আসামবাসী বাঙালিসমাজ অন্য জনগোষ্ঠীর দ্বারা আক্রান্ত হলে,নিরাপত্তার অলীক আশ্বাসে তারা বাধ্য হয়ে ধৰ্মীয় সাম্প্রদায়িক অপশক্তির পাশে চলে যাবেন,এধরণের কূটকৌশল সমগ্র আসামবাসী অনুধাবন করা খুবই প্রয়োজনীয়।.
सत्ता समीकरण साधने के लिए कश्मीर में बाहरी हस्तक्षेप की जमीन बना दी! बंगाल और असम में कश्मीर से भी खतरनाक हालात! कारपोरेट विश्वव्यवस्था के शिकंजे में हैं हमारी राजनीति और राजनय और नागरिकों का सीधे तौर पर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण हो चुका है। फिजां कयामत है और पानियों में आग दहकने लगी है।हवाओं में विष के दंश हैं।पांव तले जमीन खिसकने लगी है।हिमालय के उत्तुंग शिखरों में ज्वालामुखियो�
सत्ता समीकरण साधने के लिए कश्मीर में बाहरी हस्तक्षेप की जमीन बना दी!
बंगाल और असम में कश्मीर से भी खतरनाक हालात!
कारपोरेट विश्वव्यवस्था के शिकंजे में हैं हमारी राजनीति और राजनय और नागरिकों का सीधे तौर पर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण हो चुका है।
फिजां कयामत है और पानियों में आग दहकने लगी है।हवाओं में विष के दंश हैं।पांव तले जमीन खिसकने लगी है।हिमालय के उत्तुंग शिखरों में ज्वालामुखियों के मुहाने खुलने लगे हैं।खानाबदोश मनुष्यता की स्मृतियों में जो जलप्रलय की निरंतरता है,उसमें अब रेगिस्तान की तेज आंधी है।
पलाश विश्वास
फिजां कयामत है और पानियों में आग दहकने लगी है।हवाओं में विष के दंश हैं।पांव तले जमीन खिसकने लगी है।हिमालय के उत्तुंग शिखरों में ज्वालामुखियों के मुहाने खुलने लगे हैं।खानाबदोश मनुष्यता की स्मृतियों में जो जलप्रलय की निरंतरता है,उसमें अब रेगिस्तान की तेज आंधी है।
अपनी मुट्ठी में कैद दुनिया के साथ जो खतरनाक खेल हमने शुरु किया है,वह अंजाम के बेहद नजदीक है।हम परमाणु विध्वंस के मुखातिब हो रहे हैं।
असंगठित राष्ट्र,असंगठित समाज और खंडित परिवार में कबंधों के कार्निवाल में अराजक आदिम असभ्य बर्बर दुस्समय के शिकंजे में हम अनंत चक्रव्यूह के अनंत महाभारत में हैं।
1973 से,तैतालीस साल से मैं लिख रहा हूं।पेशेवर पत्रकारिता में भारत के सबसे बड़े मीडिया समूहों में छत्तीस साल खपाने के बावजूद कोई मंच ऐसा नहीं है ,जहां चीखकर हम अपना दिलोदिमाग खोलकर आपके समाने रख दें या हमारे लिए इतनी सी जगह भी कहीं नहीं है कि हम आपको हाथ पकड़कर कहीं और किसी दरख्त के साये में ले जाकर कहें वह सबकुछ जो महाभारत के समय अपनी दिव्यदृष्टि से अंध धृतराष्ट्र को सुना रहा था।
धृतराष्ट्र सुन तो रहे थे आंखों देखा हाल ,लेकिन वे यकीनन कुछ भी नहीं देख रहे थे।संजोग से वह दिव्यदृष्टि हमें भी कुछ हद तक मिली हुई है और हमारी दसों दिशाओं में असंख्य अंध धृतराष्ट्र अपने कानों के अनंत ब्लैक होल के सारे दरवाजे खोलकर युद्धोन्माद के शित्कार से अपने इंद्रियों को तृप्त करने में लगे हैं।जो दृश्य हमारी आंखों में घनघटा हैं,उन्हें हम साझा नहीं कर सकते।
हालात बेहद संगीन है।मैं कहीं चुनाव में आपसे अपने समर्थन में वोट नहीं मांग रहा हूं।मुझे देश में या किसी सूबे में राजनीतिक समीकरण साधकर सत्ता हासिल भी नहीं करना है।हम मामूली दिहाड़ी मजदूर हैं और किसी पुरस्कार या सम्मान के लिए मैंने कभी कुछ लिखा नहीं है।डिग्री या शोध के लिए भी नहीं लिखा है।जब तक आजीविका बतौर नौकरी थी, पैसे के लिए भी नहीं लिखा है।आज भी पैसे के लिए लिखता नहीं हूं।आजीविका बतौर अनुवाद की मजदूरी करता हूं जो अभी छह महीने में शुरु भी नहीं हुई है।
मुझे आपकी आस्था अनास्था से कुछ लेना देना नहीं है और न आपके धर्म कर्म के बारे में कुछ कहना है।पार्टीबद्ध भी नहीं हूं मैं।अकारण सिर्फ शौकिया लेखन बतौर आजतक मैंने एक शब्द भी नहीं लिखा है।समकालीन यथार्थ को यथावत संबोधित करने का हमेशा हमारा वस्तुनिष्ठ प्रयास रहा है।यही हमारा मिशन है।
मुझे सत्ता वर्चस्व का कोई डर नहीं है।मुझे असहिष्णुता का भी डर नहीं है।मेरे पास रहने को घर भी नहीं है तो कुछ खोने का डर भी नहीं है। मेरी हैसियत सतह के नीचे दबी मनुष्यता से बेहतर किसी मायने में नहीं है तो उस हैसियत को खोने के डर से मौकापरस्त बने जाने की भी जरुरत मुझे नहीं है।
हमने सत्तर के दशक के बाद अस्सी के दशक का खून खराबा खूब देखा है और तब हम दंगों में जल रहे उत्तर प्रदेश के मेरठ और बरेली शहर के बड़े अखबारों में काम कर रहा था।हवाओं में बारुदी गंध सूंघने की आदत हमारी पेशावर दक्षता रही है और जलते हुए आसमान और जमीन पर जलजला के मुखातिब मैं होता रहा हूं और जन्मजात हिमालयी होने के कारण प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं के बारे में हमारी भी अभिज्ञता है हम यह कहने को मजबूर हैं कि हालात बेहद संगीन हैं।हमारा अपराध इतना सा है कि हम आपको आगाह करने का दुस्साहस कर रहे हैं।
बांग्लादेश युद्ध जीतने के बाद किसी को यह आशंका नहीं थी कि त्रिपुरा,असम और पंजाब से देश भर में खून की नदियां बह निकलेंगी।1965 की लड़ाई के बाद 1971 के युद्ध में कश्मीर में आम तौर पर अमन चैन का माहौल रहा तो समूचे अस्सी के दशक में बाकी देश में खून खराबा का माहौल रहा,वह सिलसिला अब भी खत्म हुआ नहीं है।
इतनी लंबी भूमिका की जरुरत इसलिए है कि हालात इतने संगीन हैं कि इस वक्त खुलासा करना संभव नहीं है।सिर्फ इतना समझ लें कि कश्मीर से ज्यादा भयंकर हालात इस वक्त बंगाल और असम में बन गये हैं।
इतने भयंकर हालात हैं कि अमन चैन के लिहाज से उनका खुलासा करना भी संभव नही है।पूरे बंगाल में जिस तरह सांप्रदायिक ध्रूवीकरण होने लगा है,वह गुजरात से कम खतरनाक नहीं है तो असम में भी गैरअसमिया तमाम समुदाओं के लिए जान माल का भारी खतरा पैदा हो गया है।गुजरात अब शांत है।लेकिन बंगाल और असम में भारी उथल पुथल होने लगा है।
इस बीच कुछ खबरें भी प्रकाशित और प्रसारित हुई हैं।राममंदिर आंदोलन के वक्त उत्तर भारत में जिस तरह छोटी सी छोटी घटनाएं बैनर बन रही थी,गनीमत है कि बंगाल में वैसा कुछ नहीं हो रहा है और हालात नियंत्रण में हैं।चूंकि इस पर सार्वजनिक चर्चा हुई नहीं है तो हम भी तमाम ब्योरे फिलहाल साझा नहीं कर रहे हैं और ऐसा हम अमन चैन का माहौल फिर न बिगड़े,इसलिए कर रहे हैं।
बांग्लादेश में हाल की वारदातों के लिए तमाम तैयारियां बंगाल और पूर्वोत्तर भारत में होती रही है,इसका खुलासा हो चुका है।
अब आम जनता के सिरे से सांप्रदायिक ध्रूवीकरण में बंट जाने के बाद दशकों से राजनीतिक संरक्षण में पल रहे वे तत्व क्या गुल खिला सकते हैं,असम और बंगाल में आगे होने वाली घटनाएं इसका खुलासा कर देंगी।
वोटबैंक की राजनीति के तहत पूरे देश में अस्मिता राजनीति कमोबेश फासिज्म के राजकाज को ही मजबूत कर रही है,फिर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इस राजनीति का समर्थन कितना आत्मघाती होने जा रहा है,यह हम सत्तर,अस्सी और नब्वे के दशकों में बार बार देख चुके हैं और तब सत्ता का रंग केसरिया भी नहीं था।
परमाणु विध्वंस के लिए वोटबैंक दखल के राजनीतिक समीकरण साधने की राजनीति और राजकाज से यह सांप्रदायिक ध्रूवीकरण बेहद तेज होने लगा है और विडंबना यह है कि असंगठित राष्ट्र,असंगठित समाज और खंडित परिवार के हम कबंध नागरिक इस खंडित अंध अस्मिता राष्ट्रवाद के कार्निवाल में तमाम खबरों से बेखबर किसी न किसी के साथ पार्टीबद्ध होकर नाचते हुए तमाम तरह के मजे ले रहे हैं और मुक्त बाजार में अबाद पूंजी प्रवाह की निरंकुश क्रयशक्ति की वजह से हमारा विवेक,सही गलत समझने की क्षमता सिरे से गायब है।
हम बार बार आगाह कर रहे हैं कि ये युद्ध परिस्थितियां कोई भारत पाक या कश्मीर विवाद नहीं है।बल्कि कारपोरेट विश्वव्यवस्था के तहत सुनियोजित संकट का सृजन है।जैसे पाकिस्तान की फौजी हुकूमत ने पूर्वी पाकिस्तान की आम जनता का दमन का रास्ता अख्तियार करके बांग्लादेश में भारतीय सैन्य हस्तक्षेप की परिस्थितियां बना दी थी,हम उस इतिहास से कोई सबक सीखे बिना कश्मीर की समस्या सुलझाने के बजाये उसे सैन्य दमन के रास्ते उलझाते हुए अपनी आत्मघाती राजनीति और राजनय से कश्मीर में बाहरी हस्तक्षेप की जमीन मजबूत करने लगे हैं।
पाकिस्तान की फौजी ताकत और हथियारों की होड़ में उसकी मौजूदा हैसियत चाहे कुछ भी हो ,भारत का उससे कोई मुकाबला नहीं है क्योंकि सन 1962,सन 1965 और सन 1971 की लड़ाइयों और अंधाधुंध रक्षा व्यय के बावजूद भारत में लोकतंत्र पर सैन्यतंत्र का वर्चस्व कभी बना नहीं है।
भारत में युद्धकाल से निकलकर विकास की गतिविधियां जारी रही हैं और हर मायने में भारतीय अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर रही है तो सत्ता परिवर्तन के बावजूद राजनीतिक अस्थिरता सत्तर के दशक के आपातकाल के बावजूद कमोबेश भारत राष्ट्र के लोकतांत्रिक ढांचे को तोड़ नहीं सका है।
जबकि पाकिस्तान में लोकतंत्र उस तरह बहाल हुआ ही नहीं है।लोकतांत्रिक सरकार पर फौज हावी होने से पाकिस्तान में युद्ध परिस्थितियां उसके अंध राष्ट्रवाद के लिए अनिवार्य है और भारत विरोध के बिना उसका कोई वजूद है ही नहीं।
इसी वजह से पाकिस्तान लगातार अपनी राष्ट्रीय आय और अर्थव्यवस्था को अनंत युद्ध तैयारियों में पौज के हवाले करने को मजबूर है और इसीलिए उसकी संप्रभुता अमेरिका ,चीन और रूस जैसे ताकतवर देशों के हवाले हैं।यह भारत की मजबूरी नही है।
हमारी राजनीति चाहे कुछ रही हो,अबाध पूंजी निवेश और मुक्त बाजार के बावजूद राष्ट्रनिर्माताओं की दूर दृष्टि की वजह से हमारा बुनियादी ढांचा निरंतर मजबूत होता रहा है।विकास के तौर तरीके चाहे विवादास्पद हों,लेकिन विकास थमा नहीं है।अनाज की पैदावार में हम आत्मनिर्भर हैं हालाकि अनाज हर भूखे तक पहुंचाने का लोकतंत्र अभी बना नहीं है। हमें पाकिस्तान की तरह बुनियादी जरुरतों और बुनियादी सेवाओं के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहने की जरुरत नहीं है।
अस्सी के दशक के खून खराबा और नब्वे के दशक में हुए परिवर्तन के मध्य पाकिस्तान से भारत का कबी किसी भी स्तर पर कोई मुकाबला नहीं रहा है।कश्मीर मामले को भी वह अंतरराष्ट्रीिय मंचों पर उठाने में नाकाम रहा है।
पाकिस्तानी फौजी हुकूमत की गड़बड़ी फैलाने की तमाम कोशिशों के बावजूद कश्मीर विवाद अंतर राष्ट्रीय विवाद 1971 से लेकर अबतक नहीं बना था और न तमाम देशों,अमेरिका,रूस या चीन समेत की विदेश नीति में भारत और पाकिस्तन को एक साथ देखने की पंरपरा रही है।
पाकिस्तान राजनयिक तौर पर अमेरिका और चीन का पिछलग्गू रहा है और बाकी दुनिया से अलग रहा है।इस्लमी राष्ट्र होने के बावजूद उसे भारत के खिलाफ इस्लामी देशों से कभी कोई मदद मिली नहीं है और भारतीय विदेश नीति का करिश्मा यह रहा है कि उसे लगातार अरब दुनिया और इस्लामी दुनिया का समर्थन मिलता रहा है।पाकिस्तान हर हाल में अलग थलग रहा है।
ब्रिक्स के गठन के बाद तो चीन ऱूस ब्राजील के साथ भारत एक आर्थिक ताकत के रुप में उभरा है और भारत जहां है,उस हैसियत को हासिल पाकिस्तान ख्वाबों में भी नहीं कर सकता क्योंकि फौजी हुकूमत के शिकंजे से निकले बिना ऐसा असंभव है।
हमारे अंध राष्ट्रवाद ने कश्मीर समस्या को भारत पाक विवाद बना दिया है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने की अंध राजनय ने हाल में गोवा में हुए ब्रिक शिखर वार्ता के विशुध आर्थिक मंच पर भी बेमतलब कश्मीिर को मुद्दा बना दिया है,जिसकी गूंज अमेरिकी,चीनी,रूसी कूटनीतिक बयानों में सुनायी पड़ रही है।
यह राजनयिक आत्मघात है ,भले ही इस कवायद से किसी राजनीतिक पार्टी को यूपी और पंजाब में सत्ता दखल करने में भारी मदद मिलेगी,लेकिन इस ऐतिहासिक भूल की भारी कीमत हमें आगे अदा करनी होगी।
नागरिकों का विवेक जब पार्टीबद्ध हो जाये तब राष्ट्र और राष्ट्रवाद की चर्चा बेमानी है।
यह बेहद खतरनाक इसलिए है कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में चाहे मैडम हिलेरी जीते या फिर डोनाल्ड ट्रंप,जिन्हें ग्लोबल हिंदुत्व के अलावा पोप का समर्थन भी मिला हुआ है,अमेरिका की तैयारी परमाणु युद्ध की है और आतंकवाद के विरुद्ध अमेरिका के युद्द में पार्टनर होने से तेल कुओं की आग से भारत को बचाना उतना आसान भी नहीं होगा।
कारपोरेट विश्वव्यवस्था के शिकंजे में है हमारी राजनीति और राजनय और नागरिकों का सीधे तौर पर सांप्रदायिक ध्रूवीकरण हो चुका है।
आप चाहे तो हमें जी भरकर गरियायें।सोशल मीडिया पर भी आप हमें आप जो चाहे लिख सकते हैं।हम जैसे कम हैसियत के नामानुष को इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है,लेकिन जिन खतरों की तरफ हम आपका ध्यान आकर्षित करना चाह रहे हैं,अपनी अस्मिता और अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता से ऊपर उठकर एक मनुष्य और एक भारतीय नागरिक बतौर उन पर तनिक गौर करें तो हम आपके आभारी जरुर होगें।
Women have to be the victim unless we destroy the Patriarchy! Palash Biswas
এ কোথায় চলেছি আমরা? কোন পিশাচের আস্তানায়? কারা লুঠে নিচ্ছে বাঙালির আত্মপরিচয়? রামমোহন, বিদ্যাসাগর, ডিরোজিও র সব ঋণ শোধবোধ? মিছে ছিল বাংলার নবজাগরণ? সর্বংসহা বাংলা!! নরকের কীটেদের এই উল্লাসই কি ভবিতব্য বাংলার?
আজকাল পত্রিকায় গত ১৬ ই অক্টোবরের প্রথম পাতার খবর আর ছবিটা দেখে শিউরে উঠলাম।
পূর্ব মেদিনীপুরের তমলুকের গড়কিল্লার মান্নাপাড়ায় ১৬ - ১৯ বছরের এক যুবতীর শরীর নিয়ে চলেছিল নারকীয় তন্ত্রসাধনা। মুন্ডু কাটা, গায়ে সুতো পর্যন্ত নেই, বুকের ওপর লাল গোলাপি বিষ্ণুজোড় - তুলসীপাতা ছড়ানো,টকটকে ফর্সা পায়ে লাল আলতা পরা। দুহাত আলতায় রাঙানো। নাভির নীচে যোনির ওপরে রাখা হোমযজ্ঞের আধপোড়া কাঠ।যৌনাঙ্গের তলদেশে মাটিতে পোঁতা একগোছা ধূপ। পাশেই রাখা টকটকে তাজা রক্তে ভরা মাটির সরা। দেহ ঘিরে পোঁতা রয়েছে একই মাপের সরু গাছের ডাল। চারিদিকে ছড়ানো- ছেঁটানো সিঁদুরের মাঙ্গলিক রেখা আর গাঁদাফুল।
কুৎসিৎ বীভৎসা পরে আঘাত হানিতে পারি যেন। এ বাংলা আমার না, এ বাংলাকে চিনিওনা - লুঠ হয়ে যাচ্ছে বাংলার আত্মপরিচয়!!! বন্ধু নবজাগরণ আনবে না?

Rafeef Ziadah - 'We teach life, sir', London, 12.11.11
Rafeef Ziadah - Shades of Anger (English subtitled)
सिंगुर में दीदी के बोये सरसों के फूल खिलखिलायेंगे,लेकिन दसों दिशाओं में कमल खिलने लगे हैं! दीदी जिसे अपनी ताकत मनने लगी है जो दरअसल उनके तख्ता पलट की भारी तैयारी है। अधिग्रहित जमीन वापस ,लेकिन जमीन के मालिक दो सौ किसानों का अता पता नहीं! एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप संवाददाता
सिंगुर में दीदी के बोये सरसों के फूल खिलखिलायेंगे,लेकिन दसों दिशाओं में कमल खिलने लगे हैं!
दीदी जिसे अपनी ताकत मनने लगी है जो दरअसल उनके तख्ता पलट की भारी तैयारी है।
अधिग्रहित जमीन वापस ,लेकिन जमीन के मालिक दो सौ किसानों का अता पता नहीं!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
हस्तक्षेप संवाददाता
सिंगुर में दीदी के बोये सरसों के फूल खिलखिलायेंगे,लेकिन दसों दिशाओं में कमल खिलने लगे हैं।दीदी जिसे अपनी ताकत मनने लगी है जो दरअसल उनके तख्ता पलट की भारी तैयारी है।जब खिलेंगे सरसों के फूल ,तब खिलेंगे।सरसों पंजाब में सबसे ज्यादा खिलते रहे हैं लेकिन अकाली हिंदुत्व की दुधारी तलवार पर पंजाब किस तरह लहूलुहान होता रहा है,बंगाल उससे कोई सबक सीख लें तो बेहतर।
सरसों जब खिलेंगे तब खिलेंगे।फिलहाल पूरे बंगाल में असम की तर्ज पर कमल की फसल खूब लहलहा रही है और कमल के नाभि नाल में तमाम विषैले नाग फन काढ़े बैढे हैं।कब किसे डंस लें,कौन जाने कब! कहां कैसी दुर्घटना हो जाये!
कल सिंगुर पहुंचकर सुरक्षा कवच किनारे रखकर अफसरों,मंत्रियों ,नेताओं के कारवां को पीछे छोड़कर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिंगुर की अधिग्रहित जमीन पर किसानों के बीच पहुंच कर खेत पर जो सरसों के बीज छिड़के हैं,वे जल्द ही अंकुरित हो जायेंगे और दस साल से ज्यादा समय तक बंजर पड़ी जमीन पर सरसों के फूल खिलखिलायेंगे और तब तक सिंगुर पर अवैध अधिग्रहण के फैसले के तहत जारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत समयसीमा के भीतर सारी अधिग्रहित जमीन किसानों को वापस दिलाने का वादा किया है ममता दीदी ने।
खेतों को कृषि योग्य बनाने का काम तेजी से हो रहा है।जिसे सुप्रीम कोर्ट की मोहलत के भीतर पूरा कर लेने का दावा है।गौरतलब है कि सीमेंट, पत्थर,ईंट और आधे अधूरे निर्माण,खर पतवार आदि को साफ करके यह काम पूरा करना भी बहुत बड़ी चुनौती है।जमीन का चरित्र बदल जाने के बाद बेदखल जमीन किसानों को सौंपकर वहां फिर खेती शुरु करना कम बड़ी उपलब्धि नहीं है।लेकिन इस उपलब्धि के साथ ही ममता बनर्जी के तख्ता पलट की तैयारी भी जोरों पर है और इसका अचूक हथियार हिंदुत्व है,जिसका इस्तेमाल दीदी भी खूब कर रही हैं।
बहरहाल किसानों को नये सिरे से खेती के लिए बीज और कर्ज देने का बंदोबस्त भी हो गया है।सिंगुरके 298 किसानों को सौंपी गई उनकी 103 एकड़ जमीन। कृषि से आंदोलन भूमि में तब्दील हुए सिंगुरमें गुरुवार को नई उम्मीदों का बीजारोपण हो गया। एक दशक बाद फिर सिंगुर में खेती शुरू हुई, जिसका आगाज खुद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सरसों के बीज छिड़ककर किया। उन्होंने किसानों में जैविक खाद भी बांटे।
ममता बनर्जी ने गुरुवार को सिंगुरके बाजेमेलिया मौजे में किसानों के बीच जाकर उन्हें उनकी जमीनें सौंपी और कड़ी धूप में खुद सरसों के बीज छिड़ककर फिर से खेती की शुिरुआत कर दी।
फिरभी सारी जमीन लौटाना मुश्किल दीख रहा है क्योंकि अधिग्रहित जमीन जिन किसानों के नाम हैं,उनमें से दो सौ किसानों का अता पता नहीं है।इन दो सौ किसानों ने न मुआवजा के लिए और जमीन के लिए कोई अर्जी दी है।
इसके साथ ही जमीन की मिल्कियत वापस पाने के बाद बड़ी संख्या में किसान अपनी जमीन बेचने की जुगत रहे हैं क्योंकि इस लंबी लड़ाई में निर्णायक जीत हासिल करने की अवधि में रोजमर्रे की जिंदगी गुजर बसर करने के लिए वे दूसरा पेशा अपना चुके हैं और खेती करना नही चाहते।जो किसान खेती नहीं करना चाहते ,वे अभी भी सिंगुर में कारखाना लगाने की मांग कर रहे हैं।उनका क्या होगा,राम जाने।
फिक्र यह है कि अभी सिंगुर में पहुंचकर दीदी के किसानों के बीच जाकर सरसों बोने से पहले सिंगुर के पास दिल्ली एक्सप्रेस वे पर उनके भतीजे सांसद अभिषेक बंदोपाद्याय की बुलेट प्रूफ कार वहा पहले से खड़ी एक मिल्क वैन से टकरा जाने के वजह से अभिषेक बुरी तरह जख्मी हो गये और कारवां में होने की वजह से तत्काल अस्पताल पहुंचाये जाने पर वे बाल बाल बच गये हैं।यह महज संजोग है,ऐसा समझना खतरों को नजरअंदाज करना होगा।खासकर तब जबकि अभिषेक ही दीदी के राजनीतिक उत्तराधिकारी है।अगर ऐसा वैसा उसके साथ कुछ भी हो जाये तो पार्टीबद्ध अराजकता के कीड़ कोड़े विषैले जीव जंतु बंगाल में क्या कहर बरपा देगें,इसका नजारा अभी बंगाल के हर जिले में अखंड दुर्गोत्सव के साथ जारी है।
गनीूमत है कि दीदी नजरअंदाज नहीं कर रही हैं और इस वारदात की सीआईडी जांच का आदेश दिया है दीदी ने,जो इसे भीतरघात मान रही हैं।सही मायने में दीदी अस्पताल से सीधे सिंगुर पहुंचकर सिंगुर को जमीन आंदोलन का माडल बनाने का ऐलान कर दिया है।
जाहिर है कि दीदी के एकाधिकार के बावजूद बंगाल में हालात बेहद संगीन है।वोटबैंक पर दीदी का दखल है और निकट भविष्य में उन्हें किसी चुनाव में पराजित करने के लिए विपक्षी दलों के लिए किसी भी तरह की कवायद कर पाना सिरे से असंभव है।लेकिन बंगाल में जिस तेजी से सांप्रदायिक ध्रूवीकरण होने लगा है,उससे सत्ता दल का रंग भी केसरिया होने लगा है और हाल में राजकीय दुर्गोत्सव कार्निवाल शुरु करके दीदी ने विपक्ष के सफाये के लिए बंगाली हिंदुत्व राष्ट्रवाद का जो सहारा लिया है,वह उनके लिए भारी सरदर्द का सबब बन सकता है।यही गलती वाम शासकों ने की थी विचारधारा को तिलांजलि देकर,वर्गीय ध्रूवीकरणके बजायवोटबैंद साधने के तहत अपने राजनीतिक जनाधार को तिलांजलि देकर।वाम जमाने की नकल वाम से बेहतर करने के चक्कार में दीदी उनकी वे ही गलतियां दुहराने लगी हैं औरतेजी से हालात उनके नियंत्रण से बाहर होते जा रहे हैं।राजनीति तो सध रही है लेकिन समाज का जो विचित्र हैरतअंगेज केसरियाकरण हो रहा है,उसमें दीदी का हाथ बहुत ज्यादा है।
हालात बेहद संगीवन है।मसलन बहुत संभव है कि अभिषेक दुर्घटना का ही शिकार हुआ है क्योंकि एक्सप्रेस हाईवे पर ऐसी दुर्घटनाएं आम है।फिरभी सिंगुर में जमीन वापसी से ठीक पहले उसी सिंगुर के पास अभिषेक के कारवां के रास्ते बत्ती बुझाये मिल्क वैन का अवरोध बन जाना और उस वजह से हुई दुर्घटना में अभिषेक का बाल बाल बचजाना बेहद रहस्यपूर्ण है।
अगर दीदी की आशंका सही है तो यह समझ लीजिये कि बंगाल में भीतर ही भीतर बारुदी सुरंगों का जाल बिछ गया है।
विपक्ष का सफाया कर देने की वजह से राजनीतिक तौर इस संकट का मुकाबला बेहद मुश्किल है और कानून व्यवस्था पर प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है।
गौरतलब है कि सिंगुर में बलात्कार के बाद तापसी मल्लिक को जिंदा जला दिया गया था।यह भी जमीन अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के तेजी से भड़कने की खास वजह रही है।दीदी ने सिंगुर में उसी तापसी मल्लिक का सङीद स्मारक बनाने का ऐलान कर दिया है।दूसरी ओर,विडंबना यह है कि दीदी के राज में महिला तस्करी और स्त्री उत्पीड़न के मामले में बंगाल टाप पर है।हिंदुत्व और पितृसत्ता के इस गठजोड़ की शिकार स्त्री रोज रोज हो रही है।एसिड हमला,दहेज उत्पीड़न, बलात्कार और हत्या की वारदातें रोज रोज हो रही है।रोज तापसी मलिक के साथ बलात्कार हो रहै हैं।
विडबंना है कि रोज तापसी मल्लिक को जिंदा जलाया जा रहा है और राजनीतिक समीकरण साधने की राजनीति के तहत दीदी सांप्रदायिक ध्रूवीकरण और स्त्री उत्पीड़न की तमाम वारदातों को नजरअंदाज कर रही हैं।
सिंगुर में लापता दो सौ किसानों को जमीन वापस नहीं दी जा सकी तो उस जमीन का दीदी क्या करेंगी ,यह दीदी को तय करना है या सुप्रीम कोर्ट से इस सिलसिले में नया आदेश हो सकता है।
बहरहाल अधिगृहित जमीन पर दस साल बाद सरसों बोकर जो नई शुरुआत बंगाल की मुख्यमंत्री ने कर दी है.उससे बंगाल और देश भर में जमीन आंदोलन के माडल सिंगुर का क्या असर होना है,यह हम अभी से बता नहीं सकते।
जमीन आंदोलन की नेता बतौर ममता बनर्जी को बाजार का कितना साथ उनके अखंड जनाधार के बावजूद मिलता रहेगा,यह बताना भी मुश्किल है।
जिस तेजी से बंगाल का केसरियाकरण हो रहा है और हिंदुत्वकी राजनीति सत्ता की राजनीति बनती जा रही है,उससे दीदी के लिए आगे बहुत कड़ी चुनौती है।इसे दीदी के तख्ता पलट का उपक्रम हम कह सकते हैं जिसे दीदी अपने अखंड जनाधार का आधार मानने लगी हैं।जमीन उनका यह तेवर कब तक बाजार हजम कर सकेगा,यह हम अंदाजा लगा नहीं सकते।दीदी को सीधे चुनौती देने की स्थिति में कोई नहीं है और दीदी खुद ही खुद के लिए चुनौतियां पैदा कर रही हैं।
मसलन एकतरफ तो जमीन के अधिग्रहण न होने देने की जिद पर दीदी अडिग हैं तो दूसरी तरफ बंगाल में देश में सबसे पहले कानूनी तरीके से ठेके पर खेती लागू हो रही है और मजे की बात यह है कि वाम किसान आंदोलन के बड़े नेता और लंबे समय तक वाम सरकार के मंत्री रहे रेज्जाक मोल्ला ने दीदी के मंत्रिमंडल में शामिल होकर यह करिश्मा कर दिखाया है,जिसके तहत कारपोरेट कंपिनियों के बंधुआ मजदूर होंगे किसान।खेती की उपज कारपोरेट कंपनियों की होगी।बीज भी जीएम होंगे।
सिंगुर जमीन आंदोलन का यह माडल बेशक बाकी देश में देर सवेर लागू होने वाला है।जमीन से बेदखली तो शुरु से जारी है और अब किसानों को बंधुआ मजदूर बनाया जा रहा है और इसकी शुरुआत बंगाल से हो रही है दीदी के राजकाज में।
बहरहाल मुख्यमंत्री व तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने गुरुवार को को हुगली जिला स्थित सिंगुरके समीप गोपालनगर में किसानों को वास्तविक रूप से जमीन सौंपते हुए कहा कि उन्होंने 2006 में जो वादा किया था, उसे निभाया है।
दीदी ने कहा कि किसानों से किए गए वादे को पूरा करने के लिए लंबी राजनीतिक व कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी। मुख्यमंत्री ने कहा कि अधिकार मांगने से नहीं मिलता, मौजूदा स्थिति में उसे छीनना पड़ता है। ममता ने कहा कि 997 एकड़ में से 65 एकड़ को छोड़ कर शेष जमीन किसानों को सौंपे जाने के लिए तैयार है।गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिंगूर आंदोलन के दौरान शहीद हुए राज कुमार भूल और तापसी मल्लिक के नाम पर सिंगुरमें एक शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की। उन्होंने जिलाधिकारी को इसके लिए जमीन तलाशने को निर्देश भी जारी कर दिया है। उस स्मारक पर उनकी तस्वीर मौजूद होगी।
मुख्यमंत्री ने इस मौके पर यह भी कहा कि किसी भी आंदोलन में पीछे नहीं मुड़ना चाहिए। गौरतलब है किकि 2006 में राज्य के वाम मोरचा की सरकार में तात्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने टाटा के नैनो कारखाना के लिए 997.11 एकड़ जमीन किसानों से जबरन अधिग्रहण किया था।
जाहिर है कि बहुचर्चित सिंगुरआंदोलन का दौर गुरुवार को पूरा हो गया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से खेतों में सरसों का बीज छिड़कने के साथ ही करीब एक दशक बाद गिराए गए नैनो कार प्लांट की जगह पर फिर से खेती की शुरुआत हो गई। सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने 31 अगस्त को 12 हफ्तों की समयसीमा तय की थी और उसके अंदर ही पांच मौजों में फैली 103 एकड़ जमीन का कब्जा 298 किसानों को सौंप दिया गया। पीठ ने यह भी कहा था कि कार परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया गलत थी और यह लोगों के उद्देश्य के लिए नहीं थी।
যুদ্ধ শুরু হল,শেষ হল,নায়ক নিহত,রাজ্য শ্মশান প্রতি গল্প বিশ্বরূপ, মাথামুণ্ডু না বুঝেই কাঁদি, হায়,অবিদ্যায় ঢাকা থাকল ঋজু পাঠ--যেন তারা হিমের কুটুম ওই অস্বচ্ছ মানুষজন, গাছপালা, রণক্ষেত্র ---কেন,এর বেশি,সবটা বুঝিনি?"
যুদ্ধ শুরু হল,শেষ হল,নায়ক নিহত,রাজ্য শ্মশান
প্রতি গল্প বিশ্বরূপ, মাথামুণ্ডু না বুঝেই কাঁদি,
হায়,অবিদ্যায় ঢাকা থাকল ঋজু পাঠ--যেন তারা
হিমের কুটুম ওই অস্বচ্ছ মানুষজন, গাছপালা,
রণক্ষেত্র ---কেন,এর বেশি,সবটা বুঝিনি?"
(ভূমিকা /বক্সীগঞ্জে পদ্মাপারে/উৎপলকুমার বসু)
আজ চার পাঁচদিন আমি এই শহরের সেইসব রাস্তায় সেইসব দোকানের পাশ দিয়ে হেঁটেছি,সেইসব গলি আর বারবার দেখা আমার প্রিয় সিনেমা,রসোমন এর মতোই দেখেছি একটাই গল্প কিভাবে বিভিন্নজনের কথনভঙ্গীতে,বিবিধ ইশারায় কতো না ভিন্নরূপে ঠিকরে বাইরে পাঠায় তার নানাবর্ণের ছটা। গল্প একটাই,রঙ অনেক।কিন্তু ফিল্মে তো আত্মপক্ষ সমর্থনের সুযোগ থাকে। নিতান্ত এক বলিউডি ছবিতে একটা চরিত্র একবার তার উকিলকে বলেছিল "যাদের কোনো সাক্ষী থাকে না,তারা কি নির্দোষ হতে পারেনা? এই ডায়ালগটা আমার মাঝেমাঝেই মনে পড়ে। কিন্তু যার অনেক সাক্ষী আছে?অথচ সময়কালে যার সেইসব সাক্ষীরা নীরব হয়ে আছে,অনেকেই উল্টো সুরে গেয়ে তাকে খাদের নীচে ঠেলে দিতে চাইছে,তার কি হবে? সে কিভাবে নিজেকে প্রমাণ করবে?
যেসব গল্পগুলো এই চার পাঁচদিন ধরে শুনছি,ফেসবুকে পড়ছি অনেকের মন্তব্যে,সেগুলো আসলে বড়ো একমাত্রিক। একঘেয়েও। সেই একটাই ক্যারেক্টার। সে-ই নায়ক আর সে-ই ভিলেন। তার এখনো প্রমাণহীন "গুরুতর অপরাধ"এর কথা আর পরিণাম। সমস্যা হোল,সেই লোকটা তো আসছেনা আত্মপক্ষ সমর্থন করতে,যারা এই গল্পটা লিখেছ,তারা সেই সুযোগও তাকে দাওনি,ফলত: একপেশে গল্পের দায়ও তোমাদের।নানা রাস্তায়,চায়ের গুমটিতে,মুদী র দোকানে এরকম বিভিন্ন এঙ্গেলে চলে গেলেও বিষয়টা একই থাকছে। তাই তোমাদের গল্পে একটু স্বাদবদলের জন্যে দু'এক টুকরো জুড়ে দিলাম। তোমরা এগুলো সবই জানো,শুধু জুড়তে ভুলে গেছ।
হয়েছে কি,তোমাদের গল্পের এই ভিলেন,ঘটনাচক্রে আমার বাড়ির নিতান্ত কাছেই তার বসবাস। ধরতে গেলে একই এলাকায়। একটা সময়,মায়ের সঙ্গে যখন কালনা গেটের বাজারে যেতাম,প্রায়ই দেখা হোত। তখন তিনি আমার শহরের মিউনিসিপ্যালিটির ভাইস চেয়ারম্যান। আরও পরে চেয়ারম্যান হন। নিতান্ত সাদামাঠা বাজার,আমার কলেজের খোঁজ,বাবার কথার পরে আমার মা তাঁর মেয়ের কথা যেই না জানতে চাইতেন অমনি তাঁর মুখে হাজারবাতির আলো। আর সব সাধারণ বাবাদের মতোই,স্নেহপ্রবন।
একদিন,ঘোর বর্ষায়,মনে আছে,আমাদের পাশের রামকৃষ্ণ পল্লীর এক কাকু বাজারে পড়ে গিয়েছিলেন। তখন আপনাদের গল্পের এই ভিলেন কাদা থেকে একটা একটা করে কাকুর ব্যাগে তাঁর বাজারগুলো ভরে দিয়ে রিক্সা ডেকে কাকুকে তুলে দিলেন। না,তখন সামনে কোনো ইলেকশন ছিলনা।অহংকারী, দুর্বিনীত মানুষটার এই গুরুতর খারাপ দিকটার কথা বলতে তোমরা ভুলে গিয়েছিলে। আমি যোগ করে দিলাম।
"অর্ধেক লিখেছ মৃত্যু। বাকি অর্ধ সেতুর ওপারে..."
১৯৯৩ এর শীতার্ত রাত।টাউনহলে চলছে পৌর উৎসব। তখন সবেমাত্র আমার কবিতা ছাপার অক্ষরের স্পর্শ পেয়েছে। প্রভাতদার কবিতা পাক্ষিক আর বিজল্প। কবিবন্ধুরা এসেছে আমার শহরে। তো,মেলার মাঠে রাত ন'টায় যথেষ্ট কবিজনোচিত রেলা নিয়ে ঘুরছি। এমন সময় হঠাৎ সামনে তিনি। ভ্রূ কুঁচকে বললেন "এখনো বাড়ি যাওনি,বাবা কোথায়? সঙ্গে কে এসেছেন"
কবিকুল তো হতবাক! উঠতি কবির সঙ্গে মেলার মাঠে বাবা??আমতা আমতা করে বললাম "এদের সঙ্গে এসেছি এরা সব লেখেটেখে..."আমার কথা শেষই হোলনা,বজ্রগম্ভীর আর ঠান্ডা সেই গলা "বাড়ি যাও,রাত হয়েছে।"
আমার কবিত্বের বেলুনে শেষ আলপিন বেঁধানো হয়ে গেল।কিন্তু খুব রাগ হলেও সেদিন বাড়ি ফিরে এলাম। রাগ হয়েছিল,যেমন মা বাবার ওপরে হোত। তোমাদের গল্পের গুরুতর অপরাধী, নৈতিক অধঃপাত দোষে দুষ্ট এই লোকটাকে কেন যেন সেদিন বাড়ির একজন দায়িত্ববান অভিভাবকের মতোই মনে হয়েছিল। আর সেদিনও কোনো ইলেকশন ছিলনা। দেখো,এই এতো রাত্তিরে ফেসবুক আমাকে জিজ্ঞেস করছে আমার মনে কি আছে,তাই লিখছি আমার মনে কি আছে আর তোমাদের অসমাপ্ত গল্পেও জুড়ে দিচ্ছি দু এক টুকরো মনোলগ এবং আবারও মনে পড়ছে উৎপল বসু:
"জেগে উঠব ফলের খামারে--আপেল,আঙুর ক্ষেতে।
ডেকে ডেকে সকলকে প্রশ্ন করব কেন শুধু
সত্যেরই জয় হবে,মিথ্যার নয়?
এই দেশে ও-প্রশ্নের জবাব পাবো না।
সেরকম মনে হচ্ছে(মীনযুদ্ধ)"
হীৰেন গোঁহাই এবং অনেকে 'খিলঞ্জিয়া'র স্বার্থ বিরোধী হিন্দু বাঙালিদের সাবধান হবার পরামর্শ দিয়েছেন। বেশ, সংখ্যালঘু বাঙালি সহজেই সাবধান হয়ে যাবেন। কিন্তু তিনি কি যারা বাঙালি বিদ্বেষ ছড়াচ্ছেন তাদের বিরুদ্ধেও এমন সাবধান বাণী শোনাচ্ছেন?
Sushanta Kar
হীৰেন গোঁহাই এবং অনেকে 'খিলঞ্জিয়া'র স্বার্থ বিরোধী হিন্দু বাঙালিদের সাবধান হবার পরামর্শ দিয়েছেন। বেশ, সংখ্যালঘু বাঙালি সহজেই সাবধান হয়ে যাবেন। কিন্তু তিনি কি যারা বাঙালি বিদ্বেষ ছড়াচ্ছেন তাদের বিরুদ্ধেও এমন সাবধান বাণী শোনাচ্ছেন? হ্যা, নম্র হয়ে বলেছেন বটে, ৭১এর আগে আসা বাঙালিদের উপরে আক্রমণ হলে পাশে দাঁড়াবেন। কিন্তু সেতো মুখের কথা স্যর। এই বাঙালির ভাষা সংস্কৃতির উপরে আক্রমণ হচ্ছে কিনা সেসব প্রশ্ন ছেড়ে দিলেও রোজ যে কত শত মানুষ ডি-ভোটার হন, ডিটেনশন কেম্পে কয়েদীর জীবন যাপন করেন--কই , আপনি আর আপনার অনুরাগীরা সেসব নিয়ে বাঙালির পাশে আজ অব্দি দাঁড়ালেন না তো। এক মার্ক্সবাদী তাত্ত্বিক বলে আপনাদের প্রতি আমাদের অগাধ আস্থা, অটুট শ্রদ্ধা। কিন্তু সেই শ্রদ্ধা অন্ধতো হতে পারে না স্যর। আপনি কি কেবল অসমিয়ারই মার্ক্সবাদী তাত্ত্বিক? বাঙালির নন? বাকি ভারতের নন? সবার জন্যে মার্ক্সবাদী তাত্ত্বিক হবার জায়গাটি কি স্যর আপনি সেই সব পশ্চিমবঙ্গীয় বাঙালির জন্যেই রেখে দিলেন, যাদের লেখালেখি আপনি নিত্য নতুন পদাতিকে অনুবাদ করে প্রকাশ করে থাকেন? এইটুকুনই আপনার বাঙালি অনুরাগ? বাঙালি শ্রমিকের কী হবে স্যর, বাঙালি দলিতের কী হবে স্যর? তারা যে নিত্য ডি-ভোটার হবার ভয়ে মরে, কবে জেলে যায় সেই ভয়ে মরে। আর এন আর সি না হওয়া অব্দি ৭১এর আগে এসেও না বাংলাদেশী হয়ে যায় সপরিবারে সেই নিয়ে দিন গুনছেন। আপনি মহৎ , মুসলমানের বেদনা বুঝেছেন। অসমিয়ারও বেদনা বোঝেন। কিন্তু দ্বিতীয় বৃহৎ জনগোষ্ঠী বাঙালি হিন্দুর বেদনা বুঝবার দায়িত্ব কি তবে হিন্দুত্ববাদীদের আপনি এবং আপনারাও দিয়ে রাখলেন? এই করেই হিন্দুত্ববাদ মোকাবেলা করবেন? জাতীয়তাবাদতো পারল না, এবারে কি বামেরা হাত পাকিয়ে দেখবেন? খানিক ভাবুন স্যর, বাঙালিকে বাঙালি থাকতে দিন, না হলে তারা হিন্দু কিংবা মুসলমান হয়ে আছে। আর চিরদিন তাই থেকে যাবে। ভাষাটা মার খাচ্ছে, খাবে। সুতরাং মার খাবে বিদ্যা বুদ্ধি শিক্ষা সংস্কৃতি। ভাবুন, ১৯৭১এর আগে আসা এক বিশাল বিদ্যা বুদ্ধি সংস্কৃতি বিহীন জনসংখ্যাকে নিয়ে কি সত্যি পারবেন, এক 'বিপ্লবী''সোনার আসাম'গড়ে তুলতে?Ambika Ray In this juncture the only way to force them to get pass the Bill in the Parliament by way of showing huge number of people on the road to show the protest and demand. Political class only understand the language of United huge gathering nothing else. Which exactly the Nikhil Bharat is doing
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महत्वपूर्ण खबरें और आलेख हर दसवां आदिवासी अपनी जमीन से विस्थापित
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एक झटके से असुरक्षित हो गयी डिजिटल बैंकिंग चार महीने से आम आदमी के डेबिट कार्ड एटीएम पिन चोरी हो रहे थे। बैंकों को इस बात की जानकारी भी थी, मगर उन्होंने यह जानकारी अपने ग्राहकों से छिपा ली।साइबर क्राइम से बड़ा अपराध तो भारतीय वित्त मंत्रालय,रिजर्व बैंक और बैंकिग प्रबंधन का है। डेबिट कार्ड की अब क्या कहें, आपके तमाम तथ्य तो आधार नंबर से चुराये जा सकते हैं! देशभर में सिर्फ 32 लाख नहीं, ब
एक झटके से असुरक्षित हो गयी डिजिटल बैंकिंग
चार महीने से आम आदमी के डेबिट कार्ड एटीएम पिन चोरी हो रहे थे। बैंकों को इस बात की जानकारी भी थी, मगर उन्होंने यह जानकारी अपने ग्राहकों से छिपा ली।साइबर क्राइम से बड़ा अपराध तो भारतीय वित्त मंत्रालय,रिजर्व बैंक और बैंकिग प्रबंधन का है।
डेबिट कार्ड की अब क्या कहें, आपके तमाम तथ्य तो आधार नंबर से चुराये जा सकते हैं!
देशभर में सिर्फ 32 लाख नहीं, बल्कि 65 लाख डेबिटकार्डों का डाटा चोरी होने की आशंका है।यह संख्या भी आधिकारिक नहीं है।लाखों की तादाद में या करोडो़ं की तादाद में यह डाटाचोरी हुई है या नहीं है,संबंधित बैंको की ओर से अपनाकारोबार बचाने की गरज से इसका खुलासा हो नहीं रहा है। भारतीय स्टेट बैंकजिसतरह खुलासा कर रहा है,निजी बैंको में उससे कहीं बड़ा संकट होने के बावजूद वे अपने व्यवसायिक हितों के मद्देनजर जब तक संभव है,कोई जानकारी साझा करने से बचेंगे।बहरहाल अब बैंकों ने अपने ग्राहकों से पिन बदलवाने या फिर मौजूदा कार्डब्लॉक कर नया कार्डदेने की कवायद तो शुरू कर दी है। लेकिन सबसे खतरनाक बात तो यह है कि अभी तक किसी भी बैंक ने इस मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं करवाई है और न ही सरकार को इस बारे में कोई सूचना ही दी है।मसलन महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सिक्योरिटी ने खुद बैंकों को खत लिखा है।
पलाश विश्वास
चार महीने से आम आदमी के डेबिट कार्डएटीएम पिन चोरी हो रहे थे। बैंकों को इस बात की जानकारी भी थी, मगर उन्होंने यह जानकारी अपने ग्राहकों से छिपा ली।साइबर क्राइम से बड़ा अपराध तो भारतीय वित्त मंत्रालय,रिजर्व बैंक और बैंकिग प्रबंधन का है।जबकि बैंकिंग के नियमानुसार आरबीआई के ड्राफ्ट के मुताबिक, खाता धारकों द्वारा धोखाधड़ी की सूचना दिए जाने पर बैंक को 10 कार्यदिवसों के अंदर ग्राहक के खाते से गायब हुआ पैसा वापस करना होगा। इसके लिए ग्राहक को तीन दिन के अंदर ही धोखाधड़ी की सूचना देनी होगी और उसे यह दिखाना होगा कि उसकी तरफ से किसी तरह का लेनदेन नहीं किया गया और पैसा बिना उसकी जानकारी के गलत तरह से गायब हुआ है। आरबीआई का निर्देश है कि बैंक यह सुनिश्चित करें कि ग्राहक की शिकायत का निपटारा 90 दिनों के अंदर हो जाए. क्रेडिट कार्डसे पैसे गायब होने की हालात में बैंक यह सुनिश्चित करें कि कस्टमर को किसी भी तरह का ब्याज न देना पड़े।बैकों से समय के भीतर सूचना नहीं मिली तो पैसे वापस लेने के लिए तीन दिनों में शिकायत भी नहीं कर सकते ग्राहक।
मेरा यह आलेख आप चाहे तो पढ़ लें और न चाहे तो न पढ़ें।संकट सिर्फ यह नहीं है कि बत्तीस लाख डेबिट कार्ड साइबर अपराधियों के कब्जे में है और वीसा,मास्टरकार्ड समेत विदेश से संचालित एटीएम और डिजिटल लेनदेन में वाइरस संक्रमण से जमा पूंजी खतरे में है।भारतीय स्टेट बैंक ने लाखों डेबिट कार्ड बदल दिये हैं और बैंकों ने सुरक्षित लेन देन के लिए ग्राहकों को निर्देश जारी कर दिये हैं।भुगतान आयोग पूरे मामले की तहकीकात कर रहा है। देश के सबसे बड़े कारपोरेट वकील जो देश के वित्तमंत्री भी है,वे भरोसा दे रहे हैं कि घबड़ाने की कोई बात नहीं है।केंद्र सरकार ने कहा है कि वह ग्राहकों के साथ खड़ी है।मसला बस इतना सा नहीं है।
आप भले यह आलेख न पढ़ें,लेकिन आपको आगाह कर देना जरुरी है कि अब एटीएम से या नेटबैंकिंग से सिर्फ पिन बदलने से आपकी जमापूंजी की सुरक्षा की गारंटी नहीं है।इस बीच कुछ बैंको ने ग्राहकों के लिए पिन बदलना अनिवार्य कर दिया है।पुराना पिन अगर लीक हो सकता है तो नया पिन भी लिक हो सकता है।जिस वक्त आप पिन बदल रहे होंगे,नेटवर्क में साइबर अपराधियों के कब्जे में हो तो उसी वक्त पिन लीक हो सकता है।तकनीक भस्मासुर है।डिजिटल लेनदेन में साफ्टवायर की भूमिका खास है।जिसे हैक करना भी तकनीकी कमाल है जिससे दुनिया में सबसे सुरक्षित पेंटागन का सिस्टम भी जब तब हैक होता है।तकनीक के जरिये तथ्य चुराना बांए हाथ का खेल है।धोखाधड़ी से बचने के लिए केंद्र सरकार,वित्तमंत्री और बैंकों की तरफ से ऐहतियाती इंतजाम काफी नहीं है,यह समझना बेहद जरुरी है।
हो सकता है कि आप पूरा लेख न पढ़ें,तो आपके लिए एक सुझाव है।अगर आप विदेश यात्रा न करते हों तो तुरंत अपने बैंक में जाकर आपके खाते से विदेश में लेन देन पर रोक लगवा लें।तब कम से कम अमेरिका या चीन या अन्य कहीं से आपके खाते से निकासी पर कारगर रोक लग सकेगी।गनीमत है कि आम तौर पर आम लोग विदेश यात्रा नहीं करते और विदेशों में लेन देन की कोई मजबूरी उनकी अब भी नहीं है।पिन बदलने की जगह बैंकों की ओर से सर्वोच्च प्राथमिकता के तहत युद्धकालीन तत्परता से यह काम पूरा कर लिया जाये तो इस संकट से कमसकम आम जनातो को बचा लिया जा सकता है।
2008 की वैश्विक मंदी से भारत राजनीतिक नेतृत्व के कमाल से बच गया,इस मिथक में कतई यकीन न करें।उसकी सबसे बड़ी वजह यह रही है कि आम जनता शेयर बाजार से बाहर रही है।शेयर बाजार के लेन देन और शेयर सूचकांक का आम जिंदगी पर कोई असर नहीं हुआ।2008 से 2016 तक हालात एकदम बदल गये हैं।
इस वक्त तमाम जरुरी सेवाओं,बुनियादी जरुरतों,रोजगार,वेतन ,पेंशन, बीमा, बैंकिंग आधार नंबर से जुड़ जाने और अधिकांश नागरिकों के आधार नेटवर्क से जुड़ जाने की वजह से उनके तमाम निजी और गोपनीय तथ्य डाटा बैंक में जमा हैं,जो सीधे तौर पर शेयर बाजार से जुड़ा है और निजी कारपोरेट कंपनियों के लिए वे तथ्य उपलब्ध हैं।
हालत यह है कि देश में सामने आयी सबसे बड़ी डेबिट कार्डडाटा चोरी की घटना में नए-नए खुलासे सामने आ रहे हैं। डाटा चोरी शिकार एक दो नहीं, भारतीय स्टेट बैंक समेत 19 बैंकों के नाम सामने आ चुके हैं जबकि प्रभावित डेबिट कार्ड्स की संख्या भी बढ़कर अब 65 लाख पहुंच गयी है। गौरतलब है कि भारत में बैंकिंग का बुनियादी ढांचा भारतीय स्टेट बैंक का नेटवर्क है।जोदेश में सर्वत्र दूरदराज के गांवों तक में है और यह सरकारी क्षेत्र का बैंक है।जिसकी साख पर कोई सवाल अब तक कभी उठा नहीं है। जब एसबीआई के डेबिट कार्ट का यह हाल है तो भारत में बैकिंग सिस्टम के डिजिटल नेटवर्क को हम किस हद तक सुरक्षित मान सकते हैं और उनकी नेटबैंकिंग और मोबाइल बैंकिंग के जरिये लोन देन को कितनासुरक्षित मान सकते हैं।
जाहिर है कि यह भारत में सामने आया अब तक का सबसे बड़ा एटीएम-डेबिट कार्डफ्रॉड है लेकिन किसी भी कस्टमर या बैंक ने इससे संबंधित शिकायत दर्ज नहीं कराई है। ख़बरें तो ये भी हैं कि जिन कस्टमर्स के पैसे चुराए गए हैं उन्हें बैंक वापस करेंगे। हालांकि फिलहाल जो बातें सामने आई हैं उसके मुताबिक डेबिट कार्डसे लिंक अकाउंट पर भी खतरा मंडरा रहा है।ग्राहको के पैसे वापस कराने का जो वादा है,टिटफंड कंपनियों के मामले में हम उसका भयानक सच जानते हैं।
इसपर तुर्रा यह कि एटीएम डेबिट कार्डफ्रॉड का मामला और बड़ा होने का खतरा है। साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट को आशंका है कि 65 लाख से ज्यादा डेबिड कार्ड का डेटा चोरी हुआ है। हालांकि अभी 32 लाख डेबिट कार्डके प्रभावित होने की बात कही जा रही है। इधर महाराष्ट्र साइबर क्राइम सेल ने पूरे मामले में जांच तेज कर दी है और उसने बैंकों से रिपोर्ट मांगी है। खबर ये भी है कि आईटी मिनिस्ट्री के तहत काम करने वाले संगठन सर्ट इन ने साढ़े तीन महीने पहले आरबीआई और बैंकों को साइबर अटैक के खतरे के बारे में बता दिया था। अब दावा है कि सरकार भी पूरे एक्शन में है। सरकार ने बैंकों से इस बारे में रिपोर्ट मांगी है। इस दावे और लेट लतीफ एक्शन से हम कितने सुरक्षित हैं,इस पर तनिक सोच लीजिये।
हालत कुल मिलाकर यह है कि भारतीय स्टेट बैंक सहित अनेक बैंकों ने बड़ी संख्या में डेबिट कार्डवापस मंगवाए हैं जबकि कई अन्य बैंकों ने सुरक्षा सेंध से संभवत: प्रभावित एटीएम कार्डों पर रोक लगा दी है और ग्राहकों से कहा है कि वे इनके इस्तेमाल से पहले पिन अनिवार्य रूप से बदलें। इस समय देश में लगभग 60 करोड़ डेबिट कार्डहैं जिनमें 19 करोड़ तो रूपे कार्ड हैं जबकि बाकी वीजा और मास्टरकार्ड हैं। अब तक 19 बैंकों ने धोखाधड़ी से पैसे निकालने की सूचना दी है। कुछ बैंकों को यह भी शिकायत मिली है कि कुछ एटीएम कार्ड का चीन व अमेरिका सहित अनेक विदेशों में धोखे से इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि ग्राहक भारत में ही हैं।
मामला कितना संगीन है इसे मीडिया की इस खबर से समझें कि एटीएम कार्डों का डाटा चोरी का जो आंकड़ा अभी बताया जा रहा है वो सिर्फ आधा है। साइबर सिक्योरिटी से जुड़े सूत्रों की मानें तो देशभर में सिर्फ 32 लाख नहीं, बल्कि 65 लाख डेबिटकार्डों का डाटा चोरी होने की आशंका है।यह संख्या भी आधिकारिक नहीं है।लाखों की तादाद में या करोडो़ं की तादाद में यह डाटाचोरी हुई है या नहीं है,संबंधित बैंको की ओर से अपनाकारोबार बचाने की गरज से इसका खुलासा हो नहीं रहा है। भारतीय स्टेट बैंकजिसतरह खुलासा कर रहा है,निजी बैंको में उससे कहीं बड़ा संकट होने के बावजूद वे अपने व्यवसायिक हितों के मद्देनजर जब तक संभव है,कोई जानकारी साझा करने से बचेंगे।बहरहाल अब बैंकों ने अपने ग्राहकों से पिन बदलवाने या फिर मौजूदा कार्डब्लॉक कर नया कार्डदेने की कवायद तो शुरू कर दी है। लेकिन सबसे खतरनाक बात तो यह है कि अभी तक किसी भी बैंक ने इस मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं करवाई है और न ही सरकार को इस बारे में कोई सूचना ही दी है।मसलन महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सिक्योरिटी ने खुद बैंकों को खत लिखा है।
खबर यह भी है कि ग्राहकों के डेबिट कार्डकी यह चोरी एक ख़ास पेंमेंट सर्विस (एटीएम की कार्यप्रणाली) उपलब्ध करवाने वाली कंपनी हिताची पेमेंट सर्विसेज़ के साफ़्टवेयर में लगी सेंध से शुरू हुई। हिताची पेमेंट की सर्विस सिर्फ़ कुछ ही बैंक ले रहे थे और इन बैंको के लगभग 90 एटीएम में चल रहे हिताची के सॉफ़्टवेयर को अज्ञात साइबर अपराधियों ने हैक कर लिया। इसके बाद इन साइबर अपराधियों के पास इन 90 एटीएम में डाले गए सभी पिन नंबर्स की जानकारी आ गई है।
इसीलिए बैंक प्राथमिक स्तर पर तत्काल पिन नंबर बदलने की बात पर जोर दे रहे हैं। सवाल यह है कि जब बैंकिंग नेटवर्क ही सुरक्षित नहीं है तो नये सिरे से पिन बदलते हुए वह पिन भी हैक हो गया तो आपकी जमा पूंजी का क्या होगा.जिन्हें आपना पेंसन पीएपवेतन वगैरह बैंक में जमा करना होता है,वे सारे लोग तो रातोंरात कौड़ी कौड़ी के लिए मोहताज हो जायेंगे।
फिर कोई जरुरी नहीं है कि वे तथ्य बैंकिंग सिस्टम से ही लीक हो और बैंकों के तमाम एहतियात के बावजूद वे तथ्य लीक न हों,इसका कोई पुख्ता इंतजाम तकनीक के मामले में सबसे ज्यादा विकसित सिस्टम और देशों के पास भी नहीं है।
अच्छे दिनों की यह नायाब सौगात है।इसके साथ ही भारत की कैशलेस इकॉमनी बनने की उम्मीदों को एक बड़ा झटका लगा है। करीब 32 लाख डेबिट कार्डकी सुरक्षा में सेंध लगने की आशंका के खुलासे को मोदी सरकार के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीएम ने मई में 'मन की बात' के दौरान कैशलेस पेमेंट को बढ़ावा देने की बात कही थी। पीएम का कहना था कि इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगी साथ ही पैसे के फ्लो को ट्रैक भी किया जा सकेगा। पर डेबिट कार्डसे जुड़ा इतना बड़ा फ्रॉड सामने आने के बाद अब कैशलेस पेमेंट सवालों के घेरे में है।
बाजार के विस्तार के लिए तेज अबाध लेनदेन के लिए जो डिजिटल पेपरलैस अत्याधुनिक इंतजाम है,उसीके वाइरल हो जाने से नागरिकों की निजता,गोपनीयता असुरक्षित हो गयी है।डिजिटल लेन देन बेशक सुविधाजनक है और यह शत प्रतिसत तकनीक के मार्फत होता है।यह तकनीक मददगार है,इसमें भी कोई शक नहीं है।लेकिन अत्यधिक तकनीक निर्भर हो जाने के बाद वही तकनीक भस्मासुर बनकर आपका काम तमाम कर सकती है।जल जंगल जमीन से बेदखली की तरह तकनीक से बेदखली की समस्या भी बेहद संक्रामक है।
साइबर अपराधी,अपराधी गिरोह से लेकर कारपोरेट कंपनियों के हाथों में हमारे तामा तथ्य हमारी उंगलियों की छाप और आंखों की पुतलियों के साथ जमा है।
नेट बैंकिंग,एटीएम,डेबिट क्रेडिट कार्ड और मोबाइल बैंकिंग से श्रम और समय की बचत है और कागज की भी बचत है और सारा का सारा ई बाजार इसी कार्ड आधारित लेन देन पर निर्भर है तो वेतन,बीमा,पेंशन समेत तमाम सेक्टर में विनिवेश के तहत जो आम जनता का पैसा लग रहा है,वह निजी खातों से आधार नंबर के जरिये स्थानांतरित हो रहा है और यही आधार नंबर बैकिंग के लिए अब अनिवार्य है।
गौरतलब है कि पैन नंबर में नागरिकों के आय ब्यय का ब्यौरा ही लीक हो सकता है और इसलिए पैन नंबर आधारित बैंकिंग से उतना खतरा नहीं है।लेकिन आधार नंबर कुकिंग गैस से लेकर राशन कार्ड तक के लिए अनिवार्य हो जाने से आधार के साथ साथ आंखों की पुतलियां,उंगलियों की छाप समेत तमाम तथ्य और जानकारिया लीक हो जाने का बहुत बड़ा खतरा है,जिसके मुखातिब अब हम हैं।सिर्फ शेयर बाजार तक यह संकट सीमाबद्ध नहीं है। सामाजिक परियोजनाों के माध्यम से एकदम सीमांत लोगों,गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाले लोगों को भी दिहाड़ी और योजना लाभ,कर्ज वगैरह का भुगतान गैस सब्सिडी की तर्ज पर आधार नंबर से नत्थी कर दिया गया है।जिससे उनके बारे में भी कोई तथ्य गोपनीय नहीं है।
कुल मिलाकर नागरिकों के तमाम तथ्यडिजिटल तकनीक के जरिये जीिस तरह सारकारी खुफिया निगरानी के लिए उपलब्ध हैं,उसीतरह बाजार के विस्तार के लिए ये तमाम तथ्यई मार्केट और ईटेलिंग के जरिये देशी विदेशी निजी कंपनियों को उपलब्ध हैं।जब सीधे प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का संदेश पाकर आप फूले नहीं समाते और कभी यह समझने की कोशिश नहीं करते कि आपका सेल नंबर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को कैसे उपलब्ध हैं,उसीतरह चौबीसों घंटे रंग बिरंगे काल सेंटर से आपके नंबर पर होने वाले फोन से आपको अंदाजा नहीं लगता कि आपके बारे में तमाम तथ्यउन कंपनियों के पास हैं,जिसके लिए वे बाकायदा आपको टार्गेट कर रहे होते हैं।
बिल्कुल इसीतरह दुनियाभर के अपराधी,माफिया और हैकर के निशाने पर आप रातदिन हैं और मौजूदा बैंकिंग संकट सिर्फ टिप आप दि आइसबर्ग है।अब तो गाइडेड मिसाइल के साथ साथ गाइडेड बुलेट तक तकनीक विकसित है और आप रेलवे टिकट या ट्रेन टिकट बुकिंग के लिए जो तथ्य डिजिटल माध्यम से हस्तांतरित कर रहे हैं,किस प्वाइंट पर वे लीक या हैक हो सकते हैं,इसका अंदाजा किसी को नहीं है।
फिलहाल आधिकारिक जानकारी यह है कि स्टेट बैंक के 6.25 लाख डेबिट कार्डों से शुरू अपराध-गाथा ने अधिकांश बैंकों के 32 लाख ग्राहकों को अपनी चपेट में ले लिया है। इन बैंकों में स्टेट बैंक तथा सहयोगी बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, यस बैंक, केनरा बैंक एवं ऐक्सिस बैंक प्रमुख हैं। डेबिट कार्डबैंकों द्वारा जारी होते हैं जिसमें ग्राहक के खाते से जमा पैसे के भुगतान हेतु पेमेंट गेटवे कंपनियों के साथ बैंकों का समझौता होता है। वर्तमान मामले में इन्हीं गेटवे कंपनियों के सुरक्षा कवच में चूक हुई है जिसकी वजह से वीजा और मास्टर कार्ड के 26 लाख तथा रुपे के 6 लाख ग्राहकों का दीवाला निकल सकता है।
केंद्र सरकार ने माल वेयर गोत्र के वाइरल साफ्ट वेयर के जरिये 32 लाख डेबिट कार्ड के तमाम तथ्यों के लीक हो जाने के मामले पर जांच करा रही है तो 130 करोड़ नागरिकों के आधार नंबर से जुड़े तथ्य लीक होने पर वह क्या करेंगी,हमें इसका अंदाजा नहीं है।देश के सबसे बड़े कारपोरेट वकील इस फर्जीवाड़े से निबटने के लिए आम जनता को भरोसा दिला रहे हैं,लेकिन कुकिंग गैस,बैंकिंग,राशन,वोटर लिस्ट,वेतन,पेंशन,रेलवे जैसे विशाल नेटवर्क से जब सारे तथ्य लीक या हैक हो जाने की स्थिति से सरकार कैसे निपटेगी जबकि सिर्फ बत्तीस लाख डेबिट कार्ड लीक हो जाने से देश की बैंकिंग सिस्टम अभूतपूर्व संकट में है।
इस अभूतपूर्व संकट से निबटने के लिए डेबिट कार्डके जरिए बैंक ग्राहक के खाते में सेंध लगाने की कोशिशों को केंद्र सरकार वन टाइम पासवर्ड के जरिए सुलझाने पर विचार कर रही है। इस व्यवस्था से एटीएम के जरिए कोई भी लेन-देन एक ही बार होगा और अगली बार पासवर्ड बदल जाएगा। यह पासवर्ड मोबाइल के जरिए ग्राहक को प्राप्त होगा। सरकार ने फिलहाल 32 लाख डेबिट कार्डकी सुरक्षा के मद्देनजर देश के विभिन्न बैंकों से रिपोर्ट तलब की है। साथ ही ऐसी घटनाओं से बचने के लिए अतिरिक्त कदमों की जरूरत के बारे में भी पूछा है।
बहरहाल केंद्रीय वित्त मंत्री, अरुण जेटली के मुताबिक सरकार ने डेबिट कार्डडाटा में सेंधमारी के बारे में विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। देश के बैंकिंग इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में एटीएम कार्ड के डाटा में सेंधमारी की बात सामने आने के बाद हालांकि वित्त मंत्रालय ने ग्राहकों को चिंतित नहीं होने को कहा है। साथ ही सरकार ने रिजर्व बैंक तथा अन्य बैंकों से आंकड़ों में सेंध तथा साइबर अपराध से निपटने के लिये तैयारी के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है। जेटली ने शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा कि एटीएम मसले पर रिपोर्ट मांगी गई है।
बहरहाल आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने डेबिट कार्डडाटा में सेंध लगाने के मामले में त्वरित कार्रवाई का वादा किया है। उन्होंने यह भी कहा कि 32 लाख से अधिक कार्ड से जुड़े डाटा में सेंध की आशंका से घबराने की जरूरत नहीं है। सरकार ने इस मामले में विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी है और रिपोर्ट मिलने के बाद उपयुक्त कार्रवाई की जाएगी। शक्तिकांत दास ने कहा,. ग्राहकों को घबराना नहीं चाहिए क्योंकि यह हैकिंग कम्प्यूटर के जरिये की गई है और इसके तह तक आसानी से पहुंचा जा सकता है, जो भी कार्रवाई की जरूरत होगी, वह त्वरित की जाएगी।
हैकर्स और साइबर अपराधियों के निशाने पर है आपका आधार नंबर भी आधार नंबर बैंक खाते से जोड़ने के बहाने सांसदों पर निशाना तो आम लोगों का क्या हाल होना है पलाश विश्वास
हैकर्स और साइबर अपराधियों के निशाने पर है आपका आधार नंबर भी
आधार नंबर बैंक खाते से जोड़ने के बहाने सांसदों पर निशाना तो आम लोगों का क्या हाल होना है
पलाश विश्वास
माकपा के राज्यसभा सांसद ऋतव्रत बंदोपाध्याय को उनके बैंक एकाउंट को आधार नंबर से जोड़ने के बहाने साइबर अपराधी गिरोह ने टार्गेट बनाने की कोशिश की और तकनीकी तौर पर बेहतर युवा सांसद ने बैंक खाता और डिबिट कार्ड के सिलसिले में उनके सवालों से असल खतरा भांप लिया और तुंरत पुलिस से संपर्क किया।
हुआ यह कि ऋतव्रत के पास एक फोन कल आया और काल करने वाले ने अंग्रेजी में निवेदन किया कि वह एसबीआई की शाखा से बोल रहा है।चूंकि एसबीआई ने पिन समेत डाटा चुरा लिये जाने की वजह से लाखों डेबिट कार्ड ब्लाक कर लिये हैं,तो उन्हें दोबारा जारी करने के सिलिसले में लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों की समस्य़ा प्रातमिकता के स्तर पर सुलझाने के लिए एसबीआई ने हमें जिम्मेदारी सौंपी है।
सांसद से आधार ब्यौरा के साथ साथ डेबिट कार्ट के ब्यौरे पर लगातार सवाल वह करता रहा इस दलील पर कि ऋतव्रत का बैंक खाता आधार नंबर से जुड़ा नहीं है और वह डेबिट कार्ड का मसला सुलझाने के लिए खाते को आदमर नंबर से जोड़ने के लिए मदद की पेशकश कर रहा था।
सांसद को शक हुआ तो उन्होंने कहा कि अगर आधार नंबर से जुड़ा न होना कोई समस्या है तो उनका सचिव बैंक जाकर यह अधूरा काम पूरा कर सकते हैं।इसपर भी जब पूछताछ का सिलसिला नहीं थमा तो सांसद ने सीधे कह दिया कि वे उसे कोई जानकारी नहीं दे रहे हैं औरइस बारे में पुलिस को सूचित कर रहे हैं।
खास बात तो यह है कि काल करने वालों को उनके बैंक खाते के बारे में सबकुछ मालूम था।राज्यसभा के सांसद के पार्लियामेंट एसबीआई शाखा का खाता आधार नंबर से जुड़ा नहीं है,यह तथ्य ऐसे अपराधी तत्वों के पास कैसे पहुंच गया।क्योंकि पुलिस को टेलीकालर के मोबाइल नंबर का अभी कोई अता पता नहीं मिल रहा है।
सांसद ने पुलिस को जानकारी देने के अलावा भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य को पत्र भी लिखा है।
सांसद ने माना कि चुस्त अंग्रेजी में उनके बैंक काते के बारे में सही जानकारी के सात उनका आधार नंबर जोड़ने की पेशकश से शुरुआत में वे भी दुविधा में पड़ गये थे।
कल ही हमने इस खतरे से आगाह किया था कि आधार नंबर का इस्तेमाल अपराधीि गिरोह कर सकते हैं और बैंक के सुरक्षा इंतजाम इस सिलसिले में धोखाधड़ी रोकने के लिए काफी नहीं है।
जब सीधे भारत के सांसदों को निशाना बनाया जा रहा है आधार नंबर को लेकर तो आधार की जानकारी वाणिज्यिक संस्थाओं और अपराधी गिरोह के हात लगने पर संकट कितना गहरा होगा,इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
कल जिन बिंदुओं पर मैंने आगाह किया था,कृपया उन पर गौर करेंः
केंद्र सरकार ने माल वेयर गोत्र के वाइरल साफ्ट वेयर के जरिये 32 लाख डेबिट कार्ड के तमाम तथ्यों के लीक हो जाने के मामले पर जांच करा रही है तो 130 करोड़ नागरिकों के आधार नंबर से जुड़े तथ्य लीक होने पर वह क्या करेंगी,हमें इसका अंदाजा नहीं है।
देश के सबसे बड़े कारपोरेट वकील इस फर्जीवाड़े से निबटने के लिए आम जनता को भरोसा दिला रहे हैं,लेकिन कुकिंग गैस,बैंकिंग,राशन,वोटर लिस्ट,वेतन,पेंशन,रेलवे जैसे विशाल नेटवर्क से जब सारे तथ्य लीक या हैक हो जाने की स्थिति से सरकार कैसे निपटेगी जबकि सिर्फ बत्तीस लाख डेबिट कार्ड लीक हो जाने से देश की बैंकिंग सिस्टम अभूतपूर्व संकट में है।
देशभर में सिर्फ 32 लाख नहीं, बल्कि 65 लाख डेबिटकार्डों का डाटा चोरी होने की आशंका है।यह संख्या भी आधिकारिक नहीं है।लाखों की तादाद में या करोडो़ं की तादाद में यह डाटाचोरी हुई है या नहीं है,संबंधित बैंको की ओर से अपना कारोबार बचाने की गरज से इसका खुलासा हो नहीं रहा है। भारतीय स्टेट बैंक जिस तरह खुलासा कर रहा है,निजी बैंको में उससे कहीं बड़ा संकट होने के बावजूद वे अपने व्यवसायिक हितों के मद्देनजर जब तक संभव है,कोई जानकारी साझा करने से बचेंगे।बहरहाल अब बैंकों ने अपने ग्राहकों से पिन बदलवाने या फिर मौजूदा कार्डब्लॉक कर नया कार्डदेने की कवायद तो शुरू कर दी है। लेकिन सबसे खतरनाक बात तो यह है कि अभी तक किसी भी बैंक ने इस मामले में एफआईआर तक दर्ज नहीं करवाई है और न ही सरकार को इस बारे में कोई सूचना ही दी है।मसलन महाराष्ट्र पुलिस की साइबर सिक्योरिटी ने खुद बैंकों को खत लिखा है।
बैंक प्राथमिक स्तर पर तत्काल पिन नंबर बदलने की बात पर जोर दे रहे हैं। सवाल यह है कि जब बैंकिंग नेटवर्क ही सुरक्षित नहीं है तो नये सिरे से पिन बदलते हुए वह पिन भी हैक हो गया तो आपकी जमा पूंजी का क्या होगा,जिन्हें अपना पेंशन पीएफ वेतन वगैरह बैंक में जमा करना होता है,वे सारे लोग तो रातोंरात कौड़ी कौड़ी के लिए मोहताज हो जायेंगे।
फिर कोई जरुरी नहीं है कि वे तथ्य बैंकिंग सिस्टम से ही लीक हो और बैंकों के तमाम एहतियात के बावजूद वे तथ्य लीक न हों,इसका कोई पुख्ता इंतजाम तकनीक के मामले में सबसे ज्यादा विकसित सिस्टम और देशों के पास भी नहीं है।
बाजार के विस्तार के लिए तेज अबाध लेनदेन के लिए जो डिजिटल पेपरलैस अत्याधुनिक इंतजाम है,उसीके वाइरल हो जाने से नागरिकों की निजता,गोपनीयता असुरक्षित हो गयी है।डिजिटल लेन देन बेशक सुविधाजनक है और यह शत प्रतिसत तकनीक के मार्फत होता है।यह तकनीक मददगार है,इसमें भी कोई शक नहीं है।लेकिन अत्यधिक तकनीक निर्भर हो जाने के बाद वही तकनीक भस्मासुर बनकर आपका काम तमाम कर सकती है।
जल जंगल जमीन से बेदखली की तरह तकनीक से बेदखली की समस्या भी बेहद संक्रामक है।
साइबर अपराधी,अपराधी गिरोह से लेकर कारपोरेट कंपनियों के हाथों में हमारे तमाम तथ्य हमारी उंगलियों की छाप और आंखों की पुतलियों के साथ जमा आधार परियोजना के निजी उपक्रम के सौौजन्य से उपलब्ध हैं।बुनियादी सेवाओं और बुनियादी जरुरतों को पूरा करने के बहाने डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल करके कोई भी सरकारी गैरसरकारी और संबंधित नागरिकों से ऐसे बेहद संवेदनशील तथ्यहासिल कर सकते हैं जैसी कोशिश मानीय सांसद के साथ हो चुकी है।
नेट बैंकिंग,एटीएम,डेबिट क्रेडिट कार्ड और मोबाइल बैंकिंग से श्रम और समय की बचत है और कागज की भी बचत है और सारा का सारा ई बाजार इसी कार्ड आधारित लेन देन पर निर्भर है तो वेतन,बीमा,पेंशन समेत तमाम सेक्टर में विनिवेश के तहत जो आम जनता का पैसा लग रहा है,वह निजी खातों से आधार नंबर के जरिये स्थानांतरित हो रहा है और यही आधार नंबर बैकिंग के लिए अब अनिवार्य है।
गौरतलब है कि पैन नंबर में नागरिकों के आय ब्यय का ब्यौरा ही लीक हो सकता है और इसलिए पैन नंबर आधारित बैंकिंग से उतना खतरा नहीं है।लेकिन आधार नंबर कुकिंग गैस से लेकर राशन कार्ड तक के लिए अनिवार्य हो जाने से आधार के साथ साथ आंखों की पुतलियां,उंगलियों की छाप समेत तमाम तथ्य और जानकारिया लीक हो जाने का बहुत बड़ा खतरा है,जिसके मुखातिब अब हम हैं।
सिर्फ शेयर बाजार तक यह संकट सीमाबद्ध नहीं है। सामाजिक परियोजनाों के माध्यम से एकदम सीमांत लोगों,गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाले लोगों को भी दिहाड़ी और योजना लाभ,कर्ज वगैरह का भुगतान गैस सब्सिडी की तर्ज पर आधार नंबर से नत्थी कर दिया गया है।जिससे उनके बारे में भी कोई तथ्य गोपनीय नहीं है।
कुल मिलाकर नागरिकों के तमाम तथ्य डिजिटल तकनीक के जरिये जिस तरह सारकारी खुफिया निगरानी के लिए उपलब्ध हैं,उसीतरह बाजार के विस्तार के लिए ये तमाम तथ्यई मार्केट और ईटेलिंग के जरिये देशी विदेशी निजी कंपनियों को उपलब्ध हैं।जब सीधे प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का संदेश पाकर आप फूले नहीं समाते और कभी यह समझने की कोशिश नहीं करते कि आपका सेल नंबर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को कैसे उपलब्ध हैं,उसीतरह चौबीसों घंटे रंग बिरंगे काल सेंटर से आपके नंबर पर होने वाले फोन से आपको अंदाजा नहीं लगता कि आपके बारे में तमाम तथ्य उन कंपनियों के पास हैं,जिसके लिए वे बाकायदा आपको टार्गेट कर रहे होते हैं।
बिल्कुल इसीतरह दुनियाभर के अपराधी,माफिया और हैकर के निशाने पर आप रातदिन हैं और मौजूदा बैंकिंग संकट सिर्फ टिप आप दि आइसबर्ग है।अब तो गाइडेड मिसाइल के साथ साथ गाइडेड बुलेट तक तकनीक विकसित है और आप रेलवे टिकट या ट्रेन टिकट बुकिंग के लिए जो तथ्य डिजिटल माध्यम से हस्तांतरित कर रहे हैं,किस प्वाइंट पर वे लीक या हैक हो सकते हैं,इसका अंदाजा किसी को नहीं है।
बांग्ला दैनिक एई समय ने सांसद ऋतव्रत की आपबीती आज पहले पेज पर प्रकाशित की है।
ভাষা পরে, জাতি আগে। ভেবে পুলকিত হই। আর কী হবার থাকে?
Sushanta Kar
এটা বেশ জমেছে অসমিয়া বাঙালি হিন্দুর একাংশ শঙ্কিত আসাম না কাশ্মীর হয়ে যায়। আর অসমিয়া হিন্দু-মুসলমানের আতঙ্ক অসম না ত্রিপুরা হয়ে যায়। দুটোর মধ্যে যে তফাৎ কোথায়, বহু ভেবেচিন্তেও পেলাম না। দুটোরই উৎস ব্যাপক পরজাতি বিদ্বেষ। হিন্দুত্ববাদী আশা করেন, সব মুসলমান হিন্দু হয়ে যাবেন। ঘরওয়াপসি তার চরম নজির। না হলেও মুসলমানে দুর্গাপুজো করাকে যেভাবে কেউ কেউ সাম্প্রদায়িক সম্প্রিতীর নজির হিসেবে দেখেন, প্রতিতুলনাতে মুহরমের তাজিয়াতেও বহু হিন্দু যখন যোগ দেন, সেসব খুব গুরত্ব পায় না সেসব 'অসাম্প্রদায়িক' হিন্দুর ভাবনাতে। অন্যদিকে অসমিয়া মাত্রেরই আশা অসমে সবাই অসমিয়া হয়ে যাবেন। যারা নিজেদের উগ্রজাতীয়তাবাদ বিরোধী বলে ভাবেন, তার মধ্যে বড় অংশ নিজেদের শ্রমিক শ্রেণির মার্ক্সবাদী তাত্ত্বিক বলেও ভাবেন, তাদেরও মনে বড় দুঃখ এতোদিন আসামে থেকেও বাঙালি হিন্দু অসমিয়া হলেন না। মুসলমানের এক অংশ কেমন তরতরিয়ে হয়ে গেছেন। অমলেন্দু গুহের মতো ব্যক্তিত্বের অসমিয়া চর্চা তাই যত সম্নান পায়, হোমেন বরগোঁহাই, বা নিরূপমা বরগোঁহাইর বাংলা চর্চা সেরকম মর্যাদা পায় না। মানে দাঁড়াল এই যে আসামে থাকলে আপনি হয় হিন্দুত্ববাদী হোন, অথবা অসমিয়া। মুসললমানত্ব নিয়ে দাঁড়ালে বহু বাঙালি হিন্দুও ক্ষেপে যাবেন, সেই বাঙালি হিন্দু--যার বাঙালিয়ানাকে সে নিজেও মনে করে ডাস্টবিনে ফেলে দেবার জিনিস। এ ব্যাপারে বরাক ব্রহ্মপুত্রের বাঙালির বিশেষ ইতর বিশেষ নেই। বরাক উপত্যকাতে ১৯ মে এলে শহুরে মধ্যবিত্তেরা কিছু ঢোল পিটিয়ে ১১ শহীদের পুজো টুজো করেন। হিন্দু-মুসলিম ভাই ভাই বলেন। সেসব শহুরে হুজুগে পনা। কেউ কেউ কাগজে এই নিয়ে নিবন্ধ লিখে বাহবা কুড়ান। মনে মনে সবাই জানেন, অসমে থাকতে হলে 'হিন্দুত্বই সেরা পথ'। সেদিন তাই এক কংগ্রেসী নেতাও বলেই ফেললেন, ভাষা পরে, জাতি আগে। ভেবে পুলকিত হই। আর কী হবার থাকে?
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Emanul Haque
বিশিষ্ট গান্ধীবাদী স্বাধীনতা সংগ্রামী পদ্মভূষণ ও আনন্দ পুরস্কারপ্রাপ্ত লেখক কেন্দ্রীয় খাদি বোর্ডের অধিকর্তা শৈলেশকুমার বন্দ্যোপাধ্যায় আজ সকাল সাড়ে 6 টায় প্রয়াত হয়েছেন ।
বেলা 1.30 টার সময় তাঁর দেহ নীলরতন সরকার হাসপাতালের অ্যানাটোমি বিভাগে দান করা হয়.।
মৃত্যু কালে তাঁর বয়স হয়েছিল 90।
জন্ম 10 মার্চ 1926 বিহারের সিংভূমে।
1942 ভারত ছাড়ো আন্দোলনে যোগ দিয়ে জেলে যান। গান্ধীর শিষ্য । সর্বোদয় ভূদান আন্দোলনে সক্রিয় ভূমিকা নেন।
40 গ্রন্থের লেখক ।।
গান্ধী পিস ফাউন্ডেশনের প্রথম সম্পাদক ।।
হেরিটেজ কমিশনের প্রথম চেয়ারম্যান ।
পেয়েছেন আনন্দ পুরস্কার ।
জিন্না: পাকিস্তান,দাঙ্গার ইতিহাস তাঁর অন্যতম প্রধান গ্রন্থ ।।
তাঁর দুই কন্যা ও এক পুত্র বর্তমান।
ভাষা ও চেতনা সমিতির পক্ষে তাঁর মৃত্যুতে শ্রদ্ধা জানান হয়।।
দেহ নিয়ে যাওয়া হয় নীলরতন হাসপাতালে। ।
সত্যি সেলুকাস্ কি বিচিত্র এদেশ ভারতবর্ষ!
অথচ এইতো কদিন আগে বিড়ার অসুর স্মরণ সভায় বাঁধা দলিতের জন্য দলিতেরাই তারা একবার ভেবে দেখলনা আমার জাতির লোক যখন বলছে তখন সহযোগিতা না করি একবার এর সত্যতা বা উপযোগীতা যাচাই করে দেখি।
এব্যাপারে উচ্চবর্ণ সমাজ একদম সোচ্চার নিজেদের স্বার্থে।যখন তখন নিয়ম তৈরি করে।
সত্যি সেলুকাস্ কি বিচিত্র এদেশ ভারতবর্ষ!
এই ছিলকী তোমার মনে। কোথায় গেল উদ্বাস্তু দরদ

সময় এসেছে। ভিক্ষা বৃত্তি ছাড়ুন। বাংলার নিপিড়িত শোষিত বঞ্চিত বহুজনের স্বার্থে একত্রিত হোন। রাজনৈতিক ক্ষ্মতায়নের মধ্য দিয়েই যোগ্য জবাব দিন এই যুগান্তের ষড়যন্ত্রকারীদের।
বিজেপি যে বিল এনেছেন তাতে অসংখ্য ছিদ্র। এমন একটি ইস্যুতে এত ছিদ্র? খসড়া বিল আনার আগে সর্বদলীয় বৈঠকে এই ছিদ্র এড়ানো যেত। আসলে আন্তরিকতা নয় রাজনৈতিক ফয়দা তোলাই এদের লক্ষ্য। মানুষকে ছিন্নমূল করে রাখতে পারলেই এরা নিশ্চিন্ত থাকতে পারে।
সমাধান একটাই, বহুজনের রাজনৈতিক ক্ষ্মতায়ন। একটি বিদ্যালয়ের জন্য আন্দোলন, বিডিও অফিস ঘেরাও, ডেপুটেশন, একটি পরিষদ ইত্যাদি ইত্যাদি আসলে আবেদন-নিবেদন এবং ভিক্ষা বৃত্তির সামিল। সংখ্যা গরিষ্ঠ কেন এই ভিক্ষা বৃত্তিতে সামিল হবে? কেন তারা রাজনৈতিক ভাবে নিজেদের অধিকার প্রতিষ্ঠিত করবেন না !! আবেদন নিবেদনে ব্যক্তি মানুষের কিছু গতি হলেও সামগ্রিক স্বার্থ রক্ষা হয় না।
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সময় এসেছে। ভিক্ষা বৃত্তি ছাড়ুন। বাংলার নিপিড়িত শোষিত বঞ্চিত বহুজনের স্বার্থে একত্রিত হোন। রাজনৈতিক ক্ষ্মতায়নের মধ্য দিয়েই যোগ্য জবাব দিন এই যুগান্তের ষড়যন্ত্রকারীদের।
মোদিভাইয়ের আনা নাগরিকত্ব সংশোধনী বিল একেবারে বাতিল করার দাবী তুললেন দিদিভাই। দুর্দান্ত সাজানো নাটকের প্লট। শ্যামাপ্রসাদ থেকে শ্যামাঙ্গিনী মমতা নিখুঁত অভিনেতা অভিনেত্রী। দিদিভাই মোদিভাইরা জেনে গেছেন যে তাদের পূর্বপুরুষেরা ভারতকে টুকরো করে বাংলাকে টুকরো করে উদ্বাস্তুদের শিরদাঁড়া ভেঙ্গে দিয়েছেন। এখন তাদের মাথা নিচু করে থাকা ছাড়া উপায় নাই। ২০১৪ সাল পর্যন্ত আগত উদ্বাস্তুদের পক্ষে নাগরিকত্ব বিলকে সংশোধন করে আইনে পরিণত করলে এই ক্লীব শিরদাঁড়ায় আবার হাড় গজাতে শুরু করবে। ঘাড় শক্ত হবে। ঝুঁকে পড়া মাথা খাঁড়া হয়ে দাঁড়াবে। মূলনিবাসীর এই খাঁড়া মাথা ব্রাহ্মন্যবাদীদের কাছে বড় বেমানান। বড় বেশি আতঙ্কের।
বিজেপি যে বিল এনেছেন তাতে অসংখ্য ছিদ্র। এমন একটি ইস্যুতে এত ছিদ্র? খসড়া বিল আনার আগে সর্বদলীয় বৈঠকে এই ছিদ্র এড়ানো যেত। আসলে আন্তরিকতা নয় রাজনৈতিক ফয়দা তোলাই এদের লক্ষ্য। মানুষকে ছিন্নমূল করে রাখতে পারলেই এরা নিশ্চিন্ত থাকতে পারে।
সমাধান একটাই, বহুজনের রাজনৈতিক ক্ষ্মতায়ন। একটি বিদ্যালয়ের জন্য আন্দোলন, বিডিও অফিস ঘেরাও, ডেপুটেশন, একটি পরিষদ ইত্যাদি ইত্যাদি আসলে আবেদন-নিবেদন এবং ভিক্ষা বৃত্তির সামিল। সংখ্যা গরিষ্ঠ কেন এই ভিক্ষা বৃত্তিতে সামিল হবে? কেন তারা রাজনৈতিক ভাবে নিজেদের অধিকার প্রতিষ্ঠিত করবেন না !! আবেদন নিবেদনে ব্যক্তি মানুষের কিছু গতি হলেও সামগ্রিক স্বার্থ রক্ষা হয় না।
সময় এসেছে। ভিক্ষা বৃত্তি ছাড়ুন। বাংলার নিপিড়িত শোষিত বঞ্চিত বহুজনের স্বার্থে একত্রিত হোন। রাজনৈতিক ক্ষ্মতায়নের মধ্য দিয়েই যোগ্য জবাব দিন এই যুগান্তের ষড়যন্ত্রকারীদের।