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ফোন বা কোন মাধ্যমে আপনার এটিএম বা একাউন্ট নাম্বার কাউকে জানাবেন না

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from Saradindu Uddipan`s FB wall

মোদির ভাইদের থেকে সাবধানঃ 
 আজ ভয়ংকর ঠগেদের হাত থেকে বেঁচে গেলাম।
সকাল ১১টা ১৭ নাগাদ একটি ফোন এল আমার কাছে। আমি সাধারণত অপরিচিত নাম্বার ধরি না। অন্তত ৫-৬বার একি নাম্বার থেকে কল আসার পরে সেটাকে ধরি। ওপাশ থেকে খুব বিনীত ভাবে জানানো হল যে আমার ব্যাঙ্ক একাউন্টের পক্ষে যথেষ্ট তথ্য নেই। ঘটনাক্রমে আমি ব্যাংকেই যাচ্ছিলাম আমার প্যান কার্ড জমা দিতে, তাই ওপাশের কথা আমার বিশ্বাসযোগ্য মনে হয়েছিল। এর পরে ওপাশ থেকে আমাকে জানানো হয় যে আমার নতুন এটিএম কার্ড এসে গেছে কিন্তু সেটা পেতে গেলে আমাকে আমার ব্যবহার করা অন্য এটিএম কার্ডের নাম্বার দিতে হবে। আমি জানাই, আমার কোন এটিএম কার্ড নেই। আমি ব্যবহার করি না। 
ওপাশ থেকে জানানো হয় যে আমার সিন্ডিকেট ব্যাংকের এটিএম ইস্যু হয়েগেছে কিন্তু সেটা পেতে গেলে আমাকে আমার স্ত্রী বা ভাইয়ের এটিএম নাম্বার জানাতে হবে।

আমার খটকা লাগে। আমি তাকে জানাই ব্যাংকে গিয়ে আমি আপনার সাথে কথা বলছি। 
ওপাশ থেকে জানান যে আজ ব্যাংকে কোন কাজ হবে না, আপনি বৃহস্পতিবার আসুন। ততক্ষণে আমি ব্যাংকের গেটে ঢুকে পড়েছি। জানার চেষ্টা করছি তিনি কোন টেবিলে বসে আছেন? নাম কি? 
তিনি চুপ করে থাকেন। 
আমি ম্যানেজারের ঘরে ঢুকে ফোনটি তাঁর দিকে এগিয়ে দিই। 
ম্যানেজার জিজ্ঞাসা করেন, "কে তুমি? কোথা থেকে ফোন করছ?" 
ওপারের ফোনটি বন্ধ হয়ে যায়। ম্যানেজার ফোন নাম্বারটি তৎক্ষণাৎ পুলিশকে জানিয়ে দেন। 
আমার একাউন্ট ওপেন করে জানান যে, একাউন্ট, ক্লোজ হয়নি বা কোন ধরনের জটিলতা নেই।

বন্ধুরা, দুর্নীতি বন্ধ করার নামে মোদির ভাইদের চলছে এই ফটকাবাজী। 
আপনারা সাবধান থাকুন । 
ফোন বা কোন মাধ্যমে আপনার এটিএম বা একাউন্ট নাম্বার কাউকে জানাবেন না।


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यूपी के महाभारत में दांव पर संविधान,लोकतंत्र और भारत की जनता हालात संगीन हैं और इसीलिए यूपी वालों पर देश बचाने की जिम्मेदारी है। देश बचाने की अपील पर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद।बहस कृपया जारी रखें।संवाद जारी रखें। पलाश विश्वास

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यूपी के महाभारत में दांव पर संविधान,लोकतंत्र और भारत की जनता

हालात संगीन हैं और इसीलिए यूपी वालों पर देश बचाने की जिम्मेदारी है।

देश बचाने की अपील पर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद।बहस कृपया जारी रखें।संवाद जारी रखें।

पलाश विश्वास

बीच सफ़हे की लड़ाई


"मुझे अक्सर गलत समझा गया है। इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि मैं अपने देश को प्यार करता हूँ। लेकिन मैं इस देश के लोगों को यह भी साफ़ साफ़ बता देना चाहता हूँ कि मेरी एक और निष्ठा भी है जिस के लिए मैं प्रतिबद्ध हूँ। यह निष्ठा है अस्पृश्य समुदाय के प्रति जिसमे मैंने जन्म लिया है। ...जब कभी देश के हित और अस्पृश्यों के हित के बीच टकराव होगा तो मैं अस्पृश्यों के हित को तरजीह दूंगा। अगर कोई "आततायी बहुमत"देश के नाम पर बोलता है तो मैं उसका समर्थन नहीं करूँगा। मैं किसी पार्टी का समर्थन सिर्फ इसी लिए नहीं करूँगा कि वह पार्टी देश के नाम पर बोल रही है। ...सब मेरी भूमिका को समझ लें। मेरे अपने हित और देश के हित के साथ टकराव होगा तो मैं देश के हित को तरजीह दूंगा, लेकिन अगर देश के हित और दलित वर्गों के हित के साथ टकराव होगा तो मैं दलितों के हित को तरजीह दूंगा।"-बाबासाहेब आंबेडकर

उत्तर प्रदेश  के महाभारत में मूसलपर्व के नतीजा चाहे कुछ है,संघ परिवार के कारपोरेट हिदुत्व के नस्ली नरसंहार के एजंडे के तहत यूपी दखल की नोटंबदी कैशलैस डिजिटल कार्यक्रम कामयाबी के करीब है।जबकि इस महाभारत में दांव पर हैं भारत के संविधान,लोकतंत्र औऱ भारतीय जनता।

नोटबंदी जरिये राममंदिर आंदोलन और आरक्षणविरोधी आंदोलन नये सिरे से शुरु हैं तो राज्यसभा में बहुमत यूपी दखल के बंद हो जाने के बाद आरक्षण तो खत्म होना ही है,बहुसंख्य आम जनता और बहुजनों का सफाया तय है।

गौरतलब है कि बाबासाहेब ने हिंदुत्व के अश्वमेध अभियान को रोकना सबसे अनिवार्य कहा है तो नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी भारत छोड़ने से पहले अपने आखिरी भाषण में हिंदुत्व के फासिस्ट नरसंहारी कार्यकर्म से सावधान रहने को कहा था।नोटबंदी के कार्यक्रम से जो लोग बाबासाहेब को नत्थी कर रहे थे,वे देख ले कि बाबासाहेब के बनाये रिजर्व बैंक और आरबी आई एक्ट को फासिज्म के राजकाज ने कैसे ध्वस्त कर दिया है और पूरी बैंकिग प्रणाली दिवालिया है।अर्तव्यवस्था पटरी से बाहर है।

हस्तक्षेप पर लगा मेरा आलेख यूपीवालों,चाहे तो देश बचा लो,जनसंदेश टाइम्स में छपकर पूरे यूपी में यूपीवालों के हाथों में अखबार की शक्ल में पहुंच गया है।आज सुबह से यूपी वालों के फोन लगातार आ रहे हैं।

पहला फोन कल्कि अवतार के स्मार्ट शहर वाराणसी से आया तो बाकी फोन में सबसे उल्लेखनीय फोन जिला चंदौली के किसी गांव से 73 साल के फक्कड़ बाबा का आया।रात में हमारे मित्र एचएल दुसाध ने भी उसी आलेख पर लगातार टिप्पणी लिखकर फेसबुक पर शेयर किया है और उसपर लगातार प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।उन टिप्पणियों के लिए आभार।जो शेयर कर रहे हैं,उनका ज्यादा आभार।

इस बीच हमारे दिलोदिमाग में सबसे गहरा आघात समकालीन तीसरी दुनिया के बंद होने से लगा है।हम यह भी नहीं जानते कि कब तक समयांतर चल पायेगा।हमने आनंदस्वरुप वर्मा,पंकज बिष्ट,रणजीत वर्मा,अभिषेक श्रीवास्तव,प्रशांत भूषण,हिमांशु कुमार,आनंद तेलतुंबड़े,आनंद पटवर्द्धन,शम्शुल हक, विद्याभूषण रावत,बंगाल के सभी साथियों,बामसेफ के सभी पुराने साथियों और देशभर में सामाजिक कार्यकर्ताओं से लगातार वैकल्पिक मीडिया के बारे में चर्चा की है।

हम हस्तक्षेप के बारे में भी लगातार अपीलें करते हुए थक गये हैंं।अमलेंदु अपनी जिद पर हस्तक्षेप चला पा रहे हैं और हम उनकी कोई मदद नहीं कर पा रहे हैं।जो मदद कर सकते थे,ऐसे लोगों ने वायदा करके भी निभाया नहीं है।

हम शर्मिंदा हैं और अरसे से हमने अमलेंदु को फोन भी नहीं किया है।

हम लगातार यह कह रहे थे कि रियल टाइम में आम जनता तक जानकारी और उसका विश्लेषण पहुंचाने के लिए हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल बखूब कर सकते हैं।लेकिन जब तक आम जनता के हाथों में मुद्रित सामग्री हम पहुंचा नहीं सकते तब तक इंटरनेट से बाहर बहुसंख्यक जनता को हम संबोधित नहीं कर सकते।

हम चाहते थे कि अखबार,पत्र पत्रिका,बुलेटिन,पंफलेट के मार्फत भी ज्वलंत मुद्दों को फेसबुक और पोर्टल से निकाल कर प्रकाशित करके हाथोंहाथ आम जनता तक पहुंचाने की कोई जुगत हम करें।

हम रिटायर हो चुके हैं।आय शून्य है और इकलौता बेटा बेरोजगार है।किराये के मकान में हैं  और पेंशन सिर्फ ढाई हजार हर महीने मिलती है।माफ करें कि अब हम कहीं भी कभी भी दौड़ने की हालत में नहीं है।

हमने बोधगया जाकर तमाम बौद्ध संगठनों से मिलकर बार बार कहा है कि तथागत गौतम बुद्ध ने सामाजिक क्रांति की है और उनका धर्म प्रवर्तन इतिहास में सबसे बड़ा और सबसे प्रभाव शाली परिवर्तनकारी जनांदोलन है।हमारे लिए इतिहास में सबसे बड़ा सामाजिक कार्यकर्ता तथागत गौतम बुद्ध है।उन्हींका पथ हमारा पथ है।

तमाम बुद्ध बिहार,मठ,स्तूप विश्वविद्यालय ज्ञान विज्ञान के केंद्र थे।

अब हिंदुत्व के एजंडे के प्रतिरोद में तथागत गौतम बुद्ध का मार्ग ही हमारे लिए सही विकल्प है बशर्ते कि हम तमाम बौद्ध संस्थानों को ज्ञान विज्ञान और सामाजिक सरोकार के केंद्रों में बदलें।

इस दिशा में उन बौद्ध संस्थाओं और बौद्ध संगठनों से लगातार संपर्क करने के बावजूद अभी सकारात्मक कोई पहल हुई नहीं है।बौद्ध संगठनों पर आरएसएस का शिकंजा बेहद मजबूत हो गया है,जैसे अंबेडकरी संगठनों पर हो गया है।

बंगाल में भी मतुआ आंदोलन,शरणार्थी आंदोलन और संगठन,बंगाल की पूरी राजनीति इस वक्त आरएसएस के शिकंजे में है।

बाकी देश के हालात भी कमोबेश यही है।

हमारे पास संसाधन नहीं हैं और मौजूदा हालात में संसाधन पैदा करने की स्थिति हमारी नहीं है जबकि देश के सामने भुखमरी और मंदी का संकट है और बहुसंख्य जनता की आजीविका छिन रही है।भूखों मरने की नौबत है।हमें अपने संसाधनों और संस्थाओं का बेहतर इस्तेमाल करना चाहिए।आगे भुखमरी ,मंदी है।

इस कयामती फिजां में हम अखबार,पत्र पत्रिकाएं या नया पोर्टल खोलने की हालत में नहीं हैं,इसलिए हमारे पास जो हैं,उसीको पूंजी और हथियार मानकर हमें आम जनता की हकहकूक की लड़ाई तेज करनी है।

हम लगातार अकेले होते जा रहे हैं।

सारे ख्वाब मरने लगे हैं।

हमने बंगाल के सामाजिक कार्यकर्ताओं से लगातार बंगाल के हिंदुत्वकरण के गहराते संकट पर लगातार चर्चा की है और बाकी देश के लोगों से भी हम विचार विमर्श कर रहे हैं।कल सुबह से हम विद्याभूषण रावत का कोलकाता पहुंचने का इंतजार कर रहे थे।वे देर रात सियालदह पहुंचे हैं।वहां से चंदननगर पहुंच गये हैं।उनके साथ कोलकाता के खास तमाम सामाजिक कार्यकर्ता कल बैठेंगे।

आज फोन पर उनसे बात हुई है।हिंदी में फिरभी हमारा लिखा किसी न किसी रुप में कहीं कहीं मुद्रित हो जाता है।लेकिन आनंद तेलतुंबड़े को छोड़कर किसी का अंग्रेजी या बांग्ला में लिखा प्रिंट में नहीं छपता।इससे अंग्रेजी या हिंदी के अलावा बाकी भाषाओं में आम जनता से संवाद के  रास्ते सिरे से बंद हैं।हम इसीलिए अंग्रेजी,बांग्ला या किसी दूसरी भाषा में इन दिनों लिख नहीं रहे हैं।विद्याभूषण भी अंग्रेजी में ही लिख रहे हैं।

बंगाल और बाकी देश की नजर यूपी पर है।

यूपी वालों के विवेक पर देश दांव पर लगा है।

नोटबंदी जैसा नरसंहार कार्यक्रम यूपी को जीतने के लिए संघ परिवार ने अपनाया है तो यह समझना चाहिए कि क्यों यूपी से हमारी किस्मत का फैसला हो जाना है।हमने अपने राजनीतिक मित्रों को भी बार बार चेताया है।वे बेपरवाह हैं।

गौरतलब है कि राज्यसभा में संघ परिवार का बहुमत नहीं है और इसलिए फासिज्म की सरकार न आरक्षण खत्म कर पा रही है और न संविधान के बदले सीधे मनुस्मृति लागू कर पा रही है।जो संघ परिवार का घोषित एजंडा है जिनका ध्वज राष्ट्रीय ध्वज नहीं,भगवा झंडा है।

मिथ्या हिंदुत्व,मिथ्या राममंदिर,मिथ्याधर्म की तरह यह भगवा झंडा भी हिंदुत्व का झंडा नहीं है।यह महाराष्ट्र में पेशवा राज का झंडा है।संघ परिवार पूरे भारत में पेशवा राज लागू करना चाहता है।संघ परिवार पूरे देश में पेशवा राज के फिराक में है।

नोटबंदी पर हम लगातार हस्तक्षेप में सारे ब्यौरे और विश्लेषणश् 8 नवंबर से लगातार लगा रहे हैं और उसे दोहराने की जरुरत नहीं है।

कालाधन निकालना नहीं,कैशलैस डिजिटल इंडिया भी संघ परिवार का असल कार्यक्रम नहीं है नोटबंदी का।सीधे मछली की आंख पर निशाना है।निशाने पर यूपी है।

यूपी में पिछले लोकसभा चुनाव में संघ परिवार ने बसपा का सफाया कर दिया है और समाजवादी भी हाशिये पर हैं।

योजनाबद्ध तरीके से यूपी जीतने के लिए बाकी देश को नकदी से वंचित करके संघ परिवार ने  अपनी सारी पूंजी,सारा कालाधन यूपी में झोंक दिया है।

यूपी की सत्ता से बड़ी चीज उसके लिए फिलहाल राज्यसभा में बहुमत के लिए जरुरी सीटें हैं,जो यूपी में विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उसे आसानी से हासिल हो सकती है।समाजवादियों का मूसल पर्व के पीछे भी संघ परिवार का हाथ है।

अखिलेश को मुलायम से अलग करके अखिलेश के कंधे पर बंदूक रखकर बेलगाम चांदमारी की योजना है।

बंगाल में ममता बनर्जी के नोटबंदी के खिलाफ जिहाद की वजह से बांग्ला अखबारों और मीडिया में संघ परिवार के इस एजंडा को व्यापक पैमाने पर बेपर्दा किया जा रहा है।इसके विपरीत बाकी देश में मीडिया पर भक्तजन काबिज हैं।इसलिए बंगाल के सामाजिक कार्यकर्ता यूपी को लेकर बेहद चिंतित हैं।

बंगाल में आरक्षण संविधान लागू होने के 26 साल बाद लागू हुआ है।इसे लागू कराने का आंदोलन छेड़कर कामयाबी हासिल करने वाले मान्यवर कांशीराम जी के सहयोगी,वैज्ञानिक चेतना प्रसार आंदोलन में अग्रणी डा.गुणधर वर्मन की पुण्यतिथि पर मध्य कोलकाता के धर्मांकुर बौद्ध मंदिर में जमा बंगाल भर के कार्यकर्ता यूपी की इस निर्णायक लड़ाई पर लगातार बोलते रहे।उन्होंने भी यूपी वालों से संघ परिवार को शिकस्त देने की अपील की है।

यह सच का सामना करने की घड़ी है और यूपी की आम जनता पर निर्भर है कि राजनीतिक गोलबंदी गठबंधन हो या न हो,हर हाल में यूपी में हर कहीं भाजपा को हरानेवाले प्रत्याशी को दलमत निर्विशेष वोट करें और संघी फासिस्ट नरसंहारी कारपोरेट मंसूबे को कड़ी शिकस्त दें।

हम बसपा या समाजवादियों या कांग्रेस के लिए वोट नहीं मांग रहे हैं।

हम भारत में लोकतंत्र,संविधान बचाने और संघी फासिज्म के राजकाज से आम जनता को बाचाने और कारपोरेट एकाधिकार वर्चस्व के ग्लोबल हिंदुत्व के नस्ली बहुजन सफाया अभियान के अश्वमेधी घोड़ों की लगाम थामने के लिए यूपी वालों से देश बचाने की अपील कर रहे हैंं।

दुसाध जी ने जो फेसबुक पर हालात का बयान किया है और यूपी के पाठकों और फेसबुक की प्रतिक्रियाओं से जो कयामती फिजां की तस्वीर बनी है,हम उसका खंडन मंडन नहीं करते हैं।

हालात संगीन हैं और इसीलिए यूपी वालों पर देश बचाने की जिम्मेदारी है।

गौरतलब है कि संघ परिवार ने यूपी में आधी आबादी पर दांव लगाया है जबकि विपक्षी दलों को आधी आबादी की खास परवाह नहीं है।प्रदेश में परिवर्तन लाने की कवायद में जुटी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने विधानसभा चुनाव को लेकर खास रणनीति तैयार की है। इसके तहत जहां टिकट वितरण में युवाओं और महिलाओं को खास तरजीह मिलने की उम्मीद है, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 'सबका साथ सबका विकास'के फार्मूले को अपनाये जाने के संकेत है।

भाजपा के लिए प्रदेश के होने वाले विधानसभा चुनाव न सिर्फ यूपी में सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की भी मजबूत बुनियाद तैयार करेंगे। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं इन चुनावों में दिलचस्पी ले रहे हैं और पूरा केन्द्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश में सक्रिय है।

इस बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक तरफ अपनी ही पार्टी के दंगल में फंसे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ उनकी नजर चुनावों पर भी हैं। अखिलेश यादव और उनका खेमा ना सिर्फ पार्टी और परिवार में मचे बवाल पर ध्यान लगाए हुए हैं, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों के लिए कांग्रेस और राष्ट्रीय लोक दल के साथ गठबंधन करने पर भी है। अखिलेश खेमे के बड़े नेता जैसे रामगोपाल यादव पार्टी में मचे बवाल और चुनाव चिह्न को लेकर चुनाव आयोग में चल रहे मसले पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं तो वहीं सूत्रों से खबर है कि दूसरी तरफ अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ सीटों के फैसलों पर विचार-विमर्श में लगे हुए हैं।

जबकि भाजपा 50 प्रतिशत युवाओं और 25-33 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की तैयारी में है।

अखिलेश यादव ने अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. खबर है कि अखिलेश यादव के घोषणा पत्र में तमाम समाजवादियों के नाम हैं लेकिन उसमें मुलायम सिंह का नाम तक नहीं है। इस बीच आज लखनऊ में खुद मुलायम सिंह ने अखिलेश यादव की नई पार्टी और चुनाव चिन्ह की ओर संकेत कर दिया।

लखनऊ में पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुलायम सिंह ने अखिलेश गुट के रामगोपाल यादव पर तो निशाना साधा ही अखिलेश की संभावित नई पार्टी तक के नाम का खुलासा कर दिया। मुलायम सिंह के मुताबिक अखिलेश की पार्टी का नाम अखिल भारतीय समाजवादी पार्टी और मोटरसाइकिल चुनाव चिन्ह हो सकता है। मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ में कहा कि अखिल भारतीय समाजवादी पार्टी नाम और मोटरसाईकिल चुनाव चिह्न किसने लिख कर दिया?

लखनऊ में इमोशनल कॉर्ड चलने के बाद मुलायम सिंह अपनी अलग रणनीति बनाने के लिए दिल्ली लौट गये। उधर खबर के मुताबिक अखिलेश ने अपने घोषणापत्र से मुलायम सिंह का नाम ही गायब कर दिया है।

यदुवंश का मूसल पर्व थमने के बजायतेज होने लगा है और अमर सिंह आरएसऐश प्लान के मुताबिक  बाप बेटे को ठिकाने लगाने में कामयाब होते नजर आ रहे हैं।आजम खान की सुलह की कोसिश फेल हो जाने से यूपी के मुसलमान आखिर किसके साथ होगें।

ताजा खबरों के मुताबिक अखिलेश यादव ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि वे जेपी, लोहिया, चौधरी चरण सिंह जैसे समाजवादियों की विरासत को आगे बढ़ाएंगे लेकिन समाजवादियों की उस लिस्ट में नेताजी का नाम ही नहीं हैं। घोषणापत्र के साथ-साथ अखिलेश जल्द ही एक चुनावी वीडियो भी जारी करने वाले हैं और खबर है कि उस वीडियो से भी नेताजी नदारद हैं।

उधर चुनाव आयोग साइकिल चुनाव चिन्ह के मसले पर 13 फरवरी को सुनवाई करने वाला है और आज की खबर के बाद ज्यादा संभावना इसी बात की है कि इस चुनाव में साइकिल चुनाव किसी गुट को नहीं मिले।

गलतफहमी बहुजन खेमे में यह है कि मुसलमान वोटबसपा केपाले में आ जायेंगे और बहन मायावती चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री फिर बन जायेंगी।मुसलमान वोटों के बंटवारे से समाजवादी खेमों के सात साथ बहुजन समाज पार्टी को भी भारी नुकसान का अंदेशा है।इस फसाद से हमेशा की तरह फायदे में सिर्फ संघ परिवार है।

समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच की सियासी दूरियां बढ़ती ही जा रही है और अब यह पार्टी टूटने की कगार पर पहुंच गई है। इसके बावजूद कुछ लोग इस दल को टूटने से बचाने में लगे हैं।

मीडिया के मुताबिक इस कड़ी में राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अखिलेश और मुलायम के बीच समझौता कराने की कोशिश की। इसके लिए लालू ने खुद अखिलेश को फोन किया और उन्हें अपने पिता मुलायम सिंह यादव से सुलह करने को कहा।

हालांकि, अखिलेश ने बड़ी विनम्रता से 'नो थैंक्स' कहकर कुछ ही मिनटों में उनका यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।अखिलेश को न आजम खान और न लालू की परवाह है।उनके सारे कारनामे आरएसएस के हक में हैं।उनकी जीत सबसे मुश्किल लग रही है,जिसका उन्हें पूरा भरोसा आरएसएस के कारिंदों ने दिलाया है और वे जाने अनजाने आरएसएस के सबसे बड़े हथियार बनकर तेजी से उभर रहे हैं तो मीडिया उन्हें भविष्य का नेता बनाने में लगा है।नरसिस महान के नक्शेकदम पर चलने लगे हैं अखिलेश।

बाद में लालू प्रसाद यादव ने मीडिया से बुधवार को कहा, 'मैंने अखिलेश को देर रात फोन कर सलाह दी थी कि वह मुलायम सिंह यादव से सुलह कर ले, लेकिन मुझे निराशा हाथ लगी।'

लालू ने माना कि यदि मुलायम और अखिलेश का गुट अलग-अलग चुनाव लड़ेगा तो इससे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ही फायदा होगा।लालू जैसे पके हुेए राजनेता को जो अंदेशा है,उसपर यूपी वाले गौर करें तो बेहतर।

भाजपा की  ओर से मकर सक्रान्ति के बाद उम्मीदवारों की सूची जारी करने का ऐलान किया गया है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक इसमें 50 प्रतिशत युवाओं को टिकट दिए जाने की उम्मीद है। इसके अलावा 25 से 33 प्रतिशत तक महिलाओं को भी उम्मीदवार बनाये जाने की सम्भावना है।

राजनैतिक विश्लेषकों के मुताबिक भाजपा का यह दांव विरोधी दलों पर बहुत भारी पड़ सकता है। प्रधानमंत्री अपने भाषणों में हमेशा से युवा शक्ति को तरजीह देते आए हैं। ऐसे में भारी संख्या में युवाओं को मैदान में उतारकर पार्टी अखिलेश यादव को कड़ी चुनौती देने की तैयारी में है।

दूसरी तरफ,अखिलेश खुद को युवा नेता के तौर पर ही प्रोजेक्ट करते आये हैं, लेकिन न तो उनकी सूची और न ही मुलायम सिंह यादव की ओर से जारी प्रत्याशियों की सूची में इतनी बढ़ी संख्या में युवाओं को टिकट दिया गया। खास बात है कि भाजपा में टिकटों के लिए आये कुल आवेदनों में 75 प्रतिशत युवा शामिल रहे।

अपने फेसबुक वाल पर एच एल दुसाध ने लिखा हैः

यूपी वालों देश बचा लो!

आज जनसन्देश टाइम्स में फेसबुक पर बेहद सक्रिय मशहूर पत्रकार पलाश बिश्वास का उपरोक्त शीर्षक से एक लेख छपा है.इसमें उन्होंने यूपी के लोगों से संघी शासन के विरुद्ध लामबंद होने की कातर अपील करते हुए लिखा है-'यूपी में सामाजिक बदलाव की दिशा बनी है.यूपी ने ही बदलाव के लिए बाकी देश का नेतृत्व किया है.तो अब यूपी के हवाले देश है.देश का दस दिगंत सर्वनाश करने के लिए सिर्फ यूपी जीतने की गरज से अर्थव्यवस्था के साथ –साथ करोड़ों लोगों को बेमौत मारने का जो चाक चौबंद इंतजाम किया है संघ परिवार ने ,उसके हिंदुत्व एजेंडे का प्रतिरोध यूपी से ही होना चाहिए.यूपी वालों के पास ऐतिहासिक मौका है प्रतिरोध का.देश आपके हवाले है.'

वास्तव में इतिहास ने यूपी के कन्धों पर एक ऐतिहासिक जिम्मेवारी डाल दी है.यूपी का प्रतिवेशी राज्य 'बिहार'इस जिम्मेवारी का निर्वहन कर चुका है,ऐसे में हम यूपी वालों पर अतिरिक्त जिम्मेवारी आन पड़ी है.लेकिन लगता नहीं हम इसे सफलता पूर्वक अंजाम दे पाएंगे.महज 31 प्रतिशत वोट लेकर जबरदस्त तरीके से केंद्र की सत्ता पर काबिज संघ के राजनीतिक संगठन को त्रिकोणीय मुकाबले में मात देना बहुत कठिन है.इस बात को ध्यान में रखते हुए बिहार के दो बहुजन नेता परस्पर शत्रुता को तिलांजलि दे कर बिहार चुनाव को दो ध्रुवीय बना दिया थे.यही नहीं जिस अमोघ अस्त्र से सवर्णवादी संघ को ध्वस्त किया जा सकता है,उस सामाजिक न्याय के हथियार का भी वहां भरपूर इस्तेमाल हुआ था.

यूपी में बिहार जैसा कुछ होता दिख नहीं रहा है.यहां बहुजनों का परस्पर विरोधी दो विख्यात शत्रु खेमा अपने –अपने इगो और स्वार्थवश के ऊपर बहुजन भारत के हित को तरजीह देने के लिए तैयार नहीं है.इसलिए इनकी एकता के अभाव में चुनाव त्रिकोणीय ही नहीं,चतुष्कोणीय होता दिख रहा है,जो भाजपा के लिए बेहद मुफीद है.दूसरा,जिस एकमात्र सामाजिक न्याय के तीर से भाजपा को विद्ध किया जाता है,उसके इस्तेमाल की दूर-दूर तक कोई सम्भावना नहीं दिख रही है.सामाजिक न्याय शब्द यूपी के बहुजन नेतृत्व के शब्दकोष से पूरी तरह विलुप्त हो गया है.अपनी शत्रुता को नई ऊंचाई देने पर आमादा यहाँ के मुद्दाविहीन बहुजन नेतृत्व की रणनीति देखकर लगता है ,कुछ अज्ञात कारणों से यहां भाजपा के लिए रेड कारपेट बिछाई जा रही है.ऐसे में अब पलाश  बिश्वास जैसों की यूपी बचाने की मनोकामना सिद्धि की पूरी जिम्मेवारी जागरुक बहुजन मतदाताओं पर आन पड़ी है.लेकिन बहुजन मतदाताओं की सारी चिंता भी अपने –अपने नेताओं का चेहरा चमकाने तक सीमित हो गयी है,वह अपने नेताओं पर खौफनाक भाजपा को रोकने की रणनीति पर काम करने का दबाव बनाते नहीं दिख रहा है.ऐसे में पलास विश्वास जैसों को यूपी बचाने के लिए किसी चमत्कार पर निर्भर रहने से भिन्न कोई अन्य उपाय फिलहाल नहीं दिख रहा है.

हमने जबाव में लिखा हैः

Thanks!Dusadh ji!I am also afraid as both bahujan parties tend to fight each other at the cost of the people.If RSS gets UP,it would have majority in Rajya Sabha also.Which means that RSS would be able to deploy Parliament against the people of India.Only the people of Uttar Pradesh have the decisive mandate to defeat the governance of fascism ,free market ethnic cleansing global order,criminal mafia and the racist agenda of Hindutva.Whereas SP as well as BSP both seem to be interested to capture Power aligning with RSS.RSS whitewashed BSP and reduced SP in last Loksabha elections.It is nearly rather a cake walk for the Guillotine to cut throats of the bahujan humanity.UP needs a strong human chain to stop this disaster.If RSS wins UP and gets majority in both the houses of the Parliament,it would replace Indian Constiution drafted by Baba Saheb with Manusmriti.Demonetization is Ram Mandir Movement relauched disinvested in private and foreign capital racist hegemony as well as it is Anti Reservation,Anty Diversity,Anti Equality,Anti Justice,Anti democracy movement relaunched.I have put my stakes on the great hearts and minds of the people of Uttar Pradesh where I was born and brought up.I was born in Uttar Pradesh only for which I have sustained my spinal chord,heart and mind intact though bleeding very very badly.UP has done so many things for this nation and its people in history and I hope against hope that UP might repeat the history.


महत्वपूर्ण खबरें और आलेख आरएसएस के सबसे बड़े हथियार बनकर तेजी से उभर रहे हैं अखिलेश तो मीडिया उन्हें भविष्य का नेता बनाने में लगा है…

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कत्ल हुए ख्वाबों का खून आपके हाथों में हैं,ओबामा! दुनिया नहीं बदली,न जाति, धर्म, नस्ल,रंग के नाम नरसंहार थमा है। भारत में जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल हिंदुत्व का सबसे घातक हथियार है,जो अब फासिज्म का राजकाज है।मुक्त बाजार भी वही है। दुनिया यह देख रही है कि भारत ‘हिंदू राष्ट्रवादी उन्माद’ से कैसे निपटता है! ओबामा साहेब,मोदी से दोस्ती और हिलेरी के साथ दुनिया बदलने का ख्वाब बे�

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कत्ल हुए ख्वाबों का खून आपके हाथों में हैं,ओबामा!

दुनिया नहीं बदली,न जाति, धर्म, नस्ल,रंग के नाम नरसंहार थमा है।

भारत में जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल हिंदुत्व का सबसे घातक हथियार है,जो अब फासिज्म का राजकाज है।मुक्त बाजार भी वही है।

दुनिया यह देख रही है कि भारत 'हिंदू राष्ट्रवादी उन्माद'से कैसे निपटता है!

ओबामा साहेब,मोदी से दोस्ती और हिलेरी के साथ दुनिया बदलने का ख्वाब बेमायने हैं।इस धतकरम की वजह से जाते जाते अमेरिका और दुनिया को डोनाल्ड ट्रंप जैसे धुर दक्षिणपंंथी कुक्लाक्सक्लान के नरसंहारी रंगभेदी संस्कृति के हवाले कर गये आप।दुनिया में वर्ण,जाति रंगभेद का माहौल बदला नहीं,आप कह गये।भारत में हिंदुत्व एजंडा और भारत में मनुस्मृति शान बहाल रखने के तंत्र मंत्र यंत्र को मजबूत बनाते हुए आप कैसे डोनाल्ड ट्रंप को रोक सकते थे,सवाल यह है।सवाल यह भी है कि भारत में असहिष्णुता के फासिस्ट राजकाज के साथ नत्थी होकर अमेरिका में फासिज्म को आप कैसे रोक सकते थे?

पलाश विश्वास

कत्ल हुए ख्वाबों का खून आपके हाथों में हैं,ओबामा!

दुनिया नहीं बदली,न जाति,धर्म,नस्ल ,रंग के नाम नरसंहार थमा है।

विदाई भाषण में सबसे गौरतलब रंगभेद पर बाराक ओबामा का बयान है।रंगभेद पर अपने विचार रखते हुए ओबामा ने कहा कि अब स्थिति में काफी सुधार है जैसे कई सालों पहले हालात थे अब वैसे नहीं हैं। हालांकि रंगभेद अभी भी समाज का एक विघटनकारी तत्व है। इसे खत्म करने के लिए लोगों के हृदय परिवर्तन की जरूरत है, सिर्फ कानून से काम नहीं चलेगा।

भारत आजाद होने के बाद,बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर का संविधान लागू हो जाने के बाद,दलितों की सत्ता में ऊपर से नीचे तक भागेदारी के बाद हमारे लोग भी दावा करते हैं कि जाति टूट रही है या फिर जाति नहीं है। हद से हद इतना मानेंगे कि जाति तो है,लेकिन साहेब न अस्पृश्यता है और न रंगभेद कहीं है।

सच यह है कि भारत में जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल हिंदुत्व का सबसे घातक हथियार है,जो अब फासिज्म का राजकाज है।मुक्त बाजार भी वही है।

दुनियाभर के अश्वेतों को उम्मीद थी कि बाराक ओबामा की तख्तपोशी से अश्वेतों की दुनिया बदल जायेगी।मार्टिन लूथर किंग का सपना सच होगा।ओबामा की विदाई के बाद अब साफ हो गया है कि दुनिया बदली नहीं है।दुनिया का सच रंगभेद है।

तैंतालीस अमेरिकी श्वेत राष्ट्रपतियों से बाराक ओबामा कितने अलग हैं,अभी पता नहीं चला है।जाते जाते वे लेकिन कह गये कि सभी आर्थिक संकट को अगर मेहनतकश श्वेत अमेरिकी जनता और अयोग्य अश्वेतों को बीच टकराव मान लिया जाये,तो असल समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता।यही रंगभेद है।

ओबामा ने यह भी कहा कि कुछ लोग जब अपने को दूसरों के मुकाबले ज्यादा अमेरिकी समझते हैं तो समस्या वहां से शुरु होती है।ओबामा ने मान लिया की अमेरिका में रंगभेद अब भी है।रंगभेद अब भी है।हमारी आजादी का सच भी यही है।

यह सच जितना अमेरिका का है,उतना ही बाकी दुनिया का सबसे बड़ा सच है यह।यह भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास भूगोल का सच है जो विज्ञान के विरुद्ध है।

मुक्त बाजार में तकनीक सबसे खास है।तकनीक लेकिन ज्ञान नहीं है।हमने तकनीक सीख ली है और सीख भी रहे हैं।

कहने को जयभीम है।

कहने को नमोबुद्धाय है।

हमारी जिंदगी में न कहीं भीम है और न कहीं बुद्ध है।

हमारी जिंदगी अब भीम ऐप है,जिसमें भीम कहीं नहीं है।हमारी जिंदगी मुक्त बाजार है,जिसमें मुक्ति कहीं नहीं है गुलामी के सिवाय।गुलामगिरि इकलौता सच है।

दिलोदिमाग में गहराई तक बिंधा है जाति,अस्पृश्यता और रंगभेद का त्रिशुल।जो हमारा धर्म है,हमारा कर्म है।कर्मफल है।नियति है।सशरीर स्वर्गवास है।राजनीति वही।

गुलामी का टैग लगाये हम आदमजाद नंगे सरेबाजार आजाद घूम रहे हैं। वातानुकूलित दड़बों में फिर हम वही आदमजाद नंगे हैं।लोकतंत्र के मुक्तबाजारी कार्निवाल में भी हमारा मुखौटा हमारी पहचान है,टैग किया नंबर असल है और बाकी फिर हम सारे लोग नंगे हैं और हमें नंगे होने का अहसास भी नहीं है।शर्म काहे की।

इसलिए घर परिवार समाज में कहीं भी संवाद का ,विमर्श का कोई माहौल है नहीं।चौपाल खत्म है खेत खलिहान कब्रिस्तान है।देहात जनपद सन्नाटा है।नगर उपनग महानगर पागल दौड़ है अंधी।हमारे देश में हर कोई खुद को ज्यादा हिंदुस्तानी मानने लगा है इन दिनों और इसमें हर्ज शायद कोई न हो,लेकिन दिक्कत यह है कि हर कोई दूसरे को विदेशी मानने लगा है इन दिनों।

हर दूसरा नागरिक संदिग्ध है।हर आदिवासी माओवादी है।हर तीसरा नागरिक राष्ट्रद्रोही है।देशभक्ति केसरिया सुनामी है।बाकी लोग कतार में मरने को अभिशप्त हैं।याफिर मुठभेड़ में मारे जाने वाले हैं।जो खामोश हैं जरुरत से जियादा,वे भी मारे जायेंगे।चीखने तक की आदत जिन्हें नहीं है।असहिष्णुता का विचित्र लोकतंत्र है।

अस्पृश्यता अब भी जारी है।अब भी भारत में भ्रूण हत्या दहेज हत्या घरेलू हिंसा आम है।स्वच्छता अभियान में थोक शौचालयों का स्वच्छ भारत का विज्ञापन पग पग पर है और लोग सीवर में जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं।सर पर फैखाना ढो रहे हैं।

अमेरिका में रंगभेद सर चढ़कर बोल रहा है इन दिनों और मारे यहां जाति व्यवस्था  के तहत हर किसी के पांवों के नीचे दबी इंसानियत अस्पृश्य है।रंगभेद से ज्यादा खतरनाक है यह जाति,जिसे मनुस्मृति शासन बहाल करके और मजबूत बनाने की राजनीति में हम सभी कमोबेश शामिल हैं।

विज्ञान और तकनीक जाहिर है कि हमें समता न्याय सहिष्णुता का पाठ समझाने में नाकाफी है उसीतरह ,जैसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र में रंगभेद की संस्कृति उसकी आधुनिकता है और हमारे यहां सारा का सारा उत्तर आधुनिक विमर्श और उसका जादुई यथार्थ ज्ञान विज्ञान ,तकनीक वंचितों, दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के विरुद्ध है।असहिष्णुता,असमता,अन्याय और अत्याचार हमारे लोकतंत्र के विविध आयाम है और बहुलता के खिलाफ अविराम युद्ध है विधर्मियों के खिलाफ खुल्ला युद्ध,सैन्यतंत्र जो अमेरिका का भी सच है।इसलिए बाराक ओबामा की विदाई का तात्पर्य भारतीय संदर्भ में समझना अनिवार्य है।

यूपी में दंगल के मध्य नोटबंदी के नरसंहार कार्यक्रम को अंजाम देने के बाद जब अमेरिकी मीडिया भी इसे भारतीय जनता के खिलाफ सत्यानाश का कार्यक्रम बता रहा है,जब विकास दर घट रहा है तेजी से और भारत भुखमरी,बेरोजगारी और मंदी के रूबरू लगातार हिंदुत्व के शिकंजे में फंसता जा रहा है,तब अमेरिकी अश्वेत राष्ट्रपति की विदाई के वक्तभारत के बारे में अमेरिकी नजरिया क्या है,गौरतलब है।एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि अगले पांच साल में भारत की ग्रोथ सबसे तेज रहेगी, लेकिन दुनिया यह भी देख रही है कि वह 'हिंदू राष्ट्रवादी उन्माद'से कैसे निपटता है, जिसके चलते अल्पसंख्यकों के साथ तनाव बढ़ रहा है।

हमारे समय के प्रतिनिधि कवि मंगलेश डबराल ने इस संकट पर बेहद प्रासंगिक टिप्पणी की हैः

आप कहाँ से आ रहे हैं?--फेसबुक से.

आप कहाँ रहते हैं?--फेसबुक पर.

आप का जन्म कहाँ हुआ?--फेसबुक पर.

आप कहाँ जायेंगे?--फेसबुक पर.

आप कहाँ के नागरिक हैं?--फेसबुक के.

गौरतलब है कि विश्व के महान धर्मों के मानने वालों में यहूदी, पारसी और हिन्दू अन्य धर्मावलंबियों को अपनी ओर आकृष्ट करके उनका धर्म बदलने में कोई रुचि नहीं रखते। लेकिन दुनिया में संभवतः हिन्दू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो अपने मानने वालों के एक बहुत बड़े समुदाय को अपने से दूर ठेलने की हरचंद कोशिश करता है और उन्हें अपने मंदिरों में न प्रवेश करने की इजाजत देता है, न देवताओं की पूजा करने की।

अबाध पूंजी की तरह मुक्त बाजार की गुलामी का यह सबसे बड़ा सच है कि अस्पृश्यता का राजकाज है और रंगभेद बेलगाम है।रंगभेदी फासिज्म संस्कृति है।

मुक्तबाजार में संवाद नहीं है।हर कोई नरसिस महान है।आत्ममुग्ध।अपना फोटो,अपना अलबम,अपना परिवार,अपना यश ,अपना ऐश्वर्य यही है दुनिया फेसबुक नागरिकों की।मंकी बातें कह दीं,लेकिन पलटकर कौन क्या कह रहा है,दूसरा पक्ष क्या है,इसे सुनने ,देखने,पढ़ने की कतई कोई जरुरत नहीं है।लाइक करके छोड़ दीजिये और बाकी कुछभी सोचने समझने की कोई जरुरत नहीं है।

घर परिवार समाज में संवादहीनता का सच है फेसबुक,उसके बाहर की दुनिया से किसी को कोई मतलब नहीं है क्योंकि वह दुनिया मुक्तबाजार है।जहां समता, न्याय, प्रेम, भ्रातृत्व,दांपत्य,परिवार,समाज की कोई जगह नहीं है।बाकी अमूर्त देश है।

इस्तेमाल करो,फेंक दो।स्मृतियों का कोई मोल नहीं है।संबंधों का कोई भाव नहीं है।न उत्पादन है और न उत्पादन संबंध है।बाजार है।कैशलैस डिजिटलहै।तकनीक है।तकनीक बोल रही है और इंसानियत मर रही है।इतिहास मर रहा है और पुनरूत्थान हो रहा है।लोकतंत्र खत्म है और नरसिस महान तानाशाह है।राजकाज फासिज्म है।

2008 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान हमने याहू ग्रुप के अलावा ब्लागिंग शुऱु कर दी थी।तब हम हिंदी में नेट पर लिक नहीं पा रहे थे और गुगल आया नहीं था।हाटमेल,याहू मेल,सिफी और इंडिया टाइम्स,रेडिफ का जमाना था।अंग्रेजी में ही लिखना होता था।समयांतर में तब हम नियमित लिख रहे थे बरसों से।महीनेभर इंतजार रहता था किसी भी मुद्दे पर लिखने छपने का।थोड़ा बहुत इधर उधर छप उप जाता था।तबसे विकास सिर्फ तकनीक का हुआ है।बाकी सबकुछ सत्यानाश है।निजीकरण,ग्लोबीकरण उदारीकरण विनिवेश का जादुई यथार्थ है।

मीडिया तब भी इतना कारपोरेट और पालतू न था।देश भर में आना जाना था। बाराक ओबामा का हमने दुनियाभर में खुलकर समर्थन किया था।

हमारे ब्लाग नंदीग्राम यूनाइटेड में बाकायदा विजेट लगा था अमेरिकी चुनाव के अपडेट साथ ओबामा के समर्थन की अपील के साथ।

शिकागो में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीतने के बाद ओबामा की आवाज में सिर्फ अमेरिका के ख्वाब नहीं थे,रंगभेद,जाति व्यवस्था,भेदभाव और असहिष्णुता के खिलाफ विश्वव्यापी बदलाव के सुनहले दिनों की उम्मीदें थीं।

वायदे के मुताबिक इराक और अफगानिस्तान के तेल कुओं से अमेरिकी सेना को निकालने का काम ओबामा ने अमेरिकी हितों के मुताबिक बखूब कर दिखाया।2008 की भयंकर मंदी से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को पटरी  पर लाने के काम में उनने व्हाइट हाउस में आठ साल बीता दिये।जायनी वर्चस्व के खिलाफ वे वैसे ही नहीं बोले जैसे अनुसूचितों,पिछड़ों,सिखों,ईसाइयों और मुसलमानों के चुने हुए लोग मूक वधिर हैं।

ओबामा की विदाई के बाद सवाल यह बिना जबाव का रह गया है कि अश्वेतों की अछूतों को समानता और न्याय दिलाने के ख्वाबों का क्या हुआ।ओबामा ने कहा,वी कैन,वी डिड।चुनाव जीतने और पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने के बाद उन्हेोंने क्या किया,यह पहेली अनसुलझी है।

भारत में गुजरात नरसंहार में अभियुक्त को क्लीन चिट देकर उनसे अंतरंगता के सिवाय भारतीय उपमहाद्वीप को उनके राजकाज से आखिर क्या हासिल हुआ?

अमेरिकी युद्धक अर्थव्यवस्था को बदलने और अमेरिकी राष्ट्र और सत्ता प्रतिष्ठान पर जायनी वर्चस्व को रोकने में ओबामा सिरे से नाकाम रहे।

पहले कार्यकाल में उनने इजराइल की ओर से अमेरिकी विरोधी,प्रकृति विरोधी मनुष्यता विरोधी मैडम हिलेरी क्लिंटन को विदेश मंत्री बनाया तो दूसरे कार्यकाल में उनके एनडोर्स मेंट से ही हिलेरी डेमोक्रेट पार्टी की राष्ट्रपति उम्मीदवार बनीं।

नतीजा अब इतिहास है।अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी क्लिंटन की हार के बाद, द वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा था , 'जिन 700 काउंटियों ने ओबामा का समर्थन करके उन्हें राष्ट्रपति बनाया, उनमें से एक तिहाई डोनाल्ड ट्रंप के खेमे में चले गए। ट्रंप ने उन 207 काउंटियों में से 194 का समर्थन हासिल किया, जिन्होंने या तो 2008 या फिर 2012 में ओबामा का समर्थन किया था'। इसकी तुलना में उन 2200 काउंटियों में जिन्होंने कभी ओबामा का समर्थन नही किया, हिलेरी क्लिंटन को सिर्फ छह का साथ मिल सका। यानी ट्रंप के खेमे से सिर्फ 0.3 फीसद वोट हिलेरी के खाते में आ सके।आप आठ साल तक व्हाइट हाउस में क्या कर रहे थे कि ट्रंप के हक में यह नौबत आ गयी?

आठ साल तक फर्स्ट लेडी रही मिशेल ओबामा की विदाई भाषण में अमेरिका में असहिष्णुता की जो कयामती फिजां बेपर्दा हुई,वह सिर्फ अमेरिका का संकट नहीं है क्योंकि दुनिया कतई बदली नहीं है और न मार्टिन लूथर किंग के ख्वाबों को अंजाम तक पहुंचाने का कोई काम हुआ है।जैसे आजाद भारत में बाबा साहेब अंबेडकर का मिशन है।

युद्धक अर्थव्यवस्था होने की वजह से अमेरिकी जनता की तकलीफें ,उनकी गरीबी और बेरोजगारी में निरंतर इजाफा हुआ है।यह संकट 2008 की मंदी की निरंतरता ही कही जानी चाहिए।दूसरी तरफ यह संकट अब विश्वव्यापी है क्योंकि दुनियाभर की सरकारें,अर्थव्यवस्थाएं व्हाइट हाउस और पेंटागन से नत्थी हैं।

इस पर तुर्रा यह कि भारत में भक्त मीडिया का प्रचार ढाक डोल के साथ यह है कि व्हाइट हाउस से विदाई के बाद भी ओबामा और मोदी के बीच हाटलाइन बना रहेगा।

ओबामा साहेब,मोदी से दोस्ती और हिलेरी के साथ दुनिया बदलने का ख्वाब बेमायने हैं।इस धतकरम की वजह से जाते जाते अमेरिका और दुनिया को डोनाल्ड ट्रंप जैसे धुर दक्षिणपंंथी कुक्लाक्सक्लान के नरसंहारी रंगभेदी संस्कृति के हवाले कर गये आप।दुनिया में वर्ण,जाति रंगभेद का माहौल बदला नहीं,यह भी आप कह गये।

भारत में हिंदुत्व एजंडा और भारत में मनुस्मृति शासन बहाल रखने के तंत्र मंत्र यंत्र को मजबूत बनाते हुए आप कैसे डोनाल्ड ट्रंप को रोक सकते थे,सवाल यह है।

सवाल यह भी है कि भारत और बाकी दुनिया में असहिष्णुता के फासिस्ट राजकाज के साथ नत्थी होकर अमेरिका में फासिज्म को आप कैसे रोक सकते थे?

गौरतलब है कि आठ साल तक अमेरिका के राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा ने आज अपने आखिरी संबोधन में भी महिलाओं, LGBT कम्युनिटी और मुसलमानों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाने के आह्वान के साथ ख़त्म की। ओबामा की ये स्पीच 'Yes We Can' के उसी नारे के साथ ख़त्म हुआ जिससे उनके पहले कार्यकाल के चुनाव प्रचार की शुरूआत हुई थी। ओबामा ने लोगों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा- "मैंने रोज आपसे सीखा। आप लोगों ने ही मुझे एक अच्छा इंसान और एक बेहतर प्रेसिडेंट बनाया।" बता दें कि उनका कार्यकाल 20 जनवरी को खत्म हो रहा है। इसी दिन डोनाल्ड ट्रम्प नए प्रेसिडेंट के रूप में शपथ लेंगे।

उन्होंने कहा, "हर पैमाने पर अमेरिका आज आठ साल पहले की तुलना में और बेहतर और मजबूत हुआ है।" उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में हारने वाली अपनी डेमोक्रेटिक पार्टी के मनोबल को बढ़ाने की कोशिश में कहा कि बदलाव लाने की अपनी क्षमता को कभी कम ना आंके। इसका समापन उन्होंने अपने चिरपरिचित वाक्य 'यस वी कैन' (हां, हम कर सकते हैं) से किया।

ओबामा ने स्पीच में कई और खास बातें कही थी। उन्होंने कहा था कि अमेरिका बेहतर और मजबूत बना है। पिछले आठ साल में एक भी आतंकी हमला नहीं हुआ।सीरिया संकट और  तेलयुद्ध के साथ दुनियाभर में आतंकवाद के निर्यात की वजह से दुनियाभर में युद्ध और शरणार्थी संकट के बारे में जाहिर है कि उन्होंने कुछ नहीं कहा। हालांकि उन्होंने कहा कि बोस्टन और ऑरलैंडो हमें याद दिलाता है कि कट्टरता कितनी खतरनाक हो सकती है।

उन्होंने अमेरिकी चुनाव में रूस के हस्तक्षेप के आरोपों के बीच दावा किया कि अमेरिकी एजेंसियों पहले से कहीं अधिक प्रभावी हैं। फिर उन्होंने दुनिया से फिर वायदा किया कि आईएसआईएस खत्म होगा।कड़ी चेतावनी दी है कि अमेरिका के लिए जो भी खतरा पैदा करेगा, वो सुरक्षित नहीं रहेगा।अमेरिकी सैन्य उपस्थिति और अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप के इतिहास के मद्देनजर,खासतौर पर भारत अमेरिका परमाणु संधि और युद्धक साझेदारी के मद्देनजर भारत के लिए भी यह बयान गौरतलब है जो सीधे तौर पर खुल्ला युद्ध का ऐलान है और ट्रंप के या मोदी के युद्धोन्मादी बयानों से कहीं भी अलग नहीं है। गौर करें,ओबामा ने कहा है कि ओसामा बिन लादेन समेत हजारों आतंकियों को हमने मार गिराया है।

भले ही अमेरिका में बहुलता और सहिष्णुता भारत की तरह गंभीर खतरे में है और मिशेल ओबामा ने अपने विदाई भाषण में इसे बेहतर ढंग से इसे रेखांकित भी किया है,अपनी स्पीच में ओबामा ने कहाः मैं मुस्लिम अमेरिकियों के खिलाफ भेदभाव को अस्वीकार करता हूं। मुसलमान भी उतने देशभक्त हैं, जितने हम।ओबामासाहेब आपसे बेहतर कोई नहीं जानता कि आप कितना बड़ा सफेद झूठ बोल रहे हैं।

ओबामा ने कहा कि मुस्लिमों के बारे में कही जा रही बातें गलत हैं। अमेरिका में रहने वाले मुस्लिम भी हमारे जितने ही देशभक्त हैं। उन पर किसी तरह का शक करना गलत है। इसी तरह से महिलाओं और समलैंगिकों इत्यादि के बारे में दुराभाव रखना भी गलत है। अपने चुनाव की चर्चा करते हुए ओबामा ने कहा कि तब विभाजनकारी ताकतें अमेरिका में अश्वेत राष्ट्रपति का लोगों को भय दिखाती थीं। लेकिन उनके चुने जाने के बाद वह भय खत्म हो गया। समाज में ज्यादा एकजुटता और मजबूती आई। वैसा कुछ नहीं हुआ-जिसके लिए देश को डराया जाता था।

बीबीसी के मुताबिकःआठ साल पहले अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा बदलाव और उम्मीद का संदेश लेकर आए थे। आठ साल के बाद अब हवा बदल चुकी है. अमरीका में अब आपसी दरारें और गहरी हो गई हैं। ओबामा के भाषण में बातें तो उम्मीद की, एक बेहतर भविष्य की थी लेकिन काफ़ी हद तक आनेवाले दिनों के लिए एक चिंता की झलक भी थी। शायद इसलिए किसी का नाम लिए बगैर, किसी पर उंगली उठाए बगैर ओबामा ने जनता से अमरीकी लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा के लिए सजग रहने की अपील की। आठ बरस पहले ओबामा ने जहां से शुरुआत की थी, वहीं शिकागो में ये विदाई भाषण दिया।

ओबामा ने कहा कि अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण अमेरिका 'ने महामंदी के दौरान फासीवाद के प्रलोभन और अत्याचार का विरोध किया और दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अन्य लोकतंत्रों के साथ मिलकर एक व्यवस्था कायम की। ऐसी व्यवस्था, जो सिर्फ सैन्य ताकत या राष्ट्रीय संबद्धता पर नहीं बल्कि सिद्धांतों, कानून के शासन, मानवाधिकारों, धर्म, भाषण, एकत्र होने की स्वतंत्रताओं और स्वतंत्र प्रेस पर आधारित थी।' अपने गृहनगर से जनता को संबोधित करते हुए ओबामा ने कहा, 'उस व्यवस्था के सामने अब चुनौती पेश की जा रही है।

फिरभी बेहतर है कि शिकागो में अमेरिका के राष्ट्रपति पद से विदाई लेते हुए ओबामा काफी भावुक दिखे। उन्होंने कहा, 'अपने घर आकर अच्छा लग रहा है। मैं और मिशेल वापस वहीं लौटना चाहते थे, जहां से यह सब शुरू हुआ था। मिशेल 25 सालों से मेरी पत्नी ही नहीं, मेरी अच्छी दोस्त भी हैं। उनके साथ के लिए शुक्रिया। ट्रंप को सत्ता का यह शांतिपूर्वक हस्तांतरण है। मैं अमेरिकी नागरिकों की इच्छा के अनुसार 4 साल और पद नहीं संभाल सकता। अमेरिका के लोगों को बदलाव लाने के लिए अपनी क्षमता में विश्वास रखना होगा। अपनी फेयरवेल स्पीच में ओबामा ने मिशेल के लिए कहा कि मिशेल, पिछले पच्चीस सालों से आप न केवल मेरी पत्नी और मेरे बच्चों की मां है, बल्कि मेरी सबसे अच्छी दोस्त है। ओबामा ने अपनी बेटियों मालिया और साशा से कहा कि अद्भुत हैं। भाषण के दौरान बराक ओबामा भावुक हो गये। यह देख उनकी बेटी और पत्नी मिशेल की आंखों में आंसू आ गए।

ओबामा ने अपने विदाई भाषण में कहा कि जब हम भय के सामने झुक जाते हैं तो लोकतंत्र प्रभावित हो सकता है। इसलिए हमें नागरिकों के रूप में बाहरी आक्रमण को लेकर सतर्क रहना चाहिए। हमें अपने उन मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए जिनकी वजह से हम वर्तमान दौर में पहुंचे हैं।

अमेरिका में ट्रंप का अश्वेतों के खिलाफ जिहाद अब अमेरिकी सरकार का राजकाज है तो भारत में हिंदुत्व का पुनरूत्थान है।मनुष्यता के खिलाफ दोनों इजराइल के साथ युद्ध पार्टनर है।

भारत में यह युद्ध हड़प्पा औरर मोहनजोदोड़ो के पतन के बाद लगातार जारी है।अब देश आजाद है। बाबासाहेब के सौजन्य से संविधान बाकायदा धम्म प्रवर्तन है।असल में बौद्धमय भारत का वास्तविक अवसान ब्राह्मणधर्म का पुनरूत्थान है।समता और न्याय के उल्टे भारतीय सत्ता वर्ग वंचित मेहनतकशों को अछूत बताकर इनकी छाया से भी दूर रहने की कोशिश करता है और इस क्रम में उन्हें बुनियादी मानवीय अधिकारों से पूरी तरह वंचित करके लगभग जानवरों जैसी स्थिति में रहने के लिए मजबूर करता है।उसको मिट्टी में मिलाकर उसका वजूद खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ता।यही रामराज्य है।

कहने की जरुरत नहीं है कि संसद में कानून बनाने से हजारों सालों से चली आ रही मानसिकता नहीं बदली है।बदल भी नहीं सकती क्योंकि संविधान के बदले अब भी मनुस्मृति चल रही है क्योंकि वह पवित्र धर्म है और बहुसंख्य आम जनता की वध्यनियति है। इसलिए आज भी दलित द्वारा पकाए खाने को स्कूल के बच्चों द्वारा न खाने, दलितों को उनकी औकात बताने के लिए उन्हें नंगा करके घुमाने, हिंसा और बलात्कार का शिकार बनाने, उनके घर फूंकने और उनकी सामूहिक हत्या करने की घटनाएं होती रहती हैं,क्योकि पितृसत्ता कायम है और द्रोपदी का चीरहरण जारी है।कैशलैस डिजिटल इंडिया में रोज रोज देश के चप्पे चप्पे पर स्त्री आखेट है।बलात्कार सुनामी है।कही आम जनता की सुनवाई नहीं होती,लोकतंत्र है।

हकीकत यह है कि आजादी के लिए हुए संघर्ष के दौरान,उसे भी पहले नवजागरण के दौरान  जो सामाजिक जागरूकता और आधुनिक चेतना पैदा हुई थी, आज उसकी चमक काफी कुछ फीकी पड़ चुकी है।

पुरखों का सारा  करा धरा गुड़ गोबर है।इतिहास विरासत मिथक हैं।मूर्तिपूजा और कर्म कांड से बाहर कोई यथार्थ हर किसी को नामंजूर है।अखंड कीर्तन जारी है।

शंबूक हत्या का सिलसिला जारी है और संविधान में प्रदत्त वंचितों के लिए तमाम रक्षा कवच, अनेक अधिकार,कायदे कानून  केवल कागज पर ही धरे रह गए हैं। उन पर अमल करने में न तो समाज की ही कोई विशेष रुचि है और न ही राष्ट्र की.राष्ट्र अब रामराज्य है।राष्ट्र अब राममंदिर है।जहां बहुजनों का प्रवेश निषिद्ध है।प्रवेशाधिकार मिला तो बहुजन घुसपैठिये विदेशी हैं।इस सत्ता के आतंक में या फिर इस सत्ता के तिलिस्म में रीढ़ देह से गायब है।रगों में खून नहीं जो खौल जाये और इसीलिए पुरखों के नाम मिशन दुकानदारी है और समता न्याय के आंदोलन अब ठंडे पड़ चुके हैं।

मनुस्मृति के तहत जातिव्यवस्था सख्ती से लागू करने की समरसता है।

जाहिर है कि पारंपरिक रूढ़िग्रस्त चेतना की वापसी हो रही है और इसका प्रमाण खाप पंचायत या उस जैसी ही अन्य पारंपरिक सामाजिक संस्थाओं का बढ़ रहा प्रभाव है। ये संस्थाएं और संगठन आधुनिकता के बरक्श परंपरा को खड़ा करके परंपरा के संरक्षण की बात करती हैं क्योंकि उनकी राय में उसके साथ संस्कृति और धर्म का गहरा नाता है।देश की राजनीति और देश की सरकार खाप पंचायत है।

हम अमेरिकी उपनिवेश बनकर सचमुच अमेरिका हो गये हैं।

यहां मोदी हैं तो वहां ट्रंप हैं।

यहां भरा पूरा संघ परिवार है तो वह रिपब्लिकन और कुक्लाक्सक्लान हैं।

अमेरिका का सच यह है कि मुसलमान ,शरणार्थी के खिलाफ नये राष्ट्रपति का जिहाद है और जाते हुए राष्ट्रपति  ने अमेरिकी जनता से अपील की कि अमेरिकी मुसलमानों के खिलाफ किसी प्रकार के भेदभाव को नकार दें।

भारत का भी सच यही है।कोई मुसलमानों के साथ हैं तो कोई मुसलमानों के खिलाफ हैं और जिहाद में कोई कमी नहीं है।आदिवासियों,दलितों,पिछड़ों और स्त्रियों का सच यही है।पक्ष विपक्ष की बातें सिर्फ बातें हैं।सूक्तियां हैं और यथार्त विशुध रंगभेद है।नरसंहार का सिलसिला अंतहीन है।अबाध अस्पृश्यता है।सैन्य राष्ट्र है।

ओबामा ने कहा कि बदलाव तभी होता है जब आम आदमी इससे जुड़ता है। आम आदमी ही बदलाव लाता है। हर रोज मैंने लोगों से कुछ न कुछ सीखा। हमारे देश के निर्माताओं ने हमें अपने सपने पूरे करने के लिए आजादी दी। हमारी सरकार ने यह प्रयास किया कि सबके पास आर्थिक मौका हो। हमने यह भी प्रयास किया कि अमेरिका हर चैलेंज का सामना करने के लिए तैयार रहे।

यह ओबामा का अमेरिकी सपना है और हम भारत में सपनों में सपनों का भारत वही जी रहे हैं।बाकी हमारे हिस्से में भोगे हुए यथार्थ का नर्क है।जिसे हम कहीं भी किसी सूरत में रंगकर्म में, माध्यमों में,विधाओं में,मीडिया में,राजनीति में,साहित्य में,लोक में,कलाओं में कहने तक की हिम्मत नहीं रखते क्योंकि सारा कारोबार रंगबिरंगे सपनों का है और मुफ्त में स्वर्ग का चिटफंड वैभव है।संस्कृति विदेशों में शूटिंग है।फैशन शो है।टीवी की सुर्खियों के यथार्थ में जीने की अंधता सार्वभौम है।यही अंधभक्ति है।

बिना अभिव्यकित का यह मूक वधिर विकलांग लोकतंत्र दिव्यदिव्यांग है।

जिसमें सबसे प्यारी चीज हमारी अपनी जनमजात गुलामी है।गुलामगिरि है।

बाराक ओबामा की विदाई के बाद राष्ट्रपति पद संभालने वाले पूत के पांव पालने में झलकने लगे हैं।अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति पद की जिम्मेदारी संभालने से ठीक 9 दिन पहले प्रेसिडेंट एलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में आर्थिक नीति का खांका रखा। अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने के अपने लक्ष्य का पीछा करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने अर्थव्यवस्था में ऑटो, फॉर्मा और डिफेंस सेक्टर में बड़े बदलावों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इन सभी सेक्टर्स में दुनिया को एक बार फिर अमेरिका की बादशाहत कायम होती दिखाई देगी।इसका मतलब भली भांति समझ लें तो बेहतर।

ट्रस्ट गांधी वादी विचारधारा का आधार है।गांधी वादी नहीं है ट्रंप,लेकिन अमेरिका में प्रसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप अपनी पूरी संपत्ति को ट्रस्ट में शिफ्ट करने की योजना पर काम कर रहे हैं। राष्ट्रपति चुने जाने के बाद अपनी पहली प्रेस वार्ता में ट्रंप ने कहा कि भले अमेरिकी संविधान से उनके ऊपर अपने कारोबार से अलग होने की बाध्यता नहीं है, वह ऐसा महज इसलिए कर रहे हैं जिससे कोई उनपर उंगली न उठा सके। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दोनों बेटों के हवाले ट्रंप समूह को करते हुए कहा कि बतौर कारोबारी वह अपनी कंपनी को बेहतर ढ़ंग से चला सकते हैं और साथ ही अमेरिका की सरकार को चला सकते हैं। लेकिन देश के हितों को आगे रखते हुए वह अपनी कंपनी से नाता पूरी तरह से तोड़ लेंगे।बिजनेसमैन राष्ट्रपति के व्हाइटहाउस से जारी फरमानका अंजाम कैसे भुगतेंगे,यह भी समझ लें।हुक्मउदुली भी असंभव है।

मसलन अब डोनाल्ड ट्रंप का संकेत है कि आने वाले दिनों में अमेरिका किसी अन्य देश को अप्रूवल देने से ज्यादा वजन वह अमेरिका में दवाओं की मैन्यूफैक्चरिंग पर देंगे। ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका दुनिया में सबसे ज्यादा ड्रग्स खरीदता है इसके बावजूद फार्मा सेक्टर में उसका रसूख कम हो रहा है। लिहाजा उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में फार्मा सेक्टर में अमेरिका अक्रामक नीति बना सकता है। गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर भारत इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ रहा है । जहां ग्लोबल इंडस्ट्री में ग्रोथ लगभग 5 फीसदी के आसपास है।आईटी सेक्टर तो सिरे से अमेरिकी आउटसोर्सिंग पर निर्भर है,जिसे सिरे से खत्म करने पर ट्रंप आमादा है।खेती को ख्तम करके जो मुक्तबाजार बनाया है,नोटबंदी के बाद गहराती मंदी के आलम में उसका जलवा बहार अभी बाकी है।परमाणु ऊर्जा से लेकर रक्षा आंतरिक सुरक्षा अमेरिकी है।

गौर करें कि डोनाल्ड ट्रंप ने उन लोगों को चेतावनी दी है जो अमेरिका से बाहर अपना सामान बनाकर वापस अमेरिका में बेचते हैं। ट्रंप ने कहा कि ऐसी कंपनियों पर सीमा शुल्क लगाया जाएगा। ट्रंप ने कहा ऐसी कंपनियों पर भारी सीमा शुल्क लगया जाएगा। उन्होंने कहा अमेरिका में आप अपनी कंपनी स्थानांतरित कर सकते हैं अगर वह अमेरिका के अंदर है तो मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अमेरिका में कई ऐसे स्थान हैं। इससे पहले ट्रंप ने टोयोटा, जनरल मोटर्स जैसी कंपनियों को कारखाने अमेरिका में स्थानांतरित करने को लेकर दबाव बनाया गया था।

गौरतलब है कि अमेरिका और मैक्सिको के बीच तनाव बढ़ने के संकेत मिलने लगे हैं. मैक्सिको के राष्ट्रपति एनरिके पेना नीटो ने साफ़ कर दिया है कि उनका देश अमेरिका द्वारा सीमा पर दीवार बनाए जाने का समर्थन नहीं करता है और वह इसके लिए किसी तरह की वित्तीय सहायता भी नहीं देगा। पेना नीटो ने यह बात डोनाल्ड ट्रंप के बुधवार को आए उस बयान के जवाब में कही है जिसमें ट्रंप ने मैक्सिको की सीमा पर दीवार बनाए जाने की बात दोहराई थी। गुरूवार को मैक्सिको सिटी में देश के राजदूतों को संबोधित करते हुए पेना नीटो ने कहा कि मैक्सिको अपने पड़ोसी देश के साथ बेहतर संबंध चाहता है।

इसके साथ ही निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लेकर आज सनसनीखेज दावे सामने आए जिनमें कहा गया है कि उनको रूस ने कई वर्षों से 'तैयार' किया है। मॉस्को के पास उनको लेकर नितांत व्यक्तिगत सूचना है। वहीं ट्रंप ने इस दावे को खारिज करते हुए तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि यह नाजी जर्मनी में रहने जैसा है। एफबीआई और सीआईए समेत अमेरिका की चार प्रमुख खुफिया एजेंसियों ने ट्रंप और निवर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा के समक्ष पिछले सप्ताह, वर्ष 2016 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में रूसी हस्तक्षेप पर एक रिपोर्ट पेश की थी जिसमें इन आरोपों का जिक्र था।

इस बीच यूएस नैशनल इंटेलिजेंस काउंसिल की ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की इकॉनमी सुस्त पड़ रही है, जबकि भारत की ग्रोथ तेज बनी हुई है। हालांकि, भारत में सामाजिक गैर-बराबरी और धार्मिक टकराव से इकॉनमी पर बुरा असर पड़ सकता है। यह रिपोर्ट चार साल में एक बार आती है।

इसमें बीजेपी सरकार की हिंदुत्व नीति से देश के अंदर और पड़ोसी देशों के साथ टकराव बढ़ने की ओर ध्यान दिलाया गया है। रिपोर्ट में लिखा है, 'भारत की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी हिंदुत्व को सरकारी नीतियों का हिस्सा बनाने को कह रही है। इससे देश में मुस्लिम अल्पसंख्यकों से टकराव बढ़ रहा है। इससे मुस्लिम बहुल पाकिस्तान और बांग्लादेश के साथ भी तनाव बढ़ रहा है।'

अमेरिकी रिपोर्ट में उन महत्वपूर्ण ट्रेंड्स की पहचान की जाती है, जिनका आने वाले 20 वर्षों में दुनिया पर असर पड़ सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि टेक्नॉलजी से दुनिया काफी करीब आ गई है, लेकिन इससे आइडिया और पहचान को लेकर मतभेद बढ़ सकते हैं जिससे पहचान की राजनीति को बढ़ावा मिलेगा। रिपोर्ट में कहा गया है, 'भारत हिंदू राष्ट्रवादियों से कैसे निपटता है और इजरायल धार्मिक कट्टरपंथ के साथ किस तरह से संतुलन बनाता है, इससे भविष्य तय होगा।'रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले वर्षों में आतंकवाद का खतरा बढ़ेगा। इस संदर्भ में भारत में 'हिंसक हिंदुत्व'के अलावा 'उग्र क्रिश्चियनिटी और इस्लाम'का जिक्र किया गया है। सेंट्रल अफ्रीका के देशों में ईसाई धर्म का उग्र चेहरा दिख रहा है। वहां इस्लाम का भी एक ऐसा ही चेहरा है। म्यांमार में उग्र बौद्ध और भारत में उग्र हिंदुत्व है। इससे आतंकवाद को हवा मिलेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवाद और अस्थिरता बनी रहेगी, जबकि भारत छोटे दक्षिण एशियाई देशों को इकनॉमिक ग्रोथ में हिस्सेदार बना सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को पाकिस्तान से रक्षा संबंधी खतरे हो सकते हैं, जो परमाणु हथियार बढ़ा रहा है। वह इनके लिए डिलीवरी प्लैटफॉर्म पर भी तेजी के काम कर रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान टैक्टिकल परमाणु हथियार और समुद्र से मार करने वाली मिसाइलें तैयार कर रहा है। अगर वह समुद्र में परमाणु हथियार तैनात करता है तो उससे पूरे क्षेत्र के लिए सुरक्षा संबंधी खतरा पैदा होगा।

आगे दूसरे विश्वयुद्ध में आखिरकार देखी मंदी है और फिर वही भुखमरी है।

उसके नजारे पर भी तनिक गौर करें।मीडिया से साभार

73 साल पहले बंगाल (मौजूदा बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा) ने अकाल का वो भयानक दौर देखा था, जिसमें करीब 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान दे दी थी। ये सेकंड वर्ल्ड वॉर का दौर था। माना जाता है कि उस वक्त अकाल की वजह अनाज के उत्पादन का घटना था, जबकि बंगाल से लगातार अनाज का एक्सपोर्ट हो रहा था। हालांकि, एक्सपर्ट्स के तर्क इससे अलग हैं। अकाल से ऐसे थे हालात…

राइटर मधुश्री मुखर्जी ने उस अकाल से बच निकले कुछ लोगों को खोज उनसे बातचीत के आधार पर अपनी किताब में लिखा है कि उस वक्त हालात ऐसे थे कि लोग भूख से तड़पते अपने बच्चों को नदी में फेंक रहे थे। न जाने ही कितने लोगों ने ट्रेन के सामने कूदकर अपनी जान दे दी थी। हालात ये थे कि लोग पत्तियां और घास खाकर जिंदा थे। लोगों में सरकार की नीतियों के खिलाफ प्रदर्शन करने का भी दम नहीं बचा था। इस अकाल से वही लोग बचे जो नौकरी की तलाश में कोलकाता (कलकत्ता) चले आए थे या वे महिलाएं जिन्होंने परिवार को पालने के लिए मजबूरी में प्रॉस्टिट्यूशन का पेशा शुरू कर दिया।

अनाज की नहीं थी कोई कमी

ये सिर्फ कोई प्राकृतिक त्रासदी नहीं थी, बल्कि ये इंसानों की बनाई हुई थी। ये सच है कि जनवरी 1943 में आए तूफान ने बंगाल में चावल की फसल को नुकसान पहुंचाया था, लेकिन इसके बावजूद अनाज का प्रोडक्शन घटा नहीं था। इस बारे में लिखने वाले ऑस्ट्रेलियन साइंटिस्ट और सोशल एक्टिविस्ट डॉ. गिडोन पोल्या का मानना है कि बंगाल का अकाल 'मानवनिर्मित होलोकास्ट'था। इसके पीछे अंग्रेज सरकार की नीतियां जिम्मेदार थीं। इस साल बंगाल में अनाज की पैदावार बहुत अच्छी हुई थी, लेकिन अंग्रेजों ने मुनाफे के लिए भारी मात्रा में अनाज ब्रिटेन भेजना शुरू कर दिया और इसी के चलते बंगाल में अनाज की कमी हुई।

रोकी जा सकती थी त्रासदी

जाने-माने अर्थशात्री अमर्त्य सेन का भी मानना है कि 1943 में अनाज के प्रोडक्शन में कोई खास कमी नहीं आई थी, बल्कि 1941 की तुलना में प्रोडक्शन पहले से ज्यादा था। इसके लिए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल को सबसे ज्यादा जिम्मेदार बताया जाता है, जिन्होंने स्थिति से वाकिफ होने के बाद भी अमेरिका और कनाडा के इमरजेंसी फूड सप्लाई के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। इन्होंने प्रभावित राज्यों की मदद की पेशकश की थी। जानकारों का कहना है कि चर्चिल अगर चाहते तो इस त्रासदी को रोका जा सकता था। वहीं, बर्मा (मौजूदा म्यांमार) पर जापान के हमले को भी इसकी वजह माना जाता है। कहा जाता है कि जापान के हमले के चलते बर्मा से भारत में चावल की सप्लाई बंद हो गई थी।


महत्वपूर्ण खबरें और आलेख आ गए अच्छे दिन, खादी उद्योग के कैलेंडर व डायरी से गांधीजी गायब, मोदी विराजमान

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तस्वीर को लेकर हंगामा बरपा है कत्लेआम से बेपरवाह सियासत है असल मकसद संविधान के बदले मनुस्मृति विधान लागू करने का है! संभव है कि भीम ऐप के बाद शायद नोट पर गांधी को हटाकर मोदी के बजाय बाबासाहेब की तस्वीर लगा दी जाये! पलाश विश्वास

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तस्वीर को लेकर हंगामा बरपा है

कत्लेआम से बेपरवाह सियासत है

असल मकसद संविधान के बदले मनुस्मृति विधान लागू करने का है!

संभव है कि भीम ऐप के बाद शायद नोट पर गांधी को हटाकर मोदी के बजाय बाबासाहेब की तस्वीर लगा दी जाये!

पलाश विश्वास

याद करें कि नोटबंदी की शुरुआत में ही हमने लिखा था कि नोटबंदी का मकसद नोट से गांधी और अशोक चक्र हटाना है।

हमारे हिसाब से आता जाता कुछ नहीं है।गांधी की तस्वीर को लेकर जो तीखी प्रतिक्रिया आ रही हैं,जनविरोधी नीतियों के बारे में कोई प्रतिक्रिया सिरे से गायब है।

तस्वीर को लेकर हंगामा बरपा है

कत्लेआम से बेपरवाह सियासत है

बैंक से कैश निकालने पर टैक्स लगाने की योजना नोटबंदी का अगला कैसलैस डिजिटल चरण है जबकि ट्रंप सुनामी से तकनीक का हवा हवाई किला ध्वस्त होने को है।इसके साथ ही तमाम कार्ड खारिज करके आधार पहचान के जरिये लेनदेन लागू करने का तुगलकी फरमान है,जिसपर राजनीति आधार योजना सन्नाटा दोहरा रही है।

सीएनबीसी-आवाज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम को लागू करने में आ रही बड़ी अड़चन दूर हो गई है। आधार बेस्ड फिंगर प्रिंट स्कैनर के जरिये पेमेंट लेने वाले व्यापारियों को 0.25-1 फीसदी तक का कमीशन मिलेगा। यूआईडीएआई के मुताबिक आधार बेस्ड ट्रांजैक्शन अपनाने के लिए दुकानदारों को कोई चार्ज नहीं देना पड़ेगा, ना ही उन्हें पीओएस मशीन का खर्च लगेगा।सूत्रों के मुताबिक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, आईडीएफसी बैंक और इंडसइंड बैंक ने आधार पर आधारित पेमेंट सिस्टम तैयार कर लिया है जबकि आईसीआईसीआई बैंक और पीएनबी समेत 11 और बैंक भी इसकी तैयारी में लगे हैं। आधार सिस्टम के जरिये पेमेंट करने के लिए सिर्फ आधार नंबर और बैंक चुनने की जरूरत होगी।

सरकारी पेमेंट एप्लिकेशन भीम को मिल रहे बढ़िया रिस्पांस से उत्साहित सरकार आधार पे सिस्टम को जल्द से जल्द लागू करना चाहती है। सीएनबीसी-आवाज़ को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक आधार पे सिस्टम को अलग से नहीं बल्कि भीम के प्लेटफॉर्म पर ही इस महीने के आखिर तक लॉन्च किया जाएगा।

जब डिजिटल कैशलैस के लिए भीमऐप है तो गांधी को हटाकर अंबेडकर की तस्वीर लगाकर संघ परिवार को बहुजनों का सफाया करने से कौन रोकेगा?

बहुजनों को केसरिया फौज बनाने के लिए जैसे कैशलैस डिजिटल इंडिया में भीमऐप लांच किया गया है,वैसे ही बहुत संभव है कि जब गांधी के नाम वोट बैंक या चुनावी समीकरण में कुछ भी बनता बिगड़ता नहीं है तो भीम ऐप के बाद शायद नोट पर गांधी को हटाकर मोदी के बजाय बाबासाहेब की तस्वीर लगा दी जाये।

बाबासाहेब के मंदिर भी बन रहे हैं।बाबासाहेब गांधी के बदले नोट पर छप भी जाये तो गांधी और अशोकचक्र से छेड़छाड़ का मतलब भारतीय संविधान के बदले मनुस्मृति विधान लागू करने का आरएसएस का एजंडा ग्लोबल कारपोरट हिंदुत्व का है।राजनीतिक विरासत की इस लड़ाई पर नजर डालें तो नेहरू, इंदिरा की विरासत को दरकिनार करने की कोशिश नजर आती है। मोदी सरकार ने अपनी इस निति के तहत आंबेडकर पर जोरशोर से कार्यक्रम किए। वल्लभ भाई पटेल की याद में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की योजना है। बीजेपी का जेपी की जयंती बड़े पैमाने पर मनाने फैसला है। नेहरू संग्रहालय की काया-पलट करने की योजना है।

बंगाल में भी बहुजनों का केसरिया हिस्सा इस उम्मीद में है कि यूपी जीतने के बाद नोटों से गांधी हट जायेंगे और वहां बाबासाहेब विराजमान होंगे।बहुजनों को गांधी से वैसे ही एलर्जी है जैसे वामपक्ष को अंबेडकर से अलर्जी रही है।

बंगाल में बहुजनों के दिमाग को दही बनाने के लिए मोहन भागवत पधारे हैं।

गांधी के बदले नोट पर अंबेडकर छापने की बात को अबतक हम मजाक समझ रहे थे।यूपी में यह ख्वाब चालू है या नहीं,हम नहीं जानते।मगर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा नेता अनिल विज के बयान से साफ जाहिर है कि नोट से गांधी की तस्वीर हटने ही वाली है,चाहे नई तस्वीर मोदी की हो या अंबेडकर की।

अंबेडकर की तस्वीर लगती है तो बहुजन वोटबैंक का बड़ा हिस्सा एक झटके से केसरिया हो जाने वाला है।संघ सरकार के मंत्री यूं ही कोई शगूफा छोड़ते नहीं है।

हर शगूफा का एक मकसद होता है।मोदी की तस्वीर लगे या न लगे,साफ है कि करेंसी से गांधी हटेंगे और उसके बाद अशोकचक्र भी खारिज होगा।फिर हिंदू राष्ट्र के लिए सबसे बड़े सरदर्द भारत के संविधान का हिसाब किताब बराबर किया जाना है।जिसके लिए संघ परिवार ने नोटबंदी का गेमचेंजर चलाया हुआ  है और तुरुप का पत्ता समाजवादी सत्ता विमर्श है।

महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने एकदम सही कहा है कि भ्रष्ट नेता गलत कामों में जिस तरह से रुपयों का इस्तेमाल करते हैं उससे तो अच्छा ही है कि अगर नोटों से बापू की तस्वीर हटा दी जाए।उनकी यह टिप्पणी हरियाणा के उन्हीं स्वास्थ्य मंत्री और भाजपा नेता अनिल विज उस विवादित बयान पर आई है, जिसमें उन्होंने आज कहा है कि जब से महात्मा गांधी की फोटो नोट पर लगी है, तब से नोट की कीमत गिरनी शुरू हो गई।

गौरतलब है कि विज ने अपने बयान में कहा कि महात्मा गांधी का नाम खादी से जुड़ने के कारण इसकी दुर्गति हुई। खादी के बाद अब धीरे-धीरे नोटों से भी गांधी जी की तस्वीर हट जाएगी।उन्होंने मोदी को गांधी से बड़ा ब्रांड बताते हुए खादी से हटाने के बाद नोट से बी गांधी को हटाकर मोदी की तस्वीर लगाने की बात भी कह दी है।विज ने कहा है कि खादी के बाद अब धीरे-धीरे नोटों पर से भी गांधी जी की तस्वीर हटाई जाएगी। उन्होंने कहा कि गांधी जी के चलते रूपये की कीमत गिर रही है। साथ ही विज ने कहा कि गांधी के नाम से खादी पेटेंट नहीं है बल्कि खादी के साथ गांधी का नाम जुड़ने से खादी डूब गई है। वहीं उन्होंने कहा है कि खादी के लिए पीएम मोदी ज्यादा बड़े ब्रैंड एंबेसडर हैं।हालांकि उनके बयान से भाजपा ने किनारा कर लिया है और उसे उनका व्यक्तिगत बयान करार दिया। विवाद बढ़ता देख विज ने अपना बयान वापस ले लिया।

मीडिया केमुताबिक खादी ग्रामोद्योग के कैलेंडर में महात्मा गांधी की जगह पीएम मोदी की तस्वीर लगाने पर केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र ने सफाई दी है। कलराज मिश्र ने कहा है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि केलेंडर में पीएम का फोटो कैसे लगी। गांधी की बराबरी कोई नहीं कर सकता। इधर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि मोदी की तस्वीर को लेकर बेकार का विवाद पैदा किया जा रहा है। बीजेपी की सफाई है कि कैलेंडर पर गांधी की तस्वीर 7 बार पहले भी नहीं छपी है। पीएम मोदी ने खादी को बढ़ावा दिया है। पीएम ने खादी फॉर नेशन, खादी फॉर फैशन का नारा दिया। यूपीए के दौर में खादी की बिक्री में औसतन 5 फीसदी बढ़ी जबकि मोदी सरकार आने के बाद बिक्री 35 फीसदी बढ़ी है। मोदी सरकार गांधी दर्शन को घर-घर पहुंचा रही है।

इससे पहले तुषार गांधी ने खादी ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के डायरी-कैलेंडर विवाद के बीच शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा। उन्होंने ट्वीट कर कहा, "प्रधानमंत्री पॉलीवस्त्रों के प्रतीक हैं जबकि बापू ने अपने बकिंघम पैलेस के दौरे के दौरान खादी पहनी थी न कि 10 लाख रुपये का सूट।"

उन्होंने केवीआईसी को बंद करने की मांग करते हुए कहा, "हाथ में चरखा, दिल में नाथूराम। टीवी पर ईंट का जवाब पत्थर से देने में कोई बुराई नहीं है।"

तुषार गांधी अपने ट्वीट में बापू की 1931 की ब्रिटेन यात्रा का हवाला दे रहे थे जब उन्होंने ब्रिटेन के सम्राट जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी से मुलाकात की थी उन्होंने खादी की धोती और शॉल पहन रखा था।मोदी ने इसकी तुलना में भारत में राष्ट्रपति बराक ओबामा की यात्रा के दौरान विवादास्पद 10 लाख रुपये का सूट पहना था।

तुषार ने इससे पहले ट्वीट कर कहा था, "तेरा चरखा ले गया चोर, सुन ले ये पैगाम, मेरी चिट्ठी तेरे नाम। पहले, 200 रुपये के नोट पर बापू की तस्वीर गायब हो गई, अब वह केवीआईसी की डायरी और कैलेंडर से नदारद हैं। उनकी जगह 10 लाख रुपये का सूट पहनने वाले प्यारे प्रधानमंत्री की तस्वीर लगी है।"

गौरतलब है कि केवीआईसी के 2017 के डायरी और कैलेंडर पर गांधी की जगह मोदी की तस्वीर छापे जाने पर सरकार और केवीआईसी को तमाम राजनीतिक दलों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।

हम नोटबंदी के बाद भुखमरी,बेरोजगारी और मंदी के खतरों से आपको लगातार आगाह करते रहे हैं।संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) ने भी बेरोजगारी बढ़ने का अंदेशा जता दिया है।अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली को हिंदुत्व के ग्लोबल एजंडे और मनुस्मृति संविधान के लिए जिस तरह दांव पर लगाया गया है,रोजगार खोकर भारत की जनता को उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।

2017-2018 के बीच भारत में बेरोजगारी में मामूली इजाफा हो सकता है और रोजगार सृजन में बाधा आने के संकेत हैं। संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई.एल.ओ.) ने 2017 में वैश्विक रोजगार एवं सामाजिक दृष्टिकोण पर गुरुवार को अपनी रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के अनुसार रोजगार जरूरतों के कारण आर्थिक विकास पिछड़ता प्रतीत हो रहा है और इसमें पूरे 2017 के दौरान बेरोजगारी बढऩे तथा सामाजिक असमानता की स्थिति के और बिगड़ने की आशंका जताई गई है। वर्ष 2017 और 2018 में भारत में रोजगार सृजन की गतिविधियों के गति पकडऩे की संभावना नहीं है क्योंकि इस दौरान धीरे-धीरे बेरोजगारी बढ़ेगी और प्रतिशत के संदर्भ में इसमें गतिहीनता दिखाई देगी।

भारतीय पेशेवरों को लगेगा झटका

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की इमिग्रेशन पॉलिसी में बदलाव के संकेत का असर उनका टर्म शुरू होने के पहले दिन से ही दिखने वाला है। इससे सबसे ज्यादा झटका अमरीका में जॉब्स की मंशा रखने वाले भारतीयों को लगेगा। ट्रम्प 20 जनवरी को अमरीका के राष्ट्रपति का पद संभालेंगे। ट्रम्प ने एच1बी वीजा के नियमों को कड़ा करने की पैरवी करने वाले जेफसेसंस को अटॉर्नी जनरल की पोस्ट के लिए चुना है। ट्रम्प के शपथ ग्रहण करने से पहले 2 अमरीकी सांसदों ने एक बिल पेश किया है जिसमें वीजा प्रोग्राम में बदलाव की मांग की है। इस बिल में कुछ ऐसे प्रस्ताव हैं जिनका सीधा असर इंडियन वर्कर्स पर हो सकता है। अमरीकी सांसदों द्वारा पेश किए गए बिल 'प्रोटैक्ट एंड ग्रो अमरीकन जॉब्स एक्ट'में एच1बी वीजा के लिए एलिजिबिलिटी में कुछ बदलाव का प्रस्ताव है।

बिल में क्या बदलाव होने हैं

ह्यबिल में एच1बी एप्लीकेशन के लिए मास्टर डिग्री में छूट को हटाने की मांग की गई है। इससे मास्टर या इसी जैसी दूसरी डिग्री होने पर एडीशनल पेपरवर्क से राहत मिलेगी। अमरीका जाने वाले ज्यादातर आई.टी. प्रोफैशनल्स के पास मास्टर डिग्री होती है। ह्य50 इम्प्लाइज से ज्यादा वाली कम्पनियों में अगर 50 प्रतिशत एच1बी या एल1 वीजा वाले हैं तो ऐसी कम्पनियों को ज्यादा हायरिंग से रोका जाए। एच1बी वीजा की मिनिमम सैलरी एक लाख डॉलर सालाना होनी चाहिए। अभी यह 60,000 डॉलर सालाना है। एच1बी वीजा वर्कर के लिए मिनिमम सैलरी 1 लाख डॉलर सालाना करने से अमरीका में कम्पनियां भारतीय आई.टी. प्रोफैशनल्स की हायरिंग कम करेंगी। इनकी जगह वे अमरीकी वर्कर्स को ही तरजीह देंगी।भारतीयों पर पड़ेगा असरह्य85,000 से ज्यादा एच1बी वीजा सालाना जारी करता है अमरीका70 से 75 हजार ऐसे वीजा भारतीय आई.टी. पेशेवरों को मिलते हैंह्य1 लाख डॉलर के सालाना वेतन की अनिवार्यता की विदेशी कर्मियों के लिए।

2017 में बेरोजगारों की संख्या 1.78 करोड़ रहेगी

रिपोर्ट के अनुसार आशंका है कि पिछले साल के 1.77 करोड़ बेरोजगारों की तुलना में 2017 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.78 करोड़ और उसके अगले साल 1.8 करोड़ हो सकती है। प्रतिशत के संदर्भ में 2017-18 में बेरोजगारी दर 3.4 प्रतिशत बनी रहेगी। वर्ष 2016 में रोजगार सृजन के संदर्भ में भारत का प्रदर्शन थोड़ा अच्छा था।  रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया कि 2016 में भारत की 7.6 प्रतिशत की वृद्धि दर ने पिछले साल दक्षिण एशिया के लिए 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करने में मदद की है। रिपोर्ट के अनुसार विनिर्माण विकास ने भारत के हालिया आर्थिक प्रदर्शन को आधार मुहैया कराया है।

वैश्विक श्रम बल में लगातार बढ़ौत्तरी

वैश्विक बेरोजगारी दर और स्तर अल्पकालिक तौर पर उच्च बने रह सकते हैं क्योंकि वैश्विक श्रम बल में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। विशेषकर वैश्विक बेरोजगारी दर में 2016 के 5.7 प्रतिशत की तुलना में 2017 में 5.8 प्रतिशत की मामूली बढ़त की संभावना है। आई.एल.ओ. के महानिदेशक गाइ राइडर ने कहा कि इस वक्त हम वैश्विक  अर्थव्यवस्था के कारण उत्पन्न क्षति एवं सामाजिक संकट में सुधार लाने और हर साल श्रम बाजार में आने वाले लाखों नव आगंतुकों के लिए गुणवत्तापूर्ण नौकरियों के निर्माण की दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं। आई.एल.ओ. के वरिष्ठ अर्थशास्त्री और रिपोर्ट के मुख्य लेखक स्टीवेन टॉबिन ने कहा कि उभरते देशों में हर 2 श्रमिकों में से एक जबकि विकासशील देशों में हर 5 में से 4 श्रमिकों को रोजगार की बेहतर स्थितियों की आवश्यकता है। इसके अलावा विकसित देशों में बेरोजगारी में भी गिरावट आने की संभावना है और यह दर 2016 के 6.3 प्रतिशत से घटकर 6.2 प्रतिशत तक हो जाने की संभावना है।


Saradindu reports.half pant to Full pant with Ambedkar মঞ্চে অশোক, সাজাহান, নিবেদিতা, আম্বেদকরের ছবি বিশেষ প্রতিবেদন, শরদিন্দু উদ্দীপন :

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মঞ্চে অশোক, সাজাহান, নিবেদিতা, আম্বেদকরের ছবি
বিশেষ প্রতিবেদন, শরদিন্দু উদ্দীপন : 
https://m.facebook.com/story.php…

হাপ প্যান্ট থেকে ফুল প্যান্টঃ 
কনুইয়ের কাছে ভাজ করা সাদা ফুলসার্ট, খাকী হাপপ্যান্ট, লম্বা কালোজুতো, চামড়ার বেল্ট, মাথায় খাকির টুপি আর হাতে লাঠি নিয়ে ১৯২৫ সালে শুরু হয়েছিল রাষ্ট্রীয় স্বয়ং সেবক সংঘের কুচকাওয়াজ। এদের ভাগুয়া নিশানে জায়গা পায় স্বস্তিক চিহ্ন। হিন্দু মহাসভা ভেঙ্গে ওই বছর তৈরি হয় এই সঙ্ঘ। শুরু থেকেই এদের দৃষ্টিভঙ্গিতে ছিল জঙ্গিপনা। আরএসএস এর প্রতিষ্ঠাতা কেশব বলিরাম হেজোয়ারের বিরুদ্ধে ছিল দেশদ্রোহিতার মামলা।
আরএসএস এর এই পোশাকে প্রথম পরিবর্তন আসে ১৯৩০ সালে। খাকী টুপির পরিবর্তে আসে হিটলারের অনুকরণে কালো টুপি। এদের কিংবদন্তী নেতা মাধব সদাশিব গোলোয়ারকার হিটলারের সঙ্গে দেখা করে জঙ্গিবাদে অনুপ্রাণিত হন এবং খোলাখুলি হিটলারের আর্য তত্ত্বকে সমর্থন করেন। গোলওয়ার্কর এবং আর এক কিংবদন্তী নেতা সাভারকর দুজনেই ছিলেন হিটলারের অন্ধ ভক্ত। সম্ভবত এই কারনেই হিটলারের কালো টুপি এবং স্বস্তিক চিহ্ন আরএসএস এর প্রতীক চিহ্ন হয়ে দাঁড়ায়।
১৯৭৩ সালে আবার পরিবর্তন আসে। ভারি চামড়ার জুতোর বদলে আসে হালকা এবং স্টাইলিশ জুতো। কিন্তু চামড়ার বেল্ট নিয়ে শুরু হয় প্রশ্ন। গোমাতার চামড়া যে! অহিংস আন্দোলনের পক্ষে পশুর চামড়া ঠিক মানান সই নয়। ফলে রাতারাতি পশুর চামড়ার বেল্টের বদলে আসে ক্যানভাসের মোটা বেল্ট।
এর পরে আবার পরিবর্তন। এই পরিবর্তন এল ২০১৬ সালের আগস্ট মাসে। পরিবর্তনটা বেশ বিপ্লবাত্মক। ৯১ বছর ধরে এই হাটুর উপরে হাপ প্যান্ট নব্যদের ঠিক মনপূত নয়। এতে নিজেকে কেমন একেবারে সেকেলে মনে হয়। নাগপুরের হেড অফিস নব্যদের কথা ভেবে বিষয়টিকে মেনে নিল।
গতকাল ১৪ই জানুয়ারী ২০১৭ এই নতুন ফুল প্যান্ট পরা আরএসএস ক্যাডারদের কুচকাওয়াজ দেখার সুজোগ পেল কোলকাতা। কিন্তু আরএসএস এর মঞ্চ শয্যায় এমন পরিবর্তনের আশা ঘুণাক্ষরেও করেননি কোলকাতাবাসি! তাদের মূল মঞ্চের ব্যানারে সম্রাট অশোক, সাজাহান, সিস্টার নিবেদিতা এবং বাবা সাহেব আম্বেদকর! হ্যা, আপনি যদি আরএসেসকে চেনেন তবে এই ছবি দেখে অন্তত বার দশেক চোখ কচলাতে হবে! ঠিক দেখছেন তো? মঞ্চের সামনে কেশব বলিরাম হেজোয়ার আর গোলোয়ারকার তো ঠিক আছে। নাথুরাম থাকলেও আপত্তি ছিল না, কিন্তু আম্বেদকর!!
হ্যা, এটাই আরএসএস এর পরিবর্তন। খাঁদির চরকাতে গান্ধীর পরিবর্তে নরেন্দ্র দামোদর দাস মোদি আর ওং ভারতমাতা এবং ভাগুয়া ধ্বজের সাথে অশোক, সাজাহান ও আম্বেদকর।
বন্ধুরা এই পরিবর্তন কি কাকতালীয়। আমরা জানি এটা হঠাৎ তাল পড়ার মত কোন বিষয় নয়। "গর্ব করে বল আমি হিন্দু"এই ছিল যাদের শ্লোগান তাদের এই রাতারাতি পরিবর্তন আসলে একটি রণকৌশল। এটা হিন্দুত্ববাদ এবং মনুবাদেরই পুনর্জাগরণ। আর সেই সাথে বাবা সাহেব আম্বেদকরকে হাইজ্যাক করে ভাগুয়া শিবিরের আইকন বানানোর ষড়যন্ত্র।
বিজেপির আড়াই বছরের শাসন কালকে মূল্যায়ন করলেই বুঝতে পারবেন এই পরিবর্তনটি আসলে একটি ধাঁধাঁ।
২০১৬ সালের ১৭ই জানুয়ারী রোহিত ভেমুলার প্রাতিষ্ঠানিক হত্যাকাণ্ডের পরে ঘোরতর বিপদে পড়ে গেছে ব্রাহ্মন্যবাদ। প্রমান হয়েছে তারা ভারত বিধ্বংসী বিষ। মুজাপফরনগর, দাদরি, উনা, কালাহান্ডি সর্বত্র চলছে ব্রাহ্মন্যবাদের বিরুদ্ধে প্রবল প্রতিরোধ। গো-রক্ষকদের নৃশংস ডাণ্ডাকেও ক্লান্ত করে ছেড়েছে দলিত-বহুজনের সার্বিক উত্থান। উনার ঘটনায় প্রতিবাদের ঝড় উঠেছে সর্বত্র। চর্মকার ভাইদের সমর্থনে এগিয়ে এসেছে দলিত মুসলিম ভাইয়েরা। তাদের সম্মিলিত বিপুল প্রতিরোধের কাছে নতিস্বীকার করে গদি ছাড়তে হয়েছে গুজরাটের মুখ্যমন্ত্রীকে। ভারতের প্রতি কোনে কোনে সংঘটিত হয়েছে দীপ্ত মিছিল। দেশের জনগণের মধ্যে সংহতির চেতনা জাগ্রত কারার জন্য জাতপাতের ভেদভাবকে উপেক্ষা করে মিছিলে মিলিত হয়েছে অগণিত মানুষ। তারা দীপ্ত ভাবে ঘোষণা করেছে ব্রাহ্মন্যবাদ নিপাত যাক, জাতপাত নিপাত যাক, মনুর শাসন ধ্বংস হোক। তারা হুঁশিয়ার করেছে সেই সব দাঙ্গাবাজদের যারা নিজের হাতে আইন তুলে নিয়ে ভারতীয় শাসনব্যবস্থাকে ভেঙ্গে ফেলার চক্রান্তে সামিল হয়েছে। তারা দাবী করেছে যে সব কাজের জন্য জাতপাত নির্ণয় করা হয় সেই কাজ আর তারা করবেনা। তারা দাবী করেছে সরকারকে তাদের প্রাপ্য জমি ফেরত দিতে হবে এবং সেই জমিতে খাদ্য উৎপাদন করে তারা মর্যাদার সাথে জীবনযাপন করবে।
দলিত-বহুজন মানুষেরা বুঝতে পেরেছেন যে বাবা সাহেবের Social inclusive doctrine বা ভাগিদারী দর্শনই ৮৫% মূলনিবাসী বহুজন সমাজকে কেন্দ্রীভূত করে তুলবে এবং এই ভাগিদারী সামাজিক শৈলী বহুজনদের রাষ্ট্র ক্ষমতার কেন্দ্র বিন্দুতে নিয়ে আসবে। স্বাধিকার এবং ভাগিদারীর সুষম বন্টন নিশ্চিত হলে শ্রেণি-সংগ্রামহীন, হিংসাশ্রয়ী রক্তরঞ্জিত যুদ্ধ ছাড়াই সংঘটিত হবে এক নিঃশব্দ রাষ্ট্র বিপ্লব। সর্বজনের কল্যাণে সর্বজনের রাষ্ট্রীয় উত্থান। এই রাষ্ট্রীয় উত্থানে হাপ প্যান্টের দর্শন সেকেলে হয়ে যাবে। তাই দলিত বহুজনের চোখের সামনে বাবা সাহেবের ছবির প্রলেপ লাগিয়ে ভাগুয়া ধ্বজ ওড়াতে চাইছে আরএসএস।

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प्रतिरोध की कहानियां

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डा.अरविंद कुमार को धन्यवाद क्योंकि उन्होंने महतोष मोड़ आंदोलन पर लिखी और 1991 मेरी कहानी सागोरी मंडल अभी मंडल अभी जिंदा है,को अपने संकलन प्रतिरोध की कहानियां में हिंदी के तमाम दिग्गज और मेररे अत्यंत प्रिय कथाकारो की कहानियों के साथ शामिल किया है।मैंने करीब सोलह सत्रह साल से कोई कहानी नहीं लिखी है,हांलांकि शलभ श्रीराम सिंह की पहल पर मेरा दूसरा कहानी संग्रह ईश्वर की गलती  2001 में छपा है।मैंने अनछपी कहानियां या कविताएं किसी को इन सोलह सत्रह सालों में कहीं छपने के लिए भेजी नहीं है।
मरे लिे यह सुखद अचरज है कि कमसकम कुछ लोग कहानी कविता के सिसिले में मुझे अब भी याद करते हैंं।
अरविंद कुमार जी से पिछले दिनों लंबा गपशप हुआ था और तब भी उन्होंने मेरी कहानी का जिक्र नहीं किया था,अलबत्ता चुनिंदा कहानियों का संग्रह भेजने के लिए मेरा पता लिखवा लिया था।
सागोरी मंडल बांग्ला में अनूदित है।यह कहानी किन किन पत्रिकाओं में छपी है,मुझे अभी याद नहीं है।आदरणीय गीता गैरोला जी ने बीच में इस कहानी के बारे में पूछा था,जिसकी कोई प्रति मेरे पास नहीं है।हालांकि वह मेरे अंडे सेंते लोग कहानी संग्रह में छपी है।इसके अलावा सामाजिक यथार्थ की कहानियां जैसे शीर्षके के किसी संकलन में भी यह कहानी संकलित हुी है।उसकी प्रति भी मेरे पास नहीं है।
गीता जी ने बताया कि उत्तरा में यह कहानी छपी थी।मुझे नहीं मालूम है।बहरहाल उत्तरा में बंगाल की मौसी ट्रेनों पर एक कथा अक्टोपस उत्तरा में छपी थी,उसकी याद है।
इस संकलन में शामिल कहानीकारों में हमारे पुरातन मित्र संजीव की बेहतरीन कहानी ापरेशन जोनाकी भी है।पंकज बिष्ट की कहानी हल,विद्यासागर नौटियाल जी की कहानी भैंस का कट्या,मधुकर सिंह की दुश्मन,शिवमूर्ति की कहानी सिरी उपमा जोग,देवेंद्र सिह की कहानी कंपनी बहादुर,जयनंदन की कहानी विश्वबाजार का ऊंट,विजेंद्र अनिल की कहानी फर्ज,विजयकांत की कहानी राह,अवधेश प्रीत की कहानी नृशंस भी शामिल हैं।
उम्मीद है कि हिंदी के पाठकों को हिंदी कहानी का भूला बिसरा जमाना याद आयेगा।अरविंद जी का आभार।
प्रकाशक अनामिका पब्लिशर्स को धन्यवाद।
331 पेज की इस किताब की कीमत आठ सौ रुपये रखी गयी है।यह मुझे ठीक नहीं लग रहा है।
बांग्ला  में इतने पेज की किताब की कीमत ढाई सौ रुपये केआसपास होती है।कोई रचनासमग्प्रर भी किफायती दाम पर पाठको के लिए उपलब्काध है।प्रकाशक से सीधे लेने पर किताबब की कीमत दो सौ रुपये के आस पास बैठती है।बांग्ला और दूसरी भारतीय भाषाओं की किताबों की सरकारी खरीद नहीं होती,इसलिए वे पाठकों का ख्याल रखते हैं।मराठी,उड़िया और असमिया में भी किताबें पाठकों तक पहुंचाने की गरज होती है।
हम नहीं जानते कि इतनी महंगी किताबें कौन पढ़ेंगे।बहरहाल हमारी को चुनने के लिए आभारी जरुर हूं।
हो सकता है कि हिंदी में किताब छपने की लागत ज्यादा बैठती हो।अरसे बाद कोई कहानी छपी भी तो आम पाठकों तक पहुंचने की उम्मीद कम है।मेरे लिए यह अहसास सुखद नहीं है।
पलाश विश्वास
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बहुत तेजी से हमारे बच्चे इस मुक्तबाजार की चकाचौंध में आत्मध्वंस की तरफ बढ़ रहे हैं।

Next: फिर नंदीग्राम,दीदी की पुलिस ने किसानों पर बरसायीं गोली! छात्र सड़क पर उतरे तो उन्हें माओवादी घोषित करके गिरफ्तारी का फरमान जारी कर दिया मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नेऍ নির্বিচারে চললো গুলি ভাঙড়ে। গুলিতে বিদ্ধ হলো তিনজন। দুজন গুরুতর আহত, একজন মৃত। আঘাত আসছে একের পর এক। পাল্টা আঘাত ফেরাবে মানুষ। লড়াই চলছে। #এই_মুহুর্তে_ভাঙড় पलाश विश्वास
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बहुत तेजी से हमारे बच्चे इस मुक्तबाजार की चकाचौंध में आत्मध्वंस की तरफ बढ़ रहे हैं।
पलाश विश्वास
बहुत तेजी से हमारे बच्चे इस मुक्तबाजार की चकाचौंध में आत्मध्वंस की तरफ बढ़ रहे हैं।
कल का दिन दुर्घटनाओं के नाम रहा।
कल सोदपुर में दो टीनएजरों की मोटरबाइक दुर्घटना में मौत की वजह सै जनजीवन स्तब्ध सा हो गया।
समाजसेवी रामू के इकलौते बेटे और उसके दोस्त की मौत से दिनभर अफरातफरी रही।
इसीलिए कल अक्षर प्र्व में 2006 में प्रकाशित अपनी कविता ईअभिमन्यु उन खोते हुे बच्चों की याद में पोस्ट करके खुद को सांत्वना सी दी।
इलाके का भूगोल बदल गया है।
कल उस शवयात्रा में सौ से ज्यादा उन बच्चों के दोस्त स्कार्पियो गाड़ियों के साथ श्मसान पर मौजूद थे।
संघर्षशील गरीब परिवारों के बच्चे नवधनाढ्य परिवारों की जीवन शैली में जैसे तेजी से अभ्यस्त हो रहै हैं।
कहना मुश्किल है कि अब शोक का समय किसके लिए भारी पड़ने वाला है।
इलाके का भूगोल सिरे से बदल गया है।
पुश्तैनी मकानों की जगह बहुमंजिली इमारतें खड़ी हो गयी है।
गली मोहल्ले में अजनबी चेहरों का हुजूम है।
अपने ही बच्चों से संवाद की स्थिति खत्म सी है।
बल्कि माहौल पीढ़ियों के दरम्यान अभूतपूर्व  शत्रुता का बन गया है।
स्मृतियां तेजी से खत्म हो रही है।
सपनों का कत्लेआम है।
हममें से हर कोई इस घनघोर संकट में अकेला ,निहत्था और असहाय है।
सारी क्रयशक्ति और डिजिटल कैसलैस इंडिया के सारे कालेधन से हम अपनी नई पीढ़ी को बचा  नहीं पा रहे हैं।
 और किसी को इसका अहसास नहीं है कि मां बाप की हमारी पीढ़ी कितनी बुरीतरह फेल है। 
बेहद भयानक समय है यह और दिलोदिमाग लहूलुहान है।
शंकर गुहा नियोगी के छत्तीसगढ़ संघर्ष और नवनिर्माण आंदोलन में नियोगी के साथी और बंगाल में शहीद अस्पताल की तर्ज पर श्रमजीवी अस्पताल चलाने वाले डा.पुण्यव्रत गुण की किताब का अनुवाद करने में लगा हूं।
रियल टाइम अपडेट में इसलिए निरंतरता है नहीं।
नोटबंदी में बेहिसाब नकदी सिर्फ पांच सौ करोड़ की निकली है तो यूपी में अबूझ पहेली है।
मौका लगा तो शाम तक जानारियां शेयर करने की कोशिश करुंगा।
जो भी प्रासंगिक लिंक मिलेगा,वह इस बीच शेयर करते जाउंगा।
हम तमाम जरुररी लिंक और प्रासंगिक कांटेट शेयर करें तो भी जानकारी मिलेगी जनता को,कृपया इस पर गौर करें।
बाकी नाकाबंदी और सेंसरशिप दोनों है।आपातकाल जारी है।
जीने के लिए दिहाड़ी बेहद जरुरी है।
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फिर नंदीग्राम,दीदी की पुलिस ने किसानों पर बरसायीं गोली! छात्र सड़क पर उतरे तो उन्हें माओवादी घोषित करके गिरफ्तारी का फरमान जारी कर दिया मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नेऍ নির্বিচারে চললো গুলি ভাঙড়ে। গুলিতে বিদ্ধ হলো তিনজন। দুজন গুরুতর আহত, একজন মৃত। আঘাত আসছে একের পর এক। পাল্টা আঘাত ফেরাবে মানুষ। লড়াই চলছে। #এই_মুহুর্তে_ভাঙড় पलाश विश्वास

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फिर नंदीग्राम,दीदी की पुलिस ने किसानों पर बरसायीं गोली!

छात्र सड़क पर उतरे तो उन्हें माओवादी घोषित करके गिरफ्तारी का फरमान जारी कर दिया मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नेऍ

নির্বিচারে চললো গুলি ভাঙড়ে। গুলিতে বিদ্ধ হলো তিনজন। দুজন গুরুতর আহত, একজন মৃত। আঘাত আসছে একের পর এক। পাল্টা আঘাত ফেরাবে মানুষ। লড়াই চলছে।

#এই_মুহুর্তে_ভাঙড়

पलाश विश्वास

नंदीग्राम - विकिपीडिया

https://hi.wikipedia.org/wiki/नंदीग्राम

भारत के स्वतंत्र होने के बाद, नंदीग्रामएक शिक्षण-केन्द्र रहा था और इसने कलकत्ता (कोलकाता) के उपग्रह शहर हल्दिया के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाई. हल्दिया के लिए ताज़ी सब्जियां, चावल और मछली की आपूर्ति नंदीग्रामसे की जाती है।

इतिहास· ‎नंदीग्राम के निवासी· ‎राजनीति

नंदीग्राम नरसंहार - यूट्यूब

▶ 29:09

https://www.youtube.com/watch?v=54EdRcLxxeM

23/07/2012 - Reyazul Haque द्वारानंदीग्राम के लिए वीडियोअपलोड किया गया

इस फिल्म में peasents 14 मार्च हत्याओं का मूल वीडियो फुटेज के आधार पर किया जाता है,नंदीग्राम,पश्चिम बंगाल। सीपीएम, एक बाएं पार्टी की सरकार थी के लिए ...



मां माटी मानुष की सरकार बनी नंदीग्राम और सिगुर में जमीन आंदोलन के खिलाफ जनप्रतिरोध का ज्वालामुखी फूटने की वजह से।नंदीग्राम के मुसलमान बहुल इलाके में जबरन जमीनअधिग्रहण के नतीजतन मुसलमान वोटबैंक ने एकमुश्त वामपक्ष छोड़कर ममता दीदी की ताजपोशी कर दी।

आदरणीया महाश्वेता देवी के नेतृत्व में साहित्यकारों, कवियों, रंगकर्मियों,कलाकारों और बुद्धिजीवियों का भद्रसमाज फिल्मी सितारों के साथ दीदी के साथ हुआ तो बंगाल में भारी बहुमत से जीतकर सत्ता में आयी बुद्धदेव भट्टाचार्य की सरकार को अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगीकरण के लिए,पूंजीपतियों के हितों के मुताबिक जबरन भूमि अधिग्रहण की कीमत चुकानी पड़ गयी और 35 साल के वाम शासन का पटाक्षेप हो गया।

दीदी के राजकाज में भूमि अधिग्रहण का काम अबतक रुका हुआ था।तैयारी बहुत पहले से थी।नंदीग्राम इलाके में भी भूमि अधिग्रहण की तैयारी थी।लेकिन नये कोलकाता के पास दक्षिण 24 परगना के भांगड़ में पावरग्रिड के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जारी किसानों के आंदोलन के दमन के लिए दीदी ने अचानक सत्ता की पूरी ताकत झोंक दी है।

गौरतलब है कि  नया कोलकाता बसाने के लिए भी भारी पैमाने पर जमीन अधिग्रहण हुआ।वह स्थगित आंदोलन भी ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा है,जिसे छात्रों युवाओं का भारी समर्थन है।

नंदीग्राम नरसंहार के करीब एक दशक बाद फिर बंगाल में जमीन अधिग्रहण के लिए पुलिस ने गोली चला दी।बंगाल के यादवपुर विश्विद्यालय समेत तमाम विश्वविद्यालयों के छात्र आंदोलनकारियों के समर्थन में हैं और कोलकाता की सड़कों पर छात्र उतरने लगे हैं.जिन्हें मुख्यमंत्री ने माओवादी करार दिया है।

अंधाधुंध पुलिसिया चांदमारी में तीन ग्रामीणों को गोली लगी है,जिनमें से एक की मौत हो गयी है।तीन लोगों की हालत गंभीर है।

माकपा छोड़कर दीदी की सरकार में कैबिनेट मंत्री माकपाई किसान सभा के पर्व राष्ट्रीय नेता  रेज्जाक अली मोल्ला के गृहक्षेत्र में किसानों के भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन केखिलाफ सत्ता के तौर तरीके अब भी वे ही हैं,जो वाम शासन के ट्रेडमार्क रहे हैं।कुल 21 गावों के किसान मोर्चाबंद हैं।गांवों ,खेतों और सड़कों में मोर्चाबंदी है।

दीदी ने मोल्ला को आंदोलन से निबटने की जिम्मेदारी सौंपी थी लेकिन अब किसान उनके साथ नहीं हैं।किसान उसीतरह विरोध कर रहे हैं जैसे उन्होंने नंदीग्राम और सिंगुर में किया है।

करीब चालीस हजार किसानों के जमावड़े से निबटने के लिए दीदी की पुलिस ने गोली चला  दी और अब आंदोलन का समर्थन कर रहे तमाम छात्रों को माओवादी घोषित करके उन्हें गिरफ्तार करने का उन्होंने फरमान भी जारी कर दिया है।

किसानों  का आरोप है कि पॉवर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (PGCIL) के प्रोजेक्ट के लिए 16 एकड़ कृषि भूमि का 'जबरन' अधिग्रहण किया गया है।खेतों से इलेक्ट्रिक लािन कनेक्ट करने का आरोप भी है,जिससे खेतों में न जाने की वजह से किसानों में भारी गुस्सा फैल गया है और वे किसीकी सुन नहीं रहे हैं।

गौरतलब है कि नंदीग्राम की तरह यह इलाका भी मुसलमानबहुल है।

अबाध कारपोरेट पूंजी के ​दूसरे चरण के आर्थिक सुधारों का एजंडा राजनीतिक बवंडर के बावजूद खूब अमल में है। शहरों और कस्बों तक बाजार का विस्तार का मुख्य लक्ष्य हासिल होने के करीब है, जिसके लिए सरकारी खर्च बढ़ाकर सामाजिक सेक्टर में निवेश के जरिए ग्रामीणों की खरीद क्षमता बढ़ाने पर सरकार और नीति निर्धारकों का जोर रहा है।

नोटबंदी से तहस नहस अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली के मद्देनजर साफ है कि अर्थ व्यवस्था पटरी पर लाना प्रथमिकता है ही नहीं। होती तो वित्तीय और मौद्रक नीतियों को दुरुस्त किया​ ​ जाता। खेती और देहात को तबाह करके बाजार का विस्तार ही सर्वोच्च प्राथमिकता है।

विडंबना यह है कि नोटबंदी के खिलाफ का चेहरा बनकर दीदी प्रधानमंत्री को तानाशाह कहकर रोज नये सिरे से जिहाद का ऐलान करके खुद जनवादी होने का दावा कर रही है तो दूसरी ओर उनके ये तानाशाह अंदाज हैं।हाथी के दांत खाने के और,दिखाने के और होते हैं,साफ जाहिर है।

आज दिनभर भांगड़ अग्निगर्भ रहा है।ममता दीदी जिन महाश्वेता देवी को अपनी कैली में उनकी मौजूदगी में जनआंदोलनों की जननी कहती रही हैं,जल जंगल जमीन के हकहकूक पर केंद्रित उनका मशहूर उपन्यास का शीर्षक भी अग्निगर्भ है।वहां कई दिनों से आंदोलनकारियों और सत्ता दल के कैडरों में मुठभेड़ का सिलसिला चला है।

बाहुबल से जब जनांदलोन रोका न जा सका,तो मां माटी मानुष की सत्ता ने पुलिस और रैफ के जवानों को मैदान में उतार दिये।नतीजतन नया कोलकाता से सटे तमाम गांवों में आग सी लग गयी है।दक्षिण 24 परगना जिले के इस इलाके में  पॉवर सब स्टेशन प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे ग्रामीणों का पुलिस के साथ यह हिंसक टकराव हुआ। दक्षिण 24 परगना के भांगड़ में 21 गांवों के लैंड ऐक्टिविस्ट ने पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन के खिलाफ सोमवार को धरना प्रदर्शन किया।

इलाके में उस वक्त हिंसा भड़क गई जब पुलिस ने भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे 2 कार्यकर्ताओं गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद ट्रैफिक रोकने के लिए स्थानीय लोगों ने लकड़ी के बड़े-बड़े टुकड़ों और बालू की बोरियों का इस्तेमाल कर सड़क को जाम कर दिया।

हालांकि बाद में गिरफ्तार किए गए दोनों कार्यकर्ताओं को छोड़ दिया गया। लेकिन प्रशासन का कहना है कि भांगड़ में चल रहा प्रॉजेक्ट का काम तब तक बंद रहेगा जब तक झगड़ा सुलझ नहीं जाता। सरकार के इस फैसले के बाद स्थानीय लोगों और जमीन के कार्यकर्ताओं ने अपनी जीत की एक रैली निकालने की कोशिश की जिसे पुलिस ने रोक दिया। नतीजतन इलाके में एक बार फिर हिंसा भड़क गई और वहां RAF यानी रैपिड ऐक्शन फोर्स की तैनाती करनी पड़ी।

गौरतलब है कि PGCIL की ओर से राजरहाट में 400/220KV के गैस संचालित सब स्टेशन का निर्माण किया जा रहा है। ये 953 किलोमीटर हाईवोल्टेज ट्रांसमिशन लाइन का हिस्सा है जिसके जरिए सरकार का दावा है कि पश्चिम बंगाल के फरक्का से बिहार के कहलगांव तक पॉवर की आपूर्ति होगी।

जीवन जीविका परिवेश बचाओ मंच के तहत नया साल शुरू होने के साथ ही क्षेत्र में किसान जमीन अधिग्रहण के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।उन्हें छात्रों का पूरा समर्थन है।

नाराज ग्रामीणों का कहना है कि जमीन को जबरन छीना गया है। साथ ही प्रोजेक्ट से स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य को भी बड़ा खतरा है.

किसानों का साफ दो टुक कहना है, 'ममता बनर्जी ने वादा किया था कि कोई भी जमीन जबरन अधिग्रहीत नहीं की जाएगी। लेकिन आज उनकी पार्टी के व्यक्ति बंदूक की नोक पर हमारी जमीन छीन रहे हैं और वे मुंह बंद किए बैठी हैं।'हालांकि वे चुप कतई नहीं है और उन्होंने आंदोलन के समर्थन में खड़े तमाम छात्रों को माओवादी करार देकर उन्हें गिरफ्तार करने का फरमान जारी कर दिया है।इन छात्रों में जयादवपुर विश्वविद्यालय के वे छात्र भी हैं,जो मनुस्मृति दहन कर रहे थे और रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या के खिलाफ जाति उन्मूलन का नारा लगा रहे थे।ये छात्र ही होक कलरव आंदोलन चला रहे थे।

तब संघ परिवार और भाजपा ने इन छात्रों को राष्ट्रविरोधी और माओवादी कहा था।वे यादवपुर विश्वविद्यालय में घुसकर हमला कर रहे थे।अब वे ही छात्र जब किसानों के हरकहकूक की लड़ाी में शामिल हैं तो लालकृष्ण आडवानी,जेटली या राजनात सिंह को मोदी के बदले प्रधानमंत्री बनाने की अपील करने वाली देश दुनिया में किसानों के लिए मर मिट जानेवाली हमारी दीदी मनुस्मृति विरोधी उन्हीं छात्रों को माओवादी करार देकर उनकी गिरफ्तारी का हुकक्मनामा जारी कर रही हैं।

इसी बीच पश्चिम बंगाल के ऊर्जा मंत्री और मशहूरट्रेड यूनियन नेता शोभनदेब चटर्जी ने मंगलवार को दोहराया कि राज्य सरकार ग्रामीणों की मांग के अनुरूप प्रोजेक्ट साइट पर काम बंद कराने के निर्देश पहले ही जारी कर चुकी है।वे ताज्जुब इस बात पर जता रहे हैं कि काम बंद है तो आंदोलन फिर क्यों हो रहा है।किसानों के किलाफ मोर्चाबंद कैडरों ,पुलिस औररैफ की भूमिका पर वे खामोश हैं उसीतरह जैसे जूटमिलों और चायबागानों के बंद होने पर उनकी सत्तानत्थी यूनियनों के होंठ फेवीकाल और यूकोप्लास्ट से बंदहै। बहरहाल मंत्री मजदूर नेता चटर्जी ने कहा, 'मैं आश्वस्त हूं कि अगर कोई तार्किक शिकायतें हैं तो हम मुद्दे का समाधान शांतिपूर्वक ढूंढ लेंगे। लेकिन अगर कोई अनावश्यक तौर पर हिंसा को हवा देना चाहते हैं तो हम असहाय है।'

इससे पहले इस महीने के शुरू में नाराज ग्रामीणों का विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस से टकराव हुआ था। तब जिला प्रशासन ने नाराज ग्रामीणों के साथ आपातकालीन बैठक कर इस मुद्दे पर मकर सक्रांति के बाद समाधान ढूंढने का वायदा किया था। इसके उल्टे  मंगलवार सुबह फिर जब सीआईडी ने एक किसान कार्यकर्ता को बीती रात हुए प्रदर्शन की वजह से पकड़ा तो किसानों का गुस्सा फूट पड़ा। 21 गांवों के करीब चालीस हजार किसानों  ने श्यामनगर-हड़ोआ मार्ग पर जाम लगा कर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।

पुलिस और RAF के बड़े दस्ते को जाम हटाने के लिए मौके पर भेजा गया तो प्रदर्शनकारियों ने पथराव शुरू कर दिया।प्रदर्शनकारियों ने कुछ वाहनों में तोड़फोड़ की और एक वाहन में आग लगा दी। ग्रामीणों के हिंसक प्रदर्शन को देखते हुए पुलिस को गांव से लौटने को मजबूर होना पड़ा।

पुलिस के मुताबिक भीड़ पर नियंत्रण पाने के लिए लाठी-चार्ज और आंसूगैस के गोलों का सहारा लेना पड़ा,पिर पुलिस ने गोली भी चला दी।

इसके विपरीतदावा यह है कि ममता बनर्जी ने प्रशासन को किसी भी सूरत में फायरिंग नहीं करने के निर्देश दिए हैं। ममता बनर्जी ने ये भी कहा है कि अगर लोग जमीन नहीं देना चाहते तो कोई जमीन अधिगृहीत नहीं की जाएगी। अगर जरूरत पड़ी तो पॉवर प्रोजेक्ट को दूसरी जगह पर शिफ्ट कर दिया जाएगा।

इस बीच, PGCIL ने प्रोजेक्ट पर काम रोक दिया है।

सरकार का कहना है कि प्रदर्शन के हिंसक होने के बाद राज्य प्रशासन ने पुलिस को क्षेत्र से हटाने का फैसला किया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्थानीय विधायक और मंत्री रज्जाक मोल्ला को स्थिति को शांत करने के लिए मौके पर भेजा है।

Prakkan Hillol

ভাঙড়ে আন্দোলনরত জনতার উপর চলল নির্বিচারে পুলিশের গুলি। গলায় গুলি লেগে শহিদ হোলেন আন্দোলনের সাথী আলমগির হোসেন। দুজন আরও জখম হোন। মেহনতি কৃষিজীবী মৎসজীবী মানুষের আন্দোলন কে দমাতে--- গুলি চালিয়ে, আরো র‍্যাফ মোতায়েম করে, কাঁদানে গ্যাস ছুঁড়ে, বাউন্সার ভাড়া করে কোনো প্রচেষ্টাই বাকি রাখছেনা তৃণমূলী প্রশাসন। কাল রাত থেকেই শুরু হয়েছে দানবীয় রাষ্ট্রীয় সন্ত্রাস। সরকারের ঘাতক বাহিনীর অত্যাচারে গ্রামে গ্রামে শিশু মহিলা বৃদ্ধ-বৃদ্ধাদের কেও ছাড়া হচ্ছে না।

আজ কলেজ স্কয়ারে ভাঙড়ে এই রাষ্ট্রীয় সন্ত্রাসের বিরুদ্ধে প্রতিবাদ স্বরূপ স্কয়াড মিছিল সংঘটিত করা হল।

#ভাঙড়_এই_মুহূর্তে

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Sayan

ভাঙড়ে পুলিশি আক্রমণের বিরুদ্ধে আজ কলেজ স্ট্রীট চত্বরে রাস্তা অবরোধ করা হল।

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दुनिया बदल रही है और वतन ट्रंप के हवाले। बेहद खुश हैं वतन के रखवाले। पलाश विश्वास

Previous: फिर नंदीग्राम,दीदी की पुलिस ने किसानों पर बरसायीं गोली! छात्र सड़क पर उतरे तो उन्हें माओवादी घोषित करके गिरफ्तारी का फरमान जारी कर दिया मुख्यमंत्री ममता बनर्जी नेऍ নির্বিচারে চললো গুলি ভাঙড়ে। গুলিতে বিদ্ধ হলো তিনজন। দুজন গুরুতর আহত, একজন মৃত। আঘাত আসছে একের পর এক। পাল্টা আঘাত ফেরাবে মানুষ। লড়াই চলছে। #এই_মুহুর্তে_ভাঙড় पलाश विश्वास
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दुनिया बदल रही है और वतन ट्रंप के हवाले।

बेहद खुश हैं वतन के रखवाले।

पलाश विश्वास

कल दुनिया डोनाल्ड ट्रंप के हाथों में होगी।कल्कि अवतार कम थे।अब सोने पर सुहागा।20 जनवरी को बराक ओबामा की जगह राष्ट्रपति पद संभालने से पहले ही मैडम तुसाद म्यूजियम में डॉनल्ड ट्रंप ने ओबामा की जगह ले ली है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की मोम की प्रतिमा का लंदन के मैडम तुसाद म्यूजियम में अनावरण किया गया। इस प्रतिमा में धूप में टैन हुई उनकी त्वचा और खास तरह से संवारे गए उनके बालों का दिखाया गया है। म्यूजियम के ट्विटर पर साझा की गई जानकारी के मुताबिक इस प्रतिमा को 20 आर्टिस्ट्स ने छह महीने में बनाया है। लगभग सवा करोड़ की लागत से बनी ट्रंप की प्रतिमा ने गहरे नीले रंग का सूट, सफेद शर्ट और लाल टाई पहनी है।

बहरहाल एजंडे के मुताबिक दस लाख टके के सूट से बहुत मैचिंग है यह मोम की प्रतिमा।ढर यही है कि अमेरिका में गृहयुद्ध और बाकी दुनिया में जो युद्ध घनघोर है और जिसमें फिर अमेरिका और इजराइल के साथ भारत पार्टनर है,दिशा दिशा में सुलगते ज्वालामुखियों की आग में दुनिया अगर बदल रही है तो दुनिया किसहद तक कितनी बदलेगी,क्या भगवा झंडा व्हाइट हाउस पर भी लहरायेगा और सर्वव्यापी इस भीषण आग में मोम की यह प्रतिमा कितनी सही सलामत रहेगी।

सूट भी मैचिंग और मंकी बातों का अंदाज भी वही।अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी सनसनीखेज घोषणाओं और आलोचना को लेकर टि्वटर पर छाए रहते हैं, हालांकि उनका यह कहना है कि उन्हें ट्वीट करना बिल्कुल पसंद नहीं है लेकिन बेईमान मीडिया के खिलाफ अपने बचाव में यह करना पड़ता है। ट्रंप ने समाचार चैनल फॉक्स न्यूज से कहा कि देखिए, मुझे ट्वीट करना पसंद नहीं। मेरा पास दूसरी चीजें हैं जो मैं कर सकता हूं। परंतु मैं देखता हूं कि बहुत ही बेईमान मीडिया है, बहुत बेईमान प्रेस है। ऐसे में यही मेरे पास यही एक रास्ता है जिससे मैं जवाब दे सकता हूं। जब लोग मेरे बारे में गलत बयानी करते हैं तो मैं इस जवाब दे पाता हूं।

खेती और किसान मजदूर कर्मचारी तबाह हैं।रोजगार आजीविका खत्म हैं।कारोबार,उद्योग धंधे भी मेकिंग इन इंडिया से लेकर नोटबंदी और डिजिटल कैशलैस इंडिया हवा हवाई है।तबाही के दिन शुरु हो गये और न जाने सुनहले दिन कब आयेंगे।अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप 20 जनवरी को शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह का थीम "मेक अमेरिका ग्रेट अगेन" है।इतिहास का यह पुनरूत्थान नस्ली सत्ता की चाबी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेशी निवेशकों को रिझाने के लिए हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं लेकिन कारोबार में जोखिम पर रिपोर्ट तैयार करने वाली एक एंजेंसी क्रॉल का मानना है कि भारत में अभी भी बिजनेस में फर्जीवाड़ा काफी ज्यादा है। हालांकि इस साल हालात पहले से बेहतर हुए हैं। एक सर्वे के मुताबिक करीब 100 में 68 फीसदी निवेशकों ने माना है कि उनके साथ फर्जीवाड़ा हुआ है जबकि 73 फीसदी लोगों के साथ साइबर हैकिंग हुई है।

हालात हमारे नियंत्रण से बाहर है।भारतीय रिजर्व बैंक के साथ भारतीय बैंकिंग का जो दिवालिया हाल है,बजट में भी कालाधन का राजकाज मजबूत होना है और नस्ली नरसंहार का सिलसिला थमने वाला नहीं है।बीमा का विनिवेश तय है।रेलवे का निजीकरण तेज है और रक्षा आंतरिक सुरक्षा विदेशी कंपनियों और विदेशी हितों के हवाले है।यही संघ परिवार का रामराज्य है औऱ उनका राम अब डोनाल्ड ट्रंप हैं।कल जिनके हवाले दुनिया है।

रोहित वेमुला की बरसी पर उसकी मां की गिरफ्तारी भीम ऐप और नोट पर गांधी के बदले बाबासाहेब का सच है।संविधान के बदले मनुस्मृतिविधान है।

संघ एजंडा में बाबासाहेब का वही स्थान है जैसा कि डोनाल्ड ट्रंप के कुक्लाक्सक्लान का नया अश्वेत सौंदर्यबोध का सत्ता रसायन  है।पहले ही वे जूनियर मार्टिन लूथर किंग से मुलाकात करके भारत में अंबेडकर मिशन की तर्ज पर मार्टिन लूथर किंग के सपने को जिंदा ऱकने का वादा किया है और नस्ली नरसंहार के खिलाफ निर्मायक जीत हासिल करने वाले अब्राहम लिंकन की विरासत पर दावा ठोंक दिया है जो काम हमारे कल्कि अवतार का भीम ऐप है और जयभीम का विष्णुपद अवतार है और तथागत का तिरोधान परानिर्वाण है। गौर करें, अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप शुक्रवार (20 जनवरी) को 2 बाइबल का इस्तेमाल करते हुए शपथ ग्रहण करेंगे, जिनमें एक बाइबल वह होगी, जिसका इस्तेमाल अब्राहम लिंकन ने अपने पहले शपथ ग्रहण में किया था, जबकि दूसरी बाइबिल ट्रंप के बचपन के समय की है। यह बाइबिल 12 जून 1955 को उनकी मां ने उन्हें भेंट की थी। अमेरिका के मुख्य न्यायाधीश जॉन रॉबर्ट्स ट्रंप को शपथ दिलाएंगे। 'प्रेसिडेंसियल इनैग्रेशन कमेटी (पीआईसी) ने शपथ ग्रहण कार्यक्रम के ब्यौरे का एलान किया। पीआईसी प्रमुख टॉम बराक ने कहा, 'अपने शपथग्रहण संबोधन में राष्ट्रपति लिंकन ने कुदरत के खास फरिश्तों से अपील की थी।

उत्तराखंड में एनडी तिवारी और यशपाल आर्य की संघ से नत्थी हो जाने पर पहाड़ों का क्या होना है,यह सोचकर दहल गया हूं तो यूपी में भी नोटबंदी के करिश्मे के बीच मूसलपर्व के अवसान बाद आखिरकार चुनाव नतीजे में जनादेश का ऊंट करवट बदलने के लिए कितना स्वतंत्र है,यह फिलहाल अबूझ पहेली है।पंजाब में भी संघी अकाली सत्यानाश का सिलसिला खत्म होते नजर नहीं आ रहा है।

ग्लोबल हालात के साथ साथ भारत में भी नस्ली कुक्लाक्स क्लान केसरिया है।ओबामा केयर (स्वास्थ्य सेवा से संबंधित कार्यक्रम) को रद्द करने की ट्रंप की धमकी से वैसे दो करोड़ अमेरिकियों को सदमा लगा है, जो उससे लाभान्वित हो रहे हैं। उनका मंत्रिमंडल सफल अरबपति व्यावसायियों और वाल स्ट्रीट अधिकारियों के एक क्लब की तरह लगता है, जिनकी संयुक्त संपत्ति 12 अरब अमेरिकी डॉलर है! भारत में मीडिया एक दामाद के कथित कारनामों का राग अलापता रहता है, लेकिन अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति को इस संदर्भ में किसी तरह की नैतिक दुविधा का कष्ट नहीं भुगतना पड़ रहा । उन्होंने अपने दामाद जारेड कशनर को अपना वरिष्ठ सलाहकार नामित किया है.हालात का मिलान करके आजमा लीजिये कि युगलबंदी का नजारा जलवा क्या है।हमारे यहं नोटबंदी है तो वहां ओबामा केयर बंद है।

आज सुबह नींद खुलते ही टीवी स्क्रीन पर लावारिश किताबों और स्कूल बैग के बीच बच्चों की लाशों के सच का सामना करना पड़ा है।एटा की दुर्घटना में स्कूली बच्चों की लाशों की गिनती से कलेजा कांप गया है और रोज तड़के बच्चों को नींद से जगाकर स्कूल भेजने वाले तमाम मां बाप देश भर में इस दृश्य की भयावहता से जल्द उबर नहीं सकेंगे।उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दी है और कुहासा घनघोर है।ऐसे में कुहासा के मध्य स्कूलों को जारी रखने का औचित्य समझ से परे हैं,जिस वजह से यह दुर्घटना हो गयी।

सोदपुर में सुबह सुबह रेलवे स्टेशन पर अफरा तफरी,तोड़ फोड़ और रेल अवरोद का सिलसिला देर तक जारी रहा और सियालदह से रेलयातायात बाधित हो गयी।थ्रू ट्रेन की सूचना न मिलने की वजह से सरपट  दौड़ती ट्रेन की चपेट में एक वृद्ध की यहां सुबह ही मौत हो गयी है और यह रोज रोज का रोजनामचा कहीं न कहीं दोहराया जाता है।

इन तमाम हादसों में सबसे भयानक हादसा अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का उत्थान है जो फिर हिरोशिमा और नागासाकी का अनंत सिलसिला है और नस्ली नरसंहार का यह ग्लोबल हिंदुत्व पूरीतरह जायनी विपर्यय है ,जिसके खिलाफ अमेरिकी जनता प्रतिरोध के मिजाज में ओबामा की विदाई के साथ साथ सड़कों पर लामबंद है और इसके विपरीत भारत में और अमेरिका में भी बजरंगियों में जश्न का माहौल है।जश्न में नाचने गाने वाले भी खूब हिंदुस्तानी हैं,स्टार सुपरस्टार,ब्रांड एबेसैडर है।

कल अपनी विदाई प्रेस कांफ्रेस में बाराक ओबामा ने अबतक का उनका सर्वश्रेष्ठ भाषण दिया है  और अमेरिकियों को उम्मीद भी है कि उनका सपना मरा नहीं है।बाराक और मिसेल ने बहुलता और विविधता का लोकतंत्र बचाने के लिए जाते जाते अमेरिका में सुनामी रच दिया है,ऐसा राजनीतिक प्रतिरोध हमारे देश में फिलहाल अनुपस्थित है।

प्रेजीडेंट चुने जाने के बाद से शून्य से पांच सात डिग्री सेल्सियस के नीचे तापमान से बेपरवाह ट्रंप महल के सामन खुले आसमान के नीचे बर्फवारी के बीच जनता का हुजूम अब भी चीख रही हैःनाट आवर प्रेजीडेंट।कल उनके शपथ ग्हणके बाद महिलाएं उनके खिलाफ मार्च करेंगी।अमेरिकी इतिहास में वे सबसे अलोकप्रिय अमेरिकी राष्ट्रपति हैं और जिनका चेहरा फासिस्ट और नात्सी दोनों है।फिरभी भारत में उनके पदचाप का उत्सव है।

बहरहाल,अमेरिकी प्रेस एसोसिएशन ने कल शपथ ले रहे अमेरिकी हिटलर के नस्ली राजकाज के खिलाफ कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि आप हद से हद आठ साल तक व्हाइट हाउस में होंगे लेकिन प्रेस अमेरिकी लोकतंत्र का हिस्सा है ,जो रहा है और रहेगा।हम क्या छापेंगे,क्या नहीं छापेंगे ,यह हमारे विवेक पर निर्भर है और आप क्या बतायेंगे या नहीं बतायेंगे,यह आपकी मर्जी होगी लेकिन सच कहने से आप हमें रोक नहीं सकते और न आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी तरह का अंकुश सकते हैं।

डोनाल्ड ट्रंप के हवाले दुनिया है तो उस दुनिया में निरंकुश सत्ता के नस्ली नरसंहार के खिलाफ इंसानियत का प्रतिरोध भी तेज होने वाला है।हम अपने यहां ऐसा नहीं देख रहे हैं।न आगे देखने के कोई आसार हैं।

इस बुरे वक्त के लिए यह सबसे अच्छी खबर है।अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शुक्रवार को पद की शपथ लेंगे। उनके शपथ ग्रहण करने से पहले अमेरिकी प्रेस कोर ने साफ तौर पर कह दिया है कि ट्रंप उन पर फरमान जारी नहीं कर सकते बल्कि पत्रकार अपने एजेंडा खुद सेट करेंगे।

काश! भारतीय मीडिया निरंकुश सत्ता को इसतरह की कोई चुनौती दे पाता।

समझा जाता है कि नये अमेरिकी राष्ट्रपति प्रेस को व्हाइट हाउस से बाहर रखने की तैयारी कर रहे हैं।

गौरतलब है कि अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप आगामी शुक्रवार को शपथ ग्रहण करने के बाद 40 फीसदी लोगों के समर्थन के साथ हाल के समय के सबसे कम लोकप्रियता वाले राष्ट्रपति होंगे। मौजूदा राष्ट्रपति बराक ओबामा के मुकाबले ट्रंप की लोकप्रियता का आंकड़ा 44 अंक कम है। सीएनएन-ओरआरसी के नए सर्वेक्षण के अनुसार हाल के तीन राष्ट्रपतियों से तुलना करें तो ट्रंप की लोकप्रियता उनके मुकाबले 20 अंक कम हैं। ओबामा ने 2009 में जब दूसरे कार्यकाल के लिए शपथ ली थी तो उनकी लोकप्रियता का ग्राफ 84 फीसदी तक था।

गौरतलब है कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनते ही डोनाल्ड ट्रंप ने अपने आपको हिंदुत्व का बड़ा प्रशंसक बताते हुए कहा कि अगर वह राष्ट्रपति बनते हैं तो हिंदू समुदाय व्हाइट हाउस के सच्चे मित्र होंगे।

ट्रंप ने पीएम मोदी को महान शख्सियत करार देते हुए कहा कि वह भारतीय प्रधानमंत्री के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं। ट्रंप ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, वह अमेरिका का स्वाभाविक सहयोगी है।

ट्रंप ने आतंकवाद के खिलाफ भारत द्वारा चलाए जा रहे मुहिम को बेहतरीन बताते हुए कहा कि इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका भारत के साथ है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर वह राष्ट्रपति बनते हैं तो भारत के साथ दोस्ती को और मजबूत करेंगे।

इस बीच प्रतिष्ठित भारतीय-अमेरिकी विद्वान एश्ले टेलिस ने चेतावनी दी है कि नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की नीति भारत और अमेरिका के संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती है। साथ ही उन्होंने कहा कि ट्रंप को चीन से मिल रही चुनौतियों से निपटने के लिए द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की जरूरत है।

एक शीर्ष अमेरिकी थिंक टैंक के सीनियर फेलो टेलिस ने कहा कि ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की रणनीति अमेरिका-भारत के रिश्ते को नुकसान पहुंचा सकती है। ट्रंप को चीन से मिलने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए भारत के साथ संबंध मजबूत करने चाहिए। मुम्बई में जन्मे 55 वर्षीय टेलिस ने एशिया पॉलिसी में प्रकाशित एक लेख में कहा कि जॉर्ज डब्ल्यू बुश प्रशासन के समय में अमेरिका की भारत से घनिष्ठता इस आधार पर थी कि दोनों देश चीन के बढ़ने और उससे अमेरिका की प्रधानता और भारत की सुरक्षा को पैदा होने वाले खतरे का सामना कर रहे थे।

टेलिस का कहना है कि बुश प्रशासन के दौरान भारत के उभरती शक्ति की तरफ अमेरिका की प्रतिबद्धता संतुलित थी लेकिन ओबामा प्रशासन के समय कुछ अच्छे कारणों से यह आगे जारी रही। अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार आगामी ट्रंप प्रशासन टेलिस को भारत में अमेरिका का अगला दूत बनाने पर विचार कर रहा है। अभी टेलिस और ट्रंप की टीम ने इन खबरों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

दो साल पहले मोदी से आसमानी उम्मीदें थीं। अब दो साल हो गए हैं। तो कितनी उम्मीदें पूरी हुईं। मेक इन इंडिया का क्या हुआ? कितना डिजिटल हुआ इंडिया? कितना स्वच्छ हुआ भारत? अर्थव्यवस्था में कितना सुधार हुआ? अच्छे दिन कोई हकीकत है या अब भी ख्वाब है? मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर देखिए सीएनबीसी-आवाज़ पर महाकवरेज.... लगातार और शुरुआत मेक इन इंडिया पर रियलिटी चेक से।

मेक इन इंडिया का बड़ा पहलू ये है कि इसके लिए कितना विदेशी निवेश हो रहा है। यानी यहां कितनी कंपनियां आकर काम कर रही हैं या करने को तैयार हैं। मोदी सरकार अपने दो साल पूरे करने जा रही है। इस मौके पर हम सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक मेक इन इंडिया की जमीनी हकीकत का जायजा ले रहे हैं। अपनी स्पेशल सीरीज की शुरुआत हम कर रहे हैं एफडीआई यानी विदेशी निवेश की स्टेटस रिपोर्ट के साथ।

आज से करीब दो दशक पहले अलीशा चिनॉय के इस गाने ने मेड इन इंडिया को घर घर तक पहुंचा दिया। ये अलग बात है कि ये सिर्फ गाने तक ही सीमित रहा। जबकि पूरी दुनिया में मेड इन चाइना ने तहलका मचाया। करीब दो साल पहले इसे घर-घर तक पहुंचाने का जिम्मा उठाया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, लेकिन एक नए अंदाज के साथ।


मेक इन इंडिया योजना के प्रतीक बब्बर शेर ने दहाड़ तो खूब लगाई, लेकिन इसकी रफ्तार कैसी है, आइए जानते हैं। साल 2015 में विदेशी निवेश के मामले में भारत ने सभी एशियाई देशों को काफी पीछे छोड़ दिया, फिर चाहे वो सबसे बड़ी एशियाई अर्थव्यवस्था चीन हो या फिर जापान। एफडीआई इंटेलिजेंस के मुताबिक साल 2015 में भारत में 63 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया, जबकि चीन में ये आंकड़ा 56.5 अरब डॉलर के करीब रहा। बात यहीं खत्म नहीं होती। मेक इन इंडिया योजना के तहत अब तक डिफेंस सेक्टर में 56 विदेशी कंपनियां निवेश के लिए तैयार हैं, जिनमें फ्रांस की एयरबस, इजरायल की राफेल और अमेरिका की बोइंग जैसे नाम शामिल हैं।

पावर और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भी दुनिया की दिग्गज कंपनियां भारत में पैसा लगा रही हैं। इनमें पहला नाम है ताइवानी कंपनी फॉक्सकॉन का, जो अगले पांच सालों मे 5 अरब डॉलर का निवेश करेगी। फॉक्सकॉन के अलावा चाइनीज कंपनी श्याओमी और कोरियाई कंपनी एलजी ने भी भारत में स्मार्टफोन्स का प्रोडक्शन शुरू कर दिया है। ली ईको जैसे विदेशी स्टार्टअप भी निवेश के लिए भारत को फर्स्ट च्वाइस मानते हैं।

रेलवे को भी बिहार में दो इंजन कारखाने लगाने के लिए 10 हजार करोड़ रुपये का विदेशी निवेश जुटाने में कामयाबी मिली है, जो अब तक का रेलवे में सबसे बड़ा विदेशी निवेश है। वहीं मिसौरी की पावर कंपनी सन एडिसन ने देश में 4 अरब डॉलर की लागत से एक सोलर पैनल फैक्ट्री लगाने का एलान किया है। साफ तौर पर सरकार के पास खुश होने के लिए वजहें तो मौजूद हैं।


मेक इन इंडिया मुहिम के तहत आ रहे भारी विदेशी निवेश के मोर्चे पर मिल रही सफलता को लेकर मोदी सरकार उत्साहित है लेकिन जानकारों के मुताबिक ये भारी निवेश फिलहाल कागजों में ही और हकीकत में बदलने में 4-5 साल का वक्त और लगेगा।

विदेशी निवेशकों के सेंटिमेंट भले ही सुधरने का दावा किया जा रहा हो लेकिन निवेश अभी उस रफ्तार से नहीं आ रहा है जिसकी दरकार है। वैसे देश में कारोबार की राह आसान किए बिना मेक इन इंडिया मुहिम को सफल बनाना मुश्किल है। बीते दो सालों में सरकार ने कारोबार को आसान करने के लिए कई कदम तो उठाए हैं, लेकिन इसका कितना फायदा कारोबारी उठा पा रहे हैं, आइए जानते हैं।

मिनिमम गर्वमेंट, मैक्सिमम गर्वनेंस - ये है मोदी सरकार का नारा और इसे ध्यान में रखते हुए हर वर्ग के लोगों के लिए सरकारी कामकाज आसान बनाने की कोशिश की जा रही है। इसी का हिस्सा है कारोबार के लिए सरकारी मंजूरी मिलने में आसानी यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस। इसके लिए पिछले दो सालों में सरकार ने इंडस्ट्री लाइसेंस की प्रकिया को आसान बनाने से लेकर सभी तरह के रिटर्न्स ऑनलाइन जमा करने की सुविधा जैसे कई कदम उठाए हैं।

दुनिया भर में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग में भारत ने सुधार तो दिखाया है, लेकिन अभी भी हम दुनिया के 129 देशों से पीछे हैं। साल 2015 में हमारी रैंकिंग 142 थी जो इस साल 130वें नंबर पर पहुंच गई है। दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए ये रैंकिंग एक आईना है कि यहां बिजनेस करना कितना मुश्किल है। हालांकि सरकार को भरोसा है कि अगले तीन साल में वो देश को दुनिया के 50 टॉप देशों की लिस्ट में पहुंचा देगी।

सरकार अपनी पीठ जरूर ठोक रही है, लेकिन दो सालों में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां सरकार के दावों पर सवाल खड़े हुए हैं। चाहे वो वोडाफोन के साथ चल रहा टैक्स मामला हो या नेस्ले का मैगी विवाद, या फिर उबर जैसी कंपनियों के बिजनेस मॉडल को कठघरे में लाने की कई राज्य सरकारों की कोशिश। इन मामलों में केंद्र सरकार का रुख भी विदेशी निवेशकों के लिए असमंजस बढ़ाने वाला ही रहा। कंपनियां भी दबी जुबान में ही सही, सरकार की नीतियों पर नाखुशी जताती रही हैं। लेकिन सरकार के कामकाज पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट उसके इस दावे पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं कि देश में बिजनेस करना पहले से आसान हुआ है।

दूसरी तरफ सरकार की दलील है कि वोडाफोन और उबर जैसे इक्का-दुक्का मामलों के आधार पर राय नहीं बनानी चाहिए। सरकार के मुताबिक उसकी नीतियां किसी सेक्टर को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, किसी खास कंपनी को देखकर नहीं। हाल ही में संसद से पास हुए बैंकरप्सी बिल को भी कारोबार आसान करने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

जानकारों के मुताबिक इससे भारत की दुनिया में रैंकिंग भी सुधरेगी। लेकिन साथ ही वो कह रहे हैं कि इतना ही काफी नहीं है, लेबर और टैक्सेशन के मोर्चे पर सरकार को काफी कुछ करने की जरूरत है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की दिशा में अभी सरकार ने शुरुआती कदम भर उठाए हैं, अभी तो मीलों का सफर बाकी है।

प्रधानमंत्री मोदी का हर हाथ को काम देने का वादा था। उन्होंने कहा था कि देश के एक्सपोर्ट सेक्टर को वो चमका देंगे लेकिन मेक इन इंडिया मुहिम एक्सपोर्ट सेक्टर के अच्छे दिन लाने में अभी तक नाकाम रही है। बीते डेढ साल में एक्सपोर्ट में लगातार गिरावट आई है। हालत ये है कि मंदी की मार के चलते अब घरेलू एक्सपोर्टर्स अपना धंधा बंद करने को मजबूर हैं और लोगों की नौकरियां खतरे में है।

करीब 2 साल पहले मोदी सरकार ने अच्छे दिन लाने का वादा किया था, उन्हीं वादों पर भरोसा करते हुए एक्सपोर्टर्स ने इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़ा निवेश भी किया लेकिन वैश्विक मंदी और कमजोर सरकारी नीतियों के चलते नौबत यहां तक आ गई है कि वही बढ़ा हुआ निवेश एक्सपोर्टर्स पर भारी पड़ रहा है।

गुरुग्राम में पिछले 25 सालों से प्रीमियम फैशन गारमेंट्स का प्रोडक्शन कर रहे संजय चूड़ीवाला के ग्राहक यूरोप, स्पेन, फ्रांस और डेनमार्क जैसे देशों के बड़े ब्रांड्स हैं। लेकिन पिछले डेढ़ सालों से इनका कारोबार ठंडा पड़ा है। ग्लोबल मंदी की वजह से कम हुई मांग ने संजय को अपना प्रोडक्शन कम करने पर मजबूर कर दिया। नतीजतन, पहले जहां 250 से ज्यादा कारीगर संजय की एक्सपोर्ट यूनिट में काम करते थे, अब वो 15-20 तक सिमट गए हैं।

एक्सपोर्ट में मंदी का दुष्प्रभाव तो बिमल मावंडिया पर भी पड़ा है। बिमल जारा और फोरएवर 21 जैसे ब्रांड्स को रेडीमेड गारमेंट्स एक्सपोर्ट करते हैं। वो पिछले 40 साल से इस बिजनेस से जुड़े हैं, लेकिन इतने बुरे दिन उन्होंने कभी नहीं देखे। 2 साल पहले बिमल की 3 फैक्ट्रीज थी, जिनमें से दो अब बंद हो चुकी हैं। बिमल के मुताबिक एक्सपोर्ट सेक्टर की हालत सुधारने के लिए पुराने और घिसे-पिटे उपाय करने से काम नहीं चलेगा।

एक्सपोर्टर्स इस बात से भी नाखुश हैं कि मोदी सरकार ने प्रो-एक्सपोर्ट पॉलिसी लाने के बजाय उन्हें मिलने वाले इंसेंटिव्स पर ही कैंची चला दी है। एक्सपोर्टर्स की संस्था फियो यानी फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन के मुताबिक साल 2014 में जहां एक्सपोर्ट 323.3 बिलियन डॉलर था वो साल 2015 में 21 फीसदी गिरकर 243.46 बिलियन डॉलर रह गया। लेकिन सरकार इस गिरावट का जिम्मा अंतर्राष्ट्रीय वजहों को बताकर पल्ला झाड़ने में लगी है।

वजह चाहे जो हो, सच्चाई यही है कि तमाम प्रोडक्ट्स के एक्सपोर्ट में पिछले 8 महीनों से लगातार गिरावट आई है। और, सरकार के प्रयास इस सेक्टर में कोई सुधार लाने में नाकाम हैं। मोदी सरकार की मेक इन इंडिया मुहिम की कामयाबी काफी हद तक एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने पर भी निर्भर करती है। और अगर एक्सपोर्ट सुधारने की गंभीर कोशिशें जल्द शुरू नहीं हुईं तो इस मुहिम को फ्लॉप होने से कोई नहीं रोक पाएगा।





बक्सादुआर के बाघ-1 कर्नल भूपाल लाहिड़ी अनुवादःपलाश विश्वास

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बक्सादुआर के बाघ-1

कर्नल भूपाल लाहिड़ी

अनुवादःपलाश विश्वास




सुमन और अदिति पूरे मन से उनकी बातें सुन रहे थे।बक्सा दुआर वनांचल के मनुष्यों की कथा व्यथा।वे दूरदराज की बस्तिय़ों से आपबीती सुनाने आये हैं।

आदमा बस्ती के रमेश राय बता रहे थे कि कैसे जंगलात के अफसरान ने आदमा,लेपेचोखा,  ताशिगांव, चूनाभट्टी, ओछलुङ और लालबांग्ला बस्तियों के तीन सौ परिवारों को ब्रिटिश हुक्मरान की तरह आज भी अपना खरीदा हुआ गुलाम बनाये रखा है।

-फारेस्त दिपारमेंत के बाबू लोगों ने हम लोगों से नर्सरी तैयारी कराये रहे।नये एलाके में पौद लगाना,खर पतवार साफ सुफ करना,यानि कि जंगल की आग बुझाने परयंत तमाम काम जोर जबरदस्ती कराये रहे- एको पइसा न देत हैं।बस्ती के लोगों से कागज पर सही करवा लिये,परतेक परिवार को जंगल में एक एकड़ जमीन पे पेड़ लगावेक रहे-आउर इसके बदले तीन से पांच एकड़ फारेस्त की जमीन आबाद कर सकै हैं।

बीड़ी सुलगाकर रमेश बोलते रहे कि जिस कागज पे सही करवाये हैं,उसमें का का लिखा होवे,सुनो तो माथा गरम हुई जावै।आपको खेती वास्ते जो जमीन दिबे,उहां आप मुर्दाक दफना ना सकै हैं।न मंदिर मसजिद चर्च कोई धरमस्तान बना सकै हैं।फिन फारेस्त के हुक्मरान हुकुम करें तो पंद्रह दिनों के भीत्तर जमीन छोड़ देनी है।नहीं ना छोड़ा तो फारेस्त वाले कारिंदों से मार पीटाई करके भगाये दिबे।

आज सुबह यहां राजाभातखाओवा में बक्सा जंगलात में रिहायशी करीब सात सौ मर्दों और औरतों को लेकर जन सुनवाई शुरु हुई है। जो कल तक चलेगी।सुमन और अदिति कोलकाता से नवदिशारी नामक संगठन की ओर से इस जन सुनवाई में शामिल हैं।यह संगठन पिछले दस साल से जंगलात में रहने वाले लोगों के हकहकूक पर काम कर रहा है।इससे पहले कई दफा सुमन बक्सा आया हैं। अदिति पहलीबार आयी है।

नवदिशारी के अलावा अलीपुर दुआर के एक और संगठन की इस जन सुनवाई में हिस्सेदारी है। इस मौके पर जलपाईगुड़ी जिला के डिस्ट्रिक्ट जज,चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट और अलीपुरदुआर अदालत के सारे जज और मजिस्ट्रेट हाजिर हैं। पश्चिम बंगाल लीगल एइड सर्विस के चेयरमैन जस्टिस अमरेश मजुमदार सभापतित्व कर रहे हैं।नोटिस देने के बावजूद बक्सा टाइगर रिजर्व के फील्ड डिरेक्टर या उनके किसी डिप्टी ने आने  की तकलीफ नहीं उठायी।

इस जन सुनवाई का मकसद वन और वनांचल में रहने वाले मनुष्यों के संरक्षण के लिहाज से संसद में हाल में जो आईन कानून पास हुए हैं, वास्तव में उन्हें किस तरह लागू किया जा रहा है,इसकी समीक्षा करना है और इसके साथ साथ जंगलात में रहने वाले मनुष्यों  के अधिकारों का किस तरह और कितना उल्लंघन हो रहा है, इस  बारे में सारे तथ्य संग्रह करना है।

रमेश राय के बाद दक्षिण पोरो बस्ती के तिलेश्वर राभा अपनी आपबीती सुनाने को उठ खड़े हुए।उन्होंने कहा,आप जाने हैं कि राभा लोग आदत से  शर्मिला और शांत हुआ करै हैं।इये सुयोग निया फारेस्तेर अफसर लोग अत्याचार चलाइतेछे।पोरो बस्तीक एक सौ बीस परिवार पर।हर रोज। साल के बाद साल।लगातार।बिना मजूरी जोर जबरदस्ती काम कराये नितेछे छह सौ माइनसेक दिया। हमरा  गरीब मानुषगुलाक  ना दिछे राशन कार्ड दिया,ना बीपीएल कार्ड।बस्तीर माइनसेक वोटर लिस्टे  नाम नाई।बस्तीगुलात स्कूल नाई।साइस्थ्य केंद्र नाई ।खेती बाड़ी खातिर जमीन नाई। ना खाया मानुषगुला मइरबार शुरु कइरछे।।




अगले दिन जन सुनवाई बक्सा रेंज के निमति गांव में शुरु हुई।

पहले ही राजाभातखाओवा इलाके के दक्षिण गारो बस्ती के वाशिंदा नीरज लामा बोलने के लिए खड़े हो गये।अपने घर में सोये हुए थे नीरज ,हठात् आधी रात फारेस्ट वालों ने आकर उन्हें पुकारना चालू किया। फिर घर से निकलते ही अरेस्ट कर लिया।उन्हींके गांव के बाबूराम उरांव को पहले ही अरेस्ट कर लिया था और उन्हें साथ भी लाये थे।उन दोनों को उठाकर वे बैरागुरि ग्राम पहुंचे। फिर फारेस्ट के अफसरों ने वहां दो और लोगों शिवकुमार राय और दीपक राय को अरेस्ट कर लिया। फिर चारों को लेकर सीधे दमनपुर रेंज आफिस पहुंच गये।क्यों गिरफ्तार किया, इस बारे में उन्हें कुछ भी नहीं बताया गया।इसके बदले रेंज आफिस का दरवाजा बंद करके बेधड़क मार शुरु हो गयी।मारने पीटने के बाद हरेक के हाथ कोरा  कागज थमा दिया गया और रेंज आफिसर का हुक्म हो गया,सही कर दो।

अदिति सुमन के कान में बोली ,कितनी भयंकर बात है!यह तो एकदम नील दर्पण का दृश्य है।फर्क इतना ही है कि चाबुक हाथ में लिये लाल रंग का कोट पहिने लालमुंहा ब्रिटिश अफसर की जगह काली चमड़ी वाला खाकी वर्दी पहने आजाद लोकतांत्रिक राष्ट्र के वन दफ्तर के अफसरान हैं ये।

अमानुषिक अत्याचार और कोरा कागज पर दस्तखत की रस्म पूरी हो गयी तो रेंज अफसर गरज कर बोला, कोर्ट में मजिस्ट्रेट के सामने कबूल कर लेना कि तुम लोग हाथी दांत चुरा रहे थे।वे इस पेशकश पर राजी न हुए तो एक दफा फिर मार कूटाई हो गयी।कोर्ट में मुकदमा शुरु होने के बाद जेल हाजत में उन्हें बाइस दिन बिताने पड़े।फिर भारी कवायद कसरत के बाद जमानत पर रिहा हुए।वह मुकदमा अभी चल रहा है। कब तक खत्म होगा, नीरज लामा या दक्षिण गारो बस्ती के किसी को मालूम नहीं है।

इसके बाद अभियोग दायर करने की बारी उत्तर पोरो गांव के सुशील राभा की पत्नी बोलानी राभा की थी ।उम्र बीस इक्कीस। उन्होंने सिलसिलेवार बताया कि कैसे महज दो महीने पहले उन की कैसे बेइज्जती हुई बिना किसी जुर्म के।

उस दिन वे पति के साथ मछली पकड़ने नदी पर गयी थीं।बक्सा टाइगर रिजर्व के डिप्टी फील्ड डिरेक्टर एक और अफसर के साथ वहां से होकर गुजर रहे थे।दोनों को मछली पकड़ते देखकर उन्होंने सीधे भीषण पिटाई शुरु कर दी।बोलानी बुरी तरह जख्मी हो गयी।खबर मिलने पर गांव के लोग दौड़े दौड़े मौके पर पहुंचे और फिर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस सिलसिले में तालचिनि थाने में फारेस्ट अफसरों के खिलाफ मामला दर्ज कराया गया लेकिन आखिरकार पुलिस ने कोई तहकीकात नहीं की।

कालकूट बस्ती के रवि संगमा का आरोप है कि दस साल पहले फारेस्ट डिपार्टमेंट ने उनके खिलाफ झूठा मामला दायर कराया।वह मुकदमा अभी चल रहा है।

घटना का ब्यौरा देते हुए उन्होंने कहा कि एकदिन तमांग नाम के एक फारेस्ट गार्ड उन्हें घर से उठाकर राजाभातखाओवा  बिट आफिस ले गया।वहां जाकर उन्होंने देखा कि आस पड़ोस के गांवों से चार और लोगों को वे पहले ही उठा लाये थे।बिट आफिस में रातभर उनसे मारपीट की गयी और अकथ्य अत्याचार किये गये।अगले दिन उन्हें अलीपुरदुआर सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश कर दिया।बाइस दिन जेल हिरासत में काटने के बाद जमानत मिली।किंतु आज भी उन्हें नहीं मालूम कि आखिर उनका जुर्म क्या था और फारेस्ट एक्ट की किस धारा के मुताबिक उनके खिलाफ मुकदमा चलाया गया।

गदाधरपुर के सुरेश राभा,उम्र तीसेक साल,अपनी आपबीती सुना रहे थे। अक्तूबर महीने की एक ढलती हुई दुपहरी के दरम्यान वे अपनी लापता गाय को खोजते हुए जंगलात में दाखिल हो गये। बहुत खोजने के बाद भी गाय का अता पता मालूम न होने पर वे शाम के वक्त घर लौट रहे थे।तभी फारेस्ट गार्ड सुंदर भूटिया से उनका सामना हो गया। फारेस्ट गार्ड उन्हें देखकर पहले तो मुस्कुराया और फिर अचानक उसने अपनी रायफल से एक के बाद एक दो गोलियां सुरेश राभा के पैरों पर दाग दीं।गोलियों की आवाज सुनकर बस्ती के लोग भागे भागे आये। फिर सुरेश को अपनी  बस्ती में ले आये।अगले दिन उन्हें अलीपुर दुआर सरकारी अस्पताल में भरती कराया।तालचिनि थाने में शिकायत दर्ज कराने के बावजूद उस जल्लाद फारेस्ट गार्ड के खिलाफ आजतक कोई कार्रवाई  नहीं हुई।

गदाधर बस्ती के केरजी राभा की उम्र चालीस के करीब है।उनकी कथा व्यथा ह्रदय विदारक है।तीन साथियों के साथ जंगल में वे जलावन लकड़ी की खोज में निकले थे।सेसट्ठ नंबर वन सृजन इलाके में जब वे लोग सुस्ता रहे थे, अचानक वहां फारेस्ट बिट अफसर अश्विनी राय अपने लाव लश्कर  के साथ हाजिर हो गये और उन्होंने तुरंत बेमौक्का रायफल से गोली दागनी शुरु कर दी।केरजी के पांव में एक बुलेट धंस गया।संग संग वे वहीं गिर पड़े।उन्हें वही छोड़ उनके साथी भाग खड़े हुए। करीब दो घंटे बाद जब गदाधर बस्ती के लोगों तक खबर पहुंची,तब तक केरजी के पांव के जख्म से बहुत खून बह चुका था।उत्तेजित बस्ती वालों ने जख्मी केरजी को लेकर रेंज आफिस पर प्रदर्शन किया। किंतु रेंज अफसर ने दोषी फारेस्ट अफसरों को सजा देने के बजाय केरजी को पुलिस के हवाले कर दिया। लंबे अरसे तक पुलिस उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल घुमाती रही।आखिरकार केरजी के बुलेटबिद्ध पांव काटकर सीधे उन्हें अलीपुर जेल में डाल दिया।लंबा अरसा जेल में बीता देने के बाद केरजी अब जमानत पर हैं।

उस दिन की जन सुनवाई में इस तरह एक के बाद एक अनेक अमानवीय घटनाओं का ब्यौरा सामने आया।

सुमन सुन रहा था और सोच भी रहा था।उसके मन में तरह तरह के सवालात खड़े हो रहे थे। पहला सवाल, क्या बक्सा का यह जंगल इलाका भारतीय लोकतांत्रिक राष्ट्र व्यवस्था के दायरे से बाहर कोई देश है,जहां भारत का संविधान लागू नहीं है,और इसी वजह से संविधान में लिखे नागरिकों के मौलिक अधिकारों की तमाम बातें यहां इस तरह बेमायने हैं? दूसरा सवाल, भारतीय गणतंत्र और संविधान क्या इन असहाय और कमजोर मनुष्यों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में संपूर्ण व्यर्थ हैं? तीसरा सवाल,ऐसे तमाम असहाय और कमजोर मनुष्यों के मामले में क्या प्रशासन और न्याय प्रणाली अपने दायित्वों का पालन यथायथ कर रही हैं? चौथा सवाल,लंबे अरसे से इस तरह के अत्याचार और अन्याय क्या इन मनुष्यों को भी  माओवादी,कामतापुरी या अलफा की तरह हथियार उठाने के लिए मजबूर कर देंगे?

शाम ढलने को आयी।झिंगुर बोलने लगे हैं और बक्सा जंगल पर एक विषण्ण  छाया विस्तृत हो रही है।उत्तर पोरो बस्ती के लोग भरे हुए कंठ से एक एक कर कह रहे थे कि कैसे निष्ठुर पुलिस ने तीन साल पहले उनकी बस्ती के महज तेरह साल के मासूम जिंदादिल बच्चे सुलेमान राभा को गोली से उड़ा दिया।

उन्हें वह मनहूस तारीख भी साफ याद है।आठ दिसंबर।सुलेमान अपने हम उम्र साथियों के साथ जलावन लकड़ी लाने जंगल गया था ।नेशनल हाईवे नंबर 31 पार करते वक्त पुलिस गश्ती दल ने उन्हें देख लिया और रुकने को कहा।पुलिसिया आतंक के साये में ही वे हमेशा जीते हैं।इसलिए मारे दहशत  वे जंगल में घुसकर दौड़ने लगे और पुलिस उनके पीछे लग गयी।इसके बाद पुलिस  अचानक भागते हुए बच्चों पर रायफल से गोलियां बरसाने लगी ।एक बुलेट सुलेमान की पीठ में धंस गया और संग संग वह माटी पर लुढ़क गया।यमराज ने जैसे उस मासूम की तर ताजा देह से प्राण छीनने में मुहूर्तभर की देरी नहीं की,उसी तरह पुलिस ने भी यह प्रचारित करने में देरी नहीं लगायी कि वे लड़के डकैती करने आये थे।

जिस मनुष्य में तनिको बुद्ध विवेचना है,उनके लिए तेरह साल के बच्चे की डकैती का यह गप कितना विश्वसनीय होगा,इसे लेकर पुलिस को कोई सरदर्द न था।

एक के बाद इस तरह की घटनाओं का ब्यौरा सुनकर हतवाक् रह गयी अदिति।वह सोच ही नहीं पा रही थी कि एक राष्ट्र व्यवस्था के अंतर्गत जहां प्रशासन है,आईन कानून हैं,न्याय प्रणाली है, वहां रोज रोज इस तरह की अमानवीय घटनाएं कैसे घटित हो सकती हैं!

-यहां तो अक्षरशः जंगल राज चल रहा है।स्वाधीनता के साठ साल बाद भी ये असहाय लोग गणतंत्र के सुफल से वंचित हैं,किंत क्यों? अदिति का सवाल यह है।

सुमन ने गंभीर कंठ से कहा,मुझे लगता है कि इसके मुख्य तीन कारण हैं।

- पहला यह कि ,हमारे देश में सबकुछ वोट निर्भर है।जहां वोट ज्यादा हैं,वहीं सबकी दृष्टि है- राजनेताओं की,प्रशासन की।वोटरों को खुश रखने के लिए वहां सत्ता दल की ओर से विकास के सारे कर्म कांड होते रहते हैं। किंतु इस इलाके के मनुष्यों के नाम वोटर लिस्ट में नहीं हैं। चूंकि इनके वोट नहीं हैं,इसलिए राजनीतिक नेताओं की नेक दृष्टि में ये लोग नहीं है।और चूंकि राजनीतिक प्रभुओं की नेक दृष्टि इन पर नहीं है,तो उनके द्वारा पूरी तरह  नियंत्रित प्रशासन इन `जंगलियों'को लेकर अकारण सर क्यों खपायेगा?

-दूसरा कारण,वनों में रहने वाले ये लोग शांत और अहिंसक स्वभाव के  हैं। हर तरह के अत्याचार, वंचना ये चुपचाप सह लेते हैं। अत्याचारी इस अहिंसा को उनकी दुर्बलता मानकर दुगुणी ताकत से उनपर धावा बोलते रहते हैं। इसके अलावा भारत में देश के सर्वत्र एक हिंसात्मक वातावरण है,जहां पेशीबल, अश्राव्य गाली गलौच, चीत्कार फुत्कार की ही जय जयकार है-वहां इन सभी शांति प्रिय मनुष्यों का क्षीण कंठस्वर  गलाबाजों की गलाबाजी के नीचे दबकर रह जाने वाला है, इसमें अवाक होने जैसा कुछ भी नहीं है!

-तीसरा कारण,वन विभाग के कुछ कर्मचारियों का बेलगाम भ्रष्टाचार और राजनीतिक नेताओं टिंबर माफिया के साथ उनका अशुभ गठबंधन हैं।इसी गठबंधन की वजह से वन विभाग के कर्मचारी इतने दुस्साहसी हो गये हैं कि आज उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है- यहां तक कि वे पुलिस प्रशासन और देश की कानून व्यवस्था को अंगूठा दिखाते रहते हैं।

सुनील सान्याल ने कहा ,यह मामला नया कुछ नहीं है।महीनेभर पहले की बात है।वन विभाग के कर्मचारियों ने इसी वनांचल में दो लोगों को गोली से उड़ा दिया था।सर्व भारतीय कानूनविदों की एक टीम ने घटना की जांच करने के लिए पहुंचकर सवाल उठाया कि अंधाधुंध गोली चलाकर मनुष्यों की हत्या करने का कोई कानूनी अधिकार क्या फारेस्ट कर्मियों को है? यही सवाल जस्टिस अमरेश मजुमदार ने भी जजों की एक बैठक में कर दिया।इसका जो जवाब उन्हें स्थानीय जजों से मिला, सुनकर आप चौंक जायेंगे।उन्हें दो टुक शब्दों में कह दिया गया कि फारेस्ट कर्मचारियों के सात खून माफ हैं।आईन की कोई क्षमता नहीं है कि उनका केशाग्र भी स्पर्श करे।

-किंतु मीडिया? इन मनुष्यों की कथा व्यथा देश की आम  जनता तक पहुंचाने की जिम्मेदारी तो प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया की है! वे क्या इस दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं?

अदिति का प्रश्न सुनकर ठठाकर हंस उठा सुमन।

-क्या कहा तुमने, मीडिया की जिम्मेदारी ? जहां देश की पुलिस, प्रशासन, आईन व्यवस्था - कोई अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं कर रहा है तो क्यों मीडिया पर यह भारी दायित्व थोंपती हो? तुम्हें समझना चाहिए,आज की दुनिया में दायित्व की बात ओबसोलिट है।कोई अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करता है। हर कोई अपने स्वार्थ सिद्ध करने में लगा है! इनकी कथा व्यथा दिखाकर मीडिया का कोई हित सधता नहीं है,इसलिए मीडिया यह सब दिखाता नहीं है!ऐज सिंपल ऐज दैट!

सुमन थोड़ा रुककर बोला ,फिर यह भी संभव है कि जो प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया यह सब लिखेगा या दिखायेगा,सरकार उनको विज्ञापन बंद कर देगी।उनके दफ्तरों में इसके उसके मार्फत रेइड चलाकर उन्हें नेस्तानाबुत कर देगी।मुश्किल यह है कि आज सत्ता दल द्वारा संचालित सरकार और प्रशासन में विभाजन रेखा खत्म होकर एकाकार हैं।अब सरकार यह समझती है कि प्रशासन के खिलाफ कुछ बोलने का मतलब है उसके खिलाफ ही बोलना।और सरकार इसे किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगी।






दो



जन सुनवाई खत्म होते होते रात हो गयी। रपट फाइनल की नहीं जा सकी।यहीं बैठकर रपट फाइनल कर लेने की सुविधा बहुत है,छिटपुट कुछ तथ्यों की कमी महसूस हुई तो वे सहज ही जुटाये जा सकते हैं। इसलिए सुमन और अदिति ने मिलकर आपस में  तय किया कि वे आज की रात निमति बस्ती में ही बितायेंगे।

कोलकाता और दूसरे शहरों से जो लोग यहां आये थे,सिर्फ अलीपुरदुआर के एडवोकेट सुनील सान्याल को छोड़कर वे सभी एक एक करके लौट गये।जन सुनवाई खत्म होने में देरी हो जाने की वजह से  दूर दराज की बस्तियों से लोग आये थे, उन्हें हिम्मत ही नहीं हुई कि रात के अंधेरे में बक्सा के घने जंगल होकर वे कई कोस दूर अपनी बस्ती में लौट जाते।

रपट लिखने के लिए रोशनी की जरुरत थी।अदिति कहीं से एक लालटेन का जुगाड़ कर लायी। रपट के मसविदा वाले कागजात एक फाइल में सहेजते हुए सुमन ने कहा,जानती हो अदिति, इस जंगल का आयतन निहायत कम नहीं है।1982-83 में 760 वर्ग किमी आयतन के इस बक्सा अरण्य को टाइगर रिजर्व घोषित किया गया।1986 में 314.52 वर्ग किमी इलाका जोड़कर और फिर 1991 में और 54,47 किमी अतिरिक्त और  इलाका जोड़कर बक्सा वाइल्ड लाइफ सैंक्च्युरी का सृजन हो गया। 1997 में बक्सा वाइल्ड लाइफ सैंक्च्युरी के 117.10 वर्ग किमी इलाके को नेशनल पार्क घोषित किया गया। किंतु इस घोषणा के बावजूद टिंबर माफिया और वन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से जंगल का घनत्व जैसे घटा है, उसी तरह अवैध शिकारियों के उत्पात से बाघों और हिरणों की तरह प्राणियों की संख्या भी घटी है। दूसरी तरफ,लगातार खंडित हो रहे इलाका और संकुचित विचरणक्षेत्र के अभाव में बस्तियों पर हाथियों के हमले होने की वारदातें भी लगातार बढ़ी हैं।

सुनील सान्याल ने कहा, जंगल का आयतन और घनत्व कम होते जाने की वजह के अलावा हाथियों के लिए खाद्य संकट का एक और कारण भी है।एक वक्त यह अरण्य मिश्र प्रकृति का रहा है- लता गुल्म रहे हैं।हरे पत्तों वाल पेड़ पौधे झाड़ियों की भरमार थी।अब इनमें से अधिकांश लापता हैं। अब सिर्फ शाल के पेड़ रह गये हैं।

मसविदा के कागजात सहेजकर सुमन ने फाइनल रपट लिखना शुरु ही किया था कि बाहर भारी शोरगुल होने लगा।निमति गांव के प्रधान रोमेन माराक ने कमरे में घुसकर कहा,उत्तर गारो बस्तीर लाल सिंह भुजेल आउर दक्षिण पोरोर तिलकेश्वर राभा आप लोगों से मुलाकातेर खातिर तभी से जिद पकड़ि बसि आछे। हमी जतो समझायी कि अभी मुलाकात होबे नाई,कल सुबह आ जाना- हमार कथा वो सुनतेछे ना-

फाइल से नजर उठाकर सुमन ने कहा,बुला लीजिये उन्हें।

कमरे में घुसकर लाल सिंह ने कहा,तामाम दिन आप लोग सबकी बात सुइनलेन,किंतु हमरागुला लोगों की माइनसेर कथाटु सुइनलेन ना।क्यों, हम लोग कि एई जंगले वास करि ना? ना हमरागुला मानुष ना?

रोमेन माराक उन्हें समझाने की कोशिश की।कहा, कथाटु ऐमोन ना होय।उयादेर सक्कलेर कैचर मैचरे राइत होइ गेलो, सभी आपन दुःख कष्टेर कथा सुनाइते चाहे,किंतु एत्तो समय कुथा बाबू लोगों को? सभी लोगों की सब कथा सुइनते कमसेकम दस बारह दिन समय लागे-

- लगने दो।तिलकेश्वर राभा की आवाज में उष्मा थी।बाबू लोग तो रोज रोज आइसतेछेन ना। आइसतेछेन दो तीन साले एक्कोबार।तभी यदि उयादेर हमी फारेस्त दिपार्तमेंतेर अत्याचारेर कथा ना कह सकें-

लाल सिंह और तिलकेश्वर का गुस्सा अकारण नहीं था।एकदम सुबह से लेकर सांझ ढलने तक इंतजार में बैठने के बावजूद अगर किसी को अपनी व्यथा कथा कहने का मौका न मिले तो माथा गरम होने की बात तो है।फिर दो तीन साल में एक बार चेहरा दिखाने की शिकायत भी जायज निर्मम सच है।मामला तकलीफदेह जरुर है लेकिन सुमन,अदिति और सुनील सान्याल में से किसी की समझ से परे नहीं है।उपस्थित सभी लोगों के चेहरों को एकबार देख लेने के बाद सुमन ने कहा,ठीक है,बोलो तुम्हारी बात।अदिति,तुम नोट कर लेना।इस पर तिलकेश्वर राभा ने सिलसिलेवार ब्यौरे के साथ पोरो बस्ती के साधारण राभा की रेंज अफसर ने कैसे गोली मारकर हत्या कर दी,वह किस्सा बताना शुरु कर दिया।

-साधारण राभा उयार बस्तीर तीन जनके निया यही निमति बस्ती आइसतेछिलो।रास्ताय एक जगह उयारा देखे कि फारेस्त दिपार्तमेंतेर मानुष एक त्रके मोता मोता गाछ लोड कइरतेछे।रेंज अफिसर  साधारण आउर  उयार संगीदेर  हांक लगाइके  फरमान जारी करि दिया ,तुमार लोगगुलान हमारगुला मानुष के साथ लकड़ियों को त्रक में लोद कर दो। सभी लकड़ी त्रके लोड करा होइले वोई रेंजर साधारणके  धक्का दिया माती पर गिराये एइसा पीता कि उयार मुख से फव्वारा जइसा खून निकल आया।खून बिल्कुल थम नहीं रहा था।फिर वह खत्म हो गया। आइज तक ओई रेंजर के खिलाफ कोनो कार्रवाई पुलिस करे नाई।

यहां के ढेरों लोगों की तरह ट का उच्चारण तिलकेश्वर राभा त करता है।

बहरहाल उनके बताये किस्से में कुछ नया नहीं था।दो दिन से जितनी घटनाओं के बारे में उन्होंने सुना है,इसे उनकी पुनरावृत्ति कहा जा सकता है।किंतु इन पुनरावृत्तियों के मार्फत एक पैटर्न साफ से साफ नजर आने लगा सुमन को।

सुमन ने अदिति से कहा कि तुमने जरुर गौर किया होगा कि इन घटनाओं में एक पैटर्न है। वह पैटर्न यह है कि जंगल में रहने वाले लोगों पर फारेस्ट डिपार्टमेंट के अफसर  लगातार एक के बाद एक अमानुषिक अत्याचार करते रहते हैं और हर बार फारेस्ट डिपार्टमेंट के अपराधी अधिकारियों के खिलाफ  पुलिस और प्रशासन की भूमिका निर्विकार है।पुलिस प्रशासन की तरफ से फारेस्ट डिपार्टमेंट के अफसर और कर्मचारी एक तरह की इम्युनिटी एंजाय करते हैं ।इसीलिए सबके सामने दिनदहाड़े कत्ल करने के बाद भी उनका कभी कुछ बिगड़ता नहीं है।पुलिस के इस पक्षपात की वजह से ही न्याय प्रणाली और सह्रदय न्यायाधीश तक न्याय या दोषियों को दंडविधान करने में कोई सकारात्मक भूमिका नहीं निभा पाते।

सुनील सान्याल ने कहा कि कुछ दिनों पहले जस्टिस अमरेश मजुमदार के साथ स्थानीय जजों की बैठक में इस जंगलात इलाके के मौजूदा हालात के विश्लेषण के बाद ऐसी ही राय बनी थी।

-यही स्वाभाविक है।सत्य का सही विश्लेषण हर वक्त आपको एक ही नतीजे तक पहुंचा देता है। यह काफी हद तक हिसाब के सवाल हल करने जैसा है।कोई भी ऐसा सवाल हल करने बैठे तो सबका जवाब हर बार ,बार बार एक जैसा ही निकलेगा।

-किंतु यह  सिद्धांत तो हमें निश्चित तौर पर एक बड़े प्रश्न के सामने खड़ा कर देता है,उसका जवाब कौन देगा? अदिति ने कहा।

-वह प्रश्न क्या है? फाइल पर लिखते लिखते चेहरा उठाकर देखा सुमन ने।

-पुलिस की तरफ से फारेस्ट डिपार्टमेंट वालों को यह इम्युनिटी दिये जाने का कारण क्या है?

अदिति के चेहरे की तरफ देखते हुए होंठों के कोण से हल्का सा हंसा सुमन।फिर फाइल में नजर गाढ़कर गंभीर आवाज में उसने कहा, माई डियर अदिति, आज की दुनिया में मुफ्त में कुछ भी नहीं मिलता है। देयर इज नो फ्री लंच एंड देयर इज ए प्राइस फार एवरी थिंग।बक्सा के जंगलात में फारेस्टवालों को यह इम्युनिटी खरीदनी पड़ी है,ऐट ए प्राइस। इट इज द क्वेश्चन आफ  शेयरिंग द स्पायेल्स आफ लूट।आओ भाई, जो माल कमाया, बंटवारा करके हजम कर लें। तुम भी खुश, मैं भी खुश।


फिर इस खुशी के माहौल में,लूट के बंटवारे के साझे महोत्सव में एकमात्र कांटा ये जंगली मनुष्यों की जमात है। उनके दो जोड़े(एक जोड़ा फारेस्ट गार्ड के और एक जोड़ा पुलिस के) बूटों के नीचे वे उन्हें कुचलकर दबाये रखते हैं ताकि वे कभी सिर उठाकर ,रीढ़ सीधी करके खड़ा हो न सकें। चाहे अंधाधुंध गोली मारकर या मध्य रात्रि रेंज आफिस ले जाकर मार पीटकर अधमरा करके जैसे भी हो अमानवीय दमन से वे उनके दिलदिमाग में ऐसा आतंक का माहौल सिरजते हैं, जो कुत्तों के काटने के बाद होने वाले जलातंक से भी भयंकर होता है।पूरे जंगलात इलाके में दहशत की फिजां बनाकर,वे त्रास का सृजन करते हैं  ताकि इन जंगली मनुष्यों की जमात में कभी प्रतिवाद करने का साहस न हो!

घड़ी की सुई रात के ग्यारह बजे बताने लगी।रपट का मसविदा लगभग तैयार है,रोमेन माराक बार बार तगादा करने लगे।बगल में जलधर मोमिन के घर रात के भोजन का न्यौता है।कागजात समेटकर वे उठने को हुए, तभी फिर बाहर भारी शोरगुल।सुमन ने बाहर आकर देखा कि एक आदिवासी युवती,उम्र चौबीस पच्चीस,ने रोमेन माराक से तीखी बहस शुरु कर दी है।

-बक्सा जंगलेर सभी बस्तीर माइनसे जे जार कथा कहि सकै,किंतु बाबू लोग हमार कथा क्यों न सुइनबे?

- दिनभर तो सुइनछे।अभी तमाम  राइत बइठे बइठे खाली तुमार कथाई सुइनबे,खाना पीना न लागे, नींद ना लागे?

सुमन ने रोक कर कहा- अहा,उन्हें कहने तो दो,क्या बोलना चाहती है!

यहां रोशनी नहीं है,उनका नाम धाम सब लिखना है,उन्हें भीतर ले आयें,रोमेन से सुमन ने कहा।

युवती भीतर आयी।उसके साथ एक पुरुष।बोली, हमार नाम सुशीला,गारो बस्तीत रही।इटा हमार मरद,सुधीर।सुधीर माराक।

वह आदमी नाटे कद का ,शरीर स्वास्थ्य भी उस तरह ठीक ठाक नहीं है- युवती के साथ वह उसके मुताबिक सही लग ही नहीं रहा था। लालटेन की रोशनी में युवती का चेहरा खिला हुआ था,साफ साफ दीख रही थीं आंखें, दीख रहा था चेहरा- हां,उसे सुंदरी कहा जा सकता है।सुमन की नजर में इस इलाके के आदिवासियों में ऐसी सुंदरता देखने को आज तक नहीं मिली थी। स्वप्नाविष्ट की तरह उसके चेहरे को ताकता रहा सुमन।

मन ही मन उसे इच्छा होने लगी युवती के नये नामकरण करने का।वनफूल? ना,ना,इससे बेहतर एक नाम जेहन में आ रहा है- वाइल्ड फ्लावर!

चारों तरफ इतना शोर शराबा,सारा दिन लगातार परिश्रम,अत्यंत क्लांत शरीर और मन,पेट में भीषण भूख- इस वातावरण को किसी भी तरह रोमांटिक आख्या नहीं दी जा सकती-ऐसे दुःसह वातावरण में हठात् असमय आविर्भाव इस वाइल्ड फ्लावर का!असमय हो या जो भी हो,वसंत जब हठात् आ ही गया है,तब उसका सादर आवाहन सम्भाषण करना ही होगा सुमन को।

सम्भाषण किंवा घनिष्ठता के सेतुबंधन के लिए मातृभाषा से उत्कृष्ट कोई पंथा नहीं है,यह तत्व ज्ञान और अभिज्ञता दोनों सुमन को है।सो,वाइल्ड फ्लावर को उसने गारो भाषा में संबोधित कर डाला- ना आछिक मा?अर्थात,तुम क्या गारो हो?

संपूर्ण अपरिचित किसी व्यक्ति के मुख से अप्रत्याशित तरीके से अपनी मातृभाषा सुनकर मुहूर्तभर में उज्ज्वल हो उठा युवती का चेहरा,निमेषभर में अपरिचिति का दुरत्व और क्लांतिकर दीर्घ प्रतीक्षा से उत्पन्न विरक्ति लापता।

-ओये।ना आछिक खुशिक उइया मा? युवती ने जवाबी सवाल किया।

(हां,तुम्हें गारो भाषा आती है?)

-उइया, नाम्मेन उइया।

(जानता हूं, खूब अच्छी तरह जानता हूं)

इसी तरह दोनों के मध्य गारो भाषा में प्रश्नोत्तर पर्व चलता रहा काफी देर तक।बगल में बैठे अदिति और सुनील सान्याल ,नीरव दर्शक बने मूक आंखों से देखते रहे कि कैसे उनके लिए संपूर्ण अर्थहीन कुछ शब्द किस तरह दो संपूर्ण अपरिचितों के मध्य सम्पर्क का सेतुबंधन बना रहे थे।

युवती उसके पति सुधीर पर फारेस्ट गार्ड के अत्याचारों  ब्यौरा सुना रही  थी। वर्णना के मध्य कभी विषण्णता की छाया गहरा रही थी उसके चेहरे पर ,कभी क्रोध से रक्तिम हो रही थीं उसकी आंखें, विस्फारित हो रही थी नासिका,तो कभी तीव्र वेदना में दोनों आंखों से आंसू बाढ़ की तरह बह रहे थे, उसके गुलाबी दोनों गालों से होकर।

इन सामान्य कुछेक मिनटों में दोनों के मध्य न जाने कैसी एक घनिष्ठता तैयार हो गयी। सुमन को केंद्रित युवती के मन में नई आशा और भरोसा का सृजन हो चला था।विषण्णता की छाया काटते हुए इसी पल उसकी आंखों और उसके चेहरे की उज्ज्वलता  और उसकी समस्त देह में नये सिरे से संचारित स्फूर्ति बता रही थी यह।

इतने अल्प समय के भीतर अपरिचय का व्यवधान अतिक्रम करके निकट आत्मीय की तरह निःसंकोच सुमन के दोनों हाथों को जकड़ कर सूशीला कह रही थी, आमाक मदद कइरबार कोई नहीं ! आप हमार मदद कइरबेन तो ?

-अवश्य ही करुंगा,आंतरिकता के साथ आश्वस्त कर रहा था सुमन।

-विपद हइले ,खबर दिले आइसबेन तो?

-निश्चय ही आउंगा,वाइल्ड फ्लावर का हाथ पर अपना हाथ हल्के से रखकर बक्सा जंगल में झिंगुर की पुकारों वाली उस रात को वायदा किया सुमन ने। नीरव साक्षी थे दो लोग, अदिति और सुनील सान्याल।




तीन




सुमन की उम्र तब अड़चालीस थी,अदिति की चौतीस।बारह साल पहले जब उनका परिचय हुआ तब सुमन छत्तीस साल का था और  महज बाइस छूने के करीब थी अदिति।उम्र में फर्क के बावजूद दोनों के बीच इस दरम्यान धीरे धीरे एक निवीड़ संपर्क गढ़ उठा था।

किसी वक्त सुमन प्रेसीडेंसी कालेज में पालिटिकल साइंस का नामी छात्र था।मूलतः उसका यह नाम यश उसकी मेधा के कारण था। स्टु़डेंट्स युनियन की विभिन्न गतिविधियों में सक्रिय हिस्सेदारी के बावजूद बेहतरीन  अकादमिक परफर्मांस, इसके साथ ही विचित्र विषयों में प्रचुर अध्ययन और अतुलनीय वाग्मिता। काफी हाउस में मार्क्स एजेंल्स का तत्व और इस देश में रिवोलिउशन की संभावना पर घंटों तर्क वितर्क।।उन तर्क युद्धों में कोई कभी सुमन को हरा नहीं सका।

कालेज से पास करने के बाद कुछ दिनों तक इधर उधर वह भटकता रहा था,उसके बाद एक कस्बाई शहर के कालेज में छात्रों को पढ़ाने की चाकरी भी सुमन ने जुगाड़ कर ली थी।

यह जगह कोलकाता से कुछ दूरी पर थी, जहां से कोलकाता रोज रोज आवागमन संभव न था। करीब छह महीने छात्रों को पढ़ाने के बाद यह काम कैसे जैसे घिसा पिटा महसूस होने लगा सुमन को। काफी हाउस का अड्डा नहीं रहा, मार्क्स एंजेल्स, लेनिन या विप्लव को लेकर तर्क वितर्क नहीं था, उसके प्रिय कवि पाब्लो नेरुदा की कविताओं पर घंटों चर्चा नहीं थी जो कवि लांछित अवहेलित निपीड़ित मनुष्यों की कथा कहने को सदैव व्याकुल-

    Come quickly to my veins

    And to my mouth,

   Speak through my speech

   And through my blood.

आखिरकार सुमन ने वह नौकरी छोड़ दी।फिर किसी के आगे हाथ फैलाना  न पड़े, इसके लिए कोलकाता लौटकर उसने तीनेक छात्रों को लेकर ट्यूशन शुरु कर दिया। इसके बाद साल भर में छात्रों की संख्या दस तक पहुंच गयी। हजारों दबाव के बावजूद सुमन ने पिछले पंद्रह सालों में यह संख्या बढ़ने नहीं दी। सवाल करने पर वह जवाब देता, इसीसे मजे में चल रहा है।ब्याह शादी नहीं की ,घर संसार नहीं है- इससे बेशी रुपयों की मुझे दरकार क्या है?

किसी वक्त अदिति भी सुमन के प्राइवेट ट्युशन की गुणमुग्ध छात्रा रही है।तब तक उसने सिर्फ इक्कीस वसंत देखे थे।सुमन सर के नित्य नूतन गुणों के आविष्कार के साथ साथ अदिति की गुणमुग्धता भी होड़ लेकर बढ़ रही थी।बढ़ते बढ़ते सुमन सर से नींद में,सपनों में सुमनदा। प्रेम के सागर में डूबते उतरते हुए कुल किनारा न पाकर एक दिन आखिरकार सुमन के आगे ह्रदय का लाकगेट खोल ही दिया उसने ।सुमन ने मन लगाकर सबकुछ सुन लिया।सुनकर ठंडे गले के साथ बोला, तुम्हारी उम्र में ऐसा होना अस्वाभाविक नहीं है।यू शैल बी एबल टु ओवरकम दिस इमोशन वेरी सून।

सुमनदा की इस तरह की हिम शीतल प्रतिक्रिया पर अदिति ने परदे के पीछे छुप कर अनेक दर्जन रुमाल आंखों के आंसुओं से  भिगो लिये।सुमनदा के साथ घर बांधने का ख्वाब देख रही थी वह। हो न उसकी उम्र कुछ ज्यादा है उससे,इससे क्या! अनेक कष्ट सहकर एक दिन अदिति ने ब्याह की बात भी कर दी सुमन से।

किंतु वह प्रस्ताव सुनकर सुमनदा ने गंभीर आवाज में जो कहा,उससे अदिति का ह्रदय-उर्द्ध आकाश में लाल-नील-हरे तारों का फव्वारा निकालने के बाद, माटी से बनी तुबड़ी अनार पटाखा के खोल की तरह फटकर टुकड़ा टुकड़ा हो गया।

-ब्याह की बात मैंने कभी नहीं सोची और भविष्य में भी नहीं सोचुंगा।ब्याह शादी,घर संसार- यह सब मेरे लिए नहीं है।सुमन ने किताब के पन्ने पलटते हुए निर्विकार कहा था ।

-उफ! धरती तुम फट जाओ,मैं तुममें प्रवेश करुं।मन ही मन बोली अदिति।

अदिति ने यह बात स्पष्ट समझ ली कि इस मनुष्य से अनुनय विनय करके कोई लाभ नहीं होने वाला है।प्रचंड जिद्दी है यह सुमनदा।एकबार कोई फैसला कर लिया, तो किसी भी सूरत में पलटने वाला नहीं है।

दोराहे पर खड़ी थी अदिति। एक तरफ, जीवन भर का सपना- ब्याह,घर-संसार। दूसरी तरफ सुमनदा। इन दोनों में से किसी को चुनना था उसे।

रात रात भर रातें जगकर, नाक के पानी आंखों के आंसू से अनेक बिस्तर तकिया भिगोने के बाद, अंतहीन चिंताओं के सागर पार करने के बाद शेष पर्यंत एक निर्णय पर पहुंची अदिति।समझौता कर लिया अपने भाग्य के साथ।वह साफ साफ समझ चुकी थी कि सुमनदा के बिना उसका जीवन कितना अर्थहीन हो जाना है,कितना असहनीय होगा वह।विशाल वृक्ष जैसे उस मनुष्य से लिपटी किसी लता की तरह वह इस तरह गूंथ गयी कि खुद को उस बंधन से तोड़कर अलग करने की कोशिश करने पर, उसका अपना कोई अस्तित्व ही बाकी नहीं रहना था।

-ठीक है ,न हो तो शादी नहीं ही करना- नहीं ही बसाना घर संसार,किंतु अगर मैं आपके साथ बनी रही, आपके काम में मदद करती रही, तब तो आपको कोई आपत्ति नहीं होगी? सीधे अदिति ने यह सवाल कर दिया।

- नहीं,कोई आपत्ति नहीं है-सो लंग यू डोन्ट क्रस द लाइन! गंभीर स्वर में कहा सुमन था ने।

अदिति को सांत्वना मिली कि न हुआ विवाह,न ही पहना शांखा सिंदूर- शय्यासंगिनी नहीं हुई तो क्या अंततः कर्मसंगिनी होकर अपने मन के मानुष सुमनदा के साथ सारा जीवन वह बीता लेगी।

और इसी तरह बाद के दस साल बीत गये।स्त्री की मर्यादा नहीं मिली अदिति को,कितु सुख में,दुःख में सुमन की नित्यसंगिनी वह- सारी चिंताओं और भावनाओं में हिस्सेदार,सभी कामों में सहायक।

बीच बीच में सुमनदा को कोलकाता से बाहर जाना होता है ।उसका ज्यादातर काम देश के विभिन्न इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को लेकर है। कभी झारखंड, कभी ओडीशा, कभी मेघालय, कभी डुआर्स।ऐसे वक्त कोलकाता में बैठकर अदिति को सुमन का सारा कामकाज संभालना होता है ।

अबकी दफा पहलीबार सुमनदा के साथ  अदिति बक्सा के जंगल आयी है। इसकी खास वजह भी है। हाल में सुमन को शुगर होने का पता चला है।अपने शरीर स्वास्थ्य के प्रति वह  प्रचंड उदासीन,उसे ठीक ठीक वक्त पर दवाएं देते रहने की जिम्मेदारी अदिति की है।इतने दिनों के संबंध के बावजूद अदिति  सुमन को नाम से पुकार नहीं सकती, न जाने कैसा संकोच होता है।सुमनदा कहकर ही बुलाती है ,जैसे बारह साल पहले जब सुमनदा उसे पढ़ाने उसके घर आया करता था,वह कहती थी।

तब सुमन एक मन से आंखें बंद करके पढ़ाता और उसके चेहरे को निष्पलक आंखों से देखती रह जाती अदिति।ज्ञान की गहराई, विषय विश्लेषण की दक्षता,कहने की शैली- सुनते सुनते अदिति को लगता कि ऐसा उसने कभी नहीं सुना, सुनेगी भी नहीं फिर कभी।सुमनदा सच में अतुलनीय है,वह एकमात्र एवं अद्वितीय है।सुमनदा के चेहरे को सम्मोहित सी देखते हुए,उसके मुख से निकलते शब्द धीरे धीरे बुदबुद की तरह शून्य में खो जाते।कल्पना के पांख खोलकर  उड़ते रहते गांग चील की तरह नीले आसमान में,दूर तलक,बहुत दूर तलक।उसकी कल्पना के कैनवास पर तब होंठ हिलाता एक चेहरा होता, वह चेहरा सुमनदा का।

छत्तीस साल के सुमन के व्यक्तित्व और आकर्षण ने बाइस साल की नवयौवना रोमांटिक अदिति को जादुई मायाजाल की तरह ऐसे सम्मोहित कर रखा था कि उसकी नींदों में,ख्वाबों में सिर्फ सुमनदा।  उसका यह स्वप्नाविष्ट भाव मां की आंखों में पकड़ा गया।मां ने अदिति से सवाल किया- क्या रे, सुमन से तू क्या ब्याह करेगी? तुझसे उम्र में कितना बड़ा है !

-मैं तो ब्याह करना चाहती हूं लेकिन सुमनदा नहीं चाहते।

-तब उसे भूल जा।किसी और से ब्याह कर ले।

-भूल जाउं? कैसे भूल जाउं? वह जो मनुष्य है,वह मेरे समस्त भीतर और बाहर को व्यापा हुआ है, आंखें बंद कर लूं तो मेरी आंखों के सामने सब समय वही घूम रहा है,उसे मैं कैसे भूल जाउं मां?

सहेलियों ने चेतावनी भी दी,तू बहुत बड़ी गलती कर रही है अदिति! लाइफ सिक्युरिटी एक इंपार्टेंट मामला है और विवाह से लाइफ सिक्युरिटी का संबंध है।जब तेरी उम्र हो जायेगी तब देखना, सुमन के साथ तेरा यह संबंध टिकेगा नहीं। तब क्या करेगी? कौन देखेगा तुझे? फिर सबके जीवन में शौक आह्लाद भी कोई चीज है,घर संसार,बच्चे-

सहेलियों की इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया अदिति ने।सुमनदा से सीधे पूछा था अपने संबंधों के भविष्य के बारे में।उस दिन दो टुक शब्दों में सुमनदा ने जवाब भी दिया था।कहा था,अपने बीच के इस संबंध की सीमारेखा के बारे में ।अदिति ने दस साल के दरम्यान इस सीमारेखा का कभी उल्लंघन नहीं किया।आज बक्सादुआर जंगल के बीचोंबीच झिंगुरों की पुकारों वाली अंधकार निःशब्द रात में एक ही तख्त पर अगल बगल सोने के बावजूद नहीं।

कितु सुमन का मन? उसकी सीमारेखा ?इसी मुहूर्त को उसका वह मन उसके साथ सोयी पूर्णयौवना अदिति की तप्त देह की सीमारेखा पार करके जंगली घोड़े की तरह भाग रहा है सरपट उसी तरफ जहां बक्सा जंगल की गहराई में वृक्षराजि और लता गुल्म के मध्य सबकी नजरों से छुपकर गोपनीय तरीके से खिला हुआ है वाइल्ड  फ्लावर।वह अकाल वसंत की उस रात में वाइल्ड फ्लावर के सपनों में अनेक प्रहर बीत गये,फिरभी सुमन की आंखों में नींद नहीं है।




चार



कोलकाता में वापसी के बाद जन सुनवाई की रपटें ठीक ठाक संपादित करने के बाद प्रेस जाकर पत्रिका में छपवाने में हफ्ताभर लग गया।आखिर में लिस्ट के मुताबिक यहां वहां डाक से भेजने की बारी। हाथोंहाथ बांटनी भी पड़ी कुछ प्रतियां।ज्यादातर काम अदिति ने कर दिया। सुमन के संगठन के नाम से ही पत्रिका का नाम नवदिशारी है।



यह सब कुछ निबट जाने के बाद पंद्रह दिन भी नहीं बीते,आईबी हेडक्वार्टर्स से फोन। आपको एकबार हमारे दफ्तर में आना है।

-क्यों,कहिये तो,मामला क्या है?

-इतनी बातें फोन पर नहीं बतायी जा सकतीं।यहां आने पर ही मालूम हो जायेगा।

सुनने के बाद अदिति ने पूछा,मैं चलूं आपके साथ?

सुमन ने थोड़ा सोचने के बाद कहा,नहीं,जरुरत नहीं है।



आईबी इंस्पेक्टर मालाकार ने कहा,बैठिये। फिर मेज की दराज से पत्रिका की एक प्रति निकालकर उसे दिखाते हुए पूछा, इसे क्या आपने छापा है? यह नवदिशारी संस्था क्या आपकी है?

-हां,मैं ही इसे चलाता हूं।

पैकेट से एक सिगारेट निकालकर सुलगाते हुए इंस्पेक्टर ने अचानक सवाल किया, माओवादियों से अापके क्या संबंध हैं,जरा बतायेंगे?

औचक सवाल के झटके को हजम करने के बाद साफ आवाज में सुमन ने कहा,कोई संबंध नहीं है।

-संबंध नहीं है ,कहने से ही मैं मान लुंगा!अगर नहीं है तो यह सब बकवास क्यों छापी है? गले की आवाज एक पर्दा चढ़ाकर बोला मालाकर ने।

-एकदम बकवास नहीं है।वहां के लोगों ने जो कहा है,वही छापा है।

-आपके कह देने से ही मुझे यकीन करना होगा?

-हां,होगा।क्योंकि मैंने जो छापा है ,वह सबकुछ वहां के लोगों ने अलीपुरदुआर के जिला मजिस्ट्रेट के सामने कहा है।कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस अमरेश मजुमदार भी वहां मौजूद थे।आपने लगता है कि रपटें ठीक से पढ़ी नहीं हैं।

धक्का खाकर इंस्पेक्टर ने विषय बदल दिया।

-किंतु यह सब छापने के लिए जो रुपये चाहिए,उसका सोर्स क्या है? वे रुपये तो माओवादी ही देते हैं!

-एकदम बकवास है!

-आपके बैंक एकाउंट के सारे ट्रैंजेक्शन डीटेल्स हमें चाहिए।

-अवश्य ही दे दूंगा।

-आपके सोर्स आफ इनकाम क्या है?

-छात्रों को पढ़ाता हूं-

-माने प्राइवेट ट्युशन! कितने छात्र हैं?

-दस छात्र-

- टोटल कितना मिलता है?

पांच हजार-

बस! इतने में  आपका चल जाता है?

-अनायास।

-घर में और कौन हैं?

-मैं और अदिति-

-अदिति कौन है?आपकी पत्नी?

-नहीं,कभी वह मेरी छात्रा रही है-

-और अब?

-मेरे साथ रहती है-

-रहती है,क्या मायने है इसके ,रात को एक ही बिस्तर पर सोती है न ?

-दैट्स नान आफ युओर बिजनेस!

-आफ कोर्स इट इज माइ बिजनेस! आपके बारे में सब कुछ जानना ही हमारा बिजनेस है।मेज पर रखे कागज के लिफाफे से पान निकालकर मुंह में डालकर चबाते हुए बोला मालाकार।अब जा सकते हैं।जरुरत पड़ी,तो फिर आना पड़ेगा।


घर लौटने पर अदिति ने कहा ,आपको उनके दफ्तर बुलाकर इस तरह जिरह,इसका मतलब क्या है?

सुमन ने कहा,यह कुछ नहीं है।थोड़ा डराने की कोशिश है!

-किंतु क्यों?

-यही उनका काम है।निर्विकार आवाज सुमन की।ये हैं सरकार के द्वारपाल।सरकार के खिलाफ कोई कुछ कहें या आवाज उठायें तो इनका पहला काम है कि उसे डरा धमकाकर चुप करा दिया जाये।इससे भी काम नहीं निकला तो उसे तरह तरह से परेशान करना ,झूठे मुकदमा में फंसा देना इनका काम है।

-लेकिन यह अन्याय है।गणतंत्र में सरकार की जनविरोधी नीतियों की आलोचना करने और उसका विरोध करने का अधिकार तो राष्ट्र के किसी भी नागरिक को है,आपको भी है!

-मौजूदा राष्ट्र व्यवस्था में सत्ता पर काबिज सरकार हर वक्त चाहेगी कि आम जनता उसकी ही जय जयकार करें,जयडंका बजायें-जिससे वह अनंतकाल तक राज कर सकें।लेकिन यदि इसका कुछ भी व्यतिक्रम होता है,तो संग संग सरकार अपना जनमोहन मुखौटा उतारकर ,दांत नख निकालकर अपने असल रुप में आ जायेगी।पुलिस सरकार का वह दांत नखवाला द्वारपाल है।




आईबी का अगला कदम सुमन के लिए प्रत्याशित ही था।संप्रति उसने अपने घर के आस पास अजनबी कुछ चेहरों को मंडराते हुए देखा है।इंस्पेक्टर मालाकार साथ में एक सब इंस्पेक्टर और दो सिपाहियों को लेकर आधी रात बाहर के दरवाजे पर घंटी के बटन पर बार बार उंगली दबाने लगे।

घंटी की आवाज से नींद टूट गयी और बिस्तर पर बैठे बैठे जोर से सुमन ने पूछा-कौन?

सदर दरवाजे के बाहर खड़े इंस्पेकटर मालाकार की सदर्प घोषणा,आईबी से हैं हम।दरवाजा खोलिये।आपका घर सर्च करना है।

-सर्च वारंट है? सुमन का प्रश्न।

-उसकी हमें जरुरत नहीं पड़ती।दरवाजा खोलिये।वरना हम जबरदस्ती घुस जायेंगे।

सुमन को मालूम है कि सिर्फ आईन नहीं,पेशीबल भी उनका काफी ज्यादा है।यह भी जानता है, इंडियन पैनल कोड की भी वे परवाह नहीं करते। दे आर ल अनटु दैमसेल्व्स! जाहिर है कि बाधा डालने से कोई लाभ नहीं होगा।

सारा घर उलट पुलट करके ,सब अलमारियों के खंगाल कर,तमाम पुस्तकें और तमाम कागजाद बैग में भरकर वे विदा हो गये।कोई सिजर लिस्ट नहीं है,क्या क्या ले गये,उसका कोई हिसाब नहीं है,कहीं सुमन का सही दस्तखत नहीं है।इसका मतलब यह हुआ कि बाद में आईबी अनायास कह सकती है कि सर्च के वक्त यह सब माओवादी लिटरेचर सुमन के घर में मिला।फिर जरुरत हुई तो  टर्चर चैंबर में डालकर सुमन से किसी लिस्ट पर जब चाहे तब दस्तखत  करवा ले सकते हैं आईबी वाले।



उनके चले जाने के बाद अदिति ने कहा,कल एकदफा जस्टिस अमरेश मजुमदार के चैंबर चलिये।

सुमन ने कहा,मैं भी यही सोच रहा था।

सब सुनकर जस्टिस मजुमदार ने कहा कि बक्सा के जंगल में उन्होंने जंगलराज कायम कर रखा है,अब देखता हूं कि कोलकाता को भी ये लोग जंगल बनाकर छोड़ेंगे।इसे लेकर कोर्ट सख्त मंतव्य कर दें तो रोना गाना शुरु कर देंगे- जुडुशियारी ओवर एक्टिविज्म कर रही है।

टेबिल पर रखे फोन उठाकर उन्होंने कहा-ठीक है,आप लोग जायें,मैं देखता हूं कि क्या कर सकता हूं।


शाम को अलीपुरदुआर से एडवोकेट सुनील सान्याल का फोन आया।सुनील सान्याल अलीपुर दुआर लीगल एइड फोरम के सदस्य हैं।जन सुनवाई के दरम्यान वे राजाभातखाओवा और निमति दोनों जगह मौजूद थे।सज्जन और सह्रदय व्यक्ति हैं।बक्सादुआर जंगल के लोगों के हक में अलीपुरदुआर कोर्ट में सारे मुकदमे वे ही लड़ते हैं।एक पैसा भी नहीं लेते,उलट इसके कोर्ट फी,स्टांप पेपर तक का खर्च उठाते हैं।सुमन जब भी उधर जाता है,जबरदस्ती स्टेशन से अपने घर ले जाते हैं। होटल में ठहरने नहीं देते।कहते हैं कि होटल का खाना खाकर आपकी सेहत बिगड़ जायेगी।आपके जैसे व्यक्ति को कुछ और दिन  स्वस्थ शरीर के साथ जिंदा रहना चाहिए।प्रतिमा का पकाया खाना बहुत नापसंद भी नहीं होगा आपको।

टेलीफोन पर सुनील सान्याल ने कहा कि आठ नंबर गारो बस्ती के सुधीर माराक औऱ उसकी पत्नी सुशीला की याद है,जन सुनवाई में जो निमति गांव आये थे?

सुशीला का नाम सुनते ही सुमन के मन में तपिश सी हो गयी।वाइल्ड फ्लावर को क्या कभी भुलाया जा सकता है!

-हां,हां, याद आया! क्या हुआ उन्हें?सुमन के गले में उत्कंठा।

-कुछ फारेस्ट गार्डों ने सुशीला के साथ बलात्कार कर दिया और उसके मरद  को मार मारकर उसकी हड्डी पसलियां तोड़ दी हैं। दोनों ही अलीपुर दुआर सदर अस्पताल में भर्ती हैं।सुधीर का कंडीशन सीरियस है।होश में नहीं है।बचेगा या नहीं,शक है।सुशीला ने मुझे जोर पकड़ा है कि आपको खबर कर दूं।खूब कहा है कि आप एक बार आकर उसे देख जायें।

सुमन को याद आया कि उस रात सुशीला से उसने वायदा किया था।

सुशीला की बात सुनकर अदिति ने कहा कि अभी कैसे जायेंगे? अगले सात दिनों में पत्रिका का नेक्स्ट इस्यु निकालना है।वैसे भी काफी देर हो गयी है।इसके अलावा अगले महीने आपके छात्र छात्राओं की परीक्षाएं हैं।

-आगामी सोमवार को महाजाति सदन में ह्युमैन राइट्स को लेकर बड़ा सेमीनार है,राज्यभर से डेलीगेट आ रहे हैं।सेमिनार का संचालन भी मुझे ही करना है। चिंतित सुनायी पड़ा सुमन का स्वर।

-सुनीलबाबू को कह दीजिये कि इस वक्त जाना संभव नहीं है।स्पष्ट आवाज में अदिति ने कहा।

-ना,मुझे जाना ही होगा।पत्रिका तुम देख लेना।और सेमीनार के बारे में कह देता हूं कि किसी और को जिम्मेदारी दे दें।

-सुमन की बातें सुनकर अदिति अवाक्।ऐसा पहले और कभी नहीं हुआ।सुमनदा के लिए सारी पृथ्वी एक तरफ और पत्रिका एक तरफ। लेकिन आज सुमनदा को हो क्या गया,वही चिराचरित भारसाम्य बदल गया? जिस कारण पूरे देश में उसका इतना सम्मान, इतनी प्रतिष्ठा,वह सेमीनार भी आज उसके लिए मूल्यहीन! कह रहे हैं कि किसी और को संचालन की जिम्मेदारी दे दी जाये!

एक आदिवासी लड़की के साथ हुई दुर्घटना की खबर ने सुमनदा को इतना विचलित कर दिया है,इसकी कोई धारणा नहीं थी अदिति को।बारह साल से जिस आदमी से उसका परिचय है, आज हठात् वह अजनबी सा लगने लगा है।या फिर इतने सालों से उसने ठीक से पहचाना ही नहीं है?

अदिति को कौन बतायेगा कि कोई पहचाना हुआ मनुष्य मुहूर्तभर में कैसे अजनबी बन जाता है।फिर आंखों की एक निगाह से ही अजनबी कैसे बहुत दिनों का जाना पहचाना लगता है!



अलीपुरदुआर स्टेशन पहुंचते ही सुमन को सुनील सान्याल ने खबर बता दी।सुशीला के पति सुधीर को बचाया नहीं जा सका,कल रात उसकी मृत्यु हो गयी।

सुनील सान्याल की गाड़ी से सीधे अस्पताल में। फीमेल वार्ड में रो रोकर थकी हारी सुशीला सो गयी थी।निःशब्द उसकी बिस्तर के पास जाकर खड़ा हुआ सुमन।वृंत से टूटकर धूल में पैरों तले कुचले फूल की तरह अस्पताल  की हरे रंग की चादर से ढकी बिस्तर पर सोया एकदा अकाल वसंत में खिला उसका वही वाइल्ड फ्लावर।किंतु क्यों?किसके दोष से?

ऐसे नाना प्रश्नों से उत्ताल,अशांत सुमन का मन।

सुशीला धीरे धीरे अपनी क्लांत रक्तिम दोनों आंखों को खोलकर शून्य दृष्टि से कुछ देर तक सुमन के चेहरे को देखती रही।उसके बाद उसके दोनों होंठ कांपने लगे थरथराकर।सुमन को लगा, सुशीला की उस दृष्टि में हजार योजन उत्ताल सागर की फेनिल वेदना कैद है,निःशब्द कंपते होंठो में अवरुद्ध हजार डेसिबिल का कर्णभेदी आर्तनाद!

फिर हठात् ही उस दम साधा हुआ निःशब्द को चीरकर सीना तोड़ चीत्कार सुशीला काः देखो बाबू, देखो,उयारा हमार का सर्वनाश कइराछे- हमी उयादेर छाइड़बो ना,किसी भी तरह छाइड़बो ना-

सुमन ने गौर किया कि ये बातें कहते हुए सुशीला की दृष्टि धीरे धीरे बदलने लगीं।वह दृष्टि अब शून्य उदास नहीं है ,बल्कि उसमें जंगली सर्पीली हिंस्रता है।दोनों जबड़ों को सख्त करके दांतों से दांतों को पीसने लगी सुशीला,लग रहा था कि जैसे उसके सारे दांत टूट जायेंगे!

सुनाल सान्याल ने फिसफिसा कर सुमन के कान में कहा,आज सुबह ही डाक्टर आपस में चर्चा कर रहे थे कि वह गहरे सदमे में है।हो सकता है कि कल उसे साइक्राटिक वार्ड में शिफ्ट कर देंगे।

अस्पताल से निकलने के बाद सुमन का मन गहरी विषण्णता से भाराक्रांत हो गया कुछ देर के लिए।चेहरा गंभीर।लंबा कुत्सित अदृश्य किसी काले हाथ ने धीरे धीरे प्रसारित होते होते आज केवल वास्तव पृथ्वी को ही नहीं, कल्पना के जगत का भी ध्वंस कर दिया।उसी अदृश्य हाथ की वजह से उसकी स्वाधीन जीवन यात्रा विपर्यस्त बहुत पहले से थी  और आज स्मृतियों के मणिकोठा में छुपाया हुए स्वप्न को भी किरचों में बिखेर कर रख दिया।

अस्पताल से सुनील सान्याल के घर जाने के रास्ते सुमन ने पूछा,घटना इक्जैक्टली क्या है,मुझे बतायेंगे!

सुनील ने घटना का मोटे तौर पर विवरण सुना दिया।

-पिछले सोमवार दोपहर बाद चार बजे जंगल से जलावन लकड़ी बटोरकर दो बोरियों में भरकर घर लौट रहे थे सुधीर और सुशीला।बस्ती से दो मील दूरी पर जंगलात के भीतर उनका सामना तीन फारेस्ट गार्डों-अक्षय तमांग,सोनू चामलिङ और सुंदर भूटिया से हो गया।वे तीनों बिट पर निकले थे। सुधीर और सुशीला के सर पर बोरियां देखकर उन तीनों फारेस्ट गार्डों को शक हुआ कि वे जंगल में लकड़ी चुराने को घुसे थे।बोरियां सर से उतारकर खोलकर दिखाने के बावजूद उन तीनों फारेस्ट गार्डों ने एकसाथ मिलकर सुधीर को मुक्का थप्पड़ घूंसा मारना शुरु कर दिया।सुशीला ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उसे बालों का झोंटा पकड़कर खींचकर धक्का मारकर हटा दिया।प्रचंड मार से सुधीर बेहोश हो गया, इसके बाद सुशीला को  झाड़ी के पीछे जबरदस्ती खींचकर ले गये और तीनों फारेस्ट गार्डों ने एक एक करके उसके साथ बलात्कार कर दिया।

-देर रात तक उनके घर न लौटने पर ,बस्ती के कुछ लोग उन्हें खोजने निकले- सुधीर और सुशीला को जंगल में बेहोश हालत में देखकर उन्होंने चीख पुकार मचा दी।उनकी चीखें सुनकर बस्ती के सारे लोग दौड़े चले आये और उन्हें अस्पताल उठा लाये।

सुधीर और सुशीला को अस्पताल में दाखिल कराने के बाद गारो बस्ती के लोग एकजुट होकर तालचिनि थाने पर शिकायत दर्ज कराने को गये।पुलिस ने कोई एफआईआर तो दर्ज नहीं ही किया, उलटे उन्हें लाठी से मार मारकर भगा दिया।

ब्यौरे के अंत में थोड़ा रुककर सुनील सान्याल बोले,मैं कल सुबह तालचिनि थाने गया था। थाना इंचार्ज का कहना है कि ,यह सब उस लड़की का गढ़ा हुआ गप है।तमांग नाम के जिस फारेस्ट गार्ड के खिलाफ बलात्कार की शिकायत लड़की ने की है,उसकी कुछ दिनों पहले उसके पति से झड़प हो गयी थी। उसे लेकर फारेस्ट डिपार्टमेंट की ओर से उस आदमी के खिलाफ एक मुकदमा भी शायद चल रहा है।फारेस्ट गार्ड को फंसाने के लिए ही लड़की ने बलात्कार की यह झूठी कहानी बनायी है,आप उसकी बात पर यकीन न करें।

सब सुनने के बाद सुमन ने कहा कि ये लोग तो दिन को रात बना सकते हैं।

-एकदम सही है।सुनील सान्याल ने हामी भरी।मैंने जब कहा कि अस्पताल में लड़की की मेडिकल जांच हुई है,इंचार्ज ने हंसकर क्या कहा मालूम है? वैसे चरित्र की लड़की,जिनका धंधा ही देह व्यवसाय का है,उनकी देह की डाक्टरी जांच से नया क्या मिलने वाला है?

यह कहने के बाद दांत निकालकर थाना इंचार्ज की उस कुत्सित हंसी का अंदाजा लगा पा रहा था सुमन।

उसके कानों में वह हंसी बार बार प्रतिध्वनित हो रही थी।माथा गरम होने लगा।सुनील सान्याल से कहा, जब पुलिस की मानसिकता ऐसी है तो ऐसे में तहकीकात फिर कैसे होगी और उसके आधार पर माननीय न्यायाधीशगण भी किस तरह न्याय कर पायेंगे?

-यही तो इतने दिनों से इन लोगों के साथ होता रहा है।चरम असहायबोध दीर्घश्वास बनकर निकली सुनील सान्याल के सीने से।

-अतीत में यही  होता रहा है तो हमेशा ऐसा ही चल नहीं सकता! व्हाटइज द वे आउट?

-मुझे मालूम नहीं है।हो सकता है कि भविष्य में कोई रास्ता निकले जो आपकी हमारी कल्पना से बाहर है।गंभीर होकर सान्याल ने कहा।




सुनील की पत्नी प्रतिमा ने हर बार की तरह ही इसबार भी सुमन के लिए अच्छा भला खाना तैयार किया था।बाजार से बहुत खोजकर भरौली मछलियां खरीद लायी।भरौली मछलियां सुमन को खूब पसंद है। लेकिन वह सब सुमन के गले से नीचे नहीं उतर सका।खाते हुए जैसे उसका गले में कुछ फंस रहा था।

-क्या बात है?कुछ भी तो खा नहीं रहे हैं,शरीर वगैरह ठीक है न?सवाल किया प्रतिमा ने।

-ना ना,शरीर ठीक है।संक्षिप्त उत्तर था सुमन का।

-शरीर नहीं,उसका मन ठीक नहीं है!सुशीला की हालत ठीक नहीं है।कैस तो पागल जैसी हो गयी वह लड़की,गंभीर गले से बोले सुनील सान्याल।

-नहीं होगी क्या! तीन तीन पागल कुत्तों ने जिस तरह नोंच नोंच कर उसका शरीर खाया है,उस लड़की का पागल हो जाना एकदम अस्वाभाविक नहीं है!


दोपहर बाद अलीपुरदुआर से ट्रेन में बैठकर यही सब तरह तरह की बातें सोच रहा था सुमन, तभी उसकी उलटी तरफ वाली सीट पर आकर बैठे एक सज्जन।उम्र पचास पचपन,लंबे कद के,चुस्त चेहरा। पैकेट से सिगरेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा लिया ।लंबा कश लेने के बाद सुमन से उन्होंने पूछा,महाशय,क्या हुआ? काम हुआ?

-कौन सा काम? उन सज्जन के औचक सवाल से हैरत में था सुमन।

-जे काम के लिए अलीपुरदुआर आये हो।

-क्यों आया मैं ,बताइये तो?

-अस्पताल में भर्ती उस लड़की की खबर लेने।मैंने ठीक कहा न ?

-ठीक।लेकिन आपको कैसे मालूम पड़ा?

-अरे महाशय,जानना ही तो हमारा काम है।मैं आईबी इंस्पेक्टर तपन कुमार राय हूं। डिपार्टमेंट के लोग मुझे टीके कहकर बुलाते हैं।आपका नाम तो सुमन चौधुरी है।किसी वक्त आप प्रेसीडेंसी कालेज में पालिटिकल साइंस के टापर रहे हैं।अभी एकठो एनजीओ चलाय रहै हैं,नवदिशारी। जंगलात के लोगों को लेकर लेख वेख लिक्खा करै हैं।हाल में अपनी पत्रिका में एक रपट छापकर सरकार के बाप का श्राद्ध कर दिया है,ठीक है न ?

-लेकिन आप यहां क्या कर रहे हैं ?

-आमागो जा काज!आपके जैसे महान लोगों के चरण चिन्हों का अनुसरण! कोइलकाता थिक्या आपके साथ एक ही टेरेन में आया और एक ही टेरेन में फिरत जाइताछि।

- क्यों,इतना कष्ट क्यों उठा रहे हैं?

-कष्ट? कष्ट कैसे ? एसी कोच,आराम कइरा सोये सोये आया ,सोये ही जाउंगा।

-उस कष्ट की बात नहीं कर रहा।कह रहा हूं कि इतना कष्ट करके मुझे फालो क्यों करना है?

-जो भी कोई सरकार के खिलाफ कुछ कहे है या लिक्खे है,हमरा काम उनको फालो करने का हुआ।कहां जाता है,क्या काम करता है,किस किस से मिलामिशा करता है-समस्त खबराखबर रखना-

- किंतु इतनी अंदरुनी बात आप हमें क्यों बता रहे हैं?

-भालो प्रश्न कर दिया!सिगरेट का लंबा कश लेकर उन्होंने कहा,देखिये,मैं आपकी मासिक पत्रिका रेगुलर पढ़ता रहा हूं,अच्छा लगता है।कालेज में पढ़ाई के वक्त-यहां तक कि नौकरी में घुसने से पहले तक आपकी तरह कुछ लिखा विखा करता था।सरकारी नौकरी की बदौलत अब सबकुछ बंद है। मेरा यह नंबर लीजिये।कोई असुविधा हो तो फोन कीजियेगा।बहुत रात हो गयी है,लीजिये,अब सो जाइये। डिस्टर्ब  कर दिया, दिल पर मत लीजियेगा।शुभ रात्रि।
























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छिटपुट आंदोलन से दमन का मौका जैसे भांगड़ का नंदीग्राम दफा रफा! बुनियादी बेदखली और बिल्डर प्रोमोटर माफिया सत्ता के बाहुबलि धनतंत्र खिलाफ मुद्दे के बिना आंदोलन से भी बेदखली! भारत में अब तक सत्ता को कारपोरेट मदद मिलती रही है और अब कारपेरोट सरकार है तो बहुत जल्द देश का नेतृत्व भी कारपोरेट होगा।ट्रंप उपनिवेश में विकास के सुनहले दिनों का जलवा है ,बहुत जल्द भारत का प्रधानमंत्री भी कोई अ

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छिटपुट आंदोलन से दमन का मौका जैसे भांगड़ का नंदीग्राम दफा रफा!

बुनियादी बेदखली और बिल्डर प्रोमोटर माफिया सत्ता के बाहुबलि धनतंत्र खिलाफ मुद्दे के बिना आंदोलन से भी बेदखली!

भारत में अब तक सत्ता को कारपोरेट मदद मिलती रही है और अब कारपेरोट सरकार है तो बहुत जल्द देश का नेतृत्व भी कारपोरेट होगा।ट्रंप उपनिवेश में विकास के सुनहले दिनों का जलवा है ,बहुत जल्द भारत का प्रधानमंत्री भी कोई अरबपति खरबपति बनेगा।

यूपी उत्तराखंड वालों से भी रोजाना यही बात हो रही है कि कैसे यूपी,पंजाब और उत्तराखंड में फासिज्म को शिकस्त देना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।

पलाश विश्वास

आज सुबह हमने कर्नल भूपाल चंद्र लाहिड़ी के उपन्यास बक्सा दुआरेर बाघ का पहला हिस्सा अपने ब्लागों पर डाला है,जिसका अनुवाद मैंने किया है,ताकि उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में आपको तनिक अंदाजा हो जाये।

बंगाल में और बाकी देश में भी वर्चस्ववादी सत्तावर्ग की कारीगरी से स्वतंत्र अभिव्यक्ति इसतरह कुचल दी जाती है कि  जनप्रतिबद्ध संस्कृतिकर्मियों और सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ताओं का कहीं अता पता नहीं चलता।बहुजनों का भी नहीं।

वैज्ञानिक दृष्टि से लैस ब्राह्मणों और सवर्णों की जनप्रतिबद्धता का अंजाम भी मनुस्मृति विधान के तहत अंततः संबूक हत्या है।यही रामराज्य की रघुकुलरीति है।देशभक्ति और राष्ट्रद्रोह के अचूक रामवाण वध मिसाइलें हैं।

तंत्रविरोधी मारे जायेंगे,सच है।जाति से ब्राह्मण न हों लेकिन सोच और कर्म से जो ब्राह्मणों से जियादा ब्राह्मण हैं,वे मलाईदार जियादा खतरनाक हैं और उन्हींके दगा देते रहने से मिशन गायब हो रहा है।वे ही अब ट्रंप उपनिवेश के सिपाहसालार झंडेवरदार हैं।

जाति से दोस्त  दुश्मन पहचानने का तरीका कारगर होता तो बाबासाहेब जाति उन्मूलन का एजंडा लेकर चल नहीं रहे होते और न तथागत गौतम बुद्ध को वर्णव्यवस्था के ब्राहब्मणधर्म के खिलाफ धम्म प्रवर्तन की जरुरत होती।बाबासाहेब ने तथागत का पंथ इसीालिए चुना है क्योंकि वही हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद के प्रतिरोध का रास्ता है।

हम बार बार यह दोहरा रहे हैं कि हमारे हिसाब से गौतम बुद्ध सबसे बड़े जनप्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं और उन्हींके रास्ते बदलाव अब भी संभव है।मुक्तबाजार में भी।

महाश्वेता देवी और नवारुण भट्टाचार्य को दबाने की कम कोशिशें नहीं हुई,लेकिन बाकी भारत में उनकी परिधि विस्तृत हो जाने की वजह से हम उनके बारे में जानते हैं।ताराशंकर के बारे में भी लोग जानते हैं।लेकिन माणिक बंद्योपाध्याय को,उनके बीच महाश्वेता देवी के बीच कई जनप्रतिबद्ध पीढ़ियों को हम नवारुण के सिवाय जानते नहीं है।

यह बड़ी राहत की बात है गायपट्टी के नाम से बदनाम भूगोल की आम जनता की भाषा हिंदी में अभी विविधता और बहुलता  का लोकतंत्र भारतीय भाषाओं में सबसे ज्यादा है और देशभर के लोग हिंदी पढ़ समझ लेते हैं।जनपदों का लोक हिंदी में मुखर है अब भी।

हमें सामाजिक बदलाव का रास्ता इस बढ़त को बरकरार रखकर ही बनाना होगा। गौरतलब है कि सामाजिक बदलाव आंदोलन की जमीन भी हिंदुत्व चीख की वीभत्सता के बावजूद इसी गायपट्टी में बनी है।जबकि धर्मनिरपेक्ष,उदार और प्रगतिशील भूगोल का हर हिस्सा अब केसरिया है।

इसीलिए हम पंजाब,यूपी और उत्तराखंड में संघ परिवार के हिंदुत्व एजंडे के मुकाबले पर इतना ज्यादा जोर दे रहे हैं क्योंकि आखिरकार वही गायपट्टी से होकर ही आजादी का रास्ता बनना है और फासिज्म के राजकाज को शिकस्त वहीं मिलनी है।

बाकी देश के जनप्रतिबद्ध लोग हिंदी की इस ताकत को समझें तो वे अपने अपने कैदगाह से रिहा होने के दरवाजे खुद खोल सकते हैं।

निजी तौर पर मैं चाहता हूं कि सभी भारतीय भाषाओं का प्रासंगिक सारा का सारा सांस्कृतिक उत्पादन और रचनाकर्म, दस्तावेज, आदि जितनी जल्दी हो हिंदी के मार्फत बहुसंख्य जनता तक पहुंचाने का कोई न कोई बंदोबस्त हम करें।जो अनिवार्य है।

जाहिर है कि हमारे पास साधन संसाधन नहीं है,मददगार नहीं हैं।फिरभी इस कार्यभार को हम पूरा करने में यकीन रखते हैं।चूंकि यह अनिवार्य कार्यभार है।

कर्नल भूपाल चंद्र लाहिड़ी से पहले आज सुबह ही खड़गपुर से मुंबई जाने के बाद आदरणीय मित्र आनंद तेलतुंबड़े से लंबी बातचीत हुई।

कुछ दिनों पहले मशहूर फिल्मकार आनंद पटवर्धन से हमारी लंबी बातचीत हुई है।

परसो रात कामरेड शमशुल इस्लाम से भी इसी सिलसिले में  लंबी बातचीत हुई है।

इसी बीच विद्याभूषण रावत से हमारी रिकार्डेड बातचीत हुई है।जो जल्द ही सबको उपलब्ध होगी। बाकी देश के लोगों के साथ चर्चा में भी यही मुद्दा फोकस पर है।

यूपी उत्तराखंड वालों से भी रोजाना यही बात हो रही है कि कैसे यूपी,पंजाब और उत्तराखंड में फासिज्म को शिकस्त देना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।हमें अफसोस है कि पंजाब से संवाद के हालात अभी बने नहीं हैं और न गोवा और मणिपुर से।क्योंकि हम राजनीति और मीडिया दोनों से बाहर हैं।

कर्नल साहेब अभी जब मैं लिख रहा हूं तो डायलिसिस पर हैं क्योंकि कल सुबह वे असम के लामडिंग जायेंगे और तीन दिनों तक उनकी डायलिसिस नहीं होगी।उन्होंने सुबह बताया था कि मुझे उन्होंने एक मेल भेजा है।वे डायलिसिस के बाद रात को आराम करेंगे।फिर सुबह असम के लामडिंग जायेंगे,जहां नेताजी जयंती पर वे अतिथि हैं।नेताजी पर उनकी शोध पुस्तक है और फासिज्म के मुकाबले वे नेताजी को प्रासंगिक मानते हैं।

फोन पर उन्होेंने बताया कि उस मेल का मतलब यही है कि भांगड़ जनविद्रोह दूसरा नंदीग्राम आंदोलन नहीं है।वहां आंदोलन पावर ग्रिड के खिलाफ भी नहीं है जो प्रचारित है।बल्कि सिर्फ  पावर ग्रिड को मुद्दा बनाने से भांगड़ नंदीग्राम बना नहीं है।जहां जमीन और रोजगार,आजीविका से बेदखली का माफिया बाहुबलि तंत्र खास मुद्दा है।जो छूट गया है।

सुबह की बातचीत में उन्होंने कहा कि कोलकाता संलग्न इलाकों में जमीन और आजीविका से राजनीतिक माफिया की मेहरबानी के नतीजतन लगातार बेदखल हो रहे सिरे से बेरोजगार और गरीब लोगों का गुस्सा एक मुश्त फट पड़ा है।इस आंदोलन की दशा दिशा को वे भ्रामक बता रहे हैं और उनका कहना है कि विज्ञानविरोधी राजनैतिक आंदोलन आखिरकार जनता को आंदोलन विमुख कर दे रहा है।

लिखने बैठा तो अपने इन बाक्स में मेल न पाकर मैंने उन्हें फोन किया तो वे अस्पताल में थे।डायलिसिस पर।

कर्नल लाहिड़ी के मुताबिक विश्वविद्यालयों से शुरु होने वाले छात्रों युवाओं का आंदोलन सत्तर के दशक से जमीनी स्तर तक पहुंचते पहुंचते भटकाव,अलगाव और दमन का शिकार हो जाता रहा है,जिससे जनता फिर आंदोलन से अलग हो जाती है।

हम सबकी चिंता यही है कि छात्र युवा आंदोलन की एकता बनाये रखने की और विश्वविद्यालयों के दायरे से बाहर उसके बिखराव और दमन रोकने की चिंता।क्योंकि देश में बदलाव की दिशा में सकारात्मक यह छात्र युवा पहल है और आधी आबादी खामोश है।दोहरी लड़ाई पितृसत्ता और मनुस्मृति के खिलाफ है तो दोहरी लड़ाई कारपोरेट तंत्र और ब्राह्मणधर्म के पुनरुत्थान के खिलाफ भी है।जनता की गोलबंदी मिशन है।

कर्नल लाहिड़ी ने कहा कि बिजली के तारों को पर्यावरण विरोधी बताकर विज्ञान विरोधी बातों से आंदोलन की हवा हवाई जमीन तैयार की जा रही है ,जबकि वहां बेदखली निंरतर जारी रहने वाला सिलिसिला है और राजनीतिक माफिया का वर्चस्व सर्वत्र है। बाहुबलि धनतंत्र का लोकतंत्र है।कर्नल साहेब के मुताबिक सही मुद्दों के बिना दिशा भटक रही है और आंदोलनकारियों को सत्ता नक्सली माओवादी बाहरी तत्व बताकर अलगाव में डाल रही है और दमन की पूरी तैयारी है।

ऐसा बार बार होता रहा है।
सत्तर के दशक से बार बार।

शार्टकट आंदोलन और प्रोजेक्टेड आंदोलन से पब्लिसिटी मिल जाती है ,लेकिन आम जनता के हकहकूक की लड़ाई भटक जाती है।मीडिया इसे सत्ता के हक में मोड़ता है।

इसके नतीजतन फिर जनता को किसी सही आंदोलन के लिए तैयार करना मुश्किल होता है।कारपोरेट पूंजी प्रायोजित प्रोजक्ट आंदोलनो यह काम पिछले पच्चीस सालों में बखूब किया है।यह बेहद खतरनाक है।

फर्जी और दिशाहीन आंदोलनों की वजह से जनांदोलनों से आम जनता का मोहभंग हो गया है।सत्ता वर्ग के दमन का भोगा हुआ रोजमर्रे का यथार्थ उन्हें अपने पांवों पर खड़ा होने की कोई इजाजत नहीं देता।ईमानदार आंदोलनों की गुंजाइश बनती नहीं है।

पटवर्द्धन और तेलतुंबड़े से भी छात्र युवाओं के आंदोलन के बिखराव पर लंबी चौड़ी बातें हुईं।खासकर जेएनयू में जिस तरह बापसा  की बड़ी ताकत के रुप में उभऱने के बाद वाम छात्रों और बहुजन छात्रों के बीच दीवारें यकबयक बनी हैं,उससे हिंदुत्व का एजंडा कामयाब होता नजर आ रहा है।यह भारी विडंबना है।जिससे दोनों पक्ष बेपवाह है।

जेएनयू के अनुसूचित और ओबीसी बारह छात्रों के निलंबन के खिलाफ जेेनयू के मशहूर आंदोलनकारियों की खामोशी से मनुसमृति बंदोबस्त मजबूत हुआ है।बाकी विश्वविद्यालयों में इससे मनुस्मृति दहन का सिलसिला थम गया है।जाति उन्मूलन का एजंडा एकबार फिर पीछे छूट गया है।जातियों में बांटकर हिंदुत्व फिर हावी है।

इसी तरह हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी रोहित वेमुला  के साथी वेमुला की संस्थागत हत्या के बाद साल भर बीतते न बीतते अलग थलग पड़ गये हैं।

छात्र युवाओं के मनुस्मृति के विरुद्ध एकताबद्ध मोर्चे को संघ परिवार ने जाति और पहचान की राजनीति से तितर बितर कर दिया है।पूरे देश में यही हो रहा है।

इसी सिलसिले में विद्याभूषण रावत के सवाल बेहद प्रासंगिक हैं जो मुलाकात होने पर अमूमन दिलीप मंडल भी पूछते रहते हैं-वाम पक्ष जाति और जाति व्यवस्था के सामाजिक यथार्थ से सिरे से इंकार करते हुए जिस तरह लगातार बहुजन हितों से विश्वासघात किया है,उसके बाद बहुजन उनपर यकीन कैसे कर सकते हैं?

जब तक वाम संगठनों में बहुजन नेतृत्व को मंजूर नहीं किया जाता ,तब तक इस सवाल का हमारे पास कोई जबाव नहीं है।यही वजह है कि संघ परिवार को हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी रोहित वेमुला के साथियों को अलग थलग करने का मौका  मिला है।

विद्याभूषण से हमारी बातचीत रिकार्ड हैं और हम उसका ब्यौरा यहां देना नहीं चाहते।लेकिन उनके पूछे सवाल हमें अब भी बेहद परेशान कर रहे हैंं।

हकीकत की जमीन पर भांगड़ सचमुच नंदीग्राम जनविद्रोह नहीं बन सका।

जबकि भांगड की जमीन की हकहकूक की लड़ाई में यादवपुर ,प्रेसीडेंसी ,कोलकाता से लेकर विश्वभारती विश्वविद्यालयों के छात्र भी सड़क पर उतर रहे हैं।

हाशिये पर चले गये वामपंथी दल और कांग्रेस भी मैदान में हैं।

सत्ता और राजनीति ने आंदोलन को पीछे कर दिया है और ईमानदारप्रतिबद्ध छात्र युवा सामाजिक कार्यकर्ता  माओवादी राष्ट्रद्रोही बान दिये जा रहे हैं।

पूरे देश में किस्सा यही।

बुद्धदेव भट्टाचार्य ने जो गलती की थी,ममता बनर्जी ने आंदोलन को रफा दफा करने में वह गलती नहीं दोहराई।

गोलीकांड के साथ साथ उन्होंने पूरे इलाके से पुलिस हटा ली और तत्काल जनता को आश्वस्त किया कि अगरे वे नहीं चाहते तो पावर ग्रिड वहां नहीं बनेगा।

पावर ग्रिड का मुद्दा खत्म हो गया तो मुआवजा बांटते ही आंदोलन भी रफा दफा हो गया।सिर्फ पावर ग्रिड का अवैज्ञानिक विरोध से शुरु आंदोलन में दशकों से कोलकाता महानगर के विस्तार के लिए प्रोमोटर बिल्डर राज की बेदखली अभियान और आजीविका रोजगार संकट को इस आंदोलन में मुद्दा नहीं बनाया जा सका।

जबकि इलाके में बच्चा बच्चा कह रहा है कि पुलिस की वर्दी में टीएमसी के बाहुबलियों के गुंडों ने गोली चलायी है,पुलिस ने नहीं।वे बाहुबलि ही सत्ता के आधार हैं।

बाहुबलियों के कारपोरेट बंदोबस्त में अंधाधुंध सहरीकरण और औद्योगीकरण और कारपोरेट आंदोलन के दो मुंहा एकाधिकार आक्रमण से देशभर में महानगरों से लेकर जिला शहरों और कस्बों तक के आसपास देहत और जनपदों का,खेत खलिहानों का सफाया है,इसे हम कहीं बुनियादी मुद्दा बना नहीं पा रहे हैं।इसीलिए आंदोलन भी नहीं हैं।

हर बार सही आंदोलनकारी अलग थलग दमन का शिकार बन जाते हैं और कारपोरेट राजनीतिक आंदोलनों में सत्ता वर्चस्व और शक्ति परीक्षण का खेल शुरु हो जाता है।फिर दोबारा आंदोलन की नौबत नहीं आती।जनता दहशत में पीछे हट जाती है।

मसलन छत्तीसगढ़ में नया रायपुर बनाने के लिए जो सैकड़ों गांव बेदखल कराये गये,उसके खिलाफ आंदोलन हुआ नहीं है।हुआ है तो चला नहीं है।चला है तो फेल है।

पनवेल और नई मुंबई में आंदोलन का यही अंजाम कि आंदोलनकारी  नेता अपने अपने प्रोजेक्ट के साथ न जाने कहां चले गये,अता पता नहीं है।किसानों को मुआवजा भी नहीं मिला क्योंकि जिन कंपनियों के लिए जमीन का अधिग्रहण हुआ और जिन्हें मुआवजा देना था,उन कंपनियों ने दूसरी कंपनियों को जमीन हस्तांतरित कर दी।

कच्छ और गुजरात में यह खुल्ला खेल फर्रूखाबादी रहा है।

दिल्ली और नोएडा,फरीदाबाद,गुड़गांव में तो कहीं कोई प्रतिरोध नही हो सका।

सत्ता का नाभिनाल बिल्डर प्रोमोटर सिंडिकेट माफिया से जुड़ा है।

धन बल पशुबल का गटजोड़ सत्ता और लोकतंत्र का आधार है,जो भांगड़, कोलकाता और बंगाल में ही नहीं,उत्तराखंड, यूपी, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, मध्यप्रदेश. राजस्थान गुजरात,ओडीशा,महाराष्ट्र,गोवा,हरियाणा,पंजाब,दक्षिण भारत से लेकर पूर्वोत्तर भारत तक हिमालय से लेकर समुंदर तक से बेदखली का सच है,जिसके प्रतिरोध के लिए छिटपुट आंदोलन या विद्रोह काफी नहीं हैं।  

लोकतंत्र धनतंत्र में तब्दील है।

धनतंत्र जो कारपोरेट है

।1928 में मशहूर ब्रिटिश नाटककार जार्ज बार्नार्ड शा ने अपने मशहूर व्यंग्य नाटक दि एप्पल कार्ट में बेहद कायदे से लोकंत्र के जिस प्रतिपक्ष को चिन्हित किया था,वह अब इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती है।

इस नाटक में और उसकी गंभीर प्रस्तावना में लोकतंत्र और संस्थागत राजतंत्र के मुकाबले में लोकतंत्र को धनतंत्र बताने में शा ने कोई कसर नहीं छोड़ी।जो आज सच है।

जिस तरह इलेक्ट्राल कालेज के चुने हुए नुमाइंदों के वोट से सिरे से अराजनैतिक असामाजिक एक कारपोरेट अरबपति के हवाले रातोंरात दुनिया हो गयी,उससे बतौर बहुमत चुनाव पद्धति  के इस लोकतंत्र पर सवालिया निशान खड़ा हो गया है।

भारत में अब तक सत्ता को कारपोरेट मदद मिलती रही है और अब कारपेरोट सरकार है तो बहुत जल्द देश का नेतृत्व भी कारपोरेट होगा।

विकास के सुनहले दिनों का जलवा है ,बहुत जल्द भारत का प्रधानमंत्री भी कोई अरबपति खरबपति बनेगा।

नये अमरिकी राष्ट्रपति इतिहास के विरुद्ध नस्ली फासिज्म के ईश्वर बनकर विश्व्यवस्था की कमान थामे हैं,यह अमेरिकी लोकतंत्र के लिए ही नहीं,बल्कि बाकी दुनिया,इंसानियत और कायनात के लिे मुकम्मल कयामती फिजां है।

जटिल चुनाव पद्धति के तहत किसी राज्य में ज्यादा मत मिलने पर उसके सारे वोट मिल जाने के प्रावधान के तहत बड़े राज्यों का बहुमत वोट पाकर  पापुलर वोट से अरबपति ट्रंप  पराजित होने के बावजूद अमेरिका के राष्ट्रपति हैं। राष्ट्रपति चुने जाने के बाद शपथग्रहण के वक्त उन्हें सिर्फ चालीस फीसद लोगों का समर्थन है,शपथ ग्रहण खत्म भी नहीं हुआ अमेरिका में उनके चुने जाने के क्षण से जारी विरोध प्रदर्शन का सिलसिला वाशिंगटन और न्यूयार्क जैसे बड़े शहरों के अलावा बाकी देश में ज्वालामुखी की तरह फटने लगा है और इतना भयंकर है यह जनविद्रोह कि वाशिंगटन मार्च करने वाली महिलाओं का संख्या दो लाख से ज्यादा है।

भारत में सबसे खतरनाक बात यही है कि लोकतंत्र अब सिरे कारपोरेट हैं और उसका एजंडा नस्ली नरसंहार का हिंदुत्व है तो प्रतिरोध असंभव है और आंदोलन भी नहीं है।



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#Comrade Ramchandran Missing from Howrah Station #Families refused compensation by Government #ভাঙ্গড় এই মুহুর্ত Palash Biswas

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#Comrade Ramchandran Missing from Howrah Station
#Families refused compensation by Government
#ভাঙ্গড় এই মুহুর্ত
Palash Biswas
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সরকারের দেওয়া লোকদেখানি দুই
লক্ষ টাকা নিলেন না
ভাঙ্গড়ে শহীদ
মফিজুলের পরিবার।
লড়াই চলুক।
Anand Swarup Verma informe on his FB wall:
Com K N Ramachandran, General Secretary, CPI (ML) Red Star, who reached Howrah railway station by around 5 PM on 22nd January 2017. He is missing since then. All attempts to contact comrade K N Ramachandran over his mobile phone are in vain. Comrade travelled from Lucknow to Howrah to declare solidarity with the people and the CPI (ML) Red Star comrades who are heroically resisting super imposition of a power grid by Mamata Government at Bhangar in South 24 Parganas district of W. Bengal. The Party suspects the involvement of Mamata's notorious Special Police in comrade's missing and appeal to the communists, progressive democratic forces and like-minded people for their wholehearted solidarity and support at this critical juncture.
It is terrible development and represents Bengal scenario at present under the rule of Maa Mati Manush government.
Comrade Ramchandran has been active in democrat movement in Bengal for last few decades and converse in Bengali very very well despite his South Indian status.
Bhangar Movement is against unabated land grab by Builder Promoter Syndicate mafia in New Kolkata and suburban Kolkata with all the district town.
The recent turmoi was created by this mfai goons who are known leaders of the Ruling Party.They looted land of the people in Muslim dominated area Bhangar and while People`s resistance got momentum there,these antisocial elements known best as TMC muscle Power used the police and RAF as cover and dressed as police the fired indiscriminately,two innocent young boys sacrificed in the violence.
The area has been captured by those anti social elements who have been getting land for builder mafia.Murders,Arson and rapes have been the tools of mass displacement,ethnic cleansing.
The Government and its machinery has done nothing to stop this anarchy and now they brand the leaders of Bhangar uprising as Maoists and CM  Mamata Bannerjee has ordered to arrest the leaders of the movement including the students branding them as Maoists but has not taken any action against those elements who are basically responsible for continuos violence and displacement,unemployment and resultant anger turned into people`s uprising. Mamta has been habitual to brand anyone Maoist since she has got the helms of power.She did not spare women in Kamduni or students or simple boys romthe tribal belt and the hell losing.
With the absconding comrade Ramchandran it is once again the anarchy scenario in Bengal which should be protested and resisted.
One section of media which also supported persecution and repression in seventies, during Nandigram and Singur movement to brand everyone Naxal or Maoist has launched a misinformation campaign.
Meanwhile Paribartan Panthi People`s Singer Pratul Bandopadhyay has wrote a song against this terror but Bengal Civil society has not responded as yet.

ভাঙড় সংঘর্ষে দুই নিরীহ মানুষের গুলিবিদ্ধ হয়ে মৃত্যুতে আমি শোকস্তব্ধ । তল্লাশির নামে কৃষিজীবিদের ঘরে ঘরে পুলিশের অত্যাচারকে নিন্দা ও ধিক্কার জানাই ।

শাসকদের আজ ভাবার সময় 
আবার শিক্ষা নেবার সময় । 
জনগণের কাছে যাও 
তাদের কথা শুনে নাও, 
কী করতে চাও বুঝিয়ে বলো
তাদের নিয়েই এগিয়ে চলো । 
 সেটাই হল রাস্তা 
মেরুদণ্ডীর অস্থি- সমান 
জনগণের আস্থা ।

জনগণকে তুচ্ছ করে 
চলতে গেলেই যাবে পড়ে 
আম জনতাই নিয়ন্তা 
ইতিহাসের নিয়ম তা ।

প্রতুল মুখোপাধ্যায়, ২১/০১/২০১৭

যারা যারা বাস্তুতন্ত্র ও পরিবেশ রক্ষার প্রশ্ন তুলে ভাঙড়ের আন্দোলনকে ছোট করছেন, তাদের উদ্দেশে তিনটি কথা বলবার আছে ঃ

১) এই প্রশ্নটি আন্দোলনের একমাত্র সূচনা বিন্দু নয়, জনশুনানি না করেই জমি অধিগ্রহণ থেকে শুরু করে জনগণকে কী তৈরি হবে সেই নিয়ে বারে বারে বিভ্রান্ত করা ইত্যাদি একাধিক গুরুত্বপূর্ণ দিক আছে।

২) সরকার পক্ষের সব যুক্তিই সঠিক থাকলে তারা কেন একবারও আন্দোলনকারীদের সঙ্গে বসার প্রয়োজন মনে করল না, উপরন্তু গ্রামগুলির উপর নামিয়ে আনা হল নিদারুণ পুলিশি অত্যাচার, গুলি করে মেরে ফেলা হল দুই যুবককে?

৩) বৈজ্ঞানিক সমীক্ষার দিক দিয়ে বললে তড়িৎ চুম্বক ক্ষেত্র ইত্যাদির সত্যিই কোনও প্রভাব আছে কিনা সেই নিয়ে দুই রকমের মতামতই আছে। সেখানে কোন যুক্তিতে ঘরে বসেই আপনারা বলে দিচ্ছেন অন্তিম সিদ্ধান্ত যে কোনও প্রভাব নেই?

আসলে আপনারাও পক্ষ নিয়ে ফেলেছেন যে। যে পক্ষ গ্রামবাসীদের এত বছরের প্রত্যক্ষ অভিজ্ঞতা থাকা সত্ত্বেও তাঁদের আকাট মূর্খ ছাড়া কিছুই ভাবে না, যে পক্ষ মানুষের দাবিদাওয়ার আন্দোলনগুলিকে অস্বীকার করে, কালিমালিপ্ত করে। সে কারণেই ভাঙড়ে যারা মারা গেছেন তাদের জন্য বিদ্বানসুলভ কুম্ভীরাশ্রু ফেলেও আপনাদের একটা প্রতিবাদের মিছিল বা সমাবেশে দেখা যায় না। 
 একবার ভাঙড়ে যান না--- সমীক্ষা লাগবে না, নিজে হেঁটে আসুন হাই ভোল্টেজ তারের নীচ দিয়ে, কথা বলুন সেখানের গ্রামবাসীদের সঙ্গে। বাস্তুতন্ত্র ও পরিবেশ সম্বন্ধে একটা অভিজ্ঞতা তো হবে। তারপরেই না হয় ফেসবুকটা খুলে আবার নিজের বিজ্ঞতার পরিচয় দেবেন।

শুভদীপ দার wall থেকে

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जब तक आधी आबादी उठ खड़ी नहीं आजाद,तब तक लोकतंत्र की हर लड़ाई अधूरी है। पलाश विश्वास

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अब लड़ाई मैराथन है,यूपी के फर्राटे क आगे भी सोचें!

जब तक आधी आबादी उठ खड़ी नहीं आजाद,तब तक लोकतंत्र की हर लड़ाई अधूरी है।

पलाश विश्वास

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले राजनीति का जो वीभत्स चेहरा सामने है,नतीजा कुछ भी हो हालात बदलने के आसार नहीं हैं।

इसबीच भक्तों के लिए खुशखबरी है कि नई विश्वव्यवस्था के ग्लोबल हिंदुत्व के ईश्वर आज रात ग्यारह बजे दुनिया के चार नेताओं से बात करने के बाद भारत के नेतृत्व से बतियायेंगे।ओबामा के लंगोटिया यार को डान डोनाल्ड ने भाव कुछ कम दिया है,ऐसा बी न सोचें।असल में हम तो उन्हीं के प्रजाजन हैं और वे स्वंय मनुमहाराज हैं।सबसे बड़े उपनिवेश को और चाहिए भी तो क्या,बताइये।लाइव देखिते रहिये चैनल वैनल।

यह भी मत कहिये कि भाई,हद है कि बलि,जब ट्रम्प ने यूएस इलेक्शन जीता था, तब मोदी उन्हें सबसे पहले फोन करने वाले नेताओं में शामिल थे।

अभी 2014 के बाद नरसंहारी अश्वमेध अभियान तेज जरुर हुआ है लेकिन हालात दरअसल 2014 से पहले कुछ बेहतर नहीं थे।नरसंहार के सिलसिले में यह फासिज्म का राजकाज कारपोरेट नरसंहार का हिंदुत्व एजंडा ग्लोबल है।प्रगति यही है।

हजारों बार पिछले पच्चीस सालों से घटनाओं का सिलसिलेवार ब्यौरा हम देते रहे हैं।उन्हें दोहराये बिना सिर्फ इतना कहना है कि हम एक के बाद एक नरसंहार के घटनाक्रम से होकर पंजाब की पांचों नदियां खून से लबालब,सारा का सारा गंगा यमुना नर्मदा ब्रह्मपुत्र कृष्णा कावेरी गोदावरी के उपजाऊ मैदानों से लेकर हिमालय, समुदंर, अरण्य, विंध्य, अरावली, सतपूड़ा,रेगिस्तान रण के साथ साथ एक एक जनपद को मरघट में तब्दील होने के नजारे देखते हुए मौजूदा मुकाम पर निःशस्त्र मौनी बाबा जय श्री जयश्री बजंरगी केसरिया हो चुके हैं।

पच्चीस साल के मुक्तबाजार के सफरनामे में फर्क सिर्फ यही है।

सारी विचारधाराओं का आत्मसमर्पण उपलब्धि है।

मौलिक अधिकारों का हनन उपलब्धि है।

सारे माध्यमों का,विधाओं,विषयों का अवसान है।

बहुलता विविधता सहिष्णुता अमन चैन का विसर्जन है।

दसों दिशाओं में आगजनी,हिंसा की दंगाई राजनीति है।

इतिहास के अंधेरे ब्लैकहोल में गोताखोरी है और ज्ञान मिथकों में सीमाबद्ध है।

नागरिक और मानवाधिकारों का हनन उपलब्धि है।

संविधान और कायादे कानून का कत्लेआम का नवजागरण है।

सारे राष्ट्रीय संसाधनों संपत्तियों का निजीकरण नीलामी विनिवेश उपलब्थि है।

बिल्डर प्रोमोटर माफिया राज उपलब्धि है।

रोजगार संकट आजीविका संकट पर्यावरण जलवायु संकट उपलब्धि है।

फिलवक्त कैशलैस डिजिटल इंडिया का फाइव जी स्टार पेटीएम जिओ बाजार बम बम है।हर बम परमाणु बम है।आगे भुखमरी मंदी और हिरोशिमा नागासाकी महोत्सव हैं।

फर्क यही है कि मुक्तबाजार में सबसे बड़ा रुपइया है,न बाप बड़ा है न भइया और न मइया।नोटबंदी के पहले जो हाल रहा है,अबभी वहीं हाल है।

नोटबंदी से पहले और बाद में भी डिजिटल कैशलैस इंडिया में नकदी की क्रयशक्ति हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है और हम परिवार से बेदखल हो गये हैं तो बच्चे लावारिश हो गये हैं और समाज संस्कृति सिरे से लापता हैं और हमारा सारा कामकाज और राजकाज मुक्तबाजार है।हम किसी देश के नहीं मुक्त बाजार के लावारिश गुलाम प्रजाजन हैं।

पंजाब में अस्सी के दशक से भी भयानक संकट सर्वव्यापी नशा है तो बाकी देश में भी नशा के शिकंजे में नई पीढ़ी है।

बांग्ला अखबारों में,चैनलों में  रोज रोज सिलिसलेवार ब्यौरा किसी न किसी टीनएजर या नवयुवा के नशे के शिकंजे में बाप,भाई,मां या दादी को मार देने या विवाहित युवक द्वारा पत्नी और बच्चों को निर्मम तरीके से मार देने का छप दीख रहा है।कलेजा चाक होने के बदले लोगों को इस खतरनाक केल से मजा आ रहे है क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके बच्चे सही सलामत हैं और रेस में सबसे तेज दौड़ रहे हैं।हालात उलट हैं।

टुजी थ्रीजी फोर जी फाइव जी दरअसल जी नहीं,उपभोक्ता वाद के चरणबद्ध स्टार है।हमारे बच्चे हत्यारों में,अपराधियों में,बलात्कारियों में शामिल हो रहे हैं।

यह संचार क्रांति भी नहीं है।विशुध उपभोक्ता क्रांति है।अपराध क्रांति भी है यह।

सूचना,जानकारी ज्ञान सिरे से लापता हैं।

तकनीक को छोड़ सारे विषय उपेक्षित हैं।

उच्च शिक्षा शोध के बदले तकनीक और सिर्फ तकनीक है।

ज्यादा से ज्यादा कमाने,ज्यादा से ज्यादा खर्च करने और ज्यादा से ज्यादा भोग की आपाधापी भगदड़ है।सुरसामुखी बेरोजगारी है।नशा है और बेलगाम अपराध बाहुबलि राज है।सारे बच्चे इस अपराध जगत के वाशिंदे बना दिये जा रहे हैं।हम बेपरवाह हैं।

हम बेपरवाह है कि हमारे बच्चे लावारिश भटक रहे हैं।

हर विधा माध्यम में मनोरंजन भोग कार्निवाल है।

अर्थव्यवस्था या उत्पादन प्रणाली के प्रबंधन के बजाय सत्ता वर्ग के लिए रंगबिरंगी योजनाओं में खैरात बांटकर लोकलुभावन बजट या मौके बेमौके मुआवजा,लाटरी या पुरस्कार सम्मान भत्ता के जरिये या फिर खालिस घोषणाओं से,टैक्स राहत,कर्ज-पैकेज के ऐलान से  सरकारी खर्च से वोटबैंक मजबूत बनाकर नकदी बढ़ाकर बाजार में आम जनता कासारा पैसा बचत जाममाल झोंककर अनंतकाल तक इलेक्शन जीतने का मौका है।

बजट इसीलिए वित्तीय प्रबंधन नहीं वोटबैंक प्रंबंधन है।नोटों की वर्षा है।

सेवा जारी है।तकनीक ब्लिट्ज है और मनोरंजन भारी है।

देश के संसाधनों का संसाधनों का क्या हो रहा है,मेहनतकशों और बहुजनों,बच्चों और औरतों के क्या हाल हैं,बुनियादी सेवाओं और जरुरतो का किस्सा क्या है,रोजगार और आजीविका का क्या बना,उत्पादन प्रणाली या अर्थव्यवस्था की सेहत के बारे में सोचने समझने की मोबाइल नागरिकों को कोई परवाह नहीं है।

मसलन वित्तीय घाटे के सरकारी आंकड़ों पर सीएजी ने सवाल खड़े कर दिए हैं। सीएजी का अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2016 में वित्तीय घाटा सरकारी अनुमान से 50,000 करोड़ रुपये ज्यादा हो सकता है।सीएजी के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में वित्तीय घाटा बढ़ने का अनुमान है, जबकि वित्त वर्ष 2016 में जीडीपी का 4.31 फीसदी वित्तीय घाटा होगा। वहीं सरकार का वित्तीय घाटा, जीडीपी का 3.9 फीसदी रहने का अनुमान है। इस तरह, सीएजी के मुताबिक सरकारी अनुमान से 50,407 करोड़ रुपये ज्यादा घाटा संभव है

मसलन नोटबंदी के जख्मों पर मरहम लगाने के लिए कैबिनेट ने आज कई बड़ी योजनाओं को मंजूरी दी है।चुनाव आयोग के निषेध के बाद यह सीधे पुल मारकर छक्का है।अलग पांच राज्यों की जनता को अलग से भरमाने के बजाय थोक भाव से आम जनता के बहुमत पर सीधा निवेश है।

खेती ,कारोबार चौपट है,नकदी है नहीं लेकिन गांवों में घर बनाने या पुराने घर के विस्तार के लिए कर्ज पर ब्याज में सब्सिडी मिलेगी। इसके अलावा फसल कर्ज पर से ब्याज में राहत दी गई है।

सरकारी दावा है कि गांवों में अब घर बनाना ज्यादा आसान होगा।

कर्ज किसे मिलेगा और किसे नहीं.जाहिर है कि यह हैसियत पर निर्भर होगा।

कैबिनेट ने गांवों में घर बनाने के लिए एक नई स्कीम को मंजूरी दी है।

गांवों में नए घर बनाने या पुराने घर के विस्तार के लिए 2 लाख तक के लोन में ब्याज में सब्सिडी देने की योजना है।

सरकारी खर्च बपौती धंधा है,अपनी अपनी राजनीति के लिए जितना चाहे खर्च करो क्या कर लेगा कोई आयोग या अदालत।

वहीं नोटबंदी की मार के बाद अब किसानों को जख्म पर सरकार मरहम लगाने में जुटी है। आज कैबिनेट में किसानों को राहत देने के कुछ फैसले लिए गए हैं। किसानों को फसल पर लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए 2 महीने की मोहलत दी गई है। नोटबंदी की वजह से किसानों को 2 महीने और मोहलत दी गई है।

कैबिनेट ने वरिष्ठ पेंशन बीमा योजना को भी मंजूरी दी है। इसके अलावा आईएम बिल को भी कैबिनेट मंजूरी दे दी है। अब आईआईएम से एमबीए करने वालों को डिप्लोमा की जगह डिग्री मिलेगी।

और आम नागरिक बल्ले बल्ले हैं। छप्पर फाड़ सुनहले दिनों की उम्मीद में हम मजा लूटने के मकसद से रातोंरात केसरिया फौज में शामिल हो गये हैं।

रथी महारथियों के चेहरे बदल भी जायें तो जल जंगल जमीन आजीविका रोजगार नागरिकता मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों से लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से लेकर मेहनतकशों के हक हकूक और बुनियादी सेवाओं,जरुरतों और पहचान और वजूद से बेधखल बंचित बहुजनों की रोजमर्रे की जिंदगी में बदलाव के आसार कम ही हैं।

आजादी के बाद,गणतंत्र लागू होने के बाद एक और गणतंत्र दिवस के उत्सव से पहले तक बुनियादी अंतर समानता,न्याय और स्वतंत्रता के लक्ष्यों के मद्देनजर कभी नहीं आया है।हालात आजादी से पहले थे,उससे कहीं बदतर हैं।पहले कमसकम ख्वाब थेषख्वाबों को अंजाम देने के विचार थे।जनांदोलन थे।अब सिर्फ मुक्तबाजार है।मौकापरस्ती है।

बहरहाल तमिलनाडु में आत्मसम्मान वाया सिनेमा अब जल्लीकट्टू है। जल्लीकट्टू पर आज भी तमिलनाडु जल रहा है। यह भी अलग तरह का राममंदिर निर्माण है।

बुनियादी बदलाव की कोई सोच नहीं,कोई ख्वाब नहीं किसी भी भावनात्मक मुद्दे पर जब चाहो,तब पूरे देश को आग में झोंक दो।

आंदोलन भी सेलिब्रेटी शो लाइव सिनेमा ब्लिट्ज है।

जबकि जड़ों मे न खाद है और न पानी है।

न मिट्टी है कहीं किसी किस्म की।

सबकुछ हवा हवाई है।

बुनियादी मुद्दे और बुनियादी सवाल भी हवा हवाई है।

आज भी हजारों की संख्या में लोगों ने मरीना बीच पर जमा होकर विरोध प्रदर्शन किया। जल्लीकट्टू को कल तमिलनाडु विधानसभा में मान्यता मिलने के बाद आज चेन्नई पुलिस ने इसके समर्थन में प्रदर्शन कर रहे लोगों के खिलाफ कार्रवाई करना शुरू कर दिया है। पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों के बीच घुसकर असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ रहे हैं।

तमाशा अभी जारी है कि व जल्लीकट्टू बिल पास होने के बाद पड़ोसी राज्य कर्नाटक ने भी उनके कंबाला यानि भैंस दौड़ पर लगे प्रतिबंध को हटाने की केंद्र सरकार के सामने मांग रखी है।महाराष्ट्र में बैलगाड़ी आंदोलन जोर पकड़ रहा है।

गोवंश पर गहराते संकट पर संघ परिवार मौन है।

वहीं अभिनेता कमल हासन ने ट्वीट करके कहा कि वो जल्लीकट्टू के समर्थन वाले बिल की मांग 20 सालों से कर रहे हैं।

फिलवक्त पक्ष प्रतिपक्ष दोनों हिंदुत्व का मनुस्मृति पुनरूत्थान का मुक्तबाजार है।सूबे की सरकारें संघ परिवार की नहीं भी बनीं तो हालात में फर्क नहीं पड़ने वाला है क्योंकि सूबे का राजकाज सिरे से केंद्र की मेहरबानी है और सूबे में सरकार चाहे किसी की बने,केंद्र के साथ उसके नत्थी हो जाने और उसके जरिये केंद्र का केसरिया एजंडा पूरा होते रहने का सिलसिला जारी रहना नियति है।

मसलन ममता बनर्जी हो या अखिलेश यादव या बीजू पटनायक हो या चंद्रबाबू नायडु या हरीश रावत,आम जनता के हकहकूक पर कुठाराघात और आम जनता के विरोध के अधिकार,मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात या जल जमीन जंगल आजीविका से  बेदखली और अंधाधुंध शहरीकरण और अंधाधुंध औद्योगीकरण के एजंडा जस का तस रहना है।बहुजनों का दमन सर्वत्र है।स्त्री के विरुद्ध अत्याचार सुनामी सर्वत्र है।सर्वत्र मेहनतकशो का एक समान सफाया है।युवा हाथ सर्वत्र बेरोजगार हैं।

गौरतलब है कि बंगाल में 35 साल तक वाम शासन के दौरान भी सत्ता और राष्ट्र के चरित्र में बुनियादी परिवर्तन आया नहीं है या फिर बहन मायावती के चार चार बार यूपी के मुख्यमंत्री बन जाने से न अंबेडकर का मिशन तेज हुआ है और न मनुस्मृति राजकाज पर कोई अंकुश लगा है।

गौरतलब है कि 1914 से पहले 1991 के बाद बनी तमाम सरकारें अल्मत सरकारें रही हैं।संसद में हाल में हाशिये पर जाने वाला वाम भी लंबे समय तक कमसकम मनमोहन राजकाज के दस साल तक निर्णायक भी रहे हैं,लेकिन जनविरोधी नीतियों और कानून सर्वदलीय सहमति से बनते रहे हैं।संसद और केंद्रीय मंत्रिमंडल तक को हाशिये पर रखकर राजकाज जारी है और हम इसे अभी भी लोकतंत्र कह रहे हैं।

अब राजनीति न कोई विचारधारा है, न बदलाव के ख्वाब है राजनीति और न उसमें जनता की आशा आकांक्षाओं की कोई छाप है।

धनबल बाहुबल की राजनीति विशुध जाति धर्म का समीकरण है जो साध लें ,वही सिकंदर है।यह बेहद खतरनाक स्थिति है कि आम जनता के पास कोई विकल्प नहीं है।

लोकतंत्र में बहुमत अभिशाप बन गया है।

जर्मनी ने इस बहुमत का मोल चुकाया है।

अब अमेरिका की बारी है।

हम आजादी के पहले दिन से किश्त दर किश्त मोल चुका रहे हैं।

शासकों को बदल डालने की गरज से हम पुराने या फिर नये शासक पहले से भी खराब चुन रहे हैं।वाम अवसान के बाद का परिवर्तन वही साबित हुआ है।

यूपी बिहार में सत्ता में बहुजनों की भागेदारी और बाकी देश में भी तमाम बहुजन सत्ता सिपाहसालार लेकिन न अस्पृश्यता खत्म हुई है और न जाति धर्म लिंग नस्ल के आधार पर भेदभाव खत्म हुआ है क्योंकि राजनीति में सिर्फ चेहरे बदल रहे हैं,सत्ता समीकरण बदल रहा है ,बाकी तंत्र मंत्र यंत्र और हिंदुत्व का एजंडा वही है,जिसके तहत भारत का विभाजन हो गया और बंटवारे का सिलसिला अबभी जारी है।

अमेरिका के हर शहर में महिलाओं की अगुवाई में लाखों महिलाओं के सड़कों पर उतर आने पर सविता बाबू ने सवाल किया कि ये लोग मतदान के दौरान क्या कर रहे थे।

संजोगवश खुद जिनके खिलाफ यह जनविद्रोह है,उन्हीं डोनाल्ड ट्रंप का सवाल भी यही है।मुद्दे की बात तो यह है कि वियतनाम युद्ध के बाद सत्ता के खिलाफ अमेरिकी नागरिकों के इतने बड़े विरोध प्रदर्शन का कोई इतिहास नहीं है।

बहुमत जनादेश के बावजूद आधी आबादी और आधा से जियादा अमेरिका को नये राष्ट्रपति को अपना राष्ट्रपति मानने से इंकार किया है।

वाशिंगटन मार्च का नारा है,यह मैराथन दौड़ है,फर्राटा कतई नहीं है।

राजनीति भी दरअसल मैराथन दौड़ है,फर्राटा है नहीं।

बहुमत और जनादेश के दम पर जनता के हकहकूक को कुचलने रौंदने का हक हुकूमत को नहीं है।

यह कोई दासखत नहीं है कि एकदफा वोट दे दिया तो पांच साल तक चूं भी नहीं कर सकते।

सबसे बड़ी बात जो हम शुरु से बार बार कह रहे हैं,वह यह है कि जब तक आधी आबादी उठ खड़ी नहीं आजाद,तब तक लोकतंत्र की हर लड़ाई अधूरी है।

ऐसा भी कतई नहीं है कि अमेरिकी महिलाएं भारत की महिलाओं की तुलना में दम खम में कुछ ज्यादा मजबूत हैं या उनकी औसत शिक्षा भारत की महिलाओं से कुछ कम है।

पितृसत्ता और मनुस्मृति के दोहरे बंधन में भारत की महिलाएं जो सबसे ज्यादा मेहनतकश हैं,सिरे से या दासी ,या शूद्र या अस्पृश्य या बंधुआ या देवदासी हैं या सिर्फ देवी हैं और उनका कोई वजूद नहीं है।

मतलब  यह है कि आजादी से पहले हो गये सती प्रथा उन्मूलन,विधवा विवाह,स्त्री शिक्षा जैसे क्रांतिकारी सुधारों के बावजूद भारत में स्त्री सशक्तीकरण की कोई जमीन नहीं है।कुछ महिलाओं के सितारे की भांति चमक दमक के बावजूद भारत में स्त्री अभी अपने पांवों पर खड़ी नहीं हो सकती।सबसे पहले हकीकत की यह जमीन बदलने की अनिवार्यता है,जिसके बिना लोकतंत्र की कोई खेती सिरे से अंसभव है।

जब आधी आबादी पूरीतरह बंधुआ है और पंचानब्वे फीसद बहुजनों को जाति धर्म नस्ल भूगोल जीवन के हर क्षेत्र से हर हकहकूक से बेदखल कर दिया गया है,तब लोकतंत्र की खुशफहमी के सिवाय हमारी राजनीति क्या है,इस सबसे पहले समझ लें।

इस अल्पमत वर्चस्व की रंगभेदी पितृसत्ता के खिलाफ हमारी मर्द राजनीति खामोश है,इसलिए प्रतिरोध की जमीन कहीं बन ही नहीं रही है और न बहुमत के सिवाय अल्पमत की कहीं कोई सुनवाई है और न बंधुआ बहुजनों या आधी आबादी स्त्रियों की किसी भी स्तर पर कोई सुनवाई या रिहाई है।

हिंदुत्व की मुख्यधारा से एकदम अलहदा आदिवासी भूगोल और हिमालयी क्षेत्रों में प्रतिरोध की संस्कृति शुरु से है क्योंकि वहां पितृसत्ता हो न हो,स्त्री का नेतृत्व स्थापित है।

उत्तराखंड,मणिपुर,झारखंड और छत्तीसगढ़ के अलावा  पूरे आदिवासी भूगोल में स्त्री की भूमिका नेतृत्वकारी है तो राष्ट्र और सत्ता के दमन के खिलाफ भी उनकी हकहकूक की आवाजें हमेशा बाबुलंद गूंजती रही हैं।

देश के बाकी भूगोल में यह लोकतंत्र अनुपस्थित है।

क्योंकि पितृसत्ता के भूगोल में कोई स्त्रीकाल नहीं है।

भारत में हालात बदलने के लिए गांव गांव से,हर जनपद से राजधानी की ओर  स्त्री मार्च का मैराथन शुरु करना जरुरी है।


পি. আর. ঠাকুর কপিল কৃষ্ণ ঠাকুর Eminent Bengali writer Kapil Krishna Tahkur wrote about Matua Icon PR Thakur`s role in the Constituent assembly

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পি. আর. ঠাকুর
কপিল কৃষ্ণ ঠাকুর
পি.আর.ঠাকুর, বিশেষত সংবিধান পরিষদে তাঁর ভূমিকা নিয়ে অনেকেই মনগড়া মন্তব্য করেন, যা বিভ্রান্তিকর। এ বিষয়ে আলোকপাত করার জন্য অনেক অনুরোধ জমা হয়ে আছে। সেই তাগিদ থেকেই এই সংক্ষিপ্ত উপস্থাপনা: সংবিধান পরিষদের কার্য বিবরণী অনুসরণ করে দেখা যাচ্ছে, বঞ্চিত জনগোষ্ঠীর স্বার্থে সব চেয়ে উচ্চগ্রামে যিনি কথা বলেছেন, তিনি পি.আর.ঠাকুর। সুকৌশলী ও দূরদর্শী বাবাসাহেব আম্বেদকর সংবিধান পরিষদে হয়ে উঠেছিলেন সমন্বয়বাদী তথা সকলের প্রতিনিধি। পরিষদের প্রথম সভা হয় ৯.১২.৪৬ তারিখে। ড. আম্বেদকর ১৭.১২.৪৬ তারিখে প্রথম ভাষণেই ( সংবিধানের Aims & objects সম্পর্কে) নিজের এই ভাবমূর্তি তুলে ধরেন—"I know today we are divided politically, socially and economically, we are a group of warring camps and I may go even to the extent of confessing that I am probably one of the leaders of such a camp. But, sir, with all this I am quite convinced that given time and circumstances nothing in the world will prevent this country from becoming one.(Applause). With all our caste and creeds, I have not the slightest hesitation that we shall in some form be a united people." (Cheers). এই সূত্রে ১৯.১২.৪৬ তারিখে পি.আর.ঠাকুর বলেন, "Sir, Dr. Ambedkar did not say anything last time about the Depressed Classes, so I consider it a great honour to speak to the members of the Constituent Assembly on behalf of the Scheduled Castes in general of India."দীর্ঘ ভাষণের শেষ দিকে তাঁর বিস্ফোরক ঘোষণা ছিল: "We the Depressed Classes are the original inhabitants of this country. We do not claim to have come to India from outside as conquerors, as do the Caste Hindus and the Muslims. As a matter of fact, India belongs to us and we cannot tolerate the idea that this ancient mother country of ours will be divided between the Muslims and the Caste Hindus only…."
ড. আম্বেদকর যেখানে জোর দিয়েছেন, শত জাত-বর্ণে বিভক্ত হওয়া সত্ত্বেও ভারতবর্ষে একদিন সবাই মিলে মিশে আমরা এক হয়ে যাব; পি.আর.ঠাকুর সেখানে নিজেকে নিপীড়িত জনগোষ্ঠীর প্রতিনিধি হিসেবে তুলে ধরে বলেছেন, এই ভারতবর্ষের আমরাই মূলনিবাসী, সুতরাং আমাদের স্বার্থ বিপন্ন করে শুধুমাত্র বহিরাগতদের মধ্যে এই প্রাচীন মাতৃভূমিকে ভাগ-বাঁটোয়ারা করে দেবার চিন্তাভাবনা আমরা কিছুতেই বরদাস্ত করব না।(ক্রমশঃ) 

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ट्रंप उपनिवेश में आगे डिजिटल सत्यानाश! पहली को बजट की जिद अर्थतंत्र को बदलने की कवायद और पांच राज्यों को झुनझुना! पीएम को सीएम के खत से बदलेगी नहीं कयामत की फिजां! यूपी वाले अपनी निर्णायक ताकत को समझें और जनादेश को समूचे देश के लिए सामूहिक आत्महत्या बनने न दें,आज सबसे बड़ी चुनौती यही है। पलाश विश्वास

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ट्रंप उपनिवेश में आगे डिजिटल सत्यानाश!

पहली को बजट की जिद अर्थतंत्र को बदलने की कवायद और पांच राज्यों को झुनझुना!

पीएम को सीएम के खत से बदलेगी नहीं कयामत की फिजां!

यूपी वाले अपनी  निर्णायक ताकत को समझें और जनादेश को समूचे देश के लिए सामूहिक आत्महत्या बनने न दें,आज सबसे बड़ी चुनौती यही है।

पलाश विश्वास

अक्सर बार बार ठोकर खा्ते जाने के बावजूद संभलकर चलने की आदत बनती नहीं है।आदत नहीं सुधरने का मतलब आगे फिर सत्यानाश है।

हम बामसेफ के आभारी हैं कि बामसेफ से करीब एक दशक तक जुड़े रहने की वजह से अंबेडकरी मिशन के तमाम लोगों से लगातार संवाद करने का मौका मिला है।वह संवाद आज भी कमोबेश जारी है,जिस वजह से हम हवा हवाई बातें नहीं करते लिखते हैं।

बामसेफ के मंचों से देशभर में आर्थिक मुद्दों पर करीब एक दशक तक हम बातें करते रहे हैं, मुंबई में बजट का विश्लेषण करते रहे हैं और हर सेक्टर में जाकर अर्थव्यवस्था की बुनियादी मुद्दों पर संवाद भी करते रहे हैं।

अब हम बरसों से बामसेफ में नहीं हैं और जिन साथियों को लेकर अंबेडकर के आर्थिक विचारों पर हम जमीनी हकीकत और राजकाज,नीति निर्धारण के तहत ग्लोबीकरण ,निजीकरण उदारीकरण पर लगातार संवाद कर रहे थे,वे तमाम साथी भी अब बामसेफ में नहीं हैं।

फिरभी हमारे मुद्दे और सरोकार अब भी वे ही हैं।

बहुसंख्य मेहनतकश जनता के हकूक के मुद्दे,उनकी बुनियादी जरुरतों और बुनियादी सेवाओं के मुद्दे ,जल जंगल जमीन आजाविका,पर्यावरण जलवायु, नागरिकता, नागरिक मानवाधिकार कानून का राज,संवैधानिक रक्षा कवच,समता ,न्याय,सबके लिए समान अवसर और संसाधनों पर आम जनता के हक के सवाल और मुक्तबाजार के प्रतिरोध के मुद्दे वे ही हैं,जिन्हें हमने बामसेफ के मार्फत बहुजन आंदोलन के मुद्दे बनाने की कोशिश लगभग एक दशक से करते रहे हैं।जो हम कर नहीं सके हैं।

सिर्फ हम बामसेफ की भाषा का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं,जो यकीनन बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की भाषा भी नहीं रही है।

विमर्श की भाषा बहुजनों की भी भाषा होनी चाहिए।

बाकी तमाम हककूक से वंचित रहने के साथ ज्ञान और शिक्षा के हकहकूक से हजारों साल से मनुस्मृति विधान के चलते अस्पृश्य बने रहने के नर्क से निकलने के लिए मनुस्मृति के मुताबिक अपनी जाति पहचान को मिटाना बेहद जरुरी है और जाति धर्म नस्ल की भाषा में संवाद का मतलब फिर वही मनुस्मृति सौंदर्यशास्त्र और व्याकरण है.जिससे मुक्त होने के लिए जनमजात जिस जुबान में बात करने को हमें अभ्यस्त बनाया गया है,घृणा की उस जुबान से मुक्त होने की जरुरत है जो सीधे तौर पर तथागत गौतम बुद्ध का पंथ है।यही एकमात्र मुक्तिमार्ग है।

धम्म प्रवर्तन की भाषा में हिंसा का वर्जन दरअसल वर्गीय ध्रूवीकरण है,जिसकी कोई काट ब्रांह्मण धर्म और उसके ग्लोबल हिंदुत्व के पास नहीं है और ग्लोबल हिंदुत्व के प्रतिरोध का यही एकमात्र वैकल्पिक ग्लोबल एजंडा संभव है ,जो हमारे इतिहास और लोक की विरासत है।

तथागत गौतम बुद्ध के मुकाबले न कोई कल्कि अवतार है और न कोई डान डोनाल्ड है,इसे समझ लें तो प्रतिरोध की मजमीन अब बी बनायी जा सकती है।

धर्मस्थलों को फिर ज्ञान के केंद्रों में तब्दील करने का तथागत का आंदोलन ही संस्थागत फासिज्म के राजकाज से मुक्त होने का रास्ता है।

पिछले दिनों एक साक्षात्कार में विद्याभूषण रावत ने मुझसे यही पूछा था कि बहुजनों को शिकायत है कि आपकी भाषा अंबेडकरी कम और वामपक्षी ज्यादा लगती है।उस संक्षिप्त बातचीत में तमाम मुद्दों के साथ इसका जवाब पूरा दे नहीं सका था।

अब अंबेडकर के रचना समग्र को उठाकर देख लें, डिप्रेस्ड क्लास के अलावा, ब्राह्मणवाद के अलावा वंचितों के हकहकूक की उनकी विचारधारा में गालीगलौज कितने हैं।जिस भाषा का इस्तेमाल अब अंबेडकरी मिशन के नाम लोग करते अघाते नहीं और जिस भाषा के बूते वे किसी को भी अंबेडकरी तमगा देकर उसके पिछलग्गू बन जाते हैं, यी तर्क और विज्ञान के विमर्श की भाषा में संवाद करने वाले बहुजनों को कम्युनिस्ट बताकर उनका बहिस्कार से हिचकते नहीं हैं,अंबेडकर के विचारों में उस जाति घृणा की कितनी जगह है। तथागत गौतम बुद्ध के पंचशील की भाषा पर भी गौर करें।

गौरतलब है कि अंबेडकर ने डिप्रेस्ड क्लास कहा है,जाति उन्मूलन की बात कही है।उन्होने अस्पृश्यता खत्म करने के लिए पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद,दोनों का पुरजोर विरोध किया है लेकिन कहीं भी जाति बतौर वंचित वर्ग को संबोधित नहीं किया है बल्कि वर्ग संघर्ष की बात करने वाले कामरेड इसके उलट जाति से इंकार करते हुए जाति वर्चस्व के समीकरण में अपनी विचारधारा और वर्ग संघर्ष दोनों को तिलांजलि देकर मनुस्मृति शासन की निरंतरता बनाये रखने का धतकरम किया है।

वर्ग की बात जब अंबेडकर खुद कर रहे थे, जब अंबेडकर ने लड़ाई की शुरुआत ही वर्कर्स पार्टी और ट्रेड यूनियन आंदोलन के साथ अस्पृशयता विरोधी आंदोलन से की थी,तब जाति से नत्थी अंबेडकरी मिशन के औचित्य पर  बहस उसी तरह जरुरी है जैसे वामपक्ष का जाति के यथार्थ से इंकार और बहुसंख्य सर्वहारा से विश्वासघात की चीड़ फाड़ अनिवार्य है।वाम आंदोलन में अंबेडकर की अनुपस्थिति की वजह से वर्गीय ध्रूवीकरण  हुआ नहीं है और जाति व्यवस्था पहले से कहीं ज्यादा मजबूत है,इस सच का सामना भी करें।

आरक्षण पर बहस की गुंजाइश है।जब तक जाति उन्मूलन नहीं होगा,जब तक जीवन के सभी क्षेत्रों में बहुजनों के खिलाफ नस्ली भेदभाव का सिलिसला जारी रहेगा, आरक्षण के अलावा वंचितों को समान अवसर और न्याय दिलाने का दूसरा कोई रास्ता नहीं है।हालांकि सत्ता वर्ग ने निजीकरण और मुक्तबाजार के जरिये आरक्षण खत्म करने का चाकचौबंद इंतजाम कर लिया है और मुक्त बाजार का समर्थन करने के आत्मघाती करतबसे अंबेडकरी आंदोलन आरक्षण को तिलांजलि देने में ब्राह्मणतंत्र का सहायक बना है और इस कार्यक्रम में बहुजनों के सारे राम मनुस्मृति के हनुमान बने रहे हैं।

यह भी गौर करने लायक बात है कि वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था के तहत हजारों जातियों में बंटे हुए भारतीय मेहनतकशों को आरक्षण के तहत बाबासाहेब ने सिर्फ तीन वर्गों में संगठित करके  जातियों को उन्ही  संवैधानिक वर्गों में  अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग में संगठित करने का करिश्मा कर दिखाया है।

अब अगर तमाम अनुसूचित और पिछड़े फिरभी जाति में गोलबंद बने रहकर अंबेडकरी मिशन चलाना चाहते हैं,तो यह फिर अस्पृश्यता के मटके और झाड़ु से खुद को नत्थी करने के अलावा और क्या है,हम यह नहीं समझते।भाषा का तेवर भी वहीं है।

बहरहाल महामहिम ट्रंप के 20 जनवरी को राष्ट्रपति बनते ही उनके एक के बाद एक कारनामे से साफ जाहिर है कि अमेरिकी श्वेत बिरादरी और दुनियाभर के उनके भाई बंधु के अलावा बाकी दुनिया और खासकर काली इंसानियत के लिए वे क्या कयामत बरपाने वाले हैं।

हम जो पिछले पच्चीस साल से उत्पादन प्रणाली को अर्थव्यवस्था की बुनियाद बताते हुए भारतीय कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था  का आधार बता रहे थे,उसका मतलब अब शायद समझाने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी।अब भी नहीं समझे तो हिंदुत्व का नर्क, जन्मफल, नियति, देवमंडल,अवातार तिलिस्म,धर्मस्थल और पीठ,तंत्र मंत्र ताबीज यंत्र का विशुध आयुर्वेद योगाभ्यास,लोक परलोक और स्वर्गवास आपको मुबारक।

शिक्षा और शोध को तिलांजलि देकर ज्ञान के बजाय तकनीक को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर हर हाथ में थ्रीजी फोर जी फाइव जी सौंपकर देश को मुक्तबाजार में, कैसलैस डिजिटल इंडिया बनाने की प्रक्रिया में हम जो अमेरिकी उपनिवेश बनते रहे हैं,वह एक झटके से ट्रंप उपनिवेश है।आने वाले दिनों में सरकार आधार को और बड़े स्तर पर लागू करने की तैयारी कर रही है। आधार के जरिए ही अब आप आईटी रिटर्न भी भर सकेंगे। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज आधार पर आंकड़े जारी करते हुए कहा कि इस समय देश में 111 करोड़ लोग आधार का इस्तेमाल कर रहे हैं। देश के 99.6 फीसदी युवाओं के पास आधार कार्ड है। आधार के जरिए 4.47 करोड़ बैंक अकाउंट खुले हैं। नोटबंदी के बाद हर दिन नए आधार या उनमें सुधार से जुड़ी 5-6 लाख अर्जिंयां मिल रही हैं। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि आधार के चलते पिछले 2 साल में सरकार ने 36 हजार करोड़ रुपये की बचत की है।

प्रकृति,कृषि,पर्यावरण,जल जंगल जमीन और उनसे जुड़े समुदायों के खिलाफ मुक्तबाजारी नरसंहारी अश्वमेध जारी है और रोजगार सृजन तकनीक तक सीमाबद्ध करते जाने के पच्चीस साल इस देश के भविष्य के लिए अंधकार युग में वापसी का हिंदुत्व पुनरुत्थान है।यही फिर ट्रंप के श्वेत वर्चस्व का ग्लोबल हिंदुत्व जायनी है।

बहुजनों को यह राजनीति और अर्थव्यस्था दोनों समझनी चाहिए।

नोटबंदी से एक मुश्त खेती और कारोबार के खत्म होने के बाद  फिर जो डिजिटल सत्यानाश की आपाधापी में यह अग्रिम बजट है,सरकारी खर्च बढाकर इकोनामी का लाटरी में बदलने की कवायद के तहत आम जनता पर सारे टैक्स और वित्तीय घाटे का बोझ डालने के केसरिया हिंदुत्व नस्ली अर्थतंत्र तैयार करने का डिजिटल कैसलैस महोत्सव है,उसका अंजाम डोनाल्ड के कारनामों के मुताबिक समझ लें तो बेहतर।

लोकतंत्र के बारे मेंखास बात यह है किविकसित देशों में लोकतंत्र और तीसरी दुनिया के देशों में लोकतंत्र में बुनियादी फर्क यह है कि यहां वोट न उम्मीदवार की काबिलियत और उसकी पृष्ठभूमि को देखकर गिरते हैं और न चुनाव प्रचार में बुनियादी मुद्दों और मसलों,अर्थव्यवस्था,विदेश नीति और कानून व्यवस्था के साथ सात बुनियादी सेवाओं के हालचाल,कानून व्यवस्था,नागरिक और मानवाधिकार,जल जंगल जमीन आजीविका या पर्यावरण पर किसी तरह की बहस होती है और न विचारधारा के तहत कोई बहस होती है।

जांत पांत धर्म क्षेत्र नस्ल वगैरह वगैरह से जुड़े भावनात्मक मुद्दों पर लोग निर्णायक वोट भावनाओं में बहकर गेर देते हैं।

चुनाव पूर्व लोक लुभावन बजट हो या टैक्स रियायतें हों या आरक्षण या सब्सिडी या कर्ज या पानी बिजली सड़क वगैरह वगैरह स्थानीय मुद्दों को लेकर भी वोट पड़ जाते हैं।नतीजतन जो जनादेश बनता है ,वह दस दिगंत सत्यानाश जो हो सो तो हैं ही,अगले चुनाव तक सर धुनते रहने के अलावा ट्रंप विरोधी महिलाओं के वाशिंगटन मार्च जैसी कोई बगावत के लिए हमारी रीढ़ जबाव देती रही है और इसतरह हमने संविधान और लोकतंत्र को अपने धतकरम से सिरे से फेल कर दिया है।स्यापा करने से मौत का मंजर बदलता नहीं है।

ले मशालें लिखने वाले हमारी तराई के जनकवि बल्ली सिंह चीमा ने लिखा हैः

वोट से पहले सोच जरा

बारी बारी से लूटें इकरार किया है हाथ कमल ने ।

भृष्टाचार में इक दूजे का साथ दिया है हाथ कमल ने।

दारू पीकर जय मत बोल वोट से पहले सोच जरा

पर्वत नदियां जंगल सब बरबाद किया है हाथ कमल ने।

बहरहाल,ऊपरी तौर पर लगता है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी जन भावनाओं के उभार की वजह से दक्षिणपंथी श्वेत वर्चस्व के ग्लोबल जायनी हिंदुत्व एजंडा की वजह से यूं ही अमेरिका के राष्ट्रपति बन गये हैं।

हम बार बार लिखते रहे हैं कि पहले अश्वेत राष्ट्रपति बाराक हुसैन ओबामा अमेरिकी राष्ट्र और जनता को युद्धक अर्थव्यवस्था के शिकंजे से निकल वहीं सके हैं। अमेरिका में लगातार गरीबी और बेरोजगारी बढ़ी है।कानून व्यवस्था के हालात संगीन हैं।

देशभक्ति के हिंदुत्व उन्माद से जहां विविधता और बहुलता सहिष्णुता का इतिहास और विरासत खत्म है तो वहीं पिछले पच्चीस साल में अभूतपूर्व युद्धोन्माद और हथियारों की होड़,ऱक्षा घोटालों और रक्षा आंतरिक सुरक्षा में विनिवेश के माध्यम से हमने सत्ता वर्ग को अपने हितों के लिए भारत लोक गणराज्य को सैन्य राष्ट्र बनाने की छूट दी है।

इस दौरान हमारे महान सैन्यतंत्र ने विदेशी किसी शत्रु के खिलाफ कोई युद्ध नहीं लड़ा है रंगबिरंग सर्जिकल मीडिया ब्लिट्ज के सिवाय।सार युद्ध गृहयुद्ध महाभारत सलवाजुड़ुम बहुजनों के खिलाफ,आदिवासियों के खिलाफ कारपोरेट हित में सलवा जुड़ुम है और बहुजन सितारे इस युद्ध के बारे में,सलवा जुड़ुम के बारे में,मुक्तबाजार के बारे में,यहां तक नोटबंदी के डिजिटल कैसलैस बहुजन सफाया अभियान के बारे में मौन हैं।

हम जो लोग इस तिलिस्म को तोड़ने में लगे हैं,वे आपको दुश्मन नजर आते हैं और सिर्फ ब्राह्मणों को गरियाकर मनुस्मृति के जो सिपाहसालार बने हैं ,उनकी वानर सेना में तब्दील आपको हमारी भाषा भी समझ में नहीं आ रही है।हमें सख्त अफसोस है।

अमेरिकी नागरिकों को सत्ता सौंपने और आप्रवासियों के खिलाफ नस्ली गुस्सा की दुधारी तलवार से पापुलर वोटों से हारने के बावजूद बड़े निर्णायक राज्यों में बहुमत के एकमुश्त वोटों के बहुमत से समुची दुनिया अब ट्रंप महाराज के हवाले हैं।हमारे यहां सिंहासन पर उन्हीं का खड़ाऊं है।

इस जनादेश के बाद अमेरिका का क्या होना है और बाकी दुनिया का क्या होना है,उसे दुनियाभर के विरोध प्रतिरोध से बदल पाने की कोई संभावना नहीं है।

गौरतलब है कि 16 मई ,2014 के बाद भारत की अर्थव्यवस्था,संसदीय प्रणाली और नीति निर्माण पद्धति से लेकर कर प्रणाली ,बुनियादी सेवाओं और जरुरतों के सारे परिदृश्य सिरे से बदल गये हैं।आम जनता के लिए अब कोई योजना नहीं है न विकास है।लाटरी के झुनझुना मोबाइल परमाणु बम है।हिरोशिमा नागासाकी महोत्सव है।भुखमरी और मंदी,बेरोजगारी और बेदखली विस्थापन का भविष्य है।

यूपी जीतने के लिए कायदा कानून और अर्थव्यवस्था से लेकर मुक्त बाजार के व्याकरण को जैसे ताक पर रखकर नोटबंदी जारी की गयी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों और देश के कारपोरेट घरानों के एकाधिकार वर्चस्व के लिए जैसे जबरन कैशलैस डिजिटल इंडिया बनाने के लिए अर्थव्यवस्था को ही लाटरी में तब्दील कर दिया गया है,तो 2014 के उस जनादेश की परिणति के बारे में मतदाताओं को अपने वजूद के लिए सोचना चाहिए, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है।इसलिए जनादेश से कुछ बदलने के आसार कम है।

एकबार फिर यूपी के रास्ते हिंदुस्तान फतह करने के लिएसत्ता वर्ग बुनियादी मसलों को किनारे करके हिंदुत्व की सुनामी राम के सौगंध के साथ बनाने में जुटे हैें और यूपी की जनता को ही वानर सेना में तब्दील करके हिंदुस्तान फतह करने की चाकचौबंद तैयारी है।जिसका प्रतिरोध अगर संभव है तो वह करिश्मा यूपी वालों कोही कर दिखाना है।

दूसरी ओर,चुनाव जीतने के मकसद से बजट के इस्तेमाल के इरादे के तहत पहली जनवरी को ही बजट पेश करने की जिद को सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग की हरी झंडी मिल जाने से,फिर उस बजट में पांच राज्यों में विधानसभा के मद्देनजर चुनाव आयोग ने बजट प्रावधान पर जो निषेधाज्ञा लागू कर दी है,उससे पांचों राज्यों के लिए और उनकी जनता के लिए यह नोटबंदी के बाद दुधारी मार है।

उत्तराखंड,मणिपुर और गोवा के लोग सालभर अगर झुनझुना बजाने के लिए छोड़ दिये गये,तो आगे उनका गुजारा कैसे होगा,यह नोटबंदी करने वाले झोलाछाप विशेषज्ञ ही तय करने वाले हैं।हमारे पास झुनझुना बजाने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है।

नशाग्रस्त पंजाब में हालात और खराब होंगे और यूपी कितना और पिछड़ जायेगा,यह बाद में देखा जाना है। झुनझुना बजाने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है।

भारत में बहुमत का जलवा हम अक्सर समझ नहीं पाते और चुनाव से पहले और चुनाव के बाद जनादेश की भूमिका,देश की अर्थव्यवस्था,कायदा कानून,बहुलता विविधता, लोकतांत्रिक संस्थानों पर उसके दीर्घस्थायी असर,राष्ट्रीय संसाधनों से लेकर जलवायु पर्यावरण,भूख,बेरोजगारी जैसी बुनियादी चुनौतियों, समता और न्याय के लक्ष्य,बुनियादी सेवाओं और जरुरतों के बारे में वोट डालने से पहले हम कतई नहीं सोचते।

अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रबंधन,नीति निर्धारण के बारे में बहुजनों की कोई प्रतिक्रिया नहीं होती,यही मनुस्मृति के फासिस्ट नस्ली राजकाज की पूंजी है।

भावनाओं में बहकर हवाओं के इशारों से हम अपना नुमाइंदा चुनकर जो जनादेश बनाते हैं,उसे सामूहिक आत्महत्या कहे तो वह भी कम होगा।

हर बार हम जनादेश मार्फत सामूहिक आत्महत्या ही करते हैं।

मसलन अमेरिका में पचास राज्य हैं और उनकी किस्मत का फैसला चुनिंदा कुछ राज्यों के वोट से हो जाता है जैसे डोनाल्ड ट्रंप का चुनाव अमेरिकी बहुमत के खिलाफ हो गया और इसका खामियाजा सिर्फ अमेरिका ही नहीं,बाकी दुनिया को भी भुगतना होगा।

जनादेश यूपी वालों का होगा और उसका दीर्घकालीन असर पूरे देश पर होना है।

भारत में भी यूपी बिहार तमिलनाडु मध्यप्रदेश,महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भावनाओं की सुनामी से पूरे मुल्क को फतह करने का सिलसिला आजाद भारत का लोकतंत्र है।

यूपी का जनादेश हमेशा पूरे देश की किस्मत का फैसला करने वाला होता है और इसीलिए देश के सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री यूपी से ही चुने जाते रहे हैं।

ओड़ीशा, झारखंड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ ,केरल,गोवा,पंजाब,राजस्थान और पूर्वोत्तर के राज्यों से राष्ट्रीय नेतृत्व का उभार असंभव है।

हालांकि गुजरात से नरेंद्र मोदी का उत्थान एक अपवाद ही कहा जा सकता है लेकिन यह भी जनप्रतिनिधित्व या लोकतंत्र का करिश्मा नहीं है।हिंदुत्व के एजंडे के मुताबिक भावनाओं की जिस सुनामी से मोदी देश के नेता बने, उस तरह किसी माणिक सरकार,चंद्रबाबू नायडु या नवीन पटनायक और यहां तक कि किसी ममता बनर्जी या नीतीश कुमार के भी  के प्रधानमंत्री बनने के आसार नहीं है।

अजूबा लोकतंत्र हमारा है,जहां राजनीति में स्त्री के परतिनिधित्व से पितृसत्ता के तहत पूरी राजनीति लामबंद है।

उत्तराखंड जैसा राज्य और पूर्वोत्तर के तमाम राज्य केंद्र सरकार की मेहरबानी पर निर्भर है क्योंकि राष्ट्रीय नेतत्व के लिए ये राज्य निर्णायक नहीं है।

ऐसे राज्यों में नेतृत्व न पिद्दी है और न पिद्दी का शोरबा है।

बहरहाल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मांग की है आम बजट को विधानसभा चुनाव के बाद पेश करने पर विचार करें, ताकि उत्तर प्रदेश के विकास व जनता के हित में योजनाओं की घोषणा हो सके। अखिलेश ने अपने पत्र में चुनाव आयोग की ओर से भारत सरकार को 23 जनवरी को जारी किए गए पत्र का हवाला देते हुए लिखा है।इस पत्र में आयोग ने निर्देश दिया है कि भारत सरकार के आगामी बजट में चुनाव आचार संहिता से प्रभावित पांच राज्यों के हित में कोई भी विशेष योजना घोषित नहीं की जाए।

इसकी कोई सुनवाई होने के आसार नहीं है।

पीएम को किसी सीएम के खत से हालात बदलने बाले नहीं है।

कदम कदम कदमबोशी करने वाले बागी हो नहीं सकते।

देश किसी कुनबे का महाभारत या मूसलपर्व भी नहीं है कि धोबीपाट से जीत लें।

अखिलेश का भी इसे चुनावी मुद्दा बनाने के अलावा हकीकत की चुनौतियों से निबटने का कोई इरादा लग नहीं रहा है क्योंकि उन्होंने यूपी को हिंदुत्व के एजंडे का गिलोटिन बनाने से रोकने के लिए अब तक कुछ भी नहीं किया है बल्कि फासिज्म के राजकाज को मजबूती से अंजाम देने में वे सबसे आगे रहे हैं।

इसके उलट यूपी से सबसे ज्यादा लोकसभा सदस्य और राज्यसभा सदस्य हैं तो राष्ट्रपति चुनाव में अप्रत्यक्ष मतदान में यूपी के वोट का मूल्य सबसे ज्यादा है।

अखिलेश यादव अगर बाहैसियत सीएम यूपी वालों का ईमानदारी से नुमांइदंगी कर रहे होते तो यूपी की सरजमीं का बेजां इस्तेमाल रोककर नरसंहारी अश्वमेधी अभियान को रोकने में उनकी कोई न कोई पहल जरुर होती।

आवाम की रहमुनमाई करने के बजाय अखिलेश ने यूपी और यूपीवालों को फासिज्म का सबसे उपजाऊ उपनिवेश बना दिया है।

अंदेशा यही है कि इस खुदकशी का अंजाम यूपी के जनादेश में भी नजर आयेगा।

आजादी के बाद के मतदान का पूरा इतिहास उठा लें तो राष्ट्र के भविष्य निर्माण में सकारात्मक नकारात्मक दोनों प्रभाव हमेशा यूपी का ज्यादा रहा है।

भारत की राजनीति जिस हिंदुत्व के एजंडे से सिरे से बदल गयी है,उसके पीछे जो आरक्षण विरोधी आंदोलन हो या राममंदिर आंदोलन और बाबरी विध्वंस हो,उसकी जमीन यूपी है।गुजरात नरसंहार और 1984 में सिखों के नरसंहार यूपी की ताकत,यूपी के जनादेश  के बेजां इस्तेमाल का अंजाम हैं।तो दूसरी ओर सामाजिक बदलाव के आंदोलन  के तहत यूपी में भाजपा 16 साल से और कांग्रेस 29 साल से सत्ता से बाहर है।

क्या यूपी वालों का नेतृत्व करके फासिज्म के खिलाफ लड़ाई में अखिलेश आगे आने को तैयार हैं,इस सवाल का जबाव यूपी वालों को खुद से जरुर पूछना चाहिए और उसके मुताबिक फैसला करना चाहिए कि उनका जनादेश क्या हो।

यूपी वाले अपनी अपनी  निर्णायक ताकत को समझें और जनादेश को समूचे देश के लिए सामूहिक आत्महत्या बनने न दें,आज सबसे बड़ी चुनौती यही है।

अखिलेश ने अपने पत्र में लिखा है कि अगर चुनाव से पहले बजट पेश होता है तो यूपी के लिए आप किसी योजना का ऐलान नहीं कर सकते, ऐसे में यूपी का बड़ा नुकसान होगा। यूपी राज्य जिसमें देश की बड़ी जनसंख्या निवास करती है को भारत के आगामी सामान्य/रेल बजट में कोई विशेष लाभ/योजना प्राप्त नहीं हो सकेगी, जिसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव यूपी के विकासकार्यों एवं यहां के 20 करोड़ निवासियों के हितों पर पड़ेंगा। साथ ही अखिलेश ने यह भी लिखा है कि 2012 में राज्यों के चुनाव की वजह से चुनाव बाद बजट पेश किया गया था।

अखिलेश यादव ने कहा कि ऐसी स्थिति में अब प्रबल संभावना बन गई है कि उत्तर प्रदेश को आम बजट का कोई विशेष लाभ या योजना मिलने नहीं जा रही है। अखिलेश ने लिखा है जनसंख्या के लिहाज से उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है, ऐसे में यह उत्तर प्रदेश के साथ इंसाफ नहीं होगा। इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव प्रदेश के विकास कार्यों और यहां के 20 करोड़ निवासियों के हितों पर पड़ेगा। अखिलेश ने याद दिलाया कि फरवरी-मार्च 2012 में भी राज्यों के आम चुनावों को देखते हुए तत्कालीन केंद्र सरकार ने चुनावों की निष्पक्षता बनाए रखने के लिए खुद ही निर्वाचन के बाद सामान्य और रेल बजट पेश किया था। उत्तर प्रदेश में 11 फरवरी से 8 मार्च के बीच सात चरणों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के अखिलेश धड़े के बीच गठबंधन के बावजूद बहुकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है। यूपी विधानसभा में कुल 403 सीटें हैं। 2012 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने 224 सीट जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। इसके बाद बसपा को 80, बीजेपी को 47, कांग्रेस को 28, रालोद को 9 और अन्य को 24 सीटें मिलीं थीं।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने केंद्र से कहा कि बजट में वह पांच राज्यों के बारे में कोई विशेष घोषणा न की जाए, जहां विधानसभा चुनाव होने हैं। आयोग ने एक फरवरी को बजट पेश करने को मंजूरी दे दी है।

गौरतलब है कि पंजाब और गोवा में मतदान 4 फरवरी से शुरू होना है, वहीं उत्तर प्रदेश में 11 फरवरी से होगा. पांचों राज्यों में 11 मार्च को नतीजे आएंगे। 16 राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से आग्रह किया था कि वह सरकार से चुनाव के बाद केंद्रीय बजट पेश करने के लिए कहे ताकि इसका उपयोग पांच राज्यों में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए नहीं किया जा सके, जहां चुनाव होने हैं। केंद्र सरकार के एक फरवरी को बजट पेश करने के खिलाफ दाखिल याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि आम बजट केंद्रीय होता है और इसका राज्यों से कोई लेना-देना नहीं है।



एचडीएफसी बैंक ने अक्टूबर से लेकर दिसंबर की तिमाही में 4500 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है। इस वजह है कि आय वृद्धि 18 साल के निचले स्तर में गिरावट और लागत पर खर्चा अधिक हो गया। एचडीएफसी बैंक ने बताया कि सितंबर 2016 में बैंक में 95,002 कर्मचारी थे, जो दिसंबर में 5 प्रतिशत घटकर 90,421 तक आ गए।

इकॉनोमिक्स टाइम्स के मुताबिक, एचडीएफसी बैंक ने कहा कि उसका मुनाफा 15 प्रतिशत बढ़कर 3,865 करोड़ रुपए हो गया, जो एक साल पहले 3,357 करोड़ रुपए था। लेकिन यह जून 1998 से उसकी सबसे कम ग्रोथ है। बॉन्ड और करंसी में प्री-टैक्स प्रॉफिट भी 253 करोड़ रुपए रह गया, जो पिछले साल 513 करोड़ था। नोटबंदी के बाद बैंकों की इनकम भी मात्र 9.4 प्रतिशत ही बढ़ी है।

मंगलवार को जारी हुए नतीजों में कहा गया कि बैंक के परिचालन खर्च में 0.55 प्रतिशत की गिरावट आई है और दिसंबर के अंत में यह 4.843 करोड़ रह गया, जो सितंबर में 4, 870 करोड़ रुपए था। इसके अलावा बाकी परिचालन खर्च भी 1.83 प्रतिशत गिरकर 3,154 करोड़ पर आ गया। सितंबर में यह 3,213 करोड़ रुपए था। हालांकि कर्मचारी लागत में 1.93 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और यह 1,689 करोड़ से 1,657 करोड़ तक आ गया।

विशेषज्ञों का कहना है कि किसी बैंक द्वारा एक तिमाही में इतनी बड़ी छंटनी का यह पहला मामला है, जो आगे भी जारी रह सकता है अगर स्थितियां नहीं सुधरीं। बैंक ने संकेत दिया है कि उसका फोकस फिलहाल उत्पादकता पर है और भविष्य में हायरिंग में गिरावट रहने वाली है। बैंक के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर परेश सुखतांकर ने बताया कि छंटनी कर्मचारियों की उत्पादकता और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने का एक नियमित हिस्सा है।



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