुने जाने का अर्थ होगा कि व्हाइट हाउस में भारतीय और हिंदू समुदाय का सच्चा दोस्त है।

न्यू जर्सी में आतंकवाद से पीड़ित हिंदुओं के लिए हो रहे एक चैरिटी समारोह में ट्रंपपीड़ित, उनके परिवार और अन्य भारतीयों से मुलाकात के लिए पहुंचे। रिपब्लिकन हिंदू कोलिशन यानी RHC नाम के संगठन ने अपने इस कार्यक्रम में खासतौर पर डॉनल्ड ट्रंपको बुलाया था। ट्रंपइस मौके पर भारत की संस्कृति के रंग में रंगे दिखे. ट्रंपने दीप जलाकर कार्यक्रम की शुरुआत की और जमकर हिंदू प्रेम भी दिखाया। चैरिटी समारोह में ट्रंपपीड़ित, उनके परिवार और अन्य भारतीयों से मुलाकात के लिए पहुंचे. रिपब्लिकन हिंदू कोलिशन यानी RHC नाम के संगठन ने अपने इस कार्यक्रम में खासतौर पर डॉनल्ड ट्रंपको बुलाया था।

ट्रंपने कहा, 'मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम करने का इंतजार कर रहा हूं। वह अर्थव्यवस्था और नौकरशाही को सुधारने में बेहद ऊर्जावान रहे हैं। शानदार व्यक्ति। मैं उनकी सराहना करता हूं।' यह पहली बार था जब ट्रंपने इस चुनावी मौसम में भारतीय-अमेरिकियों के समारोह में शिरकत की। उन्होंने (मोदी) ने भारत में टैक्स प्रणाली को आसान किया है। भारत आज तेजी से विकास कर रहा है। यह बहुत अच्छा है, लेकिन हम यहां अमेरिका में विकास नहीं कर रहे हैं।

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Previous: हम सिर्फ ट्रंप को देख रहे हैं और मैडम हिलेरी को कतई नहीं देख रहे हैं। हम यह भी नहीं देख रहे हैं कि अमेरिका परमाणु युद्ध की तैयारी में है और भारत उनके लिए सिर्फ बाजार है।इस बाजार पर कब्जे के लिए वह कुछ भी करेगा। मुश्किल है कि हमारी राजनीति जितनी अंध है ,उससे कुछ कम हमारी राजनय नहीं है।हम दुनिया को अमेरिकी नजर से देख रहे हैं और हमारी कोई दृष्टि है ही नहीं।हमें अमेरिकी कारपोरेट हितों की �
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Sushanta Kar 14 mins · দিনে রাতে যারা সাম্যবাদের শ্রাদ্ধ করেন, তারা সবাই বেশ সাম্যবাদী হয়ে পড়েন যখন প্রশ্ন উঠে কাশ্মীরের ৩৭০ ধারা, মুসলমানের তিন তালাক, আর দলিত, জনজাতি অবিসিদের সংরক্ষণের। সম্ভবত এই হচ্ছে 'সাম্যবাদ'-এর ভারতীয় সংস্করণ। এর মূল কথা হচ্ছে, তুমি আমি সবাই সমান-তোমার আবার আলাদা আইন কেন! এর মূল বার্তা হচ্ছে, সবাই আমাকে দেখো, আর আমার মতো হও। তোমাকে তোমার মতো দেখাবে, আর আমি বলবো, সুন্দর! ---ব�

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দন্ডকারন্যে উদ্বাস্তু আন্দোলনের ঐতিহাসিক বিজয়" ---------------------------------------------- অবশেষে মাননীয় মুখ্যমন্ত্রী ডা রমন সিং উদ্বাস্তু বাঙালিদের দাবী মেনেনিলেন। ***************************************** Dr.Subodh Biswas

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দন্ডকারন্যে উদ্বাস্তু আন্দোলনের ঐতিহাসিক বিজয়"
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 অবশেষে মাননীয় মুখ্যমন্ত্রী ডা রমন সিং উদ্বাস্তু বাঙালিদের দাবী মেনেনিলেন।
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Dr.Subodh Biswas


বিগত ৫ সেপ্টম্বর থেকে  ছত্রিশগড়ের পাখানজোরে নিখিল ভারত বাঙালি উদ্বাস্তু সমন্বয় সমিতি র পতাকাতলে বাংলা ভাষায় প্রাথমিক শিক্ষা, জমির পাট্টা ও জাতি প্রমান পত্রের মৌলিক  দাবীতে উদ্বাস্তুরা ধারাবাহিক অবস্থান আন্দোলন চালিয়ে যাচ্ছিল।প্রশাসনের ফিরে তাকানোর সময়নেই। একদিকে বাঙালি বৈমাতৃক বিদ্বেষ নীতি । অন্যদিকে হতভাগ্য আন্দোলন কারিদের পাশে না আছে রাজনীতিক সমর্থন, না আছে প্রশাসনিক ন্যূনতম সহমর্মিয়তা। অন্যদিকে গহীন অরন্যেঘেরা মাওবাদী  অধ্যুষিত অঞ্চল। সন্ধ্যা ঘনিয়ে আসতেই অঞ্চলটি দেশথেকে বিচ্ছিন্ন হয়েপড়ে । জঙ্গলের বুকচিরে পাখানজোরের পথে আমাদের গাড়ীচলছে।ভয়ে বুকটা দূরু দূরু। আমার সাথী প্রাক্তন কমিশনার বিরাজ মিস্ত্রী কাপা কন্ঠে বলেন, স্বজন দা প্রাননিয়ে ঘরেফিরতে পারবতো ? 
      অনশন আন্দোলনের আজ তৃতীয়  দিন। আমারা রাত্র ১২ টার সময় অনশন স্থলে পৌছাই। সারা ভারতবাসী  সুখনিদ্রায় মগ্ন। ঘুমনেই ঘরপোড়া ভিটেহারা দন্ডকারন্যের হতভাগ্য উদ্বাস্তু  বাঙালিদের। তাদের সামনে অস্তিত্বের প্রশ্ন।ভারত সরকারের দেওয়া শতবৎসরের পতিত জমিকে  উর্বর করে নতুন এক সোনার বাংলা গড়েছে , ছয় দশক পেরিয়ে যাবার পরেও পাট্টা পায়নি। জমি হস্তান্তর করার অধিকার নেই।স্থানিয়  অধিবাসীরা বুলি আওড়ায়, ভারত সরকারের দেওয়া জমির লিজের সময় সীমা পেরিয়ে গেছে। তোমাদের জমি খালিকরতে হবে। সে এক অঘোষিত সন্ত্রাস। আবার ভিটে ছাড়তে হবেনাতো ?
 বহির বঙ্গে উদ্বাস্তুরা ৮০ % প্রতিশত তপশীলী।আসাম পশ্চিমবঙ্গ সহ আঠ রাজ্যে  তারা তপশীলী স্বীকৃতি পায় । ছত্রিশগড় সহো বাকী  দশ রাজ্যে  সে স্বীকৃতিটুকু  তাদের নেই। তপশীলিরা আত্মপরিয় হারিয়ে ফেলেছে।  আধুনিক শিক্ষা তাদের কাছে অলিক স্বপ্ন।এমনকী নতুন প্রজন্ম বাংলা ভাষা আধো আধো বলতে পারলেও , বাংলা অক্ষরগুলো তাদের কাছে জাপানি হরফের মতো। তাদের সামনে বাঙালিত্ব হারানোর সংকট।
 বিগত ২৮ দিনের ধর্না আন্দোলন প্রশাসন উপেক্ষা করলেও আন্দোলন কারিরা ময়দান ছাড়লেন না। তারা রনকৌশল বদলে নিলেন,  ২ সেপ্টেম্বর ২০১৬  থেকে ধর্না অবস্থান প্যান্ডেলে বারোজন আন্দোলন কারী অমরন অনশনে বসেন। তৎমধ্যে ৭৫ বৎসরের শ্রীমতী দুলিরানী হালদার অনশনে অংশগ্রহন করাতে প্রশাসনের ব্লাডপ্রেসার বেড়ে যায়।কমিটি জানিয়েদেয় পাখানজোর অঞ্চলের ১৩৩ গ্রামের প্রতিপরিবার থেকে একজন করে আন্দোলনের সমর্থনে অংশগ্রহন করবে। বিভিন্ন জেলাথেকে দলে দলে বাঙালিরা আসতে থাকে। বক্তাগনের কন্ঠে  তাদের প্রতি ছয়দশকের বঞ্চনার তিব্রপ্রতিবাদ ধ্বনিত হয়। করতালির শব্দে আকাশ বাতাস কেপেওঠে। ২৪ ঘন্টা  বাংলা সাংস্কৃতিক অনুষ্ঠান চলতে থাকে।  না আছে ক্ষুধা না আছে ক্লান্তি, না আছে ভয়। রাত্রভর স্বরচিত গান, কবিগান ,হরিসংকীর্তন, বাউল, ভাটিয়ালি পল্লীগীতির মাতোয়ারা শুর আন্দোলন কারিদের বেধেরাখতে জাদুরকাজ করে।
আন্দোলন কারিদের নিয়ন্ত্রন করতে পাখানজোর শহর  পুলিশ ছাউনিতে বদলে যায়।অনশনের তৃতীয় দিন, গভীর রাত্রে  পুলিশ গাড়ীর সাইরেন বিকট শব্দ।পুলিশ অনশর কারিদের তুলেনিয়েযাবে। সংবাদটি  বিদ্যূতের মতো ছড়য়ে পড়ল।    অবস্থা বেগতিক বুঝে রাত্র ২ টায় সর্বভারতীয় সভাপতি ডাক্তার সুবোধ বিশ্বাস মাইকে ঘোষনা করেন, আমাদের সামনে অগ্নী পরিক্ষা। আন্দোলনের আজ কালোরাত। জীবন দেব, অনশন কারিদের নিয়েযেতে দেবনা। বিশ্বাস বাবুর ঘোষনা আন্দোলন কারিদের রক্তে আগুন ধরিয়ে দিল। হাজার  হাজার মহিলারা  কোমরে কাপড় বেঁধে অনশন কারিদের বেডিগেট করে ঘিরেফ্যালে। সভাপতি অসীম রায়, বাঘের মতো লাফ দিয়ে  মাইক্রফোন হাতে নিয়ে জানিয়ে দিলেন, মৃত্যু যখন অনিবার্য, আমরা কাউকে ভয় পাইনা।অধিকারের জন্য আমরা প্রান দেবো, পিছব না।মনোজ মন্ডলের ভাষনে গর্জে উঠল আন্দোলন কারিরা। তপন রায়, জগবন্ধু বিশ্বাস বিকাশ পাল ,রবি গোষাই ,সুপ্রকাশ মল্লীক ,মুন্না ইন্দ্রজীৎ , বুদ্ধদেব সরকারের ভাষনে ষাঠ বৎসরের ঘুমিয়ে থাকা বাঙালির ঘুম ভেঙ্গেগেল। সারা রাত্র হাজার হাজার মানুষ প্রহরিরমতো পাহারাদিল অনশন কারিদের। সংগঠনের প্রতিটি কর্মী মনেহোল সিংহ  শাবক।। আন্দোলন ভঙ্গ করার প্রশাসনের   সবরকম ষড়যন্ত্রকে উদ্বাস্তুরা হারমানিয়ে দেয়।অনশনে প্রথম দিনে, আন্দোলন কারিদের উপস্থিতি ছিল সাত হাজারের মতো। দ্বিতীয় দিনে উপস্থিতি  ছিল ১৫ হাজারের কাছা কাছি । তৃতীয় দিন ২৫ হাজার ও চতুর্থ দিনে বেড়ে দাড়ায় ৪০  হাজারের মতো। পঞ্চম দিনে লক্ষাধিক মানুষের জনস্রোতে পাখানজোর শহরটাই ডুবেযায়। 
অনশনের সমর্থনে পাখানজোর অঞ্চলে যাতায়েত ব্যবস্থা থমকে যায়। বাংলাভাষী বিদ্যার্থীদের স্কুল বহিস্কারে দুই  শতাধিক স্কুল  অকেজ হয়েপড়ে । বিগত একসপ্তাহ যাবত দোকান পাঠ বন্দ।  অনেকের বাড়ীতে উনুন জ্বলছেনা,তবুও কারো প্রতিবাদ নেই।  শত শত শিক্ষক রাত্রি ব্যবস্থার দায়িত্ব কাধেতুলে নিয়েছেন। গ্রামপ্রধান ,অঞ্চল প্রধানরা বিগত একমাসধরে মাটি কামড়ে পড়েআছে। মা যেমন অসুস্থ্য শিশুকে রাতজেগে পাহারাদেয়, তদরুপ পুত্রস্নেহে হাজার হাজার মা বোনেরা  পাঁচদিন পাঁচরাত অনশনকারীদের পাশেবসে কাটালেন। স্বাধীন ভারতে কোন আন্দোলনে মহিলাদের এরুপ ভূমিকা বিরল। 
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পরিস্থিতি বেগতিক বুঝে ৫ অক্টোবর মাননীয় মুখ্যমন্ত্রী রমন সিং  সাংসদ শ্রী বিক্রম হোসেন্ডী , বিধায়ক শ্রী নাগরাজ ভোজ শ্রী মন্তুরাম পাওয়ার   এবং কালেকটরকে মধ্যস্থতার করার জন্য ঘটনস্স্থলে পাঠান।  কালেক্টরের প্রস্তাব কমিটি অস্বীকার করে।কালেক্টর ফিরেযায়।
সাংসদ বিক্রম হুসেন্ডী,এবং বিধায়ক ভোজরাজ নাগ, মন্তুরাম পাওয়ার সংগে কমিটি আলোচনায় বসে। কমিটি পক্ষথেকে প্রস্তাব রাখাহয়, একমাত্র মুখ্যন্ত্রীর প্রতিশ্রুতি পেলেই অনশন ভঙ্গ করাহবে। মাননীয় মুখ্যন্ত্রী আন্তরিকতা দেখান। মুখ্যমন্ত্রীর হস্তক্ষেপে অমরন অনশন আন্দোলন ৬ অক্টোবর ২০১৬ স্থগিত হয়।  ।সমিতির রাষ্ট্রিয় অধ্যক্ষ ডা সুবোধ বিশ্বাস ১২ জন অনশন কারিদের সরবত খাইয়ে  অনশন ভঙ্গ করেন। 
যেসব সমাজ বিপ্লবীরা নিজের জীবনকে উপেক্ষাকরে অমরন অনশনে বসেছিলেন, তাদের মধ্যে আছেন: (১) অসীম রায়,(সভাপতি) মনোজ মন্ডল (সচীব)  (৩)শ্রীমতী দুলী রানী হালদার(৪)ইন্দ্রজীৎ বিশ্বাস(৫) রবীন্দনাথ সরকার (গোষাই) ( ৬) মিহির রায় (৭)দ্বীপক মন্ডল (৮) বিশ্বজীৎ বৈরাগী(৯)ভুবন বাডৈ (১০) উত্তম সিকদার (১১) কিশোর সিকদার (১২) বাদল মন্ডল।
৭ অক্টোবর রায়পুরে সমিতির প্রতিনিধিদের  সংগে মুখ্যমন্ত্রীর বাসভবনে গুরুত্বপূর্ণ বৈঠক হয়। অসীম রায়, মনজ মন্ডল সমদ্দার ও জগবন্ধু বিশ্বাস প্রস্তাব রাখেন।মাতৃভাষা ও জমির পাট্টা/ জমি হস্তান্তর করার দাবী মুখ্যমন্ত্রী মেনেনেন।জাতিপ্রমান পত্রের দাবী (SC) বাস্তবায়নের জন্য সাত সদস্যের কমিটি গঠন করার ঘোষনা করেন।যেসব রাজ্যে উদ্বাস্তু  তপশীলী বাঙালিরা জাতিপ্রমান পত্রের সুযোগ পাচ্ছে, সেসব রাজ্যের সার্ভে  রিপোর্ট তিনমাসের মধ্যে ছত্রিশগড় সরকারকে জমাদেবে। রিপোর্টের ভিত্তিতে নতুন করে Ethnographic রিপোর্ট তৈরীকরে রাজ্য সরকার কেন্দ্র সরকারকে সুপারিশ পত্র পাঠাবেন। আন্দোলনের প্রথম ধাপে উদ্বাস্তুরা জয়ী হয়েছে। এ বিজয় কেবল  ছত্রিশগড়ের ২০ লাখ উদ্বাস্তু বাঙালির জয় নয় । সমগ্র বাঙালির জাতির জয়। আন্দোলন কারিদের । যুগ যুগ ধরে এখানের বাঙালিরা বাংলা ভাষা সংস্কৃতি ও বাঙালিত্ব নিয়ে গৌরবের সংগে মাথাউচুকরে বেচেথাকতে পারবে। 
সমস্ত ধর্ম বর্ন এবং রাজনীতিক দলের খোলস ভেঁঙ্গ বাঙালিরা জাতির সার্থে এক মঞ্চ সবাই আসতেপেরেছে এটাই বড়োউপলব্দী। 

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আশ্বিনের শেষ, কার্তিকের শুরু। আজ রাতেই গাস্যি পরব!

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Kapil Krishna Thakur

আশ্বিনের শেষ, কার্তিকের শুরু। আজ রাতেই গাস্যি পরব! ভাবলে মনটা কেমন উদাস হয়ে যায়।শৈশবের সেই ফেলে আসা নিকানো উঠোনে কি আজও ভোররাতে কেউ দেবে চালের গুঁড়োর শুভ্র আলপনা? কাকভোরে স্নানের জন্য বেটে রাখা হবে কাঁচা হলুদ, নিমপাতা; হিম জলে স্নান সেরে ঠোঁটে মাখা হবে কাঁচা তেঁতুল পোড়ানো ক্রীম, আর চোখে কলার ডগা থেকে তৈরী কাজল? প্রকৃতির সন্তানদের জন্য কী অসামান্য আয়োজন। হায় শৈশব!
নস্টালজিক হতেই 'উজানতলীর'পাতা খুলে বসলাম।–"একটু পরেই বেড়ায়-বাতায় সপাসপ শব্দ। এ ঘর থেকে সে ঘর, সে ঘর থেকে সে বাড়ি, বাড়ি থেকে পাড়া, পাড়া ছাড়িয়ে গ্রাম, শেষে সারা মহল্লাই। আর মুখে মুখে সমবেত ছড়ার চিৎকার—এই দ্যাশের ইন্দুর-বান্দর ভাটির দ্যাশে যায়,/ ভাটির দ্যাশের লক্ষ্মীঠারন এই দ্যাশে আয়। …দেখতে দেখতে হাতে হাতে জ্বলে উঠেছে মশাল। সেই মশাল ভোর রাতের আবছা অন্ধকারকে মহিমান্বিত করে আলোকমালার মতো ঘুরছে বৃত্তাকারে"। সেই স্বদেশ আর কৃষি-সংস্কৃতি থেকে অনেক দূরে আমরা, দূরে তাই সেই সব পরব থেকেও।

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রোহিত ভেমুলাকে সংগ্রামী অভিবাদন জানিয়ে আজকের গান ঃSaradendu Biswas

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রোহিত ভেমুলাকে সংগ্রামী অভিবাদন জানিয়ে আজকের গান ঃSaradendu Biswas

https://www.facebook.com/uddipan.biswas.5/videos/935624019857744/?comment_id=1123706987716112

শম্বূক তুমি বলেছিলে
সূর্যটা কারো বাপের বাধ্য নয়
আলো দিতে তার বাঁধা নেই কোন প্রতি ঘরে
একই সোনা রোদ ছড়াল ভূবনময়।

শম্বূক তুমি বলেছিলে...
হাওয়া শনশন বয়ে যায় অনিবার 
ছোট বড় উঁচু নিচু ভেদাভেদ নেই কোন
সকলের তরে একই সে অঙ্গীকার।।

শম্বূক তুমি বলেছিলে
মানুষে মানুষে ভেদাভেদ কিছু নাই
একই সে মানুষ জ্ঞানের সারনা ধরে 
সত্যের পথে মিলেছে সর্বদাই।।

শম্বূক তুমি বলেছিলে
রামের খড়্গ কাটে যদি তব শির 
হাজার হাজার শম্বূক জেগে রবে 
মিছিলে মিছিলে তারাই জমাবে ভীড়।।
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জ্ঞানের উষ্ণ অনুরাগে হাজার শম্বূক জাগে
রোহিতের বলিদান 
হবে না সে কভু ম্লান
সাম্যের সুশাসন মাগে ।।

-2:25

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কোলকাতায় এসে দুর্গার মুখ দেখল না সুষমা অসুরঃ Saradindu Uddipan

Next: ছত্রিশগড়ে নিখিল ভারত সমিতির ব্যানার তলে অমরন অনসন আন্দোলনের পরে , প্রশাসন বাংলা ভাষায় শিক্ষা,OBC উদ্বাস্তু বাঙালিদের OBC সুযোগ প্রদানের জন্য বিশেষ আদেশ জারি করেন।এবং জমির পাট্টা ও ( জমি কেনা বেঁচার ) আদেশ জারি করেন।বাঙালি উদ্বাস্তু SC দাবী বাস্তবায়নের জন্য বিশেষ সার্ভে কমিটি গঠন করেছে। যে আঠ রাজ্যে SC সুযোগ পাচ্ছেন,তিন মাসের মধ্যে কমিটি সার্ভ রিপোর্ট ছত্রিশগড সরকারকে জমাদেবেন। এবং ছত্রিশগড সরকার সেমতবাকী পদক্ষেপ নেবেন। সরকারী আদেশপত্র নিচে সংযোজন করাবেন। জয় নিখিল ভারত*********
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কোলকাতায় এসে দুর্গার মুখ দেখল না সুষমা অসুরঃ Saradindu Uddipan

প্রচার ছিল ফুলবাগান সার্বজনীন দুর্গোৎসব কমিটির পূজা উদ্বোধন করবেন সুষমা অসুর। খবরের কাগজে সেই ভাবে প্রচার ছড়িয়েছিলেন ব্রাহ্মণ্যবাদীরা। কিন্তু সমস্ত উদ্যোগের গোঁড়ায় জল ঢেলে দিলেন সুষমা অসুর তিনি বিজ্ঞপ্তি দিয়ে জানান যে কোলকাতায় এলেও তিনি তাঁর সমাজের দীর্ঘ পরম্পরা ভাঙবেন না। মুখ দেখবেন না দুর্গার বরং প্যান্ডেলের বাইরে শোনাবেন অসুর গাঁথা। মাতাম দেবেন অসুরের। 
সুষমা অসুর এবং আখড়ার অন্যতম সদস্যা বন্দনা এক বিজ্ঞপ্তি জারি করে ফুলবাগানের অনুষ্ঠান খারিজ করে দেন। এরপর সল্টলেকের এফআই ব্লকের পূজা কমিটির সদস্য সুভাষ রায় সুষমাকে আবেদন জানান যে তারা মহিষাসুর সম্পর্কে জানতে ভীষণ আগ্রহী এবং এই অবসরেই যেন সুষমা তাঁর দলবল নিয়ে কোলকাতায় আসেন। সুষমা রাজি হন।

দিল্লীর ফরওয়ার্ড প্রেস থেকে অনিল বর্গী জানাচ্ছেন যে দুর্গা পুজা উদ্বোধনে অসম্মতি জানালেও এই সুযোগকে তিনি হাতছাড়া করতে চান নি। তাই অসুর মাতাম দেবার জন্য দলবল নিয়ে হাজির হন কোলকাতার সল্টলেকে। পূজা প্যান্ডেলের বাইরেই পরিবেশন করেন অসুর গাঁথা ও মাতাম। এনডিটিভি সুষমা অসুরের এই মাতাম সরাসরি প্রচার করে।

কৃতজ্ঞতা স্বীকারঃ Forward press and NDTV.

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ছত্রিশগড়ে নিখিল ভারত সমিতির ব্যানার তলে অমরন অনসন আন্দোলনের পরে , প্রশাসন বাংলা ভাষায় শিক্ষা,OBC উদ্বাস্তু বাঙালিদের OBC সুযোগ প্রদানের জন্য বিশেষ আদেশ জারি করেন।এবং জমির পাট্টা ও ( জমি কেনা বেঁচার ) আদেশ জারি করেন।বাঙালি উদ্বাস্তু SC দাবী বাস্তবায়নের জন্য বিশেষ সার্ভে কমিটি গঠন করেছে। যে আঠ রাজ্যে SC সুযোগ পাচ্ছেন,তিন মাসের মধ্যে কমিটি সার্ভ রিপোর্ট ছত্রিশগড সরকারকে জমাদেবেন। এবং ছত্রিশগড সরকার সেমতবাকী পদক্ষেপ নেবেন। সরকারী আদেশপত্র নিচে সংযোজন করাবেন। জয় নিখিল ভারত*********

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ছত্রিশগড়ে নিখিল ভারত সমিতির ব্যানার তলে অমরন অনসন আন্দোলনের পরে , প্রশাসন বাংলা ভাষায় শিক্ষা,OBC উদ্বাস্তু বাঙালিদের OBC সুযোগ প্রদানের জন্য বিশেষ আদেশ জারি করেন।এবং জমির পাট্টা ও ( জমি কেনা বেঁচার ) আদেশ জারি করেন।বাঙালি উদ্বাস্তু SC দাবী বাস্তবায়নের জন্য বিশেষ সার্ভে কমিটি গঠন করেছে। যে আঠ রাজ্যে SC সুযোগ পাচ্ছেন,তিন মাসের মধ্যে কমিটি সার্ভ রিপোর্ট ছত্রিশগড সরকারকে জমাদেবেন। এবং ছত্রিশগড সরকার সেমতবাকী পদক্ষেপ নেবেন। সরকারী আদেশপত্র নিচে সংযোজন করাবেন। জয় নিখিল ভারত*********

"মশা মশা কান খলসা কানে বাঁধা দড়ি ,সকল মশা খেদায় দেব অমুকের মার বাড়ি অমুকের মার .......খান খুঁচে খুঁচে খা "

Previous: ছত্রিশগড়ে নিখিল ভারত সমিতির ব্যানার তলে অমরন অনসন আন্দোলনের পরে , প্রশাসন বাংলা ভাষায় শিক্ষা,OBC উদ্বাস্তু বাঙালিদের OBC সুযোগ প্রদানের জন্য বিশেষ আদেশ জারি করেন।এবং জমির পাট্টা ও ( জমি কেনা বেঁচার ) আদেশ জারি করেন।বাঙালি উদ্বাস্তু SC দাবী বাস্তবায়নের জন্য বিশেষ সার্ভে কমিটি গঠন করেছে। যে আঠ রাজ্যে SC সুযোগ পাচ্ছেন,তিন মাসের মধ্যে কমিটি সার্ভ রিপোর্ট ছত্রিশগড সরকারকে জমাদেবেন। এবং ছত্রিশগড সরকার সেমতবাকী পদক্ষেপ নেবেন। সরকারী আদেশপত্র নিচে সংযোজন করাবেন। জয় নিখিল ভারত*********
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লেখক : ড .বিরাট বৈরাগ্য
আশ্বিন মাসের শেষ রাতকে gassi রাত বলে এই রাতের শেষে এখনও আমাদের গ্রামে হাতে গড়া মাটির প্রদীপ মহিলারা জ্বালান .আগের দিন এঁটেল মাটি দিয়ে মেয়েরা কাঁচা মাটির প্রদীপ তৈরী করে রাখত .প্রতি বাড়িতে মাটির পিদ্দূম বানানোর উত্সাহ দেখার মতো .রাত্রে পিঠে banato নানা রকমের .তবে দুধ রসে ভেজানো ভেজানো পিঠে আমার ভাল. লাগত .রাতে আমরা ছাত্ররা ঘুমাতাম না .আমাদের বলা হতো এই রাতে সব বই পড়তে হয় তাহলে সব পড়া মনে থাকবে .
ভোর বেলায় বা শেষ রাত্রে গোয়ালের গরু বাছুর নদীতে বা বিলে নিয়ে স্নান করিয়ে এনে এদের শিং এ তেল সিঁদুর দেয়া হতো কৃষি ভিত্তিক বাংলায় কৃষি কাজে গরুর ভূমিকা গুরুত্বপূর্ণ সেজন্য ওই দিনটি গরুকে বিশেষ ভাবে যত্ন করা হতো .উঠান ঘর বাড়ি লেপে সাফ সুরত করে রাখা হতো উঠোনের মাঝখানে আলপনা দেয়া হতো ,গরু গুলকে স্নান করানোর পরে উঠোনের মাঝখানে এনে তেল সিঁদুর দিয়ে সারা শরীরে চালের গুঁড়ির ছাপ দেয়া হতো .kartick মাসে চাষের সময় গরুর জ্বর হতো বা অসুখ হতো যাতে গরুর জ্বর না হয় সে জন্য গরুকে একধরনের ভেষজ khaoyano হতো জঙ্গল থেকে আনা হতো গুল্ম জতীয় গাছ .এই গুল্ম এর নাম "আমগুরুজ".এই আম gurujer সঙ্গে এক টুকরো চাল কুমড়ো ,একটি পুঁটি মাছ ,চালের গুঁড়ো দিয়ে তৈরী বিশেষ পিঠে এই বিশেষ পিঠে শুধুমাত্র গরুর জন্য্ তৈরি হত .এগুলো একসঙ্গে করে গরুর মুখের মধ্যে জোর করে ঢুকিয়ে দেয়া হতো .
এই gassir রাত জেগে সকলে সকালে নিম পাতা ও হলুদ বাটা গায়ে মেখে স্নান করে আসত .স্নানের পর সকলে বিশেষ পদ্ধতিতে তৈরি কাজল পরে .এরপর রাতের তৈরি পিঠে সকলে আনন্দের সঙ্গে খায় .প্রতিটি বাড়িতেই এই gassir পিঠে তৈরি হতো .বিশেষ করে vijene পিঠের কথা ভুলতে পারিনা .
Matuara সারা রাত ভর নাম গান করার পর ভোরে সমগ্র গ্রাম পরিক্রমা করে matua কীর্তনের মাধ্যমে .
Gassir ভোর রাতে বালক বালিকারা বাড়ির কুলো নিয়ে দলবদ্ধ হয়ে পেটাতে পেটাতে যায় আমি ছোট বেলায় এই দিনটার জন্য্ অপেক্ষা করতাম .রাত জেগে থাকতামকখন কুলো পেটানোর সময় হবে .এই kulo কেন পেটানো হয় .আমাদের জনগোষ্ঠীর বিশ্বাস kulo পিটিয়ে মশা মাছি র প্রাদুর্ভাব কমান যাবে .প্রতিটি ব্রত ই মানুষের মঙ্গলের জন্য্ করা হয় .কৃষিভিত্তিকনমঃ শূদ্র সম্প্রদায়ের মধ্যে এই gassi ব্রতের প্রভাব অপরিসীম .আমার বাড়ি নদীয়া জেলার কৃষ্ণ গঞ্জ থানার অধীন majhdia স্টেশন এর সন্নিকটে নমঃ শূদ্র অধ্যুষিত অঞ্চলে গ্রাম ধরমপুর .এই gassiতে kulo পেটানোর বালক বালিকারা পেটানোর তালে তালে গানের সুরে বলত purota লিখতে parbo না এখনকার দৃষ্টিতে অশ্লীল বলে .কিন্তু গ্রামে আমরা দেখতাম গ্রামের কেউ অশ্লীল বলছে না .গানটি
নিম্নরূপ "মশা মশা কান খলসা কানে বাঁধা দড়ি ,সকল মশা খেদায় দেব অমুকের মার বাড়ি অমুকের মার .......খান খুঁচে খুঁচে খা "
লোক সংস্কৃতিতে দেখা যায় এই শব্দ গুলি লোক মানুষ সমাজের মঙ্গলার্থে ব্যবহার করেছে .

মুক্ত আকাশটা দেখার আগে কতবার মাথা উঁচু করে তাকাবে জনতার ক্রন্দন শোনার আগে একটা মানুষের কয়টা কান থাকবে? আর কত মরা দেখে মানুষ বুঝবে বহু মানুষ মারা গেছে?

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Krishna Das
October 19 at 6:13am
 
২০১৬ সাহিত্যে নোবেল প্রাইজ পেতে চলেছেন বব ডিলন। আমেরিকা নিবাসী বব ডিলন বিখ্যাত গায়ক এবং গীতিকার ও বটে। তাঁর আসল নাম ‘রবার্ট এলীন জিমারমেন’। ১৯৪১সালের ২৪শে মে তাআঁর জন্ম। তিনি একাধারে গায়ক, গান রচনাকারী, শিল্পী এবং লেখক। গান-বাজনা ও সংস্কৃতির জগতে পাঁচ দশকের বেশী সময় ধরে খুবই জনপ্রিয়। যত দিন যাচ্ছে ততই বলতে সব দেখেও বলতে বাধ্য হচ্ছি-‘আমি তো কিছুই দেখিনি’। তাই ডিলান খুবই প্রাসঙ্গিক। বব ডিলন এর গীতধর্মী কবিতা -"Blowin' in the Wind"এর ভাবানুবাদঃ বাতাসে ভেসে ভেসে কত পথ গেলে তবে একটা মানুষ মানুষ হয়? কত সাগরপাড়ি দিয়ে বালিতে শুয়ে পায়রাটা পায়রা হয়? আর কতবার কামানের গোলা উড়লে তা নিষিদ্ধ হয়? উত্তরটা বাতাসে ভেসে বেড়ায় বন্ধু, বাতাসে ভেসে বেড়ায়। সমুদ্রের তলে ডুবে যাওয়ার আগে একটা পর্বত কতদিন টিকে থাকে? স্বাধীন হওয়ার আগে মানুষেরদল কত দিন বেঁচে থাকে? কত দিনই বা তারা মাথা নাড়ায় যেন ‘দেখেনি কিছু’ বোঝাতে? উত্তরটা বাতাসে ভেসে বেড়ায় ওহে বন্ধু বন্ধু আমার উত্তরটা বাতাসে ভেসে বেড়ায়। মুক্ত আকাশটা দেখার আগে কতবার মাথা উঁচু করে তাকাবে জনতার ক্রন্দন শোনার আগে একটা মানুষের কয়টা কান থাকবে? আর কত মরা দেখে মানুষ বুঝবে বহু মানুষ মারা গেছে? উত্তরটা বাতাসে ভেসে বেড়ায় বন্ধু,উত্তরটা বাতাসে ভেসে বেড়ায়।

महत्वपूर्ण खबरें और आलेख भारतीय समाज के लिए बहुत बुरा वक्त, राजनेता और मीडिया अब जनता की परवाह नहीं करते

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প্রতিবেশী আর সব ভাষা-ধর্মের মানুষকে সম্মান কেন করতে হবে না?

Next: পঞ্চমীর দিন রিষরায় পায়েলের শ্বশুর বাড়িতে পায়েলের ঝুলন্ত দেহ দেখতে পাওয়া যায় ... না সাথী পায়েল আত্মহত্যা করেনি পায়েল কে পরিকল্পিত ভাবে খুব করা হয় ... তার প্রতিবাদে আজ ধুবুলিয়াতে পায়েলের বাড়ির কাছে পায়েলের বন্ধুরা এবং প্রতিবেশীরা মিলে একটি প্রতিবাদী মিছিল করা হল ...সেই মিছিলে আমরাও পা মেলালাম । জোর গলায় বললাম পায়েলের মৃত্যুর বিচার চাই ... খুনীর কঠিন থেকে কঠিনতম শাস্তির দাবী উঠলো মিছিল থেকে ... এই লড়াইয়ের পাশে আমরা আছি এবং শেষ পর্যন্ত থাকবো ...
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'খিলঞ্জিয়া'হবার অর্থ এই নয় যে অসমিয়া ভাষা সংস্কৃতিকেই সম্মান করতে হবে। প্রতিবেশী আর সব ভাষা-ধর্মের মানুষকে সম্মান কেন করতে হবে না? কেন নিজের ভাষা সংস্কৃতিকে নয়। অসমিয়া যারা আশা করেন, বাঙালি খিলঞ্জিয়ার মতো আচরণ করুক, তারা কি জানেন না যে বাঙালি নিজের ভাষা-সংস্কৃতি সমাজ-ইতিহাস সম্পর্কেও বিশেষ জানে না কিছুই। সেদিন থেকে অসমের কথা অসমিয়ারাও যে খুব বেশি জানেন বোঝেন, তা কিন্তু নয়। তাই বাঙালি ছাত্র নেতাদের যখন মন্ত্রী বলেন, চাব তে অসমক ত্রিপুরা হ'বলৈ নিদিবো, সেই নেতারা মাথা পেতে সেসব মেনে নেন। কারণ, সুভাষ বসু মারা যান নি---এই তথ্যের বাইরে এই বাঙালি নেতাদের বিদ্যাবুদ্ধি বিশেষ নেই। অসমের বাঙালি হিন্দুদেরও তথৈবচ। যারা জানেন, যারা আসামে চিন্তন মনন সৃজনে থাকেন---সেই সব বাঙালি ব্যক্তি তাই অসমে একরকম সমাজ চ্যুত মানুষ। চাইলেও বৃহত্তর বাঙালি সমাজে বিশেষ কোনো প্রভাব বিস্তারে অসমর্থ। কারণ, সেই সমাজ পুজোপার্বন নিয়ে পরলোক চিন্তাতে নিমগ্ন। তাদের চিন্তনে ভারতমাতাও তাই দেবী, সেই মায়ের বন্ধনাও করেন---যাতে পরলোকে সুবন্দোবস্ত হয়ে যায় আর কি।

পঞ্চমীর দিন রিষরায় পায়েলের শ্বশুর বাড়িতে পায়েলের ঝুলন্ত দেহ দেখতে পাওয়া যায় ... না সাথী পায়েল আত্মহত্যা করেনি পায়েল কে পরিকল্পিত ভাবে খুব করা হয় ... তার প্রতিবাদে আজ ধুবুলিয়াতে পায়েলের বাড়ির কাছে পায়েলের বন্ধুরা এবং প্রতিবেশীরা মিলে একটি প্রতিবাদী মিছিল করা হল ...সেই মিছিলে আমরাও পা মেলালাম । জোর গলায় বললাম পায়েলের মৃত্যুর বিচার চাই ... খুনীর কঠিন থেকে কঠিনতম শাস্তির দাবী উঠলো মিছিল থেকে ... এই লড়াইয়ের পাশে আমরা আছি এবং শেষ পর্যন্ত থাকবো ...

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পঞ্চমীর দিন রিষরায় পায়েলের শ্বশুর বাড়িতে পায়েলের ঝুলন্ত দেহ দেখতে পাওয়া যায় ... না সাথী পায়েল আত্মহত্যা করেনি পায়েল কে পরিকল্পিত ভাবে খুব করা হয় ... তার প্রতিবাদে আজ ধুবুলিয়াতে পায়েলের বাড়ির কাছে পায়েলের বন্ধুরা এবং প্রতিবেশীরা মিলে একটি প্রতিবাদী মিছিল করা হল ...সেই মিছিলে আমরাও পা মেলালাম । জোর গলায় বললাম পায়েলের মৃত্যুর বিচার চাই ... খুনীর কঠিন থেকে কঠিনতম শাস্তির দাবী উঠলো মিছিল থেকে ... এই লড়াইয়ের পাশে আমরা আছি এবং শেষ পর্যন্ত থাকবো ...

মহিলা থানা। একটা পুরো থানা, যা বরাদ্দ শুধুমাত্র নারীদের বিভিন্ন সমস্যা ও বিভিন্ন পরিস্থিতিতে সাহায্য করার জন্য।না, ইউটোপিয়া নয়। আমাদের কাছেই আছে, পাশেই আছে, উলুবেড়িয়াতেই আছে। যেই থানার অধীনেই পড়ে মিতাদির শ্বশুরবাড়ি। ভালো লাগে এই ভেবে, যে হয়তো কোনোভাবে, কোনো নারী সেখানে সাহায্য পাচ্ছে।

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মহিলা থানা। একটা পুরো থানা, যা বরাদ্দ শুধুমাত্র নারীদের বিভিন্ন সমস্যা ও বিভিন্ন পরিস্থিতিতে সাহায্য করার জন্য।না, ইউটোপিয়া নয়। আমাদের কাছেই আছে, পাশেই আছে, উলুবেড়িয়াতেই আছে। যেই থানার অধীনেই পড়ে মিতাদির শ্বশুরবাড়ি। ভালো লাগে এই ভেবে, যে হয়তো কোনোভাবে, কোনো নারী সেখানে সাহায্য পাচ্ছে।
গতকাল আমরা বেশ কিছুজন সেই থানায় গিয়েছিলাম ডেপুটেশন জমা দিতে। তা নেওয়াও হয়েছে। থানার যিনি সর্বেসর্বা, তাঁর সঙ্গে বেশ কিছুক্ষণ কথাও হল। তবে, তিনি যেই পিতৃতান্ত্রিক মানসিকতার পরিচয় দিলেন, তারপর আর ''মহিলা থানার''অর্থটা বুঝে উঠলাম না। কিছু ঘটনা তুলে ধরলাম এখানে।
এক- তার মতে মিতাদির ঘটনা সঠিক হলেও ''নিরানব্বই''শতাংশ domestic violence-এর ঘটনাই হয় 'সাজানো'।
দুই- একটি ঘটনার উদাহরণে বললেন - একটি মেয়ে তার স্বামীর বিরুদ্ধে বলতে এসেছে যে সে শারীরিক অত্যাচারের শিকার। এদিকে তার পাঁচটি সন্তান।
এক্ষেত্রে তার মত, 'তাহলে পাঁচটি সন্তান হল কি করে? এই সমস্ত ঘটনা কিছুতেই বাস্তবসম্মত নয়, তাই এই কেস বেশী দূর এগোনো মানে সময় অপচয়।'
ওনার আরও মত এই যে- ''বৈবাহিক সম্পর্কে ধর্ষণ'' concept টি আমাদের মত 'জিন্স'পরা 'শহুরে'মেয়েরাই বলে থাকি। বাকীরা নয়।
অপ্রত্যাশিত কিছু কথাই শুনলাম। 'মহিলা থানা'তাহলে কি হল? সেই তো পিতৃতন্ত্রেরই ঘেরাটোপ। যেখানে ''বৈবাহিক সম্পর্কে ধর্ষণ''বাতুলতা মাত্র। বা যেখানে সন্তানের মায়ের শারীরিক অত্যাচারের শিকার হওয়া 'সাজানো'।
তবে হ্যাঁ, এই মহিলা থানাই সোচ্চার হয়েছে girls school এবং college গুলিতে awareness camp এর মাধ্যমে। এই মহিলা থানাই এগিয়ে এসেছে বেশ কিছু নারীর পাশে। পিতৃতন্ত্রের নিদর্শণ যদিও বা সুস্পষ্ট, তবুও কোথাও আশার আলো এরই মধ্যে হয়তো লুকিয়ে।
lekha :- Piyan Sengupta
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ব্রাহ্মণ্যবাদ ও রেড রোডের কার্নিভাল অনিক শর্মা কাশ্যপ

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ব্রাহ্মণ্যবাদ ও রেড রোডের কার্নিভাল
অনিক শর্মা কাশ্যপ

সদ্য সমাপ্ত হল বাঙ্গালীর শ্রেষ্ঠ উত্সব দুর্গাপূজা ! যেখানে বাংলার এলিট থেকে মধ্যবৃত্ত ; পথচারী থেকে দীন ভিখারী প্রত্যেকটি মানুষই প্রত্যক্ষ বা পরোক্ষ ভাবেই এই উত্সবের রঙ্গে নিজেকে কিছুটা হলেও রাঙ্গিয়েছে . কারণ এই পূজা বর্তমানে অন্য মাত্রা ধারণ করেছে . যা এতো দিন পর সাধারণ বারোয়ারি প্যান্ডেল থেকে সটান করে রাজ ভবনে উপস্থিত হয়েছে . যার প্রভাব ভারতবর্ষ ছাড়িয়ে সমগ্র বিশ্বের দরবারে আলোড়ন সৃষ্টি করেছে . এতো দিন ভারতের সব চেয়ে বড় গণ উত্সব ছিল মহারাষ্ট্রের গণপতি উত্সব , যার শোভাযাত্রা বা রোড কার্নিভাল ছিল ভারতবাসীর আশা-আকাঙ্ক্ষা . কিন্তু পশ্চিমবঙ্গ এবার সেখানে একটা দাগ এঁকে দিয়ে যোগ করেছে রেড রোডের দুর্গা কার্নিভাল . যার সর্বাগ্রে ছিলেন পশ্চিমবঙ্গ সরকার তথা মাননীয়া মূখ্যমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জি . 
কিন্তু হঠাত্ করে এই দুর্গা কার্ণিভালের আয়োজন কেন ? কেউ কি একবার ভাবার চেষ্টা করেছেন ? 
অনেকে হয়তো বলবেন এটা , "এটা রাজনীতি , জনগণকে আকৃষ্ট করার কৌশল" . আমি বলবো বন্ধু , "না" . ব্রাহ্মণ্যবাদ বোঝা এতো সহজ নয় . শুধু মাত্র রাজনৈতিক উদ্দ্যেশ্য সফল করার জন্য এই দুর্গা কার্ণিভালের আয়োজন করা হয়নি . এর পেছনে অনেক বড় উদ্দ্যেশ্য আছে .
আপনারা হয়তো বিভিন্ন খবরের কাগজে দেখে থাকবেন . এবছর কি হারে "অসুর স্মরণ উত্সব" বা "হুদুর দুর্গা স্মরণ উত্সব" পালিত হয়েছে . যা পুরুলিয়া বাঁকুড়ার আদিবাসী পরগণা ছাড়িয়ে নদীয়া 24 পরগণা মালদহ মুর্শিদাবাদ তথা সমগ্র পশ্চিমবঙ্গের সভ্য সমাজও গ্রহণ করেছে . পরিসংখান বলছে , এবছর পশ্চিমবঙ্গে 900 থেকে 1000 জায়গায় এই "অসুর স্মরণ উত্সব" পালিত হয়েছে . যা দেখে তো আমাদের মাননীয়া মূখ্যমন্ত্রীর চক্ষু চড়কগাছ . সুতরাং ব্রাহ্মণ্যবাদকে টিকিয়ে রাখতে হলে এর বিপরীত কিছু মিরাক্কেল ঘটাতেই হবে . তাই তড়িঘড়ি করে আয়োজন করলেন "রেড রোডে দুর্গার কার্নিভাল . যাতে খুব সহজেই বস করা গেল ধর্মীয় আবেগ প্রবণ বাঙ্গালী সমাজকে . 
এটাই হল সূক্ষ্ম ব্রাহ্মণ্যবাদ ! কবে বুঝবেন আপনারা ? ? ?

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ব্রাহ্মণ্যবাদ ও রেড রোডের কার্নিভাল
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সদ্য সমাপ্ত হল বাঙ্গালীর শ্রেষ্ঠ উত্সব দুর্গাপূজা ! যেখানে বাংলার এলিট থেকে মধ্যবৃত্ত ; পথচারী থেকে দীন ভিখারী প্রত্যেকটি মানুষই প্রত্যক্ষ বা পরোক্ষ ভাবেই এই উত্সবের রঙ্গে নিজেকে কিছুটা হলেও রাঙ্গিয়েছে . কারণ এই পূজা বর্তমানে অন্য মাত্রা ধারণ করেছে . যা এতো দিন পর সাধারণ বারোয়ারি প্যান্ডেল থেকে সটান করে রাজ ভবনে উপস্থিত হয়েছে . যার প্রভাব ভারতবর্ষ ছাড়িয়ে সমগ্র বিশ্বের দরবারে আলোড়ন সৃষ্টি করেছে . এতো দিন ভারতের সব চেয়ে বড় গণ উত্সব ছিল মহারাষ্ট্রের গণপতি উত্সব , যার শোভাযাত্রা বা রোড কার্নিভাল ছিল ভারতবাসীর আশা-আকাঙ্ক্ষা . কিন্তু পশ্চিমবঙ্গ এবার সেখানে একটা দাগ এঁকে দিয়ে যোগ করেছে রেড রোডের দুর্গা কার্নিভাল . যার সর্বাগ্রে ছিলেন পশ্চিমবঙ্গ সরকার তথা মাননীয়া মূখ্যমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জি .
কিন্তু হঠাত্ করে এই দুর্গা কার্ণিভালের আয়োজন কেন ? কেউ কি একবার ভাবার চেষ্টা করেছেন ?
অনেকে হয়তো বলবেন এটা , "এটা রাজনীতি , জনগণকে আকৃষ্ট করার কৌশল" . আমি বলবো বন্ধু , "না" . ব্রাহ্মণ্যবাদ বোঝা এতো সহজ নয় . শুধু মাত্র রাজনৈতিক উদ্দ্যেশ্য সফল করার জন্য এই দুর্গা কার্ণিভালের আয়োজন করা হয়নি . এর পেছনে অনেক বড় উদ্দ্যেশ্য আছে .
আপনারা হয়তো বিভিন্ন খবরের কাগজে দেখে থাকবেন . এবছর কি হারে "অসুর স্মরণ উত্সব"বা "হুদুর দুর্গা স্মরণ উত্সব"পালিত হয়েছে . যা পুরুলিয়া বাঁকুড়ার আদিবাসী পরগণা ছাড়িয়ে নদীয়া 24 পরগণা মালদহ মুর্শিদাবাদ তথা সমগ্র পশ্চিমবঙ্গের সভ্য সমাজও গ্রহণ করেছে . পরিসংখান বলছে , এবছর পশ্চিমবঙ্গে 900 থেকে 1000 জায়গায় এই "অসুর স্মরণ উত্সব"পালিত হয়েছে . যা দেখে তো আমাদের মাননীয়া মূখ্যমন্ত্রীর চক্ষু চড়কগাছ . সুতরাং ব্রাহ্মণ্যবাদকে টিকিয়ে রাখতে হলে এর বিপরীত কিছু মিরাক্কেল ঘটাতেই হবে . তাই তড়িঘড়ি করে আয়োজন করলেন "রেড রোডে দুর্গার কার্নিভাল . যাতে খুব সহজেই বস করা গেল ধর্মীয় আবেগ প্রবণ বাঙ্গালী সমাজকে .
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নাজিয়া,পায়েল,মিতা।কিছু নাম,কিছু মৃত স্বপ্নের গল্প,প্রচুর প্রশ্ন।

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নাজিয়া,পায়েল,মিতা।কিছু নাম,কিছু মৃত স্বপ্নের গল্প,প্রচুর প্রশ্ন।

Arnab

ধুবলিয়া।নদিয়া জেলার দিনের বেশিরভাগ সময় ফাঁকা পরে থাকা এক স্টেশনের নাম।আজ আমাদের গন্তব্য ছিল সেখানেই।আমরা মনে আমি,সায়ন দা, মৃণ্ময়দা,কবিরদা । গিয়ে শুনলাম গ্রাম বাংলার এক হতভাগ্য কন্যার মর্মান্তিক পরিণতির কাহিনী।
গল্পটা শুরু আজ থেকে দেড় বছর আগের।ধুবলিয়ার বাসিন্দা পায়েল হাজরার সাথে বিয়ে হয় রিষড়া নিবাসি এক আপাত দৃষ্টিতে ভদ্রলোক এক ব্যাংকে কর্মরত ব্যক্তির। বিয়ের পর থেকেই শশুর বাড়ির লোকদের অত্যাচারে অতিষ্ট হয়ে ওঠে পায়েলের জীবন।আমাদের থেকে অনেক বেশি সংগ্রাম করতে হয় ওকে কারণ বিপক্ষ নিজের চারদেয়ালের ভেতরে থাকা লোকেরাই।একটু মাথা তুলে বাঁচার লড়াই,একটু নিরাপত্তার লড়াই।

পারেনি।পায়েল পারেনি।গতসপ্তাহে তথা কথিত নিজের আপনজনদের হাতেই খুন হয় পায়েল।মেডিক্যাল রিপোর্টে পাওয়া যায় গলায় চাপ পরে মারা যায় পায়েল।চাপটা যে কোথায় পড়েছিল তা বোধয় স্বয়ং পায়েল ছাড়া কেউ জানে না।

ভাবছো আইন চলবে নিজের পথে...শাস্তি পাবে খুনিরা।না। সেটা হবার নয়।কারণ খুনিরা তো সমাজের উঁচু তোলার লোক।তারা কি খুন করতে পারে ? ববোধয় সে জন্যই পায়েলের শশুর বাড়ির লোকেদের বিরুদ্ধে খুনের অভিযোগের বদলে দেওয়া হয় আত্মহত্যায় প্ররোচনা দেবার অপেক্ষাকৃত লঘু মামলা।নিজের বাড়ির এলাকায় থেকেই পায়েলের শাশুড়ি পুলিশের খাতায় হয়ে যায় ফেরার।অবশেষে জনরোষে পরে তাকর গ্রেফতার করতে বাধ্য হয় পুলিশ।

পায়েল চলে গেল...কিন্তুএমন তো হওয়ার কথা ছিলোনা।পায়েল কে হারিয়ে দেওয়া হলো।হেরে গেলাম আমরা।হেরে গেল গোটা পৃথিবী-ন্যায়, নীতি,ভরসা,স্বপ্ন সব।

লড়াইটা শুরু এখন থেকেই।পায়েলকে জিতিয়ে দেয়ার লড়াই,পায়েলদের জিতিয়ে দেওয়ার লড়াই।

আজ আমরা এবং পায়েলের বন্ধুরা,কাছের লোকরা মিলে ধুবুলিয়াতে মিছিল করে ,বক্তৃতা, স্লোগানে নিয়েছি লড়াই করার এক নতুন শপথ...এক সাথে,হাতে হাত রেখে।

পায়েল হত্যাকাণ্ডের বিচার পেতে এখনও অনেক রাস্তা বাকি সাথী।বাকি অনেক পথ চলার।

আজ হয়তো তুমি বাস্ত ছিলে কিংবা হয়তো এই ব্যাপারটা জানতে না । তাই আজ তোমাদের জানালাম।পরের আন্দোলনের দিন তোমায় সোশ্যাল মিডিয়াতে জানাবো সাথী।আমি কিন্তু সেই লড়াইয়ে আমার হাত ধরার জন্য আরো হাত চাই।সেইদিন রাস্তায় দেখা হবার সাথী।সেদিন হাত ধরবে হাত,আকাশ মাটি ফাটিয়ে উঠবে লড়াইয়ের স্লোগান,সবাই মিলে একসাথে সুস্থ ভাবে বেঁচে থাকার স্লোগান।আজ নাহয় সেই শপথটাই করলাম।দেখা হচ্ছে সাথী।

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ধুবলিয়া।নদিয়া জেলার দিনের বেশিরভাগ সময় ফাঁকা পরে থাকা এক স্টেশনের নাম।আজ আমাদের গন্তব্য ছিল সেখানেই।আমরা মনে আমি,সায়ন দা, মৃণ্ময়দা,কবিরদা । গিয়ে শুনলাম গ্রাম বাংলার এক হতভাগ্য কন্যার মর্মান্তিক পরিণতির কাহিনী।
গল্পটা শুরু আজ থেকে দেড় বছর আগের।ধুবলিয়ার বাসিন্দা পায়েল হাজরার সাথে বিয়ে হয় রিষড়া নিবাসি এক আপাত দৃষ্টিতে ভদ্রলোক এক ব্যাংকে কর্মরত ব্যক্তির। বিয়ের পর থেকেই শশুর বাড়ির লোকদের অত্যাচারে অতিষ্ট হয়ে ওঠে পায়েলের জীবন।আমাদের থেকে অনেক বেশি সংগ্রাম করতে হয় ওকে কারণ বিপক্ষ নিজের চারদেয়ালের ভেতরে থাকা লোকেরাই।একটু মাথা তুলে বাঁচার লড়াই,একটু নিরাপত্তার লড়াই।
পারেনি।পায়েল পারেনি।গতসপ্তাহে তথা কথিত নিজের আপনজনদের হাতেই খুন হয় পায়েল।মেডিক্যাল রিপোর্টে পাওয়া যায় গলায় চাপ পরে মারা যায় পায়েল।চাপটা যে কোথায় পড়েছিল তা বোধয় স্বয়ং পায়েল ছাড়া কেউ জানে না।
ভাবছো আইন চলবে নিজের পথে...শাস্তি পাবে খুনিরা।না। সেটা হবার নয়।কারণ খুনিরা তো সমাজের উঁচু তোলার লোক।তারা কি খুন করতে পারে ? ববোধয় সে জন্যই পায়েলের শশুর বাড়ির লোকেদের বিরুদ্ধে খুনের অভিযোগের বদলে দেওয়া হয় আত্মহত্যায় প্ররোচনা দেবার অপেক্ষাকৃত লঘু মামলা।নিজের বাড়ির এলাকায় থেকেই পায়েলের শাশুড়ি পুলিশের খাতায় হয়ে যায় ফেরার।অবশেষে জনরোষে পরে তাকর গ্রেফতার করতে বাধ্য হয় পুলিশ।
পায়েল চলে গেল...কিন্তুএমন তো হওয়ার কথা ছিলোনা।পায়েল কে হারিয়ে দেওয়া হলো।হেরে গেলাম আমরা।হেরে গেল গোটা পৃথিবী-ন্যায়, নীতি,ভরসা,স্বপ্ন সব।
লড়াইটা শুরু এখন থেকেই।পায়েলকে জিতিয়ে দেয়ার লড়াই,পায়েলদের জিতিয়ে দেওয়ার লড়াই।
আজ আমরা এবং পায়েলের বন্ধুরা,কাছের লোকরা মিলে ধুবুলিয়াতে মিছিল করে ,বক্তৃতা, স্লোগানে নিয়েছি লড়াই করার এক নতুন শপথ...এক সাথে,হাতে হাত রেখে।
পায়েল হত্যাকাণ্ডের বিচার পেতে এখনও অনেক রাস্তা বাকি সাথী।বাকি অনেক পথ চলার।
আজ হয়তো তুমি বাস্ত ছিলে কিংবা হয়তো এই ব্যাপারটা জানতে না । তাই আজ তোমাদের জানালাম।পরের আন্দোলনের দিন তোমায় সোশ্যাল মিডিয়াতে জানাবো সাথী।আমি কিন্তু সেই লড়াইয়ে আমার হাত ধরার জন্য আরো হাত চাই।সেইদিন রাস্তায় দেখা হবার সাথী।সেদিন হাত ধরবে হাত,আকাশ মাটি ফাটিয়ে উঠবে লড়াইয়ের স্লোগান,সবাই মিলে একসাথে সুস্থ ভাবে বেঁচে থাকার স্লোগান।আজ নাহয় সেই শপথটাই করলাম।দেখা হচ্ছে সাথী।
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