

आरएसएस के ट्रंप कार्ड से डरिये!
बलिहारी उनकी चुनावी सत्ता समीकरण साधने वाली फर्जी धर्मनिरपेक्षता की भी।
पलाश विश्वास
नई विश्वव्यवस्था में भारत अमेरिका के युद्ध में पार्टनर है,हमारी राजनीति, राजनय के साथ साथ आम जनता को भी यह हकीकत याद नहीं है।
नये अमेरिकी राष्ट्रपति डान डोनाल्ड ट्रंप ने बाकायदा दुनियाभर के अश्वेतों और खासतौर पर मुसलमानों के खिलाफ युद्ध घोषणा कर दी है।यह तीसरे विश्ययुद्द की औपचारिक शुरुआत जैसी है।
आजादी से पहले ब्रिटिश हुकूमत के उपनिवेश होने की वजह से भारतीय जनता की और भरतीय राष्ट्रीय नेताओं की इजाजत के बिना भारत पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका और ब्रिटेन के साथ युद्ध में शामिल रहा है।
नतीजतन जब नेताजी सुभा, चंद्र बोस ने भारत की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज बनाकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़कर सिंगापुर रंगून फतह करने के साथ साथ अंडमान और मणिपुर में भी तिरंगा ध्वज फहरा दिया ,तब आजाद हिंद फौज का समर्थन करने के बजाय भारतीय राजनीति ने ब्रिटिश हुकूमत का समर्थन किया था और नेताजी को गद्दार बता दिया था।
आज आजाद देश किसका उपनेवेश है कहने और समझाने की कोई जरुरत नहीं है।अब भारत अमेरिका के युद्ध में अहम पार्टनर है और इस युद्ध को आतंकवाद के खिलाफ युद्ध कहा जाता रहा है।
मुसलमानों और शरणार्थियों के लिए दरवाजा बंद करने का डान डोनाल्ड का फैसला भी अमेरिका का आतंक के खिलाफ युद्ध बताया जा रहा है।डान डोनाल्ड के इस एक्शन से एक झटके के साथ इसी उपमहाद्वीप में रोहंगा मुसलमानों के खिलाफ म्यांमार में,तमिलों के खिलाफ श्रीलंका का और हिंदू बौद्ध ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ बांग्लादेश में नरसंहारी बलात्कारी उत्पीड़न की विचारधारा मजबूत हो गयी है।
जाहिर है कि इस युद्ध की परिणति इराक,अफगानिस्तान और सीरिया से ज्यादा भयंकर होगी।दुनिया का श्वेत अश्वेत नस्ली ध्रूवीकरण के तहत जो तीसरा विश्वयुद्ध अश्वेत काली दुनिया के खिलाफ डान डोनाल्ड ने छेड़ दिया है,उस युद्ध में भारत आटोमेटिक शामिल है और और इस युद्ध की परिणति में भी भारत को साझेदार बनकर उसके तमाम नतीजे भुगतना है।
विडंबना है कि ताज्जुब की बात है कि सूचना तकनीक के जरिये रियल टाइम पल पल की जानकारी रखने वाला मीडिया और वैश्विक इशारों के मुताबिक राजनीति और अर्थव्यवस्था चलाने वाले देश के भाग्यविधाता और भारतीय जनता के जनप्रतिनिधि ने इस वैश्विक घटनाक्रम का कोई संज्ञान नहीं लिया है।
धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत और बहुलता विविधता के तमाम बयान दिखाने के और हैं और खाने के और हैं।धर्मनिरपेक्ष ताकतों का स्वर भी भारत में कहीं उस तरह गूंज नहीं रहा है जैसा अमेरिका,यूरोप या दनिया में बाकी जगह हो रहा है।
जाहिर है कि दलितों ,पिछड़ों और आदिवासियों के प्रति वोट की गरज से जितनी सहानुभूति राजनीतिक मीडिया खिलाड़ियों पिलाड़ियों को है,उससे कुछ ज्यादा धर्निरपेक्ष तेवर के बावजूद गैरहिंदुओं से कोई सहानुभूति सत्ता वर्ग के विविध रंगबिरंगे लोगों को उनकी पाखंडीविचारधाराओं के बावजूद नहीं है।उन्हें भी नहीं,जिन्होंने गठबंधन बनाकर यूपी बिहार में संघ परिवार का हिंदुत्व रथ को थामा है। वे तमाम सितारे भी मूक और वधिर बने हुए हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे ज्यादा मुसलमान हैं और भारत में भी बहुसंख्य हिंदुओं के बाद उनकी आबादी सबसे बड़ी है।
मुसलमानों के खिलाफ अमेरिका के खुल्ला युद्ध में भारत के शामिल हो जाने जैसी घटना के बारे में मीडिया और राजनीति की खामोशी हैरतअंगेज है।
खासकर ऐसी परिस्थितियों में जब पांच राज्य के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए डान डोनाल्ड के नक्शेकदम पर मुसलमानों से इतिहास का बदला चुकाने के लिए फिर राममंदिर के लिए बजरंगी वाहिनी और उनके सिपाहसालार नये सिरे से राम की सौौगंध खा रहे हैं।दंगा फसाद की फिजां नये सिरे से तैयार हो रही है।
जिन देशों के मुसलमानों के खिलाफ डान डोनाल्ड की निषेधाज्ञा है,उन सभी एशियाई और अफ्रीकी देशों के साथ भारत के पारंपारिक राजनयिक संबंध हमेशा मजबूत रहे हैं।
अमेरिका परस्त सउदी अरब के खिलाफ या संयुक्त अरब अमीरात यामिस्र के खिलाफ यह निषेधाज्ञा नहीं है।जबकि नािन इलेवेन को ट्विन टावर के विध्वंसे के मामले में सऊदी आतंकबवादी सबसे ज्यादा थे।
इससे साफ जाहिर है कि यह युद्ध आतंकवाद के खिलाफ नहीं है।
जिस इस्लामी देश पाकिस्तान को लेकर भारत को सबसे ज्यादा परेशानी है और जहां भारत विरोधकी फौजी हुकूमत है,उसके खिलाफ भी यह फतवा नहीं है।
सीधे तौर पर यह रंगभेदी हमला है काली दुनिया के खिलाफ,जिसमें हम भी शामिल हैं।मुसलमानों के अलावा लातिन अमेरिका के खिलाफ भी अमेरिका की यह युद्धघोषणा है।इस निषेधाज्ञा के तहत शरणार्थी हिंदुओं की भी शामत आनी है।
फेसबुक और गुगल केजैसे प्रतिष्ठानों के विरोध के बावजूद सूचना तकनीक पर टिकी भारतीय अर्थव्यवस्था पर इस युद्ध का क्या असर होना है,यह बात जझोला छाप विशेषज्ञों को भले समझ में नहीं आ रही हो लेकिन बाकी लोगों को क्या सांप सूंघ गया है कि डिजिटल कैशलैस इंडिया की इकोनामी को अमेरिका के इस युद्ध से क्या फर्क पड़ने वाला है,यह समझ में नहीं आ रहा है।
हम बार बार कहते रहे हैं कि भारत में जाति व्यवस्था सीधे तौर पर वर्ण व्यवस्था का रंगभेदी कायाकल्प है।
अमेरिकी डान डोनाल्ड के श्वेत वर्चस्व के अमेरिका फर्स्ट और हिंदुत्व के एजंडे के चोली दामन के साथ बहुजनों के नस्ली नरसंहार का जो तीसरा विश्वयुद्ध शुरु कर दिया गया है,उसके खिलाफ बहुजन भी सत्ता वर्ग की तरह बेपरवाह है,जबकि भारत के बहुजन समाज में भी मुसलमान शामिल है।
अगर मुसलमान बहुजनों में शामिल नहीं हैं,अगर आदिवासी भी मुसलमान में शामिल नहीं है और ओबीसी सत्तावर्ग के साथ हैं तो सिर्फ दलितों की हजारों जातियों में बंटी हुई पहचान से सामाजिक बदलाव का क्या नजारा होने वाला है,उसे भी समझें।
संघ परिवार से नत्थी हिंदुतव की वानर सेना और उनके सिपाहसालारों की आस्था ने उनकी आंखों में पट्टी बांध दी होगी ,लेकिन जो सामाजिक बदलाव के मोर्चे पर स्वंभू मसीहा हैं, वे न राम मंदिर के नये आंदोलन और न मुसलमानों के खिलाफ,काली दुनिया के खिलाफ अमेरिका के युद्ध में भारत की साझेदारी के खिलाफ कुछ बोल रहे हैं।
बलिहारी उनकी चुनावी सत्ता समीकरण साधने वाली फर्जी धर्मनिरपेक्षता की भी।
यह सत्ता में भागेदारी का खेल है सत्ता में रहेंगे सत्ता वर्ग के लोग ही।
बीच बीच में सत्ता हस्तांतरण का खेल जारी है।
इसका नमूना उत्तराखंड है,जहां समूचा सत्ता वर्ग हिमालय और तराई के लूटेरा माफियागिरोह से है।वहां शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण की तैयारी है।
जैसे बंगाल में नेतृत्व पर काबिज रहने की गरज से सत्ता वर्ग को ममता बनर्जी की संग नत्थी सत्ता से कोई ऐतराज नहीं है और वे हारने को भी तैयार हैं,लेकिन किसी भी सूरत में वंचित तबकों को न नेतृत्व और न सत्ता सौंपने को तैयार हैं।
उसीतरह उत्तराखंड के कांग्रेसियों को पूरे पहाड़ और तराई के केसरिया होने से कोई फर्क नहीं पड़ता है और वे संघ परिवार को वाकओवर दे चुके हैं।
हरीश रावत के खासमखास सलाहकार और सिपाहसालार विजय बहुगुणा से भी ज्यादा फुर्ती से अल्मोड़िया राजनीति के तहत उनका पत्ता साफ करने में लगे हैं।
क्योंकि केसरिया राजकाज में उन्हें अपना भविष्य नजर आता है।
यही किस्सा कुल मिलाकर यूपी और पंजाब का भी है।
यूपी में अखिलेश कदम दर कदम यूपी को केसरिया बनाने में लगे हैं तो पंजाब में अकाली भाजपा सरकार के खिलाफ जो सबसे बड़ा विपक्ष है,उसका संघ परिवार से चोली दामन का साथ है।
आरएसएस के ट्रंप कार्ड से डरिये!
आरएसएस के ट्रंप कार्ड से डरिये! अखिलेश यूपी को केसरिया बनाने में लगे हैं
शीला दीक्षित अभी भी उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री पद की दावेदार हैं। यह दावा किसी और ने नहीं किया है बल्कि स्वयं शीला जी कर रही हैं
अमेरिकी युद्ध अपराधों के सबसे बड़े मददगार हमारे हुक्मरान!
बलि नोटबंदी यूपी में जनादेश का मुद्दा मंजूर है सुपर सिपाहसालार को!
खुशफहमी की हद है कि बलि अमेरिकी निशाने पर पाकिस्तान है!
हम आंखें फोड़कर सूरदास बनकर पदावली कीर्तन करें,हिंदत्व का यही तकाजा है।हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा भी यही है,जिसके ईश्वर डान डोनाल्डे हुआ करै हैं।
पलाश विश्वास
बलि डान डोनल्ड अब केसरिया केसरिया हैं और भारत की ओर से कारगिल लड़ाई के वे ही खासमखास सिपाहसालार हैं।
बड़जोर सुर्खियां चमक दमक रही हैं कि अब पाकिस्तान की बारी है।
बलि डान डोनाल्ड की आतंकवाद विरोधी खेती की सारी हरियाली अपने खेत खलिहान में लूटकर लानेको बेताब है तमाम केसरिया राजनयिक।
बलि नई दिल्ली पलक पांवड़े बिछाये व्हाइट हाउस के न्यौते और रेड कार्पेट का बेसब्री से इंतजार कर रहा है और जतक ओबामा कीतरह ट्रंपवा लंगोटिया यार बनकर हिंदुत्व के हित न साध दें तब तक चूं भी करना मना है।किया तो जुबान काट लेंगे।
मुसलमानों के खिलाफ निषेधाज्ञा चूंकि हिंदुत्व के हित में है,इसलिए केसरिया राजकाज में अमेरिकी युद्ध अपराध की चर्चा तक मना है।हुक्मरान की तबीयत के बारे में मालूम है लेकिन बाकी मुखर होंठों का किस्सा भी लाजबाव है।वे होंठ भी सिले हुए हैं।
अगर पाकिस्तान सचमुच का दुश्मन है तो देश भर में दंगाई सियासत के तमाम सिपाहसालार और सारे के सारे बजरंगी मिलकर पाक फौजों के दांत खट्टे करने के लिए काफी हैं।लेकिन नई दिल्ली टकटकी बांधे बैठा है कि कब डान ऐलान कर दें कि पाकिस्तान भी प्रतिबंधित है।
बागों में बहार है कि साफ जाहिर है कि ट्रंप का इराजा दुनियाभर के मुसलमानों के खिलाफ भारी पैमाने का युद्ध है और जाहिर है कि हिंदुत्व की तमाम बटालियनें अमेरिकी फौज में शामिल होने को बेताब हैं।
पूरा अमेरिका सड़कों पर है।सारे के सारे अमेरिकी वकील हवाई अड्डों पर पंसे हुए दुनियाभर के लोगों को कानूनी मदद देने के लिए लामबंद हैं।आमतौर पर राष्ट्रवाद की संकीर्ण परिभाषा में यक़ीन रखने वाली रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति ने अरब और हिस्पैनिक (स्पेन से ऐतिहासिक रूप से संबद्ध रहे देश), लेकिन मुस्लिम-बहुल सात देशों के शरणार्थियों और नागरिकों पर प्रतिबंध लगाकर अमेरिकी रंग और नस्लभेद की सोई हुई प्रेतात्मा को जगा दिया है।कुकल्कासक्स क्लान का राम राज्य बन गया है अमेरिका।
पूरे अमेरिका में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं, अमेरिकी मानवाधिकार संगठन इसका विरोध कर रहे हैं, दुनिया के विकसित देश ट्रंप के फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंपऔर उनकी सरकार पर इसका कोई असर नहीं है।बहरहाल डान के नस्ली फरमान के अमल पर शनिवार को आधी रात के करीब अदालत ने विशेष वैठक में रोक भी लगा दी है लेकिन डान बेपरवाह है।
डान को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।सो,राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंपने शरणार्थियों और सात मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के फैसले का बचाव किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रतिबंध मुस्लिमों पर नहीं लगाया गया है बल्कि अमेरिका को आतंकियों से सुरक्षित करने के लिए कदम उठाया गया है। अमेरिका अपने यहां यूरोप जैसे हालात उत्पन्न होने देना नहीं चाहता है। राष्ट्रपति ने कहा कि 90 दिनों में मौजूदा नीतियों की समीक्षा करने के बाद सभी देशों के लिए वीजा जारी किया जाने लगेगा।
सात मुस्लिम बहुल देशों के लोगों के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध के शासकीय आदेश का बचाव करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंपने जोर देकर कहा कि 'यह प्रतिबंध मुस्लिमों पर नहीं है' जैसा कि मीडिया द्वारा गलत प्रचार किया जा रहा है।गौरतलब है कि शपथ लेने के बाद ही 7 मुस्लिम देशों के लोगों प्रतिबंध लगाने के बाद अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंपपाकिस्तान पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं।
नई दिल्ली बल्ले बल्ले गुले गुलिस्तान है कि ट्रंप के इस कदम के बाद उनका भले ही अमेरिका के अलावा दुनियाभर में विरोध हो रहा है, वहीं हिंदुत्व के हित में सबसे बड़ी खबर यही है कि खबर है कि उन्होंने पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान और सऊदी अरब को निगरानी सूची में डाला गया है।
जानकारी के अनुसार व्हाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ रींस प्रीबस ने कहा है कि जिन सात देशों को प्रतिबंध के लिए चुना गया है उनकी ओबामा और कांग्रेस दोनों ही प्रशासन द्वारा शिनाख्त की गई थी जिनकी जमीन पर आतंक को अंजाम दिया जा रहा है।
हमें व्हाइट हाउस से न्यौते का इंतजार है और कोई फर्क नहीं पड़ता कि बलि अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंपका फैसला जानलेवा हो सकता है। सात देशों के मुस्लिमों के अमेरिका आने पर प्रतिबंध के उनके फैसले का सीधा असर सीरिया में फंसे सात साल के मोहम्मद पर पड़ रहा है। मोहम्मद आतंकी नहीं है। वह कैंसर से जूझ रहा है, इसलिए उसका परिवार इलाज के लिए उसे अमेरिका ले जाना चाहता है लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले की वजह से अमेरिकी अधिकारी उसे वीजा नहीं दे रहे हैं। मोहम्मद की ही तरह उन सात देशों में कई लोग हैं जो बेहतर इलाज के लिए अमेरिका जाना चाहते हैं लेकिन ट्रंप का फरमान उनके लिए बड़ा रोड़ा साबित हो रहा है।
हमें व्हाइट हाउस से न्यौते का इंतजार है और कोई फर्क नहीं पड़ता कि बलि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की ब्रिटेन की राजकीय यात्रा को रद्द करने की मांग करने वाली ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर करने वालों की संख्या काफी जल्दी 10 लाख के आंकड़े को पार कर गई है। यह मांग अमेरिका के राष्ट्रपति के एक आदेश के जरिए सात मुस्लिम देशों के लोगों पर विवादास्पद आप्रवासन प्रतिबंध लगाने के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठ रही आवाज के बीच उठी है।
हमे कोई फर्क नहीं पड़ा कि बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक एसीएलयू ने जानकारी दी है कि अब कोर्ट के स्टे के बाद राष्ट्रपति के आदेश के बावजूद अमेरिका से शरणार्थियों को निष्कासित नहीं किया जा सकेगा। ट्रंपके आदेश के बाद अमेरिकी एयरपोर्ट्स से करीब 100 से 200 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है। न्यूयॉर्क, एलेंक्सजेंड्रिया, वर्जिनिया, सिएटल, वॉशिंगटन, बोस्टन मैसाच्यूसेट्स समेत 24 अदालतों ने राष्ट्रपति के आदेश पर रोक लगा दी है।
गौरतलब है कि ब्रिटेन की संसद की वेबसाइट पर शनिवार की दोपहर 'डॉनल्ड ट्रंप को ब्रिटेन की राजकीय यात्रा पर आने से रोकें' शीर्षक वाली याचिका तैयार की गई है।कहने को हमारे यहां भी संसदीय लोकतंत्र है।
इसी बीच गौर करें कि डान के करिश्में से दुस्मन चीन से पींगे बढ़ाने की कोशिश में हैं आईटी कंपनियां ताकि जोर का झटका धीरे से लगे।नैशनल असोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर ऐंड सर्विसेज कंपनीज (नैसकॉम) और शंघाई में भारत के महावाणिज्य दूतावास (कॉन्स्युलट जनरल ऑफ इंडिया) ने मिलकर नानचिंग सरकार के साथ इसी महीने एक समारोह का आयोजन किया। इसका मकसद चीनी कंपनियों और भारत की आईटी कंपनियों के बीच रिश्ते बढ़ाना था।
नैसकॉम के वैश्विक व्यापार विकास के निदेशक गगन सभरवाल ने ईटी को बताया, 'चीन और जापान दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और आईटी के क्षेत्र में दूसरी सबसे बड़ी खर्च करने वाले देश हैं। हमें अमेरिका और यूके पर बहुत ज्यादा भरोसा नहीं कर इन देशों की ओर रुख करने की जरूरत है।'
भारत में जन्में गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई और माइक्रोसॉफ्ट के सत्य नाडेला समेत सिलिकन वैली के कई शीर्ष कार्यकारियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंपके सात मुस्लिम बहुल देशों से लोगों के अमेरिका आने पर रोक लगाने के आदेश की निंदा की है।इस पर भी गौर फरमायेंः
Trump's executive order, especially the ban on immigrants from these countries, including those with a valid visa, has sparked reactions from all across Silicon Valley, which relies on talent from across the world. Google, Apple, SpaceX's Elon Musk, Uber, Lyft, Netflix, Microsoft, and all the major companies from tech world have reacted to this order.
Additionally Associated Press has reported that leaks of draft executive orders, which are still unverified, suggest that Trump might also revamp the H1-B program that lets Silicon Valley bring foreigners with technical skills to the US for three to six years.
गौरतलब है ऩई दिल्ली के खासमखास खाड़ी युद्ध के युद्ध अपराधी राष्ट्रपति पिता पुत्र के युद्ध अपराधों का साथ देते देते भारत देश के हुक्मरान ने देशभक्ति की सुनामी के तहत एक झटके से अमेरिका के आतंक के खिलाफ युद्ध में भारत को शामिल कर दिया।अब वही देशभक्त समुदाय सोशल मीडिया पर चीख पुकार मचा रहे हैं कि ट्रंपवा का सीना जियादा चौड़ा है और उनके सांढ़ सरीखे कंधे जियादा मजबूत है कि बलि रामराज्य का राष्ट्रपति भी डान डोनाल्ड के होवैक चाहि।बलिहारी हो।
खाड़ी युद्ध के दौरान भारत की सरजमीं से ईंधन भर रहे थे अमेरिकी युद्धक विमान तो नाइन इलेविन ट्विन टावर के विध्वंस के बाद समुंदर से अफगानिस्तान की तबाही के लिए भारत का आसमान चीर कर मिसाइलें अफगानिस्तान में बरस रही थीं,तब किसी माई के लाल को मातृभूमि की स्वतंत्रता या संप्रभुता की याद नहीं आयी।बजरंगियों की नई पीढ़ियों ने वह नजारा देखा नहीं है,भारत की सरजमीं प डान डोनाल्ड का विश्वरुप दर्शन भौते जल्दी मिलेला।पछताओ नको।
इससे भी पहले प्राचीन काल में जब युद्ध सचमुच सरहदों पर हो रहा था,कैनेडी से लेकर क्लिंटन तक किस किसके साथ न जाने कितना मधुर संबंध रहा है लेकिन अमेरिका ने भारत के खिलाफ युद्ध और शांतिकाल में भी मदद देना नहीं छोड़ा।
तनिकों याद करेें जो तनिको बु जुर्ग हुआ करै हैं और बाल कारे भी हों तो चलेगा , लेकिन सफेदी धूप के बजाय तजुर्बे की होनी चाहिए कि आठवें दशक में जब सारा देश लहूलुहान था,तालिबान और अल कायदा को सोवियत संघ को हराने के लिए जब अत्याधुनिक हथियार बताशे की तरह बांट रहा था वाशिंगटन,तब भी अमेरिको के तालिबान अलकायदा को दिये उन तमाम हथियारों का इस्तेमाल भारत की सरजमीं पर भारत को तहस नहस करने के लिए हो रहा था।अमेरिका को कोई फर्क पड़ा नहीं।
बजरंगी बिरादरी शायद अटल बिहारी वाजपेयी को भूल गये हैं,जो सन इकात्तर के चुनाव में इंदिरा गांधी का दूत बनकर विदेश की धरती पर अमेरिकी सातवें नौसेनिक बेड़े के हमलावर बढ़त के खिलाफ मोर्चाबंदी में कामयाब रहे थे औरतब अमेरिका पाकिस्तान के लिए भारत से युद्ध करने के लिए भी तैयार था।
भारत सोवियत मैत्री के बाद अमेरिका की वह ख्वाहिस पूरी नहीं हुई,यह जितना सच है,उससे बड़ा सच यह है कि वाजपेयी की राजनय ने उस अपरिहार्य युद्ध को टाल दिया।यही नहीं,1962 के युद्ध के बाद दुश्मनी का माहौल को हवा हवाई करके चीन से संबंध बनाने में भी वाजपेयी ने जनता जमाने में बाहैसियत विदेश मंत्री पहल की थी।
खास बात यह है कि इसके अलावा 1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान के साथ संबंध सामान्य बनाने में तबके विदेश मंत्री अटलजी ने पहल की थी।जिन्होंने बाद में केसरिया सरकार का प्रधानमंत्री बनकर गुजरात के नरसंहार के बाद किसी मसीहा को राजधर्म का पाठ दिया था और कारगिल की लड़ाई भी उनने ही लड़ी थी।
अब पहेली यह है कि भारत इजराइल अमेरिका गठजोड़ की नींव बनाने वाले रामरथी लौहमानुष लाल कृष्ण आडवानी बड़का रामभक्त देश भक्त हैं तो क्या अटलजी रामभक्त देशभक्त वगैरह वगैरह नहीं है।बूझ लें तो भइया हमें भी जानकारी जरुर दें।हालांकि अटलजी वानप्रस्थ पर हैं कि संन्यास के मोड में हैं,पता नहीं चलता जैसा कि लौहपुरुष के अंतरालबद्ध हस्तक्षेप से अक्सर पता चल जाता है और बहुत संभव है कि अटल जी को याद करने की कवायद में बजरंगी वाहिनी को गोडसे सावरकर वगैरह की ज्यादा याद आ जाये क्योंकि गांधी हत्या का एजंडा अभी अधूरा है।
हिंदुत्व के एजंडे के तहत अबतक सिर्फ विष्णु भगवान जी के मंदिर में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर की प्राण प्रतिष्ठा हुई है और टैगोर बख्श दिये गये हैं,लेकिन नेताजी और विवेकानंद को श्यामाप्रसाद श्रेणी में आरक्षित कर दिया गया है।गांधी को कर पाते गौडसे की जरुरत नइखे होती।अटल जी भी अभी श्रेणीबद्ध हुए हैं कि नाही,पता नको।शिवसेना के निकर जाने के बाद बालासाहेब का भी नये सिरे से मूल्यांकन बाकी है।झोलाछाप बिरादरी शोध किये जा रहे हैं।
अमेरिकी खुफिया एजंसियों को सारी बातें मालूम होती है।
अभी भंडा फूटा है कि राजीव गांधी की हत्या की प्लानिंग सीआईए को पांच साल पहले मालूम थी।
इंदिरा गांधी की हत्या का रहस्य अभी खुला नहीं है और उस हत्याकांड से संबंधित अमेरिकी दस्तावेज अभी लीक हुए नहीं है।
फिक्र न करें,विकी लीक्स है।
राजनीतिक समीकरण के हिंदुत्व से सराबोर केसरिया राजनय का किस्सा यह है कि अमेरिका का पार्टनर बनने के बाद,भारत अमेरिका परमाणु संधि हो जाने के बाद नई दिल्ली इसी इंतजार में है कि कभी न कभी अमेरिका पाकिस्तान का दामन छोड़कर उसे आतंकवादी देश घोषित कर देगा।वैसा कुछ भी नहीं हुआ है।
Dozens of Foreign Service officers and other career diplomats stationed around the world are so concerned about Pres. Donald J. Trump's new executive order restricting Syrian refugees and other immigrants from entering the U.S. that they're contemplating taking the rare step of sending a formal objection to senior State Department officials in Washington.
केसरिया बिरादरी देश के नाम याद भी कर लें कि गुजरात नरसंहार में क्लीन चिट के सिवाय अमेरिका से अबतक कुछ हासिल नहीं हुआ है और न भोपाल गैस त्रासदी के रासायनिक युद्ध के प्रयोग से कीड़ मकोड़े की तरह मारे गये,विकलांग और बीमार हो गये भारतीय नागरिकों को मुआवजा दिलाने में अमेरिका ने कोई मदद की है।
इसके बावजूद बलि लोहा गरम है और इसी वक्त पाकिस्तान पर निर्णायक वार अमेरिकी हाथों से कराने का मौका है।
जाहिरै है कि इसलिए डान डोनाल्ड के खिलाफ सारा अमेरिका और सारी दुनिया भले लामबंद हो जाये,हमारे लिए राष्ट्रभक्ति यही है कि हम अपने होंठ सी लें और आंखें फोड़कर सूरदास बन जायें।
हम आंखें फोड़कर सूरदास बनकर पदावली कीर्तन करें,हिंदत्व का यही तकाजा है।हिंदुत्व का ग्लोबल एजंडा भी यही है,जिसके ईश्वर डान डोनाल्डे हुआ करै हैं।
गौरतलब है कि भारत ने पहले ही भारतीय सैनिक अड्डों के इस्तेमाल के लिए अमेरिकी फौज को इजाजत के करारनामे पर दस्तखत कर दिया है और डान डोनाल्ड अमेरिका के गौरव को हासिल करने के लिए तीसरे विश्वुयुद्ध शुरु करने पर आमादा है।
गौरतलब है कि दुनियाभर में सैन्य हस्तक्षेप और युद्ध गृहयुद्ध में अभ्यस्त अमेरिकी नौसेना और जापान केसात हमलावर त्रिभुज भी अमेरिका के अव्वल नंबर दुश्मन चीन से निबटने के लिए तैयार है।बलि कि चीन के खिलाप अमेरिकी जंग की हालत में भी रामराज्य अमेरिकी डान के मातहत हैं।
बलि डान डोनल्ड के बाहुबल से एक मुशत दो दो जानी दुश्मनों पाकिस्तान और चीन को करीरी शिकस्त देने की तैयारी है और इसके लिए अमेरिका से हथियारों की खरीद भी भौते हो गयी है।सैन्यीकरण में कोई कमी सर न हो ,इसलिए रक्षा प्रतिरक्षा का विनिवेश कर दिया है और तमाम कारपोरेट निजी कंपनियों के कारोबारी हित राष्ट्रभक्ति में ऩिष्णात है।इस सुनामी को दुधारी तलवार बनाने के लिए तीसरे विश्वयुद्ध भौते जरुरी है।क्योंकि इस विश्वयुद्ध में काले और मुसलमान मारे जायेंगे और हिंदुओं को जान माल को कोई कतरा नहीं होना है।
बांग्लादेश या पाकिस्तान भले तबाह हो जाये और दुनियाभर के आतंकवादी मुसलमानों को इराक, अफगानिस्तान,लीबिया और सीरिया की तरह मिसाइलें या परमाणु बम दागकर मार गिराये महाबलि डान डोनाल्ड,रामराज्य के हिंदू प्रजाजनों को आंच तक नही आयेगी हालाकि यमन में जैसा हो गया डानोल्ड जमाने के पहले युद्ध में , कुछ बेगुनाह नागरिकों की बलि चढ़ सकती हैषबलि और बलिदान दोनों वैदिकी संस्कृति है और राष्ट्रहित में सबसे जियादा बलिदान जाहिका तौर पर संघियों ने दिया है,देश को भी उनने आजाद किया है।झूठे इतिहास को दोबारा लिखा जा रहा है।मिथकों का इतिहास ही सबसे बड़ा सच है।
यमन पर हमला करके उनने इरादे भी साफ कर दिये हैं।अमेरिकी सेना को युद्धकालीन तैयारियों के आदेश दे दिये गये हैं और अमेरिका परमाणु हथियारों का भंडार और तैनाती बढ़ायें,ऐसा निर्देश भी डान ने दे दिया है।
Pres. Donald J. Trump says his executive order restricting entry into the U.S. of people from 7 Muslim-dominated countries is to keep Americans safer, but one former Homeland Security official says the move could instead do the opposite by inspiring violent extremist attacks in the U.S.
जाहिर है कि जैसे पहले और दूसरे विश्वयुद्ध में यूरोप से लेकर जापान तक नरसंहार का सिलसिला बना,उसी तरह तीसरे विश्वयुद्ध में एशिया और अफ्रीका के देशों में न जाने कितने हिरोशिमा और नागासाकी बनाने की तैयारी है।
भला हो सोवियत संघ का और उनके जिंदा महानायक गोर्बचेव महान का कि सोवियत संघ पहले खाडी़ युद्द के बाद ही तितर बितर हो गया।
अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप के भयंकर प्रतिरोध के बाद महाबलि खुद ही टूटकर बिखर गया और दुनिया सिरे से बदलकर अमेरिकी गोद के हवाले हो गयी।
यही वजह है कि तेल युद्ध और अरब वसंत के बावजूद अमेरिकी हमालावर रवैये के बावजूद तीसरा विश्वयुद्ध शुरु नहीं हुआ।
अब मुसलमानों और काली दुनिया के खिलाफ यह तीसरा विश्वयुद्ध डान डोनाल्ड लड़ना चाहते हैं तो अपनी अपनी जनता और अपनी अपनी अर्थव्यवस्था की सेहत की भीख मांगते हुए यूरोप के तमाम रथी महारथी डान की खिलाफत आंदोलन में शामिल हो गये हैं।
नई विश्व व्यवस्था जिस तकनीकी चमत्कार की वजह से ग्लोबल विलेजवा में तब्दील है ससुरी दुनिया,उसी तकनीकी दुनिया की राजधानी सिलिकन वैली में डान का विरोद संक्रामक महामारी है।गुगल,फेसबुक,ट्विटर से लेकर सारी ग्लोबल कंपनियां इस नस्ली युद्दोन्माद के खिलाफ बाबुलंद आवाज में डान के खिलाफ आवाज उठा रही हैं।
तीसरा विश्वयुद्ध हुआतो मुसलमानों के खिलाफ इस विश्वयुद्ध के भूगोल में रामराज्य के महारथियों की खवाहिशों के मुताबिक अमेरिकी मिसाइलों और अमेरिकी नेवी ने अरब और खाड़ी देसों के मुसलमानों के साथ साथ पाकिस्तान को भी निशाना बांध लिया तो पश्चिम एशिया के सारे तेल कुंए हिंदुस्तान की सरजमीं पर दहकने वाले हैं क्योंकि इस तीसरे विश्वयुद्ध में अमेरिका के सबसे खास पार्टनर भारत ही को बनना है।फिर अमेरिका के दुस्मन हमारे भी दुश्मन होंगे।बजरंगियों को फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उनके आका डानडोनाल्डको वे पहले से दुश्मन मानकर हिंदुस्तान के चप्पे चप्पे में उनके सफाये के ढेरों दंगा फसाद करते रहे हैं।अब सोने पर सुहागा है।
हामीरी राजनीति और राजनय इसविश्वव्यापी भयानक संकट में भी भारत के राष्ट्रहित,नागरिकों की जानमाल सेहत के बजाय पाकिस्तान को नजर में रखरकर अमेरिकी युद्ध अपराधों के साथ हैं।
अमेरिकी युद्ध अपराधों के सबसे बड़े मददगार हमारे हुक्मरान है।
बलि केसरिया जबरंगी जिहादी सेना के सुपर सिपाहसालार ने रामराज्य के प्रजाजनों के लिए बाबुलंद ऐलान कर दिया है कि यूपी के विधानसभा चुनाव को नोटबंदी पर जनादेश मानें तो यह चुनौती उन्हें मंजूर है।गौरतलब है कि चुनाव घोषणापत्र में यह उदात्त स्वर कहीं नहीं है।
गौरतलब है कि एक दो दिन पहले रिजर्व बैंक ने वायदा किया था कि एटीएम से निकासी की हदबंदी फरवरी के आखिर तक खत्म कर दी जायेगी लेकिन फरवरी से पहले जनवरी की अंतिम तिथि को ही एटीएम से निकासी हफ्ते में किसी भी दिन कुल 24 हजार की रिजर्व बैंक ने औचक छूट दे दी है,हालांकि हफ्ते में कुल वही 24 हजार रुपये निकालने की हद जस की तस है।
बहरहाल बार बार एटीएम जाने से निजात मिल गयी है कि अब चाहे हफ्तेभर दौड़ते रहकर 24 हजार निकालो या फिर हफ्ते के किसी रोज अपनी सुविधा के मुताबिक एक मुश्त 24 हजाक खेंच लो।
इससे बाजार में नकदी का संकट खत्म नहीं होने जा रहा है क्योंकि हफ्तेभर की निकासी जहां थी ,वही बनी रहेगी।
संजोग यही है कि रिजर्व बैंक के ऐलान के बाद ही छप्पन इंच सीना फिर चौड़ा है और रमारथी रामधुन के अलावा नोटराग अलापने लगे हैं।
जाहिर है कि चुनौती मानें या न माने खेती और कारोबार में समान रुप से तबाह यूपी वालों के लिए नोटबंदी बड़ा मुद्दा है।
सरदर्द के इस सबब को खत्म करने के लिए औचक रिजर्व बैंक का यह फरमान है कि संकट चाहे जारी रहे लेकिन चार तारीख से शुरु विधानसभाओं के लिए चुनाव के लिए जो वोट गेरे जाने वाले हैं,उनपर केसरिया के बजाय कही गुलाबी हरा नीला रंग चढ़कर सारा हिंदुत्व गुड़गोबर न कर दें।
बजट अभी समझ से बाहर है तो तमाम बुरी खबरों के मध्य अच्छी खबर है!
तेज तर्रार पत्रकार जगमोहन फुटेला अब ठीक हैं और सक्रिय भी हो रहे हैं!
पलाश विश्वास
करीब 36 साल तक बजट के दिन मैं बिना नागा अखबार के दफ्तर में काम करता रहा हूं।मेरा अवकाश भी रहा होगा कभी कभी,तब भी मैंने बजय को कभी मिस नहीं किया है।36 सा बाद जब बजट पेश हो रहा था,मैं न अखबार के डेस्क पर था और न अपने घर टीवी के सामने।बजट से पहले राष्ट्रपति के अभिभाषण और आर्थिक समीक्षा से पहले मैं गांव निकल गया।दक्षिण बंगाल के देहात में।
टीवी वहां भी था,लेकिन टीवी पर बजट लोग नहीं देख रहे थे।क्योंकि आटकर छूट से देहातवालों को कोई मतलब नहीं था और उनके हिस्से में क्या आया,वे समझ नहीं पा रहे थे।
इस बीच अखबारों में बजट के बाद नये सिरे से नोटबंदी को जायज बताने की मुहिम चल पड़ी है और बजट को राजनीतिक आर्थिक सुधारों का खुल्ला खजाना बताने वाली अखबारी सुर्खियों से आम जनता के साथ मेरा भी सामना हुआ है।आम जनता की तरह यह बजट अब तक हमारी समझ से बाहर है।
इसी बीच ट्रंप महाराज के हिंदुत्व से आईटी सेक्टर का बाजा भी जब गया है।बजट की खबरों से वि्त्तीय प्रबंधन का अता पता नहीं लगा है।
नोटबंदी से पैदा हुए नकदी संकट की वजह से बेहाल बाजार को उबारने के लिए बेतहाशा सरकारी खर्च के मध्यवर्गीय जनता को खुश करने वाले प्रावधान जरुर दीखे हैं।
बजट अभी पढ़ा नहीं गया है।बच्चों और स्त्रियों पर मेहरबानी की खबर चमकदार है। कमजोर तबकों को,अनुसूचितों को क्या मिला इसका हिसाब किताब नहीं दिखा है।पिछड़े राज्यों को क्या मिला है,वह तस्वीर भी साफ नहीं है।एक करोड़ लोगों को घर देने का वायदा है और शायद हम जैसे बेघर लोगों की लाटरी भी लग जाये।
कारपोरेट को खास फायद नहीं है और चनाव के समीकरणकी परवाह किये बिना अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का योगाभ्यास भी गया है।लेकिन वह पटरी भी हवा हवाई है सुनहले दिनों के ख्वाबों की तरह।किस्सा अभी बाकी है।
मसलन अंधाधुंध निजीकरण की पटरी पर सरपट दौड़ रही बुलेट सरीखी भारतीय रेल का क्या बना,यह भी देखना बाकी है।आहिस्ते आहिस्ते पढ़ देखकर जो समझ में आयेगा ,उसे थोड़ी देर में शेयर करेंगे।
इंफ्रास्ट्रक्चर के डिडिटल कैशलैस इंडिया की लाटरी किस किसके नाम खुली है,खुलासा अभी हुआ नहीं है।आंकड़ों के पीछे सनसनाहट में क्या है,मालूम नहीं है।
बेजरोजगारी,भुखमरी और मंदी से निबटने की दिशा कहां है,पता चलातो आपको बी बतायेंगे।रोजगार सृजन की जमीन फिलहाल दीख नहीं रही है।
नोटबंदी और कायदा कानून को ताक पर रखकर राजकाज और वित्तीय प्रबंधन के झोला छाप विशेषज्ञों से भी ऊंचा उछल रहा है शेयर बाजार और मीडिया बल्ले बल्ले है।आंकडो़ं के कल में माहिर बाजीगर ख्वाबी पुलाव खूब पका रहे हैं।जायका ले लें।
अर्थशास्त्रियों की राय हो हल्ले में सिरे से गायब हैं या फिर वे सत्ता समीकरण के मुताबिक न होने से हाशिये पर हैं।झोलाछाप स्रवत्र हावी हैं।
बहरहाल मुझे चमत्कारों पर यकीन नहीं है।पिछले अप्रैल 2013 के हमारे खास दोस्त और तेज तर्रार पत्रकार जगमोहन फुटेला को ब्रेन स्ट्रोक हो गया था।
अगस्त तक फुटेला बोलने की हालत में नहीं थे।वे विकलांगता के शिकार होकर बिस्तर में कोमा जैसी हालत में निष्क्रिय पड़े रहे पिछले तीन साल से।
इस बीच हाल में मैं पालमपुर के रास्ते चंडीगढ़ और जालंधर में थे,तो उस वक्त भी किसी से फुटेला के बारे में कोई खबर नहीं मिली थी।
अगस्त,2013 में फुटेला के बेटे अभिषेक से बात हुई थी,तो उसके बाद से उनसे फिर बात करने की हिम्मत भी नहीं हुई। अभिषेक और परिवार के लोगों ने जिस तरह फुटेला को फिर खड़ा कर दिया है,उससे हम इस काबिल बेटे और परिजनों के आभारी है कि उनकी बेइंतहा सेवा से हमें अपना पुराना दोस्त वापस मिल गया है।
पहली जनवरी को फुटला ने चुनिंदा मित्रों को फोन किया।मुझे बी पोन किया ता लेकिन यात्रा के दौरान वह मिसकाल हो गया।
कल रात मैसेज बाक्स में फुटेला का संदेश मिल गया और तुरंत उसके नंबर पर काल किया तो तीन साल बाद फुटेला से बातचीत हो पायी।यह किसी चमत्कार से कम नहीं है।हम फुटेला के पूरीतरह ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं।आप भी करें तो बेहतर।
जनसत्ता में हमारे सहयोगी मित्र जयनारायण प्रसाद को भी ब्रेन स्ट्रोक हुआ था पिछले साल नासिक में ,जहां डाक्टरों ने उन्हें मृत भी घोषित कर दिया था।आनन फानन उन्हें कोलकाता लाया गया और वे जिंदा बच निकले।
जाहिर है कि जिंदगी और मौत भी अस्पतालों की मर्जी पर निर्भर है जो क्रय क्षमता से नत्थी है शिक्षा की तरह।बुनियादी जरुरतों और सेवाओं की तरह।
जयनारायण की भी आवाज बंद हो गयी थी और वे भी विकलांगता के शिकार हो गये थे।लेकिन महीनेभर में वे सही हो गये।आवाज लौटते ही उनने फोन किया। महीनेभर बाद से वे फिर जनसत्ता में काम कर रहे हैं।
फुटेला के ठीक होने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा।
कल उसने कहा कि तीन चार महीने और लगेंगे पूरी तरह ठीक होने में और उसके बाद फिर मोर्चे पर लामबंद हो जायेंगे।
जिन मित्रों को अभी खबर नहीं हुई ,उनके लिए यह बेहतरीन खबर साझा कर रहे हैं।तमाम बुरी खबरों के बीच इस साल की यह शायद पहली अच्छी खबर है।
तीन साल से देश दुनिया से बेखबर रहने के बाद फुटेला के इस तरह सक्रिय हो जाने से बहुत अच्छा लगा रहा है।आज इतना ही।
बाकी जीने को मोहलत मिलती रही तो आपकी नींद में खलल भी डालते रहेंगे।
बजट अभी समझ से बाहर, अर्थशास्त्रियों की राय गायब, झोलाछाप सर्वत्र हावी
सिर्फ आयकर दाताओं को राहत का बजट और अंधाधुंध निजीकरणका किस्सा!
पलाश विश्वास
देश की आबादी 133 करोड़ है।33 करोड़ लोगों के पास आधार कार्ड नहीं है।बजट के आंकड़ों के मुताबिक जनसंख्या 125 बतायी गयी है और इन 125 करोड़ में सिर्फ सवा तीन करोड़ लोग आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं।जिनमें से साढ़े पांच लाख लोग पांच लाख से ज्यादा आयकर जमा करते हैं।आयकरछूट की बाजीगरी से सरकार ने अपनी आय बढ़ाने का इंतजाम कर लिया है। एक हाथ से 15,500 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है, तो दूसरी ओर बड़ी आय वालों से कर वसूली में अधिभार जोड़े जाने पर 27,700 करोड़ सरकार के खाते में आने की उम्मीद बनी है। वित्त मंत्रालय ने रुपए की तरलता प्रणाली को सॉफ्टवेयर से जोड़ा है। इससे 25 लाख नए लोगों को आयकरप्रणाली से जोड़ा जाएगा। आयकरके दायरे में स्टार्ट अप कंपनियों की संख्या बढ़ेगी। साथ ही लघु और मझोले उद्योगों और छोटे कारोबारियों के बड़े वर्ग को आयकरके दायरे में लाने की तैयारी है।
अगर यह मान लें कि सवा तीन करोड़ लोग आयकर देते हैं,तो यह संख्या 133 करोड़ के मुकाबले कितनी है,पहले इसे समझ लीजिये और मध्यवर्ग के इस छोटे से हिस्से को आयकर में मामूली छूट से देश के गरीब किसानों, मजदूरों, मेहनतकशों ,वंचितों और बहुजन सर्वहारा जनगण के गरीबी उन्मूलन के लिए कितनी दिशाएं खुलती हैं,उसका अंदाजा लगा लीजिये।
आयकर छूट के आइने से ही पढ़े लिखे समझदार लोग बजट को लेकर बल्ले बल्ले हैं।फिर एक करोड़ लोगों को घर दिलाने का वायदा है।बेघर लोगों को इससे कितनी राहत मिलेगी ,अभी कहना मुश्किल है।लेकिन इस पर जरुर गौर करें कि आवास का धंधा प्रोमोटर बिल्डर माफिया राज है और अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगीकरण, स्मार्ट शहर, इत्यादि के बहाने महानगरों से लेकर छोटे शहरों और कस्बे में किसानों की बेदखली के बाद खेतों पर तमाम आवास परियोजनाएं बनी हैं,जहां गरीबों को कोई छत मिली नहीं है।
कोलकाता,मुंबई ,दिल्ली जैसे महानगरों में झुग्गी झोपड़पट्टी और फुटपाथों का भूगोल बदला नहीं है।गृह निर्माण के लिए सरकारी खजाना गरीबों के लिए कितना है और कितना प्रोमोटर बिल्डर माफिया के लिए है,इस पर चर्चा की जरुरत नहीं है।
हम चूंकि नैनीताल की तराई में पले बढ़े हैं और जन्म भी वहीं से है तो पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान समाज से हमारा नाभिनाल का संबंध है।हम बचपन से पंजाब और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों के कृषि वैज्ञानिक समझते रहे हैं।आज पंजाब में भी गोवा के साथ वोट गिर रहे हैं।गौरतलब है कि इन विधानसभा चुनावों की कमान आरएसएस के स्वयंसेवकों के हाथ में है और उनका ट्रंप कार्ड हिदुत्व का एजंडा है।
गौरतलब है कि राममंदिर निर्माण अभियान के साथ डिजिटल कैशलैस मेकिंग इन इंडिया नत्थी सत्यानाश के मकसद से राजनीतिक आर्थिक सुधारों का केसरिया नक्शा यह आम बजट है जिसमें भारतीय रेल को समाहित करके रेलवे के निजीकरण का मास्टर प्लान है।
मजहबी सियासत के रामवाण के निशाने पर जो जनगण है,उनके लिए आर्थिक सुधारों का यह बजट समझ में नहीं आ रहा है,सही है।लेकिन जो बजट समझने का दावा कर रहे हैं और बजट की दिशा सही बता रहे हैं,वे भी ठीक से बता नहीं पा रहे हैं कि आखिर वह सही दिशा है क्या।
इसी बीच भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य जल्द शुरू होगा। रायपुर में श्रीराम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में योगी आदित्यनाथ ने संवाददाताओं से कहा कि यह भगवान राम का ननिहाल है और ज्योतिष मान्यता है कि जब भगवान राम ननिहाल में विराजमान हो जाएंगे तब अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
लेनदेन में पारदर्शिता का नजारा डिजिटल कैशलैस इंडिया है,जिसके तहत एटीएम में नकदी निकासी की हदबंदी खत्म होते न होते मीडिया वृंद गान चालू है नोटबंदी को जायज बताने का जबकि चूंचूं का मुरब्बा कुल मिलाकर इतना है कि कालेधन पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने 3 लाख रुपए से ज्यादा कैश लेन-देन पर रोक लगा दी है। वित्त मंत्री अरुण जेतली ने साल 2017-18 के बजट में 3 लाख रुपए से ज्यादा के कैश ट्रांजैक्शन को बैन करने की घोषणा की थी।
इतना ही नहीं, अगर कोई 15 लाख रुपए से अधिक कैश रखना चाहेगा तो उसे इसके लिए आयकर आयुक्त से अनुमति लेनी होगी। कैश से लेन-देन को सीमित करने के लिए सरकार कानून भी बना सकती है। इस मामले में सरकार का कहना है कि जब 3 लाख रुपए से ज्यादा के कैश लेनदेन पर बैन लागू हो जाएगा तो ज्यादा कैश रखने का कोई लॉजिक नहीं रह जाता। सारा काम तो डिजिटल पेमेंट के जरिए ही होगा।
बहरहाल राहत यह बतायी जा रही है कि सरकार इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन पेमेंट पर सर्विस चार्ज की अधिकतम सीमा तय कर सकती है। सरकार का मानना है कि चेक पेमेंट पर खर्च ज्यादा आता है लेकिन इस पर सर्विस चार्ज नहीं लगता। इसे देखते हुए ई-पेमेंट पर ज्यादा सर्विस चार्ज लगाना वाजिब नहीं है।
डिजिटल लेनदेन के जोखिम से निबटने के इंतजाम किये बिना पूरी अर्थव्यवस्था को लाटरी में तब्दील करने की कवायद है।सुप्रीम कोर्ट,संसद और संविधान की कुली अवमानना के तहत हर अनिवार्य सेवा के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य किया जा रहा है और आधार के जरिये ही डिजिटल पेनमेंट की योजना है।जिसके जोखिम का खुलासा यह है कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने व्यापक कार्रवाई करते हुए आधार से जुड़ी सेवाएं प्रदान कर रहीं 12 वेबसाइटों और गूगल प्लेस्टोर पर उपलब्ध 12 मोबाइल एप को बंद कर दिया है। गौरतलब है कि गैरकानूनी रूप से सेवाएं प्रदान कर रहीं इन वेबसाइट्स व एप्स पर लोगों से अधिक शुल्क भी वसूला जा रहा था।
यूआईडीएआई के सीईओ अजय भूषण पांडे ने बताया कि अधिकारियों को ऐसी 26 अन्य फर्जी और गैरकानूनी वेबसाइटों और मोबाइल एप्स को बंद करने का आदेश भी दिया है। उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई ऐसी अनधिकृत वेबसाइटों और मोबाइल एप्स को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।
हर खाते में पंद्रह लाख जमा कराने की तर्ज पर यूनिवर्सल इनकाम केतहत न्यूनतम सुनिश्चित आय योजना का बड़ा शोर था।वह बजट प्रावधान में ख्वाबी पुलाव साबित हो गया है।सुनहले दिनों के ख्वाब की तरह।
दूसरी तरफ,अर्थ व्यवस्था और तहस नहस उत्पादन प्रणाली,फर्जी विकास और विकास दर के फर्जीवाड़ा का नजारा यह है कि पंजाब जैसे खुशहाल सूबे में बेरोजगार जवान को चुनाव प्रचार के जरिये रोजगार तलाशने की जरुरत आन पड़ी है और चुनाव निबटने के बाद वे रोजगार खो बैठे हैं।अब देहात में चुनाव में ही बेरोजगार युवाजनों को घर बैठे कमाई का मौका मिलता है।यह हमारी आजादी है।यह हमारी तरक्की है।
भारत ही नहीं, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया से लेकर यूरोप के कोने कोने में जहां भी खेती होती है,वहां पंजाब के किसान खेती करते हुए मिलेंगे।
खेती के संकट की वजह से पंजाब में अर्थव्यवस्था सिरे से बेहाल है और वहां पूरी की पूरी नई पीढ़ी नशाग्रस्त है तो दक्षिण भारत से लेकर पश्चिम भारत और पूर्वी भारत में किसान थोकदरों में आत्महत्या कर रहे हैं पहली और दूसरी हरित क्रांति के बावजूद।कृषि विकास दर शून्य के करीब पहुंच गयी है।
आंकड़ों के फर्जीवाड़े के मुताबिक गलत आधार वर्ष और गलत पद्धति से मनमर्जी मुताबिक विकास दर बताने वाले लोग फिरभी कृषि विकास दर दो ढाई प्रतिशत कुछ भी बताते रहे हैं।
अब कृषि संकट को निबटाये बिना जल जंगल जमीन से बेदखली का तांडव जारी रखते हुए बिल्डर प्रोमोटर मीफिया गिरोहों को खुल्ला छूट देते हुए बजट में कृषि विकास दर एक झटके से 4.1 तक बढ़ाने का दावा किया गया है।
इससे बड़ा सफेद झूठ पारदर्शिता के डिजिटल कैशलैस मेकिंग इन इंडिया में क्या क्या हैं,वह पता लगाना अभी बाकी है।
वित्तीय घाटा जस का तस बने रहने और बढ़ते जाने की आशंका है।सरकारी खर्च में वृद्धि के जरिये निजीकरण और उदारीकरण को जायज ठहराने की कोशिश हो रही है।पटरियों पर बुलेट ट्रेनों की जगह कारपोरेट कंपनियों की ट्रेंनें दौड़ाने की तैयारी है तो भारतीय रेल के अलावा सारे सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के विनिवेश का एजंडा है।
मसलन, सरकार ने विनिवेश के लिए कामकाज तेजी से शुरू कर दिया है। करीब आधा दर्जन कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी बेची जाएगी, संभव है कि सरकार मार्च से पहले कई कंपनियों के विनिवेश का काम पूरा कर ले।
सरकारी कंपनियों में हिस्सा बेचने के लिए सलाहकारों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि सरकार कई कंपनियों में पूरी हिस्सेदारी बेचेगी।
सरकार बीईएमएल में 26 फीसदी हिस्सा मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ बेचेगी। वहीं पवन हंस में पूरा 51 फीसदी हिस्सा मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ बेचेगी। ब्रिज एंड रूफ कंपनी लिमिटेड का 99.35 फीसदी हिस्सा बिकेगा। भारत पंप्स एंड कम्प्रेशर्स में पूरी 100 फीसदी हिस्सेदारी बिकेगी। हिंदुस्तान फ्लोरोकार्बन में एचओसीएल का 56.43 फीसदी हिस्सा बिकेगा।
साथ ही सरकार की ओर से कंस्ट्रक्शन से जुड़ी 4 कंपनियों का भी विनिवेश किया जाएगा। हिंदुस्तान प्रीफैब, इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स लि., एचएससीसी इंडिया और नेशनल प्रोजेक्ट्स कंस्ट्रक्शन कॉर्प इन चारों कंपनियों में पूरी हिस्सेदारी बिकेगी। इन कंपनियों का सरकारी कंपनियों में विलय होगा।
जाहिर है कि देश के संसाधन बड़े पैमाने पर नीलाम करने की आगे तैयारी है।गौरतलब है कि बजट पेश करने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विज्ञान भवन में सीआईआई, फिक्की और एसोचैम के अधिकारियों से मुलाकात की। बजट में किए गए कई एलानों को लेकर उन्होंने कारपोरेटइंडिया को सफाई भी दी।
गौर करें कि जेटली ने कहा कि 90 फीसदी एफडीआई ऑटोमैटिक रूट से आता है, एफआईपीबी को हटाने पर रोडमैप बनाया जाएगा जिस पर काम शुरु हो गया है।
जीएसटी पर वित्त मंत्री ने कहा कि आनेवाले कुछ महीनों में जीएसटी लागू हो जाएगा। एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इन बातों का ध्यान जीएसटी में रखा जाएगा।
इन सब के बीच वित्त मंत्री ने राजनीतिक पार्टियों के चंदे पर भी सफाई दी। उन्होंने कहा कि राजनीतिक पार्टियों के चंदे में पारदर्शिता के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा देने का विकल्प बेहतर है। उन्होंने ये भी कहा कि बॉन्ड को बैंक से खरीद सकते हैं और इसे इस्तेमाल करने के लिए कुछ ही दिन दिए जाएंगे। इलोक्टोरल बॉन्ड से पार्टियों के चंदे में पारदर्शिता आएगी। इलेक्टोरल बॉन्ड को बैंक से खरीद सकते हैं। ये बॉन्ड चेक, कैश और डिजिटल पेमेंट से खरीदे जा सकते हैं। पार्टियों को चुनाव आयोग को एक अकाउंट दिखाना पड़ेगा और पार्टियां कुछ ही दिनों मे बॉन्ड को रिडीम कर पाएंगी।
सरकार अब मान भी रही है कि नोटबंदी का असर विकास दर पर होने लगा है।मगर पालतू मीडिया अब बजट से नोटबंदी नरसंहार को जायज साबित करने में लग गया है।सरकारी खर्च बहुत ज्यादा दिखाने के करतब के बावजूद सच यह है कि बजट में सामाजिक सुरक्षा की कोई दिशा नहीं है और रोजगार सृजन का कोई रास्ता बना है और आर्थिक विकास का नक्शा कहीं नहीं दीख रहा है।
हम अखबारी नौकरी की वजह से पिछले 36 साल से वातानुकूलित कमरे में कंप्यूटर और टेलीप्रिंटर फिर टीवी लाइव के जरिये बजट देखते रहे हैं।
इन 36 सालों में बजट को देखने समझने की पढ़ी लिखी जनता की दृष्टि बदली नहीं है।लोगों की हमेशा नजर आयकर छूट पर होती है और क्या सस्ता हुआ क्या महंगा,इसका हिसाब किताब जोड़ा जाता रहा है।इसके आगे लोग कुछ भी देखते नहीं हैं।
दूरी तरफ से आर्थिक नीतियों और अर्थव्यवस्था में हलचल,उलटफेर,इन सबका आम जनता से कोई मतलब नहीं होता।
दरअसल आम लोगों की क्रय शक्ति इतनी कम होती है कि बाजार में बुनियादी जरुरतों और बुनियादी सेवाओं के अतिरिक्त कुछ खर्च करने का सामर्थ्य उनका होता नहीं है।सस्ता हो या मंहगा, जीने के लिए जरुरी चीजें और सेवाएं खरीदने की उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होती है और इसलिए टैक्स का कोई हिसाब वे जोड़ते नहीं हैं।
अधिकतम सवा तीन करोड़ लोगों के अलावा बाकी करीब 130 करोड़ जन गण के लिए आयकर छूट भी बेमानी है।हम देशभर में सेक्टर दर सेक्टर कर्मचारियों से बजट पर एक दशक से ज्यादा समय चर्चा करते रहे हैं,वे भी आयकर छूट,सस्ता महंगा के अलावा बजट में घुसना नहीं चाहते।
अंग्रेजी अखबारों के विशेषांक और बजट दस्तावेज निवेशकों के अलावा आम लोगों को पढ़ने की आदत भी नहीं है।वे दरअसल कारपोरेट और मार्केट का लोखा जोखा है।जिन्हें समझने की दक्षता आम जनता की होती नहीं है।जो अमूमन हिसाब जोड़ते भी नहीं है।जैसा हिसाब बता दिया,बिना जांच पड़ताल के चुका देने में ही उनको राहत है।
लक्ष्य और प्रावधान,सरकारी खर्च,योजनाओं का तिलिस्म,कर छूट कर माफी की हकीकत से बाकी जनता अनजान है।
मीडिया की नजर राजनीति की भी नजर होती है और ज्यादातर राजनेताओं को अपने भत्तों और कमाई,आयकर के अलावा सच में कोई दिलचस्पी होती नहीं है।
इस बार पहली बार हम बजट के मौके पर राष्ट्रपति के अभिभाषण,आर्थिक समीक्षा और बजट को ठेठ देहात में बैठकर अपढ़ अधपढ़ जनता के साथ देख रहे थे।जिनमें पढ़े लिखे मामूली हिस्से को अखबारी सुर्खियों के अलावा आर्थिक मुद्दों में खास दिलचस्पी नहीं है।बजट की खबरें वे पढ़ते भी नहीं है।बजट लाइव भी देखते नहीं है।हालांकि हर घर में अब टीवी और मोबाइल दोनों है।
हम महाप्राण जोगेंद्र नाथ मंडल के कर्मक्षेत्र नोहाटा मछलंदपुर इलाके में थे।महाप्राण भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान के कानून मंत्री बने थे।पाकिस्तान के संविधान की मसविदा भी उन्होंने तैयार किया था।पूर्वी पाकिस्तान में दंगा रोक पाने में नाकाम होकर वे भारत चले आये तो इसी इलाके में मृत्यु तक सक्रिय रहे। यह वनगांव और रानाघाट चाकदह के बीच विशुध अनुसूचित किसानों का इलाका है,जिनमें नब्वे फीसद लोग मतुआ नमोशूद्र हैं।मतुआ केंद्र ठाकुर नगर भी इसी इलाके में है।इस इलाके से चुनाव लड़कर हारते रहे हैं महाप्राण।
आजादी के सत्तर साल बाद भी साम के बाद तमाम गांव अंधरे में घिरे होते हैं।कहीं कहीं पक्की सड़कें बनी है।उपजाऊ खेती का यह इलाका है।उसके पार पश्चिम दिशा में बर्दमान और हुगली के सबसे उपजाऊ इलाके हैं तो उत्तर में नदिया होकर मुर्शिदाबाद मालदह के उपजाऊ खेत हैं।पूर्व में देगंगा से लेकर भागड़ बशीर हाट हिंगलगंज के सीमावर्ती इलाके हैं।
यह सारा इलाका बहुजनों का है।जहां उपजाऊ खेती के बावजूद हर गांव से बच्चे और जवान भारत और भारत से बाहर खाड़ी देशों में मजदूरी करने को निकलते हैं। भारत में पांच साला योजनाओं और केंद्र राज्य सरकारों के सालाना बजट और विकास योजनाओं से मुक्तबाजार की अर्थव्यवस्था के मुताबिक मोटर साइकिल,मोबाइल,स्मार्ट फोन,टीवी के अलावा उनकी जिंदगी में कुछ भी बदला नहीं है।
यह किस्सा झारखंड छत्तीसगढ़ के पठारों के पार मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश ,बिहार और पंजाब हरियाण से लेकर सारे देश के केत खलिहानों का है,जहां किसानों की जरुरतें बाजार के मुताबिक बढ़ है तो खेती की लागत भी बढ़ी है।
नकदी के लिए खेत बेहिसाब हस्तांतरित हुए हैं तो बेदखली अटूट सिलसिला है।क्रयशक्ति है नहीं,खेती चौपट है और बच्चे आम तौर पर पढ़ लिख गये तो बेराजगार हैं और किसी तरह के आरक्षण और कोटे से उनकी जिंदगी बदली नहीं है।
आरक्षण और कोटे का लाभ जिन्हें मिला है,वे भी देश के महज दो करोड़ वेन भोगियों और पेंशन भोगियों में शामिल हैं और उनमें बड़ी संख्या आयकरदाताओं की भी हैं।बहुजनों में ओहदों का खास रुतबा है।
आईएएस पीसीएस आईआरएस आईपीएस तो बहुजनों में बहुत कम हैं और जो हैं,उनतक आम बहुजनों की पहुंच नहीं है।डाक्टर इंजीनीयर प्रोफेसर से लेकर ग्रुप डी के कर्मचारी भी बहुजन समाज के नेता हैं और उनका हिसाब किताब में आम जनता के लिए कोई जगह है नहीं।यह रुतबादार तबका कुछ लाख से भी ज्यादा नहीं है।
सरकारी कर्मचारियों, मध्यवर्ग और बहुजनों के रुतबेदार ओदेदार कामयाब पैसेवालों को खुश करने का गणित है बजट।इसी वजह से आयकर छूट के गणित से बजट को बहुत अच्छा बताया जा रहा है।
इस दलील से सियासत के खेमों में भी सन्नाटा है और हाशियें पर खड़ी जलजंगल जमीन के वंचित 133 करोड़ में 130 करोड़ आम जनता की सेहत का किसी को कोई परवाह नहीं है।
सरकार का मानना है कि ज्यादा कर वसूली और सरकारी उपक्रमों की हिस्सा बिक्री से उसे इतना राजस्व मिलेगा कि राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पाने में कोई दिक्कत नहीं होगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि अगले वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य वास्तविक है और इसे हासिल कर लिया जाएगा। अगले वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.2 फीसदी रखा गया है। वित्त मंत्री बजट बाद उद्योग व्यापार के प्रतिनिधियों से बातचीत कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने बजट से संबंधित दूसरे पहलुओं पर भी चर्चा की।
अर्थव्यवस्था की सेहत के बारे में जेटली ने खुलासा किया कि न केवल 2017-18 बल्कि इससे अगले साल के लिए तय 3 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य भी हासिल कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017-18 के बजट में बड़े नोटों बंद करने से हुए सभी फायदे पूरी तरह से शामिल नहीं हैं।
उन्होंने दावा किया कि नोटबंदी के कारण अघोषित आय पर ज्यादा कर के रूप में सरकार को अधिक राजस्व मिलेगा।
वित्त मंत्री ने कहा, 'जहां तक नोटबंदी का सवाल है तो हम यह ध्यान रखेंगे कि इससे जो भी राजस्व और अन्य लाभ होते हैं उनको पूरी तरह से इसमें शामिल नहीं किया गया है। पिछले दो साल मे कर राजस्व की वृद्घि दर 17 फीसदी रही है। लेकिन इस साल हमने इसे 12 फीसदी पर ही रखा है। जाहिर है इस लक्ष्य को हम पार कर लेंगे।'
उन्होंने कहा कि सरकार कर राजस्व में बढ़ोतरी से उत्साहित है। इसलिए उसने वर्ष 2017-18 के लिए जीडीपी का 3.2 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा है जबकि मौजूदा वित्त वर्ष के लिए घाटे का लक्ष्य जीडीपी का 3.5 फीसदी है। सरकार ने वर्ष 2018-19 के लिए इस घाटे को जीडीपी का 3 फीसदी रखने की भी योजना बनाई है।
वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार ने विनिवेश का लक्ष्य काफी ज्यादा रखा है। ज्यादा से ज्यादा सरकारी उपक्रम सूचीबद्घ कराए जाएंगे। इनमें सामान्य बीमा कंपनियां भी शामिल हैं। इसका मकसद उन्हें ज्यादा प्रतिस्पद्घी और पारदर्शी बनाना है। साथ ही सूचीबद्घता की जरूरतों के अनुसार सरकार को इन उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी भी घटानी है। जेटली को उम्मीद है कि सूचीबद्घता और हिस्सा बिक्री से सरकार को पर्याप्त राजस्व मिल जाएगा। जेटली ने कहा कि लालफीताशाही को कम करने के लिए विदेशी निवेश संवद्र्घन बोर्ड (एफआईपीबी) को खत्म करने का समय आ गया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि 90 फीसदी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश स्वत: मार्ग से आ रहा है। एफआईपीबी खत्म करने के लिए आने वाले दिनों में पूरी योजना पेश की जाएगी।
পি. আর. ঠাকুর (২)
কপিল কৃষ্ণ ঠাকুর
২৯ আগস্ট ১৯৪৭ তারিখে বাবাসাহেব ড. আম্বেদকরকে সভাপতি রেখে সংবিধান ড্রাফ্টিং কমিটি ঘোষিত হয়। এর আগের ৯মাসকে বলা যায় সংবিধানের নীতি নির্ধারণ তথা দিশা ঠিক করার পর্ব। নানাবিধ সাব কমিটি গঠিত হয়েছিল এ সময়, যাদের কাজ ছিল বিভিন্ন বিষয়ে প্রস্তাব বা পরামর্শ দান করা।
২১ ডিসেম্বর ১৯৪৬ তারিখে Constituent Assembly Negotiating Committiee গড়ার জন্য ৬জনকে দায়িত্ব দেবার প্রস্তাব পেশ হয়, এঁরা হলেন—1 আবুল কালাম আজাদ 2.পণ্ডিত জহরলাল নেহেরু 3.সর্দার বল্লভভাই প্যাটেল 4.ড. বি. পট্টভি সীতারামাইয়া 5.শংকররাও দেও এবং 6.স্যার এন, গোপালস্বামী আয়েঙ্গার। এই কমিটির হাতে বিভিন্ন রাজ্য থেকে Negotiating কমিটিতে কারা এবং ক'জন নির্বাচিত হবেন সে ক্ষমতা দেওয়া হয়েছিল। প্রস্তাবটিতে একটি সংশোধনী দাবি করেন পি. আর. ঠাকুর। তিনি বলেন—" Sir, I want to move an amendment that after the name of the Hon'ble Sir N Gopalswami Ayyanger, the name of one of the depressed class member of the House be added….."এই সংশোধনী ঘিরে বিতর্ক শুরু হয়। বিহারের আদিবাসী সমাজের লড়াকু নেতা জয়পাল সিং একজন আদিবাসী সদস্য রাখার প্রস্তাব দেন।V.I. Munniswami Pillai পি. আর. ঠাকুরের সমর্থনে এগিয়ে আসেন। বোম্বের B.G Kher প্রমুখ বিরোধিতা করেন।শেষে স্বয়ং নেহেরু হাল ধরেন। তিনি আশ্বস্ত করেন এই বলে যে, তপশিলিদের প্রতি অবিচার করা হবে না। ঠাকুরকে তিনি সংশোধনী প্রত্যাহার করতে অনুরোধ করেন।
ক্ষুব্ধ পি.আর.ঠাকুর আসন ছেড়ে Rostram-এ চলে আসেন এবং ঘোষণা করেন: "In view of the statement made by the Hon'ble Pandit Jahar Lal Neheru, I want to withdraw the amendment that I have moved. But I want to mention..(Voices- 'No, no.') one thing only (several member –No, no'). I want this assurance that at least five out of the 93 seats will be given to the Depressed Classes."
বঞ্চিত সমাজের জন্য পি. আর. ঠাকুরের এই অধিকারের লড়াই বৃথা যায়নি। কমিটিতে তপশিলিদের পাঁচের অধিক প্রতিনিধির স্থান হয়েছিল। এরপর ২৪/১/৪৭ তারিখে একটি Advisory Committee গঠিত হয় সংসদ এবং সংসদের বাইরের বিশিষ্ট ব্যক্তিদের নিয়ে।যাঁরা গুরুত্বপূর্ণ মতামত এবং পরামর্শ দান করবেন। এই কমিটির হাতে ছিল সাব-কমিটি গঠনের ক্ষমতাও। এছাড়া নাগরিকদের অধিকার, সংখ্যালঘু এবং আদিবাসীদের অধিকার এবং মৌলিক অধিকার(Fundamental rights) ছিল এই কমিটির বিবেচনার ক্ষেত্র। স্মরণে রাখা দরকার, সংখ্যালঘু হিসেবে তখন তপশিলিদেরও গণ্য করা হতো। ৭২ জনের এই Advisory Committee-তে তপশিলি সমাজের প্রতিনিধি হিসেবে নির্বাচিত হন-- 1.Sardar Prithvi Singh Azad 2.Dharam Prakash 3.H.J. Khandelkar 4.Jagjiban Ram 5.P.R. Thakur 6.Dr. B.R. Ambedkar 7.V.I. Munniswami Pillai. বাংলা থেকে গুরুত্বপূর্ণ এই কমিটিতে স্থান হয়েছিল গণ-পরিষদের সদস্য ড.প্রফুল্লচন্দ্র ঘোষ, ড.শ্যামাপ্রসাদ মুখার্জী, সুরেন্দ্রমোহন ঘোষ এবং ড.এইচ. সি. মুখার্জীর।
पितृसत्ता के निर्मम मनुस्मृति अनुशासन के कारण सामाजिक जेलखाने में कैद स्त्री के लिए डिजिटल पंख खुले हुए आसमान की तरह है। सोशल मीडिया के मार्फत स्...
राजनीतिक जीवन का अवसान तो कमोबेश हर राजनेता का होता है लेकिन जितने नाटकीय और फूहड़ तरीके से मुलायम सिंह का हुआ है, वह अपने आप में एक मिसाल है।
वैसे भी 'विकास'की राजनीति अपने आप में एक 'संदिग्ध'शब्द है। इसी कथित विकास की कीमत देश की तीस लाख आवाम को 'विस्थापन'के बतौर उठाना पड़ा है।
राममंदिर निर्माण अभियान के साथ डिजिटल कैशलैस मेकिंग इन इंडिया नत्थी सत्यानाश के मकसद से राजनीतिक आर्थिक सुधारों का केसरिया नक्शा यह आम बजट है
बहुजन नायक-नायिकाओं ने अगर ओबामा की बजाय दक्षिण अफ्रीका के जैकब जुमा को मॉडल बनाया होता, आज न तो उनके खुद का भविष्य संकटग्रस्त होता और न ही सामाज...
गाजीपुर इलाके में गंभीर वायु प्रदूषण, स्थानीय लोगों ने की स्वास्थ्य परामर्श की मांग
अगर कभी भूटान जाने का मौका मिले तो वहां प्रकृति से सामंजस्य बना कर खुश रहने का सबक लेना मत भूलियेगा. भूटान भविष्य है.
सबसे बड़ा रावण लखनऊ में नहीं दिल्ली में रहता है। मोदी जी ने दो साल में 80 करोड़ रुपये के कपड़े बनवाए,एक चाय बेचने वाले के पास महंगे कपड़े कहां से ...
मुक्तिबोध जैसी समझ दुनिया में कितने लोगों की होती है। किसानों मजदूरों वचितों के साथ उनमें राजनैतिक चेतना की गहरी समझ थी।मुक्तिबोध दुरुह नहीं अपित...
प्रधानमंत्री ने एनसीपी को नेचुरल करप्ट पार्टी कहा था और अब उनकी सरकार ने उसी के नेता सरद पवार को पद्म विभूषण सम्मान दे दिया। अब उप्र चुनाव के वक्...
15 thousand Bengali Hindu refugees served notice to leave Assam by Ulfa RSS linked outfit under RSS Governance
RSS Never treated Bengali refuges as Hindu but Refugees always voted for Hindutva agenda!
Refugees in Uttarakhand and Uttarpradesh must think twice about their future in RSS Governance before they vote this time.
Palash Biswas
Refugees in Uttarakhand and Uttarpradesh must think twice about their future in RSS Governance before they vote this time.
I am not surprised to see 15 thousand Bengali refugees in Assam being served notice by Assamese Extremist outfit under RSS Ulfa governance as Bengali Hindu refugees voted for RSS.
পি. আর. ঠাকুর(3)
কপিল কৃষ্ণ ঠাকুর
পি. আর. ঠাকুর প্রসঙ্গে যাবার আগে বাবাসাহেব ড. আম্বেদকর সম্পর্কে দুয়েকটি কথা বলা দরকার। গণ-পরিষদে বাংলা থেকে তাঁর নির্বাচন আটকাতে কংগ্রেস, বিশেষত সরদার বল্লভভাই প্যাটেল সর্বাত্মক যুদ্ধ ঘোষণা করেছিলেন। যার ফলে আমরা স্বাভাবিক ভাবে ধরে নিই, সংবিধান পরিষদের ভেতরেও কংগ্রেস সদস্য ও নেতৃবৃন্দ নিশ্চয়ই সেই বিরোধিতা অব্যাহত রেখেছিলেন। ঘটনাবলী কিন্তু তার বিপরীত সাক্ষ্যই দেয়। একেবারে সূচনা থেকেই সেখানে বাবাসাহেবকে প্রাপ্য মর্যাদা দেওয়া হয়েছে। বাইরের বিরোধিতা ভেতরে টেনে আনা হয়নি।
৯ ডিসেম্বর '৪৬, অধিবেশন শুরুর দিন উপস্থিত ছিলেন সর্বমোট ২০৭ জন। সম্মানের সঙ্গে একেবারে প্রথম সারিতে যাঁদের বসানো হয়েছিল, তালিকাটা লক্ষণীয়: পণ্ডিত জহরলাল নেহেরু, মৌলানা আবুল কালাম আজাদ, সর্দার বল্লভভাই প্যাটেল, আচার্য কৃপালিনী, ড. রাজেন্দ্র প্রসাদ, সরোজিনী নাইডু, হরেকৃষ্ণ মহতাব, জি বি পন্ত, বি আর আম্বেদকর, শরৎচন্দ্র বোস, সি রাজাগোপালাচারী এবং এম. আসফ আলি। পরবর্তী কালেও লক্ষ করা গেছে, সংবিধান সভার চেয়ারম্যান রাজেন্দ্রপ্রসাদ একটি বিষয় নিয়ে বিতর্কে কুড়িজনের তালিকা ডিঙিয়ে আম্বেদকরকে বলার সুযোগ দিচ্ছেন। বাবাসাহেব সেজন্য বক্তব্যের আগে বিস্ময়ও প্রকাশ করছেন। ১৯৪৭-এর জুন মাসে বাংলার বিধানসভায় বাংলাভাগ চূড়ান্ত হলে পূর্ববাংলা থেকে নির্বাচিত ড. আম্বেদকরের সদস্যপদ স্বাভাবিক কারণেই খোয়া যায়, একই কারণে খোয়া যায় প্রমথ রঞ্জন ঠাকুরের সদস্যপদও।
৩০শে জুন ১৯৪৭, ড. রাজেন্দ্রপ্রসাদ বোম্বের প্রাইম মিনিস্টার বি জি খেরকে অনুরোধ করেন ড. আম্বেদকরকে পুনঃনির্বাচিত করতে। সেই সূত্রে জুলাই মাসেই ড. আম্বেদকর সংবিধান পরিষদে পুনঃনির্বাচিত হয়ে আসেন এবং বাংলার পরিবর্তে বোম্বের সদস্য হিসেবে পরিচিতি লাভ করেন। বাংলার সঙ্গে তাঁর নির্বাচনী বন্ধন ছিন্ন হয়। ইতিপূর্বে, জুন মাসের ২তারিখে মহাপ্রাণ যোগেন্দ্রনাথ মণ্ডলকে (Law Member to the Govt.of India) তিনি একটি গুরুত্বপূর্ণ চিঠি লেখেন যোগেন্দ্রনাথের ৩০মে '৪৭-এর চিঠির উত্তরে। যাতে ড.আম্বেদকরের দৃষ্টিভঙ্গী, বিশ্বাস ও আগামী কর্মসূচি সম্পর্কে সুস্পষ্ট ছবি ধরা পড়ে। ধরা পড়ে হিন্দু ও মুসলমান নেতৃবৃন্দ সম্পর্কে তাঁর প্রকৃত মনোভাব। ওই পরিস্থিতিতে দু'দিকেই রক্ষাকবচ (safeguards)আদায় করাকেই তপশিলিদের একমাত্র লক্ষ্য হওয়া উচিত বলে তিনি মন্তব্য করেছেন। নানা বিষয়ে আলো ফেলা সেই গুরুত্বপূর্ণ চিঠিটি প্রসঙ্গান্তরে নিশ্চয়ই কেন্দ্রীয় আলোচ্য বিষয় হতে পারে, কিন্তু বর্তমান আলোচনায় তা ততটা প্রাসঙ্গিক নয়।
সংবিধান সভায় পি আর ঠাকুরের যা কিছু অবদান, জুন '৪৭-এর মধ্যে সীমাবদ্ধ। এই সময়ে যেখানে সুযোগ মিলেছে, তিনি নিজের বক্তব্য তুলে ধরেছেন। যেমন সংবিধান সভাতেও (২৫/১/৪৭) তিনি পূর্ববাংলার দুর্ভিক্ষ আর দাঙ্গা পীড়িতদের জন্য জোরালো কন্ঠে ত্রাণের দাবী তুলে ধরেছেন। এই দরদ ও দায়বদ্ধতা সংবিধান পরিষদে আর কোনও সদস্যের কন্ঠে আমরা শুনতে পাই না। তাঁর সম্পর্কে আর কয়েকটি তথ্য দিয়ে এই আলোচনার ইতি টানব।
उपभोक्तावाद के युद्धोन्माद में बच्चे अपराधी हैं तो कोई मां बाप,कोई रिश्ता नाता सुरक्षित नहीं है।
दरअसल असल अपराधी तो हम भारत के नागरिक हैं जो पिछले 26 सालों से लगातार परिवार,समाज,संस्कृति ,लोक , जनपद, उत्पादन, अर्थव्यवस्था को तिलांजलि देकर ऐसा नरसंहारी मुक्तबाजार बनाते रहे हैं।
यही हिंदुत्व का पुनरुत्थान है,राष्ट्रवाद है और रामराज्य भी यही है।
पलाश विश्वास
भोपाल में बंगाल की 28 साल की बेटी आकांक्षा अपने प्रेमी उदयन दास के साथ लिव इन कर रही थी।वह महीनों पहले अमेरिका में युनेस्को की नौकरी की बात कहकर बांकुड़ा में बैंक के चीफ मैनेजर पिता के घर से निकली थी।इस प्रेमकथा का अंत त्रासद साबित हुआ जब भोपाल में उदयन दास के घर में पूजा बेदी के नीचे दफनायी हुई सीमेंट की ममी बना दी गयी आकांक्षा का नरकंकाल निकला।
किसी प्रेमकथा की ऐसी भयानक अंत आजकल कही न कहीं किसी न किसी रुप में दीखता रहता है।आनर किलिंग,भ्रूण हत्या और दहेज हत्या और स्त्री उत्पीड़न के तमाम मुक्तबाजारी वारदातों के साथ बिन ब्याह लिव इन संबंधों की ऐसी परिणति अमेरिकी संस्कृति की तरह हमारी नींद में खलल नहीं डालती।
जैसे हम नरसंहारों क अभ्यस्त हैं,जैसे हम बलात्कार सुनामियों के अभ्यस्त है,जैसे हम दलितों और स्त्रियों पर उतक्पीड़न के अभ्यस्त हैं,वैसे ही मुक्तबाजारी वारदातें अब रोजमर्रे की जिंदगी है।
अब बारी किसकी है,कहीं हमारी तो नहीं,इसकी कोई परवाह किसी को नहीं है।
मुक्तबाजार में पागल दौड़ अब हमारा लोकतंत्र है।
मुक्तबाजार में पागल दौड़ मजहबी सियासत है तो अखंड कारपोरेट राज भी यही।इसी पागल दौड़ में हमारा रीढ़विहीन कंबंध वजूद है।
सदमा तब गहराता है जब प्रेमिका को ठंडे दिमाग से मारने वाला शराब पीकर जीने वाला कार फ्लैटवाला रईस प्रेमी बिना किसी हिचक के अपने मां बाप का कत्ल करके रायपुर में अपने ही घर के आंगन में उनकी लाशें दफना देने का जुर्म पुलिस पूछताछ में कबूल करता है और 24 घंटे के भीतर उसी घर के आंगन में मां बाप की लाशें मिल जाती हैं।
किसी भी मां बाप के लिए किसी बच्चे की यह क्रूरता भयंकर असुरक्षाबोध का सबब है क्योंकि उपभोक्तावाद के युद्धोन्माद में बच्चे अपराधी हैं तो कोई मां बाप,कोई रिश्ता नाता सुरक्षित नहीं है।
दरअसल असल अपराधी तो हम भारत के नागरिक हैं जो पिछले 26 सालों से लगातार परिवार,समाज,संस्कृति ,लोक , जनपद, उत्पादन, अर्थव्यवस्था को तिलांजलि देकर ऐसा नरसंहारी मुक्तबाजार बनाते रहे हैं।
यही हिंदुत्व का पुनरुत्थान है,राष्ट्रवाद है और रामराज्य भी यही है।
अखंड क्रयशक्ति की कैसलैस डिजिटल अमेरिकी जीवनशैली यही है।जो अब मुक्त बाजार का अर्थशास्त्र है,जहां श्रम और उत्पादन सिरे से खत्म है और सामाजिक सांस्कृतिक उत्पादन संबंधों का तानाबाना खत्म है और उसकी सहिष्णुता, उदारता, विविधता और बहुलता की जगह एक भयंकर उपभोक्तावादी उन्माद है जिसका न श्रम से कोई संबंध है और न उत्पादन प्रणाली से और जिसके लिए परिवार या समाज या राष्ट्र जस्ट लिव इन डिजिटल कैशलैस इंडिया मेकिंग इन है।यही हुिंदुत्व है।
उदयन दास हत्यारा है जिसने प्रेमिका की हत्या से पहले अपने मां बाप की हत्या की है।अपने अपराधों को उसने डिजिटल तकनीक की तरह सर्जिकल स्ट्राइक की तरह बिना सुराग अंजाम दिया है,परिवार और समाज से उसका कोई संपर्क सूत्र नहीं है और उपभोक्ता जीवन के लिए उसके लिए सारे संबंध बेमायने हैं,जिनकी कोई बुनियाद नहीं है। जाहिर है कि वह एक मानसिक अपराधी है और क्रिमिनल पर्सनलिटी डिसआर्डर का शिकार है।यह बीमारी मुक्तबाजार का उपभोक्तावाद है।
सबसे खतरनाक बात यह है कि मुक्तबाजार के इसी उपभोक्तावाद के लिए सारा का सारा अर्थतंत्र बदला जा रहा है।यही बजट का सार है।आर्थिक सुधार,पारदर्शिता है।
यह आर्थिक क्रांति भी रामराज्य और राममंदिर के नाम हो रहा है।
भारतीय जनसंघ के जमाने में कोई बलराज मधोक इसके अध्यक्ष भी बने थे शायद,ठीक से याद नहीं पड़ता क्योंकि साठ के दशक में तब हम निहायत बच्चे थे।
अब चूंकि संघ परिवार को श्यामाप्रसाद मुखर्जी,वीर सावरकर और गांधी हत्यारा के अलावा अपने जीवित मृत सिपाहसालारों की याद नहीं आती,इसलिए दशकों से बलराज मधोक चर्चा में नहीं हैं।
बलराज मधोक साठ के दशक में भारतीयकरण की बात करते थे।
जनसंघ तब भारतीयकरण के एजंडे पर था।यानी भारत में रहना है तो भारतीय बनना होगा और जाहिर है कि संघ परिवार की भारतीयता से तात्पर्य हिंदुत्व से है।
अब भी संघ परिवार के झोलाछाप विशेषज्ञ, सिद्धांतकार हिंदुत्व को धर्म के बदले संस्कृति बताते हुए सभी भारतवासियों के हिंदुत्वकरण पर आमादा हैं।
सबसे खतरनाक बात तो यह है कि समूचा लोकतंत्र,सारी की सारी राष्ट्र व्यवस्था,राजकाज, नीति निर्माण,संसदीय प्रणाली,लोकतांत्रिक संस्थाएं,मीडिया और माध्यम,अर्थव्यवस्था और समूचा सांस्कृतिक परिदृश्य,शिक्षा और आधारभूत संरचना ऐसे झोलाछाप विशेषज्ञों और सिद्धांतकारों के शिकंजे में हैं।
नोटबंदी से लेकर बजट,रिजर्व बैंक से लेकर विश्वविद्यालय हर स्तर पर अंतिम फैसला इन्हीं मुक्तबाजारी भूखे प्यासे बगुला भगतों का है।उन्ही का राज,राजकाज है।
मुक्तबाजार के कारपोरेट हिंदुत्व का अब सिरे से अमेरिकी करण हो गया है।मसलन डिजिटल कैशलैस लेनदेन भारतीय संस्कृति और परंपरा में किसी भी स्तर पर नहीं है।संघ परिवार की महिमा से रामराज्य में यही स्वदेशी नवजागरण है।
नकदी के तकनीक जरिये हस्तांतरण से अर्थ तंत्र का भयंकर अपराधीकरण हो रहा है और बेहतर तकनीक वाले बच्चे इसके सबसे बड़े शिकार होंगे।मां बाप के कत्लेआम का सारा समान बना रहा है हिंदुत्व का यह कारपोरेट डिजिटल अर्थतंत्र। कयामती फिजां की इंतहा है यह।अब इस अर्थतंत्र के डिजिटल धमाके में परिवार,समाज,राष्ट्र ,सारे के सारे पारिवारिक सामाजिक उत्पादन संबंध खत्म हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था में बाजार की गतिविधियां भी सामाजिक कार्य कलाप है।यहां जनदों में हाट बाजार ब भी कमोबेश चौपाल की तरह काम करते हैं,जहां लेनदेन के तहत समाजिक और उत्पादन संबंध की अनिवार्यता है।
अब तीन लाख रुपये से ज्यादा कैश रखने पर सौ फीसद जुर्माना के साथ नोटबंदी से पैदा हुए नकदी संकट से उबरने के साथ नोटबंदी को जायज ठहराने के लिए कर सुधारों के साथ जो बजट पेश किया गया है,वहां बाजार की भारतीयता को सबसे पहले खत्म कर दिया गया है।
बाजार अब मुक्तबाजार है जो किसानों,मजदूरों ,कारोबारियों,बहुजनों,स्त्रियों और बच्चों के साथ साथ युवा पीढ़ियों का अबाध वधस्थल वैदिकी है।इस बाजार का उत्पादन प्रणाली ,मनुष्यों,समाज,सभ्यता और संस्कृति से कोई लेना देना नहीं है।
डिजिटल कैशलैस क्रयशक्ति का उपभोक्ता वाद हिंदुत्व का नया अंध राष्ट्रवाद है।बेतहाशा बढ़ते विज्ञापनी उपभोक्ता बाजार के निशाने पर बच्चे हैं।
तकनीकी क्रांति में ज्ञान की खोज सिरे से खत्म है तो शिक्षा अब नालेज इकोनामी है यानी हर हाल में संबूक हत्या अनिवार्य है।
अंधाधुंध उपभोक्तावाद अब कारपोरेट हिंदुत्व है और इस कारपोरेट हिंदुत्व के लिए परिवार,विवाह,समाज,लोकतंत्र,संविधान,कानून का राज वैसे ही फालतू हैं जैसे समता,सामाजिक न्याय,विविधता और बहुलता,उदारता और सहिष्णुता।
इस अमेरिकी हिंदुत्व के नये प्रतीक के बतौर उदयन दास का चेहरा है और सबसे खतरनाक बात तो यह है कि हर गली मोहल्ले में,गांव शहर में,हर परिवार में एलसीडी, कंप्यूटर, मोटरसाईकिल, फ्लैट ,गाड़ी लिव इन पार्टनर के लिए बच्चे क्रमशः अपराधी और हत्यारे में तब्दील हो रहे हैं।
पूरी मुक्तबाजारी नई धर्मोनेमादी पीढ़ी अब क्रिमिनल पर्सनलिटी डिसआर्डर का शिकार है।बाहैसियत वारिस विरासत के हस्तांतरण तक रुकर उपभोग को विलंबित करने के मूड में नहीं है नई पीढ़ी।
उसे बाजार की हर तमकीली भड़कीली चीजे तुंरत चाहिए।
दूधमुंहा बच्चे तक स्मार्टफोन के रोज नये अवतार के लिए हंगामा बरपा देते हैं।
जोखिम भरे डिजिटल कैशलैस लेनदेनके साथ तकनीक बेहतर जानने वाले बच्चों का गृहयुद्ध अब नया महाभारत की पटकथा है।
उदयन दास अकेला अपराधी नहीं है।
मुक्तबाजार बड़े पैमाने पर बच्चों को अपराधी बना रहा है।
बंगाल में दुर्गापूजा के बाजार फेस्टिवल में महंगी खरीददारी के लिए क्रयशक्ति न होने की वजह से गरीब और मध्यवर्गीय परिवारों में बच्चों की आत्महत्या आम है।
कोलकाता में ही मां,बाप,दादा दादी और भाई बहन की मुक्तबाजारी उन्माद की वजह से हत्या अऱकबारी सुर्खियां और टीवी की सनसनी है।
आकांक्षा की प्रेमकथा के प्रसंग में वे सारी कथाएं उपकथाएं सनसनीखेज तरीके से फिर अखबारी पन्नों पर हैं और टीवी के परदे पर हैं।
यह क्राइम सस्पेंस और हारर मुक्तबाजार की संस्कृति है और इस उपभोक्ता युद्धोन्माद में कोई परिवार या कोई मां बाप सुरक्षित नहीं है।
गौरतलब है कि भोपाल और रायपुर की मूलतः देशज कस्बाई संस्कृति से जुड़े नये महानगरों का किस्सा आकांक्षा उदयन है।यह अबाध केसरिया अमेरिकीकरण का सिलसिलेवार विस्फोट है।भूकंप के निरंतर झटके हैं जो कभी भी तबाही में तब्दील हैं।
कोलकाता,दिल्ली,मुंबई,बंगलूर से सलेकर अत्याधुनिक असंख्य उपनगरों और स्मार्ट शहरों में इसका अंजाम कितना भयानक होगा,यह देखना बाकी है।
विडंबना है कि रामराज्य का वैचारिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक,सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं और इसके विपरीत भारतीय संविधान और भारतीय लोकगणराज्य का प्रतीक धम्मचक्र है।
संविधान और लोकगणराज्य और इनके प्रतीक धम्मचक्र जाहिर है कि बजरंगवाहिनी के रामवाण के निशाने पर हैं।
रामराज्य के भव्य राममंदिर के निरमाण के लिए सबसे पहले संविधान, लोकगणराज्य और उसके प्रतीक धम्मचक्र का सफाया जरुरी है और उनमें निहित मौलिक सिद्धांत,विचारधारा,आदर्श,कायदा कानून, समता,सहिष्णुता,उदारता, लोकतंत्र,न्याय,नागरिकता,नागरिक और मौलिक अधिकारों के खात्मे के साथ साथ मुकम्मलमनुस्मृति राज अनिवार्य है और संयोग से राम उसके भी प्रतीक हैं जो मनुस्मृति की वर्ण व्यवस्था को लागू करनेके लिए शंबूक की हत्या करते हैं और मनुस्मृति साम्राज्य के लिए अश्वमेध यज्ञ का वैदिकी आयोजन करके जनपदों को रौंद डालते हैं।
मर्यादा पुरुषोत्तम पितृसत्ता का निर्मम प्रतीक भी हैं जो सतीत्व की अवधारणा का जनक है और उनका न्याय सीता की अग्निपरीक्षा और सीता का ही गर्भावस्था में वनवास है।रामराज्य में सामाजिक न्याय और समता का यही रसायन शास्त्र है जो अब मुक्तबाजार का भौतिकीशास्त्र और अर्थशास्त्र भी है।
सत्ता पर वर्गीय,नस्ली कब्जा और संसाधनों,अवसरों से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में सत्ता वर्ग का जन्मजात जमींदारी वर्चस्व बनाये रखकर समता और सामाजिक न्याय को सिरे से खत्म करने के लिए मजहबी सियासत जिस तरह कारपोरेट और नरसंहारी हो गयी है,उसमें कानून का राज जैसे हवाई किला है,लोकतंत्र उसी तरह ख्वाबी पुलाव है और विचारधारा विशुध वैदिकी कर्मकांड का पाखंड है।
इसका कुल नतीजा दस दिगंत सर्वनाश है।
अर्थव्यवस्था और उत्पादन प्रणाली का विध्वंस है और राष्ट्र का,समाज का परिवार का,संस्थानों का खंड खंड विभाजन है।सारा तंत्र मंत्र यंत्र समरसता के नाम संपन्नता क्रयशक्ति के हितों में वर्गीय समझौता है और विचारधारा पाखंड है।
मजहबी सियासत का कुल नतीजा मुक्त बाजार है और मुक्तबाजार मजहबी सियासत में तब्दील है।सभ्यता और संस्कृति का अंत है तो विचारधारा और इतिहास का अंत है।
विडंबना है कि भारतीय धर्म कर्म राष्ट्रीयता के साथ साथ भारतीय संस्कृति और इतिहास का स्वयंभू धारक वाहक संस्थागत संघ परिवार है और देश में सत्ता की कमान उसी के हाथ में है।
राजकाज और नीति निर्धारण में संसदीय प्रणाली और लोकतांत्रिक संस्थानों को हाशिये पर रखकर कारपोरेट हितों के मुताबिक ग्लोबल हिंदुत्व का एजंडा संघ परिवार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और मुफ्त में नस्ली रंगभेद के नये मसीहा डान डोनाल्ड अब उनका विष्णु अवतार है।
ट्रंप कार्ड से लैस हिंदुत्व की सरकार अर्थव्वस्था को उत्पादन प्रणाली से उखाड़कर कारपोरेट शेयर बाजार में तब्दील करके एकाधिकार आवारा पूंजी के वर्चस्व को स्थापित करने के मकसद से मुक्त बाजार के विस्तार को वित्तीय प्रबंधन में तब्दील कर चुका है और इसी सिलसिले में उसने नोटबंदी का रामवाण का इस्तेमाल करके यूपी दखल के जरिये राज्यसभा में बहुमत के लिए फिर राममंदिर का जाप करने लगा है।
नोटबंदी के बाद रेलवे को समाहित करके जो पहला बजट निकला है संघ परिवार के राम तुनीर से उसका कुल मकसद टैक्स सुधार है ताकि आम जनता पर सारे टैक्स और कर्ज को बोझ लाद दिया जाये।
डिजिटल कैसलैस सोसाइटी का मकसद भी खेती और व्यापार में लगे बहसंख्य बहुजन सर्वहारा का नरसंहार है।
रेलवे का निजीकरण खास एजंडा है प्राकृतिक संसाधनों और बुनियादी सेवाओं की निलामी के साथ साथ ,रक्षा,आंतरिक सुरक्षा,परमाणू ऊर्जा, बैंकिंग, बंदरगाह, संचार, ऊर्जा, बिजली पानी सिंचाई,निर्माण विनिर्माण,खनन कोयला इस्पात, परिवहन, उड्डयन,तेल गैस,शिक्षा,चिकित्सा,औषधि,उर्वरक,रसायन,खुदरा कारोबार समेत तमाम सेक्टरों में अंधाधुंध विनिवेश और निजीकरण संघी रामराज्य का वसंत है,पर्यावरण ,जलवायु और मौसम है।
वायदा था बुलेट ट्रेनों का तो पटरियों पर निजी ट्रेनें दौड़ाने की तैयारी है और यात्री सुरक्षा के बजाय तमाम यात्री सेवाएं कारपोरेट हवाले है।
रेलकर्मचारियों पर छंटनी की तलवार है।
रेलवे पर संसद में किसी किस्म की विशेष चर्चा रोकने के लिए अबाध निजीकरण के मकसद से भारतीय रेल कारपोरेट हवाले पर पर्दा डालने के लिए रेल बजट बजट में समाहित है और नई पुरानी परियोजनाओं का कोई ब्यौरा नहीं है।
आर्थिक सुधारों को राजनीतिक सुधारों की चाशनी में डालकर लोक लुभावन बनाने का फंडा डिजिटल कैशलैस है तो नोटबंदी की वजह से सुरसामुखी हो रहे बजट घाटा,वित्तीय घाटा मुद्रास्फीति और मंहगाई,गिरती विकास दर, तबाह खेत खलिहान जनपद,तहस नहस उत्पादन प्राणाली,तबाह खेती,कारोबार और काम धंधे, बेरोजगारी, भुखमरी और मंदी के सर्वव्यापी संकट से निबटकर सुधारों के नरसंहारी कार्यक्रम को तेज करने का हिंदुत्व नस्ली एजंडा यह बजट है।
गांधी ने पूंजीवादी विकास को पागल दौड़ कहा था तो अंबेडकर ने बहुजनों को सामाजिक बदलाव और जाति उन्मूलन के एजंडे के साथ दो शत्रुओं कसे लड़ने का आह्वाण किया था-पूंजीवाद के खिलाफ और ब्राह्मणवाद के खिलाफ।
आजादी के सत्तर साल बाद सारा का सारा तंत्र ब्राह्मणवादी है और रामराज्य के जरिये तथागत गौतम बुद्ध की क्रांति में खत्म ब्राह्मणवाद का पुनरूत्थान सर्वव्यापी है और पूरा देश अब आर्यावर्त है तो अमेरिका को भी आर्यावर्त बनाने की तमन्ना है।
1991 से भारतवर्ष लगातार अमेरिका बन रहा है।डिजिटल कैशलैस आधार अनिवार्य भारत अमेरिका बनते बनते पूरी तरह अमेरिकी उपनिवेश में तब्दील है।
हिंदुत्व एजंडा की पूंजी मुसलमानों के खिलाफ घृणा और वैमनस्य का अंध राष्ट्रवाद है तो सोना पर सुहागा यह है कि डान डोनाल्ड ने मुसलमानों और काली दुनिया के खिलाफ तीसरे विश्वयुद्ध का ऐलान कर दिया है।
इस तीसरे विश्वयुद्ध में भारत अब अमेरिका और इजराइल का पार्टनर है तो संघ परिवार की समरसता का नया पंडा है कि अगला राष्ट्रपति ब्राह्मण होगा और उपराष्ट्रपति दलित।वर्ग समझौते का यह नायाब उपक्रम है तो अर्थव्यवस्था के साथ साथ रिजर्व बैंक की स्वायत्तता का सत्यानाश करने के बाद शगूफा है कि नये नोट पर गांधी के बजाय अंबेडकर होंगे।
बहुत ताज्जुब नहीं है कि हिंदू धर्मस्थलों पर बहुत जल्द तथागत गौतम बुद्ध और अंबेडकर के साथ डान डोनाल्ड की मूर्ति की भी प्राण प्रतिष्ठा हो जाये और तीनों एकमुश्त भगवान विष्णु के अवतार घोषित कर दिये जाये।नया इतिहास जैसे रचा जा रहा है,वैसे ही नये धर्म ग्रंथ रचने में कोई बाधा नहीं है।
बहुसंख्य का अंधा राष्ट्रवाद लोकतंत्र और संविधान,कानून के राज,नागरिकत और मानवाधिकार,स्त्री बच्चों युवाजनों के साथ साथ वंचित वर्ग के लिए नरसंहार के वास्ते ब्रह्मास्त्र है।इस ब्रह्मास्त्र को कानूनी जामा संसद में पेश नया बजट है।
सन 1991 से बजटअगर पोटाशियम सायोनाइड का तेज जहर रहा है तो अब यह विशुध हिरोशिमा नागासाकी बहुराष्ट्रीय कारपोरेट उपक्रम है।
जनादेश आत्मघाती भी होता है।
विभाजित अमेरिका इसका ताजा नजीर है जो आधी से ज्यादा जनता को मंजूर नहीं है। अमेरिकी संसदीय परंपरा के मुताबिक राष्ट्रपति के विशेषाधिकारों के वावजूद राजकाज के हर फैसले और समझौते को संसद में कानून बनाकर लागू करने की परंपरा है,उसे तिलांजलि देकर व्हाइट हाउस में चरण धरते ही डान डोनाल्ड एक के बाद एक एक्जीक्युटिवआर्डर के जरिये संसद को बाईपास करके अपने नस्ली कुक्लाक्स श्वेत तांडव से दुनिया में सुनामियां पैदा कर रहे हैं।
गौरतलब है कि हिटलर और मुसोलिनी भी लोकप्रिय जनादेश से पैदा हुए थे।
भारत में वहीं हो रहा है जो दोनों विश्वयुद्धों के दरम्यान जर्मनी और इटली में हुआ था या जो डान डोनाल्ड का राजकाज है।अब हिटलर,मुसोलिनी और डान डोनाल्ड हमारे अपने हुक्मरान हैं और हम उनके गुलाम प्रजाजन हैं।
भू डोल , ज़लज़ला , भूकम्प , अर्थ क्वेक
पहाड़ों में भूकंप से पर्यावरण के बारुदी सुरंगों में धमाका।राजधानियों की सेहत पर कोई असर नहीं।आपदा प्रबंधन सुसुप्त है।
पलाश विश्वास
राष्ट्रीय भूकंप ब्यूरो के अनुसार भूकंप की तीव्रता 5.8 थी। भूकंप का केंद्र उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के पीपलकोटि को बताया जा रहा है। भूकंप जमीन के 33 किलोमीटर नीचे आया था और 7-10 सेकेंड तक झटके महसूस किए गए. देहरादून और हरिद्वार में अपेक्षाकृत ज्यादा तेज झटके महसूस हुए।
फिलहाल उत्तराखंड में लोग भूकंप के बाद आने वाले झटकों के खौफ में घर नहीं जा रहे। रुद्रप्रयाग डीएम रंजना के अनुसार, आपदा केंद्र को पूरी तरह से एक्टिव कर दिया गया है। सभी पुलिस थानों और तहसील से जानकारी जुटाई जा रही है। अभी तक कहीं से भी जनहानि की कोई सूचना नहीं है। वहीं अभी तक यह भी साफ नहीं हो सका है कि भूकंप का केंद्र रुद्रप्रयाग है या फिर पीपलकोटी। पीपलकोटी चमोली जिले में आता है और यह रुद्रप्रयाग को पड़ोसी जिला है। डीएम ने बताया कि भूकंप के झटकेमहसूस करने के बाद हम और सारा स्टाफ क्वार्टरों से बाहर आ गया। भूकंप के तेज झटके दो बार महसूस किए गए।
देहरादून, चमोली, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, केदारनाथ और ऋषिकेश समेत उत्तराखंड के कई शहर भूकंप के तेज झटकों से कांप उठे। झटके इतने तेज थे कि लोग नींद से जाग गए। घबराकर लोग निकलकर बाहर आ गए।
उत्तराखंड टुडे के मुताबिक,रुद्रप्रयाग रहा भूकंप रहा केंद्र, हल्द्वानी-देहरादून के लोगों ने बताई आप बीती । NDRF टीमें हाई अलर्ट पर
#Earthquake#Rudraprayag#Haldwani#Uttarakhand Earthquakes Today
राजीव नयन बहुगुआ का शब्द चित्र सटीक हैः
भू डोल , ज़लज़ला , भूकम्प , अर्थ क्वेक
भूकम्प और भालू अक्सर पुनः लौट कर आते हैं , और ज़्यादा शिद्दत से धावा बोलते हैं । हड़बड़ाना मत । धैर्य रखना । दिवार से तुरन्त अलग हट कर खड़े हों । दरवाज़े की कुण्डी मत लगाना । सीढ़ियों से बाहर भागना , लिफ्ट से नहीं ।
दिनेश ल्वेशाली ने चेतावनी दी हैः
मौसम विभाग,,,
ब्रेकिंग न्यूज़ रात 12.30 पर फिर आ सकते है भूकम्प के झटके सतर्क रहे ।
ज्यादा से ज्यादा लोगो को शेयर करे।
हम रात को खाना खा रहे थे।टीक साढ़े दस बजे थे।दस मिनट के भीतर बसंतीपुर से भाई पद्दोलोचन का फोन आ गया कि उत्तराखंड में भूकंप आ गया है और तराई में मौसम बेहद खराब है।वह हमेशा की तरह अपनी भाभी को खबर दे रहा था।घर में बहूू उम्मीद से हैं तो हम किसी खुशखबरी का इंतजार कर रहे थे।इसके बदले हमें उत्तराखंड और पूरे उत्तर भारत में भूकंप की खबर मिली।भंकप इलाका होने के बावजूद पहाड़ों में आपदा प्रबंधन का नजारा यह है कि मौसम विभाग भी टीवी चैनलों को ठीक से बता नहीं पा रहा है कि भूकंप का एपीसेंटर ठीक कहां है।रुद्रप्रयाग और पिथौरागढ़ दोनों को एपीसेंटर बताया जा रहा है।किसी चैनल में भूकंप का केंद्र सतह से एक किमी नीचे तो किसी दूसरे चैनल में जमीन के अंदर तीस किमी नीचे बताया जा रहा है।पहले रेक्टर स्केल पर 5.3 का भूकंप बताया गया तो बाद में यह 5.8 में बदल गया।
संस्थागत विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं कि इस पैमाने पर भूकंप से जानमाल के नुकसान का अंदाजा कम है।भूस्खलनों से पहाड़ में जितना नुकसान हो जाता है,भारी वर्षा से जो नुकसान होता है,बाढ़ से जो तबाही मचती है,उसके मद्देनजर उत्तराखंड के पहाड़ों के बारुदी सुरंगों के फटने से गावों और घाटियों का क्या बनना है,हाल के केदार जलसुनामी और नेपाल के महाभूकंप के अनुभव और बचाव राहत अभियान,हवा हवाई मीडिया कवरेज से उसका अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है।पहाड़ का एक एक इंच जमीन बेदखल है तो भारी पैमाने पर रोजगार की तलाश में पलायन है।जनादेश बनाने से पहले पहाड़ की सेहत पर टंगा पर्दा गिर गया है लेकिन मजहबी सियासत के कारिंदों को इसकी खास परवाह नहीं है और उत्तराखंड केसरिया है।
पद्दो ने बताया तराई में आंधी पानी से मौसम बेहद खराब है और तेज भूकंप के झटकों से अफरातफरी मची है।उसने बताया कि भतीजा टुटुल अभी घर लौटा नहीं है लेकिन उसने घर पर फोन से खबर दी है कि चंडीपुर और दिनेशपुर में बिजली गिरने से दो लोगों की मौत हो गयी है।चंडीपुर में पिताजी के मित्र संन्यासी मंडल के बेटे का निधन बिजली गिरने से हो गयी है।संन्यासी मंडल इमरजेंसी के खिलाप हमारे साथ थे और 1977 के मध्यावधि चुनाव के दौरान उनने हमारी बगावत का समर्तन पिताजी से अपनी मित्रता दांव पर लगाकर किया था।
अभी टीवी और इंटरनेट पर भूकंप से जानमाल के नुकसान की कोई खबर नहीं है।जाहिर है कि तराई में रुद्रपुर और पंतनगर इलाके में इस आपदा से मारे जाने वाले दोनों लोगों की खबर भी अभी रिपोर्ट नहीं हुई है।
टीवी के समाचारों में सलन इंडिया टुडे पर अबभी पिथौरागढ़ के पीपल कोट को भूकंप का एपीसेंटर बताया जा रहा है,जबकि हिंदी चैनलों ने पहले एपीसेंटर पिथौरागढ़ को बताने के बाद में रुद्रप्रयाग को भूकंप का केंद्र बताया है।
गौरतलब है कि केदार आपदा के वक्तभी पिथौरागढ़ और नेपाल तक में तबाही मची थी।गांव के गांव और घाटियों का नामोनिशां मिट गया था ।लेकिन तब निकटवर्ती टिहरी जिले की तबाही की खबर भी बहुत बाद में लगी थी।नेपाल के महाभूकंप से हाल मं पूरा उत्तराखंड प्रभावित हो गया था।राजधानी को शायद यह खबर भी नहीं है।
भूकंप से पहाड़ का जो बी हाल हो राजधानियों की सेहत पर असर नहीं होना है और न मलाईदार चमड़ी पर कोई आंच आनी है।जलवायू,मौसम और पर्यावरण को ठिकाने लगाने का मुक्तबाजार का स्वर्ग उत्तराखंड है जहां चार धाम की यात्रा के लिए सपर एक्सप्रेसवे अभी बनना है।
भूकंप केंद्र के नाभिनाल से जुड़ा टिहरी जलाशय का आपदा परमाणु बम की आवाज किसी को सुनायी भी नहीं पड़ती है।अंध विशेषज्ञों को खबर भी नहीं है कि ग्लेशियर कहां कहां पिघल रहे हैं और कैसे गंगोत्री रेगिस्तान में तब्दील है।बाकी चुनाव का मौसम है।राजनीति के अलावा पहाडो़ं की सेहत की फिक्र बहुत आसान भी नहीं है।
बहरहाल पर्यटन और धर्म के लिहाज से केदारघाटी की आपदा फोकस में थी।जबकि पिथौरागढ़ पहाड़ों में सबसे पिछड़े इलाकों में है।रुद्र प्रयाग के इलाके भी बेहद पिछड़े है और अभी पर्यटन का मौसम नहीं होने से भूकंप से होने वाली तबाही के शिकार ज्यादातर स्थानीय लोगों के होने का अंदेशा है।
1992 के अक्तूबर में जिस रात मैं बरेली से कोलकाता की यात्रा पर था जनसत्ता में नौकरी ज्वाइन करने के लिए,उस रात भी गढ़वाल के उत्तरकाशी में भारी भूकंप आया था।उत्तरकाशी,टिहरी और भागीरथी,अलकनंदा से लेकर टौंस और यमुना घाटियों में हुई भारी तबाही का ब्यौरा तब भी नहीं मिला था।
रुद्रप्रयाग और पिथौरागड़ में बैठे अफसरान के लिए दूर दराज के गांवों और घाटियों के बारे में आधी रात के बारे में जानकारी लेना बेहद मुश्किल है।
अफसरान टीवी वालों को वे जान माल के नुकसान की फिलहाल कोई खबर नहीं है,इतना ही बता पा रहे हैं।जाहिर है कि मीडियावाले मौके पर अभी पहुंचे नहीं है।उनका हवाई सर्वेक्षण कल ही शुरु हो पायेगा।राहत और बचाव अभियान कब तक शुरु हो पायेगा,कहना फिलहाल मुश्किल है।
फिलहाल खबरों का लब्बोलुआब यही है कि दिल्ली एनसीआर में देर शाम भूकंप के झटके महसूस किए गए। देहरादून से भी खबर है कि भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए हैं। भूकंप का केंद्र उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में बताया गया है। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.8 मापी गई है। रात 10.35 मिनट पर झटके महसूस किए गए। भूकंप के झटके काफी देर तक महसूस किए गए. देहरादून में झटकों के बाद लोग सड़कों पर निकल आए. देहरादून से मिली खबरों के मुताबिक लोग कुमाऊं, गढ़वाल की रेंज में झटके महसूस किए गए। पश्चिमी यूपी में भी झटके महसूस किए गए. पंजाब में झटके महसूस किए जाने की खबर है।
भूकंप के झटकेपंजाब, हरियाणा, उनकी संयुक्त राजधानी चंडीगढ में भी महसूस किये गये, जिसके बाद कई लोग अपने घरों से बाहर निकल आए।फिलहाल, जान माल को कोई नुकसान पहुंचने की खबर नहीं है। खबरों के मुताबिक समूचे हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भूकंप महसूस किया गया। उंची इमारतों में रहने वाले लोग नीचे की ओर दौड़ पड़े। गुरूग्राम, फरीदाबाद, रोहतक, अंबाला, पंचकुला, सोनीपत, पानीपत और करनाल सहित हरियाणा में विभिन्न स्थानों पर भूकंप के झटकेमहसूस किए गए। पंजाब में मोहाली, पटियाला, रोपड़, लुधियाना और जलंधर सहित कई स्थानों पर भी भूकंप के झटकेमहसूस किए गए।
टिहरी की जाजल घाटी से अरण्य रंजन ने लिखा हैः
अभी अभी भूकंप आया है. काफी तेज़ झटका था और आवाज भी काफी तेज़ हुयी.
Just came sharp blow. It was very strong.
साहित्यकार उदय प्रकाश ने लिखा हैः
अभी कुछ ही देर पहले भूकंप के झटके हमारे वैशाली के घर पर आये। सिर्फ मैंने महसूस किया और कहा कि भूकंप है।
किसी ने मेरी बात नहीं मानी।
यही तो समस्या है !
अब जब टीवी पर ख़बर चल रही है, तो सब मान रहे हैं।
हम उस समय में हैं जब मानवीय सूचनाओं को इलेक्ट्रॉनिक सूचनाओं ने अपदस्थ कर दिया है।
(गंभीर बात है। हल्की भले लगे।)
Worldwide earthquake 6-feb- 2017
35 minutes ago 5.6 magnitude, 14 km depth
Pīpalkoti, Uttarakhand, India
38 minutes ago 2.0 magnitude, 29 km depth
Glendora, California, United States
39 minutes ago 2.1 magnitude, 0 km depth
Angwin, California, United States
about an hour ago 2.0 magnitude, 0 km depth
Y, Alaska, United States
about an hour ago 2.4 magnitude, 1 km depth
Healdsburg, California, United States
about 2 hours ago 1.5 magnitude, 12 km depth
Friday Harbor, Washington, United States
about 2 hours ago 5.0 magnitude, 33 km depth
Opotiki, Bay of Plenty, New Zealand
about 2 hours ago 1.5 magnitude, 0 km depth
Southern Yukon Territory, Canada
about 2 hours ago 2.3 magnitude, 0 km depth
Sutton-Alpine, Alaska, United States
about 2 hours ago 1.7 magnitude, 7 km depth
Muscoy, California, United States
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भू डोल , ज़लज़ला , भूकम्प , अर्थ क्वेक
पहाड़ों में भूकंप से पर्यावरण के बारुदी सुरंगों में धमाका।राजधानियों की सेहत पर कोई असर नहीं।आपदा प्रबंधन सुशुप्त है।
पलाश विश्वास
राष्ट्रीय भूकंप ब्यूरो के अनुसार भूकंप की तीव्रता 5.8 थी। भूकंप का केंद्र उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग के पीपलकोटि को बताया जा रहा है। भूकंप जमीन के 33 किलोमीटर नीचे आया था और 7-10 सेकेंड तक झटके महसूस किए गए. देहरादून और हरिद्वार में अपेक्षाकृत ज्यादा तेज झटके महसूस हुए।
फिलहाल उत्तराखंड में लोग भूकंप के बाद आने वाले झटकों के खौफ में घर नहीं जा रहे। रुद्रप्रयाग डीएम रंजना के अनुसार, आपदा केंद्र को पूरी तरह से एक्टिव कर दिया गया है। सभी पुलिस थानों और तहसील से जानकारी जुटाई जा रही है। अभी तक कहीं से भी जनहानि की कोई सूचना नहीं है। वहीं अभी तक यह भी साफ नहीं हो सका है कि भूकंप का केंद्र रुद्रप्रयाग है या फिर पीपलकोटी। पीपलकोटी चमोली जिले में आता है और यह रुद्रप्रयाग को पड़ोसी जिला है। डीएम ने बताया कि भूकंप के झटकेमहसूस करने के बाद हम और सारा स्टाफ क्वार्टरों से बाहर आ गया। भूकंप के तेज झटके दो बार महसूस किए गए।
देहरादून, चमोली, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, केदारनाथ और ऋषिकेश समेत उत्तराखंड के कई शहर भूकंप के तेज झटकों से कांप उठे। झटके इतने तेज थे कि लोग नींद से जाग गए। घबराकर लोग निकलकर बाहर आ गए।
उत्तराखंड टुडे के मुताबिक,रुद्रप्रयाग रहा भूकंप रहा केंद्र, हल्द्वानी-देहरादून के लोगों ने बताई आप बीती । NDRF टीमें हाई अलर्ट पर
#Earthquake#Rudraprayag#Haldwani#Uttarakhand Earthquakes Today
राजीव नयन बहुगुआ का शब्द चित्र सटीक हैः
भू डोल , ज़लज़ला , भूकम्प , अर्थ क्वेक
भूकम्प और भालू अक्सर पुनः लौट कर आते हैं , और ज़्यादा शिद्दत से धावा बोलते हैं । हड़बड़ाना मत । धैर्य रखना । दिवार से तुरन्त अलग हट कर खड़े हों । दरवाज़े की कुण्डी मत लगाना । सीढ़ियों से बाहर भागना , लिफ्ट से नहीं ।
दिनेश ल्वेशाली ने चेतावनी दी हैः
मौसम विभाग,,,
ब्रेकिंग न्यूज़ रात 12.30 पर फिर आ सकते है भूकम्प के झटके सतर्क रहे ।
ज्यादा से ज्यादा लोगो को शेयर करे।
हम रात को खाना खा रहे थे।टीक साढ़े दस बजे थे।दस मिनट के भीतर बसंतीपुर से भाई पद्दोलोचन का फोन आ गया कि उत्तराखंड में भूकंप आ गया है और तराई में मौसम बेहद खराब है।वह हमेशा की तरह अपनी भाभी को खबर दे रहा था।घर में बहूू उम्मीद से हैं तो हम किसी खुशखबरी का इंतजार कर रहे थे।इसके बदले हमें उत्तराखंड और पूरे उत्तर भारत में भूकंप की खबर मिली।भूकंप इलाका होने के बावजूद पहाड़ों में आपदा प्रबंधन का नजारा यह है कि मौसम विभाग भी टीवी चैनलों को ठीक से बता नहीं पा रहा है कि भूकंप का एपीसेंटर ठीक कहां है।रुद्रप्रयाग और पिथौरागढ़ दोनों को एपीसेंटर बताया जा रहा है।किसी चैनल में भूकंप का केंद्र सतह से एक किमी नीचे तो किसी दूसरे चैनल में जमीन के अंदर तीस किमी नीचे बताया जा रहा है।पहले रेक्टर स्केल पर 5.3 का भूकंप बताया गया तो बाद में यह 5.8 में बदल गया।
संस्थागत विशेषज्ञ दावा कर रहे हैं कि इस पैमाने पर भूकंप से जानमाल के नुकसान का अंदेशा कम है।भूस्खलनों से पहाड़ में जितना नुकसान हो जाता है,भारी वर्षा से जो नुकसान होता है,बाढ़ से जो तबाही मचती है,उसके मद्देनजर उत्तराखंड के पहाड़ों के बारुदी सुरंगों के फटने से गावों और घाटियों का क्या बनना है,हाल के केदार जलसुनामी और नेपाल के महाभूकंप के अनुभव और बचाव राहत अभियान,हवा हवाई मीडिया कवरेज से उसका अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है।पहाड़ का एक एक इंच जमीन बेदखल है तो भारी पैमाने पर रोजगार की तलाश में पलायन है।जनादेश बनाने से पहले पहाड़ की सेहत पर टंगा पर्दा गिर गया है लेकिन मजहबी सियासत के कारिंदों को इसकी खास परवाह नहीं है और उत्तराखंड केसरिया है।
पद्दो ने बताया तराई में आंधी पानी से मौसम बेहद खराब है और तेज भूकंप के झटकों से अफरातफरी मची है।उसने बताया कि भतीजा टुटुल अभी घर लौटा नहीं है लेकिन उसने घर पर फोन से खबर दी है कि चंडीपुर और दिनेशपुर में बिजली गिरने से दो लोगों की मौत हो गयी है।चंडीपुर में पिताजी के मित्र संन्यासी मंडल के बेटे का निधन बिजली गिरने से हो गयी है।संन्यासी मंडल इमरजेंसी के खिलाफ हमारे साथ थे और 1977 के मध्यावधि चुनाव के दौरान उनने हमारी बगावत का समर्थन पिताजी से अपनी मित्रता दांव पर लगाकर किया था।
अभी टीवी और इंटरनेट पर भूकंप से जानमाल के नुकसान की कोई खबर नहीं है।जाहिर है कि तराई में रुद्रपुर और पंतनगर इलाके में इस आपदा से मारे जाने वाले दोनों लोगों की खबर भी अभी रिपोर्ट नहीं हुई है।
टीवी के समाचारों में सलन इंडिया टुडे पर अबभी पिथौरागढ़ के पीपल कोट को भूकंप का एपीसेंटर बताया जा रहा है,जबकि हिंदी चैनलों ने पहले एपीसेंटर पिथौरागढ़ को बताने के बाद में रुद्रप्रयाग को भूकंप का केंद्र बताया है।
गौरतलब है कि केदार आपदा के वक्तभी पिथौरागढ़ और नेपाल तक में तबाही मची थी।गांव के गांव और घाटियों का नामोनिशां मिट गया था ।लेकिन तब निकटवर्ती टिहरी जिले की तबाही की खबर भी बहुत बाद में लगी थी।नेपाल के महाभूकंप से हाल मं पूरा उत्तराखंड प्रभावित हो गया था।राजधानी को शायद यह खबर भी नहीं है।
भूकंप से पहाड़ का जो बी हाल हो राजधानियों की सेहत पर असर नहीं होना है और न मलाईदार चमड़ी पर कोई आंच आनी है।जलवायू,मौसम और पर्यावरण को ठिकाने लगाने का मुक्तबाजार का स्वर्ग उत्तराखंड है जहां चार धाम की यात्रा के लिए सपर एक्सप्रेसवे अभी बनना है।
भूकंप केंद्र के नाभिनाल से जुड़ा टिहरी जलाशय का आपदा परमाणु बम की आवाज किसी को सुनायी भी नहीं पड़ती है।अंध विशेषज्ञों को खबर भी नहीं है कि ग्लेशियर कहां कहां पिघल रहे हैं और कैसे गंगोत्री रेगिस्तान में तब्दील है।बाकी चुनाव का मौसम है।राजनीति के अलावा पहाडो़ं की सेहत की फिक्र बहुत आसान भी नहीं है।
बहरहाल पर्यटन और धर्म के लिहाज से केदारघाटी की आपदा फोकस में थी।जबकि पिथौरागढ़ पहाड़ों में सबसे पिछड़े इलाकों में है।रुद्र प्रयाग के इलाके भी बेहद पिछड़े है और अभी पर्यटन का मौसम नहीं होने से भूकंप से होने वाली तबाही के शिकार ज्यादातर स्थानीय लोगों के होने का अंदेशा है।
1991 के अक्तूबर में जिस रात मैं बरेली से कोलकाता की यात्रा पर था जनसत्ता में नौकरी ज्वाइन करने के लिए,उस रात भी गढ़वाल के उत्तरकाशी में भारी भूकंप आया था।उत्तरकाशी,टिहरी और भागीरथी,अलकनंदा से लेकर टौंस और यमुना घाटियों में हुई भारी तबाही का ब्यौरा तब भी नहीं मिला था।
रुद्रप्रयाग और पिथौरागड़ में बैठे अफसरान के लिए दूर दराज के गांवों और घाटियों के बारे में आधी रात के बारे में जानकारी लेना बेहद मुश्किल है।
अफसरान टीवी वालों को वे जान माल के नुकसान की फिलहाल कोई खबर नहीं है,इतना ही बता पा रहे हैं।जाहिर है कि मीडियावाले मौके पर अभी पहुंचे नहीं है।उनका हवाई सर्वेक्षण कल ही शुरु हो पायेगा।राहत और बचाव अभियान कब तक शुरु हो पायेगा,कहना फिलहाल मुश्किल है।
फिलहाल खबरों का लब्बोलुआब यही है कि दिल्ली एनसीआर में देर शाम भूकंप के झटके महसूस किए गए। देहरादून से भी खबर है कि भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए हैं। भूकंप का केंद्र उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में बताया गया है। रिक्टर स्केल पर भूकंप की तीव्रता 5.8 मापी गई है। रात 10.35 मिनट पर झटके महसूस किए गए। भूकंप के झटके काफी देर तक महसूस किए गए. देहरादून में झटकों के बाद लोग सड़कों पर निकल आए. देहरादून से मिली खबरों के मुताबिक लोग कुमाऊं, गढ़वाल की रेंज में झटके महसूस किए गए। पश्चिमी यूपी में भी झटके महसूस किए गए. पंजाब में झटके महसूस किए जाने की खबर है।
भूकंप के झटकेपंजाब, हरियाणा, उनकी संयुक्त राजधानी चंडीगढ में भी महसूस किये गये, जिसके बाद कई लोग अपने घरों से बाहर निकल आए।फिलहाल, जान माल को कोई नुकसान पहुंचने की खबर नहीं है। खबरों के मुताबिक समूचे हरियाणा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भूकंप महसूस किया गया। उंची इमारतों में रहने वाले लोग नीचे की ओर दौड़ पड़े। गुरूग्राम, फरीदाबाद, रोहतक, अंबाला, पंचकुला, सोनीपत, पानीपत और करनाल सहित हरियाणा में विभिन्न स्थानों पर भूकंप के झटकेमहसूस किए गए। पंजाब में मोहाली, पटियाला, रोपड़, लुधियाना और जलंधर सहित कई स्थानों पर भी भूकंप के झटकेमहसूस किए गए।
टिहरी की जाजल घाटी से अरण्य रंजन ने लिखा हैः
अभी अभी भूकंप आया है. काफी तेज़ झटका था और आवाज भी काफी तेज़ हुयी.
Just came sharp blow. It was very strong.
साहित्यकार उदय प्रकाश ने लिखा हैः
अभी कुछ ही देर पहले भूकंप के झटके हमारे वैशाली के घर पर आये। सिर्फ मैंने महसूस किया और कहा कि भूकंप है।
किसी ने मेरी बात नहीं मानी।
यही तो समस्या है !
अब जब टीवी पर ख़बर चल रही है, तो सब मान रहे हैं।
हम उस समय में हैं जब मानवीय सूचनाओं को इलेक्ट्रॉनिक सूचनाओं ने अपदस्थ कर दिया है।
(गंभीर बात है। हल्की भले लगे।)
Worldwide earthquake 6-feb- 2017
35 minutes ago 5.6 magnitude, 14 km depth
Pīpalkoti, Uttarakhand, India
38 minutes ago 2.0 magnitude, 29 km depth
Glendora, California, United States
39 minutes ago 2.1 magnitude, 0 km depth
Angwin, California, United States
about an hour ago 2.0 magnitude, 0 km depth
Y, Alaska, United States
about an hour ago 2.4 magnitude, 1 km depth
Healdsburg, California, United States
about 2 hours ago 1.5 magnitude, 12 km depth
Friday Harbor, Washington, United States
about 2 hours ago 5.0 magnitude, 33 km depth
Opotiki, Bay of Plenty, New Zealand
about 2 hours ago 1.5 magnitude, 0 km depth
Southern Yukon Territory, Canada
about 2 hours ago 2.3 magnitude, 0 km depth
Sutton-Alpine, Alaska, United States
about 2 hours ago 1.7 magnitude, 7 km depth
Muscoy, California, United States
--
Occupation | (a) | (b) | (c) | (6) |
Agriculture | 25,000,000 | 821,000 (plantations) | — | — |
Industry | 12,147,000 | 294,000 (mining) | 1 | 1,500 |
773,000 (textiles) | 18 | 34,000 | ||
169,000 (metal) | 8 | 11,000 | ||
82,000 (glass, &c.) | 1 | — | ||
(printing) | 5 | 6,000 1,000 15,000 | ||
100,000 engineering | 5 | — | ||
(general) | 20 | — | ||
(wood, leather, chemicals | ||||
332,000 | food, clothing, building, gas, furniture, &c.) | — | ||
Transport | 1,500,000 | 155,000 (construction) | ||
800,000 (railways, | 25 | 50,000 | ||
shipping, | 6 | 20,000 | ||
100,000 docks &c., | 6 | 3,000 | ||
tramways) | 6 | 2,000 | ||
Commerce | 4,000,000 | 100,000 | 6 | 5,000 |
Domestic | 2,500,000 | 500,000 | 1 | — |
Public Administration | 4,000,000 | 500,000 | 60 | 50,000 |
Totals | 49,147,000 | 4,727,000 | 164 | 196,500 |
Grade | No. Employed | No. in Union | Wage rates (Rs. per mth.) |
Minor officials | 120 | 105 | 125, 175, 225 (3 grades) |
Senior clerks | 200 | 175 | 85-110 |
Junior clerks | 350 | 300 | 50-85 |
Menial staff | 900 | 550-600 | 18-30 |
Grade | No. Employed | No. in Union | Wage rates (Rs. per mth.) |
Foremen | 25 | — | 260- |
Chargemen | 250 | 10 | 86-140 |
Mistries | 100 | 25 | 50-85 |
Workmen | 4,000 | 1,500 | 50-86 |
Smiths | 700 | 500 | 50-86 |
Assistants | 2,000 | 500 | 30-40 |
Apprentices | 100 | 50 | 160-32 |
Coolies | 1,000 | 100 | 23-29 |
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" | Besides acting to raise wages and improve working conditions, the federations espoused certain social reforms, such as the institution of free public education, the abolition of imprisonment for debt, and the adoption of universal manhood suffrage. Perhaps the most important effect of these early unions was their introduction of political action. | " |
आरएसएस का भयंकर खेल,असम में हालात पंजाब और गुजरात से भी भयंकर!
हिटलर के यहूदी यातनागृह की तर्ज पर असम के विभाजनपीड़ित हिंदुओं के लिए डिटेंशन कैंप,15 हजार हिंदुओं को असम छोड़ने का अल्टीमेटम!
पलाश विश्वास
पूर्वी भारत के साथ पूर्वोत्तर भारत हिंदुत्व का नया वधस्थल बन रहा है।असम गुजरात के बाद हिंदुत्व की घोषित दूसरे चरण के भगवाकरण भूकंप का एपीसेंटर है,जो अपने तेज झटकों से बाकी देश में तबाही मचाने की तैयारी में हैं।
शरणार्थी समस्या दुनियाभर में अब सत्ता का सबसे खतरनाक खेल बन गया है।जाति,धर्म,रंग नस्ल के विविध आयाम के साथ उग्र दक्षिणपंथी फासिस्ट राजकाज और मजहबी सियासत से पूरी दुनिया का नक्शा शरणार्थी सैलाब से सरोबार है तो आइलान की लाश मृत मनुष्यता का ज्वलंत प्रतीक है और नस्ली घृणा तेलकुँओं की आग है।
तीसरा विश्वयुद्ध शुरु है और राष्ट्रों के भीतर बाहर बहुत कुछ टूट बिखर रहा है सोवियत संघ की तरह।ट्रंप की ताजपोशी के सात ग्लोबल हिंदुत्व की जायनी विश्व व्यवस्था में सोवियत संघ का इतिहास हिंदुत्व के नाम नस्ली गृहयुद्ध की उल्फाई आग भड़काकर वैदिकी हिंसा की तर्ज पर धर्म कर्म राजकाज के नाम राम के नाम दोहराने का बेहद राष्ट्रविरोधी खेल,मनुष्यता और प्रकृति के खिलाप खेल रहा है संघ परिवार और दांव पर लगा दी है एकबार फिर विभाजनपीड़ितों की जान माल जिंदगी और नागरिकता।
हमारे लिए यह बहुत मुश्किल समय है।बंगाल से बाहर देश भर में और सीमा के आर पार विभाजनपीड़ितों की दुनिया में हमारी जिंदगी गूंथी हुई है।हम अपनी ही जनता,अपने ही स्वजनों की व्यथा कथा को नजरअंदाज करके राजनीतिक विशुद्धता ,मत मतांतर और विचाधारा के बहाने शरणार्थी आंदोलन से अलग हो नहीं सकते।
अब तक चूंकि शरणार्थी और उनके नेता उम्मीद लगाये बैठे थे कि नागरिकता कानून बदलकर बंगाली हिंदू विभाजनपीड़ितों की नागरिकता छीनकर उन्हें विदेशी घुसपैठिया करार देकर खदेड़ने का अभियान चलाने वाली भाजपा फिर उनकी नागरिकता बहाल करेगी,हमने अपनी राय सार्वजनिक करके उनके आंदोलन की दिशा को प्रभावित करने से बचना चाहा है और नेतृत्व से मतभेद के बावजूद अपना मत सार्वजनिक नहीं किया है।लेकिन जब भी शरणार्थी आंदोलन के मंच से बोलने का मौका लगा है हमने हर बार उन्हें खुले शब्दों में शंग परिवार के खतरनाक खेल के बारे में चे चेतावनी जरुर दी है।
हमारे लोग असहाय हैं और सत्ता पर भरोसा का विकल्प उनके पास कुछ भी नहीं है।संघ परिवार पर उनके भरोसे या भारतीय बहुसंख्य जनता की हिंदुत्व में परंपरागत अटूट आस्था या लोक संस्कृति की वजह से हिंदुत्व के एजंडे के तहत इस्तेमाल की चीज बन जाने की उनकी नियति की वजह से हम उन्हें अपना स्वजन मानने से इंकार करने वाले क्रांतिकारी नहीं बन सकते। हम उनके विवेक पर भरोसा बनाये रखकर बदलाव की कोशिश में जरुर लगे हुए हैं।
अगर भाजपा की सरकार देश भर में नागरिकता ,आरक्षण, मातृभाषा से वंचित शरणार्थियों की नागरिकता और उनके हक हकूक को बहाल करती तो यह हमारे लिए राहत की बात होती।इसलिए हमने अब तक हर हाल में अपने को हाशिये पर रखते हुए शरणार्थी आंदोलन और शरणार्थी नेताओं का समर्थन किया है।
अब जो हालात बन रहे हैं वे इतने भयंकर हैं और सर्वव्यापी तबाही का मंजर है कि उनसे शरणार्थी,विभाजनपीड़ित हिंदू और मुसलमान के अलावा देश के हर हिस्से में भारत के लोग और सीमापार के लोग भी संघ परिवार के इस खतरनाक खेल में मारे जायेंगे तो शरणार्थी आंदोलन और शरणार्थी नेताओं को अपना बिना शर्त समर्थन जारी रखते हुए सच का सार्वजनिक खुलासा करना ही होगा।
हम यह नहीं जानते कि इस सार्वजनिक खुलासे के बाद हिंदुत्व की पहचान से नत्थी विभाजनपीड़ितों की राय हमारे बारे में कितनी बदलेगी।
फिरभी वक्त का तकाजा है और चूंकि अब शरणार्थियों और शरणार्थी नेताओं को पता चल जाना चाहिए कि उनके हक हकूक दिलाने और कम से कम उनकी नागरिकता बहाल करने में संघ परिवार की कोई दिलचस्पी नहीं है।उनका रवैया वही है जो बंगाल, पंजाब, कश्मीर और सिंध के विबादजन पीड़ितों के प्रति विभाजन से पहले,विभाजन के दौरान रहा है,यह खुलासा अनिवार्य है.इससे जिनकी भावनाओं को ठेस पहुंचने वाली है,वे हमें माफ करें।
गैर असमिया भारतीय नागरिकों के लिए असम मध्य एशिया के मंजर में तब्दील है और भारत विभाजन के शिकार शरणार्थियों के नस्ली कत्लेआम अब हिंदुत्व का एजंडा है।तो बाकी लोग बी इस नरसंहार संस्कृति से जिंदा बच जायेंगे ,ऐसे आसार बेहद कम हैं।अहमिया सत्ता वर्ग अपने अलावा असम में किसी को मूलनिवासी मानता नहीं है जबकि ग्यारहवीं सदी में म्यांमार से आने के बाद उनका हिंदुत्वकरण हुआ है।
असम और पूर्वोत्तर के मूलनिवासी आदिवासी भी इस अल्फाई आतंकवाद के निशाने पर हैं।गैरअसमिया भारत के हर राज्य के नागरिक अब असम में विदेशी घुसपैठिया है।केसरिया हो रहे भूगोल के हर हिस्से में अब हर दूसरा नागरिक अवांछित शत्रु है जैसा अमेरिका में ट्रंप के राजकाज में हो रहा है और यूरोपीय समुदाय के विखंडन के बाद इंग्लैंड समेत समूचे यूरोप के मध्य एशिया में तब्दील होने पर होते रहने का अंदेशा है।
मनुष्यता और प्रकृति,मौसम,जलवायु और पर्यावरण लहूलुहान हैं।
अस्सी के दशक में असम और त्रिपुरा में जो खून खराबा हुआ,आने वाले वक्त में उससे भयंकर खून खराबे का अंदेशा है।गुजरात और पंजाब से भी भयंकर हालात असम में अल्फाई संघ परिवार के राजकाज में बन रहे हैं।
हम तीसरे विश्वयुद्ध में फंस गये हैं और चप्पे चप्पे पर गृहयुद्ध है।इसी गृहयुद्ध का नजारा असम,बंगाल और सारा पूर्वोत्तर है।
हिंदुत्व के नाम मुसलमानों के खिलाफ निरंतर घृणा अभियान की आड़ में असम में साठ के दशक से लगातार यह हिंसा जारी है।राम के नाम सौगंध और सिख नरसंहार,गुजरात नरसंहार तो इस मुकाबले ताजा वारदात हैं।बाकी देश में हिंसा के बीड रह रहकर अंतराल है तो असम घटनाओं की घनघटा है और हिंसा की सिलसिला अंतहीन।वही असम अब संघ परिवार के हिंदुत्व एजंडा का भगवा नक्शा है।
ताजा खबर यह है कि जिन हिंदू बंगाल शरणार्थी वोट बैंक के एक मुश्त समर्थन से संघ परिवार असम में अल्फाई राजकाज चला रहा है,उसके अंतर्गत अल्फाई उग्रवादियों ने पंद्रह हजार बंगाली हिंदुओं को विदेशी घुसपैठिया बताकर उन्हें असम छोड़ने का अल्टीमेटम दिया है तो असम सरकार विदेशी घुसपैठिया होने के आरोप में हिटलर के यहूदी यातनागृह की तर्ज पर बंगाली हिंदू शरणार्थी परिवारों को बच्चों और स्त्रियों समेत थोक पैमाने पर डिटेंशन कैंप में बंद कर रही है।
बंगाल में जितने बंगाली हैं,उनसे काफी ज्यादा बंगाली भारतभर में छितराये हुए हैं।पूर्वीबंगाल के दलित और ओबीसी जन समुदायों में,जिनमें ज्यादातर बंगाल और भारतभर में आजादी से पहले हरिचांद ठाकुर,गुरुचांद ठाकुर,जोगेंद्र नाथ मंडल और बैरिस्टर मुकुंद बिहारी मल्लिक की अगुवाई में बहुजन आंदोलन का नेतृत्व सन्यासी विद्रोह,नील विद्रोह से लेकर तेभागा आंदोलन तक करने वाले नमोशूद्र समुदाय के लोग हैं।इन्होंने ही पूर्वी बंगाल से गुरुचांद ठाकुर के पोते प्रमथ नाथ ठाकुर के साथ डा.बीआर अंबेडकर को संविधान सभा में चुनकर भेजा था।
पूर्वी बंगाल की दलित और ओबीसी जनसंख्या को भारत विभाजन के जरिये बंगाल से खदेड़ दिया गया जो भारत भर में केंद्र और राज्यसराकरों द्वारा पुनर्वासित किये गये हैं।पाकिस्तान के बंटवारे के बाद बड़ी संख्या में जो हिंदू शरणार्थी बांग्लादेश में निरंतर अल्पसंख्यक उत्पीड़न और हिंदू होने की वजह से भारत समर्थक और आवामी लीग समर्थक माने जाने के कारण राजनीतिक अस्थिरता और उथल पुथल की वजह से भारत में आकर बसे,उनमें से ज्यादातर बंगाल से बाहर हैं,जिन्हें आज तक नागरिकता,आरक्षण,पुनर्वास से लेकर मातृभाषा का अधिकार भी नहीं मिले हैं।
अंडमान निकोबार से लेकर उत्तर,दक्षिण,मध्य,पश्चिम भारत के अलावा वे बहुत बड़ी तादाद में बांग्लादेश से सटे असम और त्रिपुरा में बस गये हैं।ये लोग ही हिंदुत्व के एजंडे के नस्ली नरसंहार के मुताबिक चांदमारी के निशाने पर हैं।
दूसरी ओर,शरणार्थी पूर्वी बंगाल के जनपदों की तरह किसी भी जनपद में एक साथ बसे नहीं है।एकमात्र त्रिपुरा को छोड़कर सर्वत्र उनकी संख्या भी इतनी नहीं है कि वे अपने एमएलए ,एमपी,मंत्री वगैरह चुन सके।शरणार्थी सत्तापक्ष के बंधुआ वोटबैंक हैं और इस अपराध के लिए उन्हें निहत्था मरने को छोड़ने की विचारधारा हमारी नही है।
जाहिर है कि असम,त्रिपुरा,दंडकारण्य प्रोजेक्ट के अंतर्गत महाराष्ट्र, ओड़ीशा, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़,ओड़ीशा और आंध्र के अलावा उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड में भारी संख्या में विभाजनपीड़ितों के पुनर्वास के बावजूद विभाजनपीड़ितों का राजनैतिक प्रतिनिधित्व नहीं है।उनकी विधानसभाओं या संसद में कोई आवाज नहीं है।इसलिए वे सत्तापक्ष के सहारे जीने को अभ्यस्त है चाहे इसका नतीजा कुछ भी हो।अब वे राराज्य में वानर सेना है और रामभरोसे हैं तो हम इनका क्या कर सकते हैं।
समझ लीजिये कि उन्हें बंधुआ बनाने की तकनीक कितनी भयानक है।उत्तराखंड,ओड़ीशा और छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्यों में जहां किसी विधानसभा इलाके में बंगाली या सिख पंजाबी शरणार्थी बहुस्ंख्य है,उन विधानसभा क्षेत्रों को टुकड़ा टुकड़ा बांटकर उन्हें फिर अल्पमत बना दिया गया है।
कुल मिलाकर हलात यह है कि सत्तादल और स्थानीय जनता के समर्थन के बगैर कहीं भी विभाजनपीड़ितों के जिंदा रहने के हालात नहीं है।
नतीजतन हमेशा शरणार्थी जीतने वाली पार्टी के साथ अपने गहरे असुरक्षाबोध की वजह से मुसलमानों की तरह एकमुश्त वोट करते हैं। इसी वजह से महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड में इसी वजह से हिंदू शरणार्थी संघ परिवार का वोटबैंक है।बंगाल में भी हालत वहीं बन रही है जो असम में बन चुकी है।
चूंकि पंजाब और बंगाल के विभाजन पीड़ितों में विभाजन के बाद से विभाजन के लिए कांग्रेस और मुस्लिम लीग को जिम्मेदार ठहराने की मानसिकता कभी बदली नहीं है तो हिंदू हितों की दलीलों और हिंदुत्व एजंडा की वजह से पंजाब के अकालियों की तरह बंगाल में भी शरणार्थियों का सुर से केसरियाकरण हो गया है।
बंगाल से बाहर हिंदू बंगाली शरणार्थी हांलाकि कांग्रेस की जीत के वक्त कांग्रेस के हक में वोट करते हैं,जैसे ऐसा मुसलमान भी करते हैं,लेकिन जनसंघ से लेकर भाजपा जमाने तक हवा बदलते ही वे हिंदुत्व के एजंडे के हक में खड़े हो जाते हैं।
असम में अपनी सुरक्षा के लिए पहले कांग्रेस फिर असम गण परिषद को वोट देते रहने के बाद इस बार पहली बार भारत की नागिकता की उम्मीद में नागरिकता वंचित हिंदू बंगाल शरणार्थियों ने एकमुश्त संघ परिवार को वोट देकर उनकी सत्ता सुनिश्चित की है।
हिंदुओं को नागरिकता देने के झूठे संघी वायदे के फेर में बंगाल में भी शरणार्थी और मतुआ वोट बैंक अब संघ परिवार के साथ हैं।यूपी और उत्तराखंड में कमोबेश समीकरण वही है।शरणार्थी वोटबैंक की वजह से उत्तराखंड की तराई में संघ परिवार को बढ़त है।यूपी में भी पीलीभीत ,बहराइच,खीरी जैसे जिलों में यही हालत है।
अब जबकि असम में संघ परिवार के अल्फाई राजकाज के निशाने पर बंगाली हिंदू शरणार्थी हैं,तो यूपी और उत्तराखंड के शरणार्थियों को आसन्न विधानसाभा चुनावों में वोट डालने से पहले जरुर सोचना चाहिए कि वे किस हिंदुत्व के एजंडे के हक में वोट डाल रहे हैं।आगे देशभर में संघ परिवार उनका क्या करनेवाले हैंं।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में भी संघी राजकाज के अंतर्गत बंगाली भगाओ अभियान चालू है तो उत्तराखंड में भी नयी नागरिकता कानून बनने से पहले उत्तराखंड की पहली भाजपा सरकार नें बंगाली शरणार्थियों को भारतीय नागरिक मानने से इंकार कर दिया था।
तब उत्तराखंड के पहाडो़ं और मैदान के सभी वर्गों,मीडिया और गैरभाजपाई दलों के समर्थन में बंगाली शरणार्थियों के आंदोलन की वजह से भाजपा सरकार को पीछे हटना पड़ा था।विडंबना यह है कि बंगाली शरणार्थी वह हादसा भूलकर फिर चुनावी मौसम में केसरिया खेमे में हैं।
इस पर तुर्रा यह किअसम सिर्फ बंगालियों और मुसलमानों के लिए ही नहीं,हिंदी भाषियों, बिहारियों, राजस्थानियों के साथ साथ असुरक्षित है।साठ के दशक में असम में बंगाली भगाओ दंगे हुए तो राजस्थानियों और हिंदी भाषियों के खिलाफ भी वहां दंगे होते रहे हैं।कब असम में किस समुदाय के खिलाफ दंगा होना है,इसका फैसला भी मजहबी सियासत करती है और अंजाम देने की जिम्मेदारी उल्फाई उग्रवाद की है।
साठ के दशक के दंगों के दौरान मेरे पिताजी पुलिनबाबू ने दंगापीड़ित असम के हर जिले में शरणार्थियों के साथ थे और उन्होंने असम छोड़ने से उन्हें रोकने में भी कामयाबी पायी।वे तभी से मानते रहे हैं कि असम में इस दंगाई सियासत के पीछे संघ परिवार है।वे मानते रहे हैं कि असम के विदेशी नागरिकों के खिलाफ अस्सी के दशक में आसु और अगप के आंदोलन में संघ परिवार की खास भूमिका रही है।तमाम नामी संघी स्वयंसेवक असम में दंगा भड़काने का काम करते रहे हैं।
अस्सी के दशक से ही पुलिनबाबू लगातार देशभर में शरणार्थियों को संघ परिवार के हिंदुत्व के इस एजंडा के खिलाप चेतावनी देते हुए उनकी नागरिकता छिनने की आशंका जताते रहे हैं।लेकिन शरणार्थी जन्मजात नागरिकता की खुशफहमी में उन्हें नजरअंदाज करते रहे।
जून,2001 में उनकी मृत्यु के तत्काल बाद उत्तराखंड राज्य यूपी से अलग हो गया और वहां पहली सरकार भाजपा की बनते ही 1952 से तराई को आबाद करके तराई में सिख और पंजाबी शरणार्थियों के साथ पुनर्वासित तमाम बंगाली विभाजनपीड़ित शरणार्थियों को विदेशी घुसपैठिया करार दिया और इसी के साथ केंद्र में बनी पहली हिंदुत्व की सरकार के गृहमंत्री लौह पुरुष रामरथी लालकृष्ण आडवाणी ने 2003 में विदेशी घुसपैठियों के खिलाफ नागरिकता संशोधन विधेयक के तहत जन्मजात नागरिकता खारिज करते हुए देश भारत में बसाये गये बंगाली हिंदू शरणार्थियों की नागरिकता छीन ली।
धोखाधड़ी की हद है कि 1955 के संशोधित कानून नागरिकता संशोधन कानून के प्रावधानों में संसोधन करके हिंदुओ को नागरिकता देने की बात कही जा रही है। जबकि 1955 के कानून में शरणार्थियों की नागरिकता में कोई बाधा थी ही नहीं।
खासकर दंडकारण्य के खनिजबहुल इलाकों में आदिवासियों को सलवा जुड़ुमे के जरिये बेदखल करने के बाद वहां आदिवासियों के साथ बसाये गये शरणार्थियों की नागरिकता छीनकर पूरा दंडकारण्य देशी विदेशी पूंजी को सौंपने का चाकचौबंद इतंजाम नया नागरिकता कानून है,जो संग परिवार बदलने वाला नहीं है।इसलिए नया नागरिकता संशोधन विधेयक ऐसे बनाया गया हो जो संसद में पास होना असंभव है।लेकिन इस प्रस्तावित विधेयक के जरिये संघ परिवार को हिंदुओं के ध्रूवीकरण का खतरनाक वीभत्स खेल सुरुकरने का मोका मिला है और असम है।
अब मजे की बात यह है कि वही संघ परिवार,वही भाजपा,वही केसरिया सरकार उसी संशोधित नागरिकता कानून में विशेष प्रावधान के तहत हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने के वायदे के साथ असम और दूसरे राज्यों में मुसलमानों के खिलाफ दंगाई मजहबी सियासत में लगी है और बंगाली हिंदू शरणार्थियों को भी खदेड़ने का इंतजाम कर रही हैतो इसे न मुसलमान समझ पा रहे हैं और न हिंदू,न असम के लोग और न यूपी बिहार वाले या देश के तमाम दूसरे नागरिक या राजनीतिक दल।यह भी एक निहायत लक्ष्यबेधक सर्जिकल स्ट्राइक है और नोटबंदी की तरह निशाने पर देश की सरहदों के भीतर देस की अपनी गरीब बेबस जनता है।
सिर्फ असम नहीं,महाराष्ट्र में भी भगवा केसरिया राजकाज के अंतर्गत बंगालियों के अलावा यूपी के भइयों और बिहारियों के खिलाफ हिंसा भड़काना संघ परिवार का हिंदुत्व है।यूपी बिहार के लोग असम और महाराष्ट्र दोनों जगह भगवा केसरिया बजरंगवलियों के निशाने पर हैं।लेकिन बंगाली शरणार्थियों की तरह यूपीवालों और बिहारवालों को भी संघ परिवार के हिंदुत्व के एजंडे से खास परहेज नहीं है।इसीलिए बेहिचक यूपी जीतने के लिए नोटबंदी हो गयी क्योंकि यूपीवालों को बुड़बक समझकर छप्पन इंच का सीना और चौड़ा है।ट्रंप की वजह से पिछवाड़ा भी मजबूत है।
संघ परिवार को तिरंगा से ऐतराज है और जन गण मन की जगह संघ परिवार वंदे मातरम् को ही भारतीयता का संगीत मानता है।संघ परिवार हिंदू राष्ट्र रामराज्य भारत का झंडा भगवा बनाने का शुरु से पक्षधर रहा है और वह हिंदुत्व का प्रतीक भगवा झंडा भी बताता रहा है ,जो भारतीय इतिहास में कहीं लहराता दिखा नहीं है।
इसीलिए राजकाज की सर्वोच्च प्राथमिकता इतिहास बनान नहीं,इतिहास बदलना है ताकि उनके धतकरम को भारतीयता साबित किया जा सके।
गौरतलब है कि तथागत गौतम बुद्ध की क्रांति के बाद ब्राह्मण धर्म के पहले पुनरुत्थान महाराष्ट्र में ब्राह्मण पेशवा राज का यह भगवा झंडा संघ परिवार का असल एजंडा है।वही पेशवाराज,जिसकी लुटेरी सेना ने बंगाल,ओड़ीशा और बिहार के साथ साथ यूपी में भी लूटपाट तबाही मचाई थी।
चंगेज खान और तैमूर का इतिहास बांचने वाले पेशवा राज को भारत का भविष्य बनाने चला है।चूंकि मनुस्मृति विधान संविधान है संघ परिवार का।
दरअसल किस्सा यह है कि असम में सत्ता हासिल करने के लिए असम में बसे हिंदू बंगाली विभाजनपीड़ितों का समर्थन लेने के लिए उन्हें भारतीय नागरिकता देने के वादे की वजह से भारतीय जनता पार्टी बुरी तरह फंस गई है।
असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की अल्फाई पृष्ठभूमि जगजाहिर है वे सिरे से बंगाली हिंदुओं के खिलाफ रहे हैं।हमने शरणार्थी नेताओं को बार बार इसकी चेतावनी दी है।बंगाली वोट के लिए हिंदुओं को नागरिकता देने का वायदा करके बंगाली हिंदू शरणार्थियों का मसीहा बनने की कोशिश में सोनोवाल बुरी तरह उलझ गये है।उनके अल्फाई पृष्ठभूमि अब उनकी सत्ता के लिए चुनौती बन गयी है।
मूल रूप से असम में आने वाले पूर्वी बंगाल और बाद में बांग्लादेश से आये हिंदू बंगालियों को नागरिकता देने के झूठे मकसद से असम और पूर्वी भारत,पूर्वोत्तर भारत के साथ साथ बंगाल में भी पेशवाई भगवा लहराने के एजंडे के साथ तैयार फर्जी नागरिकता (संशोधन) विधेयक सत्तारुढ़ भाजपा के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है।
इस परिस्थिति से घनघोर उल्फाई सियासत और राजकाज के तेवर में असम के मुख्यमंत्री सोनोवाल दुधारी तलवार पर टहलने लगे हैं ।एक ही सुर में वे मूलनिवासी असमिया नागरिक और हिंदू बंगाली शरणार्थी हित में जब तब हुंकारा भर रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार और प्राशासन की तरफ से पूरे असम को हिटलर के यातनागृह में बदल रहे हैं।नतीजा वही है,जो जर्मनी में यहूदियों का हुआ था।
हम शरणार्थियों की आम सभाओं में भी इस बारे में चेताते रहे हैं कि बंगाली शरणार्थियों को संघ परिवार कभी हिंदू नहीं मानता रहा है क्योंकि वे सारे के सारे अछूत या पिछडे हैं जो बंगाल समेत देश भर में ब्राह्मण और सवर्ण जमींदारों के साथ साथ ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पेशवा को हरानेवाली महार सेना की तरह हर आदिवासी और किसान विद्रोह के लड़ाका रहे हैं और भूमि सुधार का एजंडा भी मतुआ आंदोलन का है तो तेभागा आंदोलन की ताकत भी ये ही थे।
इसके अलावा अविभाजित बंगाल में ब्राह्मणतांत्रिक सत्ता वर्ग और जमींदारों, नबाव के खिलाफ अछूत, पिछड़े,आदिवासी और मुसलमान प्रजाजन एक साथ थे।
मुश्किल यह है कि पूर्वी बंगाल और पश्चिम बंगाल के बुद्धिजीवी भारत विभाजन के लिए जिन्ना, गांधी और नेहरु को जिम्मेदार मानते हैं और हिंदू महासभा और संघ परिवार,एनसी चटर्जी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी के भारत विभाजन में निर्णायक भूमिका की चर्चा भी नहीं करते।
भारत विभाजन का इतिहास भी जमींदारी नजरिये से लिखा गया है।
हिंदू महासभा ने भारत विभाजन के लिए पूंर्वी बंगाल में सात सौ से ज्यादा बैठकें की थी।श्यामा प्रसाद मुखर्जी का तो यह भी कहना था कि भारत का विभाजन हो या न हो,बंगाल का विभाजन जरुर होगा क्योंकि हिंदू समाज के तलछंट अछूतों का वर्चस्व बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
गौरतलब है कि अविभाजित बंगाल की तीनों सरकारें मुसलमानों के नेतृत्व में थीं,जिनमें बैरिस्टर मुकुंद बिहारी मल्लिक और जोगेंद्रनाथ मंडल के किरदार खास थे।
विडंबना है कि शिड्युल्ड कास्ट फेडरेशन में अंबेडकर और जोगेंद्रनाथ मंडल की युगलबंदी थी।जिस बंगाल ने बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर को संविधान सभा के लिए निर्वाचित किया,भारत विभाजन के बाद पश्चिम बगाल और बाकी देश में छितरादिये गये बंगाली शरणार्थी बहुजनों में वे बाबासाहेब और जोगेंद्रनाथ मंडल खलनायक हैं।
नागरिकता संशोधन विधेयक पास करने के बाद सिर्फ हिंदुओं को नागरिकता देने के लिए उसी संशोधित नागरिकता कानून को 1955 का मूल नागरिकता कानून बताकर हिंदुओं के लिए नागरिकता के बहाने फिर संघ परिवार ने असम,बंगाल,त्रिपुरा और समूचे पूर्वी पूर्वोत्तर भारत में एक बार फिर हिंदू और मुसलमान विभाजनपीड़ितों का बंटवारा करके भविष्य में पूर्वी बंगाल की तर्ज पर मुस्लिम दलित गठबंधन के जरिये यूपी बिहार की तरह समाजिक बदलाव की संभावना में बारुदी सुरंग लगाने के साथ साथ बंगाल जीतने के मास्टर प्लान के साथ पूरब और पर्वोत्तर के दंगाई केसरियाकरण का हिंदुत्व का यह विध्वंसकारी एजंडा बनाया है।
अब हिंदुओं को नागरिकता देने के वायदे से उल्फाई बंगाली विरोधी तत्व सोनोवाल के खिलाफ हो गये हैं तो सरकारी गैरसरकारी दोनों तरीके से बंगाली हिंदू विभाजनपीड़ितों का असम में उत्पीड़न तेज होता जा रहा है।अब असम में विभाजनपीड़ितों के लिए बांग्लादेश या पाकिस्तान से भी खतरनाक माहौल है।
असम और बाकी देश में हिंदुत्व के बहाने हिंदू और मुसलमान विभाजनपीड़ितों में फर्क करके दोनों को नागरिकता से वंचित रखने की सियासत ने हिंदू और मुसलमान शरणार्थियों का ध्रूवीकरण कर दिया है और यही ध्रूवीकरण संघ परिवार का बंगाल जीतने का मास्टर प्लान है तो यह भयंकर खूनी दंगाई सियासत उससे ज्यादा है,जिसके शिकार असम,त्रिपुरा और बाकी भारत में विभाजनपीड़ितों के साथ साथ रोजगार और आजीविका के लिए गृह प्रदेश से बाहर जाने को मजबूर भारतीय नागरिक उसी तरह होंगे जैसे नागरिकता कानून बदलने के बाद अभूतपूर्व रोजगार संकट की वजह से बंगाल के हर जिले से निकले मेहनतकश बंगाली भारतीय नागरिक और उनके साथ साथ यूपी बिहार के लोग होते रहे हैं और होंगे।
इसके विपरीत शरणार्थी और उनके नेता इस संकट से निबटने के लिए अब भी संघ परिवार के रहमोकरम के भरोसे हैं और देश भर में ये शरणार्थी ही संघ परिवार की बजरंगी पैदल सेना में दलितों और पिछड़े के साथ मुसलमानों के खिलाफ लामबंद हैं।
हम लगातार चेतावनी देते रहे हैं कि संघ परिवार को हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देनी थी,तो संघ परिवार उनकी नागरिकता छीनता ही क्यों?
कांग्रेस और मुसलमानों को भारत विभाजन के दोषी मानने की मानसिकता की वजह से न नेता और न आम बंगाली शरणार्थी हमारी कोई दलील सुन रहे हैं।
हम पहले से आम सभाओं मे लगातार ट्रंप की ताजपोशी के बाद दुनियाभर में नस्ली नरसंहार अभियान के तहत शरणार्थियों के खिलाफ तेज होने वाले नस्ली हमलों की चेतावनी दी है।हमारी चेतावनी किसीको पंसद नहीं आयी।
चूंकि नाइन इलेविन के बाद अमेरिकी हितों के मुताबिक दुनियाभर में नागरिकता कानून बदला है और उसी सिलसिले में इजराइल और अमेरिकी रणनीतिक साझेदारी के तहत अमेरिकी और विदेशी पूंजी के हित में अबाध बेदखली के लिए आधार योजना के तहत 1955 से नागरिकता कानून बदलकर जन्मजात नैसर्गिक नागरिकता का प्राऴधान खत्म किया गया है तो यह समझने वाली बात है कि डान डोनाल्ड ट्रंप की शरणार्थी और आप्रवासी विरोधी राजकाज और राजनय का असर बाकी दुनिया के हर हिस्से में और खासकर भारत में कितना और कैसा होना है।
जाहिर है कि राष्ट्रीयता का सवाल उलझने वाला है और क्षेत्रीय अस्मिता भारी पड़ने वाली है।शरणार्थियों से कहीं ज्यादा विस्थापित तो देश के अंदर है।आदिवासी भूगोल के सलवा जुडुम को छोड़ ही दें,बाकी भारत में हिमालय से लेकर समुंदर तक में विस्थापन का मंजर असल में शरणार्थी समस्या है और ट्रंप के रंगभेदी राजकाज के मुताबिक हिंदुत्व का एजंडा विशुद्ध नरसंहार संस्कृति है।खतरनाक बात यह है कि बहुसंख्यहिंदुओं की आस्था भी वही बन गयी है और जनादेश भी वही है।फासिज्म के राजकाज का लोकतंत्र और संविधान यही है।
सबसे खतरनाक है कि भारतीयता और राष्ट्रीय एकात्मकता की डंका पीटने वाले संघ परिवार का हिंदुत्व एजंडा क्षेत्रीय अस्मिता उग्रवाद के साथ नत्थी है।
जाहिर है कि असम और पूर्वोत्तर के उग्रतम क्षेत्रीयतावाद, पंजाब में अकाली राजनीति और महाराष्ट्र गुजरात में भगवा आतंकवाद,यूपी में फर्जी मुठभेड़ और छत्तीसगढ़ के सलवा जुड़ुम का रिमोट कंट्रोल नागपुर के संस्थागत मुख्यालय में है।
बहरहाल असम के ताकतवर छात्र संगठन अखिल असम छात्र संघ (आसू) समेत कोई तीन दर्जन संगठन हिंदू बंगाली शरणार्तियों को नागरिकता देने का लगातार विरोध कर रहे हैं। दूसरी ओर,कोई 15 साल तक असम में सत्ता में रही कांग्रेस असम समझौते को लागू करने की मांग कर रही है। इसके तहत वर्ष 1971 से पहले असम आने वालों को ही नागरिकता देने का प्रावधान है।
अब ताजा नागरिकता संसोधन विधेयक में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदुओं को भी नागरिकता देने का प्रावधान है। लेकिन इसका जबरदस्त विरोध शुरू हो गया है। असम की राजनीति पहले से ही बांग्लादेशी घुसपैठ के इर्द-गिर्द घूमती रही है।इसी मुद्दे पर अस्सी के दशक में असम आंदोलन भी हो चुका है।जिसकी कमान बी संघपरिवार के हाथ में है।उसी आंदोलन की उपज सोनोवाल हैं।
बहरहाल हिंदू शरणार्थी अपनी नागरिकता के लिए जाहिरा तौर पर इस बिल का समर्थन कर रहे हैं।लेकिन शंघपरिवार इस बिल को लेकर कतई गंभीर नहीं है।बिल को लेकर उसने शतरंज की बाजी बिछा दी है और अब महाभारत है।
गौरतलब है कि जुलाई में नागरिकता अधिनियम, 1955 के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए पेश विधेयक फिलहाल संसद की स्थायी समिति के पास विचारधीन है। प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से बिना किसी वैध कागजात के भाग कर आने वाले गैर-मुसलमान आप्रवासियों को भारत की नागरिकता दे दी जाएगी। इसके दायरे में ऐसे लोग भी शामिल होंगे जिनका पासपोर्ट या वीजा खत्म हो गया है। प्रस्तावित संशोधन के बाद अब उनको अवैध नागरिक या घुसपैठिया नहीं माना जाएगा।
अब असम की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अलावा ताकतवर छात्र संगठन अखिल असम छात्र संघ (आसू) और असम में सोनोवाल की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार की सहयोगी रही असम गण परिषद (अगप) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल महंत नागरिकता अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ मुखर हैं।
राज्य के साहित्यिक संगठनों और बुद्धिजीवियों ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाते हुए अंदेशा जताया है कि इससे असम के स्थानीय लोगों पर पहचान का संकट पैदा हो जाएगा।
इसी पृष्ठभूमि में साठ दशक के बाद फिर बंगाली हिंदू शरणार्तियों को असम छोड़ने की उल्फाई मुहिम नये सिरे से शुरु है।
Rohit Vemula phenomenon ontinues!
JNU Student Najib still missing!Jadavpur Univarsity Santhal M.Phil student Sushil Madni is also Missing!
Sardindu Uddipan, Dalit Solidarity network complaints Silence in the Hok KOLROB plus civil society Camp!
সুশীল কোথায়?
একটি মাতালের মৃত্যুর পরে মোমবাতি জ্বলে এই শহরে! বিদ্বজ্জনেরা রাস্তায় নামেন। মাতালের স্বাধিকারের জন্য গলা ফাটায় !! মিছিল চলে রাজপথ জুড়ে !!
কিন্তু হায়!!
সুশীল মান্ডির নিরুদ্দেশ নিয়ে এই বিদ্বজ্জনেদের কোন সাড়া পাওয়া যায় না। কেননা সুশীল দলতি-বহুজন সমাজের মানুষ। একজন আদিবাসী। হতে পারে সে গবেষক। হতে পারে সে শ্রম এবং উৎপাদনের সাথে জড়িত বৃহত্তর মানুষের রক্তে বোনা ফসল। তাতে বাবুদের কি। তাতে এলিটদের কি। প্রভূদের ভজনা করে গণ্ডে পিণ্ডে উচ্ছিষ্ট ভোজন করতে পারলেই তাদের শান্তি। প্রভূদের সুখেই তাদের সুখ। প্রভূদের বিপদ মানে তাদের বিপদ।
সুশীল মান্ডি হুগলী জেলার ধনিয়াখালি থানার রোজিপুর গ্রামের সাঁওতাল সন্তান। পিতা শিবু মান্ডি একজন খেটে খাওয়া মজদুর। যাদবপুর বিশ্ববিদ্যালয় থেকে সিভিল ইঞ্জিনিয়ারিং পাশ করে বর্তমানে সে এই বিশ্ববিদ্যালয়েরই ভাষাতত্ত্ব বিভাগের একজন M. Phil Scholar. বিগত কয়েক বছর ধরে সে সামাজিক এবং রাজনৈতিক আন্দোলনের সক্রিয় কর্মী। যাদবপুর বিশ্ববিদ্যালয়ের হোককলরব এবং রোহিত ভেমুলার স্বাধিকার আন্দোলনে একেবারে সামনে থেকে নেতৃত্ব দিয়েছে সুশীল। দলতি-বহুজন ছাত্রছাত্রীদের নিয়ে তৈরি করেছে সংগঠন। পাশাপাশি সে এই বিশ্ববিদ্যালয়ের র্যারডিক্যাল গ্রুপেরও একজন সক্রিয় কর্মী।
গত ০২/০২/২০১৭ তারিখ থেকে যাদবপুর বিশ্ববিদ্যালয়ের ছাত্রাবাস থেকে সে নিখোঁজ হয়ে যায়। পরের দিন তার দাদা হারাধন মান্ডি যাদবপুর থানায় অভিযোগ করে জানান যে এই বিশ্ববিদ্যালয়ের এলিট সম্প্রদায়ের কিছু ছেলে মেয়ে তার ভাইয়ের চরিত্র হনন করার জন্য ফেসবুকে এমন কিছু পোষ্ট দেয় যা তার কাছে চরম অমর্যাদাকর। তিনি আরো জানান যে সুশীলের এই নিরুদ্দেশ হয়ে যাওয়ার পেছনে রয়েছে জাতি বিদ্বেষ, ঘৃণা এবং অবজ্ঞা।
বিশেষ সূত্র থেকে জানা যায় যে দীর্ঘদিন ধরে ক্যাম্পাসের মধ্যে ছাত্রীদের ব্যবহারের জন্য বাথরুমগুলো বন্ধ আছে। ছাত্রছাত্রীরা এ নিয়ে কর্তৃপক্ষকে একটি নোটিশ দেয়। বলা হয় নির্দিষ্ট দিন পর্যন্ত বাথরুমগুলি না খুললে তা ভেঙ্গে দেওয়া হবে। গত ১৬ই জানুয়ারি ছিল এই তালা ভাঙার দিন। এই ঘটনার পরে আম্বি রাজ নামে একটি মেয়ে তার বন্ধু নবোত্তমাকে জানায় যে আন্দোলনের সময় র্যা ডিক্যাল গ্রুপের একটি ছেলের কাছ থেকে সে হেনস্থার শিকার হয়েছে (she was groped by a member of Radical, time and again) এ নিয়ে সে ফেসবুকে একটি পোষ্টও করে। তার এই প্রথম পোষ্টে কোথাও Molestation কথাটি ব্যবহার করা হয় নি বা সুশীলের নামও ব্যবহার করা হয়নি। এই পোষ্টের পর র্যা ডিক্যালের জুবি সাহা এবং ইউএসডিএফ এর নবোত্তমাকে আলাপ আলোচনার মাধ্যমে বিষয়টি মিটিয়ে ফেলার জন্য দায়িত্ব দেওয়া হয়। দুজনেই একমত হয় যে পারস্পরিক আলোচনার মাধ্য দিয়ে যদি কেউ কোন ভুল করে থাকে তবে সে ক্ষমা চেয়ে নেবে। প্রকাশ থাকে যে আম্বি রাজ সুশীল মান্ডি এই ঘটনার জন্য দায়ী বলে নবোত্তমাকে জানায়। সুশীলের কাছে এই বিষয়ে জানতে চাইলে সে জানায় যে এই ঘটনার বিষয়ে সে কিছুই জানে না। তবুও অসচেতন ভাবে তার আচরণে যদি কারো খারাপ লাগে তবে সে ক্ষমা চাইবে। এ নিয়ে উভয় ছাত্র সংগঠনের মধ্যে একটি সভার আয়োজন করা হয় কিন্তু শর্ত রাখা হয় যে এই সভায় সুশীল উপস্থিত থাকবে না। এই সভায় আম্বি রাজ জানায় যে ঘটনার দিন সুশীল মান্ডি আম্বির কাছ থেকে সিগারেটের কাউন্টার নিয়েছে, তাকে improperly touch করেছে। র্যা ডিক্যাল গ্রুপ সুশীলের বক্তব্য শোনার দাবী রাখলেও তা মানা হয় নি। এর পরে ইউএসডিএফ থেকে একটি যৌথ পোষ্ট দিয়ে সুশীলকে অভিযুক্ত সাব্যস্ত করা হয় এবং আবার ফেসবুকে একটি পোস্ট দিয়ে সুশীলকে যৌন হেনস্থার জন্য দোষী ঘোষণা করা হয়।
এখানে বলে রাখা ভাল যে ক্যাম্পাসের মধ্যে এই যৌনহেনস্থা নিবারণের জন্য একটি Internal complain Committee এবং Sexual harassment Cell আছে। ইউএসডিএফ থেকে সেখানে অভিযোগ না জানিয়ে নিজেরাই বিচার করে সুশীলকে অভিযুক্ত সাব্যস্ত করেছে। ফেসবুকে একাধিক পোষ্ট দেওয়া হয় এবং সুশীলকে চরম ভাবে অপমান করা হয়। এই কান্ডে যারা জড়িত তারা হল,
১। সৌম্য মণ্ডল (বহিরাগত ছাত্র, ইউডিএসএফ এর সম্পাদক)
২। দিব্যকমল মিত্র(ইংরেজী পিজি-২)
৩।কৌস্তব মণ্ডল (এক্স সডুডেন্ট)
৪। অম্বুজা রাজ (ফিল্ম স্টাডিজ- পিজি-১)
৫। নবোত্তমা পাল (ইন্টারন্যাশনাল রিলেশন, পিজি-১)
তাকে এই ভাবে বলির পাঁঠা সাব্যস্ত করার পরে সুশীল ভয়ংকর ভাবে ভেঙ্গে পড়ে। নিজেকে গুটিয়ে নেয়। বন্ধুদের সাথে মেলামেশা বন্ধ করে দেয়। এই সময় ভাঙ্গড় নিয়ে তুমুল আন্দোলন চললেও তাতে সে অংশগ্রহণ করে না। কেমন যেন খালি হয়ে যায় তার বুক। এত লড়াই এত আত্তত্যাগ একেবারে ফেকাশে মনে হয়। মনে হয় দলিত হয়ে জন্মানোটাই একটি অভিশাপ। এই সমাজ, এই রাষ্ট্র ব্যবস্থায় একজন দলিতের সার্বিক বিকাশের কোন সম্ভাবনা নেই। মেকি সমাজ, মেকি বন্ধুত্ব, মেকি সব সাংগঠনিক স্বপন। এলিট মগজের মধ্যে শুধু ঘৃণা আর জাতপাত। এই সব বড় বড় ভাষণ আর গলাবাজি একজন দলিতের কোন কাজে লাগবে না।
এরপর গত ০২.০২.২০১৭ তারিখে কাউকে না জানিয়ে সে নিরুদ্দেশ হয়ে যায়। আজ ১০দিন হয়ে গেল ছেলেটির কোন খোঁজ নেই। পুলিশ প্রশাসন ঠুটো জগন্নাথ। বুদ্ধিজীবীরা ভরপেট উচ্ছিষ্ট খেয়ে নিদ্রামগ্ন !! একটি রাস্তায় খোলা আছে আমাদের সামনে। একেবারে শেষ দেখে ছাড়া। তিলে তিলে ঘৃণা এবং আত্তহননের চেয়ে সংগ্রামের মধ্য দিয়ে স্বাধিকার অর্জন করা।
রোহিত, নাজিব, সুশীলদের শপথ নিয়ে ভবিষ্যৎ প্রজন্মের জন্য বাসযোগ্য ভূমি তৈরি করা।
আসুন শপথ নিন।
নাজিব, সুশীলকে ফিরিয়ে আনা হোক আমাদের লক্ষ্য।
জয় ভীম।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में फूट गया नोटबंदी का बम!
किसानों के गुस्से ने केसरिया मजहबी सियासत को शिकस्त दे दी,असर पूरे यूपी पर होना है।दलित मुसलमान एकता से बदलने लगी है फिजां तो मजहबी सियासत पस्त है।
मुसलमानों के बेहिचक बसपा के साथ हो जाने से साइकिल के दोनों पहिये भी पंक्चर!
पलाश विश्वास
खास खबर यह है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में नोटबंदी का बम फूट गया है। अजित संह की मौकापरस्ती की वजह से पहली बार पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों पर चौधरी चरण सिंह की विरासत का कोई असर नहीं हुआ है।यूपी में आज पहले चरण का मतदान खत्म हो गया है।पश्चिम उत्तर प्रदेश में आज 15 जिलों की 73 सीटों पर मतदान हुआ है।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के पहले चरण में 15 जिलों की कुल 73 सीटों पर आज छिटपुट घटनाओं के बीच औसतन करीब 64 प्रतिशत वोट पड़े।
खास बात यह है कि इसबार महिलाओं ने बढ़ चढ़कर जोश दिखाया जिसकी वजह से करीब 3 करोड़ लोगों ने वोट डाला है। पिछली बार 61 प्रतिशत मतदान हुआ था। 839 उम्मीदवारों की किस्मत EVM में आज बंद हो गई है।
यूपी से आ रही खबरों का लब्बोलुआब यही हैकि छप्पन इंच के सीने के लिए ऐन मौके पर राम की सौगंध खाकर राममंदिर निर्माण के संकल्प के बावजूद अबकी दफा फिर यूपी की जनता ने वानरसेना बनने से इंकार कर दिया है और किसानों के नरसंहार के ऩसरसंहार के चाकचौबंद इंतजाम की कीमत संघ परिवार को चुकाना ही होगा।
पश्चिम उत्तर प्रदेस में दंगाई सियासत के जरिये यूपी जीतने और नोटबंदी से यूपी जीतने का कारपोरेट हिंदुत्व एजंडा मतदान के पहले ही चरण में बुरीतरह फेल है और बढ़त दलित मुसल्मान एकता को है,जिसकी जरुरत पर बहुजन बुद्धिजीवी एचएल दुसाध ने हस्तक्षेप पर लगे अपने आलेख में खास जोर दिया है।
बिना किसी सोरगुल के मायावती ने नये सिरे से सोशल इंजीनियरिंग करके अखिलेश के अल्पसंख्यक उत्पीड़न,कांग्रेस क मौकापरस्ती और संघ परिवार की दंगाई सियासत को करारा जबाव दिया है।बामसेफ ने भी अलग पार्टी बनाकर लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद इसबार बाजपा को हराने वाले उम्मीदवार को जिताने की मुहिम चलाकर भाजपा के खिलाफ दलित मुसलमान गढबंधन फिर खड़ा करने में मददगार है।
अजित सिंह सत्ता के लिए सौदेबाजी के माहिर खिलाड़ी है तो अखिलेश के साथ कड़क मोलभाव में वे गच्चा खा गये।वैसे भी वे पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों के नेता अजित सिंह अब अब रहे नहीं है और न किसानों के हितों से उन्हें कुछ लेना देना नहीं है।
इसके उलट,अजित सिंह ने चौधरी साहब की विरासत का जो गुड़ गोबर किया,उसकी वजह से उत्तर भारत के किसानों और खास तौर पर जाटों को चौधरी साहेब के अवसान के बाद भारी नुकसान उठाना पड़ा है।
मुजफ्फर नगर में संघ परिवार को खुल्ला खेलने देकर अजित सिंह ने जो भारी गलती की है,उसके लिए उन्हें पश्चिम उत्तर प्रदेश के हिंदू मुसलमान किसान कभी माफ नहीं करेंगे।भाजपा को हराने के लिए सपा के आत्मघाती मूसलपर्व की वजह से और कांग्रेस के दंगाई इतिहास की वजह से मुसलमानों ने बसपा को वोट देने का फैसला करके यूपी में केसरिया अश्वमेधी अभियान के सारे सिपाहसालारों को चित्त कर दिया है।बाकी यूपी में भी इसका असर होना है।
दूसरी तरफ, उत्तराखंड में भी भूमि माफिया से नत्थी भाजपा ने अपने तमाम पुराने नेताओं को किनारे लगाकर जैसे एक के बाद एक भ्रष्ट नेताओं को टिकट बांटे हैं,वहां भी पश्चिम उत्तर प्रदेश की तरह पांसा बदल जाये तो कोई अचरज की बात नहीं होगी।वैसे पश्चिम यूपी के वोट औरभाजपा विरोधी हवा का उत्तराखंड की तराई में भी असर होना है।
मुश्किल यह है कि उत्तराखंड जीतने में कांग्रेस की कोई दलचस्पी नहीं है।छोटा राज्य होने की वजह से कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व के लिए उत्तराखंड में खास दिलचस्पी नहीं है तो दसों दिशाओं में गहराते संकट के बादल की वजह से संघ परिवार कमसकम उत्तराखंड जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है।कांग्रेस के नेता खासकर हरदा के खासमखास वफादारलोग उन्हें हरामने में कोई कसर छोड़ नहीं रहे हैं।
गौरतलब है कि किसान सभा और वाम किसान आंदोलनों के दायरे से बाहर उत्तर भारत और बाकी देश में चौधरी चरण सिंह के किसान आंदोलन का असर अब इतिहास है।फिरभी उत्तर भारत के किसानों खासकर पंजाबियों,सिखों और जाट गुज्जरों और मुसलामनों में सामाजिक तानाबाना सत्तावर्ग की दंगाई मजहबी सियासत के बावजूद अब भी अटूट है।
खासकर आगरा से लेकर बरेली तक और मेरठ गाजियाबाद से लेकर हरियाणा और उत्तराखंड के हरिद्वार जिले तक किसानों में नाजुक बिरादाराना रिश्तेदारी रही है जाति धर्म नस्ल भाषा के आर पार,जिसपर मेऱठ,अलीगढ़,मुरादाबाद ,आगरा के दंगों ने और बाबरी विध्वंस के बाद पूरे उत्तर प्रदेश में दंगाई फिजां बने जाने का भी कोई असर नहीं हुआ था।
पिछले लोकसभा चुनाव से पहले मुजफ्फरनगरके देहात में दंगा भड़काकर किसानों और खासकर जाटों का जो केसरियाकरण किया संघ परिवार ने,उसके आधार पर यूपी में हिंदुत्व के नाम राममंदिर आंदोलन के बाद धार्मिक ध्रूवीकरण हो गया था और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपना दल के साथ गंठबंधन के जरिये भाजपा को लोकसभा चुनाव में बसपा, कांग्रेस और सपा के सफाया करने में कामयाबी मिली है।अब सिरे से पांसा पलट गया है। संजोग से नोटबंदी का असर खेती पर जिस भयानक तरीके से हुआ और जाटों को आरक्षण के नाम जिस तरह धोखा केंद्र सरकार ने गुजरात के पटेलों और राजस्थान के गुज्जरों की तरह दिया,उससे हालात सिरे से बदल गये हैं।
मेरे पिताजी चौधरी साहेब के भारतीय किसान समाज के राष्ट्रीय कार्यकारिणी में थे,तब मैं अपने गांव के बगल में गांव हरिदासपुर में प्राइमरी स्कूल में था।तराई में चौधरी नेपाल सिंह 1958 के ढिमरी ब्लाक आंदोलन के दौरान पिताजी के कामरेड हुआ करते थे,जिनसे हमारे पारिवारिक संबंध बने हुए रहे हैं।
तराई के जाटों को हम शुरु से अपने परिजन पंजाबी,सिखों,पहाड़ियों,देशी और बुक्सा-थारु गावों के लोगों की तरह मानते रहे हैं।मुसलमान आबादी हमारे इलाके में उतनी नहीं रही है।फिर हमारे बचपन के दौरान साठ के दशक में विभाजन के जख्म सभी शरणार्थियों में इतने गहरे थे कि मुसलमान गांवों से रिश्ते बनने से पहले हम नैनीताल पढ़ने को निकल गये।
1984 से 1990 तक मैं बाहैसियत पेशेवर पत्रकार रहा हूं और बिजनौर में सविताबाबू का मायका है।तब से लेकर अब तक पश्चिम उत्तर प्रदेश से हमारा नाता टूटा नहीं है।टिकैत के किसान आंदोलन के बाद साबित हो गया है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान चाहें तो सारा राजनीतिक समीकरण की ऐसी तैसी कर दें। राजस्थान और हरियाणा के जाट नेतृत्व और उनकी ताकत भी हम जान रहे हैं।जाटों ने भाजपाको हराने की कसम खायी है तो संघ परिवार यूं समझो कि यूपी की सियासत से बाहर है।
एक शोक मंतव्य अस्सी करोड़ में बिकी देशी ब्रांड एम्बेसडर के नाम
फासिस्ट रेसिस्ट राजकाज के संरक्षण में बड़ी मछलियां चोटी मछलियों के खाने वाली हैं
पलाश विश्वास
बीबीसी की खबर है और दिलोदिमाग लहूलुहान हैः
One of India's most iconic car brands has been sold by Hindustan Motors to the French manufacturer Peugeot for a nominal $12m (£9.6m), officials say. The Ambassador car used to be one of India's most prestigious vehicles beloved by government ministers.
बीबीसी हिंदी की खबर में इसकी वजह का खुलासा भी हो गया हैः
एक ज़माने में भारत में रुतबे और रसूख का पर्याय मानी जाने वाली एम्बेसडर कार का ब्रांड 80 करोड़ की मामूली कीमत पर बिक गया है. अधिकारियों ने बताया कि हिंदुस्तान मोटर्स ने फ्रांसीसी कंपनी पूजो के साथ ये सौदा किया है. एक वक्त था जब भारत में सरकारी लोगों की ये पसंदीदा कार हुआ करती थी, लेकिन 2014 के बाद से ही इसका उत्पादन बंद कर दिया गया.
खबरों के मुताबिक कभी नेताओं और नामी-गिरामी लोगों की शाही सवारी रही एंबेसडर कार के ब्रांड को हिंदुस्तान मोटर्सने बेच दिया है। यूरोप की दिग्गज ऑटो कंपनी प्यूजो ने इसे सिर्फ 80 करोड़ रुपये में खरीदा है। तीन साल पहले 2014 में एंबेसडर कार का प्रोडक्शन रोक दिया गया था। पिछले महीने पीसीए समूह ने भारतीय बाजार में प्रवेश करने के लिए सीके बिड़ला ग्रुप के साथ डील की थी, जिसके तहत शुरुआत में करीब 700 करोड़ रुपये का निवेश किया जाना है। इस रकम से तमिलनाडु में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया जाएगा। इस प्लांट में हर साल 1 लाख वाहन बनाने की क्षमता होगी।
गौर करें,खबर के मुताबिक 2014 से एम्बेसडर कार का उत्पादन बंद हो गया है।
नोटबंदी के बाद यूपी चुनाव से बजट और राम के नाम, राम की सौगंध और राममंदिर के घटाटोप में अर्थव्यवस्था की सेहत समझने के लिए यह आर्थिक वारदात बेहद गौरतलब है।नोटबंदी की तिमाही में उत्पादन दर और विकास दर में गिरावट हुई है,जिससे झोला छाप बगुला भगत वित्तीय प्रबंधक और पालतू अर्थशास्त्री और मीडिया सिरे से इंकार करते हुए सुनहले दिनों के तिलिस्म में आम लोगों की जिंदगी को जलती हुई कब्रगाह में तब्दील करने का मुक्तबाजारी महोत्सव मना रहे हैं।
गरीबों की गरीबी दूर करने के बहाने राम के नाम फासिज्म का कोरबार की तर्ज पर गरीबी उन्मूलन और भ्रष्टाचार मुक्त भारत की भगवा वैदिकी पेशवाराज मार्का नैतिकता की सुनामी की आड़ में देश और आम जनता की मिल्कियत देश के संसाधन बेचने की पूरी प्रक्रिया एम्बेसडर ब्रांड विदेशी हवाले करने से जगजाहिर है और बीबीसी की खबर में देश की नीलामी की जो तस्वीर चस्पां है,उसे अंध राष्ट्रवादी हिंदुत्व के नजरिये से देश पाना उतना आसान भी नहीं है।
बजट पेश करने के बाद सरकार ने जिस तरह से राशन कार्ड के साथ आधार कार्ड को नत्थी कर दिया है और जिसपर राजनीति फिर सिरे से खामोश है,जाहिर है कि पटरी से अर्थव्यवस्था उतर जाने और उत्पादन प्रणाली तहस नहस हो जाने से किसी की सेहत में कोई फर्क नहीं पड़ा है तो आम जनता को एम्बेसडर जैसे ब्रांड के विदेशी हाथों में जाने से कोई तकलीफ होगी नहीं।
गौरतलब है कि इस बीच सरकार ने सेबी के नए चेयरमैन का एलान कर दिया है। वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी अजय त्यागी को पांच साल के लिए सेबी का नया चेयरमैन बनाया है। अजय त्यागी 1 मार्च से मौजूदा सेबी चेयरमैन यू के सिन्हा की जगह लेंगे।सेबी जैसी नियामक संस्था के चेयरमैन पद की काबिलियत अगर संग की वफादारी है तो समझ लीजिये की देश की अर्थव्यवस्था नागपुर के हिंदुत्व के एजंडे के मुताबिक किन लोगों और किन चुनिंदा कंपनियों के हित में है और शेयर बाजार से नत्थी सारी बुनियादी सेवाओं को हासिल करने कैशलैस डिजिटल इंडिया में आम जनाता. कारोबार और इंडियािंकारपोरेशना का क्या हाल होना है।
खबरों के मुताबिक अजय त्यागी हिमाचल प्रदेश कैडर के आईएएस अफसर हैं, जो वित्त मंत्रालय के इकोनॉमिक अफेयर्स डिपार्टमेंट में अतिरिक्त सचिव का कार्यभार संभाल रहे हैं। सेबी चीफ के पद की दौड़ में ऊर्जा सचिव पी के पुजारी और आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांता दास भी थे लेकिन त्यागी दोनों को पीछे छोड़कर चेयरमैन बनने में कामयाब रहे। इससे पहले यूके सिन्हा 18 फरवरी 2011 को सेबी के चेयरमैन बने थे, जिन्हें दो बार का सेवा विस्तार दिया गया था।
इसी बीच वित्त मंत्री ने कहा है कि प्रतिभूति बाजारों में बराबर बड़े घटनाक्रम देखने को मिलते रहते हैं और बाजार विनियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) अर्थव्यवस्थाकी जरूरत और और बाजार के हिसाब से एक पेशेवर संगठन के रूप में अपना विकास कर रहा है। वित्त मंत्री ने सेबी बोर्ड के सदस्यों और अधिकारियों के साथ बैठक में इस साल सल के बजट में बाजार संबंधी पहलों पर विचार विमर्श किया। हर साल बजट के ठीक बाद होने वाली इस परंपरागत बैठक में बजट प्रस्तावों के संदर्भ में पूंजी बाजार नियामक के भविष्य के एजेंडा पर विचार विमर्श किया गया।
फिर मीडिया का यह शगूफाःनोटबंदी के बाद भले ही भारत की आर्थिक ग्रोथ की रफ्तार कुछ धीमी पड़ गई हो, लेकिन आने वाले अगले 5 साल में भारत दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अमेरिका के एक शीर्ष खुफिया थिंक टैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान भारत की आर्थिक ताकत का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है, इसलिए वह संतुलन के दिखावे की कोशिश में दूसरे तरीकों की तलाश करेगा।
अंतरराष्ट्रीय कन्सल्टेंसी प्राइसवाटर हाउस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) ने भविष्यवाणी की है कि 2040 तक भारत अमेरिका को पछाड़कर दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाबन जाएगा। इसकी कीमत हमें कितनी चुकानी है,अपनी जमा पूंजी कमाई पर टैक्स लगने के बावजूद यह सोचने की फुरसत किसी को नहीं है।
दूसरी तरफ,नोटबंदी की कड़ी आलोचना करते हुए प्रसिद्ध अमेरिकी अर्थशास्त्री स्टीव एच हांके ने आज कहा कि ऊंचे मूल्य के नोटों पर प्रतिबंध के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था नकदीरहित संकट में है। बाल्टीमोर, मैरीलैंड में जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री ने ट्वीट किया, 'नोटबंदी हारने वालों के लिए है। नकदी को छोडऩा इसका जवाब नहीं है। भारतीय नकदी अर्थव्यवस्था नकदीरहित संकट में है।' हांके ने इससे पहले कहा था कि शुरुआत से ही नोटबंदी में खामियां रहीं अैर यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी यह नहीं जानते कि भारत किस दिशा में जा रहा है। हांके ने कहा था कि भारत के पास मोदी की नोटबंदी के अनुरूप ढलने के लिए जरूरी ढांचा नहीं है। उन्हें इस बात का पता होना चाहिए।
पिछले 26 साल से देश बेचने का कारोबार इस अमेरिकी उपनिवेश में राजकाज है और आर्थिक सुधारों के नाम पर आम जनता का और खास तौर पर बहुजनों का कत्लेमाम है।आम जनता को अर्थशास्त्र नहीं आता और न अर्थव्यवस्था में उसकी दिलचस्पी है।
कारपोरेट देशी कंपनियों के मालिकान,शेयर होल्डरों और वित्तीय प्रबंधकों को क्या हो गया है कि वे समझ नहीं पा रहे हैं कि कुछ चुनिंदा कंपनियों को दुनियाभर में अपना साम्राज्य बनाने के लिए राजकोष खुला है।बैंकों से लाखों करोड़ का कर्ज उनके डूबते कारोबार के लिए हैं और इसके अलावा सालाना लाखों का टैक्स माफ है।बाकी सबकी शामत है इस रामराज्य में।
हाल ये हैं कि तेल,गैस और पेट्रोलियम,संचार,ऊर्जा और विमान, जहाज, बंदरगाह,सड़क परिवहन, रेल और मेट्रो रेल,बैंकिंग और बीमा,निर्माण और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में चुनिंदा कपनियों को लाखों करोड़ की रियायतें,विदेशों में उनके अरबों का निवेश और एम्बेसडर ब्राड का सौदा सिर्फ अस्सी करोड़ में।
विनिवेश और निजीकरण के तहत सरकारी कंपनियां कौड़ियों के मोल बिकते देखने और रेलवे समेत सभी सेक्टरों में थोक पैमाने पर छंटनी का नजारा देखने और क्रांतिकारी ट्रेड यूनियनों के नेताओं की विदेश यात्राएं और पंचायत से लेकर संसद तक जन प्रतिनिधियों के करोड़पति और लखपति बनते देखने को अभ्यस्त आम जनता को अब भी अपने बैंक खातों में नोटवर्षा की तर्ज पर सुनहले दिनों का बेसब्री से इंतजार है और यूपी चुनाव से पहले गरीबी उन्मूलन के नारे के साथ बेइंतहा सरकारी खर्च कागद पर दिखाने के करतब से अर्थव्यवस्था के जोड़ घटाव करने के मूड में आम जनता नहीं है,जाहिर है।
दिवालियापन का आलम यह है कि कारपोरेट कंपनियों को यह नजर नहीं आ रहा है कि एम्बेसडर जैसे बेशकीमती हिंदुस्तानी ब्रांड को खत्म करने का इंतजाम 2014 में बिजनेस फ्रेंडली हिंदुत्व की सरकार ने कर दिया है तो आगे उद्योग और कारोबार का हाल किसानों मजदूरों से भी बुरा होना है।
नोटबंदी के बारे में हम पहले दिन से लिख रहे हैं,चाहे तो हस्तक्षेप पर नोटबंदी में लगे तमाम आलेख नये सिरे से पढ़कर देख लें कि नोटबंदी और डिजिटल कैशलैस इंडिया का मतलब नकदी पर चलने वाला खुदरा कारोबार और हाट बाजार खत्म है,किसानों की दस दिशा तबाही है,बेरोजगारी ,भुखमरी और मंदी है तो यह कारपोरेट एकाधिकार का चाकचौबंद इंतजाम है।
बड़ी मछलियां छोटी मछलियां को निगलकर और बड़ी हो जायेंगी।वे और बड़ी हो गयी कंपनियां फासिज्म के राजकाज के सहारे बड़ी कंपनियों को भी बख्शेंगी नहीं।
कारपोरेट लाबिइंग से कारपोरेट कंपनियों को पिछले छब्बीस साल में जो चूना लगता रहा है,उसका हिसाब जोड़ लें।
सरकारी संरक्षण में तेल और गैस में ओएनजीसी जैसे नवरत्न कंपनी और तमाम सरकारी गैरसरकारी तेल कंपनियों का बंटाधार करके जैसे कारपोरेट एकाधिकार कायम हुआ है,वही किस्सा अब बाकी हिंदुस्तानी कारपोरेट कंपननियों का भोगा हुआ यथार्थ बनकर सामने आने वाला है।
एम्बेसडर प्रकरण इस प्रक्रिया की शुरुआत है।वैसे भी कारपोरेट लाबिइंग की वजह से आटो सेक्टर में भारी संकट है।आगे आग दिवालिया बनते जाने की किसकी बारी है,यह सिर्फ नागपुर के मुख्यालय की मर्जी और मिजाज पर निर्भर है।
एम्बेसडर को हम बचपन से जान रहे हैं।जब हम नैनीताल में पढ़ रहे थे।पहाड़ों में रेल तो क्या साईकिलें तक दिखती नहीं थी।पहाड़ों में और तराई में तब साठ और सत्तर के दशक में परिवहन का मतलब केएमओ और जीएमओ की बसों,टाटा के ट्रकों के अलावा चार पहिया वाहनों के मामले में एम्बेसडर कारें और जीप हुआ करती थी।जीप और जोंगा तो सिरे से लापता है,लेकिन एम्बेसडर चल रहा था।
हिंदुस्तान मोटर्स का कोलकाता के नजदीक हिंद मोटर काऱखाना संकट में है और 2014 से एम्बेसडर का उत्पादन बंद है तो ब्रांड को विदेशी हाथों में महज अस्सी करोड़ के एवज में सौंपने से पहले बिजनेस फ्रेंडली सरकार के पास बहुत मौके थे एम्बेसडर बचाने के।
किंगफिशर और विजय माल्या या विदेशों में अरबों डालर और पौंड नोटबंदी के आपातकाल में भी निवेश करने वाली कंपनियों के हितों का ख्याल जितना है इस फासिज्म के राजकाज को,उसका तनिको हिस्सा अगर एम्बेसडर के लिए खर्च होता।
हम जब कुमायूं और गढवाल में पदयात्राें कर रहे थे तब कारों की सवारी का ख्वाब हम जाहिरा तौर पर नहीं देखते थे।लेकिन पेशेवर पत्रकारिता की वजह से 36 सालों में हमने कारों की सवारी खूब की है।मेरठ के दंगों के दौरान मारुति जिप्सी या झारखंड में ट्रेकर की सवारी भी खूब की है।लेकिन आधी रात के बाद दफ्तर से घर लौटना हो या कोयला कदानों में भूमिगत आग से घिरी धंसकती हुई जमीन पर दौड़ने की नौबत हो,एम्बेसडर कार हमारी पहली पसंद रही है जो जितने ड्राइवरों से हमारा ताल्लुकात हुआ है,उनके मुताबिक भारत की सड़कों पर सबसे बेहतरीन कार है।
बहरहाल अर्थव्यवस्थी की तबाही,बेरोजगारी और छंटनी के शिकार लोगों के लिए सुनहले दिन हाजिर है क्योंकि सरकार एक तरफ लोगों को नौकरियां दिलवाना चाहती है, तो दूसरी ओर छंटनी के शिकार लोगों को बेहतर मुआवजा मिले, इसकी भी कोशिश कर रही है। इसके लिए सरकार छंटनी से जुड़े कानून में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है। कानून का ये मसौदा अगर लागू होता है तो इससे करोड़ों कर्मचारियों को फायदा होगा।
न रोजगार सृजन की कोई सोच है और न नौकरी की सुरक्षा की कोई गारंटी है।श्रम मंत्रालय छंटनी से जुड़े कानून में संशोधन करने की तैयारी कर रहा है। जानकारी के मुताबिक श्रम मंत्रालय छंटनी की सूरत में कर्मचारियों को मिलने वाले मुआवजे को बढ़ा कर 3 गुना करने का प्रस्ताव भेजेगा।यह इसलिए है कि उत्पादन प्रमाली तहस नहस होने और एकाधिकार कारपोरेट वर्चस्व की वजह से भारी पैमाने पर छंटनी होनी है।यह नजारा खुदरा कारोबार खतम करने वाली ईटेलिंग कंपनियों के रवैये से जाहिर है तो आईटी सेक्र का नाभिनाल तो ट्रंप के एक्जीक्यूटिव आदेशों से जुडा़ है।
मसलन दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनी स्नैपडील बड़ी छंटनी की तैयारी में है। सूत्रों के मुताबिक कंपनी अपने 30 फीसदी कर्मचारियों की छंटनी कर सकती है। धीमी ग्रोथ और नई फंडिंग ना मिलने के कारण कंपनी लागत घटाने को मजबूर है। जिसके चलते करीब 1000 कर्मचारियों को निकाला जा सकता है। इसके अलावा कंपनी की लॉजिस्टिक डिवीजन से करीब 3000 स्थायी और 5000 कॉन्ट्रैक्ट पर रखे गए कर्मचारियों को निकाला जा सकता है। कंपनी ने छंटनी की प्रक्रिया शुरू कर दी है, और इसके लिए दो कंसल्टेंट नियुक्त किए गए हैं।
नोटबंदी के फर्जीवाड़े के हक में आंकडे़ भी सामने आ रहे हैं।मसलन नोटबंदी का उद्योगों पर कुछ असर दिसंबर में दिखा था और इसके बाद भी यह सरकार द्वारा आज जारी दो आंकड़ों में दिख रहा है। औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की वृद्घि दर दिसंबर में 0.4 फीसदी रही जबकि नवंबर में इसमें 5.6 फीसदी की तेजी दर्ज की गई थी। इसी तरह कॉरपोरेट कर संग्रह अप्रैल से जनवरी के दौरान महज 2.9 फीसदी बढ़ा जबकि अप्रैल से दिसंबर तक इसमें 4.4 फीसदी की वृद्घि देखी गई थी।
उत्पाद शुल्क संग्रह की वृद्घि भी जनवरी में घटकर 26.3 फीसदी रही जबकि दिसंबर में यह 31.6 फीसदी थी। नोटबंदी के कारण विवेकाधीन खर्चों में कटौती होने से सेवा कर संग्रह में जनवरी के दौरान 9.4 फीसदी की वृद्घि देखी गई जबकि दिसंबर में इसमें 12.4 फीसदी की वृद्घि दर्ज की गई थी। हालांकि यह चकित करने वाला रहा कि नवंबर में शानदार वृद्घि दर्ज करने वाला आईआईपी में जनवरी के दौरान इतनी कमी क्यों रही। आईआईपी में 75.5 फीसदी भारांश वाले विनिर्माण क्षेत्र की वृद्घि दिसंबर में 2 फीसदी रही जबकि जनवरी में यह 5.6 फीसदी बढ़ा था। हालांकि अप्रैल से अक्टूबर में भी आईपीपी में उतनी तेजी नहीं आई थी। ऐसे में केवल विमुद्रीकरण ही आईआईपी में नरमी की वजह नहीं मानी जा सकती। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जनवरी के दौरान कुल कर संग्रह 12.85 लाख करोड़ रुपये रही है जो इस वर्ष के बजट अनुमान का 76 फीसदी है।
इस खबर पर भी गौर करें कर्मचारी कि सरकार सरकारी कंपनियों की सूचीबद्धता में तेजी लाने के लिए नई व्यवस्था की योजना बना रही है। इसका मकसद एक विभाग से दूसरे विभाग के बीच लाल फीताशाही को खत्म करना और कंपनियों को सूचीबद्धता के लिए चिह्नित करने और उन्हें शेयर बाजार में उतरने के बीच का वक्त कम करना है। इस व्यवस्था को अंतिम मंजूरी देने के लिए मंत्रियोंं की अधिकार प्राप्त समिति को सौंपा जा सकता है, जैसा कि रणनीतिक बिक्री के मामले में होता है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2017-18 के अपने बजट भाषण में घोषणा की थी कि केंद्र सरकार सीपीएसई (केंद्र की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों) को शेयर बाजार मेंं समयबद्ध तरीके से सूचीबद्धता के लिए चिह्नित करने के लिए पुनरीक्षित व्यवस्था पेश करेगी। वरिष्ठ सरकारी सूत्रों ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था पर अभी काम किया जाना बाकी है। उन्होंने कहा कि इस तरह की प्रक्रिया में जमीनी काम किए जाने के बाद मंत्रियोंं की अधिकार प्राप्त समिति प्रस्तावित सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी की सूचीबद्धता पर अंतिम फैसला करेगी, जिसमेंं मर्चेंट बैंकर चुना जाना, रोड शो आदि शामिल है। इस तरह मंत्रियों की एक समिति सरकार के सामने एक वैकल्पिक व्यवस्था पेश करेगी, जो पहले से ही रणनीतिक बिक्री के लिए बनी हुई है।
कैबिनेट से पहली मंजूरी मिलने के बाद पीएसयू (ज्यादातर गैर सूचीबद्ध) का मूल्यांकन, दिलचस्पी लेने वाले खरीदारों की तलाश और कीमतें तक करने का काम किया जाएगा। उसके बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और जिस विभाग का पीएसयू है, उस विभाग के मंत्री मिलकर इस पर अंतिम फैसला करेंगे। यही समूह सूचीबद्धता के लिए पहले घोषित 5 सरकारी सामान्य बीमा कंपनियों, न्यू इंडिया एश्योरेंस, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस, ओरिएंटल इंश्योरेंस, नैशनल इंश्योरेंस और जरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन आफ इंडिया की सूचीबद्धता को अंतिम मंजूरी देगा। वरिष्ठ सरकारी सूत्रों ने कहा कि या तो जेटली गडकरी की जोड़ी या कोई मंत्रियोंं के नए अधिकार प्राप्त समूह को इस मामले की निगरानी व सरकारी कंपनियों की सूचीबद्धता की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
अभी अगर एंप्लॉयर कर्मचारी को निकलता है तो उसे हर साल के लिए 15 दिन का वेतन मुआवजे के तौर पर देना होता है। मतलब यदि कंपनी में 4 साल काम किया है तो एम्प्लॉयर फिलहाल 2 महीने की तनख्वाह हर्जाने के तौर पर देता है। लेकिन नए प्रस्ताव के तहत यह मुआवजा 6 महीने का हो जाएगा। कैबिनेट की हरी झंडी मिलने के बाद इसे इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड के तहत संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में में पेश किया जा सकता है। संसद से पास होकर अगर यह ड्राफ्ट कानून की शक्ल अख्तियार करता है तो इससे तमाम इंडस्ट्रीज में काम कर रहे करोड़ों लोगों को फायदा पहुंचेगा।